विषयसूची
सामान्य अध्ययन-I
- घटती प्रजनन क्षमता के दुष्परिणाम
सामान्य अध्ययन-II
- अब्राहम समझौते की वजह से अधिक क्षेत्रीय सहयोग में वृद्धि
मुख्य परीक्षा संवर्धन हेतु पाठ्य सामग्री (निबंध/नैतिकता)
- यूपीएससी मुख्य परीक्षा, 2022 के ‘निबंध’ प्रश्नपत्र में पूछे गए उद्धरणों के स्रोत
प्रारम्भिक परीक्षा के लिए तथ्य
- शंघाई सहयोग संगठन की पर्यटक और सांस्कृतिक राजधानी
- एकलव्य स्कूल
- तमिलनाडु की नाश्ता योजना
- ऑनलाइन गेमिंग
- फास्ट-ट्रैक कोर्ट/विशेष न्यायालय
- ऑनलाइन पोर्टल “ई-बाल निदान”
- भारत में ‘शहरी अपशिष्ट जल’ परिदृश्य
- अंतर्राष्ट्रीय ओजोन दिवस
- बिल्डिंग एनर्जी एफिशिएंसी प्रोजेक्ट (बीईईपी)
- ग्रीन फिन्स हब
- पूर्वोत्तर भारत में आठ सशस्त्र समूहों के साथ समझौता
- मानचित्र (चर्चा में)
सामान्य अध्ययन– I
विषय: महिलाओं की भूमिका और महिला संगठन, जनसंख्या एवं संबद्ध मुद्दे, गरीबी और विकासात्मक विषय, शहरीकरण, उनकी समस्याएँ और उनके रक्षोपाय।
घटती प्रजनन क्षमता के दुष्परिणाम
संदर्भ: इस आर्टिकल में ‘घटती प्रजनन क्षमता के दुष्परिणामों’ के बारे के चर्चा करते हुए तर्क दिया गया है कि ‘प्रतिस्थापन स्तर से नीचे प्रजनन दर’ का मतलब ‘लाभांश’ अपेक्षा से कम होगा।
वस्तुस्थिति:
- वर्ष 2030 में वैश्विक जनसंख्या में वृद्धि होकर, लगभग 8.5 बिलियन होने का अनुमान है।
- पिछले 70 वर्षों में ‘औसत वैश्विक प्रजनन’ में लगातार गिरावट आ रही है।
- विश्व जनसंख्या संभावनाएं 2022 के अनुसार, प्रजनन आयु वर्ग में ‘प्रति महिला बच्चों की औसत संख्या’ 1951 में प्रति महिला औसतन पांच बच्चों से घटकर, वर्ष 2020 में 2.4 हो गई है।
- अधिकांश उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में ‘प्रजनन दर’ (Fertility Rate), ‘प्रतिस्थापन दर’ (Replacement Rate)2. 1 से कम है। इनमे ‘दक्षिण कोरिया’ की ‘प्रजनन दर’ प्रति महिला 1.05 बच्चे है, जोकि उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में सबसे कम हैं।
भारत:
- वर्ष 2022 में भारत की वर्तमान प्रजनन दर प्रति महिला 2.159 जन्म है
- ‘राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण’, 2021 की रिपोर्ट के अनुसार, केवल पांच राज्यों में प्रजनन दर प्रतिस्थापन दर से अधिक है: बिहार (3), मेघालय (2.9), उत्तर प्रदेश (2.4), झारखंड (2.3), और मणिपुर (2.2)।
भारत में प्रजनन दर में लगातार गिरावट के कारण:
- गर्भनिरोधक का बढ़ता उपयोग,
- औसत स्कूली शिक्षा के अधिक वर्ष,
- बेहतर स्वास्थ्य देखभाल, और
- महिलाओं की औसत विवाह आयु में वृद्धि।
‘निम्न प्रजनन दर’ के कारण एवं सकारात्मक परिणाम:
‘निम्न प्रजनन दर’ को आर्थिक विकास के ‘कारण और परिणाम’- दोनों के रूप में देखा जा सकता है।
- निम्न प्रजनन, महिलाओं की शिक्षा को सकारात्मक रूप से प्रभावित करता है, जो बदले में आने वाली पीढ़ियों की प्रजनन क्षमता को कम करता है।
- बेहतर बुनियादी ढांचे के विकास, बेहतर स्वास्थ्य देखभाल और शिक्षा के साथ, प्रजनन क्षमता में गिरावट और आय में वृद्धि होती है।
- कम प्रजनन क्षमता का चक्र, उस समयावधि की ओर ले जाता है जब ‘कामकाजी उम्र की आबादी का अनुपात’, ‘आश्रित आयु समूहों’ की तुलना में अधिक होता है।
- कम निर्भरता के कारण उच्च स्तर की बचत को देखते हुए, कार्यबल में लोगों के उच्च अनुपात से, आय और निवेश में वृद्धि होती है।
ह्रासमान प्रजनन दर के नकारात्मक प्रभाव:
- प्रजनन दर में प्रतिस्थापन स्तर से अधिक गिरावट का कामकाजी आबादी के अनुपात पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा, जिसका अर्थव्यवस्था में उत्पादन पर प्रभाव पड़ेगा।
- जापान, गिरती प्रजनन दर के प्रभावों का सामना करने वाला पहला देश था। यहाँ ‘बढता निर्भरता अनुपात’ 1990 के दशक से लगभग ‘शून्य सकल घरेलू उत्पाद’ वृद्धि का कारक बना हुआ है।
- कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि ‘घटती प्रजनन दर’ मानव जाति की रचनात्मक क्षमता को कम कर सकती है।
- बुजुर्ग आबादी, वैश्विक हितों को भी नकारात्मक रूप से प्रभावित करेगी, क्योंकि 2100 तक कुल वैश्विक आबादी में 50 साल से अधिक उम्र के लोगों की हिस्सेदारी लगभग 40% हो जाएगी।
‘प्रजनन क्षमता में गिरावट’ से निपटने हेतु उपाय:
श्रम बाजार में अधिक लचीलेपन को प्रेरित करने के लिए श्रम बाजार में सुधार करने की आवश्यकता है, इससे कामकाजी महिलाएं अधिक बच्चे पैदा करने और गैर-कामकाजी महिलाएं श्रम बाजार में प्रवेश करने के लिए प्रोत्साहित होंगी।
प्रजनन क्षमता बढ़ाने के लिए नीतियां:
- जर्मनी, में माता-पिता को अधिक अवकाश और लाभों की सुविधा प्रदान की जाती है।
- डेनमार्क, 40 साल से कम उम्र की महिलाओं के लिए राज्य द्वारा वित्त पोषित ‘इन विट्रो फर्टिलाइजेशन’ (IVF) सुविधा प्रदान करता है।
- हंगरी में, हाल ही में ‘आईवीएफ क्लीनिकों’ का राष्ट्रीयकरण किया गया है।
- पोलैंड, दो से अधिक बच्चों वाले माता-पिता को मासिक रूप से नकद-राशि का भुगतान करता है।
- रूस, दूसरे बच्चे के जन्म पर माता-पिता को एकमुश्त राशि प्रदान करता है।
निष्कर्ष:
हालांकि, जनसांख्यिकीय लाभांशों (Demographic Dividends) का लाभ उठाया जा रहा है, लेकिन प्रतिस्थापन स्तर से नीचे की प्रजनन दर का मतलब, भारत के लिए अपेक्षा से कम लाभांश अवसर होगा। उदार श्रम सुधार, महिला श्रम शक्ति की उच्च भागीदारी दर को प्रोत्साहित करने, और पोषण और स्वास्थ्य पर अधिक ध्यान देने से कम प्रजनन क्षमता के बावजूद निरंतर श्रम आपूर्ति और उत्पादन सुनिश्चित किया जा सकेगा।
इंस्टा लिंक:
प्रतिस्थापन स्तर से नीचे प्रजनन दर
मेंस लिंक:
भारत में ह्रासमान कुल प्रजनन दर (Total Fertility Rate – TFR) के रुझानों का मूल्यांकन करें। महिलाओं में कम प्रजनन दर और उच्च शिक्षा दर महिलाओं के लिए भुगतान-युक्त नौकरियों में तब्दील क्यों नहीं हो रही हैं? चर्चा कीजिए। (250 शब्द)
स्रोत: द हिंदू
सामान्य अध्ययन– II
विषय: द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक समूह और भारत से संबंधित और/अथवा भारत के हितों को प्रभावित करने वाले करार।
अब्राहम समझौते की वजह से अधिक क्षेत्रीय सहयोग में वृद्धि
संदर्भ: ‘अब्राहम समझौते’ (Abraham Accords) पर हस्ताक्षर एवं लागू होने को दो साल पूरे हो चुके हैं। इस समझौते ने न केवल सदस्य देशों की मदद की है बल्कि भारत को भी विभिन्न लाभ प्रदान किए हैं। इस आर्टिकल में ‘अब्राहम समझौते’ के महत्व पर प्रकाश डाला गया है।
- मिस्र के एक विद्वान, मोहम्मद सोलिमन (Mohammed Soliman), “इंडो-अब्राहमिक समझौते” के विचार और भारत के पश्चिम में इसके अंतर-क्षेत्रीय निहितार्थों को प्रतिपादित करने वाले पहले व्यक्ति थे।
- हाल ही में आयोजित भारत, इज़राइल, संयुक्त अरब अमीरात और संयुक्त राज्य अमेरिका के विदेश मंत्रियों के बीच पहली बैठक को व्यापक रूप से ‘अब्राहम समझौते’ की तर्ज पर ‘मध्य पूर्व का एक नया क्वाड’ (QUAD) कहा जा रहा है।
चित्र: मोहम्मद सोलिमन- ‘वेस्ट-एशिया क्वाड कॉन्सेप्ट’ के रणनीतिकार
‘अब्राहम समझौता’ के बारे में:
संयुक्त राज्य अमेरिका की मध्यस्थता में संपन्न हुआ ‘अब्राहम समझौता’ (Abraham Accord) औपचारिक राजनयिक संबंध स्थापित करने के लिए संयुक्त अरब अमीरात और इज़राइल के बीच एक ‘सामान्यीकरण समझौता’ है। बाद में, इस समझौते में बहरीन, सूडान और मोरक्को भी शामिल हो गए।
- इस समझौते में इज़राइल अपने कब्जे वाले ‘वेस्ट बैंक’ के कुछ हिस्सों को हड़पने / अपने कब्जे में लेने की योजनाओं को स्थगित करने पर सहमत हुआ है।
- ‘अब्राहम समझौता’ के बाद संयुक्त अरब अमीरात, इजरायल के साथ राजनयिक और आर्थिक संबंध स्थापित करने वाला पहला खाड़ी देश बन गया।
- संयुक्त अरब अमीरात, मिस्र (1979 में) और जॉर्डन (1994) के बाद इजरायल को मान्यता देने वाला तीसरा अरब राष्ट्र बन गया है।
भारत के लिए ‘मध्य पूर्व क्षेत्र’ का बढ़ता महत्व:
- ऊर्जा सुरक्षा: ‘मध्य-पूर्व क्षेत्र’ (Middle- East region) भारत की अर्थव्यवस्था में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, और भारत के कुल तेल आयात का लगभग दो-तिहाई इस क्षेत्र से आता है।
- प्रेषण: नौकरी की तलाश में लाखों भारतीय प्रवासी मध्य-पूर्वी देशों में बसे हुए हैं, जो देश के बाहर से आने वाले ‘कुल प्रेषण’ (Remittances) का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
- सामरिक क्षेत्र: ‘फारस की खाड़ी’ (Persian Gulf), भारत की समुद्री सुरक्षा के लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण क्षेत्र है, और ‘होर्मुज जलडमरूमध्य’ एक महत्वपूर्ण रणनीतिक बिंदु है।
- ‘मध्य-पूर्व क्षेत्र’ से बढ़ता एफडीआई: सऊदी अरब, भारत में 100 अरब डॉलर के निवेश की योजना बना रहा है। अन्य देशों ने भी भारत में निवेश में रुचि दिखाई है।
- पाकिस्तान को प्रत्युत्तर: पाकिस्तान, मध्य-पूर्व में बहुत सक्रिय है। ‘इस्लामिक सहयोग संगठन’ (Organisation of Islamic Cooperation- OIC) के प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल कर तुर्की जैसे खास अरब देशों से संबंध बनाकर, पाकिस्तान कश्मीर मुद्दे पर समर्थन हासिल करने की कोशिश कर रहा है और NSG में समर्थन पाने के लिए भारत को रोक रहा है। अतः, भारत एक परिष्कृत ‘शक्ति संतुलन कूटनीति’ के माध्यम से, खाड़ी क्षेत्र में पाकिस्तानी प्रभाव का मुकाबला करने का प्रयास कर रहा है।
- रक्षा आयात: इजरायल अपनी तकनीकी, खुफिया और सैन्य सहायता की वजह से भारत के लिए बहुत महत्वपूर्ण रहा है। इज़राइल, भारत के प्रमुख सैन्य उपकरण प्रदाताओं में से एक रहा है और एक महत्वपूर्ण व्यापारिक भागीदार भी रहा है।
- सुरक्षा चुनौती: इस क्षेत्र में बढ़ते आतंकवाद का भारत पर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है।
भारत के लिए अब्राहम समझौते का महत्व:
- आर्थिक सहयोग: पूर्वी भूमध्य सागर में नए हाइड्रोकार्बन संसाधनों की खोज ने तुर्की और ग्रीस के बीच क्षेत्रीय विवादों को फिर से ताज़ा कर दिया है, और क्षेत्रीय प्रभुत्व ज़माने के लिए तुर्की द्वारा किए जा रहे प्रयासों ने ग्रीस और संयुक्त अरब अमीरत को एक-दूसरे के करीब ला दिया है जिससे इस क्षेत्र में भारत की भागीदारी का मार्ग प्रशस्त हुआ है।
- क्षेत्रीय संपर्क: अब्राहम समझौते ने सदस्य देशों के बीच क्षेत्रीय संपर्क में सुधार किया है। इस क्षेत्रीय संपर्क से भारतीयों को भी मदद मिली है। उदाहरण के लिए, खाड़ी में रहने वाले भारतीय प्रवासी अब सीधे संयुक्त अरब अमीरात से इजरायल, या इजरायल से बहरीन के लिए उड़ान भर सकते हैं।
- प्रौद्योगिकी सहयोग: व्यापार के अलावा, संयुक्त अरब अमीरात और इज़राइल के लिए अंतरिक्ष से लेकर रक्षा प्रौद्योगिकी तक कई क्षेत्रों में भारत के साथ सहयोग करने की संभावना है।
- इस क्षेत्र में एकमात्र भू-राजनीतिक इकाई: मध्य पूर्व में नया “क्वाड” इस क्षेत्र में भारत का एकमात्र नया गठबंधन होने की संभावना है। अरब-इजरायल दरार को पाटकर मध्य पूर्व के साथ एक गैर-वैचारिक संबंध स्थापित करने की संभावना भी है।
- ‘विस्तारित‘ पड़ोस: भारत के इस क्षेत्र के साथ यह संबंध, मिस्र जैसे अन्य क्षेत्रीय भागीदारों के साथ सहयोग बढ़ाने के लिए द्वार खोलेंगे, जिसका इस क्षेत्र में बहुत अधिक प्रभाव होगा।
- पश्चिम एशिया में शांति और स्थिरता: समझौता पश्चिम एशिया में पारंपरिक विरोधियों-इजरायल और अरबों के बीच पहली बार व्यापक मेलजोल के द्वार खोलता है। इससे इस क्षेत्र में भारत की भागीदारी के नए द्वार खुलेंगे।
- समूह गठन: इस समझौते ने I2U2 समूह के गठन में मदद की है। यह I2U2 समूह इज़राइल, भारत, संयुक्त अरब अमीरात और संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा स्थापित किया गया है।
निष्कर्ष:
उपमहाद्वीप के पश्चिम में भारत के लिए अवसर, पूर्व में QUAD की भांति ही महत्वपूर्ण हैं। QUAD ने जिस तरह से भारत के “इंडो-पैसिफिक” के बारे में सोचने के तरीके को बदल दिया है, उसी तरह ‘ग्रेटर मिडिल ईस्ट’ पश्चिम में विस्तारित पड़ोस के साथ भारत के जुड़ाव के लिए असंख्य अवसर प्रदान कर सकता है।
इंस्टा लिंक:
मेंस लिंक:
उपमहाद्वीप के पश्चिम में भारत के लिए अवसर, हाल ही में पूर्व में मिलने वाले अवसरों के समान ही परिणामी हैं। अब्राहम समझौते और भारत के लिए इसके महत्व के संदर्भ में इस कथन की चर्चा कीजिए। (15 अंक)
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
मुख्य परीक्षा संवर्धन हेतु पाठ्य सामग्री (नैतिकता/मुख्य)
यूपीएससी मुख्य परीक्षा, 2022 के ‘निबंध’ प्रश्नपत्र में पूछे गए उद्धरणों के स्रोत
UPSC CSE 2022 का निबंध पेपर दार्शनिक और अमूर्त विषयों की पिछली प्रवृत्ति का अनुसरण करता है, लेकिन पिछले वर्षों के विषयों की तुलना में भाषा में स्पष्ट और समझने में आसान था। यद्यपि, सही विषय (टॉपिक) के चयन और सामग्री निर्माण में चुनौती बनी रही।
खंड- A
- आर्थिक समृद्धि हासिल करने के मामले मे वन सर्वोत्तम परतिमान होते हैं।
- मेफ्लावर-प्लायमाउथ के सीईओ ‘हेंड्रिथ वैनलॉन स्मिथ जूनियर’ का उद्धरण (Quote)।
- कवि संसार के गैर-मान्यताप्राप्त विधायक / विधि-निर्माता होते हैं।
- यह टॉपिक प्रसिद्ध कवि ‘शेली’ द्वारा लिखित ‘द डिफेंस ऑफ पोएट्री’ 1821 से सीधे उठाया गया है।
- इसके अनुसार, कवि की उन्नत काव्य भाषा मानव समाज में व्यवस्था को फिर से स्थापित कर सकती है।
- इतिहास, वैज्ञानिक मनुष्य द्वारा रूमानी व्यक्ति पर विजय हासिल करने का एक सिलसिला है।
- इतिहास को सभी विषयों की जननी माना जाता है। इस निबंध को लिखने के लिए आप ‘इतिहास क्या है’ से शुरू कर सकते थे? किसका सिलसिला – सभ्यता, संस्कृति, आधुनिक राष्ट्र-राज्य? क्या हम रोमांटिक हैं? रोमांटिक (रूमानी) विचार क्या है? भावनाएँ, रोमांस का उदाहरण – बुद्ध के विचार, अशोक के धम्म, वैज्ञानिक – सैन्य शक्ति, क्रूर शक्ति। ऐतिहासिक व्याख्याएं, सलमान रुश्दी, भारतीय पौराणिक कथाएं, वेद आदि।
- जहाज, बंदरगाह के भीतर सुरक्षित होता है, लेकिन इसके लिए तो जहाज बना नही होता है।
- इस उद्धरण का श्रेय, मुख्यतः जॉन ए शेडड (John A. Shedd) को जाता है।
- इस उक्ति का अर्थ है, कि अपने ‘आराम क्षेत्र’ से बाहर निकलना नई चीजों का अनुभव करने और अपने क्षितिज को व्यापक बनाने की कुंजी है।
खंड- B
- छत मरम्मत का समय तभी होता है, जब धुप खिली हुई हो।
- इस उक्ति का श्रेय ‘जॉन एफ कैनेडी’ (1962) को दिया गया है। यह उक्ति संकेत करती है, कि जो टूट गया है, उसे जल्द से जल्द ठीक कर लेना चाहिए। साथ ही, सही काम सही समय पर करना चाहिए।
- आप उसी नदी में दो बार नहीं उतरते।
- इस उक्ति का श्रेय एक दार्शनिक ‘हेराक्लिटस’ को दिया जाता है। इसके आगे उक्ति के कहा गया है, कि “क्योंकि आप भी वही आदमी नहीं रहते हो और यह नदी भी नहीं रहती है।”
- हर असमंजस के लिए मुस्कराहट ही चुनिंदा साधन है
- यह एक अमेरिकी उपन्यासकार ‘हरमन मेलविल’ द्वारा दिया गया एक उद्धरण है, जिसका सीधा सा मतलब है कि संदेह, दुविधा और अस्पष्टता की स्थितियों में मुस्कान ही रास्ता है।
- केवल इसलिए कि आपके पास कोई विकल्प है, इसका यह आर्ट कदापि नहीं है कि उनमें से किसी को भी ठीक होना ही होगा।
- यह कथन, ‘नॉर्टन जस्ट’र की रचना ‘द फैंटम टोलबूथ’ से लिया गया है।
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य
शंघाई सहयोग संगठन की पर्यटक और सांस्कृतिक राजधानी
- उज्बेकिस्तान के समरकंद में आयोजित ‘शंघाई सहयोग संगठन’ (SCO) के राष्ट्राध्यक्षों की 22वीं बैठक में 2022-2023 की अवधि के दौरान वाराणसी शहर को पहली बार ‘शंघाई सहयोग संगठन की पर्यटक और सांस्कृतिक राजधानी’ (SCO Tourism and Cultural Capital) के रूप में नामित किया गया है।
- वाराणसी के पहली बार SCO पर्यटन और सांस्कृतिक राजधानी के रूप में नामांकन, भारत और शंघाई सहयोग संगठन’ के सदस्य देशों के बीच पर्यटन, और सांस्कृतिक और मानवीय आदान-प्रदान को बढ़ावा देगा। यह निर्णय, SCO के सदस्य राज्यों, विशेष रूप से मध्य एशियाई गणराज्यों के साथ भारत के प्राचीन सभ्यतागत संबंधों को भी रेखांकित करता है।
‘वाराणसी’ के बारे में:
- ‘वाराणसी’ उत्तर भारत में गंगा नदी के तट पर बसा एक शहर है जिसका हिंदू जगत में तीर्थयात्रा, मृत्यु और शोक के संदर्भ में एक केंद्रीय स्थान है। यह दुनिया के सबसे पुराने निरंतर आबाद शहरों में से एक है।
- यह नगर लंबे समय से एक ‘शैक्षिक और संगीत केंद्र’ रहा है। कई प्रमुख भारतीय दार्शनिक, कवि, लेखक और संगीतकार इस नगर में निवास करते थे, या रहते हैं, और यह वह स्थान है जहां हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत का ‘बनारस घराना रूप’ विकसित हुआ था। 20वीं शताब्दी में हिन्दी-उर्दू लेखक प्रेमचंद और शहनाई वादक बिस्मिल्लाह खाँ शहर से जुड़े थे।
- भारत का सबसे पुराना संस्कृत कॉलेज, बनारस संस्कृत कॉलेज, ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन के दौरान स्थापित किया गया था।
एकलव्य स्कूल
संदर्भ: आदिवासी छात्रों के लिए ‘एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालयों’ (Eklavya model residential schools) को रिकॉर्ड संख्या में मंजूरी देने और 2018 में इन स्कूलों के प्रबंधन के लिए ‘आदिवासी छात्रों के लिए राष्ट्रीय शिक्षा सोसायटी’ (National Education Society for Tribal Students – NESTS) की स्थापना के बावजूद, जनजातीय कार्य मंत्रालय अब तक वर्तमान में कार्यरत ऐसे 378 स्कूलों में शिक्षकों की कमी का समाधान करने में विफल रहा है।
‘एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालयों’ के बारे में:
- ‘एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालयों’ की शुरुआत वर्ष 1997-98 में आवासीय विद्यालयों के रूप में दूरस्थ क्षेत्रों (उच्च आदिवासी आबादी वाले) में अनुसूचित जनजाति के छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा (मध्यम और उच्च स्तर की शिक्षा) प्रदान करने के लिए की गयी थी।
- बजट 2018-19 के अनुसार, 50% से अधिक अनुसूचित जनजाति आबादी वाले प्रत्येक ब्लॉक और न्यूनतम 20,000 जनजातीय आबादी पर एक ‘एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय’ (EMRS) होगा।
- EMRS का परिचालन करने हेतु, नवोदय विद्यालय समिति के समान, जनजातीय कार्य मंत्रालय के तहत एक स्वायत्त सोसाइटी की स्थापना की जाती है।
- देश की कुल आबादी का 8.6% (11 करोड़) अनुसूचित जनजाति हैं।
प्रावधान: एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालयों को, संविधान के अनुच्छेद 275(1) के तहत प्रदान किए गए अनुदानों द्वारा स्थापित किया गया है।
तमिलनाडु की नाश्ता योजना
संदर्भ: तमिलनाडु सरकार द्वारा स्कूली बच्चों के लिए ‘मुफ्त नाश्ता योजना’ का शुभारंभ, स्कूली शिक्षा और सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए दूरगामी परिणामों वाली नीतिगत पहल का एक उदाहरण है।
महत्व:
- दुनिया भर में किए गए कई अध्ययनों से संकेत मिलता है, कि नियमित रूप से नाश्ता दिए जाने से छात्रों पर सकारात्मक परिणाम मिलते हैं। इससे , जिससे छात्रों की ध्यान केंद्रित करने, सीखने और जानकारी को सकारात्मक रूप से याद रखने की क्षमता प्रभावित होती है।
- व्यवहार और ज्ञान की भांति छात्रों के स्कूल-प्रदर्शन में भी सुधार होता है, साथ ही ‘नियमित नाश्ता’ बच्चों में आहार की गुणवत्ता, सूक्ष्म पोषक तत्वों की पर्याप्तता, एनीमिया और ऊंचाई और वजन के मुद्दों का भी ख्याल रखता है, और यहां तक कि भविष्य के लिए ‘शरीर-भार सूचकांक’ (BMI) स्कोर में वृद्धि के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है।
योजना के प्रमुख बिंदु:
- उद्देश्य: बच्चों को स्कूल आने के लिए प्रोत्साहित करना और प्राथमिक स्तर पर स्कूल छोड़ने वालों को रोकने में मदद करना।
- सरकार ने स्कूली बच्चों को प्रतिदिन औसतन 293 कैलोरी और औसतन 9.85 ग्राम प्रोटीन प्रदान करने का लक्ष्य रखा है।
- विशेषताएं: योजना के तहत, सरकारी स्कूलों में कक्षा एक से पांचवीं तक के बच्चों को उनके स्कूलों में हर सुबह पौष्टिक नाश्ता उपलब्ध कराया जाएगा।
तमिलनाडु के बारे में:
‘तमिलनाडु’ बच्चों को भोजन उपलब्ध कराने की पहल को शुरूआत करने का अग्रदूत रहा है। इस योजना को बाद में केंद्र सरकार ने ‘मध्याह्न भोजन योजना’ के रूप में अपनाया गया।
चिंताएं: सरकार को ‘छोड़े देने और शामिल करने’ संबंधी त्रुटियों – जिसमें चोरी, भोजन की खराब गुणवत्ता, धनराशि स्वीकृत करने में देरी और जाति संबंधी व्यवधान शामिल हैं – से बचना चाहिए। ये त्रुटियां पहले भी इस योजना के रास्ते में बाधा रही हैं।
ऑनलाइन गेमिंग
संदर्भ: केंद्रीय समिति ने ‘ऑनलाइन गेमिंग’ (Online Gaming) के लिए नए कानून व नियामक संस्था की मांग की है।
- ‘ऑनलाइन गेमिंग’, अन्य खिलाड़ियों के साथ ऑनलाइन इंटरैक्शन की सुविधा प्रदान वाले किसी भी वीडियो गेम का वर्णन करता है। ‘ऑनलाइन गेमिंग’ प्रतिबंधित नहीं है और देश के अधिकांश राज्यों में ‘पैसे लगाकर खेले जाने वाले खेलों’ की अनुमति है।
- ‘सट्टेबाजी’ और ‘जुआ’ राज्य सूची के अंतर्गत आते हैं और अधिकांश राज्यों में प्रतिबंधित है।
समिति द्वारा उजागर किए गए मुद्दे:
- ‘कौशल की आवश्यकता वाले खेलों’ और ‘भाग्य या अवसर पर निर्भर खेलों’ के बीच अंतर की अस्पष्ट प्रकृति।
- ‘ऑनलाइन गेमिंग’ एक बड़ी लत बनता जा रहा है और बढ़ते कर्ज का कारण बन रहा है।
- तमिलनाडु में ऑनलाइन जुए की लत के कारण हुए वित्तीय नुकसान के कारण, तीन वर्षों में आत्महत्या के 17 मामले दर्ज किए गए हैं।
- ‘ऑनलाइन गेमिंग’ की निगरानी का कोई तरीका नहीं है।
- राज्यों के विभिन्न कानून: जहां सिक्किम (प्रथम राज्य) ने इसे वैध बनाया है, वहीं तेलंगाना इस पर प्रतिबंध लगाने वाला पहला राज्य बन गया है।
- विभिन्न व्याख्याएं: कई उच्च न्यायालयों ने कहा है कि यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 19(1)(g) के तहत एक वैध व्यावसायिक गतिविधि है, जबकि एक उच्च न्यायालय ने इसे जुए के समान बताया है।
अवसर:
- भारत का ‘ऑनलाइन गेमिंग उद्योग’ सबसे तेजी से बढ़ते उद्योगों में से एक है, और उच्च निवेश और रोजगार के अवसर जुटा रहा है।
- ऑनलाइन गेमिंग पर ‘एक समान कर’ लगाए जाने से अधिक राजस्व प्राप्त करने में मदद मिलेगी।
उठाए गए कदम:
ऑनलाइन गेमिंग (विनियमन) विधेयक, 2022: इसमें ‘ऑनलाइन गेमिंग आयोग’ गठित करने का प्रस्ताव किया गया है।
निष्कर्ष:
भारत में एक ऐसे ‘नियामक निकाय’ की आवश्यकता है जो मौका और कौशल के आधार पर ऑनलाइन गेम को वर्गीकृत करे, जुआ वेबसाइटों पर सख्त दृष्टिकोण रखे, और निषिद्ध प्रारूपों को अवरुद्ध करने में सक्षम करने वाले नियम हों।
किसी भी पेशे का अभ्यास करने के लिए, या किसी व्यवसाय, व्यापार या व्यवसाय को जारी रखने के लिए अनुच्छेद 19(1)(g) से संबंधित समाचार:
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है, कि एक ‘शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने का अधिकार’ एक मौलिक अधिकार है, और राज्य द्वारा उस पर “केवल एक कानून द्वारा” उचित प्रतिबंध लगाया जा सकता है, अर्थात राज्य इस संदर्भ में केवल विधायी शक्ति का उपयोग कर सकते हैं न कि कार्यकारी शक्ति का।
फास्ट-ट्रैक कोर्ट/विशेष न्यायालय
संदर्भ: कानून मंत्री ने ‘फास्ट-ट्रैक कोर्ट’ (Fast-Track Courts – FTCs) / फास्ट-ट्रैक विशेष न्यायालयों (Fast-Track Special Courts – FTSCs) को तेजी से स्थापित किए जाने के लिए कहा है।
‘फास्ट-ट्रैक कोर्ट’ (FTCs) / फास्ट-ट्रैक विशेष न्यायालय (FTSCs) के बारे में:
प्रारंभ में 11वें और 14वें वित्त आयोग द्वारा, 5 वर्षों से अधिक समय से लंबित गंभीर प्रकृति के मामलों को निपटाने के लिए ‘फास्ट-ट्रैक कोर्ट’ (FTCs) की सिफारिश की गई थी।
- बच्चों से संबंधित मामलों की सुनवाई के लिए केंद्र प्रायोजित योजना द्वारा ‘पोस्को’ के तहत ‘फास्ट-ट्रैक विशेष न्यायालयों’ (FTSCs) की स्थापना की जाती है।
- इन अदालतों की स्थापना और इसकी कार्यप्रणाली राज्यों के अंतर्गत (उच्च न्यायालयों के परामर्श से) आती है।
सफलता:
- FTCs: 896/1800 ‘फास्ट-ट्रैक कोर्ट’ कार्यशील हैं। (लगभग 50%)
- FTSCs: 731/1023 ‘फास्ट-ट्रैक विशेष न्यायालय’ चालू हैं। (70% से अधिक)
- इन अदालतों ने न्याय को गति प्रदान करने में मदद की है और यौन अपराधियों के लिए ‘भय’ का माहौल बनाया है।
संबंधित समाचार: सुप्रीमकोर्ट ने उच्च न्यायालयों को अपने आजीवन कारावास के 10 साल पूरे कर चुके दोषियों को जमानत पर रिहा करने और 14 साल पूरे कर चुके दोषियों के ‘सजा-परिहार’ पर विचार करने का निर्देश दिया है।
- उम्रकैद की सजा के मामले में, ‘परिहार’ के लिए आवेदन करने हेतु 14 साल की न्यूनतम कारावास पूरा करना अनिवार्य है।
- दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) में कारावास की सजा में ‘परिहार’ का प्रावधान किया गया है, जिसका अर्थ है कि पूरी सजा या उसका एक हिस्सा माफ़ किया जा सकता है। ‘जमानत’ किसी ‘प्रतिभूति’ के बदले एक कैदी की अस्थायी रिहाई होती है।
ऑनलाइन पोर्टल “ई-बाल निदान”
संदर्भ: हाल ही में, बाल अधिकारों के उल्लंघन के खिलाफ शिकायतों के निवारण के लिए ऑनलाइन पोर्टल “ई-बाल निदान” (E-Baal Nidan) को ‘राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग’ (NCPCR) द्वारा नया रूप दिया गया है।
इससे पहले, NCPCR ने बाल स्वराज पोर्टल के तहत ‘सड़क पर रहने वाले बच्चों’ (Children in Street Situations. – CiSS) के पुनर्वास प्रक्रिया में मदद करने के लिए एक ” CiSS एप्लिकेशन” लॉन्च किया गया था।
NCPCR के बारे में:
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) की स्थापना, दिसंबर 2005 में पारित संसद के एक अधिनियम ‘बाल अधिकार संरक्षण आयोग अधिनियम’ 2005 (Commissions for Protection of Child Rights (CPCR) Act, 2005) के अंतर्गत मार्च 2007 में की गई थी।
- आयोग ने 5 मार्च 2007 से अपना कार्य आरंभ किया।
- ‘राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग’ महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, भारत सरकार के प्रशासनिक नियंत्रण के अधीन एक सांविधिक निकाय है।
अधिदेश: आयोग का अधिदेश यह सुनिश्चित करना है, कि समस्त विधियाँ, नीतियां, कार्यक्रम तथा प्रशासनिक तंत्र, भारत के संविधान तथा साथ ही संयुक्त राष्ट्र बाल अधिकार सम्मेलन में प्रतिपाादित बाल अधिकारों के संदर्श के अनुरूप हो।
‘बालक’ की परिभाषा:
‘बाल अधिकार संरक्षण आयोग अधिनियम’ 2005 (CPCR Act) के तहत, ‘बालक’ अथवा ‘बच्चे’ (Child) को 0 से 18 वर्ष के आयु वर्ग में शामिल व्यक्ति के रूप में पारिभाषित किया गया है।
भारत में ‘शहरी अपशिष्ट जल’ परिदृश्य
संदर्भ: हाल ही में, भारत और डेनमार्क द्वारा संयुक्त रूप से ‘भारत में शहरी अपशिष्ट जल परिदृश्य’ (Urban Wastewater Scenario in India) पर एक श्वेतपत्र (whitepaper) जारी किया गया है। इसका उद्देश्य भारत में अपशिष्ट जल उपचार की वर्तमान स्थिति और भविष्य के उपचार संरचनाओं, सह-निर्माण और सहयोग के संभावित मार्गों को समग्र रूप से उजागर करना है।
- यह श्वेतपत्र भारत और डेनमार्क के बीच ग्रीन हाइड्रोजन, नवीकरणीय ऊर्जा और अपशिष्ट जल प्रबंधन और उनके द्विपक्षीय संबंधों पर ध्यान देने के साथ ‘हरित रणनीतिक साझेदारी’ (2020) का परिणाम है।
- भारत-डेनमार्क द्विपक्षीय हरित रणनीतिक साझेदारी के हिस्से के रूप में ‘अटल इनोवेशन मिशन’ (AIM), नीति आयोग द्वारा इनोवेशन सेंटर डेनमार्क (ICDK) के साथ साझेदारी में भारत में जल नवाचार चुनौतियां AIM- ICDK डिजाइन के तहत पूर्व में योजना बनाई और उसे कार्यान्वित किया गया था।
सरकार द्वारा उठाए गए कदम:
- 2019 में जल शक्ति के नाम से एक एकीकृत मंत्रालय का गठन किया गया।
- सरकार ने जल क्षेत्र में 2024 तक 140 अरब डॉलर से अधिक के निवेश की प्रतिबद्धता जताई है।
- समुदाय के स्वामित्व और भागीदारी को सुनिश्चित करने वाले प्रत्येक कार्यक्रम में समुदाय द्वारा कम से कम 10% धन का योगदान दिया जाता है।
अंतर्राष्ट्रीय ओजोन दिवस
संदर्भ: 16 सितंबर को ‘विश्व ओजोन दिवस’ (World Ozone Day) के रूप में मनाया जाता है।
थीम: ओजोन परत के संरक्षण के लिए 2022 अंतर्राष्ट्रीय दिवस का विषय, मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल एट35 (Montreal Protocal@35) : पृथ्वी पर जीवन की रक्षा करने वाला वैश्विक सहयोग है। वर्ष 2022, मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के कार्यान्वयन का 35 वां वर्ष है।
‘मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल’: ‘ओजोन परत क्षयकारी पदार्थों पर मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल’ (Montreal Protocol on Substances that Deplete the Ozone Layer), जिसे संक्षेप में ‘मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल’ कहा जाता है, वर्ष 1987 में हस्ताक्षरित एक अंतरराष्ट्रीय संधि है।
- इस संधि को, ओजोन क्षयकारी पदार्थों के उत्पादन और आयात को रोकने और पृथ्वी की ओजोन परत की सुरक्षा में सहायता करने हेतु वातावरण में इन पदार्थों के संकेंद्रण को कम करने के लिए डिज़ाइन किया गया था।
- मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल, ‘ओजोन परत के संरक्षण के लिए वियना कन्वेंशन’ (वियना अभिसमय) के अंर्तगत कार्य करता है।
- मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के बाद, ODS क्लोफ्लोरोकार्बन (CFCs) को हाइड्रोफ्लोरकार्बन (HFCs) से परिवर्तित किया गया था।
भले ही हाइड्रोफ्लोरकार्बन, ओजोन को नुकसान नहीं पहुंचाते हैं, लेकिन ग्लोबल वार्मिंग का कारण बनने के लिए बेहद शक्तिशाली हैं, और इसलिए किगाली संशोधन (2016) के तहत, हाइड्रोफ्लोरकार्बन को भी बदल दिया गया।
किगाली समझौता (Kigali Agreement):
- भारत, चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका सहित लगभग 197 देशों द्वारा 1987 के ‘मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल’ में संशोधन करके, वर्ष 2045 तक हाइड्रोफ्लोरोकार्बन (HFCs) के उपयोग को अपने आधारवर्ष के लगभग 85% तक कम करने के लिए ‘किगाली’ में सहमति व्यक्त की गयी है।
- भारत ने 2021 में किगाली संशोधन की पुष्टि की।
मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल की सफलता:
वर्तमान में, 99% से अधिक ओजोन-क्षयकारी पदार्थों को चरणबद्ध तरीके से समाप्त कर दिया गया है और ओजोन परत ठीक होने की राह पर है।
ओजोन के बारे में:
- ओजोन (Ozone) एक प्राकृतिक रूप से पाया जाने वाला, अत्यधिक प्रतिक्रियाशील अणु है जो तीन ऑक्सीजन परमाणुओं से बना होता है। इसे ‘डॉबसन इकाई’ का उपयोग करके मापा जाता है।
- वायुमंडल में लगभग 90% ओजोन पृथ्वी की सतह (समताप मंडलीय ओजोन) से 15 से 30 किलोमीटर के बीच केंद्रित है।
- यह जमीनी स्तर पर कम सांद्रता (क्षोभमंडलीय ओजोन) में भी पाया जाता है। यहां ओजोन एक प्रदूषक का कार्य करती है जो शहरों में धुंध का एक प्रमुख अवयव होती है।
ओजोन-क्षयकारी पदार्थ:
- क्लोरोफ्लोरोकार्बन (CFCs) और अन्य हैलोजनयुक्त ओजोन-क्षयकारी पदार्थ (ozone-depleting substances – ODS) मुख्य रूप से मानव निर्मित रासायनिक ‘ओजोन रिक्तीकरण’ के लिए जिम्मेदार हैं।
- इनका उपयोग मुख्य रूप से रेफ्रिजरेटर, एयर कंडीशनर, अग्निशामक और फोम में किया जाता है।
बिल्डिंग एनर्जी एफिशिएंसी प्रोजेक्ट (बीईईपी)
संदर्भ: हाल ही में, ‘इंडो-स्विस बिल्डिंग एनर्जी एफिशिएंसी प्रोजेक्ट’ (BEEP) के तहत एक सम्मेलन का आयोजन किया गया है ताकि भारत को वाणिज्यिक और आवासीय भवनों दोनों के लिए ऊर्जा-कुशल और तापीय रूप से आरामदायक बिल्डिंग डिजाइन की मुख्यधारा में मदद मिल सके। ऊर्जा दक्षता ब्यूरो (बीईई) इसे कार्यान्वित करेगा।
पृष्ठभूमि:
- इंडो-स्विस बिल्डिंग एनर्जी एफिशिएंसी प्रोजेक्ट (बीईईपी) भारत सरकार और स्विट्जरलैंड सरकार के बीच एक सहयोगी परियोजना है।
- इस अवधि के दौरान, बीईईपी ने बीईई को इको-निवास संहिता (आवासीय भवनों के लिए ऊर्जा संरक्षण भवन कोड), लगभग 50 भवनों के डिजाइन और भवन क्षेत्र के 5000 से अधिक पेशेवरों को प्रशिक्षित करने में तकनीकी सहायता प्रदान की है।
ग्रीन फिन्स हब
यूके स्थित चैरिटी रीफ-वर्ल्ड फाउंडेशन के साथ संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) ने हाल ही में ‘ग्रीन फिन्स हब’ (Green Fins Hub) लॉन्च किया है। यह एक वैश्विक डिजिटल प्लेटफॉर्म है, जो संवहनीय समुद्री पर्यटन को ‘बढ़ावा’ देगा।
- यह प्लेटफॉर्म दुनिया भर में डाइविंग और स्नॉर्कलिंग ऑपरेटरों को आजमाए हुए और परीक्षण किए गए समाधानों का उपयोग करके अपनी दैनिक प्रथाओं में सरल, लागत प्रभावी परिवर्तन करने में मदद करेगा।
- यह उन्हें अपने वार्षिक सुधारों पर नज़र रखने और अपने समुदायों और ग्राहकों के साथ संवाद करने में भी मदद करेगा।
पूर्वोत्तर भारत में आठ सशस्त्र समूहों के साथ समझौता
संदर्भ: केंद्र सरकार ने सशस्त्र समूहों की शांति और पुनर्वास के लिए 8 सशस्त्र जनजातीय समूहों और असम सरकार के साथ त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं।
हाल ही किए गए समझौते:
- शरणार्थी संकट को हल करने के लिए ब्रू-रियांग समझौता। इसके तहत वित्तीय पैकेज के साथ त्रिपुरा में 6959 ब्रू परिवारों का स्थायी बंदोबस्त का प्रावधान है।
- बोडो समझौता। 2020 का बोडो समझौता बोडो प्रादेशिक क्षेत्र (बीटीआर) को दी गई प्रशासनिक, विधायी और वित्तीय शक्तियों को बढ़ाने का एक प्रयास है।
- कार्बी आंगलोंग समझौता। इसके तहत, सशस्त्र संगठनों के 1,000 से अधिक सदस्य आत्मसमर्पण करने और हिंसा का रास्ता छोड़ने के लिए आगे आए।
- असम-मेघालय अंतर्राज्यीय सीमा समझौता।
- कई जिलों/राज्यों से AFSPA को आंशिक रूप से या पूरी तरह से वापस ले लिया गया है।