[Mission 2022] INSIGHTS करेंट अफेयर्स+ पीआईबी नोट्स [ DAILY CURRENT AFFAIRS + PIB Summary in HINDI ] 30 March 2022

विषयसूची

 

सामान्य अध्ययन-I

  1. ला नीना एवं गर्म आर्कटिक के मध्य अंतःक्रिया

सामान्य अध्ययन-II

  1. परिसीमन आयोग
  2. राष्ट्रीय महिला आयोग
  3. ब्रिक्स
  4. हूती विद्रोही और यमन में युद्ध

सामान्य अध्ययन-III

  1. असम मेघालय सीमा विवाद

प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य

  1. फ्रंटियर रिपोर्ट 2022 
  2. एक सींग वाला गैंडा:
  3. सरिस्का बाघ अभयारण्य 
  4. पी-8आई स्क्वाड्रन
  5. भारत की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था

 


सामान्य अध्ययनI


 

 

विषय: भूकंप, सुनामी, ज्वालामुखीय हलचल, चक्रवात आदि जैसी महत्त्वपूर्ण भू-भौतिकीय घटनाएँ, भौगोलिक विशेषताएँ और उनके स्थान आदि।

 

ला नीना एवं गर्म आर्कटिक के मध्य अंतःक्रिया


(Interaction between La Niña and the warm Arctic)

संदर्भ:

हाल ही में, ‘भारतीय मौसम विज्ञान विभाग’ (IMD) द्वारा मौसम की पहली ‘उष्ण लहर’ (Heat Wave) और ‘प्रचंड उष्ण लहर’ (Severe Heat Wave) के लिए 11 मार्च और पहले निम्न वायुदाब (Depression) के लिए 3 मार्च की तिथि घोषित की गयी है।

विशेषज्ञों का कहना है, कि पिछले वर्षों की तुलना में यह स्थितियां काफी पहले बन रही है और इसका कारण अप्रत्याशित जलवायु विसंगति (Climatic Anomaly) हो सकता है, जिसका संबंध ‘ग्लोबल वार्मिंग’ से हो सकता है।

विशेषज्ञों के अनुसार:

समयपूर्व उष्ण लहरों, शुरुआती निम्नदाब और अजीब धूल भरी आंधी आने के पीछे का कारण, उत्तर-दक्षिण निम्नदाब प्रतिरूप (North-South Low Pressure Pattern) का निरंतर बना रहना है। 

  • यह प्रतिरूप जब भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर में ‘ला नीना’ परिघटना घटित होती है, तब सर्दियों के दौरान भारत के ऊपर निर्मित होता है।
  • पिछली बार, 1998-2000 के दौरान ‘ला नीना’ (La Niña) की स्थिति तीन साल तक बनी रही थी और वर्ष 2000 में भी मार्च महीने में एक चक्रवात आया था।

ला नीना का प्रभाव:

  • ‘ला नीना’ (La Niña) के दौरान पूर्वी और मध्य प्रशांत महासागर में समुद्र की सतह का तापमान औसत से अधिक कम हो जाता है।
  • यह वायुदाब में परिवर्तन के माध्यम से, समुद्र की सतह पर बहने वाली व्यापारिक हवाओं को प्रभावित करता है।
  • व्यापारिक पवनें इस विक्षोभ को अन्यत्र स्थानों तक ले जाती हैं और विश्व के बड़े भागों को प्रभावित करती हैं।
  • भारत में, यह घटना ज्यादातर आर्द्र और ठंडी सर्दियों से जुड़ी होती है।

व्यापक चिंता का विषय:

यदि ‘ला नीना’ और उष्ण आर्कटिक के बीच परस्पर अंतःक्रिया वास्तव में हो रही है, तो यह मानव जनित ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन से प्रेरित ‘ग्लोबल वार्मिंग’ का प्रभाव है।

Current Affairs

 

‘अल नीनो’ और ‘ला नीना’ क्या हैं?

‘अल नीनो’ (El Niño) और ला नीना ‘(La Niña)’, उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर में होने वाली दो प्राकृतिक जलवायु परिघटनाएं हैं, और ये संपूर्ण विश्व में मौसमी स्थितियों को प्रभावित करती हैं।

    • ‘अल नीनो’ परिघटना के दौरान, ‘मध्य और पूर्वी उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर’ में सतहीय तापमान में वृद्धि हो जाती है, और ‘ला नीना’ की स्थिति में, पूर्वी प्रशांत महासागर का सतहीय तापमान सामान्य से कम हो जाता है।
  • संयुक्त रूप से इन दोनों परिघटनाओं को ‘ENSO’ याअल-नीनो दक्षिणी दोलन’ (El Niño Southern Oscillation) कहा जाता है। 

अल नीनोपरिघटना की उत्पत्ति संबंधी कारण:

  1. अल नीनो की स्थिति, जलवायु प्रतिरूप (Climate Pattern) में कोई विसंगति होने पर निर्मित होती है।
  2. पश्चिम की ओर बहने वाली व्यापारिक हवाएं भूमध्य रेखा के समीप आने पर क्षीण हो जाती हैं और परिणामस्वरूप वायुदाब में परिवर्तन के कारण, सतही जल पूर्व दिशा में उत्तरी दक्षिण अमेरिका के तट की ओर बहने लगता है।
  3. मध्य और पूर्वी प्रशांत महासागरीय क्षेत्रों में छह महीने से अधिक समय तक तापमान अधिक रहता हैऔर इसके परिणामस्वरूप ‘अल नीनो’ की स्थिति पैदा हो जाती है।

Current Affairs

 

ला-नीना के कारण मौसम में होने वाले बदलाव:

  1. ला-नीना के कारण, हॉर्न ऑफ़ अफ्रीका और मध्य एशिया में औसत से कम वर्षा होगी।
  2. पूर्वी अफ्रीका को सामान्य स्थितियों से अधिक सूखे का सामना करना पड़ सकता है, इसके साथ ही इस क्षेत्र में रेगिस्तान टिड्डियों के हमलों के कारण खाद्य सुरक्षा की स्थिति भयावह हो सकती है।
  3. ला-नीना के आने से दक्षिणी अफ्रीका में सामान्य से अधिक वर्षा हो सकती है।
  4. इससे दक्षिण-पश्चिम हिंद महासागर उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की तीव्रता में कमी हो सकती है, जिससे इस क्षेत्र में मौसम व्यापक रूप से प्रभावित होगा।
  5. इसके आने से दक्षिण पूर्व एशिया, कुछ प्रशांत द्वीप समूहों और दक्षिण अमेरिका के उत्तरी क्षेत्र में औसत से अधिक वर्षा होने की उम्मीद है।
  6. ला-नीना के आने से भारत में सामान्य से अधिक वर्षा होगी, जिससे देश के विभिन्न भागों में बाढ़ की प्रवणता में वृद्धि होगी।

Current Affairs

 

इंस्टा जिज्ञासु:

मार्च 2022 में 130 साल में पहली बार दो निम्नदाब निर्मित हुए थे। दोनों निम्नदाब तीव्र होकर ‘गंभीर निम्नदाब’ (Deep Depressions) में परिवर्तित हो गए और इनमे से एक निम्नदाब की वजह से मार्च में चक्रवात आने की घटना भी हुई, जोकि इस समय दुर्लभ होता है। 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. अल-नीनो क्या है?
  2. ला-नीना क्या है?
  3. ENSO क्या है?
  4. ये परिघटनाएँ कब होती हैं?
  5. एशिया, अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया पर ENSO का प्रभाव।

मेंस लिंक:

ला-नीना मौसमी परिघटना के भारत पर प्रभाव संबंधी चर्चा कीजिए।

https://www.downtoearth.org.in/news/climate-change/warm-arctic-waves-la-ni-a-to-blame-for-early-heat-waves-depressions-experts-82132

स्रोत: डाउन टू अर्थ।

 

 


सामान्य अध्ययनII


 

 

विषय: भारतीय संविधानऐतिहासिक आधार, विकास, विशेषताएँ, संशोधन, महत्त्वपूर्ण प्रावधान और बुनियादी संरचना।

 

परिसीमन आयोग


(Delimitation Commission)

संदर्भ:

केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में विधानसभा और लोकसभा क्षेत्रों को फिर से परिभाषित करने के लिए परिसीमन आयोग’ (Delimitation Commission) के गठन संबंधी केंद्र सरकार के फैसले को चुनौती देते हुए  कश्मीर के दो निवासियों द्वारा सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है।

संबंधित प्रकरण:

याचिका में, जम्मू और कश्मीर में सीटों की संख्या 107 से बढ़ाकर 114 (पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में 24 सीटों सहित) किए जाने को, संवैधानिक प्रावधानों जैसे कि अनुच्छेद 14, 81, 82, 170, 330 और 332 तथा वैधानिक प्रावधानों, विशेष रूप से ‘जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019’ की धारा 63 के ‘अधिकारातीत’ (Ultra vires) घोषित किया जाने की मांग की गयी है।

याचिका में कहा गया है कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 170 में यह प्रावधान है कि देश में अगला परिसीमन 2026 के बाद किया जाएगा, फिर केवल जम्मू और कश्मीर के केंद्र शासित प्रदेश को परिसीमन के लिए क्यों चुना गया है?

परिसीमन आयोग की स्थापना कब की गई थी?

6 मार्च, 2020 को, केंद्र सरकार के विधि एवं न्याय मंत्रालय (विधान विभाग) द्वारा ‘परिसीमन अधिनियम’, 2002 की धारा 3 के तहत प्रदत्त शक्ति का प्रयोग करते हुए, सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश (सेवानिवृत्त) की अध्यक्षता में एक परिसीमन आयोग का गठन करने की अधिसूचना जारी की गयी थी। 

अधिसूचना के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश (सेवानिवृत्त) रंजना प्रकाश देसाई को एक वर्ष की अवधि के लिए, केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर और असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर और नागालैंड राज्य में विधानसभा और संसदीय क्षेत्रों के परिसीमन के उद्देश्य से, गठित आयोग के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया है।

संवैधानिक प्रावधान:

  1. संविधान के अनुच्छेद 82 के अंतर्गत, प्रत्येक जनगणना के पश्चात् भारत की संसद द्वारा एक ‘परिसीमन अधिनियम’ क़ानून बनाया जाता है।
  2. अनुच्छेद 170 के तहत, प्रत्येक जनगणना के बाद, परिसीमन अधिनियम के अनुसार राज्यों को भी क्षेत्रीय निर्वाचन-क्षेत्रों में विभाजित किया जाता है।

‘परिसीमन आयोग’ की संरचना और उसके कार्यों के बारे में अधिक जानने के लिए इसे पढ़ें।

इंस्टा जिज्ञासु:

अंतिम परिसीमन आयोग की स्थापना 12 जुलाई 2002 को परिसीमन अधिनियम, 2002 की धारा 3 द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए 2001 की जनगणना के बाद पूरे देश में परिसीमन करने के लिए की गई थी।

प्रीलिम्स लिंक:

  • पूर्ववर्ती परिसीमन आयोग- शक्तियाँ और कार्य
  • आयोग की संरचना
  • आयोग का गठन किसके द्वारा किया जाता है?
  • आयोग के अंतिम आदेशों में परिवर्तन की अनुमति?
  • परिसीमन आयोग से संबंधित संवैधानिक प्रावधान 

मेंस लिंक:

निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन किस प्रकार और क्यों किया जाता है? चर्चा कीजिए।

स्रोत: द हिंदू।

 

विषय: सांविधिक, विनियामक और विभिन्न अर्द्ध-न्यायिक निकाय।

राष्ट्रीय महिला आयोग


(National Commission for Women)

संदर्भ:

महिलाओं के लिए विधिक / कानूनी सहायता को और अधिक सुलभ बनाने के लिए, राष्ट्रीय महिला आयोग (National Commission for Women – NCW) द्वारा ‘दिल्ली राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण’ (Delhi State Legal Services Authority – DSLSA) के सहयोग से एक ‘कानूनी सहायता क्लिनिक’ (legal aid clinic) का आरंभ किया गया है। यह ‘क्लिनिक’ महिलाओं को मुफ्त कानूनी सहायता देकर, महिलाओं की शिकायतों के समाधान के लिए एकल-खिड़की सुविधा के रूप में कार्य करेगा। 

राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW), अन्य ‘राज्य महिला आयोगों’ में भी इसी तरह के ‘कानूनी सेवा क्लीनिक’ स्थापित करने की योजना बना रहा है।

‘कानूनी सहायता क्लिनिक’ के बारे में:

नए ‘विधिक सहायता क्लिनिक’ (legal aid clinic) के तहत, आने वाले शिकायतकर्ताओं के लिए परामर्श प्रदान किया जाएगा, संकट में महिलाओं को ‘राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण’ (NALSA) / DSLSA की विभिन्न योजनाओं के बारे में जानकारी, महिला जनसुनवाई में सहायता, मुफ्त कानूनी सहायता, वैवाहिक मामलों की सुनवाई और अन्य सेवाओं के अलावा आयोग के समक्ष पंजीकृत अन्य शिकायतों के बारे में कानूनी सहायता, सलाह और जानकारी दी जाएगी। 

राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) के बारे में:

  • 1992 में ‘राष्ट्रीय आयोग अधिनियम’ (National Commission Act) के तहत सांविधिक निकाय के रूप स्थापित।
  • इसकी स्थापना महिलाओं के लिए संवैधानिक और विधायी सुरक्षापायों की समीक्षा करने; उपचारी विधायी उपायों की सिफारिश करने; शिकायतों के निवारण को सुकर बनाने; और महिलाओं को प्रभावित करने वाले सभी नीतिगत मामलों पर सरकार को सलाह देने के लिए की गयी थी।
  • ‘राष्ट्रीय महिला आयोग’ को दीवानी न्यायालय की सभी शक्तियां प्राप्त हैं।

रिपोर्ट प्रस्तुति:

‘राष्ट्रीय महिला आयोग’ द्वारा केंद्र सरकार को हर साल तथा ऐसे अन्य समय पर जैसा कि आयोग उचित समझे – अपने अधिदेश के अनुरूप सुरक्षा उपायों के कायों पर रिपोर्ट सौंपी जाती है। 

स्वत:संज्ञान लेते हुए नोटिस:

‘राष्ट्रीय महिला आयोग’ यह शिकायतों को देखता है, और महिलाओं के अधिकारों से वंचित, कानूनों के गैर-कार्यान्वयन और महिला समाज के कल्याण की गारंटी देने वाले नीतिगत निर्णयों का पालन न करने से संबंधित मामलों पर स्वत: संज्ञान (Suo Motto) लेता है।

राष्ट्रीय महिला आयोग को अप्रभावी (Toothless) बनाने संबंधी प्रमुख सीमाएँ:

  1. NCW मात्र एक सिफारिशी निकाय है, और उसके पास अपने निर्णयों को लागू करने की कोई शक्ति नहीं है।
  2. आयोग के पास संवैधानिक स्थिति का अभाव है, और इस प्रकार पुलिस अधिकारियों या गवाहों को अपने समक्ष बुलाने की कोई कानूनी शक्ति नहीं है।
  3. इसे आंतरिक शिकायत समितियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने की कोई शक्ति नहीं है, जोकि उत्पीड़न का सामना करने वाली महिलाओं की शिकायत निवारण करने में बाधक है।
  4. आयोग को प्रदान की जाने वाली वित्तीय सहायता, इसकी जरूरतों को पूरा करने के लिए बहुत कम है।
  5. इसके पास अपने सदस्यों को चुनने की शक्ति नहीं है। सदस्यों के चयन की शक्ति केंद्र सरकार में निहित है, जिससे विभिन्न स्तरों पर राजनीतिक हस्तक्षेप होता है।

इंस्टा जिज्ञासु:

क्या आप जानते हैं कि प्रथम ‘राष्ट्रीय महिला आयोग’ का गठन 31 जनवरी 1992 को श्रीमती जयंती पटनायक की अध्यक्षता में किया गया था?

प्रीलिम्स लिंक:

  1. राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) के बारे में।
  2. संरचना
  3. कार्य
  4. ‘राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण’ (NALSA)
  5. मुफ्त कानूनी सहायता

स्रोत: द हिंदू।

 

विषय: महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थान, संस्थाएँ और मंच- उनकी संरचना, अधिदेश।

 

ब्रिक्स समूह


(BRICS)

संदर्भ:

ब्रिक्स (BRICS) समूह के पाचों देशों अर्थात ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका (Brazil, Russia, India, China and South Africa – BRICS) के प्रमुख मीडिया समूहों द्वारा पत्रकारों के लिए तीन महीने के लंबे प्रशिक्षण कार्यक्रम का आरंभ किया गया है।

यह कार्यक्रम ‘ब्रिक्स मीडिया फोरम’ (BRICS Media Forum) की एक पहल है।

‘ब्रिक्स मीडिया फोरम’ के बारे में:

‘ब्रिक्स मीडिया फोरम’ (BRICS Media Forum) की स्थापना 2015 में पांच देशों के मीडिया संगठनों द्वारा की गई थी।

  • इन मीडिया संगठनों में भारत का द हिंदू, ब्राजील का CMA ग्रुप, रूस के स्पुतनिक (Sputnik), चीन के सिन्हुआ (Xinhua) और दक्षिण अफ्रीका का इंडिपेंडेंट मीडिया शामिल हैं। 
  • इस फोरम को इसलिए परिकल्पित और विकसित किया गया था ताकि यह एक स्वतंत्र पहल के रूप में कार्य कर सके और ब्रिक्स सहयोग के व्यापक ढांचे के भीतर व्यावहारिक गतिविधियों के समूह के रूप में कार्य कर सके”।

ब्रिक्स (BRICS) के बारे में:

ब्रिक्स, पांच प्रमुख उभरते देशों – ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका (BRICS) – का एक समूह है।

  • यह समूह, कुल मिलाकर विश्व की लगभग 42 प्रतिशत जनसंख्या, 23 प्रतिशत सकल घरेलू उत्पाद, 30 प्रतिशत क्षेत्रफल और 18 प्रतिशत वैश्विक व्यापार का प्रतिनिधित्व करता है।
  • ब्रिक (BRIC) शब्द, संयुक्त राज्य अमेरिका के अलावा 21 वीं सदी में सबसे बड़ी उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं को व्यक्त करने के लिए, वर्ष 2001 में गोल्डमैन सैक्स के अर्थशास्त्री जिम ओनीलद्वारा गढ़ा गया था। 
  • वर्ष 2006 में, BRIC देशों द्वारा वार्ता आरंभ की गयी, जिसके तहत वार्षिक बैठकों में वर्ष 2009 तक राष्ट्राध्यक्ष और सरकार के प्रमुख भाग लेते थे।
  • वर्ष 2011 में, अफ्रीकी महाद्वीप से दक्षिण अफ्रीका के समूह में शामिल होने के साथ ही, ब्रिक्स (BRICS) अपने वर्तमान स्वरूप में स्थापित हो गया।

 

 

इंस्टा जिज्ञासु:

क्या आपने PARIS21 समूह के बारे में सुना है

प्रीलिम्स लिंक:

  1. ब्रिक्स के बारे में
  2. शिखर सम्मेलन
  3. अध्यक्षता
  4. ब्रिक्स से जुड़े संगठन और समूह

मेंस लिंक:

भारत के लिए ब्रिक्स के महत्व और प्रासंगिकता पर चर्चा कीजिए।

स्रोत: द हिंदू।

 

विषय: भारत के हितों पर विकसित तथा विकासशील देशों की नीतियों तथा राजनीति का प्रभाव; प्रवासी भारतीय।

हूती विद्रोही और यमन में युद्ध

संदर्भ:

हाल ही में, ईरान ने यमन के युद्ध विद्रोहियों द्वारा समर्थित ‘युद्धविराम योजना’ के लिए अपना समर्थन देने की पेशकश करते हुए कहा है, कि यह ‘युद्धविराम योजना’ संघर्ष को समाप्त करने के लिए एक “उपयुक्त मंच” हो सकता है।

हूती विद्रोहियों (Houthi Rebels) द्वारा युद्धविराम प्रस्ताव की घोषणा की गयी है और इन विद्रोहियों ने सऊदी अरब द्वारा अपने हवाई हमलों को रोकने और यमन की नाकाबंदी ख़त्म करने तथा ‘विदेशी बलों” को हटाने की शर्त पर शांति वार्ता की पेशकश की है।

युद्धविराम की आवश्यकता:

यमन युद्ध में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सैकड़ों हजारों लोग मारे जा चुके हैं और इस युद्ध ने लाखों लोगों को विस्थापित कर दिया। संयुक्त राष्ट्र ने इसे दुनिया का सबसे खराब मानवीय संकट बताया है।

‘हूती’ कौन हैं?

  • हूती (Houthi), 1990 के दशक में यमन के बहुसंख्यक शिया समुदाय के सदस्य हुसैन बदरेद्दीन अल- हूती (Badreddin al-Houthi) द्वारा स्थापित एक सशस्त्र विद्रोही संगठन है।
  • यह ‘जैदी शिया संप्रदाय’ (Zaidi Shia sect) से संबंधित एक समूह हैं, जिसने लगभग 1,000 सालों तक इस क्षेत्र के एक राज्य पर शासन किया था।

संबंधित प्रकरण:

  • अरब जगत के सबसे गरीब देशों में से एक, ‘यमन’ लगभग सात साल से जारी गृह युद्ध से तबाह हो चुका है। राजधानी साना (Sana’a) पर ‘हूती विद्रोहियों’ द्वारा कब्ज़ा करने के बाद, देश में ईरानी प्रभाव को समाप्त करने तथा पूर्व सरकार को बहाल करने के उद्देश्य से सऊदी अरब के नेतृत्व में सेना ने विद्रोहियों के खिलाफ जंग छेड़ दी। 
  • वर्ष 2015 में यूनाइटेड अरब अमीरात भी इस सऊदी अभियान में शामिल हो गया और वर्ष 2019 और 2020 में अपनी सेना की औपचारिक वापसी की घोषणा के बावजूद, इस संघर्ष में गंभीरतापूर्वक शामिल रहा है।

Current Affairs

 

यमन युद्ध: पृष्ठभूमि

  • यमन में जारी संघर्ष की जड़ें वर्ष 2011 में हुए अरब स्प्रिंग या अरब विद्रोह में खोजी जा सकती हैं। इस दौरान हुए एक विद्रोह ने काफी लंबे समय से देश में शासन कर रहे सत्तावादी राष्ट्रपति, अली अब्दुल्ला सालेह को अपने डिप्टी अब्दरब्बू मंसूर हादी को सत्ता सौंपने के लिए विवश कर दिया था।
  • मध्य पूर्व के सबसे गरीब देशों में से एक यमन में स्थिरता लाने के उद्देश्य से यह राजनीतिक परिवर्तन किया गया था, लेकिन राष्ट्रपति हादी को आतंकवादी हमलों, भ्रष्टाचार, खाद्य असुरक्षा, और कई सैन्य अधिकारियों की पूर्व राष्ट्रपति सालेह के प्रति वफादारी सहित विभिन्न समस्याओं से निपटने के लिए संघर्ष करना पड़ा।
  • यमन में वर्तमान संघर्ष की शुरुआत वर्ष 2014 में, हूती शिया मुस्लिम विद्रोह आंदोलन द्वारा नए राष्ट्रपति की कमजोरी का फायदा उठाते हुए उत्तरी साद प्रांत (Saada province) और इसके पड़ोसी क्षेत्रों का नियंत्रण जब्त करने के साथ हुई।

यमन में सऊदी अरब के हस्तक्षेप का कारण:

सऊदी अरब ने, यमन के राजधानी शहर ‘साना’ पर शिया ‘हूती विद्रोहियों’ द्वारा कब्जा करने तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त राष्ट्रपति हादी की सरकार देश के दक्षिणी भाग तक सीमित हो जाने के पश्चात यमन में हस्तक्षेप किया था।

  • यमन में ‘हूती विद्रोहियों’ के तेजी से उदय ने सऊदी अरब में खतरे की घंटी बजा दी, जिसे इसने ईरान के प्रॉक्सी के रूप में देखा।
  • सऊदी अरब ने मार्च 2015 में एक सैन्य अभियान शुरू करने की घोषणा की। इस अभियान से ‘हूती विद्रोहियों’ के खिलाफ त्वरित जीत की उम्मीद की जा रही थी। लेकिन सऊदी अरब के हवाई हमले के बावजूद ‘हूतीयों’ ने हार मानने से इनकार कर दिया।
  • जमीन पर कोई प्रभावी सहयोगी नहीं होने और कोई रास्ता निकालने की योजना नहीं होने के कारण, सऊदी के नेतृत्व वाला अभियान बिना किसी ठोस परिणाम के समाप्त हो गया। पिछले छह वर्षों में, ‘हूती विद्रोहियों’ ने सऊदी हवाई हमलों के जवाब में उत्तरी यमन के सऊदी शहरों पर कई हमले किए हैं।

प्रीलिम्स लिंक:

  1. हूती (Houthi) कौन हैं?
  2. वर्तमान संकट क्या है?
  3. यमन की अवस्थिति।
  4. अरब देश।
  5. संयुक्त अरब अमीरात।

मेंस लिंक:

यमन में जारी युद्ध के भारत और विश्व पर परिणामों की चर्चा कीजिए।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस।

 

 


सामान्य अध्ययनIII


 

विषय: आंतरिक सुरक्षा के लिये चुनौती उत्पन्न करने वाले शासन विरोधी तत्त्वों की भूमिका। 

 

असम-मेघालय सीमा विवाद


(Assam-Meghalaya border dispute)

संदर्भ:

असम और मेघालय ने अपनी 885 किलोमीटर की सीमा पर 12 सेक्टरों में से छह सेक्टरों में 50 साल पुराने सीमा विवाद को आंशिक रूप से सुलझा लिया है।

दोनों राज्यों द्वारा हाल ही में, समाधान के उद्देश्य से पहले चरण में चुने गए छह विवादित क्षेत्रों पर विवाद समाप्त करने हेतु एक “ऐतिहासिक” समझौते पर हस्ताक्षर किए गए है।

यह छह विवादित क्षेत्र निम्नलिखित हैं:

इन छह विवादित क्षेत्रों में, कामरूप, कामरूप (मेट्रो) और असम के कछार जिलों और मेघालय के पश्चिम खासी हिल्स, री-भोई और पूर्वी जयंतिया हिल्स जिलों के अंतर्गत आने वाले ताराबाड़ी, गिज़ांग, हाहिम, बोकलापारा, पिलींग्‍काता-खानापारा और रताछेरा शामिल हैं।

संबंधित विवाद:

असम और मेघालय के मध्य 885 किलोमीटर लंबी एक साझा सीमा है। मेघालय को ‘असम पुनर्गठन अधिनियम’, 1971 के तहत असम से अलग किया गया था। इस कानून को मेघालय ने चुनौती दी थी, जिससे यह विवाद उत्पन्न हुआ था।

अभी तक, दोनो राज्यों के बीच सीमा पर स्थित 12 जगहों पर विवाद है। इन विवादित जगहों में, ऊपरी ताराबाड़ी, गिजांग रिजर्व फॉरेस्‍ट, हाहिम एरिया, लंगपिह एरिया, बोरडवार एरिया, नोंगवाह-मावतामुर एरिया, पिलींग्‍काता-खानापारा, देशदेमोरिया, खांदुली, उ‍मकिखरयानी-पिसियार, ब्‍लॉक I और ब्‍लॉक II के अलावा रताछेरा क्षेत्र शामिल हैं।

लंगपिह एरिया 

असम और मेघालय के बीच विवाद का एक प्रमुख बिंदु, असम के कामरूप जिले की सीमा से लगे पश्चिम गारो हिल्स में लंगपीह (Langpih) जिला है।

  • लंगपीह, ब्रिटिश औपनिवेशिक काल के दौरान कामरूप जिले का हिस्सा था, लेकिन आजादी के बाद, यह गारो हिल्स और मेघालय का हिस्सा बन गया।
  • असम, इसे असम में स्थित ‘मिकिर पहाड़ियों’ का हिस्सा मानता है। मेघालय ने ‘मिकिर हिल्स’ के ब्लॉक I और II पर सवाल उठाया है, जोकि अब असम के ‘कार्बी आंगलोंग क्षेत्र’ का हिस्सा है। मेघालय का कहना है कि ये क्षेत्र तत्कालीन ‘संयुक्त खासी और जयंतिया हिल्स जिलों’ के भाग थे।

विवाद को सुलझाने हेतु प्रयास:

इन विवादों को सुलझाने हेतु, असम और मेघालय दोनों राज्यों द्वारा ‘सीमा विवाद समाधान समितियों’ (Border Dispute Settlement Committees) का गठन किया गया है।

  • हाल ही में, असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा और उनके मेघालय के मुख्यमंत्री कोनराड संगमा ने सीमा विवादों को चरणबद्ध तरीके से हल करने के लिए ‘दो क्षेत्रीय समितियों’ का गठन करने का निर्णय लिया।
  • हाल ही में ‘हिमंत बिस्वा सरमा’ द्वारा दी गयी जानकारी के अनुसार, सीमा विवाद को सुलझाने के लिए पांच पहलुओं पर विचार किया जाना है। इन पांच पहलुओं में ऐतिहासिक तथ्य, जातीयता, प्रशासनिक सुविधा, संबंधित लोगों की मनोदशा और भावनाएं तथा भूमि की समीपता शामिल हैं। 

असम का अन्य राज्‍यों के साथ सीमा-विवाद:

  • पूर्वोत्तर भारत में अक्‍सर बॉर्डर पर कई मुद्दों को लेकर तनाव की स्थिति रहती है। असम का मेघालय, नागलैंड, अरुणाचल प्रदेश और मिजोरम के साथ सीमा विवाद है। अरुणाचल प्रदेश और नागालैंड के साथ असम के सीमा विवाद सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं।
  • मेघालय और मिजोरम के साथ असम के सीमा विवाद फिलहाल बातचीत के जरिए समाधान के चरण में हैं। हाल ही में मिजोरम के साथ असम के सीमा विवाद ने हिंसक रूप ले लिया था, जिसके कारण केंद्र सरकार को इसमें हस्तक्षेप करना पड़ा।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस।

 

 


प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य


 

 

 

फ्रंटियर रिपोर्ट 2022 

  • हाल ही में, संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) की वार्षिक फ्रंटियर रिपोर्ट 2022 (Frontier 2022 report) जारी की गई है।
  • इस रिपोर्ट का शीर्षक नॉइज़, ब्लेज़ एंड मिसमैच‘ (Noise, Blazes and Mismatches) है

रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु:

  • रिपोर्ट में, बांग्लादेश के ढाका को दुनिया के सबसे ज्यादा शोर वाले शहर के रूप में स्थान दिया गया है, इसके बाद भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के ‘मुरादाबाद’ शहर का स्थान है।
  • इस सूची में दुनिया के सबसे ज्यादा शोर वाले शहरों में से पांच भारतीय शहर – आसनसोल, जयपुर, कोलकाता, नई दिल्ली और मुरादाबाद – शामिल हैं।
  • जॉर्डन के ‘इरबिड’ शहर को दुनिया के सबसे शांत शहर के रूप में स्थान दिया गया है और इसके बाद फ्रांस के ल्यों और स्पेन के मैड्रिड शहर का स्थान है। 

 

 

 

एक सींग वाला गैंडा:

असम के काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान और टाइगर रिजर्व में पिछले चार वर्षों में एक सींग वाले गैंडों (One-Horned Rhino) की आबादी में 200 की वृद्धि हुई है।

काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान और टाइगर रिजर्व में गैंडों की संख्या 2613 थी जिसमें 866 नर, 1049 मादा, 273 बधिया (unsexed), 279 अवयस्क और 146 शिशु गैंडा शामिल थे।

गैंडे के बारे में:

भारत में केवल, एक-श्रंगी गैंडे’ (Greater One-Horned Rhino) ही पाए जाते हैं।

  • इसे ‘भारतीय गैंडे’ के रूप में भी जाना जाता है और यह आकार में गैंडे की सभी प्रजातियों में सबसे बड़ा होता है।
  • इसकी पहचान, एक काले सींग और त्वचा की सिलवटों सहित धूसर-भूरे रंग की खाल से होती है।
  • ये मुख्यतः शाकाहारी जीव होते हैं और अपने आहार के लिए लगभग पूरी तरह से घास, पत्तियों, झाड़ियों और पेड़ों की शाखाओं, फलों और जलीय पौधों पर निर्भर होते हैं।

संरक्षण स्थिति:

  1. IUCN रेड लिस्ट: असुरक्षित (Vulnerable)
  2. ‘लुप्तप्राय वन्यजीव तथा वनस्पति प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर अभिसमय’ (CITES): परिशिष्ट I (विलुप्त होने की कगार पर पहुँच चुकी और CITES द्वारा वैज्ञानिक अनुसंधान जैसे गैर- व्यावसायिक उद्देश्यों को छोड़कर अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के लिए प्रतिबंधित की गयी प्रजाति) 
  3. वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972: अनुसूची- I

भारत द्वारा किए जा रहे अन्य संरक्षण प्रयास:

  1. पांच राइनो रेंज देशों (भारत, भूटान, नेपाल, इंडोनेशिया और मलेशिया) द्वारा गैंडा प्रजातियों की सुरक्षा और संरक्षण हेतु ‘ एशियाई गैंडों पर नई दिल्ली घोषणा-2019’ (New Delhi Declaration on Asian Rhinos2019) पर हस्ताक्षर किए गए हैं।
  2. पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) ने देश में सभी गैंडों के डीएनए प्रोफाइल बनाने के लिए एक परियोजना शुरू की गई है।
  3. राष्ट्रीय राइनो संरक्षण रणनीति: इसे 2019 में एक सींग वाले गैंडों के संरक्षण के लिए लॉन्च किया गया था।

 

 

 

सरिस्का बाघ अभयारण्य 

(Sariska Tiger Reserve)

  • अवस्थिति: यह बाघ अभयारण्य राजस्थान के अलवर जिले में स्थित है।
  • यह अभयारण्य 1978 में भारत के ‘प्रोजेक्ट टाइगर’ का हिस्सा बना था।
  • बाघों का स्थानांतरण: यह दुनिया का पहला रिजर्व है जहाँ पर बाघों सफलतापूर्वक स्थानांतरित किया गया है।
  • यह उत्तरी अरावली में स्थित ‘तेंदुए और वन्यजीव गलियारे’ के क्षेत्र में अवस्थित एक महत्वपूर्ण जैव विविधता क्षेत्र है।
  • यह खनिज संसाधनों में समृद्ध क्षेत्र है।
  • यह अरावली रेंज और ‘खथियार-गिर शुष्क पर्णपाती वन’ पारिस्थितिकी-क्षेत्र का एक भाग है।

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पी-8आई स्क्वाड्रन

हाल ही में, भारतीय नौसेना के दूसरे पी-8आई विमान स्क्वाड्रन (P-8I squadron), भारतीय नौसेना एयर स्क्वाड्रन 316 (INAS 316) को भारतीय नौसेना में शामिल कर लिया गया है। 

  • आईएनएएस 316 को ‘कोंडोर्स’ (Condors) नाम दिया गया है, जो विशाल पंखों की सहायता से उड़ने वाले पृथ्‍वी के सबसे बड़े पक्षियों में से एक हैं।
  • इस स्क्वाड्रन को विशेष रूप से ऑप्शन क्लॉज अनुबंध के तहत खरीदे गए चार नए पी-8आई विमानों के लिए तथा आईओआर में किसी खतरे का निवारण करने, पता लगाने और नष्ट करने के लिए नियुक्त किया गया है। 

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भारत की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था

सकल घरेलू उत्पाद के प्रतिशत के रूप में ‘भारत की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था’ (India’s space economy) का अनुमानित आकार 2011-12 में 0.26% से गिरकर 2020-21 में 0.19% रह गया है।

  • जीडीपी के संबंध में, भारत का व्यय चीन, जर्मनी, इटली और जापान की तुलना में अधिक है, हालाँकि यह यू.एस. और रूस से कम है।
  • ‘भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र’ को लागत प्रभावी उपग्रहों के निर्माण, चंद्र जांच शुरू करने और विदेशी उपग्रहों को अंतरिक्ष में ले जाने के लिए विश्व स्तर पर मान्यता प्राप्त है।
  • वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था का अनुमानित आकार लगभग 423 बिलियन अमेरिकी डॉलर है। वर्तमान में, भारत, वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था का 2-3% हिस्सा है और उम्मीद है कि 2030 तक 48% की CAGR से इसकी हिस्सेदारी> 10% तक बढ़ जाएगी।

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