Print Friendly, PDF & Email

[Mission 2022] INSIGHTS करेंट अफेयर्स+ पीआईबी नोट्स [ DAILY CURRENT AFFAIRS + PIB Summary in HINDI ] 01 August 2022

विषयसूची

सामान्य अध्ययन-II

  1. युवा भारत के मानसिक स्वास्थ्य पर सोशल मीडिया का प्रभाव

सामान्य अध्ययन-III

  1. नए ई-कचरे संबंधी नियमों से नौकरियों पर खतरा

 

प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य

  1. गोवा में समान नागरिक संहिता
  2. चुनावी बांड
  3. भारत द्वारा विश्व व्यापार संगठन से ‘गेहूं को छूट’ देने की मांग
  4. गुजरात सेमीकंडक्टर नीति 2022-27
  5. अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा
  6. गूगल मानचित्र द्वारा “सड़क दृश्य सेवा”
  7. नशीली दवाओं के खिलाफ युद्ध
  8. अल नजाह और विनबैक्स 2022: सैन्य अभ्यास

 


सामान्य अध्ययनII


 

विषय: स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय।

युवा भारत के मानसिक स्वास्थ्य पर सोशल मीडिया का प्रभाव

संदर्भ: सोशल मीडिया पर बढ़ती निर्भरता बहुत चिंताजनक है क्योंकि इसके निरंतर उपयोग से कई समस्याएं, जैसे जोखिम भरी सामग्री के संपर्क में आना, व्यवहार के पैटर्न में बदलाव, हीन भावना, साइबर-धमकी आदि सामने आती हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा ‘मानसिक स्वास्थ्य’ को ‘अच्छी सेहत’ की स्थिति के रूप में परिभाषित किया गया है, जिसमे एक व्यक्ति अपनी क्षमताओं का एहसास करता है, जीवन के सामान्य तनावों का सामना कर सकता है, उत्पादक रूप से काम कर सकता है, और अपने समुदाय में योगदान करने में सक्षम होता है।

‘मानसिक स्वास्थ्य’ से संबंधित कई समस्याएं हो सकती हैं, जिन पर प्रकाश डाला जा सकता है, लेकिन उनमें से निम्नलिखित समस्याएं सबसे महत्वपूर्ण हैं:

  1. अवसाद:

यूनिसेफ के अनुसार, 15 से 24 वर्ष की आयु के 7 में से 1 भारतीय अवसादग्रस्त महसूस करता है। अवसाद (Depression) आत्म-सम्मान की कमी, खराब एकाग्रता और अन्य दुर्भावनापूर्ण लक्षणों से जुड़ा होता है, और यह संचार/बोलचाल में कठिनाइयों, काम करने में विफलता या उत्पादक रूप से अध्ययन करने, मादक द्रव्यों के सेवन और दुरुपयोग के जोखिम के साथ-साथ आत्मघाती विचारों को जन्म दे सकता है।

अवसाद के इस व्यापक स्तर पर प्रसार के लिए प्रमुख जोखिम कारकों में से एक ‘सोशल मीडिया’ है।

  1. इंटरनेट व्यक्तित्व:

बॉडी डिस्मॉर्फिया (Body dysmorphia)- आधुनिक समय में हर कोई खूबसूरत दिखना चाहता है। नाना प्रकार के ब्यूटी प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल करते हैं। इसके बावजूद कुछ लोग मन मुताबिक खूबसूरत नहीं दिख पाते हैं। इससे उनके मन में कुंठा पैदा होने लगती है जो विकार में तब्दील हो जाता है। इस विकार को बॉडी डिस्मॉर्फिक डिसऑर्डर कहते हैं। इस विकार में व्यक्ति हर समय शरीर के केवल उस अंग या दोष के बारे में सोचता है जो उसके मन मुताबिक नहीं है।

यह युवा लोगों में आम है और पिछले कुछ वर्षों में इसमें वृद्धि हुई है।

  1. समाजीकरण का अभाव:

सोशल मीडिया के अत्यधिक इस्तेमाल से अन्य काम, जो आपके मानसिक स्वास्थ्य को लाभ पहुंचा सकते हैं जैसे व्यक्तिगत रूप से दूसरों के साथ जुड़ना, प्रकृति में समय बिताना और अपना ख्याल रखना आदि को करने के लिए समय नहीं बचता है।

सुझाव/समाधान:

  • हमें मानसिक स्वास्थ्य पर गंभीरता से कार्रवाई करनी चाहिए और मानसिक विकारों (जैसे, अवसाद, चिंता) की घटनाओं की निगरानी करनी चाहिए और जोखिम और लचीलापन के कारकों की पहचान करनी चाहिए।
  • हमारे देश में विविध युवा जनसांख्यिकीय का एक अलग स्थितिजन्य मूल्यांकन करने की आवश्यकता है। इस तरह के आकलन में वर्ग, लिंग और अन्य सामाजिक कारकों से जुड़े मतभेदों को ध्यान में रखना चाहिए।
  • शारीरिक व्यायाम और ध्यान के साथ पारिवार, स्कूलों और पेशेवर स्थानों में समाजीकरण पर ध्यान देने की आवश्यकता है। आइए हम खुद को प्रकृति और प्राकृतिक चीजों के करीब लाएं।
  • जागरूकता और संवाद पैदा करने की आवश्यकता है जो इस मुद्दे को कलंक-मुक्त करने में मदद करेगा, ताकि व्यक्ति को एक सुरक्षित स्थान पर भावनाओं को साझा करने के लिए स्वायत्तता की अनुमति मिल सके।
  • अनुभवजन्य साक्ष्य, दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति, सामाजिक समावेश, मानसिक स्वास्थ्य साक्षरता, जीवंत मीडिया और एक उत्तरदायी कॉर्पोरेट क्षेत्र के साथ-साथ नवीन तकनीकों और क्राउडसोर्सिंग पर आधारित व्यावहारिक सरकारी नीतियां इस उदासीनता को कम कर सकती हैं।

सरकारी पहलें:

  • संवैधानिक प्रावधान: स्वास्थ्य का अधिकार (मानसिक स्वास्थ्य देखभाल सहित) संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत एक मौलिक अधिकार है।
  • राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (NMHP): मानसिक विकारों के भारी बोझ और योग्य पेशेवरों की कमी को दूर करने के लिए।
  • मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम 2017: यह अधिनियम, प्रत्येक प्रभावित व्यक्ति को मानसिक स्वास्थ्य देखभाल और सरकार द्वारा संचालित या वित्त पोषित सेवाओं से उपचार की गारंटी देता है।
  • किरण हेल्पलाइन: सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय (2020) ने 24/7 टोल-फ्री हेल्पलाइन शुरू की है।

इंस्टा लिंक:

एक मजबूत मानसिक स्वास्थ्य रणनीति की ओर

मेंस लिंक:

मानसिक स्वास्थ्य भारत में सबसे अधिक उपेक्षित सामाजिक मुद्दों में से एक है। टिप्पणी कीजिए। (10 अंक)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

 


सामान्य अध्ययनIII


 

विषय: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन।

नए ई-कचरे संबंधी नियमों से नौकरियों पर खतरा

संदर्भ: सरकार ने भारत में ‘ई-अपशिष्ट’ / ‘ई-कचरे’ (e-waste) को विनियमित करने के लिए एक नए ढांचे का प्रस्ताव किया है, जो अनौपचारिक क्षेत्रों के लिए परेशानी का कारण बन सकता है।

(नोट: यह नियम अभी विकास-क्रम चरण में हैं, इन्हें बस केवल एक बार पढ़ लें। ‘ई-कचरे’ पर एक पेज का नोट संभाल कर रखें।)

‘ई-अपशिष्ट’ (e-waste):

‘ई-अपशिष्ट’ या ‘ई-कचरा’ का तात्पर्य ‘इलेक्ट्रॉनिक और विद्युत उपकरणों’ (electronic and electrical equipment – EEE) और उनके भागों की सभी वस्तुओं से है जिन्हें उनके मालिक द्वारा पुन: उपयोग के इरादे के बगैर ‘कचरे’ के रूप में त्याग दिया जाता है। ग्लोबल ई-वेस्ट मॉनिटर 2020 के अनुसार- चीन और अमेरिका के बाद भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा ई-कचरा उत्पादक देश है।

भारत में ई-कचरे की स्थिति:

  • दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ने वाले अपशिष्ट स्रोतों में से एक है।
  • भारत में 95% ई-कचरा, अनौपचारिक क्षेत्र द्वारा पुनर्चक्रित किया जाता है।

संबंधित प्रकरण:

ई-अपशिष्ट प्रबंधन नियम 2016 (E-Waste Management Rules 2016) के तहत,प्रत्येक  व्यवसायिक ईकाई के लिए ‘ई-कचरे के पुनर्चक्रण’ की ‘विस्तारित उत्पादक जिम्मेदारी’ (Extended producer responsibility – EPR) का पालन करना अनिवार्य है। इसका अनुपालन करते हुए, अधिकांश फर्मों द्वारा ‘पुनर्चक्रण’ के लिए ‘उत्पादक उत्तरदायित्व संगठन’ (Producer Responsibility Organization – PRO) नामक संगठनों की सेवाएं (आउटसोर्स) ली गयी। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) द्वारा अभी तक 74 ‘उत्पादक उत्तरदायित्व संगठन’ (PRO) पंजीकृत किए  गए हैं।

  • इस साल मई में, पर्यावरण मंत्रालय ने एक मसौदा अधिसूचना जारी की जिसमे सभी PRO और भंजकों (Dismantlers) को हटा दिया गया और पुनर्चक्रण (Recycling) की सारी जिम्मेवारी ‘अधिकृत पुनर्चक्रण-कर्ताओं’ (Authorized Recyclers) को सौंप दी गयी। जबकि भारत में अभी केवल गिने-चुने ‘अधिकृत पुनर्चक्रण-कर्ता’ ही मौजूद हैं।
  • अब, ‘अधिकृत पुनर्चक्रणकर्ता’ कचरे की एक मात्रा को एकत्रित करेंगे, उसे पुनर्चक्रित करेंगे और ‘इलेक्ट्रॉनिक प्रमाण पत्र’ तैयार करेंगे। कंपनियां इन प्रमाणपत्रों को अपने ‘वार्षिक प्रतिबद्ध लक्ष्य’ के बराबर खरीद सकती हैं और इस प्रकार उन्हें PRO और विघटनकर्ताओं (भंजकों) को नियोजित करने की आवश्यकता नहीं रहेगी।

इसके लाभ:

  • प्रणाली को सुव्यवस्थित और मानकीकृत करना।
  • एक इलेक्ट्रॉनिक प्रबंधन प्रणाली लागू की जाएगी, जो ‘रीसाइक्लिंग’ के लिए भेजी गई सामग्री को ट्रैक करेगी।
  • पुनर्चक्रण को लाभकारी बनाया जाएगा: वर्तमान में, पूरी प्रणाली, जो वास्तव में पुनर्चक्रण का काम करते हैं, उनके लिए लाभकारी नहीं है ।
  • विश्वसनीयता में वृद्धि: PRO द्वारा प्रबंधित वर्तमान प्रणाली हमेशा विश्वसनीय नहीं होती है क्योंकि ‘डबल-काउंटिंग’ के कई उदाहरण देखने को मिलते हैं, जहाँ एक ही कंपनी के लिए एक बार पुनर्नवीनीकरण किए गए समान, कई कंपनियों के खाते में दर्ज कर दिए जाते हैं।

सरकार के इस कदम के खिलाफ आपत्तियां:

  • नौकरी छूटना: कई जनसंपर्क अधिकारियों ने पर्यावरण मंत्रालय को अपनी आपत्तियां भेजी हैं, जिसमें तर्क दिया गया है कि भारत में ई-कचरा प्रबंधन के भविष्य और नौकरी के नुकसान को देखते हुए एक अनुभवहीन प्रणाली को खत्म करना हानिकारक है।
  • स्थापित PRO में किए गए निवेश की हानि होगी।
  • जवाबदेही का नुकसान: PRO अनधिकृत पुनर्चक्रण के खिलाफ ‘चेक और बैलेंस’ (संतुलन) प्रदान करते हैं।

निष्कर्ष:

हाल के सरकारी आंकड़ों से पता चलता है कि देश में ई-कचरा पुनर्चक्रण 2017-18 में 10% की दर से दोगुना होकर 2018-19 में बढ़कर 20% हो गया है। इसके लिए, एक मजबूत बाजार-आधारित प्रोत्साहन की आवश्यकता है जो ई-कचरे के पुनर्चक्रण को स्वेच्छा से अपनाने के लिए मांग और आपूर्ति-पक्ष दोनों कारकों को प्रोत्साहित करे।

इस संबंध में, भोपाल में ‘ई-कचरा क्लिनिक’ एक पायलट परियोजना शुरू की गयी है जिसमें ई-कचरा घर-घर एकत्र किया जाएगा या शुल्क के बदले सीधे क्लिनिक में जमा किया जा सकता है। इस परियोजना का अध्ययन इसकी सफलता के लिए किया जाना चाहिए।

सरकारी उपाय:

  • ई-अपशिष्ट (प्रबंधन) नियम, 2011: इन नियमों के अंतर्गत, ‘विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व’ का प्रावधान लागू किया गया, लेकिन ‘संग्रह लक्ष्य’ निर्धारित नहीं किया गया।
  • ई- अपशिष्ट (प्रबंधन) नियम, 2016: एक निर्माता, नवीनीकरणकर्ता, डीलर और ‘निर्माता उत्तरदायित्व संगठन’ (पीआरओ) को इन नियमों के दायरे में लाया गया।
  • निर्माता उत्तरदायित्व संगठन (PRO) पेशेवर संगठन हैं जिन्हें उत्पादकों द्वारा वित्तपोषित किया जाता है और ये पर्यावरण की दृष्टि से सुदृढ़ प्रबंधन सुनिश्चित करने के लिए उत्पादकों के उत्पादों से उत्पन्न ई-कचरे के संग्रह और प्रवहण के लिए जिम्मेदार होते हैं।
  • ई- अपशिष्ट (प्रबंधन) संशोधन नियम, 2018: प्राधिकृत विघटनकर्ताओं और पुनर्चक्रणकर्ताओं के लिए उत्पन्न ई-कचरे को चैनलाइज़ (प्रवहण) करके इस क्षेत्र को और अधिक औपचारिक बनाया गया है।

ई-अपशिष्ट की पुनर्चक्रण क्षमता में सुधार हेतु नीतिगत उपाय:

संग्रहण और निपटान को प्रोत्साहित करने वाले ई- अपशिष्ट कानून की आवश्यकता:

  • भारत में ‘जमा वापसी योजना’ (Deposit Refund Scheme – DRS) लागू है, जिसमें उत्पादक उपभोक्ताओं से जमा राशि के रूप में एक अतिरिक्त राशि वसूल करता है जो उपभोक्ता को, विद्युत और इलेक्ट्रॉनिक उपकरण के कार्य-विमुक्त होने के बाद उसे उत्पादक को वापस लौटने पर, ब्याज के साथ वापस कर दिया जाएगा।
  • हालांकि, उपभोक्ताओं की जागरूकता की कमी और उपायों को सख्ती से लागू न करने के कारण ‘जमा वापसी योजनाएं’ (DRS) सफल नहीं हो पाई हैं। यहां पर ‘ई-कचरा प्रबंधन के स्विस मॉडल’ का इस्तेमाल किया जा सकता है।

ई-अपशिष्ट का डेटा संग्रह:

  • ई-अपशिष्ट की मात्रा और प्रवाह पर डेटा- स्थानीय स्तर पर रीसाइक्लिंग इकाइयों की स्थापना की निगरानी, ​​नियंत्रण और प्रोत्साहन में मदद कर सकता है, जोकि औपचारिक ई-कचरा अर्थव्यवस्था को शुरू करने में मदद करेगा।
  • 2019 में उत्पन्न वैश्विक ई-कचरे में कच्चे माल का मूल्य, लगभग 57 बिलियन अमरीकी डालर के बराबर है।

ई-अपशिष्ट अर्थव्यवस्था पर जन जागरूकता:

  • पुनर्चक्रण के पर्यावरणीय और स्वास्थ्य लाभों के अलावा, उपभोक्ता DRS जैसी योजनाओं का उपयोग करके कमाई कर सकते हैं। इसके लिए गैर सरकारी संगठनों, सामुदायिक संगठनों, RWAs आदि का समर्थन लेने की आवश्यकता है।
  • डिजिटल इंडिया के तहत, इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) वर्ष 2016 से, सुरक्षित निपटान और अनौपचारिक रीसाइक्लिंग के खतरों के बारे में जागरूकता फैला रहा है।

सर्कुलर इकोनॉमी की क्षमता को साकार करना: चक्रीय अर्थव्यवस्था/सर्कुलर इकोनॉमी (Circular Economy) के माध्यम से ई-कचरे के ‘जीवन के अंत’ में सुधार करना। मौजूदा सामग्रियों और उत्पादों को साझा करना, पट्टे पर देना, पुन: उपयोग करना, मरम्मत करना, नवीनीकरण करना और पुनर्चक्रण करना उत्पादों के जीवन चक्र को बढ़ा सकता है।

  • विशूद्ध एवं नवीन सामग्री का उपयोग कम किया जाए।
  • अधिक से अधिक निष्कर्षण और पुनर्चक्रण क्षमताओं से जुडी प्रौद्योगिकियों का निर्माण किया जाए।
  • मौजूदा सामग्रियों का विकल्प खोजने और दुर्लभ पृथ्वी संसाधनों को न निकालने के लिए ‘प्रक्रिया डिजाइन’ की जाए।
  • मरम्मत का अधिकार’ मानदंड (यूरोपीय संघ): 2021 से फर्मों को उपकरणों को लंबे समय तक चलने वाला बनाना होगा और 10 साल तक मशीनों के लिए स्पेयर पार्ट्स की आपूर्ति करनी होगी।

औपचारिक पुनर्चक्रण और अनौपचारिक पुनर्चक्रण का एकीकरण:

  • ई-कचरे के प्रत्येक हॉटस्पॉट में पुनर्चक्रण इकाइयों की स्थापना और अनौपचारिक संग्रह प्रणाली को शामिल करके, जिसमें कबाड़ी-वाले और स्क्रैप डीलर शामिल हैं, औपचारिक रीसाइक्लिंग प्रणाली के साथ उन्हें नियोजित करके, उन्हें उचित ई- अपशिष्ट संग्रह, डब्ल्यू-अपशिष्ट अर्थव्यवस्था की औपचारिकता में एक लंबा सफर तय किया जा सकेगा।

ई-अपशिष्ट पर ‘राष्ट्रीय हरित अधिकरण’ (NGT) के निर्देश:

  • ई-अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 का वैज्ञानिक प्रवर्तन किया जाए, क्योंकि वर्तमान में केवल 10% ई-कचरा एकत्र किया जाता है।
  • नियम 16 का अनुपालन: जिसके लिए विद्युत और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के निर्माण में खतरनाक पदार्थों के उपयोग में कमी की आवश्यकता होती है।
  • जहां ई-कचरे के अवैज्ञानिक प्रबंधन के कारण सबसे अधिक दुर्घटनाएं हो रही हैं, वहां पर लगातार चौकसी और हॉटस्पॉट पर ध्यान दिया जाए।
  • राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों को हॉटस्पॉट की पहचान करने और स्थानीय स्तर पर जिला प्रशासन के साथ समन्वय करने की आवश्यकता है।

 इंस्टा लिंक

ई-अपशिष्ट प्रबंधन

मेंस लिंक

इलेक्ट्रॉनिक अपशिष्ट, या ई-अपशिष्ट, दुनिया भर में सबसे तेजी से बढ़ने वाले अपशिष्ट प्रवाहों में से एक है। देश में ई-अपशिष्ट के सुरक्षित निपटान के लिए आवश्यक उपायों पर चर्चा कीजिए। (250 शब्द)

स्रोत: द हिंदू

 


प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य


गोवा में समान नागरिक संहिता

संदर्भ: संसदीय पैनल ने ‘गोवा की समान नागरिक संहिता’ (Goa’s uniform civil code) के कुछ पुराने प्रावधानों पर प्रकाश डाला है।

  • गोवा नागरिक संहिता (Goa Civil Code) नागरिक कानूनों का एक सेट है, जो इस तटीय राज्य के सभी निवासियों को, उनके धर्म और जातीयता के बावजूद, नियंत्रित करता है। देश भर में ‘समान नागरिक संहिता’ (Uniform Civil Code – UCC) लागू किए जाने की मांग के बीच ‘गोवा नागरिक संहिता’ ध्यानाकर्षण का विषय बन गयी है।
  • गोवा, भारत में ‘समान नागरिक संहिता’ लागू करने वाला एकमात्र राज्य है।

आपत्तियां:

  • ‘गोवा नागरिक संहिता’ में, विवाह और संपत्ति के विभाजन से संबंधित कानून में कुछ अजीबोगरीब उपबंध हैं, जो पुराने हो चुके हैं और समानता के सिद्धांत पर आधारित नहीं हैं।
  • उदाहरण के लिए, ‘गोवा नागरिक संहिता’ में मुस्लिमों सहित किसी धर्म या सुमदाय के ‘द्विविवाह’ या ‘बहुविवाह’ को मान्यता नहीं दी गयी है, लेकिन अपवाद-स्वरूप, इस क़ानून में, यदि किसी हिंदू पुरुष की पत्नी 21 वर्ष की आयु तक गर्भ धारण नहीं कर पाती है, या 30 वर्ष की आयु तक एक नर-संतान को जन्म नहीं दे पाती है, तो उस हिंदू पुरुष को एक बार फिर से शादी करने की अनुमति दी गयी है। .

‘समान नागरिक संहिता’ (UCC) क्या है?

‘समान नागरिक संहिता’ (Uniform Civil Code), मुख्यतः देश के सभी नागरिकों के लिए विवाह, तलाक, विरासत और उत्तराधिकार जैसे व्यक्तिगत मामलों को नियंत्रित करने वाले कानूनों के एक सामान्य समूह को संदर्भित करती है।

  • संविधान के अनुच्छेद 44जो राज्य के नीति निदेशक तत्वों में से एक है- में कहा गया है, कि देश में एक ‘समान नागरिक संहिता’ (UCC) होनी चाहिए। इस अनुच्छेद के अनुसार, ‘राज्य, भारत के समस्त राज्यक्षेत्र में नागरिकों के लिए एक ‘समान सिविल संहिता’ सुनिश्चित करने का प्रयास करेगा।‘
  • चूंकि ‘नीति-निदेशक सिद्धांत’ प्रकृति में केवल दिशा-निर्देशीय हैं, अतः राज्यों के लिए इनका पालन करना अनिवार्य नहीं है।
  • हालांकि, आजादी के बाद से विभिन्न सरकारों ने भारत की विविधता का सम्मान करने करने हेतु ‘संबंधित धर्म-आधारित नागरिक संहिताओं’ को भी अनुमति प्रदान की है।

 

चुनावी बांड

संदर्भ: इस सत्र में, चुनावी बांड (Electoral Bonds) के माध्यम से राजनीतिक दलों को दिया गया दान 10,000 करोड़ रुपये का आंकड़ा पार कर गया है।

चुनावी बांड्स / ‘इलेक्टोरल बांड’ क्या होते हैं?

  • चुनावी बॉन्ड / ‘इलेक्टोरल बांड’ (Electoral Bond), राजनीतिक दलों को चंदा देने के लिए एक वित्तीय साधन है।
  • इन बांड्स के लिए, 1,000 रुपए, 10,000 रुपए, 1 लाख रुपए, 10 लाख रुपए और 1 करोड़ रुपए के गुणकों में जारी किया जाता है, और इसके लिए कोई अधिकतम सीमा निर्धारित नहीं की गयी है।
  • इन बॉन्डों को जारी करने और भुनाने के लिए ‘भारतीय स्टेट बैंक’ को अधिकृत किया गया है। यह बांड जारी होने की तारीख से पंद्रह दिनों की अवधि के लिए वैध होते हैं।
  • ये बॉन्ड किसी पंजीकृत राजनीतिक दल के निर्दिष्ट खाते में प्रतिदेय होते हैं।
  • ये बांड, केंद्र सरकार द्वारा निर्दिष्ट जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर महीनों में प्रत्येक दस दिनों की अवधि में किसी भी व्यक्ति द्वारा खरीदे जा सकते है, बशर्ते उसे भारत का नागरिक होना चाहिए अथवा भारत में निगमित या स्थित होना चाहिए ।
  • कोई व्यक्ति, अकेले या अन्य व्यक्तियों के साथ संयुक्त रूप से इन बांड्स को खरीद सकता है।
  • बांड्स पर दान देने वाले के नाम का उल्लेख नहीं होता है।

पात्रता: केवल वे राजनीतिक दल जो लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 (1951 का 43) की धारा 29ए के तहत पंजीकृत हैं, और जिन्होंने लोक सभा के लिए पिछले आम चुनाव में कम से कम 1 प्रतिशत वोट हासिल किया है या विधान सभा, जैसा भी मामला हो, चुनावी बांड प्राप्त करने के लिए पात्र हैं।

भारत द्वारा विश्व व्यापार संगठन से गेहूं को छूट’ देने की मांग

संदर्भ: हाल ही में, भारत ने विश्व व्यापार संगठन (WTO) से खाद्यान्न के सार्वजनिक भंडारण स्वामित्व (public stockholding – PSH) के मुद्दे का स्थायी समाधान निकालने की मांग की है।

पृष्ठभूमि:

उपज की खरीद के लिए भारत की MSP नीति (किसानों की आय में सहयोग करने के साथ-साथ गरीबों के लिए रियायती भोजन उपलब्ध कराने के लिए) विश्व व्यापार संगठन के नियमों के तहत निर्धारित सीमा से बाहर हो गई थी। WTO कानून के तहत, किसानों से इस तरह की मूल्य समर्थन-आधारित खरीद को व्यापार-विकृत सब्सिडी माना जाता है।

  • वर्तमान में, भारत को WTO के एक ‘शांति अनुच्छेद’ के कारण अस्थायी राहत मिली हुई है। यह अनुच्छेद WTO सदस्य देशों को सब्सिडी सीमा का उल्लंघन करने के खिलाफ कानूनी चुनौतियों का सामना करने सुरक्षा प्रदान करता है।
  • विश्व व्यापार संगठन का ‘शांति अनुच्छेद’ (बाली मंत्रिस्तरीय, 2013 में सम्मिलित) भारत के खाद्य खरीद कार्यक्रमों को सब्सिडी की सीमा के उल्लंघन की स्थिति में विश्व व्यापार संगठन के सदस्यों की कार्रवाई से बचाता है।

खाद्यान्न के सार्वजनिक स्टॉक का निर्यात:

विश्व व्यापार संगठन कानून, सदस्य देशों को रियायती कीमतों पर खरीदे गए खाद्यान्न के निर्यात से भी रोकता है। हालांकि, रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण हाल के खाद्य संकट की वजह से, भारत, इस बात पर जोर दे रहा है कि उसे एमएसपी के तहत खरीदे गए खाद्यान्न-भंडार से खाद्यान्न, विशेष रूप से गेहूं के निर्यात की अनुमति दी जानी चाहिए।

‘सार्वजनिक भंडारण स्वामित्व’ (PSH) के लिए स्थायी समाधान:

भारत, PSH नीति के स्थायी समाधान की मांग कर रहा है। हालाँकि, हाल ही में संपन्न जिनेवा घोषणा (2022) में इस तरह के समाधान का कोई उल्लेख नहीं किया गया था।

 

गुजरात सेमीकंडक्टर नीति 2022-27

गुजरात, एक समर्पित ‘सेमीकंडक्टर नीति’ जारी करने वाला भारत का पहला राज्य बन गया है। सरकार ने ‘धोलेरा विशेष निवेश क्षेत्र’ के एक भाग के रूप में एक विशेष ‘सेमीकॉन सिटी’ विकसित करने का भी प्रस्ताव किया है।

  • गुजरात सेमीकंडक्टर नीति 2022-27 के तहत, गुजरात सरकार, सेमीकंडक्टर्स में निवेश करने या गुजरात में निर्माण निर्माण प्रदर्शित करने में रुचि रखने वाले उद्यमियों के लिए बिजली, पानी और भूमि शुल्क पर भारी सब्सिडी प्रदान करेगी।
  • सेमीकंडक्टर एक ऐसा पदार्थ है जिसमें विशिष्ट विद्युत गुण होते हैं, जो इसे कंप्यूटर और अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के लिए आधार के रूप में काम करने में सक्षम बनाते हैं। यह आम तौर पर एक ठोस रासायनिक तत्व या यौगिक है जो कुछ शर्तों के तहत बिजली का संचालन करता है।

 

 

 

अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा

संदर्भ: हाल ही में, रूस के अस्त्रखान बंदरगाह से कंटेनर कैस्पियन सागर को पार करते हुए और अंततः ‘अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन कॉरिडोर’ (International North-South Transport Corridor – INSTC) के शुभारंभ का संकेत देते हुए, मुंबई के न्हावा शेवा बंदरगाह पर पहुंच गए।

‘अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन कॉरिडोर’ (INSTC) के बारे में:

  • अंतर्राष्‍ट्रीय उत्‍तर-दक्षिण परिवहन गलियारा- INSTC, माल ढुलाई के लिए जहाज, रेल और सड़क मार्ग का 7,200 किलोमीटर लंबा बहु-विधिक (मल्टी-मोड) नेटवर्क है।
  • सम्मिलित क्षेत्र: भारत, ईरान, अफगानिस्तान, अजरबैजान, रूस, मध्य एशिया और यूरोप।

कानूनी ढांचा: आईएनएसटीसी के लिए कानूनी ढांचा 2000 में ‘परिवहन पर यूरो-एशियाई सम्मेलन’ में भारत, ईरान और रूस द्वारा हस्ताक्षरित एक त्रिपक्षीय समझौते द्वारा प्रदान किया गया है।

इस गलियारे का महत्व:

  1. ‘अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा’ (INSTC) की परिकल्पना, चीन की ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ (BRI) से काफी पहले की गयी थी। INSTC के माध्यम से, भारत से ईरान के रास्ते रूस और यूरोप के लिए भेजे जाने वाले माल की परिवहन लागत और समय की बचत होगी और साथ ही में, यूरेशियन देशों के साथ संपर्कों के लिए वैकल्पिक मार्ग उपलब्ध होगा।
  2. यह मध्य एशिया और फारस की खाड़ी तक माल-परिवहन हेतु एक अंतरराष्ट्रीय परिवहन और पारगमन गलियारा बनाने के लिए, भारत, ओमान, ईरान, तुर्कमेनिस्तान, उजबेकिस्तान और कजाकिस्तान द्वारा हस्ताक्षरित एक बहुउद्देशीय परिवहन समझौते, जिसे ‘अश्गाबात समझौता’ कहा जाता है, के साथ भी तालमेल स्थापित करेगा।

 

गूगल मानचित्र द्वारा “सड़क दृश्य सेवा”

संदर्भ: गूगल, दो स्थानीय कंपनियों Genesys International और Tech Mahindra के सहयोग से भारत में पहली बार ‘स्ट्रीट व्यू’ सेवाएं शुरू करेगा।

  • गूगल सड़क दृश्य (Street view), अपने पूरे कवरेज क्षेत्र में निर्दिष्ट सड़कों से 360-डिग्री व्यू प्रदान करता है।
  • जिन 10 शहरों में यह सेवा शुरू की गई है उनमें शामिल हैं; बेंगलुरु, दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, पुणे, नासिक, हैदराबाद, वडोदरा, अमृतसर और अहमदनगर।
  • गूगल ने 2022 के अंत तक 50 से अधिक शहरों में सेवाओं का विस्तार करने की योजना बनाई है।
  • सड़क दृश्य सेवाओं, के एक भाग के रूप में, गूगल मानचित्र गति सीमा डेटा प्रदर्शित करेगा, जिसे यातायात अधिकारियों द्वारा साझा किया जाएगा। यह सुविधा बेंगलुरु से शुरू होगी।
  • बेंगलुरू में, गूगल, ट्रैफिक पुलिस के साथ साझेदारी करके, ट्रैफिक लाइट के समय को बेहतर तरीके से अनुकूलित करने वाले मॉडल पेश करेगा।

 

नशीली दवाओं के खिलाफ युद्ध

संदर्भ: सरकार “नशीली दवाओं से मुक्त भारत” की ओर बढ़ रही है।

विवरण:

  • अधिक मात्रा में जब्ती: एजेंसियों ने 2014 और 2021 के बीच 3.3 लाख किलोग्राम जब्त किया है; 2006 से 2013 के बीच यह संख्या 1.52 लाख किलोग्राम थी।
  • अधिक गिरफ्तारियां: नशीली दवाओं से संबंधित मामलों के पंजीकरण में 200 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है, जबकि इसी अवधि के दौरान नशीली दवाओं के मामलों में गिरफ्तारी का प्रतिशत 260% तक बढ़ गया है।
  • नशीली दवाओं के खतरे को हल करने के लिए त्रि-आयामी सूत्र: संस्थागत संरचना को मजबूत करना, केंद्र और राज्य में सभी नारकोटिक्स एजेंसियों का सशक्तिकरण और समन्वय, और जागरूकता अभियान।

नशीली दवाओं के खिलाफ सरकार की पहलें:

  • NCORD और NIDAAN पोर्टल शुरू किए गए हैं।
  • नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो द्वारा ‘जब्ती सूचना प्रबंधन प्रणाली’ (Seizure Information Management System – SIMS) की शुरुआत। यह नशीली दवाओं के अपराधों और अपराधियों का एक पूरा ऑनलाइन डेटाबेस तैयार करेगी।
  • नशीली दवाओं के दुरुपयोग के नियंत्रण के लिए राष्ट्रीय कोष।
  • सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के तहत, भारत में नशीली दवाओं के दुरुपयोग की प्रवृत्तियों को मापने के लिए राष्ट्रीय नशीली दवाओं के दुरुपयोग सर्वेक्षण।
  • सामुदायिक आउटरीच कार्यक्रमों पर केंद्रित ‘नशा मुक्त भारत’, या नशा मुक्त भारत अभियान।
  • भारत में उत्तर-पूर्वी राज्यों में बढ़ते एचआईवी प्रसार से निपटने के लिए ‘प्रोजेक्ट सनराइज’ (2016)।
  • स्वापक औषधि और मन:प्रभावी पदार्थ अधिनियम, (एनडीपीएस) 1985: किसी व्यक्ति को किसी भी मादक औषधि या मन:प्रभावी पदार्थ के उत्पादन, रखने, बेचने, खरीदने, परिवहन करने, भंडारण करने और/या उपभोग करने से रोकता है।

राज्य सरकार के कार्यक्रम:

  • हिमाचल प्रदेश: राज्य सरकार 2019 ने ड्रग तस्करों के बारे में जानकारी साझा करने के लिए आम जनता को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से एक टोल-फ्री ड्रग रोकथाम हेल्पलाइन नंबर ‘1908’ शुरू किया।
  • मोबाइल एप ‘ड्रग-फ्री हिमाचल’: इस एप पर लोग पुलिस को नशीले पदार्थों की तस्करी, इसकी बिक्री और उपयोग के बारे में जानकारी प्रदान कर सकते हैं।

 

अल नजाह और विनबैक्स 2022: सैन्य अभ्यास

संदर्भ: इस महीने आयोजित होने वाले आगामी सैन्य अभ्यास

भारत और ओमान, तीनों सेवाओं के बीच नियमित द्विवार्षिक द्विपक्षीय अभ्यास आयोजित किए जाते हैं:

  • सेना अभ्यास: अल नजाह
  • वायु सेना अभ्यास: ईस्टर्न ब्रिज
  • नौसेना अभ्यास: नसीम अल बहर

भारत और वियतनाम की सेनाओं के बीच सैन्य अभ्यास (VINBAX): इसे संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों में वियतनाम के अधिकारियों को सक्षम और प्रशिक्षित करने के लिए डिज़ाइन किया गया है।