[Mission 2022] INSIGHTS करेंट अफेयर्स+ पीआईबी नोट्स [ DAILY CURRENT AFFAIRS + PIB Summary in HINDI ] 13th October 2022

विषयसूची

 

सामान्य अध्ययन-I

  1. चोल साम्राज्य की भव्यता

सामान्य अध्ययन-II

  1. न्यायालय और कॉलेजियम के साथ समस्या

सामान्य अध्ययन-III

  1. वनों की मुख्य भूमिका पर आधारित COP27 की आवश्यकता

प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य

  1. ताना भगत आंदोलन
  2. नानाजी देशमुख
  3. जयप्रकाश नारायण: व्यक्ति, आंदोलन और उनके उत्तराधिकारी
  4. धारा 66A के तहत कोई और मुकदमा नहीं
  5. पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिए प्रधानमंत्री की विकास पहल (पीएम-डिवाइन)
  6. आंध्र प्रदेश की SALT परियोजना
  7. इंटरपोल और इसका रेड नोटिस
  8. आईएमएफ की नवीनतम विश्व अर्थव्यवस्था रिपोर्ट
  9. सामूहिक सुरक्षा संधि संगठन
  10. बैंक रन
  11. कयामत का चक्र
  12. रिवर्स नीलामी
  13. राष्ट्रीय खनिज अन्वेषण न्यास (NMET)
  14. हाइड्रोकार्बन अन्वेषण और लाइसेंसिंग नीति के तहत नीलामी
  15. सीसा विषाक्तता
  16. मजबूत हाइब्रिड इलेक्ट्रिक वाहन (FFV-SHEV)
  17. तमिलनाडु में स्लेंडर लोरिस अभयारण्य
  18. स्लॉथ बेयर

सामान्य अध्ययन-I


विषय: भारतीय संस्कृति में प्राचीन काल से आधुनिक काल तक के कला के रूप, साहित्य और वास्तुकला के मुख्य पहलू शामिल होंगे।

चोल साम्राज्य की भव्यता

दिशा-निर्देश: यह आर्टिकल ‘द हिंदू’ से तैयार किया गया है। इसे ध्यानपूर्वक पढ़ें और प्रारंभिक और मुख्य परीक्षा, दोनों दृष्टिकोण से ‘चोल साम्राज्य’ पर एक समग्रतात्मक नोट तैयार करें।

चोल राजवंश

चोल वंश (Chola dynasty) का शासनकाल 850 ईस्वी से 1279 ईस्वी तक, ‘विजयालय आदित्य प्रथम’ से ‘राजेंद्र तृतीय’ तक रहा। ‘राजेंद्र तृतीय’ इस वंश का अंतिम शासक था।

ऐतिहासिक स्रोत:

  • इस अवधि के दौरान तमिल साहित्य जैसे साहित्यिक स्रोतों का विकास हुआ।
  • भक्ति संतों का उदय और भजनों का संकलन इस काल की सामाजिक-सांस्कृतिक विशेषताओं को दर्शाता है
  • मुवरुला (Muvarula) और ‘कम्ब रामायणम’ (Kamba Ramayanam) जैसे महान महाकाव्यों की रचना इसी काल में हुई।
  • प्रान्तक चोल द्वारा जारी ‘उत्तरमेरु शिलालेख’ (Uttarameruru Inscription) में स्थानीय स्व-सरकारी निकायों के चुनाव का विवरण मिलता है।

चोल वंश के प्रसिद्ध शासक:

राजराजा प्रथम (985 – 1014 .):

  • राजराजा प्रथम ने कई नौसैनिक अभियान किए और पश्चिमी तट और हिंद महासागर में श्रीलंका तथा मालदीव पर विजय प्राप्त की।
  • उन्होंने 1010 ई. में तंजौर में प्रसिद्ध ‘राजराजेश्वर मंदिर’ या ‘बृहदेश्वर मंदिर’ का निर्माण पूरा किया।

राजेंद्र प्रथम (1012-1044 ई.):

  • इन्होने ‘गंगईकोंडाचोलपुरम’ (Gangaikondacholapuram) नगर की स्थापना की, संपूर्ण श्रीलंका पर अपना अधिकार स्थापित किया, ‘पंडिता चोल’ की उपाधि धारण की और प्रसिद्ध ‘राजेश्वरम मंदिर’ का निर्माण करवाया।

राजेंद्र तृतीय:

  • इस वंश के अंतिम चोल शासक ‘राजेंद्र तृतीय’ को ‘जटावर्मन सुंदरपांड्य द्वितीय’ ने पराजित किया था। चोल साम्राज्य के अवशेषों पर पांड्य और होयसल राज्यों का उदय हुआ।

चोल काल में प्रशासन:

  • ‘चोल साम्राज्य’ मंडलों में विभाजित था और प्रत्येक मंडलम (Mandalam), वालानाडु (Valanadus) और नाडु (Nadus) में विभिक्त था।
  • प्रत्येक ‘नाडु’ में कई स्वायत्त ग्राम शामिल होते थे।
  • ‘मंडलम’ के प्रभारी शाही राजकुमार या अधिकारी होते थे।
  • भूमि मापन की विभिन्न इकाइयाँ कुली (Kuli), मा (Ma), वेली (Veli), पट्टी (Patti), पदगम (Padagam) आदि प्रचलित थी।
  • करों की दरें ‘मिट्टी की उर्वरता’ के आधार पर निर्धारित की जाती थीं।

वास्तुकला:

  • चोल कला में ‘द्रविड़ मंदिर कला’ का चरमोत्कर्ष देखा जा सकता है।
  • चोल काल में, पल्लवों की स्थापत्य शैली का अनुसरण किया गया।
  • इस काल में अपने अधिक टिकाऊपन के कारण ईंटों के स्थान पर पत्थर की सामग्री का उपयोग किया जाता था।
  • मंदिरों में एक गर्भगृह (देवता कक्ष); विमान (बृहदेश्वर मंदिर); शिखर (90 टन वजनी पत्थर); और मंडप इस काल के स्थापत्य की विशेषता थे।
  • धातु कला: चिदंबरम मंदिर में नटराज की प्रतिमा और मंदिर के ऊंचे द्वार इस काल में ‘धातु कला’ का उदहारण हैं।
  • ‘जलकुंड या तालाबों’ की मौजूदगी चोल वास्तुकला की अनूठी विशेषता है।
  • चोल-कालीन कांस्य मूर्तियां: ‘नटराज’ के रूप में शिव की प्रसिद्ध नृत्य आकृति, चोल काल के दौरान विकसित हुई।
  • इस अवधि के दौरान ‘कांस्य को गलाने की तकनीक’ और ‘पारंपरिक प्रतीकों की कांस्य छवियों’ का निर्माण, अपने विकास के उच्च स्तर पर पहुंच गया था।

इंस्टा लिंक:

चोल साम्राज्य

मेंस लिंक:

  • ‘चोल वास्तुकला’, मंदिर वास्तुकला के विकास में एक उच्च वॉटरमार्क का प्रतिनिधित्व करती है। विचार-विमर्श कीजिए। (यूपीएससी 2013)
  • चोल काल में ‘हिंदू प्रतिमाओं’ पर विशेष जोर देने के साथ मूर्तियों और कांस्य कार्यों में उल्लेखनीय विकास हुआ। इनमे एक उत्कृष्ट सुघड़ता, भव्यता और अभिरुचि का चित्रण हुआ हैं। चर्चा कीजिए।

स्रोत: द हिंदू


 सामान्य अध्ययन-II


विषय: विभिन्न संवैधानिक पदों पर नियुक्ति और विभिन्न संवैधानिक निकायों की शक्तियाँ, कार्य और उत्तरदायित्व।

उच्चतम न्यायालय, तथा इसकी कॉलेजियम प्रणाली के साथ समस्या

‘कॉलेजियम प्रणाली’ क्या है:

‘कॉलेजियम प्रणाली’ (Collegium System), न्यायाधीशों की नियुक्ति और स्थानांतरण संबंधी एक पद्धति है, जो संसद के किसी अधिनियम अथवा संविधान के किसी प्रावधान द्वारा गठित होने के बजाय उच्चतम न्यायालय के निर्णयों के माध्यम से विकसित हुई है।

  • उच्चतम न्यायालय कॉलेजियम की अध्यक्षता भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) द्वारा की जाती है, और इसमें न्यायालय के चार अन्य वरिष्ठतम न्यायाधीश शामिल होते हैं।
  • उच्च न्यायालय कॉलेजियम के अध्यक्ष संबंधित उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश होते हैं और इसमें संबंधित अदालत के चार अन्य वरिष्ठतम न्यायाधीश शामिल होते हैं।

कॉलेजियम प्रणाली से जुडी समस्याएं:

  • गैर-संवैधानिक निकाय: ‘कॉलेजियम प्रणाली’ (Collegium System) संसद के किसी अधिनियम अथवा किसी संविधानिक प्रावधान द्वारा गठित होने के बजाय उच्चतम न्यायालय के निर्णयों के माध्यम से विकसित हुई है।
  • गैर-न्यायाधीश के लिए कोई सीट नहीं: कॉलेजियम में किसी भी ‘गैर-न्यायाधीश’ (Non-Judge) को, जैसेकि कार्यकारिणी या ‘बार’ (अधिवक्ताओं के समूह) से शामिल नही किया जाता है। यह ‘नियंत्रण और संतुलन’ के सिद्धांत का उल्लंघन है।
  • अस्पष्टता: कॉलेजियम की बैठकें ‘बंद दरवाजे’ के पीछे आयोजित की जाती है, इस प्रकार इनमे पारदर्शिता का अभाव होता है।
  • भाई-भतीजावाद: कॉलेजियम-प्रणाली में भाई-भतीजावाद की गुंजाइश रहती है।
  • प्रतिभा की अनदेखी: इस प्रणाली में कई प्रतिभाशाली कनिष्ठ न्यायाधीशों और अधिवक्ताओं की अनदेखी की जाती है।

न्यायिक नियुक्तियों संबंधी मुद्दे:

  • पक्षपातीकॉलेजियम (‘Biased’ Collegium): आनुक्रमिक कॉलेजियमों द्वारा सरकार द्वारा नापसंद किए गए नामों को न्यायालयों में नियुक्ति के लिए प्रस्तुत नहीं किया जाता रहा है।
  • प्रतिष्ठित’ न्यायविदों की उपेक्षा: कॉलेजियम-प्रणाली द्वारा अनुच्छेद 124 के तहत ‘प्रतिष्ठित न्यायविदों’ की श्रेणी से कोई नियुक्ति नहीं की गयी है।
  • न्यायाधीशों के लिए परिरक्षित: शीर्ष अदालत में नियुक्तियां उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के लिए ‘परिरक्षित’ प्रतीत होती हैं। आम तौर पर मात्र कुछ ही नियुक्तियां ‘अधिवक्ताओं के समूह’ से की जाती हैं।

आगे की राह:

  • पारदर्शिता: इस पर फिर से विचार करने और उच्च न्यायालयों तथा सर्वोच्च न्यायालय में वरिष्ठ न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए एक बेहतर, व्यापक-आधारित और पारदर्शी पद्धति लागू करने की आवश्यकता है।
  • संवैधानिक अधिदेश: संविधान में निर्माताओं द्वारा किए गए विशिष्ट प्रावधान के लिए कुछ महत्व दिया जाना चाहिए।

इंस्टा लिंक्स:

मेंस लिंक:

भारत में उच्च न्यायपालिका के न्यायाधीशों की नियुक्ति के संदर्भ में ‘राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम, 2014’ पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का आलोचनात्मक जांच परीक्षण कीजिए।(यूपीएससी 2017)

स्रोत: द हिंदू


सामान्य अध्ययन-III


विषय: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन।

वनों की मुख्य भूमिका पर आधारित COP27 की आवश्यकता

संदर्भ: एक प्रसिद्ध पत्रिका ‘साइंस’ में प्रकाशित एक अध्ययन में कहा गया है कि आज तक मानव-जनित कारणों की वजह से 1.1 डिग्री सेल्सियस वैश्विक तापन के कारण पृथ्वी पहले ही पांच खतरनाक ‘सिरा-बिंदुओं’ (tipping points) से गुजर चुकी है।

जलवायु शमन संबंधी वर्तमान रणनीतियों से जुडी समस्याएं:

  • अविकसित प्रौद्योगिकी: जलवायु चुनौती से निपटने के लिए आवश्यक पैमाने पर प्रौद्योगिकी तैयार नहीं है।
  • नवीकरणीय स्रोतों के लिए सीमित स्रोत: विद्युत् (जलविद्युत, नवीकरणीय या परमाणु विखंडन द्वारा उत्पन्न गैर-उत्सर्जक बिजली), कार्बन कैप्चर और स्टोरेज (CCS) या बायोमास जैसे नवीकरणीय स्रोत काफी सीमित हैं। COP26 में चर्चा की गई योजनाओं के लिए आवश्यक नवीकरणीय संसाधनों की कुल मांग को 2050 तक पूरा नहीं किया जा सकता है।
  • वन अर्थव्यवस्थाओं की उपेक्षा: तकनीक-केंद्रित शमन वार्ताओं में वन अर्थव्यवस्थाओं और उनके संरक्षण को छोड़ दिया जाता है।
  • अस्पष्ट संकल्प: जैसेकि- एकल कृषि (Monoculture) पद्धति के माध्यम से देश आसानी से अपने ‘वनों की कटाई को सकल शून्य तक करना’ के लक्ष्यों को हासिल करने का प्रयास कर सकते हैं। लेकिन यह ज्यादा मददगार नहीं होगा।

वनों की मुख्य भूमिका पर आधारित प्रयासों की आवश्यकता:

  • CO2 का अवशोषण: वन, एक वर्ष में7.6 बिलियन मीट्रिक टन CO2 का शुद्ध अवशोषण करते हैं।
  • शीतलन: एक नए अध्ययन में पाया गया है कि उनके जैव-भौतिक पहलुओं में पृथ्वी को अतिरिक्त 0.5% ठंडा करने की प्रवृत्ति है।
  • अधिक प्रभावी: अन्य प्रकृति-आधारित समाधानों सहित वनों का संरक्षण, जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए आवश्यक उत्सर्जन में 37% तक कमी कर सकता है।
  • वैज्ञानिकों ने ‘नेचर’ में एक कमेंट्री में कहा है कि प्राकृतिक रूप से संरक्षित वन, लगाए गए वनों की तुलना में 40% अधिक प्रभावी हैं।
  • सस्ता: हरित बुनियादी ढांचा (लवणीय दलदल और मैंग्रोव) 2-5 गुना सस्ते होते हैं।

अन्य उपाय:

  • अंतर-सरकारी जलवायु परिवर्तन समिति (Intergovernmental Panel on Climate Change – IPCC) की भूमि रिपोर्ट के अनुसार- भूमि एक CO2 के बड़े सिंक के रूप में कार्य करती है।
  • स्वदेशी लोगों और स्थानीय समुदायों के नेतृत्व में स्थलीय पारिस्थितिक तंत्र और प्राकृतिक सिंक और परिवर्तनकारी कृषि पद्धतियों की रक्षा करके पृथ्वी की चक्रीय प्रक्रियाओं को संरक्षित करना।

इस प्रकार, प्रौद्योगिकी, एक स्थायी, पुनर्योजी और न्यायसंगत दुनिया के मार्ग पर, हमारी सहायता कर सकती है, न कि हमें आगे बढ़ा सकती है।

इंस्टा लिंक्स:

मेंस लिंक:

भारत द्वारा घोषित जलवायु परिवर्तन के लक्ष्यों 2070 तक हासिल करने के लिए आवश्यक उपायों पर चर्चा कीजिए।

स्रोत: द हिंदू


प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य


ताना भगत आंदोलन

संदर्भ : झारखंड के लातेहार जिले में ‘ताना भगत संप्रदाय’ (Tana Bhagat sect) के आदिवासी ‘पूर्ण स्वशासन’ की मांग कर रहे हैं।

‘ताना भगत संप्रदाय’ उरांव जनजाति का एक संप्रदाय हैं और यह गांधीवादी दर्शन का प्रबल अनुयायी हैं।

ताना भगत आंदोलन

ताना भगत आंदोलन की शुरुआत ‘जतरा भगत’ के नेतृत्व में, वर्ष 1914 ईं. में  छोटानागपुर के उरांव समुदाय में हो रही कुरीतियों को रोकने और जमींदारों की नीतियों का विरोध करने के लिए बिहार में हुई थी।

  • यह आंदोलन ‘बिरसा मुंडा आंदोलन’ की समाप्ति के करीब 13 साल बाद शुरू हुआ। वह ऐसा धार्मिक आंदोलन था, जिसके राजनीतिक लक्ष्य थे।
  • यह आदिवासी जनता को संगठित करने के लिए नये ‘पंथ’ के निर्माण का आंदोलन था। इस मायने में वह बिरसा आंदोलन का ही विस्तार था।
  • मुक्ति-संघर्ष के क्रम में बिरसा ने जनजातीय पंथ की स्थापना के लिए सामुदायिकता के आदर्श और मानदंड निर्धरित किये थे।

नानाजी देशमुख

संदर्भ: नानाजी देशमुख का जन्म 11 अक्टूबर 1916 को महाराष्ट्र के हिंगोली जिले में हुआ था।

योगदान:

  • समाज सुधारक, शिक्षाविद और राजनेता (जनता पार्टी);
  • चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय (भारत का पहला ग्रामीण विश्वविद्यालय) की स्थापना;
  • लोकमान्य तिलक और उनकी राष्ट्रवादी विचारधारा से प्रभावित;
  • उन्होंने आचार्य विनोबा भावे के भूदान में सक्रिय रूप से भाग लिया;
  • संपूर्ण क्रांति के लिए सामाजिक कार्यकर्ता जयप्रकाश नारायण द्वारा शुरू किए गए आंदोलन में ‘नानाजी देशमुख’ एक प्रमुख ताकत थे।
  • 2019 में, भारत के राष्ट्रपति ने राष्ट्र के लिए उनकी सेवाओं के लिए उन्हें (मरणोपरांत) भारत रत्न से सम्मानित किया।
  • मूल्य: करुणा, लोगों की सेवा, देशभक्ति, राजनीतिक कुशाग्रता।

जयप्रकाश नारायण: व्यक्ति, आंदोलन और उनके उत्तराधिकारी

संदर्भ: केंद्रीय गृह मंत्री ने समाजवादी प्रतिरूप लोकनायक जयप्रकाश नारायण की 120वीं जयंती के अवसर पर बिहार में उनकी जन्मभूमि सिताब दियारा में उनकी 15 फुट की प्रतिमा का अनावरण किया।

जयप्रकाश नारायण का योगदान:

  • राजनीतिक गतिविधि: 1934 में कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी (सीएसपी) के संस्थापक सदस्य।
  • उन्होंने सोशलिस्ट पार्टी का गठन किया था जिसका 1952 में ‘प्रजा सोशलिस्ट पार्टी’ बनाने के लिए जेबी कृपलानी की ‘किसान मजदूर प्रजा पार्टी’ में विलय कर दिया गया।
  • उन्होंने इंदिरा गांधी के शासन (1975 में राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान) के दौरान ‘संपूर्ण क्रांति’ आंदोलन का नेतृत्व किया।
  • राजनीतिक दलों से मोहभंग होने पर उन्होंने ‘साम्यवादी लोकतंत्र’ की मांग की।
  • उनका मानना ​​था कि पार्टियां केंद्रीकृत हैं और नैतिक और वित्तीय भ्रष्टाचार के प्रति आसानी से प्रभावित होने वाली होती हैं।

मूल्य: देशभक्ति, समाजवाद, निस्वार्थता, न्याय के लिए दृढ़ता।

धारा 66A के तहत कोई और मुकदमा नहीं

संदर्भ: सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों और पुलिस बलों को सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66A के तहत सोशल मीडिया पर ‘स्वतंत्र अभिव्यक्ति’ के लिए मुकदमा चलाने से रोकने का आदेश दिया है। धारा 66A को सुप्रीम कोर्ट द्वारा एक फैसले में असंवैधानिक घोषित किया जा चुका है।

सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 69 (A):

 आईटी अधिनियम, 2000 (IT Act, 2000) की धारा 69 (A) के अंतर्गत केंद्र सरकार के लिए ‘सोशल मीडिया मध्यस्थों’ को ब्लॉकिंग आदेश जारी करने की अनुमति प्रदान की गयी है।

  • धारा 66A (Section 66A), कंप्यूटर या किसी अन्य संचार उपकरण जैसे मोबाइल फोन या टैबलेट के माध्यम से “आपत्तिजनक” संदेश भेजने पर सजा को परिभाषित करती है।
  • इसके तहत दोषी को अधिकतम तीन साल की जेल और जुर्माना हो सकता है।

24 मार्च, 2015 को ‘श्रेया सिंघल बनाम भारत संघ’ मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 66ए को पूरी तरह से रद्द कर दिया और फैसला सुनाया कि यह अनुच्छेद 19(1) (a) का उल्लंघन है।

धारा 66A को निरसित किए जाने के कारण:

सुप्रीम कोर्ट के अनुसार, धारा 66A संविधान के अनुच्छेद 19(1) (a) के तहत, मनमाने ढंग से, अतिशय पूर्वक और असमान रूप से ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार’ पर हमला करती है, और इन अधिकारों और इन पर लगाए जाने वाले उचित प्रतिबंधों के बीच संतुलन को बिगाड़ती है। इसके अलावा, प्रावधान के तहत अपराधों की परिभाषा, व्याख्या के लिए ‘खुली हुई’ (Open-Ended) और अपरिभाषित है।

पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिए प्रधानमंत्री की विकास पहल (पीएम-डिवाइन)

संदर्भ: ‘पीएम-डिवाइन’ अर्थात ‘पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिए प्रधानमंत्री की विकास पहल’ (PRIME MINISTER’S DEVELOPMENT INITIATIVE FOR NORTH-EAST REGION – PM-DEVINE) की घोषणा केंद्रीय बजट 2022-23 में पूर्वोत्तर क्षेत्र (North Eastern Region – NER) में विकास अंतराल को दूर करने के लिए की गई है।

उद्देश्य:

  • पीएम गति शक्ति की भावना में सम्मिलित रूप से बुनियादी ढांचे को निधि देना;
  • पूर्वोत्तर क्षेत्र की जरूरतों के आधार पर सामाजिक विकास परियोजनाओं को समर्थन;
  • युवाओं और महिलाओं के लिए आजीविका संबंधी कार्यों को सक्षम करना;
  • विभिन्न क्षेत्रों में विकास अंतराल को भरा जाए।

प्रमुख बिंदु:

  • PM-DEVINE परियोजनाओं को वर्ष 2025-26 तक पूरा करने का प्रयास किया जाएगा।
  • फंडिंग: परियोजनाओं के लिए 100% केंद्र द्वारा वित्तपोषित किया जाएगा।
  • कार्यान्वयन: PMDevINE को पूर्वोत्तर परिषद या केंद्रीय मंत्रालयों/एजेंसियों के माध्यम से पूर्वोत्‍तर क्षेत्र विकास मंत्रालय द्वारा कार्यान्वित किया जाएगा।
  • एंड-टू-एंड डेवलपमेंट: यह अलग-अलग प्रोजेक्ट्स के बजाय ‘एंड-टू-एंड डेवलपमेंट सॉल्यूशन’ मुहैया कराएगा।
  • परियोजनाओं का दोहराव नहीं: यह सुनिश्चित करेगा कि पूर्वोत्‍तर क्षेत्र विकास मंत्रालय या किसी अन्य मंत्रालय/विभाग की किसी अन्य योजना के साथ PM-DEVINE के तहत परियोजना सहयोग का दोहराव नहीं हो।

 

  • आंध्र प्रदेश की SALT परियोजना

संदर्भ: विश्व बैंक ने आंध्र प्रदेश के ‘आंध्र प्रदेश का अध्ययन सुधार सहायता’ (Support Andhra’s Learning Transformation – SALT) प्रोजेक्ट की सहायता हेतु ऋण प्रदान किया है।

इस परियोजना का उद्देश्य मूलभूत शिक्षा में सुधार, शिक्षकों के व्यावसायिक विकास, प्रारंभिक बचपन की शिक्षा आदि पर ध्यान केंद्रित करके राज्य की स्कूली शिक्षा प्रणाली को बदलना है।

इंटरपोल और इसका रेड नोटिस

संदर्भ– इंटरपोल ने खालिस्तान अलगाववादी गुरपतवंत सिंह पन्नून (कनाडा स्थित खालिस्तान समर्थक संगठन सिख्स फॉर जस्टिस के कानूनी सलाहकार) के खिलाफ पर्याप्त जानकारी नहीं होने की वजह से ‘रेड नोटिस’ के लिए भारत के अनुरोध को खारिज कर दिया है।

अनुरोध के पीछे का कारण: ‘पन्नून’ को भारत के ‘विधिविरूद्ध क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम’ (Unlawful Activities (Prevention) Act – UAPA)  कानून के तहत “आतंकवादी” के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।

‘इंटरपोल’ क्या है?

‘अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक पुलिस संगठन’ (International Criminal Police OrganisationINTERPOL) अथवा ‘इंटरपोल’, 194 सदस्यीय अंतरसरकारी और एक संयुक्त राष्ट्र एजेंसी है जो दुनिया भर में पुलिस सहयोग और अपराध नियंत्रण की सुविधा प्रदान करती है।

  • इसका मुख्यालय फ्राँस के ‘लियोन’ (Lyon) शहर में है।
  • इसकी स्थापना वर्ष 1923 में ‘अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक पुलिस आयोग’ के रूप में की गई थी, और वर्ष 1956 से इसे ‘इंटरपोल’ कहा जाने लगा।
  • भारत वर्ष 1949 में इस संगठन में शामिल हुआ था और इसके सबसे पुराने सदस्यों में से एक है।
  • भारत की ‘केंद्रीय जांच ब्यूरो’ (सीबीआई), इंटरपोल के साथ राष्ट्रीय समन्वय एजेंसी है।

रेड नोटिस:

  • रेड नोटिस (RED NOTICE), लंबित प्रत्यर्पण के लिए किसी व्यक्ति का पता लगाने और अस्थायी रूप से गिरफ्तार करने का अनुरोध होता है।
  • यह एक वैध राष्ट्रीय गिरफ्तारी वारंट के आधार पर किसी सदस्य देश या अंतरराष्ट्रीय न्यायाधिकरण के अनुरोध पर इंटरपोल के महासभा सचिवालय द्वारा जारी किया जाता है।
  • ‘रेड नोटिस’ के अलावा, इंटरपोल ब्लैक नोटिस, येलो नोटिस आदि 7 अन्य प्रकार के नोटिस भी जारी करता है।

आईएमएफ की नवीनतम विश्व अर्थव्यवस्था रिपोर्ट

संदर्भ: ‘अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष’ (International Monetary Fund – IMF) के नवीनतम ‘विश्व आर्थिक आउटलुक’ (World Economic Outlook – WEO) का मुख्य संदेश यह है, कि “वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए सबसे खराब स्थिति अभी बाकी है”।

रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु:

  • वैश्विक अर्थव्यवस्था की एक तिहाई से अधिक अर्थव्यवस्थाओं में इस वर्ष या अगले वर्ष तक संकुचन जारी रहेगा, जबकि तीन सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएं – संयुक्त राज्य अमेरिका, यूरोपीय संघ और चीन – बाधित होती रहेंगी।
  • मुद्रास्फीति, वर्तमान और भविष्य की समृद्धि के लिए सबसे तात्कालिक खतरा बनी हुई है। वैश्विक मुद्रास्फीति अब 2022 के अंत में9. 5 प्रतिशत के शिखर पर पहुंचने की उम्मीद है।
  • ‘अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष’ (IMF) ने ‘वैश्विक विकास के अनुमान’ में – 2021 में 6.0 प्रतिशत से 2022 में 3.2 प्रतिशत और 2023 में 2.7 प्रतिशत – तेजी से कटौती की है।
  • वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए चुनौती का कारण: यूक्रेन पर रूसी आक्रमण, वृद्धि पर मुद्रास्फीति का दबाव, और चीन में मंदी।

रिपोर्ट में भारत की स्थिति:

भारत की जीडीपी विकास दर बेहतर है और मुद्रास्फीति अधिक उच्च स्तर पर नहीं है।

भारत के लिए कम से कम चार स्रोतों से खतरा है:

  1. कच्चे तेल और उर्वरक की ऊंची कीमतें घरेलू मुद्रास्फीति को बढ़ा देंगी।
  2. वैश्विक मंदी निर्यात को नुकसान पहुंचाएगी, घरेलू विकास को नीचे खींचेगी और व्यापार घाटे को और खराब करेगी।
  3. एक मजबूत डॉलर, रुपये की विनिमय दर पर दबाव डालेगा।
  4. इसके अलावा, अधिकांश भारतीयों में कम मांग को देखते हुए, सरकार को अधिक खर्च करने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है।

‘विश्व आर्थिक आउटलुक’ क्या है?

  • ‘विश्व आर्थिक आउटलुक’ (World Economic Outlook – WEO), आईएमएफ का एक सर्वेक्षण है जो आमतौर पर अप्रैल और अक्टूबर के महीनों में साल में दो बार प्रकाशित होता है।
  • WEO, निकट और मध्यम अवधि के दौरान वैश्विक आर्थिक विकास का विश्लेषण और भविष्यवाणी करता है।
  • आईएमएफ द्वारा ‘वैश्विक वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट’ भी प्रकाशित की जाती है।

सामूहिक सुरक्षा संधि संगठन

संदर्भ: किर्गिस्तान ने इस महीने होने वाले ‘सामूहिक सुरक्षा संधि संगठन’ (Collective Security Treaty Organization – CSTO) के लिए अपने सैन्य अभ्यास को रद्द कर दिया है।

‘सामूहिक सुरक्षा संधि संगठन’ (CSTO) के बारे में:

  • यह छह देशों का एक अंतर-सरकारी सैन्य गठबंधन है, इसका गठन वर्ष 2002 में हुआ था।
  • इसकी उत्पत्ति का स्रोत, ‘सामूहिक सुरक्षा संधि’, 1992 (ताशकंद संधि) में खोजा जा सकता है।
  • इसका मुख्यालय, रूस की राजधानी मास्को में स्थित है।
  • CSTO का उद्देश्य, स्वतंत्रता, क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता के सामूहिक आधार पर सदस्य देशों की साइबर सुरक्षा और स्थिरता सहित शांति, अंतर्राष्ट्रीय और क्षेत्रीय सुरक्षा को मजबूत करना है।
  • वर्तमान में, आर्मेनिया, बेलारूस, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, रूसी संघ और ताजिकिस्तान ‘सामूहिक सुरक्षा संधि संगठन’ (CSTO) के सदस्य हैं।
  • ‘अफगानिस्तान’ और ‘सर्बिया’ को CSTO में पर्यवेक्षक का दर्जा प्राप्त है।

 

बैंक रन

संदर्भ: हाल ही में तीन अर्थशास्त्रियों को बैंकिंग और वित्तीय संकट पर उनके शोध के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसने ‘बैंक रन’  (Bank Run) शब्द को रेखांकित किया है।

बैंक रन’ क्या है?

‘बैंक रन’ (Bank Run) की स्थिति तब होती है, जब ग्राहकों को लगता है कि बैंक निकट भविष्य में काम करना बंद कर सकता है और वे बैंक से अपना पैसा निकालने लगते हैं।

  • जैसेकि, 1930 का आर्थिक संकट प्रमुख रूप से ‘बैंक रन’ के कारण था। पहले यह माना जाता था कि ‘बैंकों की विफलता’ वित्तीय संकट का “परिणाम” थी न कि इसका “कारण”।
  • अर्थशास्त्रियों ने विश्वास बनाने और ‘बैंक रन’ को रोकने के लिए देशों में ‘जमा बीमा’ का प्रावधान किए जाने की सिफारिश की हैं। उदाहरण के लिए भारत 5 लाख रुपये का जमा बीमा प्रदान करता है।

कयामत का चक्र

संदर्भ: कई अर्थशास्त्रियों ने चेतावनी दी है कि यूरोप एक ‘कयामत के चक्र’ (Doom Loop) की ओर बढ़ सकता है।

‘कयामत का चक्र’ या ‘डूम लूप’, ‘अरक्षितता का चक्र’ (circle of vulnerability) होता है, जिसमे किसी देश की बैंकिंग प्रणाली, अर्थव्यवस्था में अस्थिरता की वजह से गंभीर रूप से आहत हो सकती है। एक देश को ‘डूम’ का खतरा तब होता है जब उसकी आर्थिक प्रणाली के एक हिस्से पर झटके से दूसरे हिस्से पर इसका प्रभाव बढ़ जाता है।

रिवर्स नीलामी

संदर्भ: सरकार द्वारा पवन एवं सौर परियोजनाओं के लिए ‘रिवर्स नीलामी’ (Reverse Auction) प्रक्रिया को रद्द किया जा सकता है।

  • ‘रिवर्स नीलामी’ एक प्रकार की नीलामी होती है, जिसमें विक्रेता, उन कीमतों के लिए बोली लगाते हैं जिन पर वे अपने सामान और सेवाओं को बेचने के लिए तैयार होते हैं।
  • यह एक ‘नियमित नीलामी’ के विपरीत होती है, जिसमे विक्रेता अपनी वस्तु को बेचने के लिए रखता है और खरीदार नीलामी के बंद होने तक बोली लगाते हैं, और उच्चतम बोली लगाने वाले को वह वस्तु दे दी जाती है।

राष्ट्रीय खनिज अन्वेषण न्यास (NMET)

देश में खनिजों की खोज से संबंधित गतिविधियों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से केंद्र सरकार ने ‘राष्ट्रीय खनिज अन्वेषण न्यास (National Mineral Exploration Trust – NMET) की स्थापना की है।

  • यह देश में खनिज अन्वेषण गतिविधियों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से खान और खनिज (विकास विनियमन) संशोधन अधिनियम, 2015 के तहत गठित एक गैर-लाभकारी स्वायत्त निकाय है।
  • एक खनन पट्टा धारक, NMET को रॉयल्टी के 2% के बराबर राशि का भुगतान करता है।
  • NMET, देश भर में अन्वेषण परियोजनाओं को पूरा करने के लिए विभिन्न अधिसूचित अन्वेषण एजेंसियों को निधि प्रदान करता है।

हाइड्रोकार्बन अन्वेषण और लाइसेंसिंग नीति के तहत नीलामी

संदर्भ: ‘हाइड्रोकार्बन अन्वेषण और लाइसेंसिंग नीति’ (Hydrocarbon Exploration and Licensing Policy – HELP) नीलामी के तहत, कई तेल और गैस एवं कोल-बेड मीथेन ब्लॉक की पेशकश की गई है।

HELP क्या है?

मार्च 2016 में पूर्ववर्ती ‘नई अन्वेषण लाइसेंसिंग नीति’ (New Exploration Licensing Policy – NELP) की जगह हाइड्रोकार्बन अन्वेषण और लाइसेंसिंग नीति (HELP) को मंजूरी दी गई थी।

HELP की मुख्य विशेषताएं:

  • राजस्व साझा अनुबंध,
  • पारंपरिक और साथ ही अपरंपरागत हाइड्रोकार्बन संसाधनों की खोज और उत्पादन के लिए एकल लाइसेंस,
  • ओपन एकरेज लाइसेंसिंग नीति (निवेशकों के लिए ब्लॉकों का विकल्प),
  • विपणन और मूल्य निर्धारण स्वतंत्रता,
  • कोई तेल उपकर नहीं है,
  • साल भर बोली, आदि।

सीसा विषाक्तता

संदर्भ: नीति आयोग और वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) की एक रिपोर्ट में पाया गया है कि भारत दुनिया का सबसे अधिक स्वास्थ्य और आर्थिक बोझ ‘सीसा विषाक्तता’ (Lead Poisoning) के कारण उठाता है।

रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु:

  • बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, झारखंड, छत्तीसगढ़ और आंध्र प्रदेश ‘सीसा विषाक्तता’ से सबसे अधिक प्रभावित राज्य हैं।
  • प्रभावित बच्चे: 2020 यूनिसेफ की रिपोर्ट के अनुसार भारत के आधे बच्चे ‘सीसा विषाक्तता’ से शिकार थे।

‘सीसा विषाक्तता’ क्या है?

यह शरीर में भारी धातु के सीसा (लेड) के बढ़े हुए स्तर और शरीर की विभिन्न प्रक्रियाओं के साथ इसके हस्तक्षेप के कारण होने वाली एक चिकित्सा स्थिति है, जिसके परिणामस्वरूप कई अंगों और ऊतकों में विषाक्तता होती है जिसे प्लंबिज्म कहा जाता है।

सीसा, बच्चों को किस प्रकार प्रभावित करता है?

  1. सीसा (Lead) एक शक्तिशाली न्यूरोटॉक्सिन (Potent Neurotoxin) होता है जो बच्चों के दिमाग को अपूरणीय क्षति पहुंचाता है।
  2. यह विशेष रूप से 5 वर्ष से कम उम्र के शिशुओं और बच्चों के लिए घातक होता है, क्योंकि यह उनके मस्तिष्क को पूरी तरह से विकसित होने से पूर्व ही क्षति पहुंचाता है, जिससे उन्हें आजीवन तंत्रिका-तंत्र संबंधी (Neurological), संज्ञानात्मक (Cognitive) तथा शारीरिक विकलांगता होने का संकट रहता है।
  3. बचपन में सीसा-विषाक्तता से संक्रमित होने का संबध मानसिक स्वास्थ्य और व्यवहार संबंधी समस्याओं तथा अपराध और हिंसा में वृद्धि से भी जुड़ा हुआ है।
  4. बड़े होने पर बच्चों को गंभीर परिणाम भुगतने पड़ते हैं, जिसमें उनके लिए गुर्दा फेल होने तथा हृदय रोगों का खतरा बढ़ जाता है।

सीसा विषाक्तता में योगदान करने वाले कारक:

  1. लेड-एसिड बैटरियों का अविधिवत तथा घटिया पुनर्चक्रण (Recycling)।
  2. वाहन बैटरी रीसाइक्लिंग विनियमन और अवसंरचना के बिना वाहनों की विक्री में वृद्धि।
  3. अक्सर अवैध और खतरनाक रीसाइक्लिंग कार्यों में लगे अप्रशिक्षित कारीगर बैटरियों को खुले में तोड़ते हैं, जिससे तेज़ाब और सीसे की धूल (lead dust) मिटटी में मिल जाती है और अंततः जसल स्रोतों में पहुँच जाती है।
  4. अवशिष्ट सीसे को कच्ची और खुली भट्टियों में गलाया जाता है, जिससे आसपास की हवा विषाक्त हो जाती है।

समय की मांग:

निम्नलिखित क्षेत्रों में एक समन्वित और ठोस दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है:

  1. उचित निगरानी और रिपोर्टिंग।
  2. रोकथाम और नियंत्रण के उपाय।
  3. प्रबंधन और उपचार।
  4. जन जागरूकता और व्यवहार में परिवर्तन।
  5. क़ानून और नीतियां।
  6. वैश्विक और क्षेत्रीय स्तर पर कार्रवाई।

इंस्टा फैक्ट्स:

  1. मनुष्य के शरीर में सीसा (Lead) मस्तिष्क, यकृत, गुर्दे और हड्डियों में पाया जाता है। यह दांतों और हड्डियों में जमा होता है, जहां यह समय के साथ इकठ्ठा हो जाता है।
  2. गर्भावस्था के दौरान हड्डियों में पाया जाने वाला सीसा रक्त में स्रावित हो जाता है, जिससे विकासशील भ्रूण को सीसा-संक्रमण का खतरा हो सकता है।
  3. WHO ने सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक प्रमुख 10 रसायनों में सीसे को शामिल किया है।
  4. WHO ने सीसयुक्त पेंट निर्माण की समाप्ति के लिए संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के साथ वैश्विक गठबंधन किया है।

 मजबूत हाइब्रिड इलेक्ट्रिक वाहन (FFV-SHEV)

संदर्भ: हाल ही में, केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्रालय द्वारा  भारत में ‘फ्लेक्सी-फ्यूल स्ट्रॉन्ग हाइब्रिड इलेक्ट्रिक व्हीकल्स’ (Flexi-fuel vehicles – Strong Hybrid Electric Vehicles: FFV-SHEV) परियोजना शुरू की गई है।

  • फ्लेक्सी-फ्यूल वाहन (FFV) पेट्रोल के साथ-साथ मिश्रित पेट्रो-इथेनॉल मिश्रण पर भी चल सकते हैं।
  • FFV- स्ट्रॉन्ग हाइब्रिड इलेक्ट्रिक वाहन (FFV-SHEV) 100% पेट्रोल या पेट्रोल + इथेनॉल / मेथनॉल या इलेक्ट्रिक पावर के संयोजन पर चल सकते हैं।

हाइब्रिड इलेक्ट्रिक वाहनों के प्रकार:

  1. पूर्ण हाइब्रिड, ये एक ही समय में या स्वतंत्र रूप से बिजली और दहन इंजन का उपयोग कर सकते हैं।
  2. माइल्ड हाइब्रिड, एयर कंडीशनिंग या अन्य उपकरणों को चलाने के लिए लिथियम-आयन बैटरी से जुड़ा स्टार्टर जनरेटर।
  3. मजबूत हाइब्रिड, बैटरी को इंजन या रीजेनरेटिव ब्रेकिंग द्वारा पूरी तरह से रिचार्ज किया जा सकता है।

तमिलनाडु में स्लेंडर लोरिस अभयारण्य

भारत के पहले पतले लोरिस अभयारण्य को सूचित किया

संदर्भ: हाल ही में, तमिलनाडु सरकार ने भारत के पहले ‘कडावुर स्लेंडर लोरिस अभयारण्य’ (Kaduvur Slender Loris Sanctuary) को अधिसूचित किया है। यह अभ्यारण्य राज्य के करूर और डिंडीगुल जिलों में 11,806 हेक्टेयर क्षेत्र में विस्तारित है।

स्लेंडर लोरिस:

  • स्लेंडर लोरिस (Slender Loris) छोटे निशाचर स्तनधारी जीव हैं, और अपना अधिकांश जीवन पेड़ों पर बिताते हैं।
  • स्लेंडर लोरिस कृषि फसलों के कीटों का जैविक शिकार करती है और किसानों को लाभ पहुंचाती है।
  • यह स्थलीय वातावरण में रहने वाली प्रजातियों की पारिस्थितिक भूमिका और महत्व की एक विस्तृत श्रृंखला है।
  • कडावुर का अस्तित्व उसके आवास सुधार, संरक्षण के प्रयासों और खतरों के शमन पर निर्भर करता है।
  • ये भारत और श्रीलंका के मूल निवासी हैं। वे उष्णकटिबंधीय जंगलों, झाड़ीदार जंगलों, अर्ध-पर्णपाती जंगलों और दलदलों में पाए जाते हैं।
  • IUCN स्थिति – लुप्तप्राय
  • CITES स्थिति – परिशिष्ट II
  • वन्यजीव संरक्षण अधिनियम – अनुसूची I

सम्बंधित खबर:

भारत का पहला डुगोंग संरक्षण रिजर्व (पाक खाड़ी में) भी तमिलनाडु में है।

स्लॉथ बेयर

संदर्भ: 12 अक्तूबर को पहला ‘विश्व स्लॉथ बियर दिवस’ (World Sloth Bear Day) मनाया गया था।

इसका उद्देश्य भारतीय उपमहाद्वीप में स्थानिक भालू प्रजातियों के बारे में जागरूकता पैदा करने और संरक्षण प्रयासों को मज़बूत करना।

स्लॉथ बियर (Sloth Bear):

ये भारतीय उपमहाद्वीप के लिए स्थानिकहैं और उनकी लगभग 90% आबादी भारत में (लगभग पूरे भारत में) पायी जाती है, इसके अलावा श्रीलंका और नेपाल में छोटी संख्या में पाए जाते हैं।

  • स्लॉथ बियर सर्वाहारी होते हैं। और ये शीतस्वाप (हाइबरनेट) नहीं करते हैं।
  • IUCN स्थिति – संवेदनशील
  • वन्यजीव संरक्षण अधिनियम में अनुसूची I
  • CITES – परिशिष्ट I

भारत में पाई जाने वाली अन्य भालू प्रजातियाँ:

  1. एशियाई काला भालू – ये पूरे हिमालय में पाए जाते हैं। ये IUCN की ‘असुरक्षित’ श्रेणी में सूचीबद्ध हैं।
  2. हिमालयी भूरा भालू- वे IUCN की ‘अति संकटग्रस्त’ श्रेणी में सूचीबद्ध हैं। भारत, पाकिस्तान, नेपाल, चीन आदि में पाया जाता है।
  3. सूर्य भालू (Sun Bear)- यह एक बहुत ही दुर्लभ और मायावी जानवर हैं, और केवल उत्तर-पूर्व भारत में पाए जाते हैं। ये IUCN की ‘असुरक्षित’ श्रेणी में सूचीबद्ध हैं।