विषयसूची
सामान्य अध्ययन-II
- वैश्विक भुखमरी सूचकांक
सामान्य अध्ययन-III
- जैविक खाद: अगली हरित क्रांति के लिए एक अनिवार्यता
- बड़ी तकनीकी कंपनियों पर नियंत्रण करने की कोशिश
मुख्य परीक्षा संवर्धन हेतु पाठ्य सामग्री
- प्रकृति के कानूनी अधिकार
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य
- चुनावी बांड्स एवं फंड के स्रोत की जानकारी
- ऐप-आधारित एग्रीगेटर सेवाएं
- भारत के लिए आईएमएफ की सिफारिश
- अंतर्राष्ट्रीय ई-अपशिष्ट दिवस
- कार्बन डेटिंग
- बहिर्ग्रहों में बेरियम
- ‘माँ भारती के सपूत’ वेबसाइट
- पनडुब्बी से प्रक्षेपित बैलिस्टिक मिसाइल (SLBM) परीक्षण
- मानचित्रण
सामान्य अध्ययन-II
विषय: स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय।
ग्लोबल हंगर इंडेक्स
संदर्भ: हाल ही में, ‘कंसर्न वर्ल्डवाइड’ (Concern Worldwide) और ‘वेल्थहंगरहिल्फ़’ (Welthungerhilfe) द्वारा ‘वैश्विक भुखमरी सूचकांक’ 2022 (Global Hunger Index – GHI, 2022) जारी किए गया है, जिसमे भारत को 121 देशों की सूची में “गंभीर श्रेणी” के तहत 107वां स्थान दिया गया है।
- इससे पहले वर्ष 2021 में भारत 101वें स्थान पर था।
- ‘कंसर्न वर्ल्डवाइड’ एक विश्व के सबसे गरीब देशों में गरीबी और कष्टों से निपटने के लिए समर्पित एक अंतरराष्ट्रीय मानवीय संगठन है।
- ‘वेल्थहंगरहिल्फ़’ जर्मनी के राजनीति और धर्म से स्वतंत्र सबसे बड़े निजी सहायता संगठनों में से एक है।
सूचकांक में शामिल वैश्विक स्तर पर कुछ महत्वपूर्ण बिंदु:
- स्थिरता: हाल के वर्षों में भुखमरी के खिलाफ प्रगति काफी हद तक ठहरी हुई है।
- मध्यम श्रेणी: वर्ष 2022 में ‘वैश्विक भुखमरी सूचकांक’ (GHI) का वैश्विक स्कोर 18.2 है, जोकि “मध्यम” श्रेणी का है।
- हालाँकि, GHI के वैश्विक स्कोर में वर्ष 2014 में 19.1 की तुलना में थोड़ा सुधार हुआ है, और यह 2022 में 18.2 दर्ज किया गया है।
सूचकांक में भारत की स्थिति:
- ‘वैश्विक भुखमरी सूचकांक’ (GHI), 2022 में भारत का स्कोर 1 है, और इसे ‘गंभीर’ श्रेणी (Serious Category) में रखा गया है।
- पड़ोसी देश: भारत, अपने पड़ोसी देशों श्रीलंका (64), नेपाल (81), बांग्लादेश (84), और पाकिस्तान (99) से भी नीचे है।
- अफगानिस्तान (109), सूचकांक में भारत से भी खराब प्रदर्शन करने वाला दक्षिण एशिया का एकमात्र देश है।
- ‘बाल-दुर्बलता’ दर: भारत में ‘बाल-दुर्बलता’ (CHILD WASTING) दर (ऊंचाई के अनुपात में कम भार) 19.3 % है, जोकि वर्ष 2014 (15.1%) के स्तर से भी खराब है।
- अल्पपोषण (Undernourishment): देश में अल्पपोषण की व्यापकता वर्ष 2018-2020 के 14.6% से बढ़कर वर्ष 2019-2021 में 16.3% हो गई है।
- 2014 और 2022 के बीच ‘बच्चों में नाटापन’ (CHILD STUNTING) और ‘बाल मृत्यु दर’ (Child Mortality) में सुधार:
- ‘बच्चों में नाटापन’ (CHILD STUNTING) 38.7% से घटकर 35.5 % हो गया है।
- ‘बाल मृत्यु दर’ भी 6 % से गिरकर 3.3 (तीन दशमलव तीन)% हो गई है।
वैश्विक स्तर पर इस गिरावट के कारण:
- संघर्ष
- जलवायु परिवर्तन
- कोविड-19 महामारी का आर्थिक परिणाम
- यूक्रेन युद्ध
भुखमरी कम करने हेतु भारत द्वारा शुरू की गयी पहलें:
- ईट राइट इंडिया मूवमेंट
- पोषण अभियान
- प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना
- खाद्य संवर्धन
- राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013
- मिशन इन्द्रधनुष
- एकीकृत बाल विकास सेवा (आईसीडीएस) योजना
‘ग्लोबल हंगर इंडेक्स’ से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य:
‘वैश्विक भुखमरी सूचकांक’ या ‘ग्लोबल हंगर इंडेक्स’ (GHI) एक सहकर्मी-समीक्षित प्रकाशन (Peer-Reviewed Publication) है, जिसे प्रतिवर्ष ‘वेल्टहंगरहिल्फे’ (Welt Hunger Hilfe) तथा ‘कंसर्न वर्ल्डवाइड’ (Concern Worldwide) द्वारा संयुक्त रूप से जारी किया जाता है।
- पहली जीएचआई रिपोर्ट का प्रकाशन वर्ष 2006 में हुआ था।
- यह सूचकांक “वैश्विक, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर भूखमरी को विस्तारपूर्वक मापने और ट्रैक करने के लिए डिज़ाइन किया गया एक उपाय” है।
रैंकिंग विधि:
- GHI स्कोर की गणना 100 अंकों के पैमाने पर की जाती है जो भुखमरी की गंभीरता को दर्शाता है।
- ‘शून्य’ सबसे अच्छा स्कोर (भुखमरी-मुक्त) और 100 सबसे खराब स्थिति को दर्शाता है।
- GHI स्कोर के प्रत्येक सेट के लिए, पिछले 5 साल की अवधि के डेटा का उपयोग करता है। GHI, 2022 स्कोर की गणना में 2017 से 2021 के डेटा का उपयोग किया गया है।
संकेतक:
- अपर्याप्त खाद्य आपूर्ति (1/3 भारांक): अल्पपोषण
- बाल कुपोषण (1/3)
- ‘बच्चों में नाटापन’ (CHILD STUNTING) (1/6)
- ‘बाल-दुर्बलता’ (CHILD WASTING) (1/6)
- 5 वर्ष से कम आयुवर्ग की बाल मृत्यु दर (1/3)
महत्वपूर्ण परिभाषाएँ:
- बाल मृत्यु दर (CHILD MORTALITY): पाँच वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु दर। यह जन्म और ठीक पांच वर्ष की आयु के बीच मृत्यु की संभावना को प्रति 1,000 जीवित जन्मों में व्यक्त करती है।
- अल्पपोषण (UNDERNOURISHMENT): अल्प-पोषित आबादी का हिस्सा जो अपर्याप्त कैलोरी सेवन को दर्शाता है।
- बाल-दुर्बलता (CHILD WASTING): पांच वर्ष से कम उम्र के वे बच्चे, जिनका वज़न उनकी लंबाई के अनुपात में कम होता है, तीव्र कुपोषण को दर्शाता है।
- बच्चों में नाटापन (CHILD STUNTING): पांच वर्ष से कम उम्र के वे बच्चे आते हैं जिनकी लंबाई आयु के अनुपात में कम होती है। यह दीर्घकालिक कुपोषण को दर्शाता है।
इंस्टा लिंक्स:
मेंस लिंक:
लगातार उच्च विकास के बावजूद, भारत में मानव विकास के संकेतक अभी भी निम्नतम श्रेणी के है। संतुलित और समावेशी विकास को दुष्प्राप्य बनाने वाले मुद्दों की जांच कीजिए। (यूपीएससी 2019)
स्रोत: द हिंदू
सामान्य अध्ययन-III
विषय: मुख्य फसलें- देश के विभिन्न भागों में फसलों का पैटर्न- सिंचाई के विभिन्न प्रकार एवं सिंचाई प्रणाली- कृषि उत्पाद का भंडारण, परिवहन तथा विपणन, संबंधित विषय और बाधाएँ; किसानों की सहायता के लिये ई-प्रौद्योगिकी।
जैविक खाद: अगली हरित क्रांति के लिए एक अनिवार्यता
संदर्भ: सही नीतिगत हस्तक्षेप से भारत ‘जैविक उर्वरक’ उत्पादन का केंद्र बन सकता है।
‘जैविक खाद’ क्या हैं?
जैविक खाद या उर्वरक (Organic Fertiliser), पशु उत्पादों और पौधों के अवशेषों से प्राप्त खाद होती है, जिनमें नाइट्रोजन की पर्याप्त मात्रा होती है।
सरकारी नियमों के अनुसार जैविक खाद को दो वर्गों में वर्गीकृत किया जा सकता है:
- ‘जैव-उर्वरक’ (Bio-Fertilisers): यह ठोस या तरल वाहकों से जुड़े जीवित सूक्ष्मजीवों से निर्मित होते हैं और कृषि योग्य भूमि के लिए उपयोगी होते हैं। ये सूक्ष्मजीव मृदा और/या फसलों की उत्पादकता बढ़ाने में मदद करते हैं।
- ‘जैविक खाद’ (Organic manure): ‘जैविक खाद’ का तात्पर्य आंशिक रूप से विघटित कार्बनिक पदार्थ जैसे बायोगैस संयंत्र, खाद और वर्मीकम्पोस्ट से है। ये मृदा / फसलों को पोषक तत्व प्रदान करती है और उपज में सुधार करती है।
जैविक उर्वरकों की व्यापकता:
- देश में जैविक उर्वरकों की पैठ अभी तक काफी कम है। 2019-20 के लिए केवल कुल उर्वरक खपत में जैविक उर्वरकों का अनुपात मात्र 0.34 प्रतिशत था।
- बायोगैस उत्पादन को बढ़ावा देकर सरकार इसके उपोत्पाद (byproduct) अर्थात ‘उर्वरक’ का लाभ उठा सकती है।
भारत में जैविक उर्वरकों की संभावनाएं:
- ठोस कचरे का उपयोग: नेशनल सॉलिड वेस्ट एसोसिएशन ऑफ इंडिया और सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के अनुसार- भारत 150,000 टन से अधिक ‘नगरपालिका ठोस अपशिष्ट’ (municipal solid waste – MSW) का उत्पादन करता है।
- 80 प्रतिशत संग्रह क्षमता और ‘नगरपालिका ठोस अपशिष्ट’ (MSW) के जैविक भाग (50 प्रतिशत) को ध्यान में रखते हुए, भारत में प्रतिदिन लगभग 65,000 टन ‘कुल जैविक अपशिष्ट’ उत्पन्न होता है।
- यदि इसका आधा हिस्सा भी ‘बायोगैस उद्योग’ में लगा दिया जाता है, सरकार जीवाश्मों और उर्वरकों के आयात में कमी करके इसका लाभ उठा सकती है।
- बायोगैस/गोबर गैस संयंत्रों का उपयोग: ये संयंत्र न केवल बायोगैस का उत्पादन करते हैं बल्कि ‘डाइजेस्टेट’ (Digestate) के रूप में जैविक उर्वरक भी उत्पादित करते हैं। ‘डाइजेस्टेट’ दूसरी हरित क्रांति के सपने को साकार करने में मदद कर सकते हैं।
- मृदा उर्वरता में वृद्धि: ‘डाइजेस्टेट’ अपने मानक पोषण मूल्य के अलावा, लगातार घटती मिट्टी को जैविक कार्बन प्रदान कर सकते हैं।
- वर्तमान में, भारत में 110,000 टन से अधिक जैव-उर्वरक का और 34 मिलियन टन जैविक खाद उत्पादन होता है और है, जिसमें खेत की खाद, शहरी खाद और वर्मीकम्पोस्ट शामिल हैं।
भारत में जैविक उर्वरकों के उत्पादन को बढ़ावा देने की आवश्यकता:
- लोकप्रियता: हाल के वर्षों में घरेलू बाजार में जैविक खेती की लोकप्रियता बढ़ी है।
- बाजार का आकार: भारतीय जैविक पैकेज्ड फूड का बाजार आकार 17 प्रतिशत की दर से बढ़ने और 2021 तक 871 मिलियन रुपये को पार करने की उम्मीद है।
- बढ़ती जागरूकता: मिट्टी पर सिंथेटिक उर्वरक के हानिकारक प्रभावों के बारे में बढ़ती जागरूकता, बढ़ती स्वास्थ्य चिंताओं, शहरी जनसंख्या आधार का विस्तार और खाद्य वस्तुओं पर उपभोक्ता व्यय में वृद्धि, जैविक उर्वरक क्षेत्र की महत्वपूर्ण वृद्धि से जुड़ी है।
SATAT योजना: SATAT कार्यक्रम के तहत उद्योग द्वारा देश भर में 5,000 से अधिक परियोजनाएं शुरू की गई हैं, जिनके तहत जैव-संपीड़ित प्राकृतिक गैस (बायो-सीएनजी) और ठोस जैविक खाद या ‘डाइजेस्टेट’ का उत्पादन बड़ी मात्रा में किया जा सकता है।
निष्कर्ष:
चूंकि पोषक तत्वों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए ‘जैव उर्वरकों’ (Bio-Fertilisers) के उपयोग से ‘जैविक खाद’ (Organic Manure) में सुधार किया जा सकता है, अतः जैव उर्वरक और जैविक खाद दोनों में सिंथेटिक उर्वरकों के उपयोग को पूरी तरह से समाप्त करने की क्षमता है।
इंस्टा लिंक:
- जैविक खेती क्या है
- जैविक और सिंथेटिक उर्वरकों के बीच अंतर
- जैविक खेती के प्रकार।
- जीरो बजट प्राकृतिक खेती (ZBNF) क्या है?
मेंस लिंक:
- सिक्किम, भारत का पहला ‘जैविक राज्य’ है। जैविक राज्य के पारिस्थितिक और आर्थिक लाभ क्या हैं? चर्चा कीजिए। (यूपीएससी 2018)
- भारतीय कृषि में उर्वरक संकटों की विवेचना कीजिए। क्या आपको लगता है कि भारतीय किसान 2022 तक यूरिया के उपयोग को आधा कर सकते हैं? टिप्पणी कीजिए।
स्रोत: डाउन टू अर्थ
विषय: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी- विकास एवं अनुप्रयोग और रोज़मर्रा के जीवन पर इसका प्रभाव। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में भारतीयों की उपलब्धियाँ; देशज रूप से प्रौद्योगिकी का विकास और नई प्रौद्योगिकी का विकास।
बड़ी तकनीकी कंपनियों पर नियंत्रण करने की कोशिश
संदर्भ: सरकार ‘बड़ी तकनीकी कंपनियों’ (BigTech) को किस प्रकार से नियंत्रित करने की कोशिश कर रही है?
- दूरसंचार विधेयक का मसौदा: इस विधेयक में ‘ओटीटी संचार प्लेटफार्मों’ (OTT communication platforms) को अपने दायरे में लाने का प्रस्ताव किया गया है, इसके लिए दूरसंचार ऑपरेटरों को नियंत्रित करने वाले नियमों की तरह, नियम एवं लाइसेंसिंग प्रणाली लागू की जाएगी।
- ‘भुगतान प्लेटफार्मों’ (Payment Platforms) के बाजार शेयरों पर सीमा का निर्धारण किया जाएगा।
- ‘व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक’ में प्रस्तावित डेटा स्थानीयकरण मानक, सीमा पार डेटा प्रवाह पर अधिक नियंत्रण रखने के उद्देश्य से अभिप्रेरित हैं। डेटा भंडारण शर्तों में वृद्धि और सख्त प्रतिबंध लगाने से ‘बिग टेक’ के अनुपालन का बोझ ही बढ़ेगा।
- ई-कॉमर्स विधेयक के प्रावधान, विदेशी स्वामित्व वाले ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म को अक्षम करते हुए घरेलू कारोबारियों को सुरक्षा देने के लिए तैयार किए गए प्रतीत होते हैं। उदाहरण के लिए, फॉल-बैक देयता अनुच्छेद (Fall-back liability clauses) या फ्लैश बिक्री पर प्रतिबंध लगाने का उद्देश्य विदेशी स्वामित्व वाले प्लेटफॉर्म के संचालन को प्रतिबंधित करना है।
सरकारी विनियमों के संबंध में चिंता:
- बाजार में अक्षमता: यह विनियमन अक्षम, अप्रतिस्पर्धी वस्तुओं और सेवाओं के युग की ओर ले जा सकता है।
- यह एक जीवंत डिजिटल अर्थव्यवस्था के निर्माण और पोषण की सरकार की घोषित लक्ष्य के विरुद्ध है।
- इस दृष्टिकोण को जारी रखना एक गलती होगी, विशेषकर जब भारत को निवेश की जरूरत है।
- अंततः उपभोक्ताओं को नुकसान होगा क्योंकि सरकारी नियमों का पालन करते हुए बिग टेक द्वारा सेवाओं को प्रतिबंधित किया जा सकता है।
इस प्रकार, इस तरह के सख्त नियमों को लागू करके, ये विधेयक एक समान अवसर उपलब्ध कराने के बजाय ‘शक्ति संतुलन’ को झुकाने का प्रयास करते हैं। और इस सब में, कुछ घरेलू कारोबारियों को सबसे ज्यादा फायदा होता है।
प्रीलिम्स लिंक:
- बिग टेक क्या हैं?
- भारत के गोपनीयता और डेटा संरक्षण कानून
- बिग डेटा क्या है?
मेंस लिंक:
सोशल मीडिया को नियमों की जरूरत है लेकिन इस हद तक नहीं कि उनके लिए भारत में कारोबार करना मुश्किल हो जाए। टिप्पणी कीजिए। (10 अंक)
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
मुख्य परीक्षा संवर्धन हेतु पाठ्य सामग्री
प्रकृति के कानूनी अधिकार
विश्व, जलवायु परिवर्तन और प्रकृति के दोहन का मुकाबला कर रहा है, इसी क्रम में इक्वाडोर, बोलीविया और न्यूजीलैंड जैसे देशों ने प्राकृतिक इकाईयों (Natural Entities) को कानूनी अधिकार प्रदान किए हैं।
महत्व:
- वनस्पति, जीव, नदियाँ, पारिस्थितिक तंत्रों और भूदृश्यों, जैसी इकाईयों को कानूनी अधिकार देना- सार्थक मानव-पर्यावरण संबंध बनाने और इस क्षेत्र में नैतिक आचरण लागू करने के लिए महत्वपूर्ण है।
- यह कानूनी अधिकार, “जैव युग” (Bio-age) में नैतिक आचरण को सुनिश्चित करेंगे। “जैव-युग” मानव जीवन में जैव प्रौद्योगिकी के बढ़ते एकीकरण जैसे आनुवंशिक रूप से संशोधित जीवों (GMOs), रोग प्रतिरोध को बढ़ाने के लिए ‘जीन-इंजीनियरिंग’, ‘जीन संपादन’, आदि के युग को संदर्भित करता है।
- अधिकारों को कानूनी रूप से मान्यता देने से वनस्पतियों और जीवों के नैतिक उपयोग को सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी।
उठाए गए कदम:
इक्वाडोर:
- इक्वाडोर (Ecuador) वर्ष 2008 में प्रकृति के अधिकारों को मान्यता देने वाला दुनिया का पहला देश बना। इसने उष्णकटिबंधीय जंगलों, द्वीपों, नदियों और वायु को “अस्तित्व, फलने-फूलने और विकसित होने” के कानूनी अधिकार दिए।
- अप्रैल 2022: इक्वाडोर वैयक्तिक तौर पर जंगली जानवरों को कानूनी अधिकार देने वाला पहला देश बना।
- जंगली प्रजातियों और उनके सदस्यों को शिकार, मत्स्यन, पकड़ने, एकत्र करने, निकालने, रखने, बनाए रखने, तस्करी, विपणन या आदान-प्रदान नहीं करने का अधिकार दिया गया है।
बोलीविया:
- बोलीविया (Bolivia) ने 2011 में प्रकृति को मनुष्यों के बराबर सभी अधिकार प्रदान किए। इसने ‘धरती माता के अधिकारों का कानून’ (Law of the Rights of Mother Earth) बनाया।
- इस क़ानून में धरती माता को “एक सामूहिक नियति साझा करने वाले सभी जीवित तंत्रों और जीवित जीवों का एक अविभाज्य समुदाय, परस्पर संबंधित, अन्योन्याश्रित और पूरक” के रूप में परिभाषित किया गया है।
न्यूजीलैंड:
- न्यूजीलैंड की ‘वांगानुई नदी’ (Whanganui river) कानूनी दर्जा पाने वाली दुनिया की पहली नदी थी।
भारत:
- अनुच्छेद 51-A (g): भारतीय संविधान के इस अनुच्छेद में, वन्यजीवों की रक्षा करना और सभी जीवित प्राणियों के प्रति दया रखना प्रत्येक नागरिक का मौलिक कर्तव्य निर्धारित किया गया है।
- उत्तराखंड उच्च न्यायालय (2017) ने गंगा नदी और उसकी सबसे लंबी सहायक यमुना नदी को संरक्षित करने और नुकसान न करने का कानूनी अधिकार दिया। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने विभिन्न कानूनी और प्रशासनिक मुद्दों के कारण इस पर रोक लगा दी।
- 1972 का ‘वन्यजीव संरक्षण अधिनियम’ और 1960 का ‘पशु क्रूरता अधिनियम’ जानवरों को ‘व्यक्तिगत जीवित इकाईयों’ के रूप में मान्यता नहीं देता है।
भविष्य के अस्तित्व के लिए मनुष्यों और जीवित प्रणालियों के बीच प्रतिस्पर्धा से सहयोग के लिए, एक अकाट्य बदलाव वर्तमान में एक अस्पष्ट क्षेत्र है। साथ ही यह सवाल उठता है, भारत “जैव-युग” की तैयारी क्स प्रकार कर रहा है।
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य
चुनावी बांड्स एवं फंड के स्रोत की जानकारी
संदर्भ: हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से पूछा है, कि क्या ‘चुनावी बांड प्रणाली’ राजनीतिक दलों को फंड करने के लिए धन-राशि के स्रोत का खुलासा करती है।
प्रमुख बिंदु:
स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव ‘लोकतंत्र’ के लिए सबसे महत्वपूर्ण हैं। याचिकाकर्ता ने तर्क देते हुए कहा है, कि ‘चुनावी बांड’ राजनीतिक दलों को वित्त पोषण करने का एक अपारदर्शी तरीका है जो अनुच्छेद 324 की अवधारणा को नष्ट कर देता है।
याचिका में उल्लिखित दो अन्य महत्वपूर्ण और परस्पर जुड़े हुए मुद्दे:
- सूचना के अधिकार (RTI): क्या राजनीतिक दल ‘सूचना के अधिकार अधिनियम’ के दायरे में आते हैं।
- ‘विदेशी अंशदान नियमन अधिनियम’ में संशोधन: इस संशोधन के बाद, विदेशी कंपनियों की सहायक कंपनियों को विदेशी स्रोत नहीं माना जाएगा।
चुनावी बांड (Electoral Bonds):
- चुनावी बॉन्ड / ‘इलेक्टोरल बांड’ (Electoral Bond), राजनीतिक दलों को चंदा देने के लिए एक वित्तीय साधन है।
- इन बांड्स के लिए, 1,000 रुपए, 10,000 रुपए, 1 लाख रुपए, 10 लाख रुपए और 1 करोड़ रुपए के गुणकों में जारी किया जाता है, और इसके लिए कोई अधिकतम सीमा निर्धारित नहीं की गयी है।
इसे कौन खरीद सकता है?
- ये बॉन्ड किसी पंजीकृत राजनीतिक दल के निर्दिष्ट खाते में प्रतिदेय होते हैं।
- ये बांड, केंद्र सरकार द्वारा निर्दिष्ट जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर महीनों में प्रत्येक दस दिनों की अवधि में किसी भी व्यक्ति द्वारा खरीदे जा सकते है, बशर्ते उसे भारत का नागरिक होना चाहिए अथवा भारत में निगमित या स्थित होना चाहिए ।
- कोई व्यक्ति, अकेले या अन्य व्यक्तियों के साथ संयुक्त रूप से इन बांड्स को खरीद सकता है।
- बांड्स पर दान देने वाले के नाम का उल्लेख नहीं होता है।
पात्रता: केवल वे राजनीतिक दल जो लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 (1951 का 43) की धारा 29ए के तहत पंजीकृत हैं, और जिन्होंने लोक सभा के लिए पिछले आम चुनाव में कम से कम 1 प्रतिशत वोट हासिल किया है या विधान सभा, जैसा भी मामला हो, चुनावी बांड प्राप्त करने के लिए पात्र हैं।
प्राधिकृत बैंक: इन बॉन्डों को जारी करने और भुनाने के लिए ‘भारतीय स्टेट बैंक’ को अधिकृत किया गया है। यह बांड जारी होने की तारीख से पंद्रह दिनों की अवधि के लिए वैध होते हैं।
ऐप-आधारित एग्रीगेटर सेवाएं
संदर्भ: कर्नाटक उच्च न्यायालय ने ऐप-आधारित परिवहन प्रौद्योगिकी एग्रीगेटर्स (ओला, उबर आदि) को, सरकार कानून के अनुसार किराए तय नहीं किए जाने तक, राज्य सरकार द्वारा निर्धारित किराए और लागू जीएसटी के ऊपर 10% अतिरिक्त शुल्क लगाने की अनुमति दी है।
- अदालत ने राज्य सरकार को अपने प्लेटफॉर्म के माध्यम से ऑटो रिक्शा सेवाएं देने के लिए ऐप-आधारित एग्रीगेटर्स के खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं करने का निर्देश दिया।
- अदालत ने पाया, कि MVAG 2020 में ऑटोरिक्शा, ई-रिक्शा, मोटर कैब, मोटरसाइकिल और बसों को वाहनों के रूप में सूचीबद्ध किया गया है जिन्हें एग्रीगेटर्स के प्लेटफॉर्म के माध्यम से पेश किया जा सकता है।
मोटर वाहन एग्रीगेटर दिशानिर्देश (MVAG) 2020:
- यह ऑटो-रिक्शा सेवाओं के मुद्दों और एग्रीगेटर्स द्वारा लिए जाने वाले किराए के विनियमन को वैज्ञानिक और तकनीकी तरीके से समाधान करते हैं।
- एग्रीगेटर द्वारा व्यवसाय संचालन की अनुमति के लिए, राज्य सरकार द्वारा जारी लाइसेंस होना एक अनिवार्य शर्त है।
- एग्रीगेटर्स को विनियमित करने के लिए राज्य सरकारों द्वारा केंद्र सरकार द्वारा निर्दिष्ट दिशानिर्देशों का पालन किया जा सकता है।
- राज्य सरकारों द्वारा एग्रीगेटर्स के लिए नियामक ढांचा तैयार किया जाएगा जो यह सुनिश्चित करेगा कि एग्रीगेटर्स उनके द्वारा निष्पादित संचालन के लिए जवाबदेह और जिम्मेदार हो।
भारत के लिए आईएमएफ की सिफारिश
संदर्भ: हालांकि ‘अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष’ (IMF) ने अगले वित्तीय वर्ष (2023-24) के लिए भारत के विकास के अनुमान को घटाकर 6.1% कर दिया है। यद्यपि आईएमएफ ने आर्थिक विकास के लिए भारत की स्थिति को अभी भी ‘अनुकूल’ बताया है।
भारतीय अर्थव्यवस्था के समक्ष चुनौतियाँ:
भारतीय अर्थव्यवस्था वर्तमान में चक्रीय और संरचनात्मक चुनौतियों के मिश्रण का सामना कर रही है:
चक्रीय चुनौतियां (Cyclical challenges):
- निजी उपभोग में कमी (जीडीपी में इसका योगदान 60% है);
- ग्रामीण और शहरी मजदूरी में गिरावट;
- बचत में गिरावट (32% (2011) से 29% (2019-20));
- सकल अचल पूंजी निर्माण में गिरावट (34% (2011) से 30% (2019-20));
- बैंकिंग क्षेत्र में उच्च एनपीए (लगभग 7%)
संरचनात्मक चुनौतियाँ (Structural challenges):
- कृषि क्षेत्र की धीमी वृद्धि (लगभग 3%);
- मानव संसाधन का उपेष्टतम कौशल (हमारे कार्यबल का केवल 5% औपचारिक रूप से प्रशिक्षित है);
- 4 श्रम संहिताओं को अभी भी समान रूप से लागू नहीं किया गया है; और
- बड़े सुधारों – विमुद्रीकरण और जीएसटी रोलआउट के संक्रमणकालीन प्रभाव।
आईएमएफ के सुझाव:
- उच्च स्तर के कर्ज को सीमित करना और एक लक्षित और समयबद्ध तरीके से सरकारी वित्तीय सहायता प्रदान करना।
- सख्त मौद्रिक नीति का पालन करना।
- संरचनात्मक सुधार, जैसेकि विनिर्माण क्षेत्र में सुधार, श्रम बाजार की कठोरता को दूर करना आदि लागू करना।
मौद्रिक नीति:
मौद्रिक नीति (Monetary policy),शब्द का तात्पर्य ‘भारतीय रिजर्व बैंक’ की उस नीति से है जिसके तहत, सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में वृद्धि को प्राप्त करने और मुद्रास्फीति दर को कम करने के उद्देश्य, से आरबीआई द्वारा अपने नियंत्रण में आने वाले मौद्रिक संसाधनों का उपयोग किया जाता है।
- मौद्रिक नीति किसी अर्थव्यवस्था में धन और ऋण की मात्रा को प्रभावित करने के लिए निर्देशित केंद्रीय बैंक की गतिविधियों को संदर्भित करती है।
- इसके विपरीत, राजकोषीय नीति कराधान और खर्च के बारे में सरकार के फैसलों को संदर्भित करती है।
- मौद्रिक और राजकोषीय दोनों नीतियों का उपयोग समय के साथ आर्थिक गतिविधियों को विनियमित करने के लिए किया जाता है।
- ‘भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम 1934’ के अंतर्गत आरबीआई को मौद्रिक नीति बनाने की शक्ति प्रदान की गयी है।
अंतर्राष्ट्रीय ई-अपशिष्ट दिवस
संदर्भ: हर साल 14 अक्टूबर को ‘अंतर्राष्ट्रीय ई-अपशिष्ट दिवस’ (International E-waste day) मनाया जाता है।
आदर्श-वाक्य: ‘सब रिसाइकिल करो, चाहे कितना भी छोटा हो!’।
शुरुआत: इसे ‘अपशिष्ट विद्युत और इलेक्ट्रॉनिक उपकरण’ (WEEE) फोरम द्वारा 2018 से शुरू किया गया है।
इस वर्ष के अंतर्राष्ट्रीय ई-कचरा दिवस का फोकस: छोटे, अप्रयुक्त, मृत या टूटे प्लग-इन और बैटरी से चलने वाले उत्पादों का संग्रह।
ई-अपशिष्ट पर WEEE द्वारा की गई सर्वेक्षण रिपोर्ट:
- औसत यूरोपीय परिवार में हर छह इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों में से एक का संग्रह किया जाता है।
- इस साल मोटे तौर पर 5.3 अरब मोबाइल/स्मार्टफोन इस्तेमाल से बाहर हो जाएंगे।
- इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरणों को एक दूसरे के ऊपर रखा जाए तो इनकी ऊंचाई लगभग 50,000 किमी हो जाएगी।
- मोबाइल फोन/स्मार्टफोन में मूल्यवान सोना, तांबा, चांदी, पैलेडियम और अन्य पुनर्चक्रण योग्य घटक होते हैं।
WEEE फोरम क्या है?
यह 46 ई-कचरा उत्पादक जिम्मेदारी संगठनों का एक अंतरराष्ट्रीय संघ है।
कार्बन डेटिंग
संदर्भ: हाल ही में वाराणसी की एक अदालत ने ज्ञानवापी मस्जिद के अंदर मिली संरचना, जिस पर शिवलिंग होने का दावा किया जा रहा है, की कार्बन डेटिंग (Carbon Dating) कराए जाने का अनुरोध करने वाली एक याचिका को खारिज कर दिया है।
‘कार्बन डेटिंग’ क्या है?
कार्बनिक पदार्थों की आयु निर्धारित करने के लिए ‘कार्बन डेटिंग’ एक व्यापक रूप से उपयोग की जाने वाली विधि है। ‘डेटिंग पद्धति’ इस तथ्य पर आधारित है कि कार्बन -14 (C-14), कार्बन का एक समस्थानिक (आइसोटोप) है जिसका एक निश्चित दर से क्षय होता है।
इस विधि को अमेरिकी भौतिक विज्ञानी विलार्ड एफ. लिब्बी द्वारा विकसित किया गया था।
कार्यविधि:
- वायुमंडल में कार्बन का सबसे प्रचुर समस्थानिक C-12 है। C-14 की बहुत कम मात्रा भी वायुमंडल में मौजूद है। वातावरण में C-12 और C-14 का अनुपात लगभग स्थिर है और ज्ञात है।
- किसी पौधे या जानवर के मरने के बाद उसके अवशेषों में C-12 से C-14 के बदलते अनुपात को मापा जा सकता है, और इसका उपयोग जीव की मृत्यु के अनुमानित समय को निकालने के लिए किया जा सकता है।
- हालांकि, कार्बन डेटिंग का उपयोग चट्टानों जैसी निर्जीव चीजों की उम्र निर्धारित करने के लिए नहीं किया जा सकता है।
अन्य तरीके:
- रेडियोमेट्रिक डेटिंग विधियाँ: इसमें, कार्बन के बजाय, अन्य रेडियोधर्मी तत्वों का क्षय जो सामग्री में मौजूद हो सकते हैं, डेटिंग पद्धति का आधार बन जाते हैं।
- कॉस्मोजेनिक न्यूक्लाइड डेटिंग: ध्रुवीय क्षेत्रों में बर्फ के कोर की उम्र का अध्ययन करने के लिए इसे नियमित रूप से लागू किया जाता है।
बहिर्ग्रहों में बेरियम
संदर्भ: वैज्ञानिकों ने पहली बार दो विशाल बहिर्ग्रहों (Exoplanets) के ऊपरी वायुमंडल में बेरियम का पता लगाया है।
‘बेरियम’ क्या है?
यह लोहे से ढाई गुना भारी होता है और अब तक पाया गया सबसे भारी तत्व है। पटाखों में हरी बत्ती पैदा करने के लिए बेरियम साल्ट का इस्तेमाल किया जाता है।
इसे कहाँ खोजा गया है?
- WASP-76b (पृथ्वी से 640 प्रकाश वर्ष दूर) और WASP-121b (900 प्रकाश वर्ष दूर) – ये दोनों ग्रह अपने मेजबान तारों क्रमशः WASP 76 और WASP 121 की परिक्रमा करते हैं।
- बेरियम की यह खोज आश्चर्यजनक है क्योंकि इन एक्सोप्लैनेट में उच्च गुरुत्वाकर्षण की वजह से बेरियम जैसे भारी तत्वों के जल्दी से वायुमंडल की निचली परतों में गिर जाने की संभावना होती है।
‘एक्सोप्लैनेट’ क्या है?
बहिर्ग्रह या ग़ैर-सौरीय ग्रह (exoplanets) हमारे सौर मंडल से बाहर स्थित ग्रह होते है। अधिकांश ग्रह अन्य तारों की परिक्रमा करते हैं, लेकिन फ्री-फ्लोटिंग एक्सोप्लैनेट, जिन्हें आवारा ग्रह कहा जाता है, आकाशगंगा के केंद्र की परिक्रमा करते हैं और किसी भी तारे से जुड़े नहीं होते हैं।
एक्सोप्लैनेट के अध्ययन का कारण:
एक्सोप्लेनेट्स की खोज इस संभावना से प्रेरित है कि पृथ्वी से अन्यत्र भी जीवन मौजूद हो सकता है और भले ही इसका कोई प्रमाण न मिले, लेकिन वैज्ञानिकों का मानना है कि इस सवाल की खोज से यह अवश्य पता चलेगा कि, मानव जाति कहां से आयी थी था और हम कहां जा रहे है।
‘माँ भारती के सपूत’ वेबसाइट
संदर्भ: रक्षा मंत्री ने सशस्त्र सेना युद्ध हताहत कल्याण कोष (AFBCWF) में आम नागरिकों के योगदान के लिए ‘मां भारती के सपूत’ वेबसाइट (www.maabharatikesapoot.mod.gov.in) का शुभारंभ किया।
प्रमुख बिंदु:
- यह वेबसाइट लोगों को सीधे फंड में ऑनलाइन योगदान करने में सक्षम बनाएगी।
- ऑनलाइन दान के अलावा, दान की पारंपरिक प्रणाली जारी रहेगी।
AFBCWF:
- ‘सशस्त्र सेना युद्ध हताहत कल्याण कोष’ (AFBCWF) एक त्रि-सेवा कोष है, जिसका उपयोग उन सैनिकों/नौसेनिकों/वायुसैनिकों के परिवारों को तत्काल वित्तीय सहायता उपलब्ध कराने के लिए किया जाता है जो सक्रिय सैन्य अभियानों में बलिदान दे देते हैं या गंभीर रूप से घायल हो जाते हैं।
- भारतीय सेना रक्षा मंत्रालय, भूतपूर्व सैनिक कल्याण विभाग की ओर से इस कोष का लेखा-जोखा रख रही है।
पनडुब्बी से प्रक्षेपित बैलिस्टिक मिसाइल (SLBM) परीक्षण
संदर्भ: परमाणु ऊर्जा से संचालित आईएनएस अरिहंत ने “पनडुब्बी से प्रक्षेपित बैलिस्टिक मिसाइल” (Submarine Launched Ballistic Missile – SLBM) का सफल प्रक्षेपण किया।
महत्व:
- यह भारत की ‘विश्वसनीय न्यूनतम प्रतिरोध’ की नीति को ध्यान में रखते हुए एक मजबूत, जीवित और सुनिश्चित प्रतिशोधी क्षमता में मदद करेगी। यह परीक्षण भारत की ‘पहले उपयोग न करने’ की प्रतिबद्धता को रेखांकित करता है।”
- यह भारत की सेकंड-स्ट्राइक क्षमता को बढ़ाता है और इस प्रकार इसकी परमाणु प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है।
‘आईएनएस अरिहंत’ के बारे में:
आईएनएस अरिहंत (INS Arihant), एक 6,000 टन की पनडुब्बी, उन्नत प्रौद्योगिकी पोत (Advanced Technology Vessel – ATV) परियोजना के तहत निर्मित परमाणु-संचालित बैलिस्टिक मिसाइल पनडुब्बियों के भारत के अरिहंत वर्ग का प्रमुख जहाज है।
- यह भारत की ‘परमाणु त्रय’ (जमीन, वायु और समुद्र से परमाणु हमले के खिलाफ जवाबी कार्रवाई करने की क्षमता) से लैस है।
- आईएनएस अरिहंत संवर्धित यूरेनियम ईंधन के साथ अपने आधार में 83 मेगावाट दबाव वाले हल्के-पानी रिएक्टर द्वारा संचालित है।
- K-4 (रेंज 750km) और K-15 (3500 Km) को अरिहंत श्रेणी की पनडुब्बियों से संचालित करने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
‘शिप सबमर्सिबल बैलिस्टिक न्यूक्लियर सबमरीन’ (SSBN):
SSBN पनडुब्बियों का वह वर्ग है जो समुद्र के नीचे गहराई तक जा सकता है और महीनों तक इनका पता नहीं चल पाता है। ये पनडुब्बियां परमाणु-शस्त्र युक्त बैलिस्टिक मिसाइल भी ले जाने में सक्षम हैं।