विषयसूची
सामान्य अध्ययन-II
- विकेंद्रीकृत शासन-प्रणाली का सशक्तिकरण
- मानसिक स्वास्थ्य के लांछन का समाधान करने की आवश्यकता
मुख्य परीक्षा संवर्धन हेटी पाठ्य सामग्री (निबंध/नैतिकता)
- मैत्री बेंच
- टीआउमगाइना (Tlawmngaihna): जीवन के प्रति एक भारतीय राज्य का सामंजस्यपूर्ण दृष्टिकोण
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य
- महाकालेश्वर मंदिर कॉरिडोर
- ‘सभी राज्यों में टेली- मानसिक स्वास्थ्य सहायता और नेटवर्किंग (टेली-मानस)’ पहल
- प्रत्यक्ष विदेशी उत्पाद नियम
- वैश्विक खाद्य सुरक्षा मंच
- ‘अमूल’ का पांच सहकारी समितियों में विलय
- ग्रीनवाशिंग प्रक्रिया
- प्रवासी पक्षियों पर प्रकाश प्रदूषण का बढ़ता प्रभाव
- चंद्रयान-2 द्वारा चंद्रमा की सतह पर सोडियम की मात्रा का मापन
- मानचित्रण
सामान्य अध्ययन-II
विषय: शासन व्यवस्था, पारदर्शिता और जवाबदेही के महत्त्वपूर्ण पक्ष, ई-गवर्नेंस- अनुप्रयोग, मॉडल, सफलताएँ, सीमाएँ और संभावनाएँ; नागरिक चार्टर, पारदर्शिता एवं जवाबदेही और संस्थागत तथा अन्य उपाय।
विकेंद्रीकृत शासन-प्रणाली का सशक्तिकरण
संदर्भ: संविधान में 73वें संशोधन को 30 साल पूरे हो चुके हैं। इस संशोधन के माध्यम से ग्राम, मध्यवर्ती और जिला स्तर पर ‘त्रिस्तरीय पंचायत राज व्यवस्था’ की परिकल्पना की गई है।
30 साल से चली आ रही समस्याएं:
- अनियमित चुनाव: ‘राज्य निर्वाचन आयोग’ के पास पूरी शक्ति नहीं है और इसे केवल ‘चुनाव प्रक्रिया’ संचालित करने के लिए नियोजित किया जाता है। उदाहरण के लिए, लगभग 10 साल से अधिक के अंतराल के बाद, तमिलनाडु में ‘शहरी स्थानीय निकाय चुनाव’ फरवरी 2022 में एक ही चरण में आयोजित किए गए थे।
- सत्ता के प्रभावी हस्तांतरण का अभाव: पंचायतों को ‘सत्ता और अधिकार का हस्तांतरण’ किया जाना राज्यों के विवेक पर छोड़ दिया गया है। कुछ राज्यों में, ईंधन और चारा, गैर-पारंपरिक ऊर्जा स्रोत, बिजली के वितरण सहित ग्रामीण विद्युतीकरण आदि जैसे कुछ महत्वपूर्ण विषयों को स्थानीय निकायों के लिए हस्तांतरित नहीं किया गया है।
- अपर्याप्त अनुदान या निधि वितरण: संवैधानिक अधिकारिता के बावजूद, स्थानीय निकायों को उन्हें सौंपे गए विभिन्न कार्यकलापों को करने के लिए अपर्याप्त वित्त की समस्या का सामना करना पड़ता है। कुछ राज्यों में ‘राज्य वित्त आयोग’ का गठन नियमित आधार पर नहीं होता है।
- यहाँ तक कि, संघ और राज्य वित्त आयोगों द्वारा अनिवार्य अनुदानों के मामले में भी प्रदान की गयी अधिकांश राशि अनमनीय (Inflexible) होती है, और इसके उपयोग पर कई शर्ते अधिरोपित होती हैं।
- नौकरशाही का अत्यधिक नियंत्रण: कुछ राज्यों में ग्राम पंचायतों को ‘अधीनस्थ स्थिति’ पर रखा जाता है।
- ढांचागत चुनौतियां: कुछ ग्राम पंचायतों के पास अपना ‘पंचायत भवन’ भी नहीं है और ये स्कूलों, आंगनवाड़ी केंद्रों और अन्य स्थानों के साथ जगह साझा करते हैं। कुछ ग्राम पंचायतों के पास अपना भवन है लेकिन इनमे शौचालय, पेयजल और बिजली कनेक्शन जैसी बुनियादी सुविधाएं नहीं हैं।
- खराब निगरानी: मौजूदा नियमों का उल्लंघन किया जा रहा है अथवा नहीं, इसकी जांच करने के लिए निगरानी व्यवस्था की स्थिति खराब है।
उठाए गए कदम:
- ई-ग्राम स्वराज पोर्टल: पंचायती राज मंत्रालय द्वारा शुरू किया गया है। इसका उद्देश्य योजना और कार्यक्रम कार्यान्वयन में बेहतर पारदर्शिता लाना है।
- राष्ट्रीय ग्राम स्वराज अभियान (RGSA): ग्रामीण स्थानीय निकायों के समक्ष आने वाली चुनौतियों का समाधान करने के लिए और ग्राम पंचायतों के लिए धन प्रवाह में वृद्धि करने हेतु।
- पंचायत सशक्तिकरण एवं उत्तरदायी प्रोत्साहन योजना: यह एक केंद्रीय क्षेत्र की योजना है और इसका उद्देश्य पंचायतों को सशक्त करना एवं उत्तरदायी बनाना है ताकि इसकी कार्य-पद्धति आसान बनाई जा सके एवं इसमें पारदर्शिता लाई जा सके।
- आपराधिक तत्व और ठेकेदार: ये स्थानीय सरकार के चुनावों के प्रति आकर्षित होते हैं, क्योंकि उनके पास बड़ी मात्रा में धन होता है।
सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च के अनुसार चौदहवें वित्त आयोग द्वारा राज्यों को पांच मुख्य कार्यों के संबंध में शक्तियां हस्तांतरित की गई हैं:
- जल आपूर्ति
- स्वच्छता
- सड़कें और संचार
- स्ट्रीटलाइट प्रावधान
- ग्राम पंचायतों को सामुदायिक संपत्ति का प्रबंधन
आगे की राह:
द्वितीय ‘प्रशासनिक सुधार आयोग’ के अनुसार:
- पंचायतों को स्पष्ट रूप से “स्वशासन संस्था” घोषित किया जाना चाहिए और उन्हें विशेष कार्य सौंपे जाने चाहिए।
- स्थानीय निकाय चुनावों में देरी से बचने के लिए, राज्य चुनाव आयोग को परिसीमन प्रक्रिया शुरू करने का अधिकार दिया जा सकता है और सरकार परिसीमन के लिए कानून या नियमों द्वारा बोर्ड को दिशानिर्देश प्रदान कर सकती है।
अन्य आवश्यक उपाय:
- शहरी क्षेत्रों में वार्ड समितियों और ग्राम सभाओं को पुनर्जीवित करना होगा। छोटी-छोटी चर्चाओं के माध्यम से ग्राम सभा के साथ विचार-विमर्श किया जा सकता है, जहां हर कोई वास्तव में भाग ले सकता है।
- स्थानीय सरकार के संगठनात्मक ढांचे को मजबूत करना होगा। स्थानीय सरकारों को राज्य के विभागों को जवाबदेह ठहराने और उन्हें गुणवत्तापूर्ण, भ्रष्टाचार मुक्त सेवा प्रदान करने में सक्षम होना चाहिए।
- बिना स्थानीय कराधान के ‘जवाबदेह ग्राम पंचायतों’ का निर्माण नहीं हो सकता है। कर भुगतान और उच्च जवाबदेही के बीच संबंध सर्वविदित है और इसे मजबूत करने की आवश्यकता है।
निष्कर्ष:
भारत में पंचायती राज व्यवस्था को मजबूत किया जाना चाहिए क्योंकि यह स्थानीय जरूरतों को पूरा करती है और उत्तरदायी शासन सुनिश्चित करती है। संविधान के 73वें संशोधन अधिनियम का क्रियान्वयन कुशल तरीके से किया जाना चाहिए ताकि अधिनियम के उद्देश्यों को हासिल किया जा सके।
इंस्टा लिंक्स:
मेंस लिंक:
“भारत में स्थानीय स्वशासन प्रणाली शासन का एक प्रभावी साधन साबित नहीं हुई है।” इस कथन का समालोचनात्मक परीक्षण कीजिए और स्थिति को सुधारने के लिए अपने विचार दीजिए। (यूपीएससी 2017)
स्रोत: द हिंदू
विषय: स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय।
मानसिक स्वास्थ्य के लांछन का समाधान करने की आवश्यकता
संदर्भ: प्रख्यात चिकित्सा पत्रिका ‘द लैंसेट’ ने ‘विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस’ (World Mental Health Day) के अवसर पर ‘मानसिक स्वास्थ्य’ से जुड़े ‘लांछन’ और ‘भेदभाव’ (Stigma and Discrimination) को समाप्त करने के लिए उग्र- सुधारवादी कार्रवाई का आह्वान करते हुए एक नई रिपोर्ट जारी की है।
रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष:
- नकारात्मक प्रभाव: ‘मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति से ग्रसित 90% व्यक्ति लांछन या कलंक और भेदभाव की वजह से नकारात्मक रूप से प्रभावित महसूस करते हैं। 80% व्यक्तियों के अनुसार- ये ‘लांछन और भेदभाव’ ‘मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति’ से भी बदतर हो सकते हैं।
- मीडिया की भूमिका: सर्वेक्षण में शामिल 90% व्यक्तियों के अनुसार मीडिया इस ‘लांछन’ को कम करने में एक प्रमुख भूमिका निभा सकता है।
- विश्व स्तर पर प्रत्येक आठ में से एक व्यक्ति, अर्थात लगभग एक अरब लोग, मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति के साथ जी रहे हैं।
- महामारी के पहले वर्ष में, ‘अवसाद’ और ‘चिंता’ (Anxiety) के प्रसार में अनुमानित 25 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी।
‘लांछन’ का नकारात्मक प्रभाव:
- सामाजिक बहिष्कार: ‘लांछन’ (Stigma), मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति वाले व्यक्तियों के सामाजिक बहिष्कार और अक्षमता का कारण बन सकता है।
- स्वास्थ्य देखभाल तक पहुंच: स्वास्थ्य सेवा तक पहुंचने में समस्याओं का कारण बन सकता है।
- रोजगारः रोजगार हासिल करने में चुनौतियां।
- समय से पहले मौत: इससे स्वास्थ्य संबंधी जटिलताओं की संभावना बढ़ जाती है जिससे व्यक्ति की समय से पहले मौत हो जाती है।
आयोग द्वारा सुझाव:
- सरकारों, अंतर्राष्ट्रीय संगठनों, नियोक्ताओं, स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं और मीडिया संगठनों द्वारा तत्काल कार्रवाई किए जाने की आवश्यकता है;
- मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति से गुजर चुके व्यक्तियों का सक्रिय योगदान आवश्यक है, और मानसिक स्वास्थ्य कलंक और भेदभाव को खत्म करने के लिए इनके साथ मिलकर काम किया जाना चाहिए।
भारत के संदर्भ में:
- लांछन में कमी: देश में धीरे-धीरे ‘मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति’ के ‘लांछन’ में कमी आ रही है, और फिलहाल यह एक वास्तविक और वर्तमान समस्या बनी हुई है।
- गंभीर मानसिक विकार वाली महिलाएं: इन महिलाओं और उनके परिवार के सदस्यों को ‘लांछन’ का अधिक सामना करना पड़ता है। इसका विवाह और रोजगार पर भी प्रभाव पड़ता है।
‘लांछन’ कम करने के उपाय:
- मानसिक बीमारी से ग्रसित और सामान्य व्यक्तियों के बीच ‘सामाजिक संपर्क’, ‘मानसिक बीमार’ होने के लांछन और भेदभाव को कम करने का सबसे प्रभावी तरीका है।
- सभी देशों में ‘आत्महत्या’ से जुड़े कलंक को मिटाने हेतु ‘आत्महत्या’ को अपराध की श्रेणी से बाहर करने के लिए कदम उठाया जाना चाहिए, इससे इन घटनाओं को कम किया जा सकता है।
- नियोक्ताओं की शैक्षिणक अवसरों, काम में भागीदारी और काम पर लौटने के कार्यक्रमों तक पहुंच होनी चाहिए।
लैंसेट ग्लोबल हेल्थ कमीशन: यह 18 देशों के 30 शिक्षाविदों, नीति निर्माताओं और स्वास्थ्य प्रणाली के हितधारकों का एक समूह है। यह आयोग, वर्तमान ज्ञान की समीक्षा करता है, नए अनुभवजन्य कार्य तैयार करता है, और नीतिगत सिफारिशें प्रदान करता है।
मानसिक स्वास्थ्य (Mental health)‘स्वास्थ्य’ की वह स्थिति होती है जिसमें व्यक्ति अपनी क्षमताओं का एहसास करता है, जीवन के सामान्य तनावों का सामना कर सकता है, उत्पादक और फलदायी रूप से काम कर सकता है, और अपने समुदाय में योगदान करने में सक्षम होता है।
इंस्टा लिंक्स:
मेंस लिंक:
भारत में ‘सभी के लिए स्वास्थ्य’ का लक्ष्य हासिल करने के लिए उपयुक्त ‘स्थानीय समुदाय-स्तरीय स्वास्थ्य देखभाल हस्तक्षेप’ एक पूर्वापेक्षा है। समझाइए। (यूपीएससी 2018)
स्रोत: द हिंदू
मुख्य परीक्षा संवर्धन हेटी पाठ्य सामग्री (निबंध/नैतिकता)
मैत्री बेंच
‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ और मध्य एशियाई देश ‘कतर’ द्वारा ‘विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस’ (10 अक्टूबर) के अवसर पर एक संयुक्त परियोजना शुरू की गयी है। इसके तहत, स्वास्थ्य – मानसिक से लेकर शारीरिक स्वास्थ्य – और इसमें खेलों के महत्व को उजागर करने हेतु ‘मैत्री बेंचों’ (Friendship Benches) को स्थापित किया जा रहा है।
यह अभूतपूर्व ‘फ्रेंडशिप बेंच प्रोजेक्ट’ सबसे पहले जिम्बाब्वे में WHO के सहयोग से शुरू किया गया था।
मानसिक स्वास्थ्य के लिए अन्य पहल:
- फीफ़ा एवं ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ (FIFA-WHO) द्वारा #REACHOUT अभियान;
- ‘क़तर’ द्वारा “आर यू ओके?” प्रोजेक्ट।
टीआउमगाइना (Tlawmngaihna): जीवन के प्रति एक भारतीय राज्य का सामंजस्यपूर्ण दृष्टिकोण
पूर्वोत्तर भारत के एक राज्य मिजोरम में, आर्थिक समृद्धि के बजाय ‘समाज में सद्भाव और स्थिरता’ जीवन के सबसे मूल्यवान उद्देश्य माने जाते हैं। मिज़ो समुदाय इसे ‘टीआउमगाइना’ (Tlawmngaihna) कहता है।
‘टीआउमगाइना’ मिज़ो लोगों की नैतिकता की संहिता है। ‘टीआउमगाइना’ अनूदित न किया जा सकने वाला शब्द है और जिसका अर्थ है कि ‘सभी को सत्कारी, उदार, नि:स्वार्थ और दूसरों की सहायता करने वाला होना चाहिए’। एक मिज़ो के लिए ‘टीआउमगाइना’ (Tlawmngaihna) का अर्थ, दूसरों के लिए नि:स्वार्थ सेवा, और ‘समुदाय’ को अपने से अधिक प्राथमिकता देना है।
- ‘टीआउमगाइना’ दूसरों की मदद करने की भावना है, जिसने 1958-60 में मिजो हिल्स में अकाल के दौरान एक भूमिका निभाई थी।
- इस अकाल के दौरान जब मिज़ो लोगों को भारत सरकार से बहुत कम या बिल्कुल भी सहयोग नहीं मिला, तो उन्होंने अपने अस्तित्व के लिए एक-दूसरे के साथ, जो कुछ भी उनके पास था, सब साझा किया। “मिज़ो में, एक कहावत है, ‘सेम सेम दम दम, ए बिल थी थी’ (sem sem dam dam, ei bil thi) अर्थात “जो जमा करते हैं वे नष्ट हो जाएंगे लेकिन जो साझा करेंगे वे जीवित रहेंगे”।
- इस ‘संहिता’ ने उन्हें COVID महामारी के दौरान भी जीवित रहने में मदद की।
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य
महाकालेश्वर मंदिर कॉरिडोर
संदर्भ– प्रधानमंत्री द्वारा मध्य प्रदेश के उज्जैन में श्री महाकाल लोक में ‘महाकाल लोक परियोजना’ का पहला चरण राष्ट्र को समर्पित किया गया।
- ‘महाकालेश्वर मंदिर कॉरिडोर’ परियोजना की कुल लागत लगभग 850 करोड़ रुपये है। इस मंदिर में आने वाले दर्शनार्थियों की संख्या वर्तमान में लगभग 1.5 करोड़ प्रति वर्ष है और इसके दोगुना होने की उम्मीद है। इस परियोजना के विकास की योजना दो चरणों में बनाई गई है।
- इस कॉरिडोर (महाकाल पथ) की लंबाई 900 मीटर से अधिक है और इसमें भगवान शिव और देवी शक्ति की लगभग 200 मूर्तियां और अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियां स्थापित की जाएंगी।
महत्व: ‘महाकालेश्वर मंदिर कॉरिडोर’ लोगों को संस्कृति और परंपराओं से जोड़ने, आजीविका के अवसर पैदा करने और शहर की अर्थव्यवस्था में योगदान देने के लिए धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए उज्जैन को ‘केंद्रीय ग्रंथि’ बनाने में मदद करेगा।
‘महाकालेश्वर मंदिर’ के बारे में-
- महाकालेश्वर मंदिर (Mahakaleshwar temple), शिप्रा नदी के तट पर बसे प्राचीन शहर ‘उज्जैन’ में भगवान् शिव को समर्पित बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है।
- गुप्त काल के महान संस्कृत कवि कालिदास ने अपनी प्रसिद्ध रचना ‘मेघदूत’ में मंदिर के अनुष्ठानों का उल्लेख किया है।
- मंदिर परिसर को इल्तुतमिश ने 1234-35 में उज्जैन पर हमले के दौरान नष्ट कर दिया था। वर्तमान मंदिर संरचना का पुनर्निर्माण मराठा सेनापति रानोजी शिंदे ने 1734 ईस्वी (बाजी राव प्रथम के शासनकाल) में करवाया था।
उज्जैन शहर को पहले ‘अवंतिका’ के नाम से जाना जाता था, इसे एक धार्मिक केंद्र का दर्जा प्राप्त है। यह उन प्रमुख शहरों में से एक था जहाँ छात्र ‘पवित्र शास्त्रों’ का अध्ययन करने जाते थे।
‘सभी राज्यों में टेली- मानसिक स्वास्थ्य सहायता और नेटवर्किंग (टेली-मानस)’ पहल
संदर्भ: विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस के अवसर पर, केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा ‘सभी राज्यों में टेली- मानसिक स्वास्थ्य सहायता और नेटवर्किंग (टेली-मानस)’ पहल (Tele Mental Health Assistance and Networking Across States (Tele-MANAS) initiative) शुरू की गई।
‘टेली-मानस’ (Tele-MANAS) एक 24X7 कॉल सेंटर है, जिसका उद्देश्य पूरे देश में, विशेषकर सुदूर व सुविधाओं से वंचित क्षेत्रों के लोगों को चौबीसों घंटे नि:शुल्क टेली-मानसिक स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करना है।
प्रमुख बिंदु:
- इस कार्यक्रम में 23 उत्कृष्ट टेली-मानसिक स्वास्थ्य केंद्रों का एक नेटवर्क शामिल हैं। इनमें NIMHANS एक नोडल केंद्र है।
- तकनीकी सहायता: अंतरराष्ट्रीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान- बेंगलुरू (आईआईटी-बी) और राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रणाली संसाधन केंद्र (NHSRC) तकनीकी सहायता प्रदान करेगा।
उपयोग:
- यह तत्काल मानसिक स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने में मदद करेगा।
- यह देखभाल की निरंतरता की सुविधा प्रदान करेगा।
टेली-मानस को निम्नलिखित अन्य सेवाओं से जोड़ा जाएगा:
- राष्ट्रीय टेली-परामर्श सेवा, ई-संजीवनी, आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन, मानसिक स्वास्थ्य पेशेवर, आयुष्मान भारत स्वास्थ्य व कल्याण केंद्र और आपातकालीन मनोरोग सुविधाएं।
- इसमें व्यापक रूप से मानसिक स्वास्थ्य और रोग को शामिल किया जाएगा और मानसिक स्वास्थ्य देखभाल प्रदान करने वाली सभी प्रणालियों को एकीकृत किया जाएगा।
प्रत्यक्ष विदेशी उत्पाद नियम
संदर्भ: हाल ही में, अमेरिकी अधिकारियों ने चीन के उन्नत कंप्यूटिंग और सुपरकंप्यूटर उद्योग को ‘उन्नत कंप्यूटिंग चिप्स’ प्राप्त करने से रोकने के लिए ‘प्रत्यक्ष विदेशी उत्पाद’ नियम (Foreign Direct Product Rule) लागू किए हैं।
‘प्रत्यक्ष विदेशी उत्पाद नियम’ क्या है?
यह नियम, अमेरिकी नियामकों को- विदेशों और चीन के बीच लेनदेन के लिए, अमेरिका की सीमाओं से परे अपनी प्रौद्योगिकी निर्यात नियंत्रण शक्तियों का विस्तार करने में सक्षम बनाता है।
- इसे पहली बार 1959 में लागू किया गया था।
- यह नियम मुख्य रूप से कहता है, कि यदि कोई उत्पाद अमेरिकी तकनीक का उपयोग करके बनाया गया है, तो अमेरिकी सरकार के पास उसे बेचने से रोकने की शक्ति है – जिसमें किसी बाह्य देश में बने उत्पाद भी शामिल हैं।
इस निर्णय का महत्व: अमेरिका का यह निर्णय, चीनी सुपर कंप्यूटरों में उन्नत चिप उपयोग को रोक सकता है। इन उन्नत चिप्स का उपयोग परमाणु हथियार और अन्य सैन्य अनुप्रयोगों को विकसित करने के लिए किया जा सकता है।
इस नियम के अंतर्गत शामिल देश: यह नियम वर्तमान में रूस और बेलारूस पर लागू है। इन देशों पर यह नियम ‘यूक्रेन पर आक्रमण’ के विरोध में लागू किया गया था।
वैश्विक खाद्य सुरक्षा मंच
संदर्भ: ‘अंतर्राष्ट्रीय वित्त कॉर्प’ (International Finance Corp) द्वारा खाद्य अस्थिरता से प्रभावित देशों को स्थायी उत्पादन और खाद्य स्टॉक के वितरण हेतु निजी क्षेत्र का समर्थन करने के लिए ‘वैश्विक खाद्य सुरक्षा मंच’ (प्लेटफ़ॉर्म) लॉन्च किया है।
6 बिलियन अमरीकी डालर की यह वित्तीय सुविधा -‘ग्लोबल फ़ूड सिक्योरिटी प्लेटफ़ॉर्म’- कमजोर समुदायों के लिए खाद्य आपूर्ति और उर्वरक जैसी अन्य महत्वपूर्ण वस्तुओं के प्रवाह को बढ़ावा देने में मदद करेगी।
अंतर्राष्ट्रीय वित्त निगम:
‘अंतर्राष्ट्रीय वित्त निगम’ (International Finance Corporation – IFC) एक अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थान है, इसे 1956 में विश्व बैंक समूह की निजी क्षेत्र की शाखा के रूप में स्थापित किया गया था।
- यह विकासशील देशों में निजी क्षेत्र के विकास को प्रोत्साहित करने के लिए निवेश, सलाहकार और परिसंपत्ति प्रबंधन सेवाएं प्रदान करता है।
- यह विश्व बैंक समूह का सदस्य है और इसका मुख्यालय वाशिंगटन, डी.सी., संयुक्त राज्य अमेरिका में है।
‘अमूल’ का पांच सहकारी समितियों में विलय
संदर्भ: अमूल को पांच अन्य सहकारी समितियों के साथ मिलाकर एक ‘बहु-राज्य सहकारी समिति’ (Multi-State Cooperative Society – MSCS) बनाई जाएगी।
इस निर्णय के पीछे तर्क:
- ‘बहु-राज्य सहकारी समिति’ (MSCS) प्रमाणन के बाद उत्पादों का निर्यात सुनिश्चित करेगी ताकि लाभ सीधे किसानों के बैंक खातों में जा सके।
- भारत में अपने दूध और दुग्ध उत्पादों को भूटान, नेपाल, बांग्लादेश और श्रीलंका जैसे देशों को निर्यात करने की क्षमता है।
‘अमूल’ के बारे में:
- अमूल (AMUL) का अर्थ है “अनमोल” और यह संस्कृत शब्द ‘अमूल्य’ से लिया गया है। इसका मतलब ‘आनंद मिल्क यूनियन लिमिटेड’ (Anand Milk Union Limited – AMUL) है।
- 1946 में स्थापित ‘अमूल’ गुजरात के आणंद में स्थित एक भारतीय डेयरी राज्य सरकार की सहकारी समिति है।
- यह गुजरात कोऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन लिमिटेड (GCMMF) द्वारा प्रबंधित एक सहकारी ब्रांड है।
- अमूल के विपणन की सफलता का श्रेय वर्गीज कुरियन (भारत में श्वेत क्रांति के जनक) को जाता है।
भारत विश्व का शीर्ष दुग्ध उत्पादक देश है और यहाँ मवेशियों की आबादी दुनिया में सबसे ज्यादा है। उत्तर प्रदेश, भारत में सबसे अधिक दूध उत्पादन करने वाला राज्य है, जो कुल दुग्ध उत्पादन में लगभग 18% का योगदान करता है।
ग्रीनवाशिंग प्रक्रिया
संदर्भ: ‘संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क अभिसमय’ (United Nations Framework Convention on Climate Change – UNFCCC) के पक्षकारों के 27वें सम्मलेन (CoP 27) के अध्यक्ष देश ‘मिस्र’ द्वारा ‘कोका-कोला कंपनी’– जोकि दुनिया के सबसे बड़े प्लास्टिक प्रदूषकों में से एक है- को इस वर्ष के सबसे बड़े जलवायु परिवर्तन सम्मेलन के ‘आधिकारिक प्रायोजक’ (Official Provider) और सहयोगी के रूप में नामित किया गया है।
- कार्यकर्ताओं और टिप्पणीकारों ने दुनिया के सबसे बड़े जलवायु शिखर सम्मेलन के कोका-कोला द्वारा प्रायोजन को ‘ग्रीनवाशिंग प्रक्रिया’ (Greenwashing Exercise) बताया है।
ग्रीनवॉशिंग (Greenwashing) एक गलत धारणा का संदेश देने या कंपनी के उत्पाद पर्यावरण की दृष्टि से बेहतर होने के बारे में भ्रामक जानकारी प्रदान करने की प्रक्रिया है। ‘ग्रीनवॉशिंग’ को उपभोक्ताओं को यह विश्वास दिलाने – कि कंपनी के उत्पाद पर्यावरण के अनुकूल हैं- का एक ‘निराधार दावा’ माना जाता है ।
चित्र: ग्रीनवॉशिंग के तरीके
प्रवासी पक्षियों पर प्रकाश प्रदूषण का बढ़ता प्रभाव
संदर्भ: प्रकाश प्रदूषण (light pollution) हर साल लाखों पक्षियों की मौत का कारण बनता है।
‘प्रकाश प्रदूषण’ क्या है?
प्रकाश प्रदूषण (light pollution) अथवा ‘रात में कृत्रिम प्रकाश’, खुली जगहों पर कृत्रिम प्रकाश का अत्यधिक या खराब उपयोग होता है, जिसके मानव, वन्य जीवन और हमारी जलवायु के लिए गंभीर पर्यावरणीय परिणाम हो सकते हैं।
‘प्रकाश प्रदूषण’ के घटक:
- चकाचौंध (Glare): अत्यधिक और अनियंत्रित चमक के कारण होने वाली दृश्य संवेदना।
- स्काईग्लो (Skyglow): आबादी वाले क्षेत्रों में रात्रि के समय आसमान का चमकना
- प्रकाश अतिचार (Light trespass): यह तब होता है जब ‘स्पिल लाइट’ (Spill Light) को वहां डाला जाता है जहां इसकी आवश्यकता नहीं होती है।
- कोलाहल (Clutter): प्रकाश स्रोतों का चमकदार, भ्रमित करने वाला और अत्यधिक समूहन।
प्रकाश प्रदूषण के मुख्य कारण:
- ‘प्रकाश प्रदूषण’ औद्योगिक सभ्यता का एक दुष्परिणाम है।
- इसके स्रोतों में बाहरी और आंतरिक प्रकाश व्यवस्था का निर्माण, विज्ञापन, वाणिज्यिक संपत्तियां, कार्यालय, कारखाने, स्ट्रीट लाइट और प्रबुद्ध खेल स्थल शामिल हैं।
पक्षियों पर प्रभाव: प्रवासन के उचित समय का अंदाज़ा लगाने में गलतियाँ, प्रवासन पैटर्न में बदलाव, मौसमी व्यवहार में बदलाव, और जैविक घड़ियों में गड़बड़ी।
सुझाए गए उपाय:
- प्रकाश के फैलाव से बचने के लिए कृत्रिम प्रकाश के स्रोतों का संरक्षण, गैर-परावर्तक, गहरे रंग की सतहों का उपयोग करना,
- कम या फ़िल्टर की गई हानिकारक तरंग दैर्ध्य वाली रोशनी का उपयोग करना और
- प्रकाश समय, तीव्रता और रंग को प्रबंधित करने के लिए अनुकूलित प्रकाश नियंत्रण का उपयोग करना।
चंद्रयान-2 द्वारा चंद्रमा की सतह पर सोडियम की मात्रा का मापन
संदर्भ: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के वैज्ञानिकों ने चंद्रमा की सतह पर सोडियम के ‘वैश्विक वितरण’ का मानचित्रण किया है।
कार्यप्रणाली: वैज्ञानिकों ने दूसरे भारतीय चंद्रमा मिशन, चंद्रयान -2 (Chandrayaan-2) पर लगे CLASS उपकरण अर्थात “चंद्रयान -2 विस्तृत क्षेत्र सॉफ्ट एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर” (Chandrayaan-2 large area soft X-ray spectrometer – CLASS) का इस्तेमाल किया है।
निष्कर्ष:
- सोडियम परमाणु (Sodium Atoms) चंद्रमा की सतह से दुर्बल रूप से संयुग्मित हैं।
- पृथ्वी की तुलना में, चंद्रमा पर सोडियम जैसे वाष्पशील तत्वों की काफी कमी है।
- पोटेशियम के अलावा सोडियम एकमात्र ऐसा तत्व है जिसे चंद्रमा के वातावरण (इसके बाह्यमंडल) में दूरबीनों के माध्यम से देखा जा सकता है।
महत्व:
- सोडियम का यह नया मानचित्र, चंद्रमा की सतह एवं वाह्यमंडल के बीच संबंध को समझने में सहायक होगा।
- इसे चंद्रमा के अस्थिर इतिहास के अन्वेषक (Tracer) के रूप में भी इस्तेमाल किया जा सकता है।
चंद्रमा के अध्ययन में रुचि का कारण:
- चंद्रमा, पृथ्वी का निकटतम खगोलीय पिंड है जिस पर अंतरिक्ष अन्वेषण का प्रयास किया जा सकता है और इसका दस्तावेजीकरण किया जा सकता है।
- यह ‘गहरे अंतरिक्ष अभियानों’ के लिए आवश्यक प्रौद्योगिकियों का प्रदर्शन करने के लिए एक आशाजनक परीक्षण-स्थल भी है।
- चंद्रमा, पृथ्वी के प्रारंभिक इतिहास के लिए सबसे अच्छा स्रोत प्रदान करता है।
- यह आंतरिक सौर मंडल के वातावरण का अबाधित ऐतिहासिक रिकॉर्ड प्रस्तुत करता है।
2019 में भेजा गया ‘चंद्रयान –2’ मिशन, चंद्रयान -1 (2008) के बाद भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन द्वारा विकसित दूसरा चंद्र अन्वेषण मिशन था। इस मिशन में एक ‘चंद्र ऑर्बिटर’ शामिल था, और इसमें विक्रम लैंडर और प्रज्ञान चंद्र रोवर भी शामिल थे, जो सभी भारत में विकसित किए गए थे।
मानचित्रण



















