विषयसूची
सामान्य अध्ययन-II
- ‘ग्लोबल हंगर इंडेक्स’ की व्याख्या
सामान्य अध्ययन-III
- लोगों को भोजन देना, ग्रह को बचाना
- भारत के साइबरस्पेस को सुरक्षित करने की आवश्यकता
मुख्य परीक्षा संवर्धन हेतु पाठ्य सामग्री
- केस स्टडीज: शासन-व्यवस्था के प्रमुख सैनिक
- मणिपुर का राज्य जनसंख्या आयोग
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य
- कोलार क्षेत्र
- नियुक्तियों और तबादलों पर सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की प्रधानता
- अनुसूचित जाति समिति अप्रमाणित शिकायतों पर जांच शुरू नहीं कर सकती
- कानूनी व्यवस्था में क्षेत्रीय भाषाओं के इस्तेमाल की वकालत
- ई-कोर्ट मिशन
- भारत द्वारा G20 की अध्यक्षता
- चीन की वुल्फ वॉरियर डिप्लोमेसी
- “विजन- विकसित भारत: बहुराष्ट्रीय कंपनियों के अवसर और अपेक्षाएं” – रिपोर्ट
- कौशल अंतराल में कमी
- लीड्स 2022 सर्वेक्षण रिपोर्ट
- नॉन-डिलिवरेबल फॉरवर्ड (NDF) मार्केट
- डेटा केंद्रों को ‘बुनियादी ढांचे’ का दर्जा
- भारत की कोयला खदानों का क्षमता से कम उपयोग
- भारत में अंतरिक्ष पारिस्थितिकी तंत्र का विकास
- दुर्गावती टाइगर रिजर्व
- प्रयोगशाला में विकसित मांस की क्षमता का दोहन करने के लिए स्टार्ट-अप
- कामिकाज़े ड्रोन
- मानचित्रण
सामान्य अध्ययन-II
विषय: केन्द्र एवं राज्यों द्वारा जनसंख्या के अति संवेदनशील वर्गों के लिये कल्याणकारी योजनाएँ और इन योजनाओं का कार्य-निष्पादन; इन अति संवेदनशील वर्गों की रक्षा एवं बेहतरी के लिये गठित तंत्र, विधि, संस्थान एवं निकाय।
‘ग्लोबल हंगर इंडेक्स’ की व्याख्या
संदर्भ: दो वर्षों में दूसरी बार, महिला और बाल विकास मंत्रालय द्वारा ‘वैश्विक भुखमरी सूचकांक’ (Global Hunger Index – GHI) को खारिज किया गया है। ‘कन्सर्न वर्ल्डवाइड’ और ‘वेल्ट हंगर हिल्फे’, जोकि क्रमशः आयरलैंड और जर्मनी के गैर-सरकारी संगठन हैं, द्वारा जारी ‘वैश्विक भुखमरी रिपोर्ट 2022’ में भारत को 121 देशों में काफी नीचे 107वीं रैकिंग दी गई है।
भारत द्वारा उठाए गए मुद्दे:
- एक आयामी दृष्टिकोण को अपनाते हुए इस रिपोर्ट में अल्पपोषित आबादी के अनुपात (Proportion of Undernourished – PoU) के अनुमान के आधार पर भारत की रैंकिंग को कम करके 16.3 प्रतिशत पर ला दिया गया है।
- खाद्य और कृषि संगठन (FAO) का अनुमान का अनुमान “खाद्य असुरक्षा अनुभव पैमाने (Food Insecurity Experience Scale –FIES)“ सर्वेक्षण मॉड्यूल पर आधारित है जो कि ‘गैलअप वर्ल्ड पोल’ के माध्यम से आयोजित किया गया है और जो “3000 प्रतिभागियों” के नमूने के साथ “8 प्रश्नों” पर आधारित “ओपिनियन पोल” है।
- बच्चों के स्वास्थ्य संकेतकों से संबंधित संकेतकों के आधार पर भुखमरी की गणना करना न तो वैज्ञानिक है और न ही तर्कसंगत।
- यह रिपोर्ट जनता के लिए ‘खाद्य सुरक्षा’ सुनिश्चित करने के लिए, विशेष रूप से कोविड महामारी के दौरान सरकार द्वारा किए गए प्रयासों को जानबूझकर अनदेखा करती है।
इन आरोपों का जीएचआई द्वारा स्पष्टीकरण:
- वैश्विक भुखमरी सूचकांक’ (GHI), केवल भारत सहित सभी सदस्य देशों द्वारा रिपोर्ट किए गए डेटा के आधार पर तैयार की गयी ‘खाद्य बैलेंस शीट’ के माध्यम से प्राप्त सार्वजनिक डेटा का उपयोग करता है।
- ‘जीएचआई’, खाद्य आपूर्ति की स्थिति और आबादी के ‘विशेष रूप से कमजोर उपसमूह’ के भीतर अपर्याप्त पोषण के प्रभावों, दोनों को सुनिश्चित करता है।
- वैश्विक भुखमरी की गणना में उपयोग किए जाने वाले सभी चार संकेतक भारत सहित अंतर्राष्ट्रीय समुदाय द्वारा मान्यता प्राप्त हैं।
इंस्टा लिंक्स:
मेंस लिंक:
नीति प्रक्रिया के सभी चरणों में जागरूकता और सक्रिय भागीदारी के अभाव के कारण कमजोर वर्गों के लिए लागू की गई कल्याणकारी योजनाओं का प्रदर्शन अपेक्षित रूप से प्रभावी नहीं है – चर्चा कीजिए। (यूपीएससी 2019)
स्रोत: द हिंदू, पीआईबी
सामान्य अध्ययन-III
विषय: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन।
लोगों को भोजन देना, ग्रह को बचाना
संदर्भ: एक भारतीय कृषि अर्थशास्त्री के मुताबिक, ग्रह को बचाते हुए लोगों का पेट भरने के लिए एक संतुलनकारी कार्रवाई की आवश्यकता होती है।
आज की दुनिया के लिए प्रमुख चिंता:
- पर्याप्त भोजन की उपलब्धता के बावजूद, सस्ती कीमतों पर भोजन तक पहुंच एक चुनौती बनी हुई है।
- नीतियों और प्रौद्योगिकियों के बीच तालमेल की कमी है।
- जलवायु परिवर्तन की अनिवार्यताओं को संबोधित करते हुए दुनिया की खाद्य और पोषण संबंधी जरूरतों को पूरा करने में सक्षम प्रौद्योगिकियों का विकास करने की आवश्यकता है।
आवश्यकता:
- जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को समझने के लिए उपकरण विकसित करना: जैसे-जैसे ग्रीष्म लहरों, सूखा और असामयिक बाढ़ की उच्च आवृत्ति के रूप में ‘जलवायु झटके’ तीव्र हो रहे हैं, लाखों लोगों के लिए ‘खाद्य सुरक्षा’ का संकट बढ़ता जा रहा है।
- विचारधाराओं और हठधर्मिता के बजाय वैज्ञानिक ज्ञान और नवाचार को बढ़ावा देना, क्योंकि इसके भयानक परिणाम सामने आए हैं। उदाहरण के लिए, जब चीन ने कम्युनिस्ट विचारधारा की एक कम्यून-आधारित प्रणाली का पालन करने की कोशिश की थी, तब इसे 1958-61 की अवधि के दौरान भुखमरी के कारण भारी नुकसान उठाना पड़ा।
- सक्षम नीतियों पर फिर से काम करने की आवश्यकता: चूंकि ‘कृषि’ वैश्विक ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन में 28 प्रतिशत का योगदान करती है और जलवायु परिवर्तन से गंभीर रूप से प्रभावित भी होती है, अतः जलवायु अनुकूलन रणनीतियों में निवेश करने के साथ-साथ कृषि से होने वाले जीएचजी उत्सर्जन को कम करने में सक्षम नीतियों पर फिर से काम करने की आवश्यकता है।
- लोगों के व्यवहार को बदलने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए; अर्थात ऐसी नीतियों पर काम करने की आवश्यकता है, जो लोगों को अपने काम करने के तरीके को बदलने के लिए प्रोत्साहित करें, चाहे वह कृषि में हो या किसी अन्य क्षेत्र में।
- कृषि-अनुसंधान एवं विकास और शिक्षा पर व्यय में वृद्धि: भारत का ‘कृषि-अनुसंधान एवं विकास और शिक्षा’ पर वर्तमान व्यय केंद्र और राज्यों के लिए कुल मिलाकर कृषि-जीडीपी का लगभग 0.6 प्रतिशत है। इसे कम से कम 1 प्रतिशत तक और कृषि-जीडीपी के 1.5 से 2 प्रतिशत के बीच तक बढाए जाने की जरूरत है।
तभी भारत प्रतिकूल जलवायु परिवर्तन की स्थिति में भी भोजन के मामले में आत्मनिर्भर हो सकता है।
‘विश्व खाद्य पुरस्कार’ के बारे में:
‘विश्व खाद्य पुरस्कार’ (World food prize), विश्व में भोजन-गुणवत्ता, मात्रा या उपलब्धता में सुधार करके मानव विकास करने संबंधी कार्य करने वाले व्यक्तियों की विशिष्ट उपलब्धियों को मान्यता प्रदान करने हेतु दिया जाने वाला सर्वश्रेष्ठ अंतर्राष्ट्रीय सम्मान है।
- इस पुरस्कार की परिकल्पना, वैश्विक कृषि में अपने कार्यों के लिए वर्ष 1970 में नोबेल शांति पुरस्कार विजेता डॉ. नॉर्मन ई बोरलॉग (Norman E. Borlaug) द्वारा की गयी थी। इनके लिए हरित क्रांति के जनक के रूप में भी जाना जाता है।
- विश्व खाद्य पुरस्कार का गठन वर्ष 1986 में किया गया था, इसके प्रायोजक ‘जनरल फ़ूड कॉर्पोरेशन’ थे।
- इसे “खाद्य और कृषि क्षेत्र का नोबेल पुरस्कार” के रूप में भी जाना जाता है।
- यह पुरस्कार हर साल 16 अक्टूबर को डेस मोइनेस, आयोवा में आयोजित एक विशेष समारोह में दिया जाता है।
- यह पुरूस्कार सर्वप्रथम वर्ष 1987 में, भारत में हरित क्रांति के जनक , डॉ. एम.एस. स्वामीनाथन को दिया गया था।
प्रीलिम्स लिंक:
- विश्व खाद्य पुरस्कार किसके द्वारा दिया जाता है?
- विश्व खाद्य पुरस्कार फाउंडेशन के बारे में।
- खाद्य और कृषि संगठन (FAO) के बारे में।
मेंस लिंक:
- क्लाइमेट-स्मार्ट एग्रीकल्चर (CCA) से आप क्या समझते हैं? यह दृष्टिकोण कृषि पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करते हुए खाद्य सुरक्षा बनाए रखने में हमारी मदद कैसे कर सकता है?
- जलवायु परिवर्तन, भारत में कृषि को कैसे प्रभावित कर रहा है? वर्तमान में जारी जलवायु संकट के अनुकूल होने के लिए आवश्यक कदमों पर चर्चा कीजिए। (250 शब्द)
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
विषय: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में भारतीयों की उपलब्धियाँ; देशज रूप से प्रौद्योगिकी का विकास और नई प्रौद्योगिकी का विकास।
भारत के साइबरस्पेस को सुरक्षित करने की आवश्यकता
संदर्भ: वर्तमान में दुनिया एक ऐसे युग की ओर बढ़ रही है जिसमें सामरिक क्षेत्रों में क्वांटम भौतिकी के अनुप्रयोग जल्द ही एक वास्तविकता बन जाएंगे, जिससे साइबर सुरक्षा जोखिम बढ़ जाएगा।
साइबर सुरक्षा के लिए वर्तमान खतरा:
- आरएसए (RSA: Rivest-Shamir-Adleman) जैसे मौजूदा सुरक्षा प्रोटोकॉल जल्दी अप्रचलित हो जाएंगे। इसका मतलब होगा, कि ‘क्वांटम साइबर हमले’ संभावित रूप से किसी भी सुरक्षित लक्ष्य को भेद सकते हैं।
- चीन की क्वांटम प्रगति ने भारत के डिजिटल बुनियादी ढांचे के खिलाफ क्वांटम साइबर हमलों के खतरे को बढ़ा दिया है। भारत पहले से ही चीनी राज्य-प्रायोजित हैकरों के हमलों का सामना कर रहा है।
- भारत के लिए विशेष रूप से चिंता की बात यह है कि चीन द्वारा दुनिया के दो सबसे तेज क्वांटम कंप्यूटर विकसित किए जा चुके हैं।
- भारत की विदेशी, विशेष रूप से चीनी हार्डवेयर पर निर्भरता एक अतिरिक्त ‘भेद्यता’ है।
भारत में इस क्षेत्र में विकास की स्थिति:
- भारत धीरे-धीरे लेकिन निरंतर रूप से क्वांटम प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में प्रगति कर रहा है। फरवरी 2022 में, DRDO और IIT-दिल्ली की एक संयुक्त टीम ने उत्तरप्रदेश के दो शहरों – प्रयागराज और विंध्याचल के बीच एक QKD लिंक का सफलतापूर्वक प्रदर्शन किया था।
- 2019 में, केंद्र सरकार द्वारा क्वांटम प्रौद्योगिकी को “राष्ट्रीय महत्व का मिशन” घोषित किया गया था।
- 2020-21 के केंद्रीय बजट में शुरू किए गए नए ‘राष्ट्रीय क्वांटम प्रौद्योगिकी और अनुप्रयोग मिशन’ पर 8,000 करोड़ रुपये खर्च करने का प्रस्ताव किया गया था।
- सुरक्षित संचार और क्रिप्टोग्राफी अनुप्रयोगों के निर्माण के लिए सेना ने उद्योग और शिक्षाविदों के साथ सहयोग-समझौता किया है।
भारत के साइबरस्पेस को किस प्रकार अनुकूलित बनाया जा सकता है?
- अन्य देशों से खरीद: भारत को अपने आधिकारिक एन्क्रिप्शन तंत्र के रूप में ‘संयुक्त राज्य अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी’ (एनएसए) के ‘सूट बी क्रिप्टोग्राफी क्वांटम-रेज़िस्टन्टसूट’ (Suite B Cryptography Quantum-Resistant Suite) की खरीद पर विचार करना चाहिए।
- क्रिप्टोग्राफिक मानकों का अनुकरण: भारतीय रक्षा प्रतिष्ठान, अमेरिका के ‘राष्ट्रीय मानक और प्रौद्योगिकी संस्थान’ (NIST) द्वारा निर्धारित क्रिप्टोग्राफिक मानकों का अनुकरण करने पर विचार कर सकते हैं। इन मानकों ने क्वांटम कंप्यूटर हमलों को संभालने के लिए एन्क्रिप्शन उपकरणों की एक श्रृंखला विकसित की है।
- क्वांटम-प्रतिरोधी सिस्टम का विकास: भारत को विशेष रूप से महत्वपूर्ण रणनीतिक क्षेत्रों के लिए क्वांटम-प्रतिरोधी संचार में क्षमताओं को लागू करना और विकसित करना शुरू कर देना चाहिए।
- वित्त पोषण: सरकार पोस्ट-क्वांटम क्रिप्टोग्राफी से संबंधित मौजूदा ओपन-सोर्स परियोजनाओं को निधि और प्रोत्साहित कर सकती है।
- वैश्विक पहल में भागीदारी: भारत क्वांटम-प्रतिरोधी क्रिप्टोग्राफिक एल्गोरिदम को प्रोटोटाइप और एकीकृत करने के लिए 2016 में शुरू की गई एक वैश्विक पहल ‘ओपन क्वांटम सेफ प्रोजेक्ट’ में भाग ले सकता है।
- लंबी दूरी के संचार, विशेष रूप से सैन्य चौकियों के बीच संवेदनशील संचार के लिए ‘क्वांटम कुंजी वितरण’ (Quantum Key Distribution – QKDs) को प्राथमिकता देना चाहिए। संभावित क्वांटम साइबर हमले से महत्वपूर्ण खुफिया जानकारी की रक्षा करते हुए सुरक्षित संचार सुनिश्चित करने के लिए ‘क्वांटम कुंजी वितरण’ (QKD) को प्राथमिकता दी जा सकती है।
- अन्य “तकनीकी-लोकतंत्रों” – उत्कृष्ट प्रौद्योगिकी क्षेत्रों, उन्नत अर्थव्यवस्थाओं और उदार लोकतंत्र के प्रति प्रतिबद्धता वाले देश – के साथ राजनयिक साझेदारी भारत को संसाधनों को पूल करने और उभरते क्वांटम साइबर खतरों को कम करने में मदद कर सकते हैं।
भारत को इन चुनौतियों से निपटने के लिए समग्र दृष्टिकोण की जरूरत है। इस दृष्टिकोण के केंद्र में ‘पोस्ट-क्वांटम साइबर’ सुरक्षा पर ध्यान देना चाहिए।
इंस्टा लिंक:
प्रीलिम्स लिंक:
- क्वांटम कंप्यूटिंग
- ‘क्वांटम सुप्रीमसी’ के बारे में।
- सिकमॉर(Sycamore) क्या है?
- क्वांटम उलझाव
- ‘मानक कंप्यूटर’ और ‘क्वांटम कंप्यूटर’ के बीच अंतर
मेंस लिंक:
आप क्वांटम कंप्यूटर से क्या समझते हैं और समझाते हैं कि यह कंप्यूटिंग में कैसे क्रांति लाएगा? (250 शब्द)
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
मुख्य परीक्षा संवर्धन हेतु पाठ्य सामग्री
केस स्टडीज: शासन-व्यवस्था के प्रमुख सैनिक
आस्तिक कुमार पाण्डेय
स्वच्छ मोरना नदी मिशन – महाराष्ट्र के अकोला जिले में ‘मोरना नदी’ को साफ करने के लिए एक नागरिक प्रेरित जन आंदोलन।
नदी में जलकुंभी और सीवेज का कचरा जमा हो गया था। कलेक्टर आस्तिक कुमार पाण्डेय ने जब पहली बार इसे साफ़ करने का आइडिया निकाला, तो लोगों द्वारा खुद सफाई करने पर संक्रमण का डर बना हुआ था। कलेक्टर कार्यालय ने भागीदारी को आमंत्रित करते हुए समाचार पत्रों में विज्ञापन प्रकाशित किए। यह एक बड़ी सफलता साबित हुई। बाद में कई स्थानीय पार्षद भी नदी की सफाई के लिए सामने आये।
सबक: परिवर्तन के लिए सामुदायिक भागीदारी एक आवश्यक उपकरण है।
आशीष सक्सेना
साथीदार अभियान- मध्य प्रदेश के झाबुआ में सामाजिक कुरीतियों के उन्मूलन के माध्यम से महिलाओं और बच्चों के सशक्तिकरण के लिए एक संयुक्त पहल।
झाबुआ जिले में दहेज प्रथा चरम पर थी। कई परामर्शों के बाद, सामाजिक नेता मध्यस्थ बन गए, ग्रामीणों तक पहुंचे और उन्हें जागरूक किया। एक गांव में ‘तड़वी’ एक बहुत ही महत्वपूर्ण सामाजिक स्थिति रखता है। ‘तड़वी’ एक प्रभावशाली व्यक्ति होता है और लोग इसकी बातों पर ध्यान देते हैं, इसलिए गाँवों के ‘तड़वी’ को साथीदार बनाया गया।
लोगों को दहेज की राशि को 50,000 रुपये या उससे कम करने के लिए समझाना शुरू किया, जबकि पारंपरिक 2.3 लाख रुपये जो 5 लाख रुपये और उससे अधिक तक दहेज दिया जाता था।
सबक: अच्छे सामाजिक नेता समाज में व्याप्त बुराइयों से लड़ने में मदद कर सकते हैं।
डॉ. माधवी खोडे चावरे
जनजातीय आश्रम स्कूलों में बाल अधिकारों और यौन उत्पीड़न की रोकथाम के बारे में जागरूकता पैदा करना।
आश्रम स्कूलों में यौन उत्पीड़न पूरे भारत में एक आम घटना है। और, इस बुराई को ‘कुपोषण’ की समस्या तरह कम करके आंका जाता है।
‘
- सभी हितधारकों को प्रशिक्षण और अभिविन्यास प्रदान करने के साथ-साथ वीडियो और पठन सामग्री भी प्रदान करते हुए ‘जिव्हाला’ (Jiwhala) कार्यक्रम शुरू करने के बाद से, लड़के और लड़कियां अब इन संवेदनशील मुद्दों के बारे में खुलकर बात कर रहे हैं।
- इसके पीछे मूल रूप से दो तरह के विचार है – बच्चों को सशक्त बनाना और स्कूल प्रशासन को उनकी जिम्मेदारियों के प्रति संवेदनशील बनाना।
सबक: सुशासन के लिए सशक्तिकरण, संवेदीकरण और जागरूकता उपकरण हैं।
डॉ. एस. लखमनन
‘देबो ना नेबो ना’ (DEBO NA NEBO NA) – असम में जिला प्रशासन कछार, सिलचर द्वारा मोबाइल फोन एप्लिकेशन के साथ एक भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन।
- “देबो ना, नेबो ना’ – अर्थात “ न देंगे और न लेंगे’ (Won’t Give, Won’t Take) – परियोजना मई 2017 में शुरू की गई थी।
- इस परियोजना के पीछे सरल उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि किसी भ्रष्ट आचरण या इसकी संभावित घटना के स्थान से, तुरंत संवाद करने के लिए सुविधाओं का अभाव नहीं हो।
- जिलों में सभी सरकारी विभागों के कार्यालयों के बाहर ‘ड्रॉप-बॉक्स’ लगाए गए हैं।
सबक: प्रशासकों के अभिनव दिमाग शासन की दक्षता और अखंडता की निगरानी में मदद कर सकते हैं।
कार्तिकेय मिश्रा
कौशल गोदावरी कौशल विकास और उद्यमिता संवर्धन परियोजना/कौशल गोदावरी
इस अभिनव और अनूठे कार्यक्रम के तहत जिला प्रशासन- कौशल विकास, कौशल वृद्धि, नौकरी प्लेसमेंट और भर्ती में निजी कंपनियों की सहायता करने की व्यवस्था कर रहा है। यह कार्यक्रम काफी सफल रहा है, और इसके तहत 2019 तक 16,000 युवाओं को रोजगार मिल चुका था।
सबक: कौशल के माध्यम से युवाओं को सशक्त बनाना ‘सुशासन’ के मूल में है।
डॉक्टर शाहिद इकबाल चौधरी
परियोजना “राहत”: जीवन को जोड़ना, शिक्षा को सुरक्षित करना। यह जिला स्तर पर एक अभिसरण परियोजना की योजना बनाई गई है।
- इस परियोजना के तहत गांवों में 170 पुलों को जोड़ने का काम किया गया है।
सबक: सही क्रियान्वयन के साथ सही दृष्टि लोगों के जीवन को बदलने की शक्ति रखती है।
राज कुमार यादव
जिला प्रशासन दत्तक ग्राम योजना
जिला प्रशासन दत्तक ग्राम (District Administration Adopted Village – DAAV) योजना के तहत छह स्कूलों का चयन किया गया है। बुनियादी ढांचे को बढ़ाया गया और स्थानीय लोगों को प्रतिष्ठानों के रखरखाव के लिए प्रशिक्षित किया गया।
सबक: जमीनी स्तर पर सुशासन का मतलब बुनियादी सुविधाओं और सेवाओं की उपलब्धता और पहुंच है।
मणिपुर का राज्य जनसंख्या आयोग
संदर्भ: जनसंख्या को नियंत्रित करने में मदद करने के लिए, मणिपुर सरकार ने चार से अधिक बच्चे वाले दंपतियों के लिए कोई सरकारी लाभ या नौकरी नहीं दिए जाने की घोषणा की है।
- इस घोषणा को लागू करने के लिए राज्य सरकार ने ‘राज्य जनसंख्या आयोग’ का गठन किया है।
- इससे पहले, राजस्थान, मध्य प्रदेश और गुजरात में इसी तरह के क़ानून बन चुके हैं।
- भारत 2023 में सबसे अधिक आबादी वाले देश के रूप में चीन को पछाड़ने के लिए तैयार है। भारत की आबादी विश्व जनसंख्या का 18% है।
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य
कोलार क्षेत्र
संदर्भ: केंद्र सरकार द्वारा कर्नाटक में कोलार क्षेत्र में सोने, पैलेडियम और अन्य खनिजों के खनन को फिर से बहाल किया जाएगा।
पर्यावरण और आर्थिक कारणों से कोलार क्षेत्र में खनन को 2001 में बंद कर दिया गया था।
नियुक्तियों और तबादलों पर सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की प्रधानता
संदर्भ: सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम द्वारा अनुशंसित नामों पर, सरकार द्वारा एकतरफा देरी करने या उन्हें पृथक किए जाने की प्रवृत्ति बढ़ रही है।
पृथक्करण और देरी:
- कॉलेजियम द्वारा न्यायमूर्ति मुरलीधर के स्थानांतरण की सिफारिश पर सरकार ने चुप्पी साधते हुए राजस्थान उच्च न्यायालय में न्यायमूर्ति मिथल के स्थानांतरण को अधिसूचित करने का फैसला किया है।
- जस्टिस सिंह की सिफारिश सरकार के पास अधर में लटकी हुई है, जबकि कॉलेजियम द्वारा उसी बैच में पदोन्नति के लिए अनुशंसित अन्य न्यायाधीशों को सरकार द्वारा अधिसूचित किया गया था।
देरी से जुड़ी समस्याएं:
- सरकार द्वारा इन निर्णयों पर देरी न केवल कॉलेजियम की प्रधानता को प्रभावित करती है, बल्कि किसी न्यायाधीश की वरिष्ठता और यहां तक कि सर्वोच्च न्यायालय में नियुक्त होने की उसकी संभावनाओं को भी प्रभावित करती है।
- चूंकि ‘कॉलेजियम’ न्यायिक नियुक्तियों के मामले में अंतिम निर्णायक होती है, अतः कॉलेजियम द्वारा भेजी गयी सूची में नामों की छटाई करना ‘टिंकरिंग’ (आकस्मिक तरीके से कुछ सुधार) के बराबर है।
न्यायाधीशों के मामले का महत्व:
- कॉलेजियम की प्रधानता: तीन न्यायाधीशों में मामले (Three Judges Case) में ‘न्यायिक नियुक्तियों’ पर भारत के मुख्य न्यायधीश के नेतृत्व में ‘कॉलेजियम की प्रधानता’ स्थापित की गयी है।
- तीन न्यायाधीशों का मामला: इस मामले में “उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों के बीच परस्पर वरिष्ठता और अखिल भारतीय आधार पर उनकी संयुक्त वरिष्ठता” को बनाए रखने के महत्व को मान्यता दी गयी थी।
आगे की राह:
‘मेमोरेंडम ऑफ प्रोसीजर’: देरी से बचने के लिए एक नए ‘प्रक्रिया-ज्ञापन’ (MoP) के माध्यम से उचित समय के भीतर न्यायिक नियुक्तियों के लिए नामों को स्पष्ट करने के लिए एक प्रावधान लाया जा सकता है।
इसके बारे में अधिक जानकारी के लिए – न्यायालय और इसके कॉलेजियम के साथ समस्या – पढ़िए।
अनुसूचित जाति समिति अप्रमाणित शिकायतों पर जांच शुरू नहीं कर सकती
संदर्भ: हाल ही में, दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक फैसला सुनाते हुए कहा है, ‘राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग’ अनुसूचित जाति से संबंधित किसी व्यक्ति द्वारा की गई “बनावटी शिकायत और निराधार आरोपों” के आधार पर जांच शुरू नहीं कर सकता है।
उच्च न्यायालय एक कंपनी द्वारा ‘राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग’ के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई कर रहा था। आयोग ने एक अनुसूचित जाति के एक इंजीनियर की बर्खास्तगी पर जांच शुरू की थी।
प्रमुख बिंदु:
- ‘राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग’ को जांच शुरू करने का अधिकार है, बशर्ते अनुसूचित जाति का कोई सदस्य यह साबित करने में सक्षम हो कि अनुसूचित जाति वर्ग से संबंधित होने की वजह से उसके साथ दुर्व्यवहार किया गया था या उसके साथ भेदभाव किया गया था
- अनुच्छेद 338: अदालत के अनुसार- आयोग के पास ऐसी बनावटी शिकायत और निराधार आरोपों के आधार पर अधिकार क्षेत्र ग्रहण करने या अनुच्छेद 338 के तहत जांच शुरू करने का कोई अधिकार नहीं है”।
‘राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग’ के बारे में:
‘राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग’ (NCST) राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग की स्थापना अनुच्छेद 338 में संशोधन करके और संविधान (89वां संशोधन) अधिनियम, 2003 के माध्यम से संविधान में एक नया अनुच्छेद 338A अंतःस्थापित करके की गयी थी।
इस संशोधन द्वारा तत्कालीन राष्ट्रीय अनुसूचित जाति एवं राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग को 19 फरवरी, 2004 से दो अलग-अलग आयोगों नामतः (i) राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग, और (ii) राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग में विभक्त किया गया था।
नियुक्त एवं कार्यकाल:
अध्यक्ष, उपाध्यक्ष तथा प्रत्येक सदस्य के कार्यालय की अवधि कार्यभार ग्रहण करने की तिथि से तीन वर्षों की होती है।
- अध्यक्ष को संघ के मंत्रिमंडल मंत्री का दर्जा दिया गया है, और उपाध्यक्ष राज्य मंत्री तथा अन्य सदस्य सचिव, भारत सरकार का दर्जा दिया गया है।
- ‘राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग’ के सभी सदस्यों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा अपने हस्ताक्षर और मुहर के तहत वारंट द्वारा की जाती है।
संरचना:
आयोग के सदस्यों में कम से कम एक महिला सदस्य होना अनिवार्य है।
- अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और अन्य सदस्य 3 वर्ष की अवधि के लिए पद धारण करते हैं।
- आयोग के सदस्य दो से अधिक कार्यकाल के लिए नियुक्ति के पात्र नहीं होते हैं।
आयोग की शक्तियां:
आयोग में अन्वेषण एवं जांच के लिए सिविल न्यायालय की निम्नलिखित शक्तियाँ निहित की गयी हैं:
- किसी व्यक्ति को हाजिर होने के लिए बाध्य करना और समन करना तथा शपथ पर उसकी परीक्षा करना;
- किसी दस्तावेज का प्रकटीकरण और पेश किया जाना;
- शपथ पर साक्ष्य ग्रहण करना;
- किसी न्यायालय या कार्यालय से किसी लोक अभिलेख या उसकी प्रति की अध्यपेक्षा करना,
- साक्षियों और दस्तावेजों की परीक्षा के लिए कमीशन जारी करना; और
- कोई अन्य विषय जिसे राष्ट्रपति, नियम द्वारा अवधारित करें।
रिपोर्ट:
अनुसूचित जनजातियों के कल्याण और सामाजिक-आर्थिक विकास से संबंधित कार्यक्रमों/योजनाओं के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए आवश्यक सुरक्षा उपायों और उपायों के कामकाज पर आयोग द्वारा सालाना अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति को प्रस्तुत की जाती है।
कानूनी व्यवस्था में क्षेत्रीय भाषाओं के इस्तेमाल की वकालत
संदर्भ: हाल ही में प्रधानमंत्री ने कानूनी व्यवस्था में क्षेत्रीय भाषाओं के इस्तेमाल की पक्ष में बात करते हुए कहा है, कि संवैधानिक संस्थाओं में लोगों का विश्वास तब मजबूत होता है जब न्याय मिलता हुआ दिखाई देता है।
प्रमुख बिंदु:
- न्याय मिलने में देरी, देश के लोगों के सामने सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है।
- “न्याय में आसानी लाने के लिए नए कानून क्षेत्रीय भाषाओं में लिखे जाने चाहिए, और कानूनी भाषा नागरिकों के लिए बाधा नहीं बननी चाहिए”।
- राज्य सरकारों द्वारा विचाराधीन कैदियों के प्रति मानवीय दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिए।
- वैकल्पिक विवाद समाधान: गांव स्तर पर लागू किए जाने वाले ‘वैकल्पिक विवाद समाधान’ (Alternative dispute resolution – ADR) को राज्य स्तर पर भी अपनाया जा सकता है।
- ई-कोर्ट मिशन: वर्चुअल हियरिंग और प्रोडक्शन जैसी प्रणालियाँ हमारी कानूनी व्यवस्था का हिस्सा बन गई हैं। मामलों की ई-फाइलिंग को भी प्रोत्साहित किया जा रहा है।
ई-कोर्ट मिशन
भारत की ‘ई-न्यायालय’ (ई-कोर्ट) एकीकृत मिशन मोड परियोजना, उच्च न्यायालयों और जिला/अधीनस्थ न्यायालयों में लागू की गई एक राष्ट्रीय ई-शासन परियोजना है।
- परियोजना की परिकल्पना भारत के उच्चतम न्यायालय की ई-समिति द्वारा ‘भारतीय न्यायपालिका-2005 में सूचना तथा संचार प्रौद्योगिकी के कार्यान्वयन के लिए राष्ट्रीय नीति’ के आधार पर की गई थी।
- ई-कोर्ट मिशन मोड परियोजना देश में जिला और अधीनस्थ न्यायालयों को सूचना और संचार टेक्नोलाजी के द्वारा सशक्त करके राष्ट्रीय ई-अभिशासन परियोजना के दायरे में लाने की मिशन मोड में चलाई जा रही परियोजना है।
- ई-न्यायालय (e-Court) परियोजना का उद्देश्य नागरिक केंद्रित सेवाओं को तत्काल और समयबद्ध तरीके से उपलब्ध कराना है।
भारत द्वारा G20 की अध्यक्षता
संदर्भ: वित्त मंत्री ने कहा है, कि भारत ऐसे समय में ‘ग्रुप ऑफ ट्वेंटी’ (G20) की अध्यक्षता संभाल रहा है, जब उसके सामने बहुत सारी चुनौतियां मौजूद हैं।
प्रमुख बिंदु:
- वित्त मंत्री के अनुसार- ऋण स्थिरता के लिए G20 द्वारा 2020 में शुरू की गयी पहल, अपेक्षा के अनुरूप प्रदर्शन नहीं कर पा रही है।
- अमेरिका में मौद्रिक सख्ती में अमेरिका और अन्य देशों के बीच ब्याज दरों में अंतर उत्पन्न किया है।
- अन्तराष्ट्रीय मुद्रा कोष के एशिया और प्रशांत विभाग ने कहा है, कि ‘ब्याज दरों में अंतर’ एशियाई मुद्राओं के “काफी तेज” मूल्यह्रास का प्राथमिक कारण है।
G20 समूह के बारे में:
जी20, विश्व की सबसे बड़ी और सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था वाले देशों का समूह है।
- इस समूह इस समूह का विश्व की 85 प्रतिशत जीडीपी पर नियंत्रण है, तथा यह विश्व की दो-तिहाई जनसख्या का प्रतिनिधित्व करता है।
- G20 शिखर सम्मेलन को औपचारिक रूप से ‘वित्तीय बाजार तथा वैश्विक अर्थव्यवस्था शिखर सम्मेलन’ के रूप में जाना जाता है।
स्थापना:
वर्ष 1997-98 के एशियाई वित्तीय संकट के बाद, यह स्वीकार किया गया था कि उभरती हुई प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के लिए अंतरराष्ट्रीय वित्तीय प्रणाली पर चर्चा के लिए भागीदारी को आवश्यकता है। वर्ष 1999 में, G7 के वित्त मंत्रियों द्वारा G20 वित्त मंत्रियों तथा केंद्रीय बैंक गवर्नरों की एक बैठक के लिए सहमत व्यक्त की गयी।
अध्यक्षता (PRESIDENCY):
G20 समूह का कोई स्थायी स्टाफ नहीं है और न ही इसका कोई मुख्यालय है। G20 समूह की अध्यक्षता क्रमिक रूप से सदस्य देशों द्वारा की जाती है।
- अध्यक्ष देश, अगले शिखर सम्मेलन के आयोजन तथा आगामी वर्ष में होने वाली छोटी बैठकें के आयोजन के लिए जिम्मेवार होता है।
- G20 समूह की बैठक में गैर-सदस्य देशों को मेहमान के रूप में आमंत्रित किया जा सकता हैं।
- पूर्वी एशिया में वित्तीय संकट ने समूचे विश्व के कई देशों को प्रभावित करने के बाद G20 की पहली बैठक दिसंबर, 1999 में बर्लिन में हुई थी।
G20 के पूर्ण सदस्य:
अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, कनाडा, चीन, फ्रांस, जर्मनी, भारत, इंडोनेशिया, इटली, जापान, मैक्सिको, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, दक्षिण कोरिया, तुर्की, यूनाइटेड किंगडम, संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोपीय संघ।
चीन की वुल्फ वॉरियर डिप्लोमेसी
संदर्भ: चीन के आक्रामक रुख और अंतरराष्ट्रीय संबंधों के प्रति सख्त रुख को ‘वुल्फ वॉरियर डिप्लोमेसी’ (Wolf Warrior Diplomacy) कहा जाता है।
‘वुल्फ वॉरियर डिप्लोमेसी’ के बारे में:
- यह एक अनौपचारिक शब्द है जिसका प्रयोग विशेष रूप से पश्चिमी देशों और भारत के साथ राजनयिक संचार करने की आक्रामक और टकरावपूर्ण शैली का वर्णन करने के लिए किया जाता है।
- यह शब्द 2015 की ‘वुल्फ वारियर’ नामक चीनी फिल्म सीक्वल से लिया गया है। इस फिल्म सीक्वल में पश्चिमी भाड़े के लोगों के सामने कठोर राष्ट्रवाद को दर्शाया गया था।
चीन की कूटनीति आक्रामक क्यों हो रही है?
- ‘वुल्फ वॉरियर कूटनीति’ के उद्भव का मुख्य कारण चीन में बढ़ती सत्तावाद और चीन-अमेरिका संबंधों में गिरावट है।
वुल्फ वारियर कूटनीति का उपयोग:
- यह चीनी राजनयिकों द्वारा मेजबान देशों में शत्रुतापूर्ण रुख अपनाने में प्रकट होता है, जैसे कि सम्मन प्राप्त करने पर हाजिर नहीं होना, चूक के लिए क्षमाप्रार्थी न होना आदि।
“विजन- विकसित भारत: बहुराष्ट्रीय कंपनियों के अवसर और अपेक्षाएं” – रिपोर्ट
संदर्भ: “विजन- विकसित भारत: बहुराष्ट्रीय कंपनियों के अवसर और अपेक्षाएं” (Vision- Developed India: opportunities and expectations of MNCs) भारतीय उद्योग परिसंघ और ईवाई (EY) द्वारा जारी की गई एक रिपोर्ट है।
इसके अनुसार- भारत में अगले 5 वर्षों में 475 अरब डॉलर का एफडीआई आकर्षित करने की क्षमता है।
इस अभिकथन का आधार:
- वैश्विक विनिर्माण केंद्र के रूप में भारत का उदय– 20 करोड़ मजबूत मध्यम वर्ग और बढ़ते उपभोक्ता बाजार के साथ भारत अब 5वां सबसे आकर्षक विनिर्माण गंतव्य है।
- देश का डिजिटल परिवर्तन। पूर्व योजनाएं जैसे डिजिटल इंडिया आदि की शुरुआत।
- भारत में कार्यरत 71 प्रतिशत बहुराष्ट्रीय कंपनियां, भारत को वैश्विक विस्तार के लिए एक महत्वपूर्ण गंतव्य मानती है।
- अवसंरचना और विनिर्माण पर फोकस।
- नियामक बाधाओं में कमी के लिए, एकल खिड़की पर्यावरण मंजूरी, नए श्रम संहिता आदि।
भारतीय उद्योग परिसंघ- (CII)
यह एक गैर-सरकारी व्यापार संघ और वकालत समूह है जिसका मुख्यालय नई दिल्ली, भारत में है। ‘भारतीय उद्योग परिसंघ’ की स्थापना 1895 में हुई थी और यह 1860 के सोसायटी पंजीकरण अधिनियम के तहत पंजीकृत है।
कौशल अंतराल में कमी
संदर्भ: रोजगार योग्यता कौशल में अंतर्राष्ट्रीय मानकों तक सुधार के लिए, कौशल भारत मिशन के तहत राष्ट्रीय कौशल विकास निगम (NSDC) द्वारा ‘विदेशी विश्वविद्यालयों’ को जोड़ा गया है।
- ‘कौशल अंतराल’ रोजगार योग्यता के लिए सबसे बड़ी बाधा है। भारत कौशल रिपोर्ट 2022 के अनुसार, केवल 46% युवा ही रोजगार योग्य हैं और अधिकांश में नौकरियों में अपनी भूमिकाओं और आवश्यकताओं के बारे में जागरूकता की कमी है।
- सरकार द्वारा की पहलें: पीएम कौशल विकास योजना, पीएम कौशल केंद्र, शिल्पकार प्रशिक्षण योजना, शिक्षुता प्रशिक्षण नीतियां, कौशल ऋण योजनाएं आदि।
लीड्स 2022 सर्वेक्षण रिपोर्ट
संदर्भ: भारत भर में लॉजिस्टिक्स (प्रचालन-तंत्र) बुनियादी ढांचे, सेवा और मानव संसाधनों का आकलन करने के लिए, वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय द्वारा ‘लीड्स सर्वेक्षण रिपोर्ट’ (LEADS survey report) जारी की गयी है।
- लॉजिस्टिक्स या प्रचालन-तंत्र (Logistics) ग्राहकों या निगमों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए उत्पत्ति बिंदु और उपभोग के बिंदु के बीच वस्तुओं के प्रवाह का प्रबंधन होता है।
- रैंकिंग श्रेणियाँ: अचीवर्स; फास्ट मूवर्स और एस्पिरर्स।
- अच्छे लॉजिस्टिक्स का लाभ: व्यापार प्रतिस्पर्धा में सुधार, व्यापार करने में आसानी और आर्थिक विकास।
सिफारिशें:
- मसौदा राज्य-विशिष्ट रसद नीति (राष्ट्रीय रसद नीति 2022 के अनुरूप);
- शिकायत समाधान तंत्र विकसित करना;
- ‘ईज ऑफ लॉजिस्टिक्स (ई-लॉग्स) पोर्टल’ के अनुरूप एक समर्पित भूमि बैंक स्थापित करना।
पीएम गतिशक्ति राष्ट्रीय मास्टर प्लान में लॉजिस्टिक दक्षता बढ़ाकर 10 लाख करोड़ रुपये प्रति वर्ष से अधिक की बचत करने की क्षमता है। ।
नॉन-डिलिवरेबल फॉरवर्ड (NDF) मार्केट
नॉन-डिलीवरेबल फॉरवर्ड (Non-deliverable forward – NDF), नगदी प्रवाह /मुद्राओं के आदान-प्रदान के लिए एक दो-पक्षीय मुद्रा डेरिवेटिव फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट होते हैं।
- इसमें ‘अनुबंध’ की परिपक्वता के समय पूर्व-सहमत दर और प्रचलित मौजूदा दरों के बीच के अंतर का निपटारा किया जाता है।
- सबसे बड़े NDF बाजार- चीनी युआन, भारतीय रुपया, दक्षिण कोरियाई वोन, न्यू ताइवान डॉलर और ब्राजीलियाई रियाल में हैं।
- महत्व: भारतीय रुपया जैसी पूरी तरह से परिवर्तनीय मुद्राओं से निपटने के लिए उपयोगी।
डेटा केंद्रों को ‘बुनियादी ढांचे’ का दर्जा
संदर्भ: 5 मेगावाट की न्यूनतम क्षमता के ‘आईटी लोड’ वाले डाटा सेंटर बुनियादी ढांचे का दर्जा पाने के पात्र होंगे।
- डेटा सेंटर: डेटा सेंटर, कोई इमारत, या इमारत के भीतर एक समर्पित स्थान, या कंप्यूटर सिस्टम और संबंधित घटकों, जैसे दूरसंचार और भंडारण प्रणालियों को रखने के लिए उपयोग की जाने वाली इमारतों का एक समूह होता है। वर्तमान में, भारत में डेटा केंद्रों की स्थापित क्षमता लगभग 500 मेगावाट है।
- महत्व: ‘इन्फ्रास्ट्रक्चर का दर्जा’ देने से कम दरों पर और लंबे समय तक संस्थागत ऋण तक आसान पहुंच प्राप्त होती है।
- मसौदा डेटा केंद्र नीति (2020): इसका उद्देश्य भारत को डेटा केंद्र के लिए एक वैश्विक केंद्र बनाना है।
- ‘डेटा स्थानीयकरण नियम’ भारत में डेटा केंद्र स्थापित करना अनिवार्य बनाते हैं।
भारत की कोयला खदानों का क्षमता से कम उपयोग
संदर्भ: एक रिपोर्ट के अनुसार- नई खदानों पर जोर देने के बीच भारत की कोयला खदानों का गंभीर रूप से कम उपयोग हो रहा है। देश में पिछले साल दो बार आपूर्ति की कमी दर्ज की गयी, किंतु विकास के नाम पर नई परियोजनाएं ‘अनावश्यक’ हो सकती हैं क्योंकि कोयला खदानों की वर्तमान क्षमता का केवल दो-तिहाई ही उपयोग में है।
कोल इंडिया पिछले साल अपने उत्पादन लक्ष्य तक पहुंचने में विफल क्यों रही?
- नवीकरणीय ऊर्जा से प्रतिस्पर्धा;
- बुनियादी ढांचा गतिरोध; और
- भू-उपयोग संबंधी सरोकार।
नई कोयला खदानों के विकास से जुड़े मुद्दे:
- विस्थापन संबंधी चिंताएं: विकासाधीन कोयला खदानों से कम से कम 165 गांवों के विस्थापित होने और 87,630 परिवारों के प्रभावित होने का खतरा है। इनमें से 41,508 परिवार उन क्षेत्रों में रहते हैं जहाँ आदिवासी समुदाय की प्रधानता है।
- कृषि भूमि का उपयोग: 22,686 हेक्टेयर कृषि भूमि को डायवर्ट किया जाएगा।
- पर्यावरण संबंधी चिंताएं: इससे 19,297 हेक्टेयर जंगल को खतरा है, और यह प्रतिदिन कम से कम 168,041 किलोलीटर पानी की खपत करेगा, जोकि दस लाख से अधिक लोगों की दैनिक पानी की जरूरत के बराबर है।
- भारत के जलवायु लक्ष्य लक्ष्य में बाधक: इससे स्वच्छ ऊर्जा भविष्य में भारत की देरी की संभावना बढ़ जाती है।
भारत की 427 MTPA (एक मिलियन टन प्रति वर्ष) नियोजित नई कोयला खदान क्षमता, चीन (596 MTPA) के बाद भारत को दुनिया में दूसरे स्थान पर रखती है।
भारत में अंतरिक्ष पारिस्थितिकी तंत्र का विकास
संदर्भ: हाल ही में, आईएसपीए (ISpA) और ‘अर्न्स्ट एंड यंग’ द्वारा एक रिपोर्ट जारी की गई है।
निष्कर्ष:
- भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र का ‘वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था’ का केवल 2% हिस्सा है, लेकिन इसमें 8% तक पहुचने की क्षमता है।
- इसरो ने 2014-2019 के बैच US $167 मिलियन से अधिक राजस्व अर्जित किया था।
- इसरो का सबसे भारी रॉकेट LVM3 (जिसे पहले GSLV Mk III कहा जाता था) ब्रिटिश स्टार्ट-अप वनवेब के 36 ब्रॉडबैंड उपग्रहों को लॉन्च करेगा।
भारत ने अंतरिक्ष विभाग के तहत ‘एक केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र का उद्यम और इसरो की वाणिज्यिक शाखा’ (INSPACe, NSIL) के माध्यम से निजी भागीदारी का समर्थन किया है।
दुर्गावती टाइगर रिजर्व
संदर्भ: मध्य प्रदेश वन्यजीव बोर्ड ने बाघों के लिए एक नए रिजर्व को मंजूरी दे दी है क्योंकि ‘केन-बेतवा’ नदियों को जोड़ने से ‘पन्ना टाइगर रिजर्व’ का 25% से अधिक जलमग्न हो जाएगा।
वन्यजीवों की आवाजाही के लिए, पन्ना को दुर्गावती से जोड़ने वाला हरित गलियारा विकसित किया जाएगा।
प्रयोगशाला में विकसित मांस की क्षमता का दोहन करने के लिए स्टार्ट-अप
संदर्भ: हाल के वर्षों में ‘प्लांट-बेस्ड’ मीट और डेयरी उत्पादों में सेलिब्रिटी की दिलचस्पी बढ़ी है।
पादप आधारित मांस और डेयरी उत्पाद:
“पादप-आधारित” (Plant-Based) उन उत्पादों का तात्पर्य, जानवरों से प्राप्त मांस, समुद्री भोजन, अंडे और दूध की तरह दिखने, गंध और स्वाद वाले ‘जैव-अनुकृति उत्पादों’ से है।
निर्माण-विधि:
- विभिन्न चीजों में पादप प्रोटीन या सोया प्रोटीन का उपयोग करके ‘प्लांट-बेस्ड’ मीट का उत्पादन किया जा सकता है। इसमें प्रमुख चुनौती ‘पेशी ऊतक’ की प्रतिकृति बनाने की होती है। ‘मांसपेशी ऊतक’ पौधों में नहीं होते है।
- जहां तक ‘पादप आधारित डेयरी’ का संबंध है, इसके मुख्य उत्पाद ओट्स, बादाम, सोयाबीन, नारियल और चावल से प्राप्त दूध होते हैं। इनमें ‘जई का दूध’ साधारण दूध के सबसे करीब माना जाता है।
प्रयोगशाला में उगाए गए या परिष्कृत मांस एवं पादप आधारित मांस में भिन्नता:
- ‘पादप आधारित मांस’ सोया या मटर प्रोटीन जैसे पौधों के स्रोतों से बनाया जाता है, जबकि संवर्धित मांस सीधे प्रयोगशाला में कोशिकाओं से उगाया जाता है।
इन पदार्थों को सेलिब्रिटी द्वारा प्रचारित किए जाने का कारण:
- ‘पादप आधारित मांस’, पारंपरिक मांस उत्पादों का विकल्प प्रदान करते हैं। ये बहुत अधिक लोगों को पेट भर सकते हैं, जूनोटिक रोगों के खतरे को कम कर सकते हैं और मांस की खपत के पर्यावरणीय प्रभाव को कम कर सकते हैं।
चुनौतियाँ:
- वहनीयता।
- उपभोक्ता अविश्वास से निपटना।
- पारंपरिक मांस उत्पादकों का प्रतिरोध।
बाजार का आकार:
- एक रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका में पादप-आधारित पशु उत्पाद विकल्पों की खुदरा बिक्री 2021 में 7.4 बिलियन डॉलर थी, जोकि 2018 में 4.8 बिलियन डॉलर थी।
भारत में इसका स्कोप:
- भारत में इसका स्कोप, कम से कम डेयरी में, शायद ज्यादा नहीं है, और पादप-आधारित मांस में केवल एक बाजार हो सकता है जो शीर्ष 1% उपभोक्ताओं के लिए प्रासंगिक हो।
- भारत में मछली और चिकन की प्रति व्यक्ति वार्षिक खपत क्रमशः 6 किग्रा और 4.5 किग्रा है, जबकि मटन के लिए केवल 700-800 ग्राम है।
कामिकाज़े ड्रोन
संदर्भ: रूस द्वारा ईरान निर्मित ‘आत्मघाती (कामिकाज़े) ड्रोन (KAMIKAZE DRONES) यूक्रेन की राजधानी शहर कीव में तैनात किए गए थे।
‘कामिकाज़े ड्रोन’ क्या हैं?
- ये विस्फोटक-युक्त ऐसे ड्रोन होते हैं जिन्हें टैंक या सैनिकों का एक समूह जैसे लक्ष्य पर सीधे उड़ाया जा सकता है और यह विस्फोट होने पर नष्ट हो जाते हैं।
कामिकाज़े की उत्पत्ति:
- ड्रोन का नाम मुख्य रूप से अमेरिका के खिलाफ द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जापान के कामिकाज़े पायलटों से लिया गया है।
- इन पायलटों ने विस्फोटकों से भरे अपने विमानों को दुश्मन के ठिकानों पर जानबूझकर टकराकर आत्मघाती हमले किए थे।
लाभ:
- ये ड्रोन अधिक लाभ प्रदान करते हैं क्योंकि द्वितीय विश्व युद्ध जापानी कामिकाज़े के विपरीत, विमान-चालक को खोने का कोई जोखिम नहीं होता है।
मानचित्रण