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[Mission 2023] INSIGHTS करेंट अफेयर्स+ पीआईबी नोट्स [ DAILY CURRENT AFFAIRS + PIB Summary in HINDI ] 7th October 2022

विषयसूची

सामान्य अध्ययन-II

  1. संसदीय समितियां, सदस्य और कानून बनाने में इनकी भूमिका
  2. ‘कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व’ फ्रेमवर्क को मजबूत करना एक लाभदायक विचार

सामान्य अध्ययन-III

  1. ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान

मुख्य परीक्षा संवर्धन हेतु पाठ्य सामग्री (निबंध/नैतिकता)

  1. गौरी सावंत
  2. विलोपन संकट को रोकने की योजना

प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य

  1. साहित्य में नोबेल पुरस्कार
  2. नोबेल शांति पुरस्कार
  3. जम्मू-कश्मीर परिसीमन आदेशों को ‘कानून का दर्जा’
  4. ‘मूनलाइटिंग’ के संबंध में कानून
  5. मुक्त व्यापार समझौता
  6. 2020 में 70 मिलियन गरीबी की श्रेणी में शामिल
  7. खरीद प्रबंधक सूचकांक
  8. ‘नो ऑयल प्रोडक्शन एंड एक्सपोर्टिंग कार्टेल्स’ विधेयक
  9. सभी स्मार्टफोन, टैबलेट और कैमरों के लिए एक ही चार्जर का प्रावधान
  10. मानव जैसी शक्ल का रोबोट – ऑप्टिमस
  11. मानचित्रण

सामान्य अध्ययन-II


विषय: संसद और राज्य विधायिका- संरचना, कार्य, कार्य-संचालन, शक्तियाँ एवं विशेषाधिकार और इनसे उत्पन्न होने वाले विषय।

संसदीय समितियां, इनके सदस्य और कानून बनाने में इनकी भूमिका

संदर्भ: हाल ही में, संसद में 22 स्थायी समितियों का पुनर्गठन किया गया है।

‘संसदीय समितियां’:

संसदीय समिति से तात्‍पर्य उस समिति से है, जो सभा द्वारा नियुक्‍त या निर्वाचित की जाती है अथवा अध्‍यक्ष द्वारा नाम-निर्देशित की जाती है तथा अध्‍यक्ष के निदेशानुसार कार्य करती है एवं अपना प्रतिवेदन सभा को या अध्‍यक्ष को प्रस्‍तुत करती है।

‘संसदीय स्थायी समितियां’:

‘संसदीय स्थायी समितियां’ (Parliamentary Standing Committees – PSC) संसद की स्थायी समितियां (Permanent Committees) होती हैं और इनका गठन प्रतिवर्ष किया जाता है। ‘स्थायी समितियां’, गैर-स्थायी तदर्थ समितियों (Ad-hoc committees) के विपरीत निरंतर कार्य करती हैं।

संसदीय स्थायी समितियों (PSCs) की आवश्यकता:

  • सरकार को जवाबदेह बनाए रखने हेतु: काम की मात्रा में वृद्धि, समय की कमी, बाधाकारी परिवर्तन और काम की जटिलता, आदि की वजह से संसद, कार्यपालिका को उत्तरदायी बनाए रखने में बहुत प्रभावी नहीं हो पाती है।
  • संसदीय स्थायी समितियां (PSCs), विस्तृत जांच-पड़ताल के माध्यम से सरकार की नीतियों की जांच करने और विधायिका में सुविज्ञ बहस में मदद करने संबंधी ‘संसद की क्षमता’ को बढाती है। जैसेकि, ‘निजी डेटा संरक्षण विधेयक’ को विस्तृत पुनरावलोकन के लिए ‘संयुक्त संसदीय समिति’ को भेजा गया है।
  • राजकोषीय विवेक को बनाए रखने हेतु: ‘संसदीय स्थायी समितियां’ विभिन्न विभागों और सरकार की अन्य नीतियों के लिए ‘बजटीय आवंटन’ की जांच करती है। यह राजकोषीय अर्थव्यवस्था और सार्वजनिक व्यय में दक्षता सुनिश्चित करता है। जैसेकि, पिछले वर्ष ‘रक्षा संबंधी संसदीय स्थायी समिति’ ने बताया कि रक्षा पर 35% से अधिक कम आवंटन, सशस्त्र बलों की हथियार अधिग्रहण योजनाओं को प्रभावित कर सकता है।
  • स्वतंत्र और गैर-पक्षपातपूर्ण बहस के लिए: ‘संसदीय स्थायी समितियां’, बंद कक्ष में होने वाली बैठकों (closed door meetings) के लिए एक मंच प्रदान करती हैं और इनके सदस्य ‘पार्टी व्हिप’ (Party Whips) से बंधे नहीं होते हैं, इस प्रकार उन्हें विचारों के अधिक सार्थक आदान-प्रदान के लिए स्वतंत्रता मिलती है।
  • नागरिकों के अधिकारों की रक्षा हेतु: उदाहरण के लिए, ‘सूचना प्रौद्योगिकी पर संसदीय स्थायी समिति’ ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर लोगों के अधिकारों की सुरक्षा के बारे में चिंताओं को लेकर इस साल (2021) ट्विटर इंडिया के दो प्रतिनिधियों से पूछताछ की।
  • प्रासंगिक हितधारकों के साथ समग्र जुड़ाव हेतु: उदाहरण के लिए, विमुद्रीकरण (Demonetization) के विषय पर ‘वित्त समिति’ ने आरबीआई गवर्नर को तलब किया था। तथा, ‘नेट तटस्थता’ और ‘सरोगेसी विधेयक’ पर गठित स्थायी समिति ने कई हितधारकों के साथ व्यापक चर्चा की।
  • संसद और जनता के बीच, और प्रशासन और संसद के बीच एक कड़ी के रूप में कार्य करने हेतु संसदीय स्थायी समितियां’ कानूनों को अधिक समग्र और दूरदर्शी बनाने के लिए जनता की प्रतिक्रिया जानने का प्रयास करती हैं।
  • लघु-संसद के रूप में ‘संसदीय स्थायी समितियां’: इन समितियों के सदस्य दोनों सदनों और राजनीतिक दलों के सांसदों की छोटी इकाइयों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
  • संसदीय स्थायी समितियों के सदस्य लोकवादी मांगों से बंधे नहीं होते हैं, अनौपचारिक रहते हैं और जनता और मीडिया की चकाचौंध से दूर रहते हैं। इस प्रकार वे विधेयकों पर समग्र और गैर-पक्षपाती सलाह और संवीक्षा प्रदान करने के लिए बेहतर उपयुक्त होते हैं।

संसदीय स्थायी समितियों की कार्यप्रणाली में सुधार हेतु उपाय:

  • समितियों को निर्दिष्ट करना: एक संविद के माध्यम से सभी विधेयकों और बजटों की ‘संसदीय स्थायी समितियों’ द्वारा जांच किए जाने को अनिवार्य बनाया जाना चाहिए। इसके लिए लोकसभा और राज्यसभा दोनों में ‘कार्य-प्रक्रिया नियमों’ में संशोधन किया जाए।
  • कार्यकाल में वृद्धि: कुछ संवैधानिक विशेषज्ञों द्वारा ‘संसदीय स्थायी समितियों’ के कार्यकाल को 1 वर्ष से बढ़ाकर दो वर्ष करने, उन्हें अधिक समय देने और अपने संबंधित क्षेत्रों में अधिक विशेषज्ञता हासिल करने का तर्क दिया जाता है।
  • समितियों के लिए विशेषज्ञों की सहायता: संस्थागत अनुसंधान और विशेषज्ञ सहयोग, समितियों को विधेयकों की बेहतर जांच करने और सरकार को अभिनव समाधान सुझाने में सहूलियत प्रदान करेगा।
  • सभी प्रमुख रिपोर्टों की अनिवार्य चर्चा: ‘समितियों’ द्वारा प्रस्तुत प्रमुख रिपोर्टों पर, विशेषकर जहां समिति और सरकार के बीच असहमति हो, संसद में चर्चा की जानी चाहिए।
  • संविधान के कामकाज की समीक्षा के लिए राष्ट्रीय आयोग (NCRWC) ने ‘संसदीय स्थायी समितियों’ की आवधिक समीक्षा किए जाने की सिफारिश की है। आयोग के अनुसार- विभाग संबंधी स्थायी समितियों (DRSCs) की उनकी उपयोगिता पर भी समय-समय पर समीक्षा की जानी चाहिए।
  • पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की सिफारिश: संसदीय स्थायी समितियों को उन मंत्रालयों की जांच करनी चाहिए जिनका ‘लोक लेखा समिति’ द्वारा ऑडिट नहीं किया जाता है।

निष्कर्ष:

इस प्रकार ‘समिति प्रणाली’ को मजबूत करने और विधेयकों के पारित होने में बदलाव लाने से विधायी कार्य की अधिक गुणवत्ता सुनिश्चित होगी और संभावित कार्यान्वयन चुनौतियों को कम किया जा सकेगा। साथ ही, संबंधित मंत्रियों को सरकारी नीतियों की व्याख्या और बचाव के लिए समिति के समक्ष पेश होना चाहिए (जैसा कि अन्य देशों में किया जाता है)। इससे संसदीय कामकाज में प्रतिनिधित्व, जवाबदेही और जवाबदेही सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी।

इंस्टा लिंक:

संसदीय स्थायी समिति

मेंस लिंक:

संसदीय स्थायी समितियाँ क्या होती हैं? इनकी क्या आवश्यकता है? संसदीय स्थायी समितियों के महत्व को स्पष्ट करते हुए उनकी भूमिका और कार्यों पर चर्चा कीजिए।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

 

विषय: विकास प्रक्रिया और विकास उद्योग- गैर सरकारी संगठनों, एसएचजी और विभिन्न अन्य समूहों और संघों, दाताओं, दान आदि की भूमिका

‘कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व’ फ्रेमवर्क को मजबूत करना एक लाभदायक विचार

संदर्भ: कंपनी अधिनियम 2013 की धारा 135 के तहत भारत में ‘कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व’ (Corporate Social Responsibility  CSR) व्यवस्था लागू किए जाने के बाद से, भारत में ‘कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व’ (CSR) व्यय 2014-15 में ₹10,065 करोड़ से बढ़कर 2020-21 में ₹24,865 करोड़ हो गया है।

कंपनियों का CSR डेटा:

  • ‘कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व’ व्यय में वृद्धि भारतीय और विदेशी (भारत में एक पंजीकृत इकाई) कंपनियों के मुनाफे में वृद्धि के अनुरूप है या नहीं, यह सत्यापित करने के लिए कोई डेटा उपलब्ध नहीं है।
  • शून्य व्यय: वर्ष 2020-21 में 2,926 कंपनियों का ‘कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व’ पर व्यय शून्य था।
  • निर्धारित सीमा: 2% ‘कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व’ व्यय की निर्धारित सीमा से कम खर्च करने वाली कंपनियों की संख्या 2015-16 में 3,078 से बढ़कर 2020-21 में 3,290 हो गईं।
  • भागीदारी: ‘कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व’ में भाग लेने वाली कंपनियों की संख्या में भी गिरावट आई है।
  • निजी कंपनियों द्वारा अपने स्वयं के फाउंडेशन/ट्रस्ट पंजीकृत किए गए हैं, जिनमे ये कंपनियां सांविधिक सीएसआर बजट को उपयोग के लिए हस्तांतरित करती हैं। यह स्पष्ट नहीं है कि कंपनी अधिनियम/सीएसआर नियमों के तहत इसकी अनुमति है या नहीं।

अन्य संबधित मुद्दे:

  • अशोक विश्वविद्यालय के ‘सामाजिक प्रभाव और लोकोपकार केंद्र’ (Center for Social Impact and Philanthropy) के अनुसार – 54% CSR कंपनियां महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक और गुजरात में केंद्रित हैं, और ये राज्य सर्वाधिक CSR व्यय प्राप्त करते हैं।
  • अधिक आबादी वाले उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश को बहुत कम CSR व्यय मिल पाता है।
  • शिक्षा (37%) और स्वास्थ्य और स्वच्छता (29%) की तुलना में पर्यावरण पर केवल 9% CSR व्यय किया जाता है।
  • वित्त संबंधी स्थायी समिति के अनुसार- कंपनियों द्वारा CSR व्यय के संबंध में जानकारी अपर्याप्त है और जो भी जानकारी उपलब्ध है, उस तक पहुंचना मुश्किल है।

सुझाव:

  • कॉर्पोरेट कार्य मंत्रालय (MCA) द्वारा केंद्रीकृत एक राष्ट्रीय स्तर का मंच की स्थापना की जानी चाहिए, जहां सभी राज्य अपनी संभावित CSR -स्वीकार्य परियोजनाओं को सूचीबद्ध कर सकते हैं ताकि कंपनियां यह आकलन कर सकें कि उनका CSR फंड पूरे भारत में सबसे अधिक प्रभावशाली कहाँ होगा।
  • इंडिया इन्वेस्टमेंट ग्रिड (IIG) पर ‘इंवेस्ट इंडिया’ की एक ‘कॉर्पोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी प्रोजेक्ट्स रिपोजिटरी’ प्रभावशाली प्रयासों के लिए एक मार्गदर्शक के रूप में काम कर सकती है।
  • कंपनियों को पर्यावरण की बहाली को प्राथमिकता देने की जरूरत है। जिस क्षेत्र में कंपनियां काम करती हैं, उस क्षेत्र में पर्यावरण बहाली के लिए कम से कम परियोजना की 25% राशि निर्धारित की जानी चाहिए।
  • स्थानीय लोगों की भागीदारी: सभी CSR परियोजनाओं का चुनाव और कार्यान्वयन समुदायों, जिला प्रशासन और जन प्रतिनिधियों की सक्रिय भागीदारी के साथ किया जाना चाहिए।

 

इंस्टा लिंक्स:

मेंस लिंक:

पर्यावरण संरक्षण से संबंधित विकास कार्यों के लिए भारत में गैर सरकारी संगठनों की भूमिका को कैसे मजबूत किया जा सकता है? प्रमुख बाधाओं पर प्रकाश डालने की विवेचना कीजिए। (यूपीएससी 2015)

स्रोत: द हिंदू

 


सामान्य अध्ययन-III


विषय: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन।

ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान

संदर्भ: वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) ने हाल ही में कहा है कि क्षेत्र में बिगड़ते ‘वायु गुणवत्ता सूचकांक’ (AQI) से निपटने के लिए दिल्ली-एनसीआर में ‘ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान’ (Graded Response Action Plan- GRAP) तत्काल प्रभाव से लागू किया जाएगा।

GRAP के बारे में:

‘ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान’ (GRAP), वायु गुणवत्ता के आधार पर वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए लागू किए जाने वाले आपातकालीन उपायों का एक सेट है।

  • ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान को वर्ष 2016 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा मंजूरी दी गयी थी।
  • GRAP को पर्यावरण प्रदूषण (रोकथाम और नियंत्रण) प्राधिकरण द्वारा तैयार किया जाता है। GRAP केवल आपातकालीन उपाय के रूप में कार्य करते हैं।
  • ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान, प्रकृति में वृद्धिशील होते हैं, तथा वायु की गुणवत्ता ‘खराब’ से ‘बहुत खराब’ होने पर सूचीबद्ध उपायों का पालन किया जाता है।

पृष्ठभूमि:

‘ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान’ नवंबर 2016 में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) द्वारा प्रस्तुत एक योजना पर आधारित है। GRAP को पहली बार जनवरी 2017 में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा अधिसूचित किया गया था।

GRAP के विभिन्न चरण:

  • ‘ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान’ का पहला चरण ‘वायु गुणवत्ता सूचकांक’ (AQI) के ‘खराब’ श्रेणी (201 से 300) में होने पर सक्रिय होता है। उदाहरण के लिए, 5 अक्टूबर को  दिल्ली में AQI 211 था।
  • GRAP का दूसरा, तीसरा और चौथा चरण AQI के ‘बेहद खराब’ श्रेणी (301 से 400), ‘गंभीर’ श्रेणी (401 से 450) और ‘गंभीर +’ श्रेणी (450 से ऊपर) तक पहुंचने से तीन दिन पहले सक्रिय हो जाएगा। .
  • डेटा स्रोत: इसके लिए वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM), भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान (IITM) और भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) द्वारा वायु गुणवत्ता और मौसम संबंधी पूर्वानुमानों पर निर्भर है।

इस साल के GRAP की विशिष्टता:

  • कार्यान्वयन एजेंसी: 2021 से, ‘ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान’, वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) द्वारा लागू किया जा रहा है।
  • राज्य सरकारों और CAQM द्वारा जारी निर्देशों के बीच किसी भी प्रकार के विरोध की स्थिति में CAQM के आदेश और निर्देश मान्य होंगे।
  • योजना की विभिन्न श्रेणियों के तहत उपायों को NCR राज्यों के प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों और यातायात पुलिस, परिवहन विभाग और सड़क-स्वामित्व और निर्माण एजेंसियों सहित संबंधित विभागों और एजेंसियों द्वारा लागू किया जाएगा।
  • पूर्व-निवारक उपाय (Pre-emptive measures): GRAP 2017 के संस्करण में, प्रदूषण सांद्रता के एक निश्चित स्तर तक पहुंचने के बाद इन उपायों को शुरू किया गया था।
  • इस वर्ष किए जाने वाले उपाय पूर्व-निवारक (Pre-emptive) हैं और ये उपाय AQI की स्थिति ख़राब होने से रोकने के प्रयास में पूर्वानुमानों के आधार पर लागू होंगे।
  • व्यापक प्रदूषक रेंज: GRAP के पुराने संस्करण को केवल PM5 और PM10 की सांद्रता के आधार पर लागू किया गया था।
  • इस वर्ष, GRAP को AQI के आधार पर लागू किया जा रहा है, जिसमे अन्य प्रदूषकों जैसे कि ओजोन, सल्फर डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन के ऑक्साइड को भी ध्यान में रखा गया है।

इस वर्ष लागू किए जाने वाले उपाय:

  • पहली बार, ‘ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान’ (GRAP) के तहत निर्दिष्ट किया गया है कि NCR में राज्य सरकारें स्टेज-3 (गंभीर श्रेणी) के तहत, बीएस-III पेट्रोल और बीएस-IV डीजल चार पहिया वाहनों पर प्रतिबंध लगा सकती हैं।
  • संशोधित GRAP में कुछ निर्माण गतिविधियों पर भी प्रतिबंध को पहले की तुलना में “गंभीर +” के बजाय ‘गंभीर श्रेणी’ चरण में निर्धारित किया जाएगा।
  • राजमार्ग, सड़क, फ्लाईओवर, पाइपलाइन और बिजली पारेषण जैसी रैखिक सार्वजनिक परियोजनाओं पर निर्माण गतिविधियों को इस वर्ष ‘गंभीर +’ श्रेणी के तहत प्रतिबंधित कर दिया जाएगा।
  • साथ ही ‘गंभीर +’ (severe +) श्रेणी के तहत, राज्य सरकारें अतिरिक्त आपातकालीन उपायों, जैसे स्कूल बंद करना, वाहनों को सम-विषम आधार पर चलाना आदि, पर विचार कर सकती हैं ।
  • जनता के लिए दिशानिर्देश: संशोधित GRAP में प्रदूषण स्तरों की विभिन्न श्रेणियों के तहत जनता के लिए उपायों का एक सेट भी शामिल किया गया है।

मेंस लिंक:

ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (GRAP) क्या है? दिल्ली जैसे शहरों में वायु प्रदूषण के मुद्दे को हल करने में ऐसी योजनाओं की प्रभावशीलता पर चर्चा कीजिए। (250 शब्द)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

 


मुख्य परीक्षा संवर्धन हेतु पाठ्य सामग्री (निबंध/नैतिकता)


गौरी सावंत

संदर्भ: ट्रांस राइट्स एक्टिविस्ट गौरी सावंत (Gauri Sawant) के जीवन और संघर्षों से प्रेरित होकर ‘ताली’ शीर्षक से एक वेब सीरीज रिलीज़ हो रही है। इस वेब सीरीज में गौरी सावंत की भूमिका सुष्मिता सेन ने निभाई है।

ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के अधिकारों के लिए एक कार्यकर्ता ‘गौरी सावंत’ ने अपना जीवन अपने समुदाय के अधिकारों की वकालत करते हुए बिताया है।

  • ‘हमसफर ट्रस्ट’ नामक एक गैर-सरकारी संगठन (NGO) की मदद से गौरी ने अपनी जीविका अर्जित करना शुरू किया। इसके बाद उन्होंने ‘सखी चार चौगी’ (Sakhi Char Chowgi) नाम से अपना स्वयं का एक NGO शुरू कर दिया। ‘गौरी सावंत’ का यह NGO ट्रांस व्यक्तियों के लिए परामर्श प्रदान करता है, और इनके स्वास्थ्य और रोजगार के अवसरों के लिए काम करता है।
  • उनके माता-पिता ने उनका नाम गणेश नंदन रखा था। गौरी सावंत जब सात साल की थीं, तभी उनकी मां की मौत हो गई। उन्हें दादी ने पाल-पोसकर बड़ा किया। गौरी सावंत के पिता एक पुलिस अफसर थे। गौरी सावंत के पिता ने उनके जिंदा रहते हुए ही अंतिम संस्कार करवा दिया था।
  • ‘गौरी सावंत’ ने अपनी कहानी साझा करते हुए बताया कि वह “हमेशा से एक मां बनना चाहती थी”। 2001 में, ‘यौन संचारित रोगों’ (STDs) के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए यौनकर्मियों के साथ काम करते हुए गौरी ने अपने सपने को साकार किया। यहीं उन्होंने ‘गायत्री’ नामक एक बच्ची को गोद लेकर उसे पाला-पोसा।
  • “मेरी बेटी ने मुझे सिखाया कि आपको गर्भाशय या बच्चे को जन्म देने की ज़रूरत नहीं है, मातृत्व का मतलब बच्चे की देखभाल करना और उसे प्यार करना है। मुझे खुशी हुई जब लोगों ने मुझे मेरे मातृत्व के लिए पहचानना शुरू किया,”- गौरी
  • ट्रांस व्यक्तियों को गोद लेने के अधिकारों के लिए लड़ने के अलावा, उन्होंने समुदाय को तीसरे लिंग के रूप में मान्यता देने के लिए भी लड़ाई लड़ी।
  • वह 2019 में भारत के चुनाव आयोग द्वारा ‘चुनाव राजदूत’ बनने वाली पहली ट्रांस व्यक्ति थीं।

विलोपन संकट को रोकने की योजना

संदर्भ: ऑस्ट्रेलिया ने किसी और प्रजाति के विलोपन (Extinction) को रोकने और ‘विश्व की स्तनपायी विलोपन राजधानी’ (mammal extinction capital of the world) के रूप में अपनी स्थिति को समाप्त करने की योजना बनाई है।

  • नई संरक्षण रणनीतियों के तहत ‘कोआला’ (koala) जैसी अनुप्रतीकात्म्क प्रजातियों सहित – 100 से अधिक संकटग्रस्त जानवरों और पौधों को प्राथमिकता दी जाएगी।
  • इस साल की शुरुआत में जारी एक रिपोर्ट के अनुसार- ऑस्ट्रेलिया का पर्यावरण चौंकाने वाली गिरावट की स्थिति से गुजर रहा है।
  • ऑस्ट्रेलिया में कई देशी जानवरों और पौधों को खतरों, जैसेकि वास-स्थान का नष्ट होना, आक्रामक कीट और खरपतवार, जलवायु परिवर्तन, और अधिक निरंतर तथा विनाशकारी प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ता है।
  • इस योजना में महाद्वीप के एक तिहाई स्थल क्षेत्र के संरक्षण का वादा शामिल है।
  • इस 10-वर्षीय रणनीति का उद्देश्य जलवायु परिवर्तन के प्रति लचीलेपन में सुधार करना, शिकारी-मुक्त क्षेत्रों में कुछ प्रमुख प्रजातियों की “सुरक्षा” आबादी का निर्माण करना और मौजूदा आबादी की बेहतर निगरानी करना है।

प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य


साहित्य में नोबेल पुरस्कार

संदर्भ: 2022 साहित्‍य का नोबेल पुरस्‍कार फ्रांस की लेखिका ‘एनी एर्नॉक्स’ (Annie Ernaux) को दिया गया है। नोबेल कमेटी के अनुसार, ‘एनी को उनके साहस और नैतिक सटीकता के साथ अपनी यादों की जड़ों को खोदकर, सामाजिक प्रतिबंधों को उजागर करने के लिए नोबेल पुरस्‍कार के लिए चुना गया है।’

  • 01 सितम्बर 1940 को जन्मी लेखिका एनी एर्नॉक्स ने फ्रेंच के साथ-साथ इंग्लिश में भी कई उपन्यास, लेख, नाटक और फिल्में लिखी हैं। वह फ्रांस के नॉर्मंडी के छोटे से शहर यवेटोट में पली-बढ़ी हैं।
  • पांच दशकों में 20 से अधिक प्रकाशित पुस्तकों में, एर्नॉक्स ने लिंग और वर्ग विभाजन द्वारा विभाजित समाज के भीतर गहराई से व्यक्तिगत अनुभवों और भावनाओं – प्रेम, सेक्स, गर्भपात, शर्म – की पड़ताल की है।

उनकी 20 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। उनकी पहली पुस्तक क्लीन आउट (1974) (कानूनी गर्भपात के लिए उनकी अपनी लड़ाई के बारे में) थी।

नोबेल शांति पुरस्कार

वर्ष 2022 का नोबेल शांति पुरस्कार (Nobel Peace Prize for 2022) जेल में बंद बेलारूस के अधिकार कार्यकर्ता ‘एलेस बियालियात्स्की’ (Ales Bialiatski) , रूसी समूह ‘मेमोरियल’ (Memorial) और यूक्रेन के संगठन ‘सेंटर फॉर सिविल लिबर्टीज’  (Center for Civil Liberties) को प्रदान किया गया है।

एलेस बियालियात्स्की:

25 सितंबर 1962 को रूस के करेलिया में पैदा हुए ‘एलेस बियालियात्स्की’ (Ales Bialiatski)  बीते तीन दशकों से बेलारुस में लोकतंत्र और आजादी के लिए कैम्पेन चला रहे हैं। उन्होंने 1996 में मिंस्क में ‘वियासना’ (Viasna) नामक मानवाधि‍कार संगठन की नींव रखी। यह संगठन राजनीतिक कैदियों की मदद के लिए काम करता है।

मेमोरियल:

इस बार शांति का नोबेल पुरस्कार रूस के मानवाधिकार संगठन ‘मेमोरियल’ को भी मिला है। इस संगठन की स्थापना मास्कों में साल 1987 में हुई थी। इस संगठन का उद्देश्य रूस में सिविल सोसाइटी का प्रतिनिधित्व करना है। ये संगठन सालों से रूस में नागरिकों के मानवाधिकार की लड़ाई लड़ रहा है।

सेंटर फॉर सिविल लिबर्टीज:

‘सेंटर फॉर सिविल लिबर्टीज’ की स्थापना साल 2007 में यूक्रेन के कीव में की गयी थी। यह संगठन यूक्रेन में नागरिकों के अधिकारों की लड़ाई लड़ता रहा है। ये संगठन लोकतंत्र को बचाने और सत्ता के दुरुपयोग के खिलाफ हमेशा खड़ा रहा है।

जम्मू-कश्मीर परिसीमन आदेशों को कानून का दर्जा

संदर्भ: आधिकारिक राजपत्र में अधिसूचित परिसीमन आदेश को, जम्मू और कश्मीर के विधानसभा और लोकसभा क्षेत्रों को फिर से परिभाषित करने के लिए “कानून के समान शक्ति” प्रदान की गयी है।

  • इससे पहले, आयोग ने जम्मू और कश्मीर में विधानसभा सीटों की संख्या 107 से बढ़ाकर 114 कर दी थी। हालाँकि, इसे असंवैधानिक और अधिकारातीत (ultra vires) होने के कारण सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई थी।
  • केंद्र सरकार को 2002 के परिसीमन अधिनियम की धारा 3 के तहत परिसीमन आयोग के दायरे और कार्यकाल को बनाने और तय करने के लिए शक्तियां दी गयी हैं।

परिसीमन के लिए संवैधानिक आधार:

  • संविधान के अनुच्छेद 82 के अंतर्गत, प्रत्येक जनगणना के पश्चात् भारत की संसद द्वारा एक ‘परिसीमन अधिनियम’ क़ानून बनाया जाता है।
  • अनुच्छेद 170 के तहत, प्रत्येक जनगणना के बाद, परिसीमन अधिनियम के अनुसार राज्यों को भी क्षेत्रीय निर्वाचन-क्षेत्रों में विभाजित किया जाता है।
  • एक बार अधिनियम लागू होने के बाद, केंद्र सरकार एक ‘परिसीमन आयोग’ का गठन करती है।
  • परिसीमन आयोग (Delimitation Commission) प्रत्येक जनगणना के बाद संसद द्वारा ‘परिसीमन अधिनियम’ के अधिनियमित होने के बाद अनुच्छेद 82 के तहत गठित एक स्वतंत्र निकाय होता है।

परिसीमन आयोग की संरचना:

‘परिसीमन आयोग अधिनियम’, 2002 के अनुसार, केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त परिसीमन आयोग में तीन सदस्य होते हैं:

  • अध्यक्ष के रूप में उच्चतम न्यायालय के सेवारत या सेवानिवृत्त न्यायाधीश, तथा
  • पदेन सदस्य के रूप में मुख्य निर्वाचन आयुक्त अथवा इनके द्वारा नामित निर्वाचन आयुक्त
  • संबंधित राज्य निर्वाचन आयुक्त

‘मूनलाइटिंग’ के संबंध में कानून

‘मूनलाइटिंग’ (Moonlighting) का तात्पर्य ऐसी स्थिति से है, जिसमे कर्मचारी अपने नियोक्ता के अलावा अन्य संस्थाओं के साथ पारिश्रमिक के लिए काम करते हैं।

जहां विप्रो जैसी कुछ कंपनियों ने प्रतिद्वंद्वी फर्मों से जुड़े 300 कर्मचारियों को निकालकर ‘मूनलाइटिंग’ का विरोध किया है,  वहीं स्विगी जैसी अन्य कंपनियों की ‘मूनलाइटिंग’ नीति कर्मचारियों को कंपनी के हितों से समझौता किए बिना अन्य जगह काम करने की अनुमति देती है।

‘मूनलाइटिंग’ पर कानून:

‘1948 का कारखाना अधिनियम’ श्रमिकों के दोहरे रोजगार पर प्रतिबंध लगाता है। हालांकि, यह केवल ‘कारखानों’ तक सीमित है और कंपनी अधिनियम 2013 द्वारा विनियमित ‘कंपनियों’ पर लागू नहीं होता है।

‘ग्लैक्सो लेबोरेटरीज लिमिटेड बनाम लेबर कोर्ट, मेरठ’ में सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि नियोक्ता को ड्यूटी के घंटों के बाहर श्रमिकों के व्यवहार को विनियमित करने का अधिकार नहीं है।

चूंकि ‘मूनलाइटिंग’ को किसी भी क़ानून के तहत परिभाषित नहीं किया गया है, यह अदालत की व्याख्या और देश के कानून के अधीन है।

मुक्त व्यापार समझौता

संदर्भ: भारत और यूनाइटेड किंगडम के व्यापार अधिकारी जल्द ही ‘भारत-यूके मुक्त व्यापार समझौता’ (India-UK FTA) को हस्ताक्षरित करने का प्रयास करेंगे। हालांकि, यूनाइटेड किंगडम के प्रधान मंत्री की नए गृह सचिव ने कहा है कि यदि इस समझौते में ‘यूनाइटेड किंगडम’ के लिए ‘आव्रजन’ (immigration) अधिक किए जाने की बात की गयी तो वह इस समझौते का समर्थन नहीं करेंगी।

इससे पहले ‘थेरेसा मे’ (2016 में) ने कहा था कि “भारतीयों के लिए वीजा में किसी भी तरह की वृद्धि को “बिना अधिकार के ब्रिटेन में रहने वाले भारतीयों की वापसी की गति और मात्रा” के अनुरूप होना होगा।

‘मुक्त व्यापार समझौता’ के बारे में:

‘मुक्त व्यापार समझौता’ (FTA) दो या दो से अधिक देशों के बीच आयात और निर्यात में बाधाओं को कम करने के लिए एक समझौता होता है।

FTA को निम्नलिखित प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है:

  • तरजीही व्यापार समझौता (Preferential Trade Agreement – PTA)
  • व्यापक आर्थिक सहयोग समझौता (Comprehensive Economic Cooperation Agreement – CECA)
  • व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौता (Comprehensive Economic Partnership Agreement – CEPA)

अप्रवासन:

अप्रवासन (Immigration), अपने मूल देश से किसी अन्य देश में, जहां उनके पास स्थायी निवासी या प्राकृतिक नागरिक के रूप में बसने के लिए नागरिकता नहीं है, लोगों का अंतर्राष्ट्रीय प्रवास होता है।

2020 में 70 मिलियन गरीबी की श्रेणी में शामिल

संदर्भ: हाल ही में विश्व बैंक द्वारा “गरीबी और साझा समृद्धि 2022: सुधार कार्यप्रणाली” (“Poverty and Shared Prosperity 2022: Correcting Course”) शीर्षक से जारी रिपोर्ट के अनुसार, गरीबी और असमानता दोनों में तेजी से वृद्धि हुई है।

रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु:

  • रिपोर्ट के अनुसार- 2015 से वैश्विक गरीबी में कमी की गति धीमी हो रही है, लेकिन कोविड महामारी और यूक्रेन में युद्ध ने इसके परिणामों को पूरी तरह से उलट दिया है।
  • 2030 तक विश्व से ‘अत्यधिक गरीबी को समाप्त करने के लक्ष्य’ को पूरा होने की संभावना नहीं है।
  • केवल 2020 में, अत्यधिक गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों की संख्या में 70 मिलियन से अधिक की वृद्धि हुई।
  • इसके अलावा असमानताओं में भी वृद्धि हुई है।

सुझाए गए समाधान:

वित्तीय नीति: विश्व बैंक समूह के अध्यक्ष डेविड मलपास के अनुसार, “विवेकपूर्ण ढंग से उपयोग की गयी राजकोषीय नीति- नीति निर्माताओं को विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में गरीबी और असमानता के खिलाफ लड़ाई को आगे बढ़ाने के अवसर प्रदान करती है”।

जब ‘राजकोषीय नीति’ की बात आती है तो विश्व बैंक के तीन विशिष्ट सुझाव हैं।

  1. व्यापक सब्सिडी के बजाय ‘लक्षित नकद हस्तांतरण’ चुनें।
  2. लंबी अवधि के विकास के लिए सार्वजनिक खर्च को प्राथमिकता दें।
  3. गरीबों को नुकसान पहुंचाए बिना कर राजस्व जुटाएं।

खरीद प्रबंधक सूचकांक

संदर्भ: हाल ही में S&P ग्लोबल इंडिया सर्विसेज परचेज मैनेजर्स इंडेक्स (PMI) के अनुसार, उच्च मुद्रास्फीति के दैरान कम मांग के कारण सितंबर में भारत के सेवा क्षेत्र की वृद्धि छह महीने के निचले स्तर पर आ गई है।

खरीद प्रबंधक सूचकांक (Purchasing Manager’s Index – PMI) निजी क्षेत्र की कंपनियों के मासिक सर्वेक्षण से प्राप्त एक आर्थिक संकेतक है। PMI का उद्देश्य कंपनी के निर्णय निर्माताओं, विश्लेषकों और निवेशकों को किसी व्यवसाय की वर्तमान और भविष्य की स्थितियों के बारे में जानकारी प्रदान करना है।

 

‘नो ऑयल प्रोडक्शन एंड एक्सपोर्टिंग कार्टेल्स’ विधेयक

अमेरिकी सीनेट की एक कमेटी द्वारा पारित ‘नो ऑयल प्रोडक्शन एंड एक्सपोर्टिंग कार्टेल्स’ (NOPEC) बिल का उद्देश्य अमेरिकी उपभोक्ताओं और व्यवसायों को संशाधित तेल की कीमतों में वृद्धि से बचाना है।

  • पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन (ओपेक) और रूस सहित सहयोगियों के समूह ‘ओपेक प्लस’ ने हाल ही में, पहले से ही तंग बाजार में तेल-आपूर्ति पर अंकुश लगाते हुए उत्पादन में कटौती करने पर सहमति व्यक्त की है।
  • यदि NOPEC कानून पर हस्ताक्षर किए जाते हैं, तो अमेरिकी अटॉर्नी जनरल को संघीय अदालत में ‘तेल कार्टेल’ या उसके सदस्यों, जैसे सऊदी अरब पर मुकदमा चलाने का विकल्प प्राप्त होगा।

सभी स्मार्टफोन, टैबलेट और कैमरों के लिए एक ही चार्जर का प्रावधान

यूरोपीय संघ की संसद द्वारा पारित एक नए कानून के अनुसार, 2024 के अंत तक सभी नए स्मार्टफोन, टैबलेट और कैमरों में एक ही मानक चार्जर होगा।

  • अधिकांश एंड्रॉइड फोन ‘यूएसबी टाइप-सी चार्जिंग पोर्ट’ के साथ आते हैं, किंतु इस कदम का मुख्य रूप से ऐप्पल (Apple) पर असर पड़ेगा। इस नए क़ानून के अनुपालन हेतु ऐप्पल को ‘USB-C पोर्ट’ के लिए अपने आईफ़ोन पर अपने पुराने लाइटनिंग पोर्ट को छोड़ना पड़ेगा।
  • यूरोपीय संघ के नीति निर्माताओं का कहना है कि सिंगल चार्जर नियम यूरोपीय लोगों के जीवन को सरल करेगा, अप्रचलित चार्जर्स के भार को कम करेगा और उपभोक्ताओं के लिए लागत कम करेगा।
  • इससे प्रति वर्ष कम से कम 200 मिलियन यूरो ($ 195 मिलियन) बचाने और हर साल एक हजार टन से अधिक यूरोपीय संघ के इलेक्ट्रॉनिक कचरे में कटौती की उम्मीद है।

मानव जैसी शक्ल का रोबोट – ऑप्टिमस

संदर्भ: प्रद्योगिकी अरबपति ‘एलोन मस्क’ ने अपनी टेस्ला इलेक्ट्रिक कार कंपनी द्वारा विकसित किए जा रहे ‘ह्यूमनॉइड रोबोट’ का नवीनतम प्रोटोटाइप ‘ऑप्टिमस’ (Optimus) प्रस्तुत किया है।

  • हाल ही में ‘ऑप्टिमस’ का एक वीडियो जारी किया गया है, जिसमें ‘ऑप्टिमस रोबोट’ को साधारण काम करते हुए, जैसेकि पौधों को पानी देना, बक्से ले जाना और धातु की छड़ें उठाना, आदि करते हुए दिखाया गया है।
  • इन रोबोटों को कुल $20,000 (£17,900) से कम लागत पर उत्पादित किया जाएगा, और ये तीन से पांच वर्षों में आम जनता के लिए उपलब्ध हो जाएंगे।

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