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[Mission 2022] INSIGHTS करेंट अफेयर्स+ पीआईबी नोट्स [ DAILY CURRENT AFFAIRS + PIB Summary in HINDI ] 15 July 2022

विषयसूची

सामान्य अध्ययन-II

  1. बेटी बचाओ बेटी पढाओ योजना का सभी जिलों में विस्तार
  2. I2U2 शिखर सम्मेलन
  3. श्रम संहिताओं को लागू करने का मार्ग

सामान्य अध्ययन-III

  1. राज्यों के बजटेतर ऋणों को समायोजित करने संबंधी मानदंडों में ढील
  2. वन संरक्षण नियम
  3. जीनोमिक्स

मुख्य परीक्षा संवर्धन हेतु पाठ्य सामग्री (नैतिकता/निबंध)

  1. रोल मॉडल – स्वीकृति और समझ

 

प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य

  1. जूट मार्क इंडिया’ लोगो
  2. मरम्मत का अधिकार
  3. वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग
  4. सोडियम आयन (Na-ION) आधारित बैटरी
  5. स्वच्छ ऊर्जा पहलें
  6. इंडियन बस्टर्ड गणना

 


सामान्य अध्ययनII


 

विषय: केन्द्र एवं राज्यों द्वारा जनसंख्या के अति संवेदनशील वर्गों के लिये कल्याणकारी योजनाएँ और इन योजनाओं का कार्य-निष्पादन; इन अति संवेदनशील वर्गों की रक्षा एवं बेहतरी के लिये गठित तंत्र, विधि, संस्थान एवं निकाय।

बेटी बचाओ बेटी पढाओ योजना का सभी जिलों में विस्तार

संदर्भ: ‘बेटी बचाओ बेटी पढाओ’ (BBBP) योजना का अब पूरे देश में विस्तार किया जाएगा।

  • ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ (Beti Bachao, Beti Padhao – BBBP) योजना, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के तहत बालिकाओं की शिक्षा और लिंगानुपात में सुधार पर केंद्रित केंद्र सरकार का एक प्रमुख कार्यक्रम है।
  • जनवरी 2015 में इस योजना का आरंभ, लिंग-चयनात्मक गर्भपात और बाल लैंगिक अनुपात में कमी से निपटने के उद्देश्य से किया गया था। वर्ष 2011 में बाल लैंगिक अनुपात 918 / 1,000 था।
  • यह कार्यक्रम तीन केंद्रीय मंत्रालयों, महिलाओं और बाल विकास, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण और मानव संसाधन विकास मंत्रालयों की एक संयुक्त पहल है।
  • 8 मार्च 2018 को राजस्थान के झुंझुनू जिले में ‘बेटी बचाओ, बेटी पढाओ’ कार्यक्रम को देश के सभी 640 जिलों (जनगणना 2011 के अनुसार) में शुरू किया गया।

हाल ही में, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय (WCD) द्वारा ‘मिशन शक्ति’ के लिए व्यापक दिशानिर्देश जारी किए गए हैं।

इन दिशानिर्देशों में शामिल प्रमुख बिंदु:

शून्य-बजट विज्ञापन का लक्ष्य (लगभग 80% फंड का उपयोग BBBP में विज्ञापन के लिए किया गया है)

जमीनी स्तर पर प्रभाव डालने वाली गतिविधियों पर अधिक खर्च को प्रोत्साहित करना जैसे:

  • लड़कियों के बीच खेल को बढ़ावा देना;
  • आत्मरक्षा शिविर;
  • लड़कियों के शौचालय का निर्माण;
  • विशेष रूप से शैक्षणिक संस्थानों में सैनिटरी नैपकिन वेंडिंग मशीन और सैनिटरी पैड उपलब्ध कराना;
  • पूर्व गर्भाधान और प्रसव पूर्व निदान तकनीक (PCPNDT) अधिनियम, के बारे में जागरूकता।

नए लक्ष्य:

  • जन्म के समय लिंगानुपात में हर साल 2 अंक सुधार करने तथा संस्थागत प्रसव के प्रतिशत में 95% या उससे अधिक सुधार करने का का लक्ष्य हासिल करना।
  • स्कूल छोड़ने की दर पर रोक लगाने के लिए माध्यमिक शिक्षा स्तर पर नामांकन में प्रति वर्ष 1 प्रतिशत की वृद्धि और लड़कियों और महिलाओं के कौशल विकास का लक्ष्य हासिल करना।

वन-स्टॉप सेंटर (OSC) को मजबूत बनाना:

  • यह घरेलू हिंसा और तस्करी सहित हिंसा का सामना करने वाली महिलाओं की मदद करने के लिए स्थापित किया गया था।
  • 300 वन-स्टॉप सेंटर उन जिलों में स्थापित किए जाएंगे, जहां या तो महिलाओं के खिलाफ अपराधों की उच्च दर है या भौगोलिक दृष्टि से बड़े हैं, जिनमे आकांक्षी जिलों को प्राथमिकता दी जाएगी।
  • ‘वन-स्टॉप सेंटर’, निर्भया फंड के तहत अन्य पहलों- जैसे कि महिला हेल्पलाइन, मानव तस्करी रोधी इकाइयां, महिला हेल्प डेस्क, विशेष फास्ट-ट्रैक कोर्ट और जिला कानूनी सेवा प्राधिकरण, आदि- के साथ समन्वय और अभिसरण में मदद करते हैं।
  • जरूरतमंद महिलाएं (सभी उम्र की लड़कियां और 12 साल तक के लड़के) – ‘वन-स्टॉप सेंटर’ में पांच दिनों तक अस्थायी आश्रय ले सकते हैं। दीर्घकालीन आश्रय के लिए ‘शक्ति सदन’ के समन्वय से ‘वन-स्टॉप सेंटर’ द्वारा व्यवस्था की जाएगी।
  • सुरक्षित मासिक धर्म एवं स्वच्छता प्रबंधन के बारे में जागरूकता बढ़ाना।
  • टोल-फ्री, 24 घंटे चलने वाली महिला हेल्पलाइन नंबर 181 की स्थापना।
  • नारी अदालत – ग्राम पंचायत स्तर पर महिलाओं को क्षुद्र प्रकृति (उत्पीड़न, तोड़फोड़, अधिकारों में कटौती या अधिकार) के मामलों को हल करने के लिए एक वैकल्पिक शिकायत निवारण तंत्र प्रदान करने के लिए ‘नारी अदालत’ की स्थापना करना।

Current Affairs

 

इंस्टा लिंक:

बेटी बचाओ बेटी पढाओ योजना

अभ्यास प्रश्न

सामाजिक सशक्तिकरण की दृष्टि से “बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना” का विश्लेषण कीजिए। (250 शब्द)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

 

विषय: द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक समूह और भारत से संबंधित और/अथवा भारत के हितों को प्रभावित करने वाले करार।

I2U2 शिखर सम्मेलन

संदर्भ:

संयुक्त अरब अमीरात ने I2U2 शिखर सम्मेलन में, दक्षिण एशिया और मध्य पूर्व में खाद्य असुरक्षा से निपटने में मदद करने हेतु लिए चार देशों के समूह ‘I2U2’ (भारत-इज़राइल- यूनाइटेड अरब अमीरात -यूएसए) के प्रयासों के हिस्से के रूप में भारत भर में ‘एकीकृत खाद्य पार्कों’ की एक श्रृंखला विकसित करने के लिए 2 बिलियन अमरीकी डालर के निवेश की घोषणा की।

शिखर सम्मलेन के प्रमुख बिंदु:          

  • यूनाइटेड अरब अमीरात द्वारा भारतीय फूड पार्कों में निवेश: I2U2 नेताओं के अनुसार- अंतर्राष्ट्रीय अक्षय ऊर्जा एजेंसी (International Renewable Energy Agency – IRENA) का मूल-स्थान और वर्ष 2023 में COP28 का मेजबान ‘संयुक्त अरब अमीरात’ पूरे भारत में एकीकृत फूड पार्कों की एक श्रृंखला विकसित करने के लिए 2 बिलियन अमरीकी डालर का निवेश करेगा।
  • अमेरिका और इज़राइल की विशेषज्ञता: अमेरिका और इज़राइली निजी क्षेत्रों को, अपनी विशेषज्ञता और परियोजना की समग्र स्थिरता में योगदान देने वाले अभिनव समाधान प्रदान करने के लिए आमंत्रित किया जाएगा।
  • इन निवेशों से फसल की पैदावार को अधिकतम करने में मदद मिलेगी और बदले में, दक्षिण एशिया और मध्य पूर्व में खाद्य असुरक्षा से निपटने में मदद मिलेगी।
  • गुजरात में हाइब्रिड अक्षय ऊर्जा परियोजना: इसके तहत बैटरी ऊर्जा भंडारण प्रणाली सहित 300 मेगावाट (मेगावाट) पवन और सौर क्षमता शामिल होगी।
  • खाद्य सुरक्षा बढ़ाने हेतु विज्ञान आधारित समाधान: खाद्य सुरक्षा और संधारणीय खाद्य प्रणालियों को बढ़ाने के लिए अधिक नवीन, समावेशी और विज्ञान आधारित समाधान तैयार किए जाएंगे।
  • जलवायु पहल के लिए ‘कृषि नवाचार मिशन’ (Agriculture Innovation Mission – AIM for Climate): भारत ने ‘जलवायु पहल के लिए कृषि नवाचार मिशन’ में संयुक्त राज्य अमेरिका, संयुक्त अरब अमीरात और इज़राइल को शामिल करने में रुचि दिखाई है।
  • अब्राहम समझौते के लिए समर्थन: I2U2 नेताओं ने “अब्राहम समझौते (Abraham Accord) के लिए समर्थन और इज़राइल के साथ अन्य शांति और सामान्यीकरण व्यवस्था” की पुष्टि की।

इंस्टा लिंक्स:

अब्राहम समझौता

अभ्यास प्रश्न:

भारत के इजरायल के साथ संबंधों ने हाल ही में एक गहराई और विविधता हासिल कर ली है, जिसे वापस नहीं लिया जा सकता है। चर्चा कीजिए। (यूपीएससी 2019)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस,

 

विषय: सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय।

श्रम संहिताओं को लागू करने का मार्ग

संदर्भ:

संसद द्वारा निम्नलिखित चार श्रम संहिताओं को पारित किया जा चुका है:

  1. मजदूरी संहिता (The Code on Wages)
  2. औद्योगिक संबंध संहिता (The Industrial Relations Code)
  3. सामाजिक सुरक्षा संहिता (Social Security Code)
  4. व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं कार्य दशाएं संहिता’ (Occupational Safety, Health & Working Conditions Code)

किंतु, इन सहिताओं को अभी तक लागू नहीं किया गया है।

  • केंद्रीय ट्रेड यूनियनों (central trade unions – CTUs) ने अब तक इन संहिताओं के खिलाफ तीन आम हड़तालें की जा चुकी हैं। इनका आरोप है, कि इन संहिताओं के परिणामस्वरूप रोजगार क्षेत्र में जो कुछ भी सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा बची है, उसे छीन लिया जाएगा।
  • किसान संगठनों द्वारा भी ट्रेड यूनियनों का उनके विरोध में समर्थन किया था।
  • नियोक्ता संघों की भी इन संहिताओं के प्रति मिश्रित भावनाएँ हैं, लेकिन उन्होंने आम तौर पर इनका स्वागत किया था।
  • सरकार का कहना है कि कार्यान्वयन में देरी राज्यों द्वारा नियम बनाने में देरी के कारण हुई है।
  • चूंकि ‘श्रम’ (labour) संविधान की समवर्ती सूची का विषय है। इसलिए राज्यों और केंद्र दोनों को संहिताओं के लिए नियम तैयार करने होंगे।

कार्यान्वयन की प्रक्रिया:

Current Affairs

 

 

इन कानूनों से संबंधित चिंताएं:

  • भारतीय ट्रेड यूनियनों के केंद्र के अनुसार, ये संहिताएँ कार्यबल के एक बड़े हिस्से को सभी श्रम कानूनों के दायरे से बाहर कर देंगी।
  • केंद्रीय ट्रेड यूनियनों का पंजीकरण और कामकाज: भारतीय मजदूर संघ (BMS) औद्योगिक संबंधों संबंधी संहिता – विशेष रूप से केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के पंजीकरण और कामकाज के प्रावधानों पर- चिंता व्यक्त की है ।
  • सामाजिक सुरक्षा नेटवर्क का विस्तार: CII और FCII ने न्यूनतम मजदूरी बढ़ाने और नियोक्ताओं को भी शामिल करके सामाजिक सुरक्षा नेटवर्क के विस्तार के प्रस्ताव के बारे में आपत्ति व्यक्त की है।

इंस्टा लिंक्स:

श्रम संहिताएँ

अभ्यास प्रश्न:

श्रम प्रधान निर्यात के लक्ष्य को प्राप्त करने में विनिर्माण क्षेत्र की विफलता के लिए किसे जिम्मेवार ठहराया जा सकता है। पूंजी-गहन निर्यात के बजाय अधिक श्रम प्रधान उपायों का सुझाव दीजिए। (यूपीएससी 2017)

स्रोत: द हिंदू

 


सामान्य अध्ययनIII


 

विषय: सरकारी बजट।

राज्यों के बजटेतर ऋणों को समायोजित करने संबंधी मानदंडों में ढील

संदर्भ:

केंद्र सरकार ने राज्यों के ‘बजटेतर ऋणों’ / ‘ऑफ-बजट ऋणों’ (Off-budget borrowing) को समायोजित करने के लिए मानदंडों में ढील दी है और कहा है कि पिछले वित्तीय वर्ष की ऐसी देनदारियों को अगले चार वर्षों के लिए मार्च 2026 तक उनकी ऋण सीमा के विरुद्ध समायोजित किया जा सकता है।

  • केंद्र के इस कदम से राज्यों के संसाधन, चालू वित्त वर्ष में उनके पूंजीगत व्यय को निधि देने के लिए मुक्त हो जाएंगे।
  • क्रिसिल रेटिंग्स (Crisil Ratings) के एक अध्ययन के अनुसार, 2021-22 में राज्यों के ‘ऑफ-बैलेंस शीट ऋण’ सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के 4.5 प्रतिशत या लगभग 7.9 लाख करोड़ रुपये तक- दशक के उच्चतम स्तर पर – पहुंचने का अनुमान है।

ऑफ-बजट ऋण’ क्या होता है?

‘बजटेतर ऋण / ऑफ-बजट ऋण’ (Off-budget borrowing), केंद्र सरकार के निर्देश पर किसी अन्य सार्वजनिक संस्थान द्वारा लिए गए ऋण होते हैं। इस प्रकार के ऋण सीधे केंद्र सरकार द्वारा नहीं लिए जाते हैं।

  • इस प्रकार के ऋणों का उपयोग सरकार की व्यय आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए किया जाता है।
  • चूंकि, इन ऋणों की देयता जिम्मेवारी औपचारिक रूप से केंद्र पर नहीं होती है, इसलिए इन्हें राष्ट्रीय राजकोषीय घाटे में शामिल नहीं किया जाता है।
  • इससे देश के राजकोषीय घाटे को एक स्वीकार्य सीमा के भीतर सीमित रखने में सहायता मिलती है।

प्रमुख बिंदु:

  • राज्यों द्वारा पूंजीगत व्यय हेतु बजटेतर ऋण की बहाली: पिछले दो वर्षों में, कई राज्यों ने अपने पूंजीगत व्यय का निधियन करने और कोविड-19 से प्रेरित आर्थिक मंदी के प्रभाव को कम करने के लिए ‘ऑफ-बजट ऋण’ का सहारा लिया है।
  • मानदंडों के अनुसार, राज्य सरकारों को किसी विशेष वित्तीय वर्ष के लिए निर्धारित सीमा से अधिक नए ऋण लेने के लिए केंद्र सरकार की मंजूरी लेनी होती है।
  • राज्यों के लिए राहत: ICRA के मुख्य अर्थशास्त्री ने कहा कि ‘ऑफ-बजट ऋण’ के संबंध में संशोधन से कुछ राज्यों को पर्याप्त राहत मिलने की संभावना है और उन्हें चालू वित्त वर्ष में अतिरिक्त उधार लेने की अनुमति मिल सकती है।
  • राज्य के वित्त में पारदर्शिता लाने के लिए, केंद्र सरकार ने राज्यों को सूचित करते हुए कहा है कि ‘ऑफ-बजट ऋण’ को राज्यों के अपने ऋण के बराबर किया जाना है, और 2020-21 तथा 2021-22 में सरकारों द्वारा जुटाए गए ऐसे किसी भी फंड को इस वर्ष ऋण सीमा से समायोजित करने की आवश्यकता होगी।
  • ऋण लेने की सीमा: केंद्र ने राज्यों की शुद्ध ऋण सीमा 8,57,849 करोड़ रुपये या GSDP का 3.5 प्रतिशत निर्धारित की है। राज्य, विद्युत् क्षेत्र में सुधारों के लिए GSDP के 0.50 प्रतिशत की अतिरिक्त उधारी के लिए भी पात्र हैं।

‘ऑफ-बजट उधारी’ में वृद्धि के कारण:

निरुद्ध राजस्व वृद्धि (Constrained revenue growth):

  • महामारी से प्रेरित मंदी और बढ़ते राजस्व व्यय के कारण राज्यों का राजकोषीय घाटा GSDP के 4 प्रतिशत तक बढ़ गया है, जो कि पिछले दशक के अधिकांश भाग के 2-3 प्रतिशत के ऐतिहासिक स्तर से काफी ऊपर देखा गया है।
  • इस राजकोषीय घाटे की वजह से, राज्यों के पास अपनी संस्थाओं को सीधे वित्तपोषित करने का साधन कम हो गए हैं।

केंद्र सरकार द्वारा पूर्व-स्वीकृति की मनाही:

  • यदि राज्य अधिक ऋण लेकर संस्थाओं को सीधे वित्तपोषित करना चाहते हैं, तो भी वे केंद्र सरकार की स्पष्ट स्वीकृति के बिना और केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित सीमाओं से परे नहीं कर सकते हैं।
  • लेकिन, राज्यों को अपनी संस्थाओं द्वारा जारी किए गए ऋण और अग्रिम, और बांड की गारंटी के लिए पूर्व केंद्रीय सहमति की आवश्यकता नहीं होती है।
  • साथ ही, गारंटी की अधिकतम सीमा स्व-निर्धारित है और हर राज्य में अलग-अलग होती है।

इंस्टा लिंक्स:

सरकारी बजट

अभ्यास प्रश्न:

पूंजीगत बजट और राजस्व बजट के बीच अंतर स्पष्ट कीजिए। इन दोनों बजटों के घटकों की व्याख्या कीजिए। (यूपीएससी 2021)

स्रोत: मनीकंट्रोल.कॉम

 

विषय: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन।

वन संरक्षण नियम

संदर्भ: वन संरक्षण नियम (FCA) 1980 में किए गए हालिया परिवर्तन

‘वन संरक्षण नियम’ क्या हैं?

  • वन संरक्षण नियम (Forest Conservation Rules), वन संरक्षण अधिनियम, 1980 (Forest Conservation Act, 1980 – FCA,1980) के कार्यान्वयन से संबंधित हैं।
  • इन नियमों में सड़क निर्माण, राजमार्ग विकास, रेलवे लाइनों और खनन जैसे गैर-वानिकी उपयोगों के लिए वन भूमि को परिवर्तित करने के लिए अपनाई जाने वाली प्रक्रिया निर्धारित की गयी है।

वन संरक्षण अधिनियम (FCA) के उद्देश्य:

  • वनों और वन्य जीवों की सुरक्षा।
  • वाणिज्यिक परियोजनाओं के लिए वन भूमि को परिवर्तित करने संबंधी राज्य सरकारों के प्रयासों को रोकना।
  • वनों के अंतर्गत क्षेत्र में वृद्धि करना।

नियम:

  • राज्य द्वारा केंद्र सरकार की अनुमति लेना अनिवार्य: पांच हेक्टेयर से अधिक वन भूमि के लिए, भूमि-उपयोग परिवर्तन की मंजूरी केंद्र सरकार द्वारा दी जानी चाहिए। यह अनुमति, एक विशेष रूप से गठित ‘वन सलाहकार समिति’ (Forest Advisory Committee – FAC) के माध्यम से प्रदान की जाएगी।
  • यह समिति प्रस्तावित परियोजना की जांच करेगी और यह सुनिश्चित करेगी कि- पेड़ों की कटाई और स्थानीय परिदृश्य का निरावरण न्यूनतम होगा और भूमि के उक्त टुकड़े से वन्यजीवों के आवास को नुकसान नहीं होगा।
  • FRA 2006 के तहत अधिकारों की रक्षा: ‘वन सलाहकार समिति’ (FAC) आश्वस्त होने के उपरांत, जब किसी प्रस्ताव को मंजूरी दे देती है (या प्रस्ताव को अस्वीकार कर देती है), तो इसे संबंधित राज्य सरकार को भेज दिया जाता है। इसके बाद, राज्य को, वनवासियों और आदिवासियों के उनकी भूमि पर अधिकारों की रक्षा करने वाले ‘वन अधिकार अधिनियम 2006’, के प्रावधानों का अनुपालन सुनिश्चित करना होता है।
  • मुआवजा: FAC अनुमोदन का अर्थ यह भी है कि भूमि के भविष्य के उपयोगकर्ताओं को वनरोपण के लिए प्रतिपूरक भूमि प्रदान करनी होगी और साथ ही शुद्ध वर्तमान मूल्य (₹10-15 लाख प्रति हेक्टेयर के बीच) का भुगतान करना होगा।

इन नियमों में किए गए नए परिवर्तन:

नियमों के नवीनतम संस्करण में विभिन्न संशोधनों और अदालती फैसलों से वर्षों के दौरान अधिनियम में किए गए बदलाव को समेकित किया गया है। नए नियमों को जून 2022 में सार्वजनिक किया गया था।

  • निजी वृक्षारोपण की अनुमति: नए नियमों में, निजी पार्टियों द्वारा वृक्षारोपण करने और उन्हें भूमि के रूप में कंपनियों को बेचने का प्रावधान किया गया है, जिन्हें प्रतिपूरक वनीकरण लक्ष्यों को पूरा करने की आवश्यकता होती है।
  • आदिवासी और वनवासी समुदायों का कोई उल्लेख नहीं है जिनकी भूमि विकास कार्यों के लिए छीन ली जाएगी। अद्यतन नियमों से पहले, राज्य निकायों को FAC के लिए दस्तावेजों को अग्रेषित करना होता था, जिसमें क्षेत्र में स्थानीय लोगों के वन अधिकारों का निपटान किए जाने संबंधी स्थिति की जानकारी भी शामिल होती थी।
  • ग्राम सभा की सहमति की आवश्यकता नहीं: नए नियम हैं कि ‘वन सलाहकार समिति’ (FAC) द्वारा अनुमोदित किसी परियोजना को राज्य के अधिकारियों को भेज दिया जाएगा जो ‘प्रतिपूरक निधि और भूमि’ एकत्र करेंगे, और इसे अंतिम अनुमोदन के लिए संसाधित करेंगे।
  • पहले वन भूमि के उपयोग परिवर्तन के लिए, ग्राम सभा, या क्षेत्र के गांवों में शासी निकाय की लिखित सहमति आवश्यक थी।
  • परिभाषित वन भूमि: 1996 तक राज्य सरकारों द्वारा सूचीबद्ध मानी गई वन भूमि। वह भूमि जो रेलवे या अन्य मंत्रालयों की थी और जिस पर जंगल उग आए हैं, उसे अब ‘वन’ नहीं माना जाएगा।
  • सामरिक परियोजनाओं के लिए किसी अनुमोदन की आवश्यकता नहीं है: उदाहरण के लिए, राष्ट्रीय महत्व की सामरिक और सुरक्षा परियोजनाएं।
  • वनों में निर्माण की अनुमति: वन सुरक्षा उपायों और आवासीय इकाइयों (एकमुश्त छूट के रूप में 250 वर्ग मीटर के क्षेत्र तक) सहित वास्तविक उद्देश्यों के लिए संरचनाओं के निर्माण का अधिकार।

सरकार का पक्ष:

  • अनुमोदन प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करना: नए नियम, प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करेगा और वनों की कमी वाले अन्य राज्यों में वनीकरण की अनुमति देंगे।
  • FRA का राज्यों द्वारा अनुपालन: FRA, 2006 को पूरा करना और उसका अनुपालन करना एक स्वतंत्र प्रक्रिया थी और इसे राज्यों द्वारा वन मंजूरी प्रक्रिया के “किसी भी स्तर पर” किया जा सकता है।

वन संरक्षण अधिनियम (FCA) को अब तक कितनी अच्छी तरह लागू किया गया है?

खराब कार्यान्वयन: वन और पर्यावरण के लिए कानूनी पहल द्वारा 2019 के विश्लेषण में पाया गया है कि वन सलाहकार समिति’ (FAC) आम तौर पर सहमति से संबंधित सवालों की जांच किए बिना भूमि को उपयोग-परिवर्तन के लिए मंजूरी दे देती है, क्योंकि सहमति से संबंधित जांच सुनिश्चित करने के लिए यह राज्य सरकार पर निर्भर होती है।

संबंधित चिंताएं: नए नियम, वनवासियों और इन भूमियों पर रहने वाले आदिवासियों के अधिकारों के बारे में सवालों के निपटारे के बिना ‘वन भूमि’ को उद्योग-क्षेत्र में बदलने की अनुमति देते हैं।

इंस्टा लिंक

वन संरक्षण अधिनियम में संशोधन का मसौदा

अभ्यास प्रश्न:

वन संरक्षण अधिनियम, 1980 में किसी भी संशोधन को संवैधानिक और कानूनी रूप से बाध्य प्रक्रियाओं और सीमाओं के साथ हितधारकों के साथ उचित और गहन परामर्श द्वारा निर्देशित किया जाना चाहिए। चर्चा कीजिए। (250 अंक)

स्रोत: द हिंदू

 

विषय: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में भारतीयों की उपलब्धियाँ; देशज रूप से प्रौद्योगिकी का विकास और नई प्रौद्योगिकी का विकास।

जीनोमिक्स

संदर्भ: हाल ही में, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की विज्ञान परिषद द्वारा ‘जीनोमिक्स’ (Genomics) के समान विस्तार के लिए रिपोर्ट जारी की गयी है। (यह आर्टिकल 13 जुलाई को प्रकाशित ‘CRISPR जीन संपादन’ पर पिछले आर्टिकल का अगला भाग है।)

जीनोमिक्स, किसी व्यक्ति या अन्य जीव में डीएनए (इसके सभी जीन सहित) के पूरे सेट का अध्ययन है। ‘जीनोम’ (Genome) किसी जीव का डीएनए का पूरा सेट होता है।

रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु:

  • पहुंच का विस्तार: रिपोर्ट में वित्तपोषण, प्रयोगशाला के बुनियादी ढांचे, सामग्री और उच्च प्रशिक्षित कर्मियों की कमी को दूर करके, विशेष रूप से ‘निम्न और मध्यम आय वाले देशों’ (low- and middle-income countries – LMICs) में जीनोमिक प्रौद्योगिकियों तक पहुंच बढ़ाने की आवश्यकता पर जोर दिया गया है।
  • समान पहुंच के लिए उपयोग किए जाने वाले उपकरण: उदाहरण- चरणवार मूल्य; कम लागत वाले संस्करणों के लिए बौद्धिक संपदा अधिकारों का साझाकरण; और क्रॉस-सब्सिडी, जिससे एक क्षेत्र में लाभ का उपयोग दूसरे क्षेत्र के लिए किया जाता है।
  • नैतिकता: इसके अनुसार, समृद्ध देशों के काफी बाद, कम संसाधन वाले देशों के लिए ऐसी प्रौद्योगिकियों तक पहुंच प्राप्त करना नैतिक या वैज्ञानिक रूप से उचित नहीं है।
  • रिपोर्ट में, डब्ल्यूएचओ द्वारा अपनी सिफारिशों के कार्यान्वयन के लिए एक जीनोमिक्स समिति बनाए जाने की अनुशंसा की गयी है।

प्रमुख सिफारिशें:

  • जीनोमिक्स का पक्षसमर्थन: सरकारों और अन्य अभिकर्ताओं को जीनोमिक प्रौद्योगिकियों के लाभों के बारे में समझाने के लिए इसकी आवश्यकता है।
  • कार्यान्वयन: स्थानीय नियोजन, वित्त पोषण, आवश्यक कर्मियों का विस्तारित प्रशिक्षण।
  • सहयोग: शिक्षा और उद्योग में सरकारी मंत्रालयों, वित्त पोषण एजेंसियों और वैज्ञानिक संगठनों के बीच सहयोग।
  • प्रभावी निरीक्षण और मानक: यह नैतिक, कानूनी, न्यायसंगत उपयोग को बढ़ावा देने और जीनोमिक विधियों से प्राप्त जानकारी के जिम्मेदार साझाकरण की कुंजी है।

WHO द्वारा उठाए गए कदम:

रोगाणुओं की जीनोमिक निगरानी के लिए ‘डब्ल्यूएचओ’ द्वारा 10 साल की रणनीति तैयार की गयी है।

भारत द्वारा उठाए गए कदम:

  • जीनोमइंडिया (जैव प्रौद्योगिकी विभाग): भारतीय में आनुवंशिक भिन्नता को सूचीबद्ध करना।
  • स्वदेशी कार्यक्रम (सीएसआईआर): भारत में विभिन्न आबादी से संपूर्ण जीनोम अनुक्रम एकत्र करना।
  • INSACOG: भारतीय SARS-CoV-2 जीनोमिक्स कंसोर्टियम।

स्रोत: डब्ल्यूएचओ

 


मुख्य परीक्षा संवर्धन हेतु पाठ्य सामग्री


रोल मॉडल – स्वीकृति और समझ

द काइट रनर, और ए थाउजेंड स्प्लेंडिड सन्स जैसी किताबों के सबसे प्रसिद्ध लेखकों में से एक ‘खालिद होसैनी’ ने हाल ही में ट्रांसजेंडर के रूप में सामने आई अपनी बेटी को एक हार्दिक संदेश लिखा कि उनको अपनी बेटी पर कितना गर्व है और उन्होंने उसके लिए बहादुरी और सच्चाईके मूल्य कैसे सिखाए। ‘खालिद होसैनी’ ने अपनी बेटी के पूरे संघर्ष में उसका साथ दिया और उसके साथ खड़े रहे।

यह इस बात पर प्रकाश डालता है कि परिवार का समर्थन बच्चे के विकास में किस प्रकार सहायक हो सकता है।

Current Affairs

 

 


प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य


जूट मार्क इंडिया’ लोगो

हाल ही में, सरकार ने जूट उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए ‘जूट मार्क इंडिया’  (Jute Mark India) लोगो लॉन्च किया है।

  • जूट मार्क इंडिया (JMI), योजना पारंपरिक जूट और जूट उत्पादों के लिए सामूहिक पहचान और मूल और गुणवत्ता का आश्वासन प्रदान करेगी। इसलिए JMI, शक्तिशाली रचनात्मक कार्य की पहचान होगा जो जूट उत्पाद को गुणवत्ता के साथ परिभाषित करता है, इसे प्रतिस्पर्धा से अलग करता है और इसे ग्राहकों से जोड़ता है।
  • प्रमाणन से घरेलू बाजार और भारत से जूट उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है।

 

मरम्मत का अधिकार

संदर्भ: सरकार “मरम्मत का अधिकार” (Right to Repair) ढांचे पर काम कर रही है, ताकि लोग उपभोक्ता-वस्तुओं, फोन और कार जैसे सामान अपने आप ठीक करवा सकें।

‘मरम्मत का अधिकार’ उपकरण मालिकों को अपने उपकरणों की मरम्मत के लिए व्यावहारिक साधन प्रदान करेगा।

  • कॉपीराइट कानून और पेटेंट कानून के तहत ‘मरम्मत’ (Repair) करवाना वैध है।
  • चिह्नित किए गए क्षेत्र: कृषि उपकरण, मोबाइल फोन/टैबलेट, उपभोक्ता सामान और ऑटोमोबाइल/ऑटोमोबाइल उपकरण।

वर्तमान मुद्दे:

  • नियोजित अप्रचलन (Planned obsolescence) और निर्माताओं द्वारा स्पेयर पार्ट्स पर एकाधिकार: ‘मरम्मत प्रक्रियाओं पर एकाधिकार’, ग्राहक के ‘चुनने के अधिकार’ का उल्लंघन करता है।
  • यदि उपभोक्ता “गैर-मान्यता प्राप्त” इकाई से उत्पाद की मरम्मत करवाते हैं तो अक्सर वारंटी का दावा करने का अधिकार खो देते हैं।
  • कोई मैनुअल नहीं: कंपनियां मैनुअल – जो उपयोगकर्ताओं को आसानी से मरम्मत करने में मदद कर सकता है- के प्रकाशन से बचती हैं। निर्माताओं के पास स्पेयर पार्ट्स पर मालिकाना नियंत्रण होता है (जिस तरह के डिजाइन वे स्क्रू और अन्य के लिए उपयोग करते हैं)।
  • अन्य देश: अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोपीय संघ सहित दुनिया भर के कई देशों में मरम्मत के अधिकार को मान्यता दी गई है।

Current Affairs

 

.वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग

हाल ही में, ‘वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग’ (Commission for Air Quality Management – CAQM) द्वारा दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में वायु प्रदूषण को रोकने के लिए नीति जारी की गयी है।

  • पृष्ठभूमि: वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) की स्थापना अगस्त 2021 में सरकार द्वारा दिल्ली-एनसीआर में वायु गुणवत्ता प्रबंधन करने के लिए एक व्यापक निकाय के रूप में, एक वैधानिक निकाय के रूप में की गई थी।
  • इसका अधिकार-क्षेत्र दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, पंजाब और राजस्थान के केंद्रीय और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का अधिक्रमण करता है।
  • नीतिगत सिफारिशें:- समयबद्ध कार्यान्वयन, बेहतर निगरानी, ​​धूल प्रबंधन, स्वच्छ ईंधन और प्रौद्योगिकी की उपलब्धता, सर्कुलर अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देना।

 

सोडियम आयन (Na-ION) आधारित बैटरी

ह्यूस्टन विश्वविद्यालय ने सोडियम-आयन बैटरी (Sodium Ion (Na-ION) battery) को व्यावसायिक रूप से व्यवहार्य बनाने के लिए इलेक्ट्रोलाइट्स विकसित किए हैं।

  • ‘सोडियम-आयन बैटरी’ एक प्रकार की रिचार्जेबल बैटरी (लिथियम-आयन बैटरी के समान) होती है, इसमें चार्ज वाहक के रूप में सोडियम आयनों का उपयोग किया जाता है।
  • लिथियम-आयन बैटरी के साथ समस्याएं: सीमित संसाधन, उच्च पर्यावरणीय खनन लागत, ज्वलनशीलता के कारण सुरक्षा मुद्दे, कूलर तापमान पर महंगा, कम प्रदर्शन, जटिल रीसाइक्लिंग / पुनर्चक्रण।

Current Affairs

 

स्वच्छ ऊर्जा के लिए पहल

  • एशिया ऊर्जा संक्रमण पहल (Asia energy transition initiative): इसका उद्देश्य एशिया में ‘सतत विकास’ और ‘कार्बन तटस्थता’ हासिल करना है। इसके तहत जापान भारत को ऊर्जा संक्रमण के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करेगा।
  • सिडनी एनर्जी फोरम (ऑस्ट्रेलिया और आईईए): इसका उद्देश्य इंडो-पैसिफिक के लिए एक स्वच्छ ऊर्जा आपूर्ति श्रृंखला को सुरक्षित करना है।
  • अन्य पहलें: अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन, OSOWOG, राष्ट्रीय पवन-सौर संकर नीति, राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन, बायोगैस विद्युत उत्पादन और थर्मल अनुप्रयोग कार्यक्रम (BPGTP)।

 

इंडियन बस्टर्ड गणना

गुजरात और राजस्थान में ओवरहेड केबलों को भूमिगत बिजली पारेषण लाइनों में बदलने के लिए कार्रवाई की कमी के कारण ‘ग्रेट इंडियन बस्टर्ड’ की आबादी में गिरावट जारी है।

  • इनकी संख्या 100 से कम हो गयी है।
  • ‘ग्रेट इंडियन बस्टर्ड’ पक्षी का वर्तमान लिंगानुपात 3-5 मादाओं पर 1 नर है।

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