विषयसूची
सामान्य अध्ययन-II
- लैंगिक वेतन अंतराल- कठोर सत्य और आवश्यक कार्रवाई
- मानसिक स्वास्थ्य: आंकड़ों के अलावा अन्य तथ्य
- अनुसूचित जनजाति सूची में शामिल करने या हटाए जाने की प्रक्रिया
सामान्य अध्ययन-III
- राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स नीति
मुख्य परीक्षा संवर्धन हेतु पाठ्य सामग्री (निबंध/नैतिकता)
- सरपंच ने अपना सोना गिरवी रखकर गांव में सीसीटीवी लगवाने हेतु किया कर्ज
- फ्रीडम फ्यूल
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य
- पोन्नियन सेल्वन
- डॉक्टरों को बीमा राशि का सिर्फ 20% मिला
- चीन द्वारा UNSC में ‘लश्कर के कमांडर की लिस्टिंग पर अवरोध
- बाल कल्याण समिति के सदस्यों हेतु नए नियम
- एंस्पायर अवार्ड्स ‘मानक’
- राष्ट्रीय तकनीकी वस्त्र मिशन
- कृतज्ञ 3.0
- बीज समझौता
- कृषि के साथ पारिस्थितिकी
- चीता
- सोवा वायरस अटैक
- मानचित्र (चर्चा में)
सामान्य अध्ययन– II
विषय: केन्द्र एवं राज्यों द्वारा जनसंख्या के अति संवेदनशील वर्गों के लिये कल्याणकारी योजनाएँ और इन योजनाओं का कार्य-निष्पादन; इन अति संवेदनशील वर्गों की रक्षा एवं बेहतरी के लिये गठित तंत्र, विधि, संस्थान एवं निकाय।
लैंगिक वेतन अंतराल- कठोर सत्य और आवश्यक कार्रवाई
संदर्भ: वैश्विक आर्थिक विकास और संरचनात्मक परिवर्तन के संदर्भ में ‘भारत’ सबसे महत्वपूर्ण देशों में से एक है। लेकिन, देश के श्रम बाजार में विषमताएं अभी भी विद्यमान हैं।
महिलाओं पर महामारी का प्रभाव:
- आय सुरक्षा: महिलाओं के प्रतिनिधित्व वाले क्षेत्रों के कोविड-19 से प्रभावित होने के कारण, इनकी आय पर महत्वपूर्ण नकारात्मक प्रभाव पड़ा है।
- पारिवारिक उत्तरदायित्व: पारिवारिक उत्तरदायित्वों का लैंगिक विभाजन।
- बच्चों और बुजुर्गों की देखभाल: महामारी के दौरान कई महिलाएं ‘बच्चों और बुजुर्गों की पूर्णकालिक देखभाल’ के कार्यों में लौट आईं।
- वैश्विक वेतन रिपोर्ट 2020-21: मजदूरी पर भारी गिरावट का दबाव और पुरुषों की तुलना में महिलाओं की कुल मजदूरी पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा।
भारत में लैंगिक अंतराल:
- महिलाओं की आय में कमी: भारतीय महिलाओं ने, 1993-94 के दौरान अपने पुरुष समकक्षों की तुलना में, औसतन 48% कम आय अर्जित की।
- राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण कार्यालय (NSSO): इसके अनुसार, 2018-19 में यह अंतर घटकर 28% रह गया।
- आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) 2020-21: इसके अनुसार- महामारी ने बीते वर्षों के हुई प्रगति को उलट दिया और 2018-19 और 2020-21 के बीच ‘लैंगिक आय अंतराल’ में मात्र 7% की वृद्धि दर्ज की गयी।
लिंग आधारित भेदभावपूर्ण व्यवहार:
- समान मूल्य के काम के लिए महिलाओं को कम वेतन दिया जाता है।
- मुख्यतः महिलाओं वाले व्यवसायों और उद्यमों में संलग्न महिलाओं के काम का कम मूल्यांकन।
- मातृत्व वेतन अंतराल – माताओं के लिए, गैर-माताओं की तुलना में कम मजदूरी का भुगतान किया जाता हैं।
‘अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन’ (ILO) द्वारा ‘महिलाओं के खिलाफ सभी प्रकार के भेदभाव उन्मूलन पर संविधान और कन्वेंशन’ (CEDAW): इसके तहत, लैंगिक समानता को साकार करने और महिलाओं और लड़कियों के बीच भेदभाव और कमजोरियों के प्रतिच्छेदन रूपों को संबोधित करने हेतु एक अंतरराष्ट्रीय कानूनी फ्रेमवर्क का प्रावधान किया गया है।
इस संदर्भ में भारत द्वारा उठाए गए कदम:
- 1948 में न्यूनतम मजदूरी अधिनियम,
- 1976 में समान पारिश्रमिक अधिनियम,
- मजदूरी संहिता,
- महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा),
- मातृत्व लाभ अधिनियम 1961,
- कौशल भारत मिशन,
- समान वेतन अंतर्राष्ट्रीय गठबंधन (EPIC)
निष्कर्ष:
- संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्य-8: 2030 तक सभी महिलाओं और पुरुषों के लिए पूर्ण और उत्पादक रोजगार और अच्छे काम तथा समान मूल्य के काम के लिए समान वेतन हासिल करना।
- लैंगिक वेतन अंतराल को समाप्त करना: यह कामकाजी महिलाओं के लिए सामाजिक न्याय हासिल करने के साथ-साथ पूरे देश के लिए आर्थिक विकास की कुंजी है।
इंस्टा लिंक्स:
स्रोत: द हिंदू
विषय: सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय।
मानसिक स्वास्थ्य: आंकड़ों के अलावा अन्य तथ्य
संदर्भ:
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) द्वारा जारी ‘कारागार सांख्यिकी भारत’ रिपोर्ट (Prison Statistics India Report) के अनुसार- मानसिक बीमारी से पीड़ित 9,180 कैदी, सिज़ोफ्रेनिया और मिर्गी से पीड़ित पांच कैदियों, और 150 कैदियों की आत्महत्या से मौत हो चुकी है।
भारत की राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य नीति, 2014: इस नीति में कैदियों को ‘मानसिक अस्वस्थता के प्रति संवेदनशील’ लोगों का एक वर्ग माना गया है।
प्रमुख बिंदु:
- अधिकतम कैदी: विचाराधीन कैदियों की संख्या, कारागारों में बंद कुल आबादी के 70% से अधिक है।
- मानसिक बीमारी से ग्रस्त: मानसिक बीमारी से ग्रस्त आधे से अधिक कैदी, ‘विचाराधीन कैदी’ (Undertrial) हैं।
- प्रोजेक्ट 39A की रिपोर्ट: मानसिक स्वास्थ्य और मृत्युदंड पर एक ‘प्रोजेक्ट 39A’ की रिपोर्ट के अनुसार- मौत की सजा पाने वाले 60% से अधिक कैदियों में मानसिक बीमारी से जूझ रहे थे।
समाधान का अभाव:
‘राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो’ के आंकड़े: राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) हमें वर्गीकरण की पुष्टि करने वाला डेटा प्रदान करता है, लेकिन यह हमें समाधान तैयार करने की दिशा में बहुत आगे नहीं ले जाता है।
मानसिक बीमारियों के कारक ‘कैद के पहलू’:
- स्वतंत्रता पर प्रतिबंध
- प्रियजनों के साथ निकट संपर्क पर प्रतिबंध
- स्वायत्तता पर प्रतिबंध
आवश्यकता:
- सर्वांगीण दृष्टिकोण: व्यक्तियों के उपचार से आगे और जेलों में मानसिक स्वास्थ्य के सामाजिक और अंतर्निहित निर्धारकों की पहचान करने की दिशा में आगे बढ़ने की आवश्यकता है।
- सामाजिक और संरचनात्मक: हमें कारागारों में मानसिक स्वास्थ्य को सामाजिक और संरचनात्मक दृष्टिकोण से भी देखने की जरूरत है।
- सुधार, पुनर्वास या पुनर्एकीकरण (3Rs): कैदियों को उनके जीवन, उनकी पसंद और निर्णय लेने की उनकी क्षमता और इसके लिए जिम्मेदार और जवाबदेह बनाने के लिए आश्वस्त करने हेतु ‘सुधार, पुनर्वास या पुनर्एकीकरण’ (Reform, Rehabilitation or Reintegration- 3Rs) किए जाने की आवश्यकता है।
इंस्टा लिंक्स:
मेंस लिंक:
हालांकि ‘मानवाधिकार आयोगों’ ने भारत में मानवाधिकारों की सुरक्षा में बहुत योगदान दिया है, फिर भी वे शक्तिशाली संस्थाओं और व्यक्तियों के खिलाफ खुद को मुखर करने में विफल रहे हैं। ‘मानवाधिकार आयोगों’ की संरचनात्मक और व्यावहारिक सीमाओं का विश्लेषण करते हुए, उपचारात्मक उपायों का सुझाव दीजिए। (यूपीएससी 2021)
स्रोत: द हिंदू
विषय: संसद और राज्य विधायिका- संरचना, कार्य, कार्य-संचालन, शक्तियाँ एवं विशेषाधिकार और इनसे उत्पन्न होने वाले विषय।
अनुसूचित जनजाति सूची में शामिल करने या हटाए जाने की प्रक्रिया
संदर्भ: हाल ही में, केंद्रीय मंत्रिमंडल ने राज्यों में अनुसूचित जनजातियों (Scheduled Tribes) की सूची में कुछ अन्य जनजातियों को जोड़ने के प्रस्ताव को मंजूरी प्रदान की है। इससे यह जनजातियां आरक्षण सहित अनुसूचित जनजातियों के लिए दिए जा रही सुविधाओं का लाभ उठा सकेंगी।
सूची में शामिल की जाने वाले जनजातियों में शामिल हैं:
- हट्टी जनजाति (हिमाचल प्रदेश में सिरमौर जिले का ट्रांस-गिरी क्षेत्र)
- नारिकोवर (तमिलनाडु की पहाड़ी जनजाति)
- कुरुविकरण (तमिलनाडु की पहाड़ी जनजाति)
- बिंझिया (छतीसगढ़)
अनुसूचित जनजातियों को सूची में शामिल करने या हटाने की प्रक्रिया:
अनुच्छेद 341 और अनुच्छेद 342: अनुसूचित जनजातियों को सूची में शामिल करने या हटाने संबंधी अंतिम निर्णय, राष्ट्रपति कार्यालय द्वारा परिवर्तनों को निर्दिष्ट करने संबंधी ‘अधिसूचना’ जारी करने पर निर्भर करता है।
निर्धारित मानदंड:
- जातीय विशिष्टता
- पारंपरिक अभिलक्षण
- विशिष्ट संस्कृति
- भौगोलिक अलगाव
- पिछड़ापन
जनजातीय समावेशन पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी:
किसी व्यक्ति को जनजाति से जोड़ने के लिए ‘संबंध परीक्षण’: इस बात की संभावना रहती है, कि अन्य संस्कृतियों के साथ संपर्क, प्रवास और आधुनिकीकरण ने किसी ‘जनजाति’ की पारंपरिक विशेषताओं को मिटा दिया हो।
आधिकारिक तौर पर अनुसूचित जनजातियों की संख्या:
2011 की जनगणना के अनुसार-
- अनुच्छेद 342 के तहत ‘अनुसूचित जनजाति’ के रूप में 705 जातीय समूह सूचीबद्ध हैं।
- 10 करोड़ से अधिक भारतीयों को ‘अनुसूचित जनजाति’ के रूप में अधिसूचित किया गया है।
- अनुसूचित जनजाति, कुल जनसंख्या का 8.6% और ग्रामीण आबादी का 11.3% है।
इंस्टा लिंक्स:
मेंस लिंक:
आजादी के बाद से अनुसूचित जनजातियों के खिलाफ भेदभाव को दूर करने के लिए राज्य द्वारा की गयी दो प्रमुख कानूनी पहलों पर चर्चा कीजिए। (यूपीएससी 2017)
स्रोत: द हिंदू
सामान्य अध्ययन– III
विषय: बुनियादी ढाँचाः ऊर्जा, बंदरगाह, सड़क, विमानपत्तन, रेलवे आदि।
राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स नीति
संदर्भ: हाल ही में, प्रधानमंत्री द्वारा देश में माल की निर्बाध आवाजाही को बढ़ावा देने और उद्योगों के बीच प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ाने के उद्देश्य से ‘राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स (प्रचालन-तंत्र) नीति’ (National Logistics Policy – NLP) का शुभारंभ किया है।
- ‘राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स नीति’ की घोषणा 2022-23 के राष्ट्रीय बजट में में भी की गई थी।
- विश्व बैंक के ‘लॉजिस्टिक्स प्रदर्शन सूचकांक’ 2018 में भारत 44वें स्थान पर है।
- गुजरात ने ‘विभिन्न राज्यों में लॉजिस्टिक्स सुगमता’ 2021 (Logistics Ease Across Different States – LEADS, 2021) सूचकांक में शीर्ष स्थान हासिल किया है।
आवश्यकता:
- अन्य विकसित अर्थव्यवस्थाओं (8%) की तुलना में भारत में लॉजिस्टिक्स लागत (लगभग 13-14%) अधिक है।
- भारत का लॉजिस्टिक्स क्षेत्र अत्यधिक डीफ़्रेग्मेंटेड और बहुत जटिल है।
- यह क्षेत्र 22 मिलियन से अधिक लोगों को रोजगार प्रदान करता है और अगले 5 वर्षों में 10.5 प्रतिशत की दर से बढ़ने की उम्मीद है।
- लॉजिस्टिक्स, भारत के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार की रीढ़ भी है और यह न केवल भारत के ‘निर्यात बास्केट’ बल्कि उत्पादों और देशों के विविधीकरण में भी मदद करेगा।
उद्देश्य:
- लॉजिस्टिक्स क्षेत्र के लिए लागत को पांच वर्षों में घटाकर 10 प्रतिशत करना।
- युवाओं में कौशल विकसित करना और रोजगार के अवसर पैदा करना।
- माल की निर्बाध आवाजाही को बढ़ावा देना और पूरे देश में उद्योग की प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ाना।
- प्रक्रियाओं में सुधार, डिजिटाइजेशन और मल्टी-मोडल ट्रांसपोर्ट जैसे कुछ प्रमुख क्षेत्रों पर ध्यान देना।
राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स नीति के तहत चार प्रमुख कदम:
- डिजिटल सिस्टम का एकीकरण (Integration of Digital System – IDS): सात अलग-अलग विभागों (जैसे सड़क परिवहन, रेलवे, सीमा शुल्क, विमानन, विदेश व्यापार और वाणिज्य मंत्रालय) की विभिन्न प्रणालियों को डिजिटल रूप से एकीकृत किया जाएगा।
- यूनिफाइड लॉजिस्टिक्स इंटरफेस प्लेटफॉर्म (ULIP): इससे कार्गो की संक्षिप्त और सुगम आवाजाही में भी सुधार होगा। यह गोपनीय तरीके से वास्तविक समय के आधार पर सूचनाओं के आदान-प्रदान को भी सक्षम करेगा। नेशनल इंडस्ट्रियल कॉरिडोर डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (NICDC’s) का लॉजिस्टिक्स डेटा बैंक प्रोजेक्ट को ULIP विकसित करने के लिए इस्तेमाल किया जाएगा।
- लॉजिस्टिक्स सुगमता (Ease of Logistics – ELOG): यह नियमों को सरल करेगा और लॉजिस्टिक्स व्यवसाय को आसान बनाएगा।
- सिस्टम इम्प्रूवमेंट ग्रुप (System Improvement Group – SIG): यह लॉजिस्टिक्स से संबंधित सभी परियोजनाओं की नियमित रूप से निगरानी करना और सभी बाधाओं से निपटेगा।
सरकार द्वारा उठाए गए अन्य कदम:
- वाणिज्य विभाग में लॉजिस्टिक्स प्रभाग का गठन।
- गति शक्ति योजना।
- भारतमाला कार्यक्रम। इसके तहत लगभग 84,000 किलोमीटर नए राजमार्गों का निर्माण किया जाएगा।
- सागरमाला परियोजना। देश के 7,5000 किमी समुद्र तट और 14,500 किमी नौगम्य जलमार्ग की क्षमता का दोहन करने के लिए यह योजना शुरू की गयी है।
- रेलवे: फ्रेट कॉरिडोर।
- इससे पहले, सरकार की योजना ‘माल के बहुविध परिवहन अधिनियम’, 1993 (Multimodal Transportation of Goods Act, 1993 – MMTG Act) के स्थान पर ‘राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स दक्षता और अग्रिम पूर्वानुमान एवं सुरक्षा अधिनियम (National Logistics Efficiency and Advancement Predictability and Safety Act – (NLEAPS Act) से लागू करने की है।
इंस्टा लिंक
मेंस लिंक:
भारत की अत्यधिक उच्च लॉजिस्टिक्स लागत को कम करने के लिए सरकारी उपायों को प्राथमिकता देना, नियमों की अधिकता, खराब कनेक्टिविटी और वितरण चुनौतियों से निपटने के लिए लॉजिस्टिक्स की ओर एक कदम उठाया जाना समय की वर्तमान मांग है। स्पष्ट कीजिए। (15 अंक)
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
मुख्य परीक्षा संवर्धन हेतु पाठ्य सामग्री (नैतिकता/मुख्य)
सरपंच ने अपना सोना गिरवी रखकर गांव में सीसीटीवी लगवाने हेतु किया कर्ज
मध्य प्रदेश के बुरहानपुर की ग्राम पंचायत ‘झिरी’ की नवनिर्वाचित महिला सरपंच ‘आशाबाई कैथवास’ एक प्रेरक सरपंच के रूप में उभरी हैं।
- महिला सरपंच ने अपने जेवर गिरवी रखकर अपने गांव की सुरक्षा के लिए गांव में सीसीटीवी कैमरे लगवाए हैं। इस कार्य के लिए सरपंच को सरकार से समय पर फंड नहीं मिल पाया था।
- दुर्घटना, चोरी, छेड़खानी और बच्चे के अपहरण जैसी घटनाओं को इन कैमरों में कैद किया जा सकता है, और सरपंच आशाबाई ने इन कैमरों को लगाया है ताकि अपराधी आसानी से पकड़े जा सकें।
इस उदाहरण को ‘जनसेवा के प्रति समर्पण’ के रूप में लिखा जा सकता है।
फ्रीडम फ्यूल
रसोई गैस या तरलीकृत पेट्रोलियम गैस (LPG) की बढ़ती कीमतों को मात देने के लिए, विशाखा चंधेर (Vishakha Chandhere) ने अपने शहर पुणे से एक शांत क्रांति की शुरुआत की है।
- विशाखा चंधेर अपने ‘तीन सौर कुकरों’ पर खाना बनाती हैं – पहले ‘सौर कुकर’ में एक ‘परवलयिक परावर्तक’ (Parabolic Reflector) लगा है जो बर्तन के आधार को गर्म करता है; दूसरा ‘सौर कुकर’ एक ‘रोधी बॉक्स’ (Insulated Box) है जिसमें आधार और ढक्कन पर ‘प्रकाश परावर्तित करने वाले दर्पण’ (light reflected mirrors) लगे होते हैं; और तीसरे कुकर में, भोजन को एक ‘वैक्यूम (निर्वात) ट्यूब’ के अंदर रखा जाता है जो ऊष्मा उत्पन्न करने के लिए प्रकाश को संकेंद्रित करता है।
- भोजन को तीन कुकरों में से किसी में भी उबाला जा सकता है, स्टीम किया जा सकता है या भुना जा सकता है।
- अंतर केवल इतना है कि ‘परवलयिक सौर कुकर’ अत्यधिक प्रकाश होने पर अच्छा काम करता है; बादल के दिनों के लिए ‘ट्यूब मॉडल’ सबसे उपयुक्त है; और ‘बॉक्स कुकर’- हालांकि इसे गर्म होने में एक से दो घंटे लगते हैं – सभी स्थितियों के लिए उपयुक्त है।
- विशाखा चंधेर ने 2018 में अपने उपकरणों को साझा करने और स्वच्छ खाना पकाने के उपकरणों को बढ़ावा देने के लिए ‘ऊर्जाबॉक्स’ (Orjabox) नामक एक स्टार्टअप लॉन्च किया था।
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य
पोन्नियन सेल्वन
संदर्भ: प्रसिद्ध तमिल उपन्यास ‘पोन्नियिन सेलवन’ (Ponniyan Selvan) की चिरस्थायी लोकप्रियता को अब मणिरत्नम द्वारा बड़े पर्दे पर रूपांतरित किया गया है।
पोन्नियन सेलवन का अर्थ है पोन्नी (कावेरी नदी) का पुत्र। यह उपन्यास लेखक और स्वतंत्रता सेनानी ‘कल्कि कृष्णमूर्ति’ द्वारा लिखा गया था, और तमिल पत्रिका ‘कल्कि’ में साप्ताहिक धारावाहिक रूप में 1950-54 से प्रकशित किया गया था।
बाद में इसे 1955 में एक पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया गया था। इस उपन्यास में ‘राजराजा प्रथम’ के शुरुआती दिनों की कहानी का वर्णन है। अरुणमोझी वर्मन के नाम से जन्मे ‘राजराजा प्रथम’ (Rajaraja I) को सभी चोल शासकों में सबसे महान माना जाता है।
राजराजा प्रथम (985-1014 ई.) के बारे में:
- राजराजा प्रथम, चोल राजाओं में सबसे प्रसिद्ध है। इन्होने कई नौसैनिक अभियानों का नेतृत्व किया और पश्चिमी तट के समीप स्थित ‘श्रीलंका’ और हिंद महासागर में ‘मालदीव’ पर विजय प्राप्त की।
- ‘कंदनूर सलाई’ के युद्ध में राजराजा प्रथम ने ‘चेरों’ को पराजित किया।
- राजराजा प्रथम अपने पश्चिमी और पूर्वी चालुक्यों के खिलाफ अभियान में भी सफल रहा, और उन्होंने चालुक्यों को पराजित कर ‘वेंगी’ के सिंहासन पर शक्तिवर्मा को बिठाया।
- उसने कावेरी नदी पर एक बांध का निर्माण किया।
- वह शैववाद के कट्टर अनुयायी था। उन्होंने 1010 ईस्वी में तंजौर में प्रसिद्ध राजराजेश्वर मंदिर या बृहदेश्वर मंदिर का निर्माण पूरा किया।
- उपाधियाँ: राजराजा प्रथम ने मुम्मिदी चोल (Mummidi Chola), जयनकोंडा और शिवपदाशेखर की उपाधियाँ धारण की।
- उसने अपने पुत्र ‘राजेंद्र चोल’ के लिए अपना सिंहासन त्याग दिया।
डॉक्टरों को बीमा राशि का सिर्फ 20% मिला
संदर्भ: डॉक्टरों के आश्रितों को देश में COVID-19 से लड़ते हुए मारे गए स्वास्थ्य कर्मियों के लिए प्रधानमंत्री गरीब कल्याण पैकेज (PMGKP) बीमा योजना के तहत वितरित कुल धनराशि के मात्र 20% से कुछ अधिक प्राप्त हुआ है।
- यह बीमा योजना, मार्च 2020 में सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं और निजी स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं सहित 22 लाख से अधिक स्वास्थ्य देखभाल प्रदाताओं को 50 लाख रुपये का ‘व्यापक व्यक्तिगत दुर्घटना सुरक्षा’ प्रदान करने के लिए शुरू की गई थी। ।
- इस योजना के तहत प्रदान किया गया बीमा लाभार्थी द्वारा प्राप्त किए जा रहे किसी भी अन्य बीमा कवर के अतिरिक्त होगा।
- यह योजना कोविड-19 के कारण होने वाली मौत और कोविड -19 से संबंधित कर्तव्य पूरा करने के कारण होने वाली आकस्मिक मृत्यु को कवर करती है।
- केंद्र के साथ-साथ राज्यों के सभी सरकारी स्वास्थ्य केंद्र, वेलनेस सेंटर और अस्पताल इस योजना के अंतर्गत आते हैं।
प्रधानमंत्री गरीब कल्याण पैकेज (PMGKP) बीमा योजना:
चीन द्वारा UNSC में ‘लश्कर के कमांडर की लिस्टिंग पर अवरोध
संदर्भ:
चीन ने लश्कर-ए-तैयबा के कमांडर ‘साजिद मीर’ को ‘संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की 1267 सूची’ में शामिल करने (Listing) हेतु भारत और अमेरिका द्वारा संयुक्त रूप से पेश किए गए प्रस्ताव पर रोक लगा दी। ‘साजिद मीर’ पाकिस्तान आधारित एक घोषित आतंकवादी है।
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की 1267 समिति:
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की 1267 समिति (UNSC 1267 committee) में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) के सभी स्थायी और अस्थायी सदस्य शामिल हैं।
- ‘आतंकवादियों की 1267 सूची’ एक वैश्विक सूची है, जिसमें UNSC द्वारा घोषित आंतकवादी शामिल होते हैं।
- यह समिति आतंकवादियों की आवाजाही को सीमित करने, विशेष रूप से यात्रा प्रतिबंधों से संबंधित, संपत्ति की जब्ती और आतंकवाद के लिए हथियारों पर प्रतिबंध के लिए संयुक्त राष्ट्र के प्रयासों पर चर्चा करती है।
लिस्टिंग प्रक्रिया:
- कोई भी सदस्य देश किसी व्यक्ति, समूह या संस्था को ‘आतंकवादियों की 1267 सूची’ में सूचीबद्ध करने का प्रस्ताव प्रस्तुत कर सकता है।
- इस प्रस्ताव में ऐसे कार्य या गतिविधियां शामिल होनी चाहिए जो यह दर्शाती हों कि प्रस्तावित व्यक्ति/समूह/इकाई ने “आईएसआईएल, अल-कायदा या किसी भी सेल, सहयोगी, समूह या उसके व्युत्पन्न इकाई” में शामिल रहा हो।
- आम सहमति: लिस्टिंग और डीलिस्टिंग पर निर्णय सर्वसम्मति से किए जाते हैं।
- तकनीकी रोक: समिति का कोई भी सदस्य प्रस्ताव पर “तकनीकी रोक” लगा सकता है और प्रस्तावित सदस्य देश से प्रस्ताव के बारे में अधिक जानकारी मांग सकता है।
बाल कल्याण समिति के सदस्यों हेतु नए नियम
संदर्भ: हाल ही में संशोधित, ‘किशोर न्याय (देखभाल और संरक्षण संशोधन) मॉडल संशोधन नियम’ 2022 के तहत, विदेशी धन प्राप्त करने वाले संगठन से जुड़े व्यक्ति को ‘बाल कल्याण समितियों’ का हिस्सा बनने पर रोक लगायी गयी है।
‘बाल कल्याण समिति’ (CWC) को दुर्व्यवहार, शोषित, परित्यक्त या अनाथ बच्चों की देखभाल और संरक्षण का काम सौंपा जाता है।
प्रमुख बिंदु:
- मॉडल नियम 2021 के नियम 15 (4B) में कहा गया है, “विदेशी योगदान प्राप्त करने वाले संगठन से जुड़ा व्यक्ति समिति का अध्यक्ष या सदस्य बनने के योग्य नहीं होगा।
- नियम 15 (4C): यह कहता है कि ‘जेजे अधिनियम’ के कार्यान्वयन में, किसी गैर सरकारी संगठन या संगठन में काम करने वाला कोई भी व्यक्ति, ‘बाल कल्याण समिति’ (CWC) में शामिल होने के लिए अपात्र होगा।
- एनजीओ के लिए काम करने वाले परिवार का कोई भी सदस्य या “करीबी रिश्तेदार” भी ‘बाल कल्याण समिति’ (CWC) में शामिल होने के लिए अयोग्य होगा।
- जिलों में बचाव और पुनर्वास का कार्य करने वाले व्यक्ति: चाइल्ड केयर संस्थान चलाने वाले किसी व्यक्ति का प्रतिनिधित्व करने वाला व्यक्ति या बोर्ड या किसी एनजीओ के ट्रस्ट का सदस्य भी CWC में शामिल नहीं हो सकता है।
- सेवानिवृत्त न्यायिक अधिकारी: नए नियमों में ‘सेवानिवृत्त न्यायिक अधिकारियों’ को भी CWC में नियुक्ति के लिए विचार किए जाने वाले व्यक्तियों की श्रेणी से हटा दिया गया है।
‘बाल कल्याण समितियों’ के बारे में:
किशोर न्याय (बच्चों की देखरेख और संरक्षण) अधिनियम, 2015 (जेजे अधिनियम) की धारा 27(1) के अनुसार, राज्य सरकार द्वारा प्रत्येक जिले के लिए आधिकारिक राजपत्र में अधिसूचना द्वारा ‘बाल कल्याण समितियों’ (Child Welfare Committees – CWC) का गठन किया जाएगा।
- देखरेख और संरक्षण की आवश्यकता वाले बच्चों के संबंध में इन समितियों का कार्य ‘जेजे अधिनियम’, 2015 (JJ Act, 2015) के तहत प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग और कर्तव्यों का निर्वहन करना होगा।
- CWC बच्चों की सुरक्षा और भलाई सुनिश्चित करने के लिए जांच का आदेश भी दे सकती हैं।
- ये समितियां बालकों के लिए, परिवार-आधारित देखभाल में जैसे परिवार या अभिभावक की सुरक्षा में भेजने, दत्तक ग्रहण, पालक देखभाल या बाल देखभाल संस्थानों में भेजने के आदेश भी जारी कर सकती हैं।
विदेशी योगदान (विनियमन) अधिनियम, 2010: यह केवल निम्नलिखित कुछ श्रेणियों के लोगों और संगठनों को विदेशी धन प्राप्त करने से रोकता है।
- चुनावी उम्मीदवार
- किसी भी विधायिका (सांसद और विधायक) के सदस्य
- राजनीतिक दल या पदाधिकारी
- राजनीतिक प्रकृति का संगठन
- पंजीकृत समाचार पत्र के संवाददाता, स्तंभकार, कार्टूनिस्ट, संपादक, मालिक, प्रिंटर या प्रकाशक।
- न्यायाधीश, सरकारी कर्मचारी, तथा सरकार के स्वामित्व वाले किसी भी निगम अथवा किसी अन्य निकाय के कर्मचारी।
- किसी इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से ऑडियो न्यूज, ऑडियो विजुअल न्यूज या करंट अफेयर्स प्रोग्राम के उत्पादन या प्रसारण में संलग्न एसोसिएशन अथवा कंपनी।
- केंद्र सरकार द्वारा विशेष रूप से निषिद्ध कोई अन्य व्यक्ति अथवा संगठन।
एंस्पायर अवार्ड्स ‘मानक’
संदर्भ: विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने विज्ञान की ओर अधिक से अधिक प्रतिभाओं को आकर्षित करने के लिए 60 स्टार्ट-अप को INSPIRE पुरस्कार और 50,000 से अधिक छात्रों को वित्तीय सहायता प्रदान की है।
- ‘मिलियंस माइंड्स ऑगमेंटिंग नेशनल एस्पिरेशन एंड नॉलेज’ (MANAK) पुरूस्कार को 2017 में विज्ञान और प्रौद्योगिकी में निहित 1 मिलियन मूल विचारों/नवाचारों को लक्षित करने और स्कूली छात्रों के बीच रचनात्मकता की संस्कृति बनाने के उद्देश्य से लॉन्च किया गया था।
राष्ट्रीय तकनीकी वस्त्र मिशन
संदर्भ: सरकार ने विभिन्न क्षेत्रों में ‘राष्ट्रीय तकनीकी वस्त्र मिशन’ (National Technical Textiles Mission – NTTM) के तहत स्पेशलिटी फाइबर, सस्टेनेबल फाइबर, जियोटेक्सटाइल, मोबिलटेक और स्पोर्ट्स टेक्सटाइल जैसी परियोजनाएं शुरू की हैं।
‘तकनीकी वस्त्र’ क्या होते हैं?
तकनीकी वस्त्रों को मुख्य रूप से, सौंदर्यपरक विशेषताओं की अपेक्षा तकनीकी कार्य निष्पादन और कार्यात्मक आवश्यकताओं लिए निर्मित वस्त्र सामग्री और उत्पादों के रूप में परिभाषित किया जाता है।
तकनीकी वस्त्र उत्पादों को उनके अनुप्रयोग क्षेत्रों के आधार पर 12 व्यापक श्रेणियों में विभाजित किया गया है: एग्रोटेक, बिल्डटेक, क्लॉथटेक, जियोटेक, होमटेक, इंड्यूटेक, मोबिलटेक, मेडिटेक, प्रोटेक, स्पोर्ट्सटेक, ओइकोटेक, पैकटेक।
‘राष्ट्रीय तकनीकी वस्त्र मिशन’ के बारे में:
वर्ष 2020 में, आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (CCEA) द्वारा एक 1,480 करोड़ रुपए के कुल परिव्यय से ‘राष्ट्रीय तकनीकी वस्त्र मिशन’ की स्थापना को मंजूरी दी गई थी।
उद्देश्य:
देश को तकनीकी वस्त्रों के क्षेत्र में अग्रणी बनाना तथा घरेलू बाजार में तकनीकी वस्त्रों के उपयोग में वृद्धि करना।
यह मिशन 2020-2021 से आरंभ होकर चार वर्षों की अवधि के लिए लागू किया जाएगा और इसमें चार घटक होंगे:
- पहले घटक में ‘अनुसंधान, नवाचार और विकास’ पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा और इस घटक में 1,000 करोड़ रुपए का परिव्यय होगा। इसमें फाइबर तथा भू-टेक्सटाइल, कृषि-टेक्सटाइल, चिकित्सा-टेक्सटाइल, मोबाइल-टेक्सटाइल और खेल-टेक्सटाइल के विकास पर आधारित अनुसंधान अनुप्रयोगों दोनों स्तर पर अनुसंधान किया जाएगा तथा जैव-निम्नीकरणीय तकनीकी वस्त्रों का विकास किया जाएगा।
- दूसरा घटक तकनीकी वस्त्रों के संवर्द्धन और विपणन विकास पर केन्द्रित होगा। इस घटक के तहत मिशन का लक्ष्य वर्ष 2024 तक घरेलू बाजार का आकार $ 40 बिलियन से बढाकर $ 50 बिलियन तक करने का निर्धारित किया गया है।
- तीसरा घटक निर्यात संवर्धन पर ध्यान केंद्रित करेगा, जिसके तहत देश में तकनीकी कपड़ा निर्यात को 14,000 करोड़ रुपए से बढाकर वर्ष 2021-2022 तक 20,000 करोड़ रुपए तक किया जाएगा और मिशन के समाप्त होने तक हर साल 10% औसत वृद्धि सुनिश्चित की जाएगी।
- अंतिम घटक में ‘शिक्षा, प्रशिक्षण और कौशल विकास पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।
कृतज्ञ 3.0
संदर्भ: भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद अपनी राष्ट्रीय कृषि उच्च शिक्षा परियोजना और फसल विज्ञान प्रभाग के साथ ‘फसल सुधार के लिए गति प्रजनन’ को बढ़ावा देने के लिए हैकथॉन 3.0 ‘कृतज्ञ’ (KRITAGYA) का आयोजन कर रही है।
- कृतज्ञ (KRITAGYA) की व्याख्या इस प्रकार है- कृ (KRI) से तात्पर्य है कृषि, त (TA) से आशय है तकनीक और ज्ञ (GYA) से तात्पर्य ‘ज्ञान’।
- इस प्रतियोगिता में देश भर के किसी भी विश्वविद्यालय/तकनीकी संस्थानों के छात्र, संकाय और नवप्रवर्तनकर्ता/उद्यमी आवेदन कर सकते हैं और एक समूह के रूप में कार्यक्रम में भाग ले सकते हैं।
बीज समझौता
संदर्भ: भारत, ‘बीज समझौता’ / ‘सीड ट्रीटी’ (Seed treaty) के शासी निकाय के 9वें सत्र की मेजबानी करेगा।
‘बीज समझौता’ के बारे में:
‘बीज समझौता’ या ‘सीड ट्रीटी’ (Seed treaty) को ‘खाद्य एवं कृषि हेतु पादप आनुवांशिक संसधानों पर अन्तराष्ट्रीय संधि’ (International Treaty on Plant Genetic Resources for Food and Agriculture, also called Plant Treaty- ITPGRFA) के रूप में भी जाना जाता है। यह पादप आनुवंशिक संसाधनों के संरक्षण, उपयोग और प्रबंधन के लिए एक प्रमुख कानूनी रूप से बाध्यकारी अंतर्राष्ट्रीय समझौता है।
- ‘बीज समझौता’ 2001 में ‘संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन’ (United Nations Food and Agriculture Organisation – FAO) द्वारा अपनाया गया था और 2004 में लागू हुआ था।
- भारत, इस समझौते का एक पक्षकार सदस्य है।
‘सीड ट्रीटी’ के उद्देश्य:
- फसलों की विविधता में किसानों के योगदान को मान्यता देना।
- पादप आनुवंशिक सामग्री तक पहुंच प्रदान करना;
- लाभों को साझा किया जाना सुनिश्चित करना;
- यह समझौता आनुवंशिक संसाधनों के एक आसानी से सुलभ वैश्विक पूल के माध्यम से हमारी 64 सबसे महत्वपूर्ण फसलों को साझा करने में सक्षम बनाता है।
‘पादप प्रजाति एवं कृषक अधिकार संरक्षण (PPV&FR) अधिनियम, 2001 (Protection of Plant Varieties and Farmers’ Rights (PPV&FR) Act, 2001): भारत सरकार द्वारा वर्ष 2001 में ‘सुई जेनेरिस प्रणाली’ (sui generis system) को अपनाते हुए अधिनियमित किया गया था।
- यह अधिनियम, पौधों की नई किस्मों के संरक्षण हेतु अंतर्राष्ट्रीय संघ (International Union for the Protection of New Varieties of Plants – UPOV), 1978 के अनुरूप है।
- अधिनियम में, पादप प्रजनन गतिविधियों में वाणिज्यिक पादप प्रजनकों और किसानों, दोनों के योगदान को मान्यता प्रदान की गयी है, और साथ ही इसमें सभी हितधारकों के विशिष्ट सामाजिक-आर्थिक हितों का समर्थन करते हुए ‘बौद्धिक संपदा अधिकारों के व्यापार संबंधी पहलुओं’ (Trade Related Aspects of Intellectual Property Rights-TRIPS) को लागू करने का प्रावधान किया गया है।
अधिनियम के तहत अधिकार:
पादप-प्रजाति प्रजननकों के अधिकार (BREEDERS’ RIGHTS): पादप-प्रजाति प्रजननकों (ब्रीडर्स) के लिए संरक्षित पादप प्रजाति को पैदा करने, बेचने, बाजार में पहुँचाने, वितरित करने और आयात-निर्यात करने का विशिष्ट अधिकार होगा। यदि इनके अधिकार का हनन होता है तो वे इसके लिए कानून की शरण ले सकते हैं। प्रजनन प्रजाति प्रजनक अपना एजेंट और लाइसेंसधारी भी नियुक्त कर सकते हैं।
अनुसंधानकर्ताओं के अधिकार (RESEARCHERS’ RIGHTS): अधिनियम के अंतर्गत, अनुसंधानकर्ता शोध करने के लिए किसी भी पंजीकृत किस्म का प्रयोग या उपयोग कर सकता है। अनुसंधानकर्ता, कोई नई प्रजाति विकसित करने के उद्देश्य से, किसी प्रजाति को ‘प्रजाति के मूल स्रोत’ के रूप में प्रयोग कर सकते हैं, किंतु उस प्रजाति का बार-बार प्रयोग करने के लिए ‘पंजीकृत प्रजननक’ से पूर्वानुमति लेना आवश्यक होगा।
किसानों के अधिकार:
- किसी नई प्रजाति को विकसित करने वाला किसान, प्रजाति निर्माता कंपनियों की भाँति उस प्रजाति ‘किस्म’ के प्रजनक के रूप में पंजीकरण और संरक्षण का हकदार है;
- किसान द्वारा उत्पादित नई प्रजाति को एक वर्तमान प्रजाति (extant variety) के रूप में पंजीकृत किया जा सकता है;
- पीपीवी और एफआर अधिनियम, 2001 के तहत, किसान संरक्षित किस्म के बीज सहित अपनी कृषि उपज को उसी तरह से सहेज सकता है, उपयोग कर सकता है, बो सकता है, फिर से बो सकता है, आदान-प्रदान कर सकता है या बेच सकता है, जिस तरह से वह इस क़ानून के लागू होने से पहले हकदार था; परन्तु अधिनियम के अंतर्गत संरक्षित किसी ब्रांडेड बीज की प्रजाति को किसान नहीं बेच सकेगा;
- खेतों में उपजाए गये पादपों के आनुवंशिक संसाधनों (Plant Genetic Resources) तथा नकदी फसलों के वन्य प्रकारों के संरक्षण के लिए किसान समुचित सम्मान और पुरस्कार पाने के अधिकारी होंगे;
- अधिनियम के अनुभाग 39(2) के अनुसार, यदि किसान द्वारा तैयार की गई नई पादप-प्रजाति ठीक से फलदायी नहीं होती तो उसे इसके लिए क्षतिपूर्ति मिल सकती है;
- अधिनियम के तहत प्राधिकरण या रजिस्ट्रार या ट्रिब्यूनल या उच्च न्यायालय के समक्ष किसी भी कार्यवाही के लिए किसान को किसी भी शुल्क का भुगतान नहीं करना पड़ेगा।
कृषि के साथ पारिस्थितिकी
‘पारिस्थितिक आवास या कर्मता’ (ecological niche), किसी जीव या पादप प्रजाति के पनपने या विकसित होने के लिए आवश्यक पर्यावरणीय परिस्थितियों का सही समूहन होता है।
‘पारिस्थितिक आवास’ का एक उदाहरण ‘गुबरैला’ (Dung Beetle) है। ‘गुबरैला’, भृंग लार्वा और वयस्क दोनों रूपों में गोबर का सेवन करते हैं। ‘गुबरैला’ या ‘गोबर भृंग’ गोबर के गोले को बिलों में जमा करते हैं, और मादा उनके भीतर अंडे देती हैं। यह निषेचित लार्वा को भोजन तक तत्काल पहुंच प्रदान करता है।
- जलवायु परिवर्तन के कारण,’ पारिस्थितिक आवास’ बदलते जा रहे हैं और इसका कृषि पर प्रभाव पड़ सकता है और इसलिए हमें पारिस्थितिक आवास या कर्मता’ मॉडलिंग (बिग डेटा और अन्य कम्प्यूटेशनल तकनीक का उपयोग करके) की आवश्यकता है।
- पारिस्थितिक आवास मॉडलिंग (Ecological niche modelling), नई संभावनाओं – मौजूदा आवास के लिए नए निवासी, या नए भौगोलिक स्थान जहां एक वांछनीय पौधा अच्छी तरह से विकसित हो सकता है – की पहचान करने के लिए एक पूर्वानुमान करने वाला उपकरण है।
उदाहरण के लिए, मॉडलिंग ने जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तरी सिक्किम, इंफाल, मणिपुर और उदगमंडलम, तमिलनाडु के स्थानों में केसर की खेती के लिए उपयुक्त 4,200 वर्ग किलोमीटर नए क्षेत्रों की पहचान की है।
चित्र: पारिस्थितिक कर्मता और गोबर भृंग।
चीता
संदर्भ: हाल ही में, अफ्रीकी देश नामीबिया से पांच मादा और तीन नर चीता (Cheetah) भारत लाये गए।
- भारत में, चीता को 1952 में विलुप्त घोषित कर दिया गया था और आजादी के बाद विलुप्त होने वाला एकमात्र बड़ा स्तनपायी है। यह सूखे जंगलों, झाड़ीदार जंगलों और सवाना घास के मैदान में पायी जाने वाली की एक प्रमुख प्रजाति है।
- प्रमुख प्रजाति / कीस्टोन प्रजाति (keystone species) पारिस्थितिक तंत्र के कार्य करने के तरीके में एक अनूठी और महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले पादप या जीव होते हैं। उनके बिना, पारिस्थितिकी तंत्र नाटकीय रूप से भिन्न होगा या पूरी तरह से अस्तित्व में नहीं रहेगा।
यह किसी बड़े मांसाहारी को एक महाद्वीप से दूसरे महाद्वीप में स्थानांतरित किए जाने और जंगलों में बसाने की पहली घटना है।
सोवा वायरस अटैक
संदर्भ: भारतीय कंप्यूटर इमरजेंसी रिस्पांस टीम (CERT-In) ने एक नए मोबाइल बैंकिंग ‘ट्रोजन’ वायरस, SOVA के खिलाफ एक विस्तृत सुरक्षा परामर्श जारी किया है। भारतीय साइबर स्पेस में फैल रहा SOVA ‘ट्रोजन’ वायरस फिरौती के लिए एक एंड्रॉइड फोन को चुपके से एन्क्रिप्ट करता है।
- एक नया बैंकिंग मैलवेयर ‘SOVA एंड्रॉइड ट्रोजन’ वायरस का उपयोग करने वाले बैंक ग्राहकों को लक्षित कर रहा है। यह वायरस उपयोगकर्ता के नाम और पासवर्ड हासिल करने में सक्षम है।
- यह मैलवेयर क्रोम, अमेज़ॅन और एनएफटी (नॉन-फंगिबल टोकन) प्लेटफॉर्म जैसे वैध एप्लिकेशन के ‘लोगो’ प्रदर्शित करने वाले ‘नकली एंड्रॉइड एप्लिकेशन’ के भीतर खुद को छुपाता है और उपयोगकर्ताओं को इनके लिए ‘इंस्टाल’ करने के लिए भ्रमित करता है।
- जब उपयोगकर्ता नेट बैंकिंग एप्लिकेशन के माध्यम से अपने बैंक खातों तक पहुंचते हैं तो यह मैलवेयर उपयोगकर्ता की जानकारी को चुरा कर लेता है। SOVA का यह संस्करण 200 से अधिक मोबाइल एप्लिकेशन को लक्षित कर रहा है और इसके हमलों के परिणामस्वरूप ‘बड़े पैमाने पर’ वित्तीय धोखाधड़ी हो सकती है।