विषयसूची
सामान्य अध्ययन-II
- ‘मुफ्त उपहारों’ की सीमा निर्धारित किए जाने से संबंधित विषय
- भारतीय ओलंपिक संघ के पैनल को प्रभारी बनाने संबंधी निर्णय पर यथास्थिति का आदेश
- चीन की बीआरआई परियोजनाओं की गति में कमी किंतु ऋणों में वृद्धि
सामान्य अध्ययन-III
- भारत में ब्लॉकचेन प्लेटफॉर्म
- बैंकों का धमाकेदार निजीकरण हानिकारक हो सकता है: आरबीआई
मुख्य परीक्षा संवर्धन हेतु पाठ्य सामग्री (नैतिकता/निबंध)
- वैक्सीन दीदी
- पहला ‘कार्यात्मक रूप से साक्षर’ जिला
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य
- पारंपरिक ज्ञान डिजिटल लाइब्रेरी
- मेगालोडन शार्क
- विलुप्त तस्मानियाई बाघ को पुनर्जीवित करने हेतु प्रोजेक्ट
- महामारी संधि
- संशोधित ब्याज अनुदान योजना
- वैश्विक कर समझौता
- निदान पोर्टल
- विनबैक्स 2022
सामान्य अध्ययन– II
विषय: केन्द्र एवं राज्यों द्वारा जनसंख्या के अति संवेदनशील वर्गों के लिये कल्याणकारी योजनाएँ और इन योजनाओं का कार्य-निष्पादन; इन अति संवेदनशील वर्गों की रक्षा एवं बेहतरी के लिये गठित तंत्र, विधि, संस्थान एवं निकाय।
‘मुफ्त उपहारों’ की सीमा निर्धारित किए जाने से संबंधित विषय
संदर्भ: मतदाताओं को “तर्कहीन मुफ्त उपहारों” का वादा करने वाले राजनीतिक दलों की मान्यता रद्द करने की मांग करने वाली एक याचिका पर सुनवाई करते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में ‘कल्याणकारी उपायों’ और ‘सरकारी खजाने को नुकसान’ के बीच संतुलन बनाने पर जोर दिया है।
मुफ्त उपहार एवं लोक कल्याण:
- मुफ्त बिजली, मुफ्त पानी, मुफ्त सार्वजनिक परिवहन, लंबित उपयोगिता बिलों की माफी और कृषि ऋण माफी को अक्सर ‘मुफ्त उपहारों’ (Freebies) की श्रेणी में रखा जाता है।
- ‘मुफ्त उपहार’ संभावित रूप से ‘साख एवं प्रतिष्ठा संस्कृति’ को कमजोर करते हैं, निजी निवेश के लिए क्रॉस-सब्सिडी के माध्यम से कीमतों को बिगाड़ते हैं, और वर्तमान मजदूरी दर पर काम करने को हतोत्साहित करते है, जिससे श्रम बल की भागीदारी में कमी आती है।
- लोक कल्याण (Welfare): सार्वजनिक वितरण प्रणाली, रोजगार गारंटी योजनाएँ, शिक्षा और स्वास्थ्य के लिए राज्यों का सहयोग आदि जैसे आर्थिक लाभ सृजित करने वाले कार्यो पर व्यय ‘लोक कल्याण’ (Welfare) की श्रेणी में रखा जाता है।
क्या भारत में लोक कल्याण या मुफ्त-उपहारों पर बहुत अधिक व्यय किया जा रहा है?
- सामाजिक क्षेत्र पर व्यय में कमी: कई अध्ययनों, विशेष रूप से भारतीय रिजर्व बैंक (राज्य वित्त पर अध्ययन) द्वारा किए गए अध्ययनों से पता चला है कि 2014 के बाद से, राज्यों को अधिक संसाधन दिए जाने के बाद भी राज्य स्तर पर सामाजिक क्षेत्र के व्यय में कमी आई है।
- स्वास्थ्य और शिक्षा: राज्यों द्वारा स्वास्थ्य और शिक्षा क्षेत्रों के लिए वित्तीय आवंटन में गिरावट आ रही है।
- भारतीय रिजर्व बैंक की रिपोर्ट: आरबीआई की रिपोर्ट में, दो महीने पहले राज्यों की वित्तीय स्थिति को प्रकाश में लाया गया। जिसके अनुसार, कम से कम पांच राज्यों में राजकोषीय दबाव देखने को मिल रहा है।
- कल्याणकारी योजनाओं पर कम व्यय: भारत में कल्याणकारी योजनाओं पर बहुत कम व्यय किया जाता है, और अन्य विकासशील देशों की तुलना में यह काफी कम है – कुछ साल पहले, भारत में स्वास्थ्य और शिक्षा पर सार्वजनिक व्यय मात्र 7% था, जबकि उप-सहारा अफ्रीका में यह 7% था।
समाधान:
- कल्याणकारी योजनाओं पर अधिक व्यय: कल्याणकारी योजनाओं पर अधिक संसाधन खर्च करने की आवश्यकता है। इसके साथ ही, सामाजिक क्षेत्र को किए गए वित्तीय आवंटन पर निगाह रखने की भी जरूरत है।
- सार्वजनिक व्यय दक्षता: साथ ही, अब समय आ गया है कि हम इस देश में ‘सार्वजनिक व्यय दक्षता’ (Public Expenditure Efficiency) के बारे में बात करना शुरू की जाए।
- बेहतर संसाधन: हमें एक अच्छा ‘कर ढांचा’ (Tax Framework) बनाने की आवश्यकता है, जहां आपके पास सामाजिक क्षेत्र पर अधिक व्यय करने हेतु बेहतर संसाधन हों और साथ ही ‘मध्यम अवधि के ऋणों की स्थिरता’ को भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
श्रीलंका के साथ तुलना:
- सार्वजनिक ऋण स्टॉक: ‘राजकोषीय संकट’ किसी विशेष वर्ष के ‘राजकोषीय घाटे’ (Fiscal Deficit) के कारण नहीं होता है, बल्कि ‘सार्वजनिक ऋण स्टॉक’ के कारण होता है जो समय के साथ बढ़ता रहता है।
- अन्य कारक: श्रीलंका की वित्तीय स्थिति, केवल कल्याणकारी व्यय से उत्पन्न नहीं हुई थी। वहां और भी बहुत सी चीजें हो रही हैं जो इस वित्तीय संकट का कारण बनीं।
करों में वृद्धि और संसाधनों का अधिक से अधिक पुनर्वितरण किस प्रकार की जाए:
- अप्रत्यक्ष करों जैसे कि वस्तु एवं सेवा कर (GST) को कम किया जाए।
- गैर-कर राजस्व में वृद्धि की जाए।
- संपदा कर: अमीरों पर एकमुश्त 4% संपदा कर (wealth tax) लगाया जाए, इससे हम जीडीपी का 1% राजस्व प्राप्त कर सकते हैं।
- संपत्ति कर: इसी तरह, हम ‘संपत्ति कर’ (Property tax) के माध्यम से ‘सकल घरेलू उत्पाद’ का 2% बढ़ा रहे हैं, जबकि विकासशील देश का औसत ‘संपत्ति कर’ सकल घरेलू उत्पाद का 0.6% है और OECD देशों में यह सकल घरेलू उत्पाद का 2% है। तो फिर, इस माध्यम से राजस्व वृद्धि होने की बहुत गुंजाइश है।
सुप्रीम कोर्ट का सुझाव:
- कल्याणकारी व्यय और हमारी वित्तीय चिंताओं को संतुलित किया जाए। अदालत ने कल्याणकारी व्यय और हमारी वित्तीय चिंताओं को संतुलित करने की आवश्यकता का उल्लेख किया है।
- सामाजिक क्षेत्र व्यय: निहित सब्सिडी को कम किया जा सकता है ताकि हमारे पास कल्याण या सामाजिक क्षेत्र के व्यय के लिए अधिक संसाधन हों।
निष्कर्ष:
दीर्घकालिक प्रभाव: दीर्घकालिक प्रभाव उत्पन्न करने वाली नीतियों को पहचान करने की आवश्यकता है। साथ ही, लाभार्थी समूहों को चिह्नित करने की भी आवश्यकता है।
इंस्टा लिंक्स:
स्रोत: द हिंदू
विषय: सांविधिक, विनियामक और विभिन्न अर्द्ध-न्यायिक निकाय।
भारतीय ओलंपिक संघ के पैनल को प्रभारी बनाने संबंधी निर्णय पर यथास्थिति का आदेश
संदर्भ:
सुप्रीम कोर्ट ने ‘भारतीय ओलंपिक संघ’ (Indian Olympic Association – IOA) संबंधी मामलों को ‘प्रशासकों की समिति’ (Committee of Administrators – CoA) को सौंपने के दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश के कार्यान्वयन पर यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया है।
हाल ही में, अंतरराष्ट्रीय फुटबॉल महासंघ / फीफा (FIFA) ने ‘अखिल भारतीय फुटबॉल महासंघ’ (All India Football Federation – AIFF) पर फेडरेशन में अनुचित कानूनी और राजनीतिक हस्तक्षेप करने का आरोप लगाते हुए इसे निलंबित कर दिया था।
महत्वपूर्ण बिंदु:
इससे पहले, दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा एक तीन सदस्यीय ‘प्रशासकों की समिति’ (CoA) गठित की गयी थी, जिसमे निम्नलिखित सदस्य शामिल थे:
- सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस अनिल आर. दवे
- पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एस.वाई. कुरैशी
- विदेश मंत्रालय के पूर्व सचिव, विकास स्वरूप।
प्रख्यात खिलाड़ियों द्वारा सहायता: उच्च न्यायालय ने ‘भारतीय ओलंपिक संघ’ (IOA) की कार्यकारी समिति को IOA की कमान ‘प्रशासकों की समिति’ (CoA) को सौंपने का निर्देश दिया था। इस समिति को तीन प्रतिष्ठित खिलाडियों, ओलंपियन अभिनव बिंद्रा, अंजू बॉबी जॉर्ज और बोम्बायला देवी लैशराम द्वारा सहायता प्रदान की जाएगी।
अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति के नियमों के अनुसार: IOA जैसी राष्ट्रीय स्तर की संस्था का प्रतिनिधित्व किसी गैर-निर्वाचित निकाय द्वारा किए जाने को तीसरे पक्ष के हस्तक्षेप के रूप में माना जाएगा। ‘भारतीय ओलंपिक संघ’ (IOA) इन नियमों से बाध्य है। दुनिया का हर देश इन नियमों से बंधा हुआ है।
तीसरे पक्ष का हस्तक्षेप: भारतीय ओलंपिक संघ (IOA), अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति की एक इकाई है और इसके अपने नियम हैं और इन नियमों के अनुसार-
यदि याचिकाकर्ता IOA जैसे किसी राष्ट्रीय स्तर के निकाय का प्रतिनिधित्व किसी गैर-निर्वाचित निकाय द्वारा किया जाता है, तो इसे तीसरे पक्ष के हस्तक्षेप के रूप में माना जाएगा।
‘फेडरेशन इंटरनेशनेल डी फुटबॉल एसोसिएशन’ (FIFA):
- अंतरराष्ट्रीय फुटबॉल महासंघ (FIFA) विश्व में फुटबॉल का सर्वोच्च शासी निकाय है।
- यह महासंघ ‘फ़ुटबॉल’, ‘फ़ुटसल’ (Futsal) और ‘बीच फ़ुटबॉल’ (Beach Soccer) के लिए भी अंतर्राष्ट्रीय शासी निकाय है।
- फीफा (FIFA) एक गैर-लाभकारी संगठन है।
- 1904 में स्थापित, फीफा को बेल्जियम, डेनमार्क, फ्रांस, जर्मनी, नीदरलैंड, स्पेन, स्वीडन और स्विटजरलैंड के राष्ट्रीय संघों के बीच होने वाली अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धाओं की निगरानी के लिए लॉन्च किया गया था।
- वर्तमान में फीफा में 211 सदस्य देश शामिल हैं।
- इसका मुख्यालय ‘ज्यूरिख’ में है।
अखिल भारतीय फुटबॉल महासंघ:
- अखिल भारतीय फुटबॉल महासंघ (All-India Football Federation – AIFF) भारत में फुटबॉल संघो के खेल का प्रबंधन करने हेतु जिम्मेदार निकाय है।
- AIFF भारत की ‘राष्ट्रीय फुटबॉल टीम’ के संचालन का प्रबंधन करता है और विभिन्न अन्य प्रतिस्पर्धाओं और टीमों के अलावा भारत की प्रमुख घरेलू क्लब प्रतियोगिता ‘आई-लीग’ (I-League) को भी नियंत्रित करता है।
- अखिल भारतीय फुटबॉल महासंघ (AIFF) की स्थापना 1937 में हुई थी, और 1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद इसने वर्ष 1948 में ‘फीफा’ से संबद्धता हासिल की।
- वर्तमान में, नई दिल्ली के ‘द्वारका’ इसका मुख्य कार्यालय है।
- भारत, 1954 में एशियाई फुटबॉल परिसंघ के संस्थापक सदस्यों में से एक था।
इंस्टा लिंक्स:
स्रोत: द हिंदू
विषय: भारत एवं इसके पड़ोसी- संबंध।
चीन की बीआरआई परियोजनाओं की गति में कमी किंतु ऋणों में वृद्धि
संदर्भ: हाल के एक शोध अध्ययन में ‘विदेशी ऋण प्रदान करने में चीन के दृष्टिकोण में बदलाव’ को उजागर किया गया है।
शोध अध्ययन के अनुसार, अपने ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ (Belt and Road Initiative – BRI) के तहत बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में चीन के निवेश में कमी आई है, जबकि साझेदार देशों को चीन द्वारा दी जा रही ‘लघु एवं मध्यम अवधि की सहायता’ में वृद्धि होती जा रही है। विदित हो, कि इन साझेदार देशों में से अधिकाँश देश बढ़ते कर्ज से उत्पन्न संकटों से निपट रहे हैं।
महत्वपूर्ण बिंदु:
ग्रीन फाइनेंस एंड डेवलपमेंट सेंटर (GFDC) की रिपोर्ट: शंघाई के फुडन विश्वविद्यालय के ‘ग्रीन फाइनेंस एंड डेवलपमेंट सेंटर’ (GFDC) की रिपोर्ट के अनुसार, 2022 की पहली छमाही में, 147 देशों में वित्तीय निवेश और अनुबंधों के माध्यम से चीन की भागीदारी 28.4 बिलियन डॉलर थी, जो पिछले वर्ष की तुलना में 47% अधिक है।
- यह भागीदारी, $11.8 बिलियन निवेश के माध्यम से और $16.5 बिलियन परियोजना अनुबंधों के माध्यम से थी।
- यह आंकड़े, 2019 में इसी अवधि में $48.5 बिलियन के निवेश के बाद आई कमी को चिह्नित करते हैं।
चीन का कुल विदेशी निवेश एवं सहायता: रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि, 2013 में बीआरआई की शुरुआत के बाद से, चीन का कुल विदेशी निवेश एवं सहायता 932 बिलियन डॉलर तक पहुँच चुकी है, जिसमें 561 बिलियन डॉलर विनिर्माण अनुबंधों में और शेष राशि अन्य निवेशों में लगी हुई है।
रिपोर्ट में बीआरआई की तीन स्पष्ट प्रवृत्तियों का उल्लेख किया गया है:
- चीनी राज्य के स्वामित्व वाले उद्यमों के लिए बढ़ती भूमिका
- परियोजना सौदों का औसत आकार गिर रहा है, जोकि पिछले वर्ष के $558 मिलियन से गिरकर 2021 में $325 मिलियन हो गया है।
- परियोजनाओं का तेजी से असमान प्रसार।
चीन का कोई जुड़ाव नहीं: रूस, श्रीलंका और मिस्र सहित कई देशों ने वर्ष की पहली छमाही में “चीन का कोई जुड़ाव नहीं देखा”, जबकि पाकिस्तान में यह आंकड़ा 56% कम रहा।
ब्लूमबर्ग द्वारा रिपोर्ट किए गए ‘एडडाटा अनुसंधान प्रयोगशाला’ के शोध के अनुसार: कई बीआरआई भागीदारों के लिए ‘चीन द्वारा दिए जाने वाले लघु और मध्यम अवधि के ऋणों’ में तेजी से वृद्धि हुई है।
पाकिस्तान को ऋण:
पिछले पांच वर्षों में, चीन ने केवल “पाकिस्तान और श्रीलंका को दिए गए लघु और मध्यम अवधि के ऋणों से लगभग $26 बिलियन का लाभ अर्जित किया”। यह चीन के, अपने विदेशी संबद्धताओं के दृष्टिकोण में परिवर्तन अर्थात बुनियादी ढांचे के वित्तपोषण की बजाय आपातकालीन सहायता प्रदान करने को दर्शाता है।
इंस्टा लिंक्स:
बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई)
स्रोत: द हिंदू
सामान्य अध्ययन– III
विषय: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी- विकास एवं अनुप्रयोग और रोज़मर्रा के जीवन पर इसका प्रभाव। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में भारतीयों की उपलब्धियाँ; देशज रूप से प्रौद्योगिकी का विकास और नई प्रौद्योगिकी का विकास।
भारत में ब्लॉकचेन प्लेटफॉर्म
संदर्भ: इस आर्टिकल में, भारत में ई-गवर्नेंस के लिए ब्लॉकचेन तकनीक का उपयोग किए जाने के विषय पर चर्चा की गयी है।
- ब्लॉकचेन प्रौद्योगिकी (Blockchain Technology) पर आधारित एक डिजिटल बुनियादी ढांचा (Digital Infrastructure), भारत में डिजिटल परितंत्र को बदल सकता है और डिजिटल सेवाओं, प्लेटफार्मों, अनुप्रयोगों, सामग्री और समाधानों के भविष्य का निर्माण करेगा।
- डिजिटल बुनियादी ढांचे के लिए उठाए गए हालिया कदम: 2015 में डिजिटल इंडिया मिशन, भुगतान प्रणाली, भविष्य निधि, पासपोर्ट, ड्राइविंग लाइसेंस, क्रॉसिंग टोल, और भूमि रिकॉर्ड की जांच, सभी को आधार, UPI और इंडिया स्टैक पर निर्मित ‘मॉड्यूलर एप्लिकेशन’ से बदल दिया गया है।
- सार्वजनिक डिजिटल बुनियादी ढांचे की सीमाएं:
- कम उपलब्धता और वहनीयता: यह अच्छी तरह से सिद्ध हो चुका है कि डिजिटल बुनियादी ढांचे को उपलब्धता, सामर्थ्य, मूल्य और विश्वास के सिद्धांतों के आधार पर डिजाइन किया जाना चाहिए।
- वर्तमान डिजिटल पारितंत्र एक डिजाइन के रूप में आपस में संबद्ध नहीं है। डिजिटल पारितंत्र को कुशल / दक्ष और अंतःप्रचालनीय बनाने के लिए ‘तकनीकी समन्वय’ आवश्यक होता है।
- डेटा सत्यापन की जटिलता: अंतःक्रियाओं को पूरा करने हेतु ‘सूचना’ को कई प्रणालियों से गुजरना और निजी डेटाबेस पर भरोसा करना पड़ता है, परिणामस्वरूप नेटवर्क में विस्तार होने के डेटा का सत्यापन और अधिक जटिल हो जाता है, जिससे लागत में वृद्धि होती है और अदक्षता पैदा होती हैं।
समाधान:
वेब 3.0 (Web 3.0): यह इंटरनेट की अगली यात्रा है। वेब 3.0, काफी हद तक ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी, मशीन लर्निंग और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) पर निर्भर है। इसका उद्देश्य खुले, कनेक्टेड, इंटेलिजेंट वेबसाइटों और वेब अनुप्रयोगों सहित एक विकेन्द्रीकृत इंटरनेट का निर्माण करना है।
फ़ायदे:
- डेटा स्वामित्व। वेब 2.0 में, तकनीकी दिग्गज उपयोगकर्ता-जनित डेटा को नियंत्रित और दोहन करते हैं।
- मध्यस्थों की संख्या में कमी।
- पारदर्शिता।
- कुशल खोज और सूचना लिंकिंग।
- वैयक्तिकृत वेब सर्फिंग अनुभव।
- निर्बाध सेवाएं।
- स्वतः सत्यापन: ब्लॉकचैन-आधारित बुनियादी ढांचा, किसी विशेष अभिकर्मक पर निर्भर हुए बगैर किसी भी प्रपंजी / बहीखाते (Ledger) के इतिहास को सत्यापित करने के लिए आवश्यक सभी विशेषताओं को प्रदान कर सकता है।
- ब्लॉकचेन रिकॉर्ड को नियामकों द्वारा वास्तविक समय में देखा, संकलित और ऑडिट किया जा सकता है।
केस स्टडी:
- एस्टोनिया (Estonia) विश्व की ब्लॉकचेन राजधानी है और यहाँ जनता को दी जाने वाली सभी ई-गवर्नेंस सेवाओं को सत्यापित और संसाधित करने के लिए ब्लॉकचेन इंफ्रास्ट्रक्चर का उपयोग किया जाता है।
- चीन द्वारा वर्ष 2020 में ‘ब्लॉकचैन-आधारित सर्विस नेटवर्क’ (Blockchain-based Service Network – BSN) नामक एक कार्यक्रम शुरू किया गया। इसका उद्देश्य क्लाउड में ब्लॉकचेन एप्लिकेशन को सुव्यवस्थित तरीके से तैनात किया जा सके।
- ब्राजील सरकार ने हाल ही में, भागीदार संस्थानों को शासन में लाने के लिए ‘ब्राजीलियाई ब्लॉकचैन नेटवर्क’ का शुभारंभ किया है।
भारत के लिए एक ‘अखिल भारतीय ब्लॉकचेन प्लेटफॉर्म’ की आवश्यकता:
ब्लॉकचेन प्रौद्योगिकी आधारित एक डिजिटल बुनियादी ढांचा (Digital Infrastructure), भारत में डिजिटल परितंत्र को बदल सकता है और डिजिटल सेवाओं, प्लेटफार्मों, अनुप्रयोगों, सामग्री और समाधानों के भविष्य का निर्माण करेगा।
निष्कर्ष:
भारतीय डिजिटल समुदाय- जिसमें फिनटेक, अकादमिक, थिंक टैंक और संस्थान शामिल हैं – के लिए मानकों और अन्तरसंक्रियता में अनुसंधान, तथा मापनीयता और प्रदर्शन, सामंजस्य तंत्र और कमजोरियों की स्वतःजानकारी जैसी वितरित प्रौद्योगिकियों से जुडी वर्तमान ज्ञात समस्याओं के कुशल प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
इंस्टा लिंक:
मेंस लिंक:
सार्वजनिक क्षेत्र के कार्यों और नागरिक सेवा वितरण को बदलने में ब्लॉकचेन प्रौद्योगिकी की क्षमता का विश्लेषण कीजिए। (15 अंक)
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
विषय: उदारीकरण का अर्थव्यवस्था पर प्रभाव, औद्योगिक नीति में परिवर्तन तथा औद्योगिक विकास पर इनका प्रभाव।
बैंकों का धमाकेदार निजीकरण हानिकारक हो सकता है: आरबीआई
संदर्भ:
हाल ही में, भारतीय रिज़र्व बैंक ने अपने एक बुलेटिन में चेतावनी देते हुए कहा है, कि “सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का धमाकेदार निजीकरण, फ़ायदे से ज्यादा नुकसान कर सकता है”। इसके साथ ही, आरबीआई ने सरकार से इस मुद्दे पर एक सूक्ष्म दृष्टिकोण अपनाने के लिए कहा है।
यद्यपि, निजी क्षेत्र के बैंक (private sector banks – PSBs) लाभ को अधिकतम करने में अधिक कुशल होते हैं, किंतु इनके सार्वजनिक क्षेत्र के समकक्ष ‘वित्तीय समावेशन’ को बढ़ावा देने में बेहतर प्रदर्शन करते हैं।
महत्वपूर्ण बिंदु:
- सामाजिक उद्देश्यों की कीमत पर निजीकरण नहीं: निजीकरण (privatization) के लिए सरकार द्वारा अपनाया गया क्रमिक दृष्टिकोण, यह सुनिश्चित कर सकता है कि इस प्रक्रिया के परिणामस्वरूप, वित्तीय समावेशन और मौद्रिक संचरण के सामाजिक उद्देश्य को पूरा करने में एक ‘शून्य’ पैदा नहीं हो।
- हरित संक्रमण (Green Transition) को प्रोत्साहन: सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (Public Sector Banks) द्वारा ‘निम्न कार्बन उद्योगों में वित्तीय निवेश’ को उत्प्रेरित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई गयी है, जिससे हरित संक्रमण को बढ़ावा मिला।
- वित्तीय समावेशन लक्ष्य: साक्ष्य बताते हैं कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक पूरी तरह से केवल ‘लाभ अधिकतम करने के लक्ष्य’ द्वारा निर्देशित नहीं होते है, और उन्होंने निजी क्षेत्र के बैंकों के विपरीत, वांछनीय वित्तीय समावेशन लक्ष्यों को अपने कार्य उद्देश्यों में एकीकृत किया है।
- सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक ऋणों की प्रतिचक्रीय भूमिका (Countercyclical role of PSB lending): हाल के वर्षों में, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने बाजार का अधिक विश्वास हासिल किया है।
- कमजोर बैलेंस शीट जैसी आलोचना के बावजूद, डेटा बताता है कि इन बैंकों ने कोविड-19 महामारी के झटके को अच्छी तरह से झेला है।
- क्षेत्र के समेकन से मजबूत और प्रतिस्पर्धी बैंकों का निर्माण: सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के हालिया महा-विलय (mega-mergers of PSBs) के परिणामस्वरूप इस क्षेत्र का समेकन हुआ है, जिससे बैंक मजबूत और अधिक मजबूत और प्रतिस्पर्धी बने हैं।
- नेशनल एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी लिमिटेड (NARCL): राष्ट्रीय आस्ति पुनर्संरचना कंपनी लिमिटेड’ (National Asset Reconstruction Company Ltd. – NARCL) की स्थापना से बैंकों को उनकी बैलेंस शीट से खराब ऋणों के पुराने बोझ को साफ करने में मदद मिलेगी।
- नेशनल बैंक फॉर फाइनेंसिंग इंफ्रास्ट्रक्चर एंड डेवलपमेंट (NABFiD): हाल ही में गठित नेशनल बैंक फॉर फाइनेंसिंग इंफ्रास्ट्रक्चर एंड डेवलपमेंट (NABFiD), इंफ्रास्ट्रक्चर फंडिंग का एक वैकल्पिक चैनल प्रदान करेगा, इस प्रकार सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की परिसंपत्ति-देयता असंगत चिंताओं को कम करेगा।
निजीकरण (Privatization) क्या है?
- सरकार द्वारा स्वामित्व, संपत्ति या व्यवसाय के निजी क्षेत्र को हस्तांतरण को निजीकरण कहा जाता है।
- निजीकरण के पश्चात, सरकार इकाई या व्यवसाय की स्वामी नहीं रह जाती है।
- ‘निजीकरण’ को कंपनी में अधिक दक्षता और निष्पक्षता – माना जाता है, कि इसके बारे में सरकारी कंपनी को कोई सरोकार नहीं होता है- लाने के लिए जाना जाता है।
- भारत द्वारा 1991 के ऐतिहासिक सुधार बजट में निजीकरण शुरू किया गया, जिसे ‘नई आर्थिक नीति या LPG नीति’ के रूप में भी जाना जाता है।
स्रोत: द हिंदू
मुख्य परीक्षा संवर्धन हेतु पाठ्य सामग्री (नैतिकता/निबंध)
वैक्सीन दीदी
कोविड 19 महामारी के दौरान ट्रांसजेंडर समुदाय ने खुद को तीन गुना नुकसान में पाया। उनकी आजीविका के मुख्य स्रोत, जैसे समारोहों में गायन, यौन कार्य और भीख मांगना, बाधित हो गए थे।
- समूहों में रहने से उन्हें संक्रमण का खतरा अधिक था। इसके अलावा, वैक्सीन का लिंग परिवर्तन हार्मोन के साथ ख़राब प्रतिक्रिया करने और टीकाकरण केंद्रों पर अपमान के डर से, ट्रांसजेंडर समुदाय में टीका लगवाने की हिचकिचाहट की उच्च दर थी।
- छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले में, एक ट्रांसजेंडर महिला ‘कंचन सेंद्रे’ ने अपने समुदाय में कोविड -19 वैक्सीन के बारे में आशंकाओं को दूर करने का भार अपने ऊपर ले लिया है। सेंद्रे के प्रयासों के कारण, दुर्ग जिले के 65 ट्रांसजेंडर लोगों ने टीके की खुराक लगवाई, जिससे उन्हें ‘वैक्सीन दीदी’ (Vaccine Didi) की उपाधि मिली है।
इस उदाहरण का उपयोग ‘नैतिकता’ (लोगों को टीकाकरण के लिए राजी करना, सामाजिक कार्य के प्रति समर्पण का मूल्य, भेदभाव के खिलाफ लड़ाई) में किया जा सकता है।
पहला ‘कार्यात्मक रूप से साक्षर’ जिला
संदर्भ: मध्य प्रदेश का आदिवासी बहुल ‘मंडला जिला’ भारत का पहला “कार्यात्मक रूप से साक्षर” (Functionally Literate) जिला बन गया है।
कार्यात्मक साक्षरता (Functional lliteracy) में, दैनिक जीवन और रोजगार कार्यों के प्रबंधन के लिए आवश्यक, पढ़ने और लिखने का कौशल शामिल होता है। दैनिक जीवन और रोजगार कार्यों के लिए बुनियादी स्तर की साक्षरता से आगे, पढ़ने के कौशल की आवश्यकता होती है।
- ‘निरक्षरता’ को किसी भी भाषा में पढ़ने या लिखने में असमर्थता के रूप में परिभाषित किया गया है।
- लोगों को कार्यात्मक रूप से साक्षर बनाने के लिए, महिलाओं और वरिष्ठ नागरिकों को शिक्षित करने के लिए, स्कूल शिक्षा विभाग, आंगनवाड़ी और सामाजिक कार्यकर्ताओं, महिला और बाल विकास विभाग के सहयोग से स्वतंत्रता दिवस 2020 पर एक बड़ा अभियान शुरू किया गया था।
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य
पारंपरिक ज्ञान डिजिटल लाइब्रेरी
संदर्भ: केंद्रीय मंत्रिमंडल ने “पेटेंट कार्यालयों के अलावा, उपयोगकर्ताओं के लिए भी पारंपरिक ज्ञान डिजिटल लाइब्रेरी (Traditional Knowledge Digital Library – TKDL) डेटाबेस तक पहुंच का विस्तार करने की मंजूरी दे दी है। इससे पहले TKDL डेटाबेस तक पहुंच खोज और परीक्षा के लिए 14 पेटेंट कार्यालयों तक सीमित थी।
- पारंपरिक ज्ञान: पारंपरिक ज्ञान (Traditional Knowledge) से तात्पर्य, सदियों से प्राप्त अनुभव से विकसित और स्थानीय संस्कृति और पर्यावरण के अनुकूल देशज् लोगों के ज्ञान, नवाचारों और पद्धतियों से है।
- पारंपरिक ज्ञान को संरक्षित करने और बनाए रखने तथा इसके लाभों के समान बंटवारे के लिए, सरकार ने ‘जैविक विविधता अधिनियम’ 2002 अधिनियमित किया है। भारत, ‘जैव विविधता अभिसमय’ और ‘नागोया प्रोटोकॉल’ का एक हस्ताक्षरकर्ता भी है।
TKDL के बारे में:
पारंपरिक ज्ञान डिजिटल लाइब्रेरी (TKDL) 2001 में स्थापित भारतीय पारंपरिक ज्ञान का एक प्राथमिक डेटाबेस है।
- इसे वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) और भारतीय चिकित्सा प्रणाली व होम्योपैथी विभाग (आयुष मंत्रालय) द्वारा संयुक्त रूप से स्थापित किया गया था।
- TKDL में वर्तमान में आईएसएम से संबंधित मौजूदा साहित्य जैसे आयुर्वेद, यूनानी, सिद्ध, सोवा रिग्पा और योग शामिल है।
- जानकारी व ज्ञान को पांच अंतरराष्ट्रीय भाषाओं – अंग्रेजी, जर्मन, फ्रेंच, जापानी और स्पेनिश- में डिजिटल प्रारूप में प्रस्तुत किया गया है
- उद्देश्य: यह दुनिया भर में पेटेंट कराकर या जैव-चोरी के खिलाफ देश के पारंपरिक औषधीय ज्ञान के दुरुपयोग को रोकने का प्रयास करता है।
स्रोत: पीआईबी
मेगालोडन शार्क
त्रि-आयामी मॉडल बनाने के लिए जीवाश्म साक्ष्य का उपयोग करते हुए, शोधकर्ताओं ने अब तक के सबसे बड़े शिकारी जानवरों में से एक – ‘मेगालोडन शार्क’ (Megalodon Shark) के जीवन के बारे में नए साक्ष्य पाए हैं।
- ‘मेगालोडन शार्क’ अनुमानित 23 मिलियन से 2.6 मिलियन वर्ष पहले महासागरों में पायी जाती थी।
- मेगालोडन, किलर व्हेल जैसे विशालकाय जीवों को मुश्किल से चार-पांच कौरों (bites) में निगल जाती थी।
- अध्ययन के अनुसार, मेगालोडन आकार में, सिर से पूंछ तक लगभग एक स्कूल बस के बराबर 50 फीट लंबी होती थी। इसकी तुलना में, वर्तमान के ग्रेट सफेद शार्क लगभग 15 फीट की अधिकतम लंबाई तक बढ़ सकते हैं। अपने डिजिटल मॉडल का उपयोग करते हुए, शोधकर्ताओं ने सुझाव दिया है कि विशाल ट्रांसोसेनिक शिकारी जीव का वजन लगभग 70 टन – या 10 हाथियों के बराबर रहा होगा।
विलुप्त तस्मानियाई बाघ को पुनर्जीवित करने हेतु प्रोजेक्ट
संदर्भ: अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के वैज्ञानिकों ने ‘थायलासीन’ (Thylacine) या ‘तस्मानियाई टाइगर’ (Tasmanian Tiger) को जीन-संपादन तकनीक का उपयोग करके पुनर्जीवित करने के लिए 15 मिलियन डॉलर की एक परियोजना शुरू की है।
- ‘तस्मानियाई टाइगर’ एक शिशुधानीस्तनी / मार्सुपियल (marsupial) जीव होता है, यह जीव 1930 के दशक में विलुप्त हो गया था।
- तस्मानियाई बाघ (थायलासिनस सायनोसेफालस – Thylacinus Cynocephalus), आधुनिक समय में जीवित रहने वाला ‘थायलासिनिडे परिवार’ का एकमात्र जानवर था।
- शिशुधानीस्तनी या मार्सुपियल ऐसे स्तनपायी जीव होते है, जो एक थैली में अपने बच्चों को पालते हैं।
- तस्मानियाई बाघ धीमी गति वाले मांसाहारी जीव थे, जो आमतौर पर रात में अकेले या जोड़े में शिकार करते थे। इस तेज पंजे वाले जीव का सिर कुत्ते जैसा था और कंगारू, अन्य मार्सुपियल्स, छोटे कृन्तकों और पक्षियों को खाता था।
- तस्मानियाई बाघ, खाद्य श्रृंखला में शीर्ष पर था, और इसलिए यह जीव कमजोर जानवरों को हटाकर और प्रजातियों की विविधता को बनाए रखने के द्वारा अपने आवास के पारिस्थितिकी तंत्र को संतुलित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता था। चूंकि ‘थायलासीन’ अपने पारिस्थितिकी तंत्र में एकमात्र शीर्ष शिकारी जीव था, इनकी अनुपस्थिति ने ‘तस्मानियाई डेविल’ को प्रभावित किया और चेहरे के ट्यूमर की बीमारी से इस जीव का लगभग विनाश हो गया था।
महामारी संधि
संदर्भ: WHO ने एक ‘महामारी संधि’ (Pandemic Treaty) का मसौदा तैयार करने और समझौता वार्ता करने के लिए एक अंतर-सरकारी वार्ता निकाय की स्थापना की है। ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ का कहना है कि ‘महामारी संधि’ का मसौदा अगले 18 महीनों में तैयार हो जाएगा और भविष्य में होने वाली वैश्विक स्वास्थ्य आपदाओं को रोकने में मदद करेगा।
‘महामारी संधि’ के बारे में:
‘स्वास्थ्य सभा’ (Health Assembly) द्वारा वर्ष 1948 में अपनी स्थापना के बाद से दिसंबर 2021 में अपने दूसरे विशेष सत्र में “द वर्ल्ड टुगेदर” शीर्षक से एक निर्णय पारित किया गया था।
- निर्णय के तहत, स्वास्थ्य संगठन द्वारा WHO संविधान के अनुच्छेद 19 के अनुपालन में, ‘महामारी संधि’ की सामग्री का मसौदा तैयार करने और वार्ता करने हेतु एक अंतर सरकारी वार्ता निकाय (Intergovernmental Negotiating Body – INB) की स्थापना की गयी थी।
- ‘महामारी संधि’ में उभरते हुए वायरस के डेटा साझाकरण और जीनोम अनुक्रमण और टीकों और दवाओं के समान वितरण और दुनिया भर में संबंधित अनुसंधान जैसे पहलुओं को शामिल करने की उम्मीद है।
आवश्यकता:
- कोविड-19 महामारी के समाधान में अब तक टीकों का असमान वितरण देखा गया है, और गरीब देश निवारक दवा प्राप्त करने के लिए दूसरों की दया पर निर्भर रहे हैं।
- अधिकांश देशों द्वारा “पहले मैं” (Me-First) का दृष्टिकोण अपनाया गया, जोकि वैश्विक महामारी से निपटने का एक प्रभावी तरीका नहीं है।
संशोधित ब्याज अनुदान योजना
संदर्भ: केंद्रीय मंत्रिमंडल ने सभी वित्तीय संस्थानों के लिए लघु अवधि के कृषि ऋणों पर ब्याज अनुदान को बहाल कर 1.5 प्रतिशत करने की मंजूरी दे दी है।
इस प्रकार 1.5 प्रतिशत का ‘ब्याज अनुदान’ (Interest Subventions) उधार देने वाले सभी वित्तीय संस्थानों (बैंकों) को किसानों को वर्ष 2022-23 से 2024-25 तक 3 लाख रुपये तक के लघु अवधि के कृषि ऋण देने के लिए प्रदान किया गया है।
‘ब्याज अनुदान’ क्या है:
- ‘ब्याज अनुदान’ (Interest Subventions) वित्तीय संस्थानों से लिए गए ऋण पर चुकाए जाने वाले कुल ब्याज में से कुछ प्रतिशत ब्याज की छूट का एक रूप होता है।
- उदाहरण के लिए, यदि बैंक किसानों को 8.5 प्रतिशत ब्याज दर पर ऋण प्रदान करते हैं। और अगर सरकार 1.5% का ‘ब्याज अनुदान’ प्रदान करती है, तो किसानों को बैंक को केवल 7% ब्याज दर का भुगतान करना होगा। इस अंतर का भुगतान सरकार द्वारा ‘सब्सिडी’ के रूप में किया जाएगा।
संशोधित ब्याज अनुदान योजना (MISS) के बारे में:
- संशोधित ब्याज अनुदान योजना (Modified Interest Subvention scheme – MISS) के तहत, बैंकों द्वारा सभी कृषि और संबद्ध गतिविधियों के लिए 7% प्रति वर्ष की दर से 3 लाख रुपए तक का अल्पकालिक ऋण प्रदान किया जाता है।
- ऋणों के शीघ्र पुनर्भुगतान के लिए: देय दिनांक से पहले ऋण चुकाने वाले किसानों को अतिरिक्त 3% ‘ब्याज अनुदान’ दिया जाता है, यानी कि, उन्हें केवल 4% ब्याज दर का भुगतान करना होगा।
- अनुदान: केंद्र द्वारा शत प्रतिशत अनुदान दिया जाता है।
- नोडल एजेंसी: नाबार्ड और आरबीआई
ब्याज अनुदान के लिए अन्य योजनाएं: किसान क्रेडिट कार्ड, एग्री मार्केट इंफ्रास्ट्रक्चर फंड (राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों को रियायती ऋण) और पीएम फसल बीमा योजना।
वैश्विक कर समझौता
संदर्भ: भारत और अन्य देशों (जी 24 समूह) ने, उनके द्वारा भविष्य में कोई डिजिटल सेवा कर (समकारी लेवी (Equalization Levy) के समान) नहीं लगाने संबंधी प्रस्ताव पर आपत्ति जताई है।
पृष्ठभूमि:
गूगल और फेसबुक जैसी डिजिटल कंपनियों के वैश्विक शासन को सुव्यवस्थित करने के लिए, OECD की ‘दो-स्तंभीय योजना’ (Two-Pillar Plan) के तहत एक ‘वैश्विक कर समझौता’ (Global Tax Deal) पर 2021 में सहमति हुई थी। भारत ने भी इस योजना पर अपनी सहमति दी थी।
समझौता फ्रेमवर्क के दो स्तंभ:
- पहले स्तंभ 1 के तहत, सभी बहुराष्ट्रीय उद्यमों (20 बिलियन यूरो से अधिक के कारोबार और 10% से अधिक के लाभ के साथ) को अपने लाभ का एक हिस्सा उस स्थान पर स्थानांतरित करना होगा जहां वे अपने उत्पाद बेचते हैं।
- दूसरे स्तंभ 2 के तहत: सभी उद्यमों (750 मिलियन यूरो से अधिक के राजस्व के साथ) को न्यूनतम 15% निगम कर देना होगा। इसके तहत 2023 से लागू होने वाले ‘वैश्विक न्यूनतम निगम कर’ को लागू किया जाएगा।
‘समकारी लेवी’ (Equalisation Levy):
यह विदेशी डिजिटल कंपनियों पर लगाया जाने वाला एक ‘कर’ है। यह कर वर्ष 2016 से लागू है।
- गूगल और अन्य विदेशी ऑनलाइन विज्ञापन सेवा प्रदाताओं पर ऑनलाइन विज्ञापनों हेतु प्रति वर्ष 1 लाख रुपये से अधिक के भुगतान पर 6% समकारी लेवी लागू है।
- वित्त अधिनियम, 2020 में संशोधन के पश्चात समकारी लेवी के दायरे का विस्तार किया गया है, अब इसे वस्तुओं की ऑनलाइन बिक्री तथा ऑनलाइन सेवा प्रदान करने वाली अनिवासी ई-कॉमर्स कंपनियों तक विस्तारित किया गया है।
- इन कंपनियों पर 2% की दर से समकारी लेवी वसूल की जायेगी तथा यह 1 अप्रैल, 2020 से प्रभावी है।
‘डिजिटल टैक्स योजना’ क्या है?
सरकार ने 2020-21 के वित्त विधेयक में, अमेज़ॅन और वॉलमार्ट के स्वामित्व वाली फ्लिपकार्ट जैसी विदेशी ई-कॉमर्स कंपनियों और ₹2 करोड़ या उससे अधिक का वार्षिक कारोबार करने वाली अन्य कंपनियों के कारोबार और सेवाओं पर 2% डिजिटल सेवा कर लगाया गया था।
G24: इसे 1971 में विकासशील देशों के ‘G77 समूह’ (Group of 77) के एक चैप्टर के रूप में मौद्रिक और विकासात्मक मुद्दों पर समन्वय के लिए स्थापित किया गया था।
निदान पोर्टल
संदर्भ: हाल ही में, ‘नशीले पदार्थों से संबंधित अपराधियों पर राष्ट्रीय एकीकृत डेटाबेस’ (National Integrated Database on Arrested narco-offender – NIDAAN) क्रियाशील हो गया है।
NIDAAN के बारे में:
- यह सभी गिरफ्तार नशीले पदार्थों से संबंधित अपराधियों के डेटा के लिए अपनी तरह का पहला डेटाबेस है।
- यह पोर्टल ‘नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो’ (एनसीबी) द्वारा विकसित किया गया है।
- पोर्टल अपना डेटा इंटर-ऑपरेबल क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम (ICJS), ई-जेल और CCTNS (जब एकीकृत हो) से प्राप्त करेगा। इससे पहले यह पोर्टल, NCORD पोर्टल (नारकोटिक्स कोऑर्डिनेशन मैकेनिज्म) का हिस्सा था।
विनबैक्स 2022
संदर्भ: वियतनाम-भारत द्विपक्षीय सैन्य अभ्यास विनबैक्स 2022 (exercise Vinbax 2022) चंडीमंदिर (हरियाणा) में संपन्न हुआ।
- यह अभ्यास01 अगस्त को शुरू हुआ था और संयुक्त राष्ट्र शांति अभियान में सेना के इंजीनियर और चिकित्सा टीमों की तैनाती पर केंद्रित था।
- उद्देश्य: इसका उद्देश्य भारतीय सेना और वियतनाम पीपुल्स आर्मी के बीच आपसी विश्वास, और अंतःक्रियाशीलता को मजबूत करना और सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करने में सक्षम बनाना है।
- पहली बार वियतनाम पीपुल्स आर्मी (वीपीए) का किसी विदेशी सेना के साथ फील्ड प्रशिक्षण अभ्यास था।