विषयसूची
सामान्य अध्ययन-I
- देव प्रतिमा की गलत पहचान
- 20 जनजातीय स्वतंत्रता सेनानियों की कथाओं पर आधारित तीसरी कॉमिक बुक जारी
सामान्य अध्ययन-II
- राज्य सभा में पारिवारिक न्यायालय (संशोधन) विधेयक, 2022 पारित
सामान्य अध्ययन-III
- ‘कर्मचारी पेंशन योजना’ में अधिशेष धनराशि होने की शिकायत
- ‘दुर्लभ मृदा धातुएँ’ और इनको आपूर्ति साझेदारी में शामिल करने पर जोर
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य
- ‘हसदेव अरण्य क्षेत्र’ में कोयला खनन का विरोध
- मुद्रास्फीति के कारण जीएसटी राजस्व में 8% की वृद्धि
- राष्ट्रमंडल खेलों में भारत के लिए ऊंची कूद में पहला पदक
- भारत की उपग्रह आधारित नेविगेशन प्रणाली, ‘नाविक’
सामान्य अध्ययन–I
विषय: भारतीय संस्कृति में प्राचीन काल से आधुनिक काल तक के कला के रूप, साहित्य और वास्तुकला के मुख्य पहलू शामिल होंगे।
देव प्रतिमा की गलत पहचान
नोट: प्रीलिम्स और मेंस परीक्षा दोनों के लिए बहुत महत्वपूर्ण विषय, यूपीएससी बौद्ध मंदिरों, बुद्ध के विभिन्न पदों, बौद्ध कला आदि के बारे में पूछ सकता है।
संदर्भ:
तमिलनाडु में ‘सलेम’ के समीप स्थित ‘थलाइवेटी मुनियप्पन मंदिर’ (Thalaivetti Muniyappan temple) में हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार एक स्थानीय देवता की पूजा की जाती है। हाल ही में, मद्रास उच्च न्यायालय ने मंदिर में स्थापित देव-प्रतिमा, जोकि वास्तव में एक ‘बुद्ध प्रतिमा’ है, को वापस उसके मूल स्वरूप में पुनर्स्थापित करने का आदेश दिया है।
- उच्च न्यायालय द्वारा यह आदेश वर्ष 2011 में ‘एस सथिया चंद्रन’ द्वारा दायर एक याचिका पर आधारित है। याचिका में अदालत से सलेम के समीप बसे ‘पेरियारी गांव’ के कोट्टई रोड पर स्थित ‘थलाइवेटी मुनियप्पन मंदिर’ का निरीक्षण करके इसकी “पहचान और पुरातनता” का पता लगाने तथा ‘बुद्ध ट्रस्ट’ के दर्जे को बहाल करने के लिए उचित कार्रवाई करने का अनुरोध किया गया था।
- अदालत के अनुसार- इस तरह की रिपोर्ट मिलने के बाद, हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती विभाग को इस प्रतिमा को ‘थलाइवेटी मुनियप्पन’ के रूप में बनाए रखने की अनुमति देना उचित नहीं होगा।
महत्वपूर्ण बिंदु:
- मौजूदा विन्यास की आधुनिक उत्पत्ति: अदालत के समक्ष प्रस्तुत एक ‘विशेषज्ञ समिति की निरीक्षण रिपोर्ट’ ने पुष्टि की है, कि हिंदू रीति-रिवाजों का पालन करने वाली मौजूदा मंदिर विन्यास / संरचना सीमेंट, ईंटों और कंक्रीट से निर्मित है और “आधुनिक उत्पत्ति” की है।
- विन्यास में ‘महा-लक्षणों’ का चित्रण: उपलब्ध पुरातात्विक और ऐतिहासिक साक्ष्यों के आधार पर, विशेषज्ञ समिति ने निष्कर्ष निकाला कि “यह प्रतिमा, बुद्ध के कई महालक्षणों को दर्शाती है।
- बौद्ध मूल की प्रतिमा: अदालत ने कहा कि “मंदिर में स्थापित मूर्ति ‘बुद्ध’ की है, यह सिद्ध हो जाने के बाद, मूर्ति की गलत पहचान (Mistaken Identity) को जारी रखने की अनुमति नहीं दी जा सकती है” और अदालत ने प्रतिमा की ‘मूल स्थिति’ को बहाल किए जाने का आदेश देते हुए कहा कि, “मंदिर की प्रतिमा को थलाइवेटी मुनियप्पन के रूप में माना जाना उचित नहीं होगा और यह बौद्ध धर्म के सिद्धांतों के खिलाफ होगा”।
मंदिर में स्थापित प्रतिमा की प्रमुख विशेषताएं:
- निरीक्षण रिपोर्ट (Inspection Report) के अनुसार, मंदिर में स्थापित प्रतिमा ‘कठोर पत्थर’ से निर्मित है।
- यह आकृति, कमल के आसन पर ‘अर्ध-पद्मासन’ के रूप में विराजमान स्थिति में है।
- हाथों को ‘ध्यान मुद्रा’ में रखा गया है।
- स्थापित मूर्ति ‘सगती’ (Sagati) है।
- प्रतिमा के सिर में ‘बुद्ध’ के लक्षण जैसे घुंघराले बाल, उष्निशा और लम्बी कान की लोबिया दिखाई देते हैं।
- माथे पर ‘उरना’ (Urna) दिखाई नहीं देता है।
- मूर्ति का सिर धड़ से अलग कर दिया गया था, जिसे कुछ साल पहले सीमेंट और चूने के मिश्रण से चिपका दिया गया था।
- हालांकि, मानवीय भूल या किसी अन्य कारण से, सिर धड़ से ठीक से नहीं जुड़ पाया और फलस्वरूप, मूर्ति का सिर, शरीर के बाईं ओर थोड़ा मुड़ा हुआ प्रतीत होता है।
- अर्ध-पद्मासन मुद्रा में बैठी हुई प्रतिमा की ऊंचाई 108 सेमी है।
- प्रतिमा का पिछला भाग बिना किसी कलात्मक कार्य के सपाट है।
इंस्टा लिंक्स:
अभ्यास प्रश्न:
गांधार कला में मध्य एशियाई और ग्रीको-बैक्ट्रियन तत्वों को उजागर कीजिए।(UPSC 2019)
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
विषय: 18वीं सदी के लगभग मध्य से लेकर वर्तमान समय तक का आधुनिक भारतीय इतिहास- महत्त्वपूर्ण घटनाएँ, व्यक्तित्व, विषय।
20 जनजातीय स्वतंत्रता सेनानियों की कथाओं पर आधारित तीसरी कॉमिक बुक जारी
नोट: आदिवासी विद्रोह प्रीलिम्स और मेंस दोनों के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं, स्थानों और संबंधित नेताओं आदि को याद करने का प्रयास करें।
संदर्भ:
- संस्कृति मंत्रालय द्वारा, हाल ही में, तिरंगा उत्सव समारोह के दौरान 20 जनजातीय स्वतंत्रता सेनानियों की कथाओं पर आधारित तीसरी कॉमिक बुक जारी की गयी।
- इस कथा संग्रह में उन बहादुर पुरुष एवं महिला स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान की कथाएं हैं, जिन्होंने ब्रिटिश राज के खिलाफ संघर्ष के लिए अपने जनजातीय साथियों को प्रेरणा दी और अपने जीवन का बलिदान किया।
गुमनाम आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी:
भारत के स्वाधीनता संग्राम के गुमनाम आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी, जिनकी कहानियां इस तीसरी कॉमिक बुक में शामिल की गई हैं वे हैं-
- तिलका मांझी, जिन्होंने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की ज्यादतियों के खिलाफ संघर्ष किया। वे पहाड़िय़ा जनजाति के सदस्य थे और उन्होंने अपने समुदाय को साथ लेकर कंपनी के कोषागार पर छापा मारा था। इसके लिए इन्हें फांसी की सजा दी गई।
- थलक्कल चंथू, कुरिचियार जनजाति के सदस्य थे और इन्होंने ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ पाजासी राजा के युद्ध में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। इन्हें फांसी दे दी गई।
- बुद्धु भगत, उरांग जनजाति के सदस्य थे। ब्रिटिश अधिकारियों के साथ हुई कई मुठभेड़ों में से एक में इन्हें, इनके भाई, सात बेटों और इनकी जनजाति के 150 लोगों के साथ गोली मार दी गई।
- खासी समुदाय के प्रमुख तीरत सिंह को अंग्रेजों की दोहरी नीति का पता लग गया था, इसलिए उन्होंने उनके खिलाफ संघर्ष छेड़ दिया। इन्हें पकड़ लिया गया, यातना दी गई और जेल में डाल दिया गया। जेल में ही इनकी मौत हो गई।
- राघोजी भांगरे, महादेव कोली जनजाति के थे। इन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह कर दिया और उनकी मां को कैद किए जाने के बावजूद उनका संघर्ष जारी रहा। इन्हें पकड़ लिया गया और फांसी दे दी गई।
- सिद्धू और कान्हू मुर्मू, संथाल जनजाति के सदस्य थे, जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह किया। इन्होंने हुल विद्रोह में संथाल लोगों का नेतृत्व किया। दोनों को धोखा देकर पकड़ लिया गया और फांसी दे दी गई।
- रेन्डो मांझी और चक्रा विसोई, खोंद जनजाति के थे। जिन्होंने अपनी जनजाति के रिवाजों में हस्तक्षेप करने पर ब्रिटिश अधिकारियों का विरोध किया। रेन्डो को पकड़ कर फांसी पर लटका दिया गया जबकि चक्रा विसोई भाग गया और कहीं छिपे रहने के दौरान उसकी मौत हो गई।
- मेरठ में शुरू हुए भारतीय विद्रोह में खारवाड़ जनजाति के भोगता समुदाय के नीलांबर और पीतांबर ने खुलकर भाग लिया और ब्रिटिश उत्पीड़न के खिलाफ आवाज उठाने में अपने लोगों का नेतृत्व किया। दोनों को पकड़ लिया गया और फांसी दे दी गई।
- गोंड जनजाति के रामजी गोंड ने उस सामंती व्यवस्था का विरोध किया, जिसमें धनी जमींदार अंग्रेजों के साथ मिलकर गरीबों को सताते थे। इन्हें भी पकड़ कर फांसी पर चढ़ा दिया गया।
- खरिया जनजाति के तेलंगा खरिया ने अंग्रेजों की कर व्यवस्था और शासन को स्वीकार करने से इनकार कर दिया और इस बात पर अड़े रहे कि उनकी जनजाति का स्वशासन का पारंपरिक तरीका जारी रखा जाए। उन्होंने अंग्रेजों के कोषागार पर संगठित हमले किए। उन्हें धोखे से पकड़ कर गोली मार दी गई।
- मध्य प्रांत के रोबिन हुड के नाम से मशहूर तांतिया भील ने अंग्रेजों की धन-संपत्ति ले जा रही ट्रेनों में डकैती डाली और उस संपत्ति को अपने समुदाय के लोगों के बीच बांट दिया। उन्हें भी जाल बिछाकर पकड़ा और फांसी पर चढ़ा दिया गया।
- मणिपुर के मेजर पाउना ब्रजवासी, अपनी मणिपुर की राजशाही को बचाने के लिए लड़े। वे अंग्रजों और मणिपुर के राजा के बीच हुए युद्ध के हीरो थे। वे एक सिंह की तरह लड़े लेकिन उन्हें पकड़ कर उनका सर धड़ से अलग कर दिया गया।
- मुंडा जनजाति के बिरसा मुंडा अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष के महानायक थे। उन्होंने अंग्रेजों के साथ कई संघर्षों में मुंडा लोगों का नेतृत्व किया। उन्हें पकड़ कर जेल में डाल दिया गया और ब्रिटिश रिकॉर्ड के अनुसार जेल में ही हैजा से उनकी मौत हो गई। जिस समय उनकी मौत हुई वह सिर्फ 25 साल के थे।
- अरुणाचल प्रदेश की ‘आदि जनजाति’ के मटमूर जमोह ब्रिटिश शासकों की अकड़ के खिलाफ लड़े। उनके गांव जला दिए गए जिसके बाद उन्होंने अपने साथियों के साथ अंग्रेजों के सामने हथियार डाल दिए। उन्हें सेलुलर जेल भेज दिया गया, जहां उनकी मौत हो गई।
- उरांव जनजाति के ताना भगत अपने लोगों को अंग्रेज सामंतों के अत्याचार के बारे में बताते थे और ऐसा माना जाता है कि उन्हें लोगों को उपदेश देने का संदेश उनके आराध्य से मिला था। उन्हें पकड़ कर भीषण यातनाएं दी गईं। यातनाओं से जर्जर ताना भगत को जेल से रिहा तो कर दिया गया, लेकिन बाद में उनकी मौत हो गई।
- चाय बागान में काम करने वाले समुदाय की ‘मालती मीम’ महात्मा गांधी के सत्याग्रह आंदोलन से प्रभावित होकर उसमें शामिल हो गईं। उन्होंने अफीम की खेती पर अंग्रेजों के आधिपत्य के खिलाफ संघर्ष किया और लोगों को अफीम के नशे के खतरों के बारे में जागरूक किया। पुलिस के साथ मुठभेड़ में गोली लगने से उनकी मौत हो गई।
- भूयां जनजाति के लक्ष्मण नायक भी गांधी जी से प्रेरित थे और उन्होंने स्वाधीनता आंदोलन में शामिल होने के लिए अपनी जनजाति के लोगों को काफी प्रेरित किया। अंग्रेजों ने उन्हें अपने ही एक मित्र की हत्या के आरोप में पकड़ कर फांसी की सजा दे दी।
- लेप्चा जनजाति की हेलन लेप्चा, महात्मा गांधी की जबरदस्त अनुयायी थीं। अपने लोगों पर उनके प्रभाव से अंग्रेज बहुत असहज रहते थे। उन्हें गोली मार कर घायल किया गया, कैद किया गया और प्रताड़ित किया गया लेकिन उन्होंने कभी साहस नहीं छोड़ा। 1941 में उन्होंने नेताजी सुभाष चंद्र बोस की उस समय जर्मनी भागने में मदद की जब वह घर में नजरबंद थे। उन्हें स्वाधीनता संघर्ष में अतुलनीय योगदान के लिए ‘ताम्र पत्र’ से पुरस्कृत किया गया।
- पुलिमाया देवी पोदार ने गांधीजी का भाषण तब सुना जब वह स्कूल में थीं। वे तुरंत स्वाधीनता संघर्ष में शामिल होना चाहती थीं। अपने परिवार के कड़े विरोध के बावजूद उन्होंने अपनी पढ़ाई समाप्त करने के बाद न सिर्फ खुद आंदोलन में हिस्सा लिया बल्कि अन्य महिलाओं को भी इसके लिए प्रोत्साहित किया। विरोध प्रदर्शनों में भाग लेने के कारण उन्हें कैद कर लिया गया। आजादी के बाद भी उन्होंने अपने लोगों की सेवा करना जारी रखा और उन्हें ‘स्वतंत्रता सेनानी’ की उपाधि दी गई।
इंस्टा लिंक्स:
अभ्यास प्रश्न:
1857 का विद्रोह ब्रिटिश शासन के पूर्ववर्ती सौ वर्षों में हुए बड़े और छोटे स्थानीय विद्रोहों की परिणति था। स्पष्ट कीजिए। (यूपीएससी 2019)
स्रोत: पीआईबी
सामान्य अध्ययन–II
विषय: संसद-संरचना, कामकाज और व्यवसाय का संचालन, परिवार न्यायालय अधिनियम आदि
राज्यसभा में पारिवार न्यायालय (संशोधन) विधेयक, 2022 पारित
नोट: यूपीएससी फैमिली कोर्ट में जज की नियुक्ति और फैमिली कोर्ट एक्ट आदि के प्रावधानों के बारे में पूछ सकता है।
संदर्भ:
- हाल ही में, राज्यसभा द्वारा ‘परिवार न्यायालय (संशोधन) विधेयक’ 2022 (Family Courts (Amendment) Bill 2022) को ध्वनि मत से पारित कर दिया गया।
- इस विधेयक में, हिमाचल प्रदेश और नागालैंड में स्थापित ‘पारिवार न्यायालयों’ को वैधानिक सुरक्षा प्रदान करने का प्रावधान किया गया है।
पृष्ठभूमि:
परिवार न्यायालय (संशोधन) विधेयक 2022 (Family Courts (Amendment) Bill 2022) द्वारा ‘परिवार न्यायालय अधिनियम, 1984’ में संशोधन किया गया है। यह अधिनियम, राज्यों द्वारा परिवार और विवाह से संबंधित विवादों से निपटने के लिए ‘फैमिली कोर्ट’ की स्थापना का प्रावधान करता है।
संशोधन की आवश्यकता: परिवार न्यायालय अधिनियम को लागू करने के लिए, केंद्र सरकार को इसे विभिन्न राज्यों के लिए अधिसूचित करना होता है। हालांकि, सरकार ने हिमाचल प्रदेश और नागालैंड के लिए पहले ऐसा नहीं किया था।
प्रमुख संशोधन:
- क़ानून की धारा 1 की उप-धारा 3: इस विधेयक में क़ानून की धारा 1 की उप-धारा 3 में हिमाचल प्रदेश और नागालैंड में में ‘पारिवार न्यायालयों’ की स्थापना के लिए एक प्रावधान शामिल किया गया है। ये प्रावधान, हिमाचल प्रदेश के लिए 15 फरवरी, 2019 से और नागालैंड के लिए 12 सितंबर, 2008 से प्रभावी होगा।
- धारा 3A: यह विधेयक, हिमाचल प्रदेश और नागालैंड की सरकारों और इन राज्यों की पारिवारिक अदालतों द्वारा किए गए अधिनियम के तहत सभी कार्यों को ‘पूर्वव्यापी रूप’ (Retrospectively) से मान्य करने के लिए एक नई ‘धारा 3A’ (Section 3A) को सम्मिलित करने का भी प्रयास करता है।
- पूर्वव्यापी प्रभाव: दोनों राज्यों में पारिवार न्यायालयों की स्थापना इन तिथियों से पूर्वव्यापी रूप से मान्य होगी।
- दोनों राज्यों में अधिनियम के तहत की गई सभी कार्रवाइयां, जिसमें न्यायाधीशों की नियुक्ति और ‘परिवार न्यायालयों’ द्वारा पारित आदेश और निर्णय भी शामिल हैं, को भी इन तारीखों से पूर्वव्यापी रूप से मान्य माना जाएगा।
फैमिली कोर्ट एक्ट 1984 के बारे में:
परिवार न्यायालयों की स्थापना: पारिवार न्यायालय अधिनियम, 1984 को पारिवारिक न्यायालयों (फैमिली कोर्ट) की स्थापना के लिये अधिनियमित किया गया था, ताकि सुलह को बढ़ावा दिया जा सके और विवाह तथा पारिवारिक मामलों एवं संबंधित विवादों का त्वरित निपटारा सुनिश्चित किया जा सके।
न्यायाधीशों की नियुक्ति: इन न्यायालयों में, न्यायाधीशों की नियुक्ति राज्य सरकार द्वारा उच्च न्यायालय की सहमति से की जाती है। राज्य सरकार, सामाजिक कल्याण एजेंसियों या सामाजिक कल्याण के क्षेत्र में काम करने वाले व्यक्तियों को मध्यस्थता और सुलह में मदद के लिए ‘फैमिली कोर्ट’ से जोड़ने का प्रावधान कर सकती है।
समाज कल्याण एजेंसियों का संघ:
राज्य सरकार निम्नलिखित संस्थाओं या व्यक्तियों को ‘परिवार न्यायालय’ में शामिल कर सकती है:
- समाज कल्याण में लगे संस्थान या संगठन।
- परिवार के कल्याण को बढ़ावा देने में पेशेवर रूप से संलग्न व्यक्ति।
- समाज कल्याण के क्षेत्र में कार्य करने वाले व्यक्ति।
अभ्यास प्रश्न:
केंद्र सरकार के कर्मचारियों द्वारा या उनके खिलाफ शिकायतों और शिकायतों के निवारण के लिए स्थापित ‘केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण’ वर्तमान में एक ‘स्वतंत्र न्यायिक अधिकरण’ के रूप में अपनी शक्तियों का प्रयोग कर रहा है। चर्चा कीजिए। (यूपीएससी 2019)
स्रोत: द स्टेट्समैन, द हिंदू
सामान्य अध्ययन–III
विषय: भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधनों को जुटाने, प्रगति, विकास तथा रोज़गार से संबंधित विषय।
‘कर्मचारी पेंशन योजना’ में अधिशेष धनराशि होने की शिकायत
संदर्भ:
हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट में ‘कर्मचारियों और पेंशनभोगियों’ द्वारा वर्ष 1995 से लागू ‘कर्मचारी पेंशन योजना’ (Employees Pension Scheme – EPS) में लागू किए गए “पेंशन योग्य वेतन के निर्धारण” पर विवादास्पद संशोधनों की कड़ी आलोचना की गयी।
योजना में अधिशेष धन:
‘कर्मचारी पेंशन योजना’ में अधिशेष धनराशि मौजूद है। ‘कर्मचारियों और पेंशनभोगियों’ के वकील ने अदालत में कहा, कि ‘सरकार’ और ‘कर्मचारी भविष्य निधि संगठन’ (EPFO) अभिदाताओं (सब्सक्राइबर्स) को मासिक पेंशन के रूप में जो ब्याज दे रहे हैं, उससे अधिक ब्याज के रूप में कमा रहे हैं।
‘कर्मचारी पेंशन योजना-1995’ का अनुच्छेद 11(3): संबंधित विवाद EPS–1995 के अनुच्छेद 11(3) में किए गए विवादास्पद संशोधनों से जुड़ा हुआ है।
- केरल उच्च न्यायालय द्वारा इन संशोधनों को रद्द कर दिया था, जिसके बाद EPFO ने इस फैसले के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में अपील की थी।
- ‘कर्मचारी पेंशन योजना’ (EPS) में, मूल रूप से कर्मचारी के EPS से बाहर निकलने की तारीख से पहले 12 महीने के औसत वेतन को ‘पेंशन योग्य वेतन’ माना गया था।
- नए संशोधनों के तहत, औसत वेतन की गणना की अवधि को 12 महीने से बढ़ाकर 60 महीने कर दिया गया है।
1.16% का अतिरिक्त योगदान: नए संशोधनों के तहत, जिन कर्मचारियों का वेतन 15,000 की सीमा से अधिक था, उनके लिए एक अतिरिक्त दायित्व सौंपा गया। जिसके बाद इन कर्मचारियों को अपने ‘कर्मचारी भविष्य निधि’ योगदान के अलावा अपने वेतन का 1.16% अतिरिक्त योगदान करना पड़ा।
1.16% अतिरिक्त योगदान, कर्मचारी भविष्य निधि अधिनियम के प्रावधानों के विपरीत है।
‘कर्मचारी पेंशन योजना’ के बारे में:
यह एक ‘सामाजिक सुरक्षा योजना’ है, जिसे 1995 में शुरू किया गया था।
- EPFO द्वारा शुरू की गई यह योजना में, 58 वर्ष की आयु में सेवानिवृत्ति के बाद संगठित क्षेत्र के कर्मचारियों के लिए पेंशन का प्रावधान किया गया है।
- जो कर्मचारी, ‘कर्मचारी भविष्य निधि’ (EPF) के सदस्य हैं वे स्वतः ही ‘कर्मचारी पेंशन योजना’ (EPS) के सदस्य बन जाते हैं।
- इस योजना के तहत, नियोक्ता और कर्मचारी दोनों, कर्मचारी के मासिक वेतन (मूल वेतन प्लस महंगाई भत्ता) का 12% ‘कर्मचारी भविष्य निधि’ (EPF) योजना में योगदान करते हैं।
- जो कर्मचारियों 15,000 प्रति माह या इससे अधिक मूल वेतन प्राप्त करते हैं, उनके लिए ‘कर्मचारी भविष्य निधि’ योजना अनिवार्य है।
- नियोक्ता के 12% हिस्से में से 8.33 प्रतिशत EPS में डायवर्ट कर दिया जाता है।
- EPS में केंद्र सरकार द्वारा भी कर्मचारियों के मासिक वेतन का 1.16% भी योगदान किया जाता है।
इंस्टा लिंक्स:
अभ्यास प्रश्न:
नीति प्रक्रिया के सभी चरणों में जागरूकता और सक्रिय भागीदारी के अभाव में कमजोर वर्गों के लिए लागू की गई कल्याणकारी योजनाओं का प्रदर्शन इतना प्रभावी नहीं है। चर्चा कीजिए। (यूपीएससी 2019)
स्रोत: द हिंदू
विषय: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में भारतीयों की उपलब्धियाँ; देशज रूप से प्रौद्योगिकी का विकास और नई प्रौद्योगिकी का विकास।
‘दुर्लभ मृदा धातुएँ‘ और इनको आपूर्ति साझेदारी में शामिल करने पर जोर
संदर्भ:
वैश्विक ‘चाइना-प्लस-वन’ रणनीति के हिस्से के रूप में, पश्चिमी देशों का एक समूह ‘प्रमुख औद्योगिक आपूर्तियों’ को सुनिश्चित करने के लिए चीन का विकल्प विकसित करने में सहयोग कर रहा है। इस रणनीति को कोविड -19 महामारी के कारण होने वाले बड़े पैमाने पर आपूर्ति-श्रृंखला में व्यवधान के बाद अपनाया गया था।
- अमेरिका के नेतृत्व में 11 देशों की इस नई साझेदारी पहल का उद्देश्य महत्वपूर्ण खनिज आपूर्ति श्रृंखलाओं को मजबूत करना है।
- भारत, अभी इस ‘मिनरल्स सिक्योरिटी पार्टनरशिप’ (MSP) व्यवस्था का हिस्सा नहीं है, लेकिन इसमें शामिल होने के लिए राजनयिक चैनलों के माध्यम से काम कर रहा है।
खनिज सुरक्षा भागीदारी (MSP):
- अमेरिका और अन्य 10 देशों – ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, फिनलैंड, फ्रांस, जर्मनी, जापान, कोरिया गणराज्य (दक्षिण कोरिया), स्वीडन, यूनाइटेड किंगडम और यूरोपीय आयोग – द्वारा ‘खनिज सुरक्षा भागीदारी’ (Minerals Security Partnership – MSP) की शुरुआत की गयी है।
- सरकारों और निजी क्षेत्र से निवेश को उत्प्रेरित करना: इस नए समूह का उद्देश्य रणनीतिक अवसरों को विकसित करने के लिए सरकारों और निजी क्षेत्र से निवेश को उत्प्रेरित करना है।
- खनिजों की आपूर्ति श्रृंखलाओं पर मुख्य फोकस: उद्योग के अंदरूनी सूत्रों के अनुसार, नया समूह कोबाल्ट, निकेल, लिथियम जैसे खनिजों की आपूर्ति श्रृंखला और 17 ‘दुर्लभ मृदा खनिजों’ पर भी ध्यान केंद्रित कर सकता है।
दुर्लभ मृदा तत्व:
‘दुर्लभ मृदा तत्त्व’ (Rare Earth Element -REE) पृथ्वी की ऊपरी सतह (Crust) में पाए जाने वाले 17 दुर्लभ मृदा धातुओं का समूह है। ये तत्व आवर्त सारणी में 15 लैंथेनाइड (Z-57 से71) और स्कैंडियम (Scandium) -(परमाणु संख्या 21) तथा येट्रबियम (Ytterbium)- (परमाणु संख्या 39) के नाम से जाने जाते हैं।
- ‘दुर्लभ मृदा तत्त्वों’ (REE) को ‘हल्के दुर्लभ मृदा तत्वों’ (light RE elements – LREE) और ‘भारी दुर्लभ मृदा तत्वों’ (Heavy RE elements – HREE) के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
- भारत में लैंथेनम, सेरियम, नियोडिमियम, प्रेजोडिमियम और समैरियम, आदि जैसे कुछ ‘दुर्लभ मृदा तत्त्व’ (REE) पाए जाते हैं। ‘भारी दुर्लभ मृदा तत्वों’ (HREE) के रूप में वर्गीकृत डिस्प्रोसियम, टेरबियम और यूरोपियम जैसे अन्य तत्वों की खनन करने योग्य मात्रा भारतीय निक्षेपों में उपलब्ध नहीं हैं।
- इसलिए, HREE के लिए चीन जैसे देशों पर निर्भर रहना पड़ता है, जोकि वैश्विक उत्पादन के अनुमानित 70 प्रतिशत हिस्से सहित ‘दुर्लभ मृदा तत्त्वों’ के प्रमुख उत्पादकों में से एक है।
इन खनिजों का महत्व:
- इलेक्ट्रिक वाहन: इलेक्ट्रिक वाहनों में प्रयुक्त बैटरियों के लिए कोबाल्ट, निकेल और लिथियम जैसे खनिजों की आवश्यकता होती है।
- उपभोक्ता उत्पाद: ‘दुर्लभ मृदा तत्त्व’ 200 से अधिक उपभोक्ता उत्पादों में एक आवश्यक – हालांकि प्रायः छोटे – घटक होते हैं, जिसमें मोबाइल फोन, कंप्यूटर हार्ड ड्राइव, इलेक्ट्रिक और हाइब्रिड वाहन, सेमीकंडक्टर्स, फ्लैटस्क्रीन टीवी और मॉनिटर और हाई-एंड इलेक्ट्रॉनिक्स शामिल हैं।
- स्वच्छ ऊर्जा की ओर भारत का बदलाव: ऐसे समय में जब ‘इलेक्ट्रिक वाहनों’ के क्षेत्र के परिपक्व होने की भविष्यवाणी की जा रही है, भारत को ‘लिथियम मूल्य श्रृंखला’ में प्रवेश करने के प्रयासों में देर से आने वाले के रूप में देखा जाता है।
- योजना के अनुसार 2030 तक देश के 80 प्रतिशत दोपहिया और तिपहिया वाहन तथा 40 प्रतिशत बसें और 30 से 70 प्रतिशत कारें ‘इलेक्ट्रिक वाहन’ (EVs) होंगी।
वर्तमान में भारत की प्रमुख चिंता:
- चीन पर निर्भरता: यदि भारत इन खनिजों का पता लगाने और उत्पादन करने में सक्षम नहीं है, तो उसे इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए अपनी ऊर्जा संक्रमण योजनाओं को संचालित करने के लिए चीन सहित कुछ मुट्ठी भर देशों पर निर्भर रहना होगा।
- विशेषज्ञता की कमी: उद्योग पर नजर रखने वालों का कहना है कि भारत को ‘खनिज सुरक्षा भागीदारी’ (MSP) समूह में जगह नहीं मिलने का कारण यह है कि देश, इस क्षेत्र में कोई विशेषज्ञता पेश नहीं करता है।
- भंडार और प्रौद्योगिकी: इस समूह में, ऑस्ट्रेलिया और कनाडा जैसे देशों के पास ‘दुर्लभ मृदा तत्वों’ के भंडार हैं और उन्हें निकालने की तकनीक भी है, और जापान जैसे देशों के पास इन तत्वों को संसाधित करने की तकनीक है।
अभ्यास प्रश्न:
अमेरिका, वर्तमान में चीन के रूप में एक अस्तित्व-संबंधी खतरे का सामना कर रहा है, जो कि तत्कालीन सोवियत संघ की तुलना में कहीं अधिक चुनौतीपूर्ण है। समझाएं (यूपीएससी 2021)
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य
‘हसदेव अरण्य क्षेत्र’ में कोयला खनन का विरोध
संदर्भ: ‘हसदेव अरण्य वनों’ (Hasdeo Aranya forests) को छत्तीसगढ़ का फेफड़ा कहा जाता है।
- पिछले एक साल में, इस क्षेत्र में खनन के खिलाफ कई बार विरोध प्रदर्शन हुए हैं और कुछ प्रदर्शनकारी अभी भी खनन को पूर्ण रूप से रोकने की मांग को लेकर धरना दे रहे हैं।
- इसी बीच, 26 जुलाई को छत्तीसगढ़ विधानसभा ने सर्वसम्मति से एक ‘निजी सदस्य प्रस्ताव’ पारित कर केंद्र से ‘पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र’ में सभी कोयला खनन ब्लॉकों के आवंटन को रद्द करने का आग्रह किया।
हसदेव-अरण्य क्षेत्र का महत्व:
- हसदेव अरण्य (अरण्य का अर्थ है जंगल), हसदेव नदी के जलग्रहण क्षेत्र में स्थित है और उत्तर-मध्य छत्तीसगढ़ में 1,878 वर्ग किमी में फैला हुआ है।
- हसदेव नदी, महानदी की एक सहायक नदी है जो छत्तीसगढ़ से निकलती है और ओडिशा से होकर बंगाल की खाड़ी में गिरती है।
- हसदेव वन, हसदेव नदी पर निर्मित ‘हसदेव बांगो बांध’ (Hasdeo Bango Dam) के लिए जलग्रहण क्षेत्र भी हैं। इस बाँध से राज्य छह लाख एकड़ भूमि की सिंचाई होती है, जो कि धान की मुख्य फसल के रूप में एक राज्य के लिए काफी महत्वपूर्ण है।
- इसके अलावा, हसदेव वन अपनी समृद्ध जैव विविधता और हाथियों के लिए एक बड़े प्रवासी गलियारे की उपस्थिति के कारण पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील हैं।
मुद्रास्फीति के कारण जीएसटी राजस्व में 8% की वृद्धि
एसबीआई की एक अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार, ‘वस्तु एवं सेवा कर’ (जीएसटी) राजस्व में वर्तमान वृद्धि का लगभग 8% का कारण उच्च मुद्रास्फीति है, और इस वर्ष अब तक मुद्रास्फीति-समायोजित जीएसटी संग्रह, पूर्व-कोविड स्तरों की तुलना में 26% अधिक है।
- एसबीआई ने अपने अध्ययन में- इस वर्ष के लिए अपने चालू खाता घाटे के लक्ष्य को बढ़ाकर सकल घरेलू उत्पाद का 3.7% कर दिया है, जिससे 2022-23 में व्यापार घाटा. सकल घरेलू उत्पाद के 8.5% तक बढ़ने का अनुमान है।
- बैंक के अध्ययनकर्ताओं ने जून की तुलना में जुलाई में भारत के व्यापार घाटे में संपूर्ण विस्तार के लिए, पेट्रोलियम उत्पादों पर अप्रत्याशित करों जैसे मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के सरकारी उपायों के कारण निर्यात में गिरावट, को जिम्मेदार ठहराया है।
- जीएसटी संग्रह ने लगातार पांच महीनों के लिए ₹4 लाख करोड़ से अधिक की कमाई की है, जुलाई में अप्रत्यक्ष कर व्यवस्था की शुरूआत के बाद से ‘दूसरा सबसे अधिक राजस्व’ (लगभग ₹1.49 लाख करोड़) संग्रह किया गया है, जोकि एक साल पहले की तुलना में 28% अधिक है।
- पूर्व-महामारी स्तर से मुद्रास्फीति समायोजित जीएसटी में ₹95,000 करोड़ पर 26% की वृद्धि हुई है।
व्यापार घाटा (Trade Deficit):
- शोधकर्ताओं ने, जून में 26.2 अरब डॉलर के ‘पिछले उच्च स्तर’ की तुलना में, जुलाई में 31 अरब डॉलर के रिकॉर्ड वस्तु व्यापार घाटा (goods trade deficit) साथ, सकल घरेलू उत्पाद के 8.5% पर पूरे साल के घाटे तथा पूरे वर्ष के लिए घाटे को 100 अरब डॉलर से अधिक होने का अनुमान लगाया है।
- दिलचस्प बात यह है, कि यह घाटा, 2012-13 में हासिल किए गए सकल घरेलू उत्पाद के 10.7 फीसदी के उच्चतम घाटे से काफी कम है। इस प्रकार, वर्तमान स्थिति 2012-13 की तुलना में काफी बेहतर है।
राष्ट्रमंडल खेलों में भारत के लिए ऊंची कूद में पहला पदक
संदर्भ: तेजस्विन शंकर ने अपने पहले प्रयास में 2.22 मीटर की ऊंचाई तय करने के बाद ऊंची कूद में कांस्य पदक जीता है।
तेजस्विन शंकर का ऊंची कूद में कांस्य पदक, 2022 के राष्ट्रमंडल खेलों में ‘ट्रैक और फील्ड’ में भारत का पहला पदक है।
राष्ट्रमंडल खेल:
- राष्ट्रमंडल खेल (Commonwealth Games), कामनवेल्थ के सदस्य-देशों का एक संगठन है, जो सरकार से कोई धन प्राप्त नहीं करता है और राष्ट्रमंडल खेलों के अधिकारियों के साथ-साथ खेल आयोजनों और एथलीटों की भागीदारी के प्रशासन, नियंत्रण और समन्वय करता है।
- 2022 राष्ट्रमंडल खेलों को आधिकारिक तौर पर ‘XXII राष्ट्रमंडल खेलों’ के रूप में जाना जाता है और आमतौर पर ‘बर्मिंघम 2022’ भी कहा जाता है।
- 1881 में, ‘एस्टली कूपर’ द्वारा एक खेल आयोजन में कई खेलों के आयोजन का एक नया विचार पेश किया गया था। ‘कॉमनवेल्थ गेम्स’ को ‘फ्रेंडली गेम्स’ के नाम से भी जाना जाता है।
- राष्ट्रमंडल खेल, एक चतुर्वर्षीय आयोजन हैं, अर्थात इन खेलों का आयोजन चार साल में एक बार किया जाता है।
- राष्ट्रमंडल खेलों के लिए भेजी गयी भारतीय टीम में 322 सदस्य हैं जिसमें टीम के 72 अधिकारी, 26 अतिरिक्त अधिकारी, नौ दल के कर्मचारी और तीन महाप्रबंधक शामिल हैं।
भारत की उपग्रह आधारित नेविगेशन प्रणाली, ‘नाविक’ (NavIC)
संदर्भ: सरकार का कहना है, भारत की उपग्रह आधारित नेविगेशन प्रणाली, NavIC, अपने सेवा क्षेत्र में ‘अवस्थिति सटीकता’ और ‘उपलब्धता’ के मामले में संयुक्त राज्य अमेरिका के जीपीएस के बराबर अच्छा है।
नाविक (NAVIC) क्या है?
नाविक- नैविगेशन विद इंडियन कौन्स्टेलेशन (NAVigation with Indian Constellation- NavIC), एक स्वतंत्र क्षेत्रीय नेविगेशन उपग्रह प्रणाली है, जिसे भारतीय क्षेत्र तथा भारतीय मुख्य भूमि के आसपास 1500 किमी की दूरी में अवस्थिति-जानकारी प्रदान करने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
नाविक (NAVIC) प्रणाली में कितने उपग्रह शामिल हैं?
यह प्रणाली IRNSS के आठ उपग्रहों से संचालित होती है, इनमे से एक उपग्रह संदेश सेवायें प्रदान करता है।
- इनमें से तीन उपग्रह हिंद महासागर के ऊपर भू-स्थिर(Geostationary) कक्षा में स्थित होंगे, अर्थात, ये उपग्रह इस क्षेत्र के ऊपर आसमान में स्थिर दिखाई देंगे, और चार उपग्रह भू-तुल्यकालिक (geosynchronous) कक्षा में स्थित होंगे तथा प्रतिदिन आकाश में एक ही समय पर एक ही बिंदु पर दिखाई देंगे।
- उपग्रहों का यह विन्यास, यह सुनिश्चित करता है, कि प्रत्येक उपग्रह, पृथ्वी पर स्थापित चौदह स्टेशनों में से कम से कम किसी एक स्टेशन के द्वारा ट्रैक होता रहे तथा भारत में किसी भी बिंदु से अधिकांश उपग्रहों को देखे जाने की उच्च संभावना बनी रहे।
इसके निम्नलिखित अनुप्रयोग हैं:
- स्थलीय, हवाई और समुद्री नेविगेशन।
- आपदा प्रबंधन।
- वाहन ट्रैकिंग और बेड़ों का प्रबंधन (fleet management)
- मोबाइल फोनों के साथ समेकन।
- सटीक समय-मापन।
- मानचित्रण एवं भूगणितीय आंकड़े हासिल करने हेतु।
- पैदल यात्रियों और अन्य यात्रियों के लिए स्थलीय नेविगेशन सहायता।
- ड्राइवरों के लिए दृश्यिक और आवाज द्वारा नेविगेशन।