Print Friendly, PDF & Email

[Mission 2022] INSIGHTS करेंट अफेयर्स+ पीआईबी नोट्स [ DAILY CURRENT AFFAIRS + PIB Summary in HINDI ] 14 July 2022

विषयसूची

सामान्य अध्ययन-II

  1. नगर निगम का वित्तीय स्तर अपर्याप्त
  2. ‘लैंगिक अंतराल सूचकांक’ में भारत की स्थिति
  3. किशोरावस्था का निर्धारण एक ‘सवेदनशील कार्य’: सुप्रीमकोर्ट

सामान्य अध्ययन-III

  1. रोगाणुरोधी प्रतिरोध टीके

मुख्य परीक्षा संवर्धन हेतु पाठ्य सामग्री (नैतिकता/निबंध)

  1. लिंक्डइन डेटा – महिला सशक्तीकरण
  2. मिजोरम में विधायकों और प्रबंधकों के रूप में कार्यरत महिलाओं का अनुपात सर्वाधिक

प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य

  1. लैवेंडर स्केयर
  2. फर्टिलाइजर्स फ्लाइंग स्क्वायड
  3. यादृच्छिक नियंत्रित परीक्षण
  4. अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा
  5. मुखाकृति पहचान तकनीक

 


सामान्य अध्ययनII


 

विषय: संघ एवं राज्यों के कार्य तथा उत्तरदायित्व, संघीय ढाँचे से संबंधित विषय एवं चुनौतियाँ, स्थानीय स्तर पर शक्तियों और वित्त का हस्तांतरण और उसकी चुनौतियाँ।

नगर निगम का वित्तीय स्तर अपर्याप्त

संदर्भ:

नगरपालिका का वित्तीय स्वास्थ्य, नगरपालिका शासन का एक महत्वपूर्ण तत्व है जो यह निर्धारित करता है कि भारत अपने आर्थिक और विकासात्मक वादे को पूरा करता है अथवा नहीं।

  • वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के लागू होने और महामारी के बाद होने वाली राजस्व-क्षति ने स्थिति को और गंभीर कर दिया है।
  • इंडियन इंस्टीट्यूट फॉर ह्यूमन सेटलमेंट्स (IIHS) द्वारा ‘शहरी स्थानीय निकायों’ (ULB) के वित्त और खर्च को समझने के लिए 2012-13 और 2016-17 के बीच 24 राज्यों में 80 ‘शहरी स्थानीय निकायों’ के डेटा का विश्लेषण किया गया।

पृष्ठभूमि:

वर्ष 1992 में 74वां संविधान संशोधन अधिनियम पारित किया गया था, जिसमें शहरों और कस्बों में शासन की सबसे निचली इकाई के रूप में ‘शहरी स्थानीय निकायों’ (Urban Local Bodies – ULBs) को स्थापित करने और शक्तियों के हस्तांतरण को अनिवार्य किया गया था।

अधिनियम में, शहरी स्थानीय निकायों के वित्तीय सशक्तिकरण हेतु संवैधानिक प्रावधान किए गए थे।

प्रमुख निष्कर्ष:

शहरी स्थानीय निकायों के स्वयं के राजस्व का हिस्सा:

  • शहरी स्थानीय निकायों के स्वयं के राजस्व के स्रोत उनके कुल राजस्व के आधे से भी कम है, जबकि इनकी अधिकांश क्षमता का इस्तेमाल नहीं किया जा रहा है।
  • ULB के प्रमुख राजस्व स्रोत- कर, शुल्क, जुर्माना और प्रभार, तथा केंद्र और राज्य सरकारों से अंतरण हैं, जिसे ‘अंतर सरकारी अंतरण’ (Intergovernmental Transfers – Igts) के रूप में जाना जाता है।

अंतर सरकारी अंतरण (Igt) पर निर्भरता:

Current Affairs

 

कई ‘शहरी स्थानीय निकाय’ (ULBs),  अंतर सरकारी अंतरण (Igts) पर अत्यधिक निर्भर हैं। केंद्र सरकार द्वारा किए जाने वाले अंतरण, केंद्रीय वित्त आयोगों की अनुशंसाओं के अनुसार और विशिष्ट सुधारों के लिए अनुदान के माध्यम से निर्धारित किए जाते हैं, जबकि राज्य सरकार द्वारा किए जाने वाले अंतरण, सहायता अनुदान और राज्य के स्थानीय करों के संग्रह के अंतरण के रूप में होते हैं।

राजस्व स्रोतों में अंतर:

 

‘कर राजस्व’, बड़े शहरों के लिए राजस्व का सबसे बड़ा स्रोत है, जबकि छोटे शहर अनुदान पर अधिक निर्भर रहते हैं। विभिन्न आकार के शहरों में राजस्व स्रोतों की संरचना में काफी अंतर होता है।

संचालन और रखरखाव:

Current Affairs

 

  • यद्यपि, संचालन और रखरखाव (Operations and maintenance – O&M) खर्च में बढ़ोत्तरी हो रही है, किंतु अभी भी यह अपर्याप्त हैं।
  • बुनियादी ढांचे के रखरखाव और सेवा वितरण की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए O&M खर्च महत्वपूर्ण हैं।
  • शहरी स्थानीय निकायों के कुल राजस्व व्यय में ‘संचालन और रखरखाव’ (O&M) व्यय का हिस्सा 2012-13 में लगभग 30% से बढ़कर 2016-17 में लगभग 35% हो गया।

सुझाव:

Current Affairs

 

 

इंस्टा लिंक्स:

74वां संविधान संशोधन अधिनियम

अभ्यास प्रश्न:

भारत में स्थानीय स्वशासन प्रणाली शासन का एक प्रभावी साधन साबित नहीं हुई है।” इस कथन का समालोचनात्मक परीक्षण करें और स्थिति को सुधारने के लिए अपने विचार दें। (यूपीएससी 2017)

स्रोत: द हिंदू

 

विषय: केन्द्र एवं राज्यों द्वारा जनसंख्या के अति संवेदनशील वर्गों के लिये कल्याणकारी योजनाएँ और इन योजनाओं का कार्य-निष्पादन; इन अति संवेदनशील वर्गों की रक्षा एवं बेहतरी के लिये गठित तंत्र, विधि, संस्थान एवं निकाय।

‘लैंगिक अंतराल सूचकांक’ में भारत की स्थिति

संदर्भ:

विश्व आर्थिक मंच (World Economic Forum – WEF) द्वारा जारी ‘वैश्विक लैंगिक अंतराल सूचकांक’, 2022 (Gender Gap Index, 2022) में भारत कुल 146 देशों में 135वें स्थान पर है।

भारत “स्वास्थ्य और उत्तरजीविता” (Health and Survival) उप-सूचकांक में, दुनिया में सबसे खराब प्रदर्शन करने वाला देश है, जिसमें यह 146 वें स्थान पर है।

प्रमुख बिंदु:

  • ग्लोबल जेंडर रिपोर्ट, 2022 के अनुसार, अब भारत को ‘लैंगिक समानता’ (Gender Parity) तक पहुंचने में 132 साल लगेंगे।
  • वर्ष 2021 के बाद इस अंतराल में केवल चार साल की कमी हुई है और देश में लैंगिक अंतराल लगभग 1% है।
  • अपने पड़ोसियों की तुलना में भारत इस सूचकांक में काफी खराब स्थान पर है, और बांग्लादेश (71), नेपाल (96), श्रीलंका (110), मालदीव (117) और भूटान (126) से पीछे है।
  • केवल ईरान (143), पाकिस्तान (145) और अफगानिस्तान (146) का प्रदर्शन दक्षिण एशिया में भारत से भी खराब रहा।
  • 2021 में भारत 156 देशों में 140वें स्थान पर था।

 

संकेतक:

रिपोर्ट में 156 देशों द्वारा चार आयामों के मद्देनज़र लैंगिक समानता की दिशा में की गई प्रगति का मूल्यांकन किया जाता है:

  1. आर्थिक भागीदारी और अवसर,
  2. शैक्षणिक उपलब्धि;
  3. स्वास्थ्य एवं जीवन रक्षा; और
  4. राजनीतिक सशक्तीकरण।

सूचकांक में, उच्चतम स्कोर 1 होता है, जो ‘समानता’ को प्रदर्शित करता है, तथा निम्नतम स्कोर ‘0’ अर्थात ‘शून्य’ होता है, जो ‘असमानता’ के स्तर को दर्शाता है।

इसकी व्याख्या ‘लैंगिक समानता’ की ओर तय की गई दूरी या ‘लैंगिक अंतराल’ में कमी के प्रतिशत के रूप में की जा सकती है।

  • भारत, सूचकांक के चार आयामों – ‘स्वास्थ्य एवं जीवन रक्षा’ में 146, ‘आर्थिक भागीदारी और अवसर’ में 143, ‘शैक्षणिक उपलब्धि’ में 107 और राजनीतिक सशक्तिकरण में 48वें स्थान पर है।
  • रिपोर्ट में कहा गया है, कि भारत का 629 का स्कोर पिछले 16 वर्षों में इसका सातवां उच्चतम स्कोर था।
  • भारत ने 2021 से ‘आर्थिक भागीदारी और अवसर’ में भी “प्रगति’ की है, हालांकि रिपोर्ट में कहा गया है कि ‘श्रम बल की भागीदारी’ में पुरुषों (5 प्रतिशत अंक) और महिलाओं (3 प्रतिशत अंक) दोनों के लिए कम हुई है।

विभिन्न उप-सूचकांकों पर भारत की प्रवृत्ति:

आर्थिक भागीदारी और अवसर: इसमें, श्रम शक्ति में शामिल महिलाओं का प्रतिशत, समान कार्य के लिए समान वेतन, अर्जित आय आदि जैसे मीट्रिक शामिल हैं।

  • भारत को इस आयाम में 146 देशों में से 143वें स्थान पर रखा गया है, हालांकि इसके स्कोर में 2021 के 326 से 0.350 तक सुधार हुआ है।

शैक्षणिक उपलब्धि: इस उप-सूचकांक में साक्षरता दर और प्राथमिक, माध्यमिक और तृतीयक शिक्षा स्तर पर नामांकन दर जैसे मेट्रिक्स शामिल हैं:

  • इस उपसूचकांक में, भारत 146 में से 107वें स्थान पर है, और इसका स्कोर पिछले वर्ष से मामूली रूप से खराब हुआ है। वर्ष 2021 में भारत 156 में से 114वें स्थान पर था।
  • भारत का स्कोर वैश्विक औसत से काफी कम है और इस मीट्रिक पर भारत से केवल ईरान, पाकिस्तान और अफगानिस्तान ही पीछे हैं।

स्वास्थ्य एवं जीवन रक्षा: इसमें जन्म के समय लिंगानुपात (प्रतिशत में) और स्वस्थ जीवन प्रत्याशा (वर्षों में)- दो मीट्रिक शामिल हैं।

  • इस उपसूचकांक में, भारत सभी देशों में अंतिम (146) स्थान पर है।
  • इसका स्कोर 2021 से नहीं बदला है, पिछले वर्ष यह 156 देशों में से 155वें स्थान पर था।

राजनीतिक सशक्तीकरण: इसमें, संसद में महिलाओं का प्रतिशत तथा मंत्री पद आदि में महिलाओं का प्रतिशत जैसे मापीय (मेट्रिक्स) शामिल होते हैं:

  • सभी उप-सूचकांकों में, इस आयाम में भारत का स्थान सर्वोच्च (146 में से 48वां) है।
  • इस उप-सूचकांक में, आइसलैंड 874 के स्कोर के साथ 1 और बांग्लादेश 0.546 के स्कोर के साथ 9वें स्थान पर है।

विश्व आर्थिक मंच (WEF) द्वारा प्रकाशित कुछ प्रमुख रिपोर्टें:

  1. ऊर्जा संक्रमण सूचकांक।
  2. वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता रिपोर्ट
  3. ग्लोबल आईटी रिपोर्ट (WEF के साथ INSEAD, और कॉर्नेल यूनिवर्सिटी इस रिपोर्ट को प्रकाशित करती है।
  4. ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट।
  5. वैश्विक जोखिम रिपोर्ट।
  6. वैश्विक यात्रा और पर्यटन रिपोर्ट।

इंस्टा लिंक्स:

विश्व आर्थिक मंच

अभ्यास प्रश्न:

सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली की सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज प्रदान करने की सीमाएँ हैं। क्या आपको लगता है कि निजी क्षेत्र इस अंतर को पाटने में मदद कर सकता है? आप और कौन से व्यवहार्य विकल्प सुझाएंगे? (यूपीएससी 2015)

स्रोत: द हिंदू, इंडियन एक्सप्रेस

 

विषय: सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय।

किशोरावस्था का निर्धारण एक ‘सवेदनशील कार्य’: सुप्रीमकोर्ट

संदर्भ:

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक मादेते हुए कहा कि, हत्या जैसे जघन्य अपराधों के आरोपी 16 से 18 वर्ष की आयु के किशोरों पर वयस्कों की तरह मुकदमा चलाया जा सकता है या नहीं- यह तय करना काफी संवेदनशील और अति निपुणता का कार्य है। यह तय करने का कार्य, देश भर में ‘किशोर न्याय बोर्डों’ और बाल-न्यायालयों के विवेक और लापरवाह “ज्ञान” पर छोड़ने की बजाय “सावधानीपूर्वक मनोवैज्ञानिक जांच” पर आधारित होना चाहिए।

  • शीर्ष अदालत का फैसला सीबीआई और कक्षा 2 के एक बच्चे के रिश्तेदार द्वारा दायर अपील को खारिज करते हुए आया। वर्ष 2017 में इस बच्चे की अपने गुरुग्राम स्कूल के वॉशरूम में कथित तौर पर हत्या कर दी गई थी।
  • शीर्ष अदालत ने ‘निर्धारण’ को उलटने के उच्च न्यायालय के फैसले को बरकरार रखा, और हाल ही में 21 वर्ष की आयु को पूरा करने वाले अभियुक्त के पुनः ‘प्रारंभिक आंकलन’ के लिए मामले को किशोर न्याय बोर्ड को वापस भेज दिया।

पृष्ठभूमि:

किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण) अधिनियम 2015 की धारा 15: इस धारा के तहत गंभीर अपराधों में शामिल 16 से 18 वर्ष की आयु के किशोरों की मानसिक और शारीरिक क्षमता का “प्रारंभिक मूल्यांकन” करना आवश्यक है।

मूल्यांकन का उद्देश्य बच्चे की अपराध के परिणामों और उन परिस्थितियों को समझने की क्षमता का आकलन करना है जिनमें उसने कथित रूप से अपराध किया है।

बोर्ड की राय: यदि किशोर न्याय बोर्ड की राय है कि किशोर को ‘वयस्क’ के रूप में नहीं माना जाना चाहिए, तो इस मामले को बाल-अदालत में नहीं ले जाएगा और किशोर न्याय बोर्ड स्वंय ही मामले की सुनवाई करेगा।

किशोर देखरेख (Juvenile care) बनाम बाल-अदालत (children court): किसी मामले में, यदि बच्चा दोषी पाया जाता है, तो उसे तीन साल के लिए किशोर देखभाल में भेजा जाएगा।

दूसरी ओर, यदि किशोर न्याय बोर्ड, मामले को बाल न्यायालय में सुनवाई के लिए वयस्क के रूप में भेजने का निर्णय करता है, तो किशोर, यदि दोषी है, तो उसे आजीवन कारावास भी भुगतना होगा।

सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देश:

  • बच्चे का मूल्यांकन करने वाले बोर्ड में कम से कम एक बाल मनोवैज्ञानिक होना चाहिए।
  • बोर्ड को दोबारा अनुभवी मनोवैज्ञानिकों या मनोसामाजिक कार्यकर्ताओं की सहायता लेनी चाहिए।

किशोर न्याय बोर्ड:

किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण) अधिनियम 2000 (2006 में संशोधित) के तहत अपराध के आरोपी या किसी अपराध के लिए हिरासत में लिए गए किशोरों को ‘किशोर न्याय बोर्ड’ (Juvenile Justice Board – JJB) के समक्ष लाया जाता है।

  • किशोर न्याय बोर्ड (JJB), बच्चे को उनके कार्यों को समझने और भविष्य में उन्हें आपराधिक गतिविधियों से दूर रखने के लिए परामर्श देता है।
  • ‘किशोर न्याय बोर्ड’ में प्रथम श्रेणी के न्यायिक मजिस्ट्रेट और दो सामाजिक कार्यकर्ता शामिल होते हैं, जिनमें से कम से कम एक महिला होनी चाहिए।
  • ‘किशोर न्याय बोर्ड’ का उद्देश्य चार महीने की अवधि के भीतर मामलों को हल करना है।
  • अधिकांश परिस्थितियों में किशोर को JJB द्वारा जमानत पर रिहा किया जा सकता है।

इंस्टा लिंक्स:

किशोर न्याय संशोधन अधिनियम 2021

अभ्यास प्रश्न:

  1. राष्ट्रीय बाल नीति के मुख्य प्रावधानों की जांच करें और इसके कार्यान्वयन की स्थिति पर प्रकाश डालें। (यूपीएससी 2016)
  2. किशोर न्याय संशोधन अधिनियम 2021 के द्वारा जिलाधिकारी को और सशक्त किया गया है, समालोचनात्मक विश्लेषण करें।

स्रोत: द हिंदू

 


सामान्य अध्ययनIII


 

विषय: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में भारतीयों की उपलब्धियाँ; देशज रूप से प्रौद्योगिकी का विकास और नई प्रौद्योगिकी का विकास।

रोगाणुरोधी प्रतिरोधक टीके

 

संदर्भ: WHO ने ‘रोगाणुरोधी प्रतिरोध’ (AMR) बैक्टीरिया से होने वाले संक्रमण को रोकने के लिए विकसित किए जा रहे टीकों पर अपनी पहली रिपोर्ट जारी की है।

  • इस रिपोर्ट का उद्देश्य ‘रोगाणुरोधी प्रतिरोध’ (Antimicrobial resistance) को कम करने के लिए व्यवहार्य टीकों में निवेश और अनुसंधान का मार्गदर्शन करना है।

AMR: जब रोगाणुओं द्वारा एक तंत्र विकसित कर लिया जाता है, जो उन्हें रोगाणुरोधी दवाओं के प्रभाव से बचाता है, तब ‘रोगाणुरोधी प्रतिरोध’ (Antimicrobial resistance – AMR) की स्थिति उत्पन्न होती है। इससे, किसी संक्रमण का इलाज मुश्किल हो जाता है।

  • रोगाणुओं के सभी वर्ग ‘प्रतिरोध’ विकसित करने में सक्षम होते हैं। कवक, एंटी-फंगल प्रतिरोध विकसित करता है। वायरस, एंटीवायरल प्रतिरोध विकसित करते हैं।

रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु:

  • ‘रोगाणुरोधी प्रतिरोध’ की मूक महामारी प्रमुख बढ़ती सार्वजनिक स्वास्थ्य चिंता का विषय है। इसके परिणामस्वरूप सालाना लगभग 5 मिलियन लोगों की मौत होती है।
  • न्यूमोकोकल रोग (स्ट्रेप्टोकोकस निमोनिया), हीमोफिलस इन्फ्लुएंजा टाइप बी (Hib), तपेदिक (माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस) और टाइफाइड बुखार (साल्मोनेला टाइफी) के खिलाफ टीके अभी भी प्रभावी हैं।
  • अधिक प्रभावी टीकों की आवश्यकता: तपेदिक (टीबी) के खिलाफ वर्तमान ‘बेसिलस कैलमेट-गुएरिन’ (Bacillus Calmette-Guérin – BCG) टीके पर्याप्त रूप से टीबी के खिलाफ सुरक्षा प्रदान नहीं कर पाते हैं, इसलिए टीबी के खिलाफ अधिक प्रभावी टीकों के विकास को तेज किया जाना चाहिए।

डब्ल्यूएचओ द्वारा की गयी सिफारिशें:

  • पहले से मौजूद टीकों के लिए समान और वैश्विक पहुंच।
  • विघटनकारी दृष्टिकोण की जरूरत: कोविड 19 वैक्सीन के विकास और mRNA वैक्सीन से मिला सबक, बैक्टीरिया के खिलाफ टीकों के विकास का पता लगाने के लिए अद्वितीय अवसर प्रदान करता हैं।
  • चुनौतियों पर काबू पाने की आवश्यकता: जैसे अस्पताल से प्राप्त संक्रमण (Hospital-Acquired Infections – HAI) से जुड़े रोगजनकों, अस्पताल में भर्ती सभी रोगियों के बीच लक्षित आबादी को परिभाषित करने में कठिनाई; वैक्सीन प्रभावकारिता परीक्षणों की लागत और जटिलता; और HAI के खिलाफ टीकों के लिए नियामक और/या नीतिगत मिसाल का अभाव।
  • आसान नियामक आवश्यकता: वैक्सीन को विकसित करना काफी महंगा और वैज्ञानिक रूप से चुनौतीपूर्ण होता है। इसके अलावा इसमें विफलता दर काफी अधिक होती है, इसलिए, सरकारी और निजी क्षेत्र से सहयोग की आवश्यकता है।

Current Affairs

 

इंस्टा लिंक:

दवाओं के प्रति जीवाणु प्रतिरोध का वैश्विक भार

स्रोत: डब्ल्यूएचओ

 


मुख्य परीक्षा संवर्धन हेतु पाठ्य सामग्री


अधिक महिलाएं उद्यमी मार्ग अपना रही हैं: लिंक्डइन डेटा – महिला सशक्तीकरण

2016 और 2021 के बीच महिला संस्थापकों की हिस्सेदारी 2.68 गुना बढ़ी है, जबकि पुरुष संस्थापकों की हिस्सेदारी इसी अवधि के दौरान लगभग 1.79 गुना बढ़ोत्तरी हुई है।

  • वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की 2022 ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट में प्रकाशित नए लिंक्डइन डेटा (LinkedIn data) से पता चलता है, कि भारत में ‘नेतृत्व’ में महिलाओं का असंगत रूप से कम प्रतिनिधित्व होने के बावजूद, अब पुरुषों की तुलना में अधिक महिलाएं उद्यमिता के अवसरों की तलाश कर रही हैं।
  • यह इस बात पर प्रकाश डालता है कि महिलाओं में, पूर्व-धारणाओं को तोड़ने की क्षमता है और यदि उन्हें पुरुषों के समान अवसर दिया जाए तो वे पुरुषों की तुलना में बराबर या उससे भी अधिक हासिल कर सकती हैं।

Current Affairs

 

मिजोरम में विधायकों और प्रबंधकों के रूप में कार्यरत महिलाओं का अनुपात सर्वाधिक

जुलाई 2020-जून 2021 के लिए ‘आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण’ (Periodic Labour Force Survey – PLFS) के अनुसार:

  • विधायक, वरिष्ठ अधिकारियों और प्रबंधकों के रूप में कार्यरत महिला-पुरुष श्रमिकों का अनुपात 70.9% है।
  • नागालैंड को छोड़कर लगभग सभी पूर्वोत्तर राज्यों में वरिष्ठ स्तर की नौकरियों में दो अंकों का मजबूत प्रतिनिधित्व है।

महिला सांसदों की हिस्सेदारी का वैश्विक औसत लगभग 24% है। 17वीं लोकसभा में भारत में लगभग 14% महिला सांसद हैं।

Current Affairs 

 

 


प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य


लैवेंडर स्केयर

संदर्भ: जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप का नाम ‘जेम्स वेब’ के नाम पर रखा गया था, जिन्होंने 1961 से 1968 तक अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी का नेतृत्व किया था, और कथित तौर पर नासा में “लैवेंडर स्केयर” (Lavender Scare) में एक भूमिका निभाई थी।

‘लैवेंडर स्केयर’, 1950 और 1960 के दशक के दौरान अमेरिकी सरकार के कार्यालयों में काम करने वाले LGBTQ कर्मचारियों का पार्श्वीकरण (Marginalization) करना था। इसे अक्सर “विच-हंट” के रूप में वर्णित किया जाता है, जिसमे LGBTQ समुदाय से होने का संदेह होने पर कर्मचारियों को उनकी नौकरी से निकाल दिया गया था।

 

फर्टिलाइजर्स फ्लाइंग स्क्वायड

उर्वरक विभाग ने उर्वरकों के किसी भी विपथन, कालाबाजारी या मिलावट की जांच के लिए एक समर्पित अधिकारी को ‘उर्वरक उड़न दस्ते’ (Fertilizers Flying Squad) के रूप नियुक्त किया है।

  • वस्तुस्थिति: लगभग 10 लाख टन (दुनिया भर में 6000 करोड़ के आसपास) कृषि-ग्रेड यूरिया (कोटिंग की आवश्यकता के बावजूद) हर साल औद्योगिक उपयोग के लिए विपथित (diverted) किया जा रहा है।
  • सब्सिडी वाले यूरिया को मुख्य रूप से उद्योगों की ओर मोड़ा जा रहा है।
  • कृषि-ग्रेड यूरिया ‘नीम-लेपित’ होती है जबकि तकनीकी-ग्रेड यूरिया ‘नीम-लेपित’ नहीं होती है। कुछ रासायनिक प्रक्रिया के माध्यम से ‘नीम-कोटिंग’ को हटा दिया जाता है और फिर यूरिया का उपयोग औद्योगिक उद्देश्यों के लिए किया जाता है।
  • घाटा: भारत की यूरिया की वार्षिक घरेलू मांग लगभग 350 लाख टन है, जिसमें से 260 लाख टन स्थानीय स्तर पर उत्पादित किया जाता है जबकि शेष का आयात किया जाता है।
  • सब्सिडी: उच्च अंतरराष्ट्रीय कीमतों के कारण सरकार का वार्षिक उर्वरक सब्सिडी बिल चालू वित्त वर्ष के दौरान लगभग 2.5 लाख करोड़ रुपये होने की संभावना है।
  • उद्योगों के लिए अत्यधिक आवश्यकता: औद्योगिक उपयोग के लिए लगभग 13-14 लाख टन तकनीकी-ग्रेड यूरिया की वार्षिक आवश्यकता है, जिसमें से देश में केवल 1.5 लाख टन का उत्पादन होता है।
  • यूरिया के उपयोग: इसका उपयोग विभिन्न उद्योगों जैसे राल / गोंद, प्लाईवुड, क्रॉकरी, मोल्डिंग पाउडर, पशु चारा, डेयरी और औद्योगिक खनन विस्फोटकों में किया जाता है।

 

यादृच्छिक नियंत्रित परीक्षण

नोबेल पुरस्कार विजेता माइकल आर क्रेमर ने बेहतर नीति विश्लेषण और निर्माण के लिए भारत में ‘यादृच्छिक नियंत्रित परीक्षण’ (Randomized Controlled Trial – RCT) की मांग की है।

‘यादृच्छिक नियंत्रित परीक्षण’ (RCT): यह प्रभाव मूल्यांकन का एक प्रयोगात्मक रूप है जिसमें कार्यक्रम या नीति हस्तक्षेप प्राप्त करने वाली आबादी को ‘योग्य आबादी’ में से यादृच्छिक रूप से चुना जाता है, और एक नियंत्रण समूह को उसी योग्य आबादी से यादृच्छिक रूप से चुना जाता है।

  • उदाहरण के लिए, क्या मोबाइल टीकाकरण वैन और/या अनाज की एक बोरी उपलब्ध कराने से ग्रामीणों को अपने बच्चों का टीकाकरण करने के लिए प्रोत्साहन मिलेगा, और फिर एक आरसीटी के तहत, गांव के परिवारों को समूहों में विभाजित किया जाएगा, इसके विभिन्न पहलुओं का अध्ययन किया जाएगा, विभिन्न प्रयोग किए जाएंगे और इस तरह के आधार पर प्राप्त साक्ष्य यह तय करेंगे कि क्या करने की जरूरत है।
  • अर्थशास्त्री अभिजीत बनर्जी और एस्थर डुफ्लो के साथ क्रेमर को वैश्विक गरीबी को कम करने के लिए उनके प्रयोगात्मक दृष्टिकोण के लिए अल्फ्रेड नोबेल की स्मृति में आर्थिक विज्ञान में 2019 स्वेरिग्स रिक्सबैंक पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

 

अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा

संदर्भ: यद्यपि, अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (International North-South  Transport Corridor – INSTC) रसद मुद्दों और ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंधों की वजह से बाधित हो रहा है, फिर भी 39 कंटेनरों के साथ एक रूसी ट्रेन, भारत आने के लिए ईरान में प्रवेश कर चुकी है।

INSTC के बारे में

सितंबर 2000 में भारत, ईरान और रूस द्वारा सदस्य देशों के बीच परिवहन सहयोग को बढ़ावा देने के उद्देश्य से इस बहु-मॉडल परिवहन परियोजना ‘अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे’ (International North South Transport Corridor- INSTC) पर हस्ताक्षर किए गए थे।

  • यह कॉरिडोर, हिंद महासागर और फारस की खाड़ी को, ईरान तथा सेंट पीटर्सबर्ग से होकर गुजरते हुए कैस्पियन सागर से जोड़ने वाला सबसे छोटा बहु-मॉडल परिवहन मार्ग होगा।
  • INSTC माल ढुलाई के लिए जहाज, रेल और सड़क मार्ग का 7,200 किलोमीटर लंबा बहु-विधिक (मल्टी-मोड) नेटवर्क है।
  • यह मार्ग ईरान और अजरबैजान के जरिए भारत और रूस को जोड़ता है।

 

मुखाकृति पहचान तकनीक

संदर्भ: ऑस्ट्रेलिया में दो रिटेल चेन, ‘बनिंग्स’ (Bunnings) और केमार्ट (Kmart) की जांच की जा रही है कि वे ‘फेशियल रिकग्निशन टेक्नोलॉजी’ (Facial recognition technology) का इस्तेमाल कर रहे हैं और अपने ग्राहकों का डेटा बिना उनकी जानकारी के स्टोर कर रहे हैं।

‘फेशियल रिकग्निशन’ (मुखाकृति पहचान) तकनीक लोगों के चेहरों को तस्वीरों या वीडियो फुटेज से एक अनोखे फेसप्रिंट के रूप में कैप्चर करके काम करती है। यह तकनीक किसी व्यक्ति के चेहरे को सत्यापित करने में मदद कर सकती है,  किंतु यह गोपनीयता संबंधी कई मुद्दों को भी उठाती है।

भारत में इस तकनीक का प्रयोग:

  • तेलंगाना पुलिस ने अपनी ‘मुखाकृति पहचान सुविधा’ शुरू की। (2018)
  • नागरिक उड्डयन मंत्रालय की “डिजीयात्रा” ने हैदराबाद हवाई अड्डे पर ‘मुखाकृति पहचान प्रणाली’ का उपयोग किया है।
  • NCRB का अपराध और आपराधिक ट्रैकिंग नेटवर्क और सिस्टम (CCTNS) स्वचालित चेहरे की पहचान का उपयोग करता है।