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[Mission 2022] INSIGHTS करेंट अफेयर्स+ पीआईबी नोट्स [ DAILY CURRENT AFFAIRS + PIB Summary in HINDI ] 17 March 2022

विषयसूची

 

सामान्य अध्ययन-I

  1. हीट वेव्स

सामान्य अध्ययन-II

  1. हिजाब पहनना अनिवार्य धार्मिक क्रिया नहीं है: कर्नाटक उच्च न्यायालय
  2. प्रधानमंत्री आवास योजना- ग्रामीण

सामान्य अध्ययन-III

 

प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य

  1. केंद्र सरकार द्वारा 24,000 करोड़ रुपये के सॉवरेन ग्रीन बांड जारी करने की योजना
  2. राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर
  3. एलएसी के साथ भारत के बुनियादी ढांचे के लिए प्रमुख उन्नयन।

 

  1. बहिनी योजना
  2. MANPADS
  3. फूलदेई पर्व
  4. वानिकी पहलों के माध्यम से 13 प्रमुख नदियों का कायाकल्प
  5. मातृ मृत्यु दर

 


सामान्य अध्ययन-I


 

विषय : भूकंप, सुनामी, ज्वालामुखीय हलचल, चक्रवात आदि जैसी महत्त्वपूर्ण भू-भौतिकीय घटनाएँ, भौगोलिक विशेषताएँ आदि।

 

‘ग्रीष्म लहरें’


(Heat Waves)

संदर्भ:

मुंबई सहित संपूर्ण कोंकण क्षेत्र हाल के दिनों में भीषण गर्मी का सामना कर रहा है। इस क्षेत्र में अधिकतम तापमान 40 डिग्री को छू रहा है।

कोंकण क्षेत्र में ‘हीटवेव’ की स्थिति का कारण:

मुंबई सहित कोंकण में जारी ‘ग्रीष्म लहरों’ (Heat Waves) का मुख्य कारण, निकटवर्ती गुजरात सौराष्ट्र-कच्छ क्षेत्रों में प्रचलित हीटवेव का प्रत्यक्ष प्रभाव है।

  • उत्तर-पश्चिम भारत से चलने वाली गर्म और शुष्क हवाएँ, कोंकण के अधिकांश हिस्सों में पहुँच रही हैं।
  • इसके अलावा, महाराष्ट्र तट के साथ चलने वाली समुद्री हवा की धीमी गति, और समग्र रूप से स्पष्ट आसमान की स्थिति के परिणामस्वरूप इस प्रकार की गर्म स्थितियां उत्पन्न हुई हैं।

‘हीटवेव’ क्या है?

‘भारतीय मौसम विज्ञान विभाग’ के अनुसार, जब किसी जगह पर तापमान, मैदानी क्षेत्रों में 40 डिग्री सेल्सियस या उससे अधिक, तथा तटीय क्षेत्रों में 37 डिग्री सेल्सियस या इससे अधिक तथा पर्वतीय क्षेत्रों न्यूनतम 30 डिग्री सेल्सियस या उससे अधिक हो जाता है, तो इसे ‘गर्म हवा की लहर’ अर्थात ‘ग्रीष्म लहर’ (Heat Wave) माना जाता है।

‘ग्रीष्म लहर’ घोषित करने संबंधी ‘मानदंड’:

  • तापमान में सामान्य से 5 से 6.4 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होने पर ‘ग्रीष्म लहर’ की स्थिति घोषित कर दी जाती है, और तापमान में सामान्य से 6.4 डिग्री सेल्सियस से अधिक वृद्धि होने पर इसे ‘प्रचंड ग्रीष्म लहर’ (severe heatwave) कहा जाता है।
  • मैदानी इलाकों के लिए, वास्तविक अधिकतम तापमान के आधार पर, भारतीय मौसम विज्ञान विभाग द्वारा, वास्तविक अधिकतम तापमान 45 डिग्री सेल्सियस से अधिक होने पर ‘ग्रीष्म लहर’ तथा 47 डिग्री सेल्सियस से अधिक होने पर ‘प्रचंड ग्रीष्म लहर’ घोषित की जाती है।

भारत में अधिक ‘ग्रीष्म लहरें’ आने का कारण:

  1. शहरी क्षेत्रों में पक्की और कंक्रीट सतहों से गर्मी का आवर्धित प्रभाव और वृक्षावरण की कमी।
  2. शहरी गर्म द्वीपीय प्रभाव (Urban heat island effects) के कारण आस-पास का तापमान, वास्तविक तापमान से 3 से 4 डिग्री अधिक महसूस होता है।
  3. पिछले 100 वर्षों में वैश्विक स्तर पर तापमान में औसत 0.8 डिग्री की वृद्धि होने से ‘ग्रीष्म लहरों’ की तीव्रता में वृद्धि होने की संभावना है। रात्री-कालीन तापमान में भी वृद्धि हो रही है।
  4. जलवायु परिवर्तन के कारण, वैश्विक स्तर पर दैनिक उच्च तापमान में वृद्धि, लंबे समय तक चलने वाली और और अधिक तीव्र ‘ग्रीष्म लहरों’ की आवृति में लगातार वृद्धि होती जा रही है।
  5. मध्यम से उच्च ‘ग्रीष्म लहर’ क्षेत्रों में पराबैगनी किरणों की उच्च तीव्रता।
  6. असाधारण गर्मी का दबाव और मुख्यतः ग्रामीण आबादी का संयोजन, भारत को ‘ग्रीष्म लहरों’ के प्रति अधिक संवेदनशील बना देता है।

भारत के लिए आगे की राह: भारत को ‘ग्रीष्म लहरों’ से किस प्रकार निपटना चाहिए?

  1. मौसम संबंधी आंकड़ों की उपयुक्त ट्रैकिंग के माध्यम से ‘ऊष्मा हॉट-स्पॉट’ की पहचान करना और संबंधित संस्थाओं के मध्य रणनीतिक समन्वय के साथ, सबसे कमजोर समूहों को लक्षित करते हुए स्थानीय स्तर पर ‘गर्मी कार्य योजना’ के निर्माण, कार्यान्वयन तथा प्रतिक्रिया को बढ़ावा देना।
  2. जलवायु परिस्थितियों के संबंध में श्रमिकों की सुरक्षा हेतु मौजूदा व्यावसायिक स्वास्थ्य मानकों, श्रम कानूनों और क्षेत्रीय नियमों की समीक्षा करना।
  3. स्वास्थ्य, जल और विद्युत, तीनो क्षेत्रों में नीतिगत हस्तक्षेप और समन्वय की आवश्यकता है।
  4. पारंपरिक अनुकूलन पद्धतियों, जैसेकि घर के अंदर रहना और आरामदायक कपड़े पहनना आदि को बढ़ावा देना।
  5. सरल डिजाइन सुविधाओं जैसेकि छायादार खिड़कियां, भूमिगत जल भंडारण टैंक और ‘ऊष्मा-रोधी भवन सामग्री’ को प्रचलित करना।
  6. कमजोर समूहों को सुरक्षित करने के क्रम में सरकार द्वारा, स्थानीय स्तर पर ‘गर्मी कार्य योजनाओं’ (Heat Action Plans) का अग्रिम कार्यान्वयन तथा साथ ही विभिन्न संस्थाओं के मध्य प्रभावी रणनीतिक समन्वय, महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया साबित हो सकती है।

 

इंस्टा जिज्ञासु:

भारत में, ‘ग्रीष्म लहरें’ मार्च से जून तक और कभी-कभी जुलाई तक चलती हैं। मई के महीने में ‘हीटवेव’ की चरम घटनाओं की स्थिति दर्ज की जाती है।

प्रीलिम्स लिंक:

  1. ‘हीट वेव’ कब घोषित की जाती है?
  2. मानदंड?
  3. हीटवेव और सुपर हीटवेव के बीच अंतर?
  4. IMD क्या है?

मेंस लिंक:

गीष्म लहरों के कारण पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभावों का परीक्षण कीजिए तथा भारत को इससे कैसे निपटना चाहिए?

स्रोत: पीआईबी।

 


सामान्य अध्ययनII


 

विषय: भारतीय संविधान- ऐतिहासिक आधार, विकास, विशेषताएँ, संशोधन, महत्त्वपूर्ण प्रावधान और बुनियादी संरचना।

हिजाब पहनना अनिवार्य धार्मिक क्रिया नहीं है: कर्नाटक उच्च न्यायालय

संदर्भ:

कर्नाटक उच्च न्यायालय ने मुस्लिम लड़कियों द्वारा ‘कक्षाओं के अंदर यूनिफार्म के साथ हिजाब या सिर पर स्कार्फ पहनने के अधिकार की मांग करते हुए दायर की गयी याचिकाओं पर फैसला सुनाते हुए कहा है कि, हिजाब पहनना अनिवार्य धार्मिक क्रिया नहीं है।

अदालत के फैसले के प्रमुख बिंदु:

  1. अनिवार्य धार्मिक क्रिया (An essential religious practice) : मुस्लिम महिलाओं द्वारा हिजाब पहनना इस्लाम धर्म में कोई अनिवार्य धार्मिक क्रिया नहीं है।
  2. यथोचित प्रतिबंध (A reasonable restriction): स्कूल में वर्दी का निर्धारण, संवैधानिक रूप से स्वीकार्य एक उचित प्रतिबंध है जिस पर छात्र आपत्ति नहीं कर सकते हैं।
  3. जिन कॉलेजों में छात्रों के लिए वर्दी निर्धारित है, सरकार के पास उन कॉलेजों मे हिजाब पहनने पर प्रतिबंध लगाने की शक्ति है।

इसलिए, स्कूल की वर्दी का निर्धारण याचिकाकर्ताओं को प्राप्त संविधान के अनुच्छेद 19 (1 A) के तहत ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ तथा अनुच्छेद 21 के तहत ‘निजता’ के अधिकार का उल्लंघन नहीं करता है।

अनिवार्य धार्मिक क्रियाओं में क्या शामिल होता है? इसका फैसला कौन करता है?

1954 का शिरूर मठ मामला: इस मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा ‘अनिवार्यता के सिद्धांत’ (Doctrine of “Essentiality”) का प्रतिपादन किया गया था। अदालत द्वारा “धर्म” (Religion) शब्द में सभी अनुष्ठानों और प्रथाओं को किसी धर्म का “अभिन्न” अंग माना गया, और किसी धर्म की ‘अनिवार्य’ एवं ‘गैर- अनिवार्य’ प्रथाओं / क्रियाओं को निर्धारित करने की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली गयी।

‘उचित प्रतिबंधों’ में शामिल प्रमुख तत्त्व:

  1. भारत की संप्रभुता और अखंडता
  2. राज्य की सुरक्षा
  3. विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध
  4. सार्वजनिक व्यवस्था
  5. शालीनता या नैतिकता
  6. न्यायालय की अवमानना
  7. मानहानि
  8. किसी अपराध के लिए उकसाना

‘हिजाब’ के संदर्भ में केरल उच्च न्यायालय के फैसले:

  • आमना बिंत बशीर बनाम केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (2016) मामले में, केरल उच्च न्यायालय ने हिजाब (HIJAB) पहनने की प्रथा को एक अनिवार्य धार्मिक प्रथा के रूप में माना, किंतु सीबीएसई द्वारा निर्धारित ड्रेस कोड को रद्द नहीं किया। इसके बजाय, अदालत ने अतिरिक्त सुरक्षा उपायों- जैसे कि जरूरत पड़ने पर यह जांच करना कि छात्रों ने पूरी बाजू के कपडे पहने हैं अथवा नहीं – का प्रावधान किया था।
  • फातिमा तसनीम बनाम केरल राज्य (2018) मामले में, केरल उच्च न्यायालय ने कहा, कि किसी संस्था के सामूहिक अधिकारों को, याचिकाकर्ता के व्यक्तिगत अधिकारों पर प्राथमिकता दी जाएगी। इस मामले में दो लड़कियां शामिल थीं जो हेडस्कार्फ़ पहनना चाहती थीं। स्कूल ने हेडस्कार्फ की अनुमति देने से इनकार कर दिया। हालाँकि, अदालत ने अपील को खारिज कर दिया क्योंकि उस समय याचिकाकर्ता छात्राएं प्रतिवादी-विद्यालय में अध्ययन नहीं कर रही थी।

प्रीलिम्स लिंक:

  1. अनुच्छेद 12 के तहत राज्य की परिभाषा
  2. अनुच्छेद 13(3) किससे संबंधित है?
  3. उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों की रिट अधिकारिता
  4. अनुच्छेद 21 और 25 का अवलोकन

मेंस लिंक:

भारतीय संविधान के तहत धर्म की स्वतंत्रता के महत्व पर चर्चा कीजिए।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस।

 

विषय: केन्द्र एवं राज्यों द्वारा जनसंख्या के अति संवेदनशील वर्गों के लिये कल्याणकारी योजनाएँ और इन योजनाओं का कार्य-निष्पादन; इन अति संवेदनशील वर्गों की रक्षा एवं बेहतरी के लिये गठित तंत्र, विधि, संस्थान एवं निकाय।

 

प्रधानमंत्री आवास योजना- ग्रामीण


Pradhan Mantri Awas Yojana- Gramin (PMAY-G)

संदर्भ:

ग्रामीण विकास मंत्रालय ने प्रधानमंत्री आवास योजना- ग्रामीण (Pradhan Mantri Awas Yojana- Gramin (PMAY-G)) के तहत घरों को समय पर पूरा करना सुनिश्चित करने के लिए निम्नलिखित पहलें शुरू की है:

  1. लक्षित आवासों को समय पर पूरा करना सुनिश्चित करने के लिए मंत्रालय के स्तर पर प्रगति की नियमित समीक्षा करना।
  2. घरों की मंजूरी में अंतराल तथा PMAY-G के तहत स्थाई प्रतीक्षा सूची (Permanent Wait List – PWL) के शोधन जैसे विभिन्न मानकों पर दैनिक निगरानी।
  3. राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों के लिए लक्ष्यों का समय पर आवंटन, और मंत्रालय के स्तर पर पर्याप्त धनराशि जारी करना।
  4. घर निर्माण के लिए पर्यावरण के अनुकूल और नवीन प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देना।
  5. ग्रामीण राजमिस्त्री प्रशिक्षण (Rural Mason Training) कार्यक्रम के कवरेज को बढ़ाने के लिए कदम उठाए जा रहे हैं जिससे प्रशिक्षित राजमिस्त्री की उपलब्धता में वृद्धि होगी जिससे गुणवत्तापूर्ण घरों का निर्माण तेजी से होगा।

योजना का प्रदर्शन:

योजना के तहत लाभार्थियों को 2.28 करोड़ मकान स्वीकृत किए गए हैं, जिनमें से 9 मार्च 2022 तक 1.75 करोड़ मकान बनकर तैयार हो चुके हैं।

प्रधानमंत्री आवास योजना- ग्रामीण (PMAY-G) के बारे में:

कार्यान्वयन मंत्रालय: ग्रामीण विकास मंत्रालय।

प्रधान मंत्री आवास योजना ग्रामीण (PMAY-G) को पहले इंदिरा आवास योजना कहा जाता था। मार्च 2016 में इसका नाम बदल कर योजना को पुनर्गठित किया गया है।

PMAY-G का उद्देश्य वर्ष 2022 तक सभी आवासहीन गृहस्वामियों तथा कच्चे और जीर्ण-शीर्ण घर में रहने वाले लोगों को बुनियादी सुविधाओं सहित एक पक्का घर प्रदान करना है।

लक्ष्य: इसके तहत वर्ष 2022 तक सभी बुनियादी सुविधाओं सहित 2.95 करोड़ घरों के निर्माण का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।

लागत वितरण:

इस योजना के अंतर्गत, प्रत्येक इकाई के निर्माण में सहायता राशि को केंद्र और राज्य सरकारों के मध्य, मैदानी क्षेत्रों में 60:40 तथा पूर्वोत्तर और हिमालयी राज्यों के लिए 90: 10 के अनुपात में साझा किया जाता है।

इस योजना में ग्रामीण राजमिस्त्री के प्रशिक्षण प्रदान करने, तथा साथ ही साथ मकानों के निर्माण और गुणवत्ता में सुधार लाने के उद्देश्य से, कुशल कारीगरों को रोजगार प्रदान करने की परिकल्पना की गई है।

लाभार्थियों का चयन:

PMAY-G के लाभार्थियों की पहचान सामाजिक-आर्थिक और जाति जनगणना (Socio-Economic and Caste Census- SECC) से उपलब्ध डेटा के अनुसार की जाएगी, तथा लाभार्थियों का चयन, निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार पात्र होने और ग्राम सभा सत्यापन के बाद, 13 बिंदु अपवर्जन मानदंडों के अधीन किया जायेगा।

स्रोत: पीआईबी।

 


सामान्य अध्ययन-III


विषय: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन।

केंद्र सरकार द्वारा 24,000 करोड़ रुपये के सॉवरेन ग्रीन बांड जारी करने की योजना

संदर्भ:

निम्न कार्बन वाली अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ने के साथ, भारत द्वारा कम से कम 24,000 करोड़ रुपये (3.3 बिलियन डॉलर) के मूल्य के ‘सॉवरेन ग्रीन बॉन्ड’ (Sovereign Green Bonds) जारी किए जाएंगे।

आवश्यकता:

अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं को वित्तपोषित करने की योजना की पृष्ठभूमि में, ‘ग्रीन बॉन्ड’ क्षेत्र में भारत का यह पहला प्रयास है। यह प्रयास 2070 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन संबंधी भारत के लक्ष्य को पूरा करने में मदद करेगा।

  • ‘ग्रीन बॉन्ड’ जारी करने की योजना ‘संधारणीय निवेश’ में वैश्विक उछाल आने के बीच बनाई गयी है।
  • भारत ग्रीनहाउस गैसों का दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा उत्सर्जक है और भारत की 2030 तक अपनी अक्षय ऊर्जा उत्पादन क्षमता को चौगुना करने की योजना है।

‘ग्रीन बॉन्ड’ क्या है?

‘ग्रीन बॉन्ड’ (Green Bond), एक प्रकार का ‘निश्चित आय’ उपकरण है, जिसे विशेष रूप से जलवायु और पर्यावरण संबंधित परियोजनाओं के लिए धन जुटाने के लिए निर्धारित किया जाता है।

  • ये बांड, आम तौर पर किसी परिसंपत्ति से संबद्ध होते हैं, और जारीकर्ता इकाई की बैलेंस शीट द्वारा समर्थित होते हैं, इसलिए इन बांड्स को प्रायः जारीकर्ता के अन्य ऋण दायित्वों के समान ‘क्रेडिट रेटिंग’ दी जाती है।
  • निवेशकों को आकर्षित करने हेतु ‘ग्रीन बांड’ में निवेश करने पर प्रोत्साहन के रूप में ‘करों’ आदि से कुछ छूट के साथ भी जारी किया जाता सकता है।
  • विश्व बैंक, ‘हरित बांड’ / ग्रीन बांड’ जारी करने वाली एक प्रमुख संस्था है। इसके द्वारा वर्ष 2008 से अब तक 164 ‘ग्रीन बांड’ जारी किए गए हैं, जिनकी कीमत संयुक्त रूप से 4 बिलियन डॉलर है। ‘क्लाइमेट बॉन्ड इनिशिएटिव’ के अनुसार, वर्ष 2020 में, लगभग 270 बिलियन डॉलर कीमत के ग्रीन बॉन्ड जारी किए गए थे।

‘ग्रीन बॉन्ड’ की कार्य-प्रणाली:

ग्रीन बॉन्ड, किसी भी अन्य कॉरपोरेट बॉन्ड या सरकारी बॉन्ड की तरह ही काम करते हैं।

  • ऋणकर्ताओं द्वारा इन प्रतिभूतियों को, पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली या प्रदूषण को कम करने जैसे ‘सकारात्मक पर्यावरणीय प्रभाव’ डालने वाली परियोजनाओं के ‘वित्तपोषण’ को सुरक्षित करने के लिए जारी किया जाता है।
  • इन बांडों को खरीदने वाले निवेशक, इनके परिपक्व होने या अवधि पूरी होने पर, उचित लाभ अर्जित करने की उम्मीद कर सकते हैं।
  • इसके अलावा, ग्रीन बॉन्ड में निवेश करने पर अक्सर ‘कर’ संबंधी लाभ भी प्राप्त होते हैं।

ग्रीन बॉन्ड बनाम ब्लू बॉन्ड:

‘ब्लू बॉन्ड’ (Blue Bonds), समुद्र और संबंधित पारिस्थितिक तंत्र की रक्षा हेतु परियोजनाओं को वित्तपोषित करने के लिए जारी किए जाने वाले ‘संधारणीयता बांड’ होते हैं।

  • यह बांड, संवहनीय मत्स्य पालन, प्रवाल भित्तियों और अन्य संवेदनशील पारिस्थितिक तंत्रों की सुरक्षा, अथवा प्रदूषण और अम्लीकरण को कम करने वाली परियोजनाओं के लिए जारी किए जा सकते हैं।
  • सभी ब्लू बॉन्ड, ‘ग्रीन बॉन्ड’ होते हैं, लेकिन सभी ‘ग्रीन बॉन्ड’, ब्लू बॉन्ड नहीं होते हैं।

‘ग्रीन बांड बनाम जलवायु बांड’

“ग्रीन बॉन्ड्स” और “क्लाइमेट बॉन्ड्स” को कभी-कभी एक-दूसरे के पर्यायवाची की तरह इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन ‘क्लाइमेट बॉन्ड्स’ शब्द को कुछ अधिकारी, विशेष रूप से कार्बन उत्सर्जन को कम करने या जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने पर केंद्रित परियोजनाओं के लिए उपयोग करते हैं।

इंस्टा जिज्ञासु:

‘यस बैंक’ भारत में ग्रीन इंफ्रास्ट्रक्चर बॉन्ड (Green Infrastructure Bonds – GIBs) जारी करने वाला पहला भारतीय बैंक था। ‘यस बैंक’ ने 2015 में भारत का पहला 1,000 करोड़ रुपये का GIB जारी किया था।

प्रीलिम्स लिंक:

  1. ‘ग्रीन बांड’ के बारे में
  2. कार्य-प्रणाली
  3. विशेषताएं
  4. ये ब्लू बांड से किस प्रकार भिन्न होते हैं।

मेंस लिंक:

ग्रीन बॉन्ड के महत्व पर चर्चा कीजिए।

स्रोत: पीआईबी।

 

 

विषय: आंतरिक सुरक्षा के लिये चुनौती उत्पन्न करने वाले शासन विरोधी तत्त्वों की भूमिका।

राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर


(National Register of Citizens – NRC)

संदर्भ:

असम सरकार द्वारा, जिन 19 लाख लोगों के नाम अगस्त, 2019 में प्रकाशित ‘राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर’ (National Register of Citizens – NRC) की पूरक सूची में शामिल नहीं थे, उनकी समस्या को देखने के लिए एक कैबिनेट उपसमिति का गठन किया गया है।

संबंधित प्रकरण:

राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर’ ( NRC) की पूरक सूची में शामिल नहीं होने की वजह से इन लोगों के बायोमेट्रिक विवरण लॉक हैं, और उन्हें आधार कार्ड नहीं मिल पा रहे हैं जिस कारण इनको किसी कल्याणकारी योजना का लाभ भी नहीं मिल पा रहा हैं। इसलिए इस मुद्दे को जल्द से जल्द हल करने की जरूरत है।

पृष्ठभूमि:

31 अगस्त, 2019 को प्रकाशित अंतिम मसौदा में, असम राज्य में, 3.29 करोड़ आवेदकों में से 19 लाख से अधिक को ‘राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर’ (NRC) सूची से बाहर रखा गया था। इस सूची को तैयार करने में ₹1,220 करोड़ की राशि व्यय हुई थी।

सरकार ने ‘राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर’ को उसके मौजूदा स्वरूप में खारिज कर दिया था, और बांग्लादेश की सीमा से लगे क्षेत्रों में कम से कम 30% और राज्य के बाकी हिस्सों में 10% नामों के पुन: सत्यापन कराए जाने की मांग की थी।

सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में, असम राज्य में, वर्ष 1951 के ‘राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर’ को अद्यतन करने की प्रक्रिया पूरी की गई थी। इसके तहत, कुल 3.30 करोड़ आवेदकों में से 19.06 लाख आवेदक ‘राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर’ की अद्यतन सूची से बाहर हो गए थे।

 

‘राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर’ क्या है?

  • राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) मुख्यतः अवैध भारतीय नागरिकों का आधिकारिक रिकॉर्ड है। इसमें ‘नागरिकता अधिनियम, 1955 के अनुसार, भारतीय नागरिक के रूप में पात्र व्यक्तियों के बारे में जनांकिक विवरण शामिल किया जाता है।
  • सबसे पहले इस रजिस्टर को वर्ष 1951 की जनगणना के बाद तैयार किया गया था। इसके बाद, कुछ समय पूर्व तक कभी भी अद्यतन / अपडेट नहीं किया गया था।

असम में NRC:

अब तक, केवल असम राज्य के लिए इस तरह के डेटाबेस को तैयार किया गया है।

असम में NRC प्रक्रिया, केंद्र सरकार तथा ‘अखिल असम छात्र संघ’ (AASU) और ‘अखिल असम गण संग्राम परिषद’ (AAGSP) के बीच वर्ष 1985 हस्ताक्षरित ‘असम समझौते’ (Assam Accord of 1985) के बाद शुरू की गयी थी। इस समझौते में, विदेशी नागरिकों का पता लगाने, उन्हें मताधिकार से वंचित करने और निर्वासित करने की शर्त रखी गयी थी।

असम में ‘राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर’ को अद्यतन किए जाने का कारण:

वर्ष 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने, नागरिकता अधिनियम, 1955 और नागरिकता नियम, 2003 के अनुसार, असम के सभी भागों में ‘राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर’ को अद्यतन करने का आदेश दिया था। यह प्रक्रिया आधिकारिक तौर पर वर्ष 2015 में शुरू हुई।

मौजूदा मुद्दे:

  • वर्ष 2018 में प्रकाशित असम के ‘राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर’ (National Register of Citizens- NRC)  की मसौदा सूची में लाखों लोग छूट गए थे।
  • सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी नियमों के अनुसार, ‘राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर’ (NRC) मसौदा सूची से बाहर राज जाने व्यक्तियों के लिए, खुद को ‘राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर’ में शामिल करने हेतु किए जाने वाले ‘दावों’ और किसी अन्य व्यक्ति के सूची में शामिल होने पर की जाने वाली ‘आपत्ति’ की सुनवाई प्रक्रिया के दौरान, अपनी बायोमेट्रिक्स पहचान दर्ज कराना अनिवार्य था।
  • 2018 में प्रकाशित सूची से बाहर रह गए 27 लाख लोगों ने अपना बायोमेट्रिक विवरण जमा किया और इनमें से केवल 8 लाख लोगों को वर्ष 2019 में प्रकाशित अद्यतन मसौदा सूची में शामिल किया गया। किंतु, ये 8 लाख लोग अपना ‘आधार’ कार्ड बनवाने के लिए के लिए संघर्ष कर रहे हैं, और इनको ‘आधार कार्ड’ से जुडी सुविधाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा है।
  • कोई स्पष्ट रास्ता नहीं मिल पाने और ‘आधार’ आधरित लाभों के नहीं मिलने की वजह से इन व्यक्तियों पर अत्यधिक मानसिक तनाव झेलना पड़ रहा है।
  • यह स्थिति मुख्य रूप से ‘राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर’ प्रक्रिया पर स्पष्टता की कमी के कारण उत्पन्न हुई है। चूंकि, अभी तक क्योंकि पूर्ण और अंतिम ‘राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर’ सूची प्रकाशित नहीं हुई है, और इस वजह से सरकार ने अद्यतन सूची में शामिल किए गए इन व्यक्तियों को ‘आधार संख्या’ प्रदान करने पर रोक लगा रखी है।

इंस्टा जिज्ञासु:

राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (National Population Register- NPR) क्या है? क्या यह ‘राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर’ (NRC)  से संबंधित है? जानकारी के लिए पढ़िए।

प्रीलिम्स लिंक:

  1. जनगणना और NPR के बीच संबंध।
  2. NPR बनाम NRC
  3. NRC, असम समझौते से किस प्रकार संबंधित है।
  4. नागरिकता प्रदान करने और रद्द करने के लिए संवैधानिक प्रावधान।
  5. जनगणना किसके द्वारा की जाती है?

मेंस लिंक:

एक राष्ट्रव्यापी राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC)  प्रक्रिया क्यों नहीं संभव हो सकती है, चर्चा कीजिए।

स्रोत: द हिंदू।

 

 

विषय: सीमावर्ती क्षेत्रों में सुरक्षा चुनौतियाँ एवं उनका प्रबंधन- संगठित अपराध और आतंकवाद के बीच संबंध।

‘वास्तविक नियंत्रण रेखा’ के साथ भारत के बुनियादी ढांचे का प्रमुख उन्नयन


संदर्भ:

गृह मामलों पर विभाग-संबंधित संसदीय स्थायी समिति की रिपोर्ट के अनुसार:

  • भारत-चीन सीमा पर – जहाँ विशेष रूप सीमा रेखा पर हुए विवाद के बाद वर्ष 2020 में गलवान में चीनी सैनिकों के साथ झड़पें हुईं थी- ‘बुनियादी ढाँचा’ में बड़े स्तर पर उन्नयन / अपग्रेडेशन किया जा रहा है।
  • भारत-चीन सीमा सड़क परियोजना के 11 वें चरण के तहत, 18 सीमा सड़कें पहले से ही पूर्ण होकर चालू चुकी हैं, 7 सीमा सड़कें पूरी होने वाली हैं और 8 सड़कों पर काम जारी है।
  • ‘सीमावर्ती क्षेत्र विकास कार्यक्रम’ के अंतर्गत ‘जीवंत ग्राम पहल’ (Vibrant Village Initiative) के तहत सीमावर्ती गांवों में सड़क, मोबाइल टावर, बैंक आदि का निर्माण करके विकास को गति दी जाएगी।

 

एलएसी के साथ बुनियादी ढांचे का विकास क्यों महत्वपूर्ण है?

  • वास्तविक नियंत्रण रेखा (Line of Actual Control – LAC) के साथ कई बिंदुओं पर चीन के साथ हालिया सीमा संबंधी तनाव, पिछली घटनाओं की तुलना में अधिक गंभीर है, और यह चीन की योजना और लंबे समय तक गतिरोध की संभावना को दर्शाते है।
  • इसलिए, ‘वास्तविक नियंत्रण रेखा’ के साथ बुनियादी ढांचे का निर्माण “इन क्षेत्रों को भीतरी इलाकों के साथ एकीकृत करने में मदद करेगा तथा देश द्वारा निगरानी की सकारात्मक धारणा उत्पन्न करेगा और लोगों को सुरक्षित सीमाओं की ओर स्थित सीमावर्ती क्षेत्रों में रहने के लिए प्रोत्साहित करेगा”।

 

भारत-चीन सीमा:

  • भारत और चीन 3,488 किलोमीटर लंबी सीमा साझा करते हैं। दुर्भाग्य से पूरी सीमा विवादित है। दोनों देशों के बीच की सीमा का निर्धारण करने वाली रेखा, आम भाषा में मैकमोहन रेखा कहलाती है। इसका नामकरण सीमा-रेखा का निर्धारण करने वाले सर हेनरी मैकमोहन के नाम पर किया गया है।
  • 1913 में, ब्रिटिश-भारत सरकार ने एक त्रिपक्षीय सम्मेलन बुलाया था, जिसमें भारतीय और तिब्बतियों के बीच चर्चा के बाद भारत और तिब्बत के बीच की सीमा को औपचारिक रूप दिया गया था। इस सम्मलेन में एक अभिसमय पारित किया गया, जिसके परिणामस्वरूप भारत-तिब्बत सीमा का परिसीमन हुआ। हालाँकि, यह सीमा चीन द्वारा विवादित है, जोकि इसे अवैध बताता है।
  • 1957 में, चीन ने अक्साई चिन पर कब्जा कर लिया और इसके होकर गुजरने वाली एक सड़क का निर्माण किया। इस प्रकरण के बाद सीमा पर रुक-रुक कर झड़पें हुईं, जो अंततः 1962 के सीमा युद्ध में समाप्त हुईं।
  • युद्ध के बाद अस्तित्व में आई सीमा को ‘वास्तविक नियंत्रण रेखा’ (LAC) के रूप में जाना जाने लगा।

 

 

सीमा क्षेत्र विकास कार्यक्रम:

गृह मंत्रालय द्वारा 1986-87 में सीमा प्रबंधन के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण के हिस्से के रूप में ‘सीमा क्षेत्र विकास कार्यक्रम’ (Border Area Development Programme – BADP) लॉन्च किया गया था।

  • यह कार्यक्रम बुनियादी ढांचे के विकास और सीमावर्ती आबादी के बीच सुरक्षा की भावना को बढ़ावा देने के माध्यम से सीमावर्ती क्षेत्रों के संतुलित विकास को सुनिश्चित करने के लिए शुरू किया गया था।
  • इस कार्यक्रम के तहत कवर किए गए राज्य अरुणाचल प्रदेश, असम, बिहार, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, पंजाब, राजस्थान, सिक्किम, त्रिपुरा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल हैं।

प्रीलिम्स लिंक:

  1. LoC क्या है और इसका निर्धारण किस प्रकार किया जाता है, भौगोलिक विस्तार और महत्व?

  2. LAC क्या है?

  3. नाथू ला कहाँ है?

  4. पैंगोंग त्सो कहाँ है?

  5. अक्साई चिन का प्रशासन कौन करता है?

मेंस लिंक: बुनियादी ढांचे के निर्माण से सीमावर्ती क्षेत्रों को भीतरी इलाकों के साथ एकीकृत करने में मदद मिलेगी, देश द्वारा देखभाल की सकारात्मक धारणा पैदा होगी और लोगों को सुरक्षित और सुरक्षित सीमाओं की ओर जाने वाले सीमावर्ती क्षेत्रों में रहने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा। चर्चा कीजिए।

स्रोत: द हिंदू।

 


प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य


 बहिनी योजना

(Bahini Scheme)

यह ‘सिक्किम सरकार’ द्वारा घोषित योजना है।

  • इस योजना का उद्देश्य “माध्यमिक और वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय जाने वाली लड़कियों को मुफ्त और सुरक्षित सैनिटरी पैड तक 100 प्रतिशत पहुंच” प्रदान करना है।
  • इसके तहत राज्य भर में अपने सभी 210 माध्यमिक और वरिष्ठ माध्यमिक सरकारी स्कूलों में मुफ्त सैनिटरी पैड प्रदान करने के लिए वेंडिंग मशीन स्थापित की जाएगी।
  • इसका उद्देश्य स्कूलों से लड़कियों की ड्रॉपआउट को रोकना और मासिक धर्म स्वच्छता के बारे में जागरूकता बढ़ाना है।
  • यह पहली बार है जब किसी राज्य सरकार ने कक्षा 9-12 में पढ़ने वाली सभी लड़कियों को कवर करने का निर्णय लिया है।

MANPADS

अमेरिका और नाटो के सहयोगी देशों द्वारा यूक्रेन को रूसी सेना के हमलों का मुकाबला करने में मदद करने के लिए यूक्रेन में हथियारों की खेप भेजी जा रही है। इन हथियारों में एक प्रकार की कंधे से चलने वाली ‘मैन-पोर्टेबल एयर-डिफेंस सिस्टम’ (MANPADS)  यूएस-निर्मित स्टिंगर मिसाइलें शामिल हैं।

  • ‘मैन-पोर्टेबल एयर-डिफेंस सिस्टम’ कम दूरी की, हल्की और पोर्टेबल सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइलें हैं जिन्हें विमान या हेलीकॉप्टर को नष्ट करने के लिए व्यक्तियों या छोटे समूहों द्वारा दागा जा सकता है।
  • वे मिसाइलें हवाई हमलों से सैनिकों को घाल प्रदान करने में मदद करते हैं और कम उड़ान वाले विमानों को निशाना बनाने में सबसे प्रभावी होती हैं।
  • MANPADS को कंधे से दागा किया जा सकता है, एक जमीनी वाहन के ऊपर से लॉन्च किया जा सकता है, एक तिपाई या स्टैंड से और एक हेलीकॉप्टर या नाव से भी दागा जा सकता है।

मारक क्षमता: MANPADS की अधिकतम मारक सीमा 8 किलोमीटर है और यह 4.5 किमी की ऊंचाई पर लक्ष्य को भेद सकती है।

 

फूलदेई पर्व

(Phool dei)

फूलदेई पर्व (Phool dei) उत्तराखंड के गढ़वाल और कुमाऊं क्षेत्रों में हर साल फूलों के मौसम (मार्च-अप्रैल) में लगभग एक महीने तक मनाया जाता है।

  • स्थानीय मान्यता यह है कि देवताओं के लिए घरों के दरवाजे पर फूल रखने से समृद्धि और आशीर्वाद मिलता है।
  • बच्चों के समूह, जिन्हें फूल्यारी के नाम से जाना जाता है, घरों में प्रतिदिन फूल लाते हैं और वसंत के अंतिम दिन प्रत्येक परिवार से बदले में धन और मिठाई प्राप्त करते हैं।
  • त्योहार समुदायों के बीच शांति और सद्भाव का भी प्रतीक है।

 

वानिकी पहलों के माध्यम से 13 प्रमुख नदियों का कायाकल्प

केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री द्वारा वानिकी संबंधी पहलों के माध्यम से 13 प्रमुख नदियों के कायाकल्प पर विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (Detailed Project Reports – DPRs) जारी की गयी।

  • वानिकी पहलों के लिए चिह्नित की गई नदियों में झेलम, चिनाब, रावी, ब्यास, सतलुज, यमुना, ब्रह्मपुत्र, लूनी, नर्मदा, गोदावरी, महानदी, कृष्णा और कावेरी शामिल हैं।
  • 13 नदियां सामूहिक रूप से 18,90,110 वर्ग किमी के कुल बेसिन क्षेत्र को आच्छादित करती हैं, जो देश के भौगोलिक क्षेत्र का 57.45 फीसदी हिस्से का प्रतिनिधित्व करता है।
  • वित्त पोषित: परियोजना को राष्ट्रीय वनीकरण और पारिस्थितिकी विकास बोर्ड द्वारा वित्त पोषित किया जाएगा।

नदी कायाकल्प परियोजना का उद्देश्य निम्नलिखित चार लक्ष्यों को प्राप्त करना है:

  1. नदियों और उनके परिदृश्य का सतत प्रबंधन
  2. जैव विविधता संरक्षण और पारिस्थितिक बहाली
  3. स्थायी आजीविका में सुधार
  4. जानकारी प्रबंधन

 

मातृ मृत्यु दर

मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य में केरल शीर्ष पर है, और यहाँ देश में सबसे कम मातृ मृत्यु अनुपात दर्ज किया गया है।

  • केरल में मातृ मृत्यु अनुपात (Maternal Mortality Ratio – MMR), ‘राष्ट्रीय एमएमआर’ 103 से काफी आगे है।
  • कुल मिलाकर भारत के MMR में 10 अंक की गिरावट आई है। यह 2016-18 में 113 से घटकर 2017-18 में 103 (8.8% गिरावट) हो गई है।
  • देश में एमएमआर में 2014-2016 में 130, 2015-17 में 122, 2016-18 में 113 और 2017-18 में 103 से उत्तरोत्तर कमी देखी गई थी।
  • मातृ मृत्यु दर, गर्भावस्था के दौरान या गर्भावस्था के बाद होने वाली महिलाओं की मृत्यु-दर होती है, जिसमें गर्भपात के बाद या जन्म के बाद की अवधि भी शामिल होती है।

Current Affairs

 

 


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