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[Mission 2022] INSIGHTS करेंट अफेयर्स+ पीआईबी नोट्स [ DAILY CURRENT AFFAIRS + PIB Summary in HINDI ] 8th October 2022

विषय-सूची

 

सामान्य अध्ययन-III

  1. लोग गरीब नहीं होते हैं, केवल गरीब जगहों में लोग होते हैं।

मुख्य परीक्षा संवर्धन हेतु पाठ्य सामग्री (नैतिकता/निबंध)

  1. महात्मा गांधी को ‘शांति का नोबेल पुरस्कार’ क्यों नहीं मिला?
  2. 2022 फीफा विश्व कप में ‘डेनमार्क’

प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य

  1. बेगम समरु
  2. धर्मांतरण के बाद दलितों की स्थिति पर अध्ययन हेतु ‘समिति’ का गठन
  3. भारत के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति प्रक्रिया
  4. ई-रुपए का प्रायोगिक तौर पर आरंभ
  5. सभी पंचायतों में ‘कृषि ऋण समितियों’ की स्थापना
  6. गुजरात का मोढेरा- पहला सौर ऊर्जा संचालित गांव
  7. डार्क-स्काई-रिजर्व
  8. रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भरता पर SIPRI का अध्ययन
  9. मानचित्रण

 


सामान्य अध्ययन-III


विषय: भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधनों को जुटाने, प्रगति, विकास तथा रोज़गार से संबंधित विषय।

लोग गरीब नहीं होते हैं, केवल गरीब जगहों में लोग होते हैं।

संदर्भ: हाल ही में चिली ने एक आदर्शवादी (Utopian) संविधान के मसौदे को खारिज कर दिया – इस संविधान मसौदे में मुफ्त आवास,  नागरिकों को विभिन्न अधिकार और मुफ्त-उपहार दिए जाने संबंधी प्रावधान किए गए थे, हालांकि इससे देश पर भारी सरकारी कर्ज हो सकता था।

  • इसी तरह के आर्थिक फैसले पंजाब, श्रीलंका, वेनेजुएला, मैक्सिको और बोलीविया में मौजूदा कष्टों का कारण बने हुए है।
  • इस संदर्भ में, मुफ्त-उपहार और गारंटीशुदा रोजगार की नहीं बल्कि बेहतर मजदूरी की जरूरत है। और, नीति-प्रेरित कीमत विकृतियों के संतुलित लक्ष्यीकरण के बिना ‘मजदूरी’ या ‘वेतन’ में वृद्धि नहीं होगी।

आवश्यक सुधार:

राज्य सरकारों को पांच स्थानों यानी राज्यों, शहरों, क्षेत्रों, फर्मों और कौशल में उत्पादकता बढ़ाकर उच्च-भुगतान वाली नौकरियों का सृजन करना चाहिए। देश में इन स्थानों पर वेतन-अंतराल व्यापक स्तर पर ‘उत्पादकता-अंतर’ को दर्शाता है।

  • राज्यों के बीच असमानता में कमी की आवश्यकता: अगले 20 वर्षों में, दक्षिण और पश्चिम भारत के छह राज्यों का देश के ‘सकल घरेलू उत्पाद’ (GDP) वृद्धि में लगभग 35 प्रतिशत, और जनसंख्या वृद्धि में केवल 5 प्रतिशत हिस्सा होगा होगा, क्योंकि आर्थिक जटिलताएं ‘उच्च वेतन’ मजदूरी को जन्म देती है।
  • शहरों के बीच असमानता में कमी की आवश्यकता: हैदराबाद का ‘सकल घरेलू उत्पाद’ ओडिशा राज्य की तुलना में अधिक है, और जम्मू-कश्मीर की तुलना में चार गुना अधिक है।
  • विभिन्न क्षेत्रों के बीच असमानता में कमी की आवश्यकता: सॉफ्टवेयर – उच्च फर्म उत्पादकता का एक नखलिस्तान – हमारे श्रम बल के मात्र 0।8 प्रतिशत को रोजगार देता है, लेकिन ‘सकल घरेलू उत्पाद’ का 8 प्रतिशत उत्पन्न करता है। जबकि, कृषि में हमारे श्रम बल का 42 प्रतिशत हिस्सा संलग्न है, लेकिन यह क्षेत्र ‘सकल घरेलू उत्पाद’ का मात्र 16 प्रतिशत ही उत्पन्न करता है।
  • चीन ने 700 मिलियन लोगों को कृषि से गैर-कृषि रोजगार में स्थानांतरित करके 40 वर्षों में अपनी प्रति व्यक्ति आय को 80 गुना बढ़ाया है।
  • फर्मों के बीच भारी अंतर में कमी की आवश्यकता: भारत की सबसे बड़ी और सबसे छोटी निर्माण कंपनियों की उत्पादकता में 24 गुना अंतर है। जो राज्य नियामक कोलेस्ट्रॉल को कम करके नियमों की जगह व्यापार को प्रमुखता देते हैं, वे उच्च-भुगतान वाली नौकरियों को आकर्षित करते हैं।

भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए निम्नलिखित अन्य सुधारों की आवश्यकता है:

  • ‘सॉफ्ट स्किल्स’ में वृद्धि: दिमाग का इस्तेमाल करने वालों का ‘मसल्स’ अर्थात ‘बाहुबल’ की तुलना में वेतन अधिक होता है। मांग के अनुसार निपुण या कुशल लोगों की उच्च आबादी वाले राज्य, उच्च-भुगतान वाली अधिक नौकरियों को आकर्षित करेंगे।
  • सशक्त महापौर – यह धन, कार्यों और पदाधिकारियों के हस्तांतरण आदि से संबंधित है।
  • ‘आपूर्ति का निर्माण’, जो मांग को आकर्षित करेगा। विनिर्माण में उछाल लाने के लिए श्रमिकों को अग्रिम रूप से कौशल प्रदान करने की आवश्यकता है, जैसे दक्षिण भारत ने 1980 में सॉफ्टवेयर क्षेत्र के विकास के लिए अपने इंजीनियरिंग कॉलेजों को विनियमन में ढील देकर किया था।
  • के नियंत्रण के साथ सॉफ्टवेयर के लिए किया था)।
  • औपचारिकता – भारत के कुल 67,000 से अधिक अनुपालनों, 6,700 से अधिक फाइलिंग, और 26,410 नियोक्ता आपराधिक प्रावधानों में से 75 प्रतिशत से अधिक राज्य सरकारें निर्धारित करती हैं।
  • सिविल सेवाओं में तर्कसंगत मानव संसाधन – खराब प्रदर्शन करने वाले कर्मियों को बढ़ावा देकर, अच्छे प्रदर्शन करने वाले कर्मियों को दंडित नही किया जाना चाहिए।
  • डिजिटाइज़: भारत के डिजिटल सार्वजनिक सामानों के विशिष्ठ ढेर का लाभ उठाकर सभी ‘नागरिक इंटरफेस’ को पेपरलेस और कैशलेस करने के लिए 12 महीने का लक्ष्य निर्धारित किया जाना चाहिए।

इंस्टा लिंक:

नई मजदूरी संहिता

मेंस लिंक:

क्या आपको लगता है कि देश भर में सभी कर्मचारियों के लिए न्यूनतम वेतन सुनिश्चित करने के लिए एक कानून होना चाहिए, जिसमें औद्योगिक श्रमिकों के लिए क्षेत्र-विशिष्ट न्यूनतम मजदूरी भी शामिल हो? टिप्पणी कीजिए। (15M)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


मुख्य परीक्षा संवर्धन हेतु पाठ्य सामग्री (नैतिकता/निबंध)


महात्मा गांधी को ‘शांति का नोबेल पुरस्कार’ क्यों नहीं मिला?

महात्मा गांधी को नोबेल शांति पुरस्कार के लिए चार बार नामांकित किया गया था। इन्हें लगातार 1937, 1938 और 1939 तथा 1947 में नामांकित किया गया था। फिर आख़िरी बार इन्हें 1948 में उन्हें नामांकित किया गया लेकिन महज़ चार दिनों के बाद उनकी हत्या कर दी गई।

  • पहली बार नॉर्वे के एक सांसद ने उनका नाम सुझाया था लेकिन पुरस्कार देते समय उन्हें नज़रअंदाज़ कर दिया गया।
  • उस समय के उपलब्ध दस्तावेज़ों से पता चलता है कि नोबेल कमेटी के एक सलाहकार ‘जैकब वारमुलर’ ने इस बारे में अपनी टिप्पणी लिखी है। उन्होंने लिखा है कि गांधी अहिंसा की अपनी नीति पर हमेशा क़ायम नहीं रहे और उन्हें इन बातों की कभी परवाह नहीं रही कि अंग्रेज़ी हुकूमत के ख़िलाफ़ उनका अहिंसक प्रदर्शन कभी भी हिंसक रूप ले सकता है।
  • जैकब वारमुलर ने लिखा है कि गांधी की राष्ट्रीयता भारतीय संदर्भों तक सीमित रही यहाँ तक कि दक्षिण अफ़्रीका में उनका आंदोलन भी भारतीय लोगों के हितों तक सीमित रहा।
  • उन्होंने अश्वेतों के लिए कुछ नहीं किया जो भारतीयों से भी बदतर ज़िंदगी गुज़ार रहे थे।
  • अब इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि जब मार्टिन लूथर किंग और नेल्सन मंडेला जैसे लोगों को शांति का नोबेल पुरस्कार दिया गया तो उन्होंने स्वीकार किया कि वे गांधी के रुहानी शिष्य हैं और उन्होंने अहिंसक संघर्ष का सबक़ गांधी के कारनामों से सीखा है।

पेचीदगियाँ:

  • 1948 में इस पुरस्कार के लिए गांधी का नाम प्रस्तावित किया गया, लेकिन नामांकन की आख़िरी तारीख़ के महज़ दो दिन पूर्व गांधी की हत्या हो गई। इस समय तक नोबेल कमेटी को गांधी के पक्ष में पांच संस्तुतियां मिल चुकी थीं।
  • लेकिन तब समस्या यह थी कि उस समय तक मरणोपरांत किसी को नोबेल पुरस्कार नहीं दिया जाता था। हालांकि इस समय इस तरह की क़ानूनी गुंजाइश थी कि विशेष हालात में यह पुरस्कार मरणोपरांत भी दिया जा सकता है।
  • लेकिन कमेटी के समक्ष तब यह समस्या थी कि पुरस्कार की रक़म किसे अदा की जाए क्योंकि गांधी का कोई संगठन या ट्रस्ट नहीं था। उनकी कोई जायदाद भी नहीं थी और न ही इस संबंध में उन्होंने कोई वसीयत ही छोड़ी थी।
  • हालांकि यह मामला भी कोई क़ानूनी पेचीदगियों से भरा नहीं था जिसका कोई हल नहीं होता लेकिन कमेटी ने किसी भी ऐसे झंझट में पड़ना मुनासिब नहीं समझा।

तब हालत यह हो गई कि 1948 में शांति का नोबेल पुरस्कार किसी को भी नहीं दिया गया।

स्रोत: बीबीसी

2022 फीफा विश्व कप में ‘डेनमार्क’

फीफा विश्व कप 2022 का आयोजन ‘क़तर’ (Qatar) में किया जा रहा है।

‘क़तर’ के खराब मानवाधिकार रिकॉर्ड के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के हिस्से के रूप में डेनिश फुटबॉल एसोसिएशन (DBU) द्वारा क़तर में अपनी गतिविधियों को कम करना चाहता है:

  • खिलाड़ियों और अधिकारियों के साथ परिवार का कोई भी सदस्य नहीं जाएगा: इसका उद्देश्य क़तर द्वारा पर्यटन के माध्यम से अर्जित होने वाले किसी भी अतिरिक्त लाभ को कम करना है।
  • ‘म्यूट’ छपी हुई जर्सी: खिलाडियों के लिए पीठ पर ‘म्यूट’ (Muted) छपी हुई जर्सी “शोक के रंग” को दर्शाएगी।
  • एमनेस्टी की 2021 की एक रिपोर्ट में कहा गया है, कि क़तर में हजारों प्रवासी कामगारों (ज्यादातर भारत, पाकिस्तान और नेपाल से) का स्टेडियमों और विश्व कप से संबंधित अन्य बुनियादी ढांचे के निर्माण में काम करने के दौरान शोषण किया जा रहा है।

चित्र: काली जर्सी


प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य


बेगम समरु

संदर्भ: इस वर्ष अक्टूबर के पहले सप्ताह में उत्तर प्रदेश राज्य के मेरठ ज़िले के सरधना कस्बे में स्थित एक ऐतिहासिक चर्च “बेसिलिका ऑफ अवर लेडी ऑफ ग्रेस” (Basilica of Our Lady of Graces) के निर्माण को 200 वर्ष पूरे हो गए।

  • इस ऐतिहासिक चर्च का निर्माण 1822 में ‘बेगम समरू’ (Begum Samru) द्वारा करवाया गया था। ‘बेगम समरू’ एक गरीब पृष्ठभूमि की महिला थी, और इन्हें भारत की एकमात्र कैथोलिक रानी के रूप में जाना जाता है।
  • बेगम समरू (1750-1836) एक ऐसी शख्सियत थीं जिन्होंने किसी भी निश्चित पहचान को चुनौती दी थी। शुरुआत में वह एक मुस्लिम थी और बाद में कैथोलिक धर्म में परिवर्तित हो गई, एक नाचने वाली (तवायफ) जो एक ‘वीर योद्धा’ और एक ‘अभिजात’ बनी, और इनके समकालीनों द्वारा इन्हें एक महिला की तुलना में एक पुरुष की तरह कपड़े पहनने वाली के रूप में वर्णित किया गया था। वह गहरे रंग की पगड़ी पहनती थी और एक हुक्का हमेशा उनके करीब रखा रहता था।

धर्मांतरण के बाद दलितों की स्थिति पर अध्ययन हेतु ‘समिति’ का गठन

संदर्भ: सरकार ने बौद्ध और सिख धर्म के अलावा अन्य धर्मों में परिवर्तित होने वाले दलितों को अनुसूचित जाति का दर्जा देने की संभावना का अध्ययन करने के लिए पूर्व सीजेआई केजी बालकृष्णन की अध्यक्षता में एक 3 सदस्यीय आयोग का गठन किया है।

वर्तमान स्वरूप में कानून:

  • संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश 1950 में प्रावधान है कि केवल हिंदू, सिख और बौद्ध समुदायों से संबंधित लोगों को ही अनुसूचित जाति के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है।
  • मूल रूप से यह प्रावधान केवल हिंदुओं तक ही सीमित था। हालाँकि 1956 और 1990 में बाद के संशोधनों में क्रमशः सिख और बौद्ध भी शामिल कर दिए गए थे।

‘दलित ईसाइयों’ को ‘अनुसूचित जाति’ की सूची से बाहर रखे जाने संबंधी कारण:

  • अस्पृश्यता की प्रथा: अस्पृश्यता (untouchability) केवल हिंदू धर्म और उसकी शाखाओं की एक विशेषता थी, जबकि इस्लाम या ईसाई धर्म में इसका कोई प्रचलन नहीं था।
  • भारत के महापंजीयक (The Registrar General of India – RGI) ने सरकार को आगाह करते हुए कहा था, कि ‘अनुसूचित जाति का दर्जा’ अस्पृश्यता की प्रथा से उत्पन्न होने वाली सामाजिक अक्षमताओं से पीड़ित समुदायों के लिए है।
  • वर्ष 1999 में ‘समावेशन हेतु नियमों में एक अधिदेश’ (A mandate in rules for inclusion) तैयार किया गया था और इसके लिए भारत के महापंजीयक (RGI) के अनुमोदन की आवश्यकता होती है। बौद्ध धर्मांतरितों को ‘अनुसूचित जाति’ के रूप में शामिल करने के लिए वर्ष 1990 में संशोधन पारित किया गया था।
  • समावेशन हेतु अनुच्छेद 341 का खंड (2): इस्लाम या ईसाई धर्म में परिवर्तित होने वाले दलित विभिन्न जाति समूहों के थे, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें “एकल जातीय समूह (समावेशन के लिए आवश्यक)” के रूप में वर्गीकृत नहीं किया जा सकता है।

प्रथम पिछड़ा वर्ग आयोग (कालेकर आयोग) के अनुसार- दलित जातियों के सदस्यों द्वारा दूसरे धर्म में परिवर्तित हो जाने के बाद भी उनके साथ जाति के आधार पर भेदभाव होता है।

भारत के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति प्रक्रिया

(Procedure for appointment of the CJI)

संदर्भ: सरकार ने औपचारिक रूप से ‘भारत के मुख्य न्यायाधीश’ (CJI) यू यू ललित, जो जल्द ही सेवानिवृत्त होने वाले हैं, को अपना उत्तराधिकारी नामित करने के लिए कहा है।

‘भारत के मुख्य न्यायाधीश’ की नियुक्ति:

  • भारत के मुख्य न्यायाधीश को, परंपरा के अनुसार, भारत के निवर्तमान मुख्य न्यायाधीश द्वारा उनकी सेवानिवृत्ति के दिन नियुक्त किया जाता है।
  • परंपरागत रूप से, भारत के निवर्तमान मुख्य न्यायाधीश, भारत के मुख्य न्यायाधीश के रूप में, उच्चतम न्यायालय के तत्कालीन वरिष्ठतम न्यायाधीश का चयन करते है।

नियुक्ति प्रक्रिया:

अगले ‘मुख्य न्यायाधीश’ (CJI) को नियुक्त करने की प्रक्रिया सरकार और न्यायपालिका के मध्य एक ‘प्रक्रिया ज्ञापन’ (Memorandum of Procedure- MoP) में निर्धारित की गई है।

सेकेंड जजेज केस (1993) और MoP के अनुसार सुप्रीम कोर्ट के सबसे वरिष्ठ जज को ‘भारत के मुख्य न्यायाधीश’ के रूप में नियुक्त किया जाना चाहिए।

  1. ‘भारत के मुख्य न्यायाधीश’ (Chief Justice of India- CJI) की नियुक्ति प्रक्रिया केंद्रीय विधि मंत्री द्वारा ‘उपयुक्त समय’ पर अर्थात निवर्तमान मुख्य न्यायाधीश की सेवानिवृत्ति तिथि नजदीक आने पर शुरू की जाती है। विधि मंत्री, सबसे पहले निवर्तमान मुख्य न्यायाधीश से अगले मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति के लिए अनुशंसाओं की मांग करते है।
  2. CJI अपनी अनुशंसाएं विधि मंत्रालय को भेजते हैं और किसी प्रकार की आशंका होने की स्थिति में मुख्य न्यायाधीश, उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश की ‘मुख्य न्यायाधीश’ के रूप में उपयुक्तता के बारे में कॉलेजियम से परामर्श कर सकता है।
  3. विधि मंत्री, ‘मुख्य न्यायाधीश’ से प्राप्त अनुशंसा को प्रधान मंत्री के लिए प्रेषित करते हैं। प्रधानमंत्री, इसी आधार पर राष्ट्रपति को ‘भारत के मुख्य न्यायाधीश’ की नियुक्ति की सलाह देते हैं।
  4. राष्ट्रपति द्वारा ‘भारत के नए मुख्य न्यायाधीश’ को पद की शपथ दिलाई जाती है।

ई-रुपए का प्रायोगिक तौर पर आरंभ

संदर्भ: भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा शीघ्र ही विशिष्ट उपयोग के मामलों के लिए ‘ई-रुपए’ (e-rupee), या केंद्रीय बैंक डिजिटल मुद्रा (CBDC) की प्रायोगिक तौर पर सीमित शुरुआत की जाएगी।

‘ई-रुपया’ क्या है?

‘ई-रुपया’ (e-rupee), एक  स्वायत्त कागज़ी मुद्रा (sovereign paper currency) के समान लेकिन डिजिटल रूप में होगा। यह विनिमय में मौजूदा मुद्रा के बराबर होगा और भुगतान के माध्यम, कानूनी निविदा और कीमत के एक सुरक्षित स्टोर के रूप में स्वीकार किया जाएगा।

विशेषताएँ:

  • ‘ई-रुपया’ केंद्रीय बैंक के तुलन पत्र (Balance Sheet) पर ‘देयता’ के रूप में प्रकट होगा।
  • ‘ई-रुपए’ को ‘टोकन-आधारित’ या ‘खाता-आधारित’ के रूप में संरचित किया जा सकता है।
  • एक टोकन-आधारित CBDC: किसी भी व्यक्ति के पास, किसी निश्चित समय पर ‘टोकन’ होंने को, उसे बैंक नोटों के समान माना जाएगा। ‘टोकन’ प्राप्त करने वाला व्यक्ति यह सत्यापित करेगा कि वास्तविक रूप से उस ‘टोकन’ का मालिक है। खुदरा भुगतान के लिए ‘टोकन’ को प्राथमिकता दी जाएगी।
  • खाता-आधारित प्रणाली: केंद्रीय बैंक डिजिटल मुद्रा (CBDC) के सभी धारकों के शेष और लेन-देन के रिकॉर्ड के रखरखाव हेतु ‘खाता-आधारित प्रणाली’ की आवश्यकता होगी और यह बिटकॉइन के समान ‘मौद्रिक शेष’ (Monetary Balances) के स्वामित्व को इंगित करेगी।
  • खाता-आधारित CBDC में एक मध्यस्थ, खाताधारक की पहचान की पुष्टि करता है। यह थोक भुगतान के लिए अधिक पसंदीदा प्रणाली है।

आरबीआई द्वारा ‘निजी क्रिप्टोकरेंसी’ का यह बताते हुए विरोध करता रहा है, कि यह भारत की व्यापक आर्थिक और वित्तीय स्थिरता के लिए खतरा हैं।

अंतर्राष्ट्रीय स्वीकृति: जुलाई 2022 तक, 105 देश CBDC की संभवानाएं  खोज कर रहे थे। दस देशों द्वारा इसे लॉन्च भी किया जा चुका है। अब तक लॉन्च की जा चुकी ‘केंद्रीय बैंक डिजिटल मुद्राओं’ (CBDC) में पहली डिजिटल मुद्रा 2020 में ‘बहामियन सैंड डॉलर’ थी और नवीनतम डिजिटल मुद्रा जमैका की JAM-DEX है।

CBDC के लाभ: सार्वभौमिक पहुंच, सीमा पार आसान भुगतान और अधिक वित्तीय समावेशन, मुद्रा प्रबंधन लागत को कम करके ‘आभासी मुद्रा’ की ओर एक सांस्कृतिक बदलाव।

चुनौतियां: गोपनीयता संबंधी चिंताएं हैं- RBI उपयोगकर्ता लेनदेन के व्यक्तिगत उपयोग पर डेटा रख सकता है, डिजिटल विभाजन, कम वित्तीय साक्षरता, प्रौद्योगिकी का तेजी से अप्रचलन, आदि।

सभी पंचायतों में ‘कृषि ऋण समितियों की स्थापना

संदर्भ: सहकारिता मंत्रालय जमीनी स्तर पर विभिन्न सहकारी गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए अगले पांच वर्षों में पंचायतों में बहुउद्देश्यीय ‘प्राथमिक कृषि ऋण समितियों’ / ‘पैक्स’ (Primary Agricultural Credit Societies – PACS)  स्थापित करने की योजना पर काम कर रहा है।

प्राइमरी एग्रीकल्चरल क्रेडिट सोसाइटी (PACS):  यह सहकारी ऋण संस्थाएँ हैं जो किसानों को विभिन्न कृषि और कृषि गतिविधियों के लिये अल्पकालिक एवं मध्यम अवधि के कृषि ऋण प्रदान करती हैं।

  • यह ज़मीनी स्तर पर ग्राम पंचायत और ग्राम स्तर पर काम करती हैं।
  • पहली प्राथमिक कृषि ऋण समिति (PACS) का गठन वर्ष 1904 में किया गया था।
  • PACS एक ग्राम स्तर की संस्था है जो सीधे ग्रामीण निवासियों के साथ काम करती है। यह किसानों को बचत करने के लिए प्रोत्साहित करती है, उनसे जमा स्वीकार करती है, योग्य उधारकर्ताओं को ऋण प्रदान करती है, और पुनर्भुगतान एकत्र करती है।
  • प्राथमिक कृषि सहकारी ऋण समितियां (PACS) देश में अल्पकालिक सहकारी ऋण (एसटीसीसी) की त्रि-स्तरीय व्यवस्था में सबसे निचले स्तर पर अपनी भूमिका निभाती हैं। अन्य दो स्तरों अर्थात राज्य सहकारी बैंक (State Cooperative Banks – StCB) और जिला केंद्रीय सहकारी बैंक (District Central Cooperative Banks – DCCB) को पहले ही नाबार्ड द्वारा स्वचालित कर दिया गया है और उन्हें साझा बैंकिंग सॉफ्टवेयर (Common Banking Software – CBS) के तहत ला दिया गया है।
  • वर्तमान में देश में केवल 65,000 सक्रिय पैक्स हैं।
  • PACSगरीबी को कम करने और महिलाओं को सशक्त बनाने के उद्देश्य से, गैस और पेट्रोल की बिक्री और डेयरी और कृषि उत्पादों के भंडारण और विपणन जैसी गतिविधियों को अंजाम देगा।

गुजरात का मोढेरा- पहला सौर ऊर्जा संचालित गांव

संदर्भ: प्रधानमंत्री ने मेहसाणा (गुजरात) में ‘मोढेरा’ को भारत का पहला चौबीसों घंटे सौर ऊर्जा संचालित गांव भी घोषित किया।

  • दिन के समय गांव को सौर ऊर्जा मिलेगी और रात में इसे ‘बैटरी एनर्जी स्टोरेज सिस्टम’(BESS) द्वारा संचालित किया जाएगा।
  • ‘मोढेरा’ सूर्य मंदिर के लिए जाना जाता है, जिसे चालुक्य वंश के ‘भीम प्रथम’ के शासनकाल के दौरान 1026-27 ईस्वीके बाद बनाया गया था।

डार्क-स्काई-रिजर्व

संदर्भ: इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स (IIA) और ‘विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग’ (DST) के साथ मिलकर लद्दाख सरकार, ‘इंटरनेशनल डार्क-स्काई एसोसिएशन’ द्वारा ‘हानले’ को ‘इंटरनेशनल डार्क स्काई रिजर्व’ के रूप में घोषित करने के लिए आधार तैयार कर रही है।

डार्क-स्काई-रिजर्व क्या है?

  • डार्क-स्काई रिजर्व (Dark-Sky-Reserve)आमतौर पर पार्क या वेधशाला के आसपास एक ऐसा क्षेत्र है जो ‘कृत्रिम प्रकाश प्रदूषण’ (artificial light pollution) को प्रतिबंधित करता है। ‘डार्क-स्काई मूवमेंट’ का उद्देश्य आम तौर पर खगोल विज्ञान को बढ़ावा देना और खगोलीय अवलोकन के दौरान हस्तक्षेप से बचना है।
  • ‘इंटरनेशनल डार्क स्काई एसोसिएशन’, एक यू.एस.-आधारित गैर-लाभकारी संगठन है, जो निर्धारित मानदंडों के आधार पर ‘स्थानों’ को अंतरराष्ट्रीय डार्क स्काई प्लेस, पार्क, अभयारण्य और रिजर्व के रूप में नामित करता है।
  • ऐसे कई ‘रिजर्व’, दुनिया भर में मौजूद हैं लेकिन भारत में अभी तक कोई नहीं है।

‘हानले’ के चयन का कारण:

चांगथांग की ‘हानले’ घाटी में नीलमखुल मैदान में सरस्वती पर्वत के ऊपर स्थित ‘हानले’ एक शुष्क, ठंडा रेगिस्तान है जिसमें विरल मानव आबादी है। इसका निकटतम पड़ोसी ‘हानले बौद्ध मठ’ है। बादल रहित आसमान और कम वायुमंडलीय जल वाष्प इसे ऑप्टिकल, इन्फ्रारेड, सब-मिलीमीटर और मिलीमीटर वेवलेंथ के लिए दुनिया के सबसे अच्छे स्थलों में से एक बनाते हैं।

रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भरता पर SIPRI का अध्ययन

संदर्भ: स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (SIPRI) द्वारा इस महीने जारी एक अध्ययन के अनुसार, आत्मनिर्भर हथियार उत्पादन क्षमताओं में भारत, 12 इंडो-पैसिफिक देशों में चौथे स्थान पर है।

प्रमुख निष्कर्ष:

  1. SIPRIकी ‘आत्मनिर्भर हथियार उत्पादन क्षमता’सूची में चीन सबसे ऊपर है, जापान दूसरे स्थान पर है, दक्षिण कोरिया तीसरे स्थान पर है और पाकिस्तान 8वें स्थान पर है।
  2. भारत को,2016-20 में अपने सशस्त्र बलों के लिए हथियारों के दूसरे सबसे बड़े आयातक के रूप में स्थान मिला है।
  3. 2016-20 में भारत की कुल खरीद के84 प्रतिशत हथियार विदेशी मूल के थे।

वर्ष 1966 में स्थापित ‘स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट’ (SIPRI)  संघर्ष, आयुध, हथियार नियंत्रण और निरस्त्रीकरण में अनुसंधान के लिए समर्पित एक स्वतंत्र अंतर्राष्ट्रीय संस्थान है।

मानचित्रण