विषयसूची
सामान्य अध्ययन-II
1. एक्ट ईस्ट पॉलिसी
2. सोशल स्टॉक एक्सचेंज
सामान्य अध्ययन-III
1. एग्रीस्टैक
2. बागवानी
3. सूक्ष्म वित्त विनियम
4. सुधार-आधारित और परिणाम-लिंक्ड, संशोधित वितरण क्षेत्र योजना
5. भारत में बेरोजगारी
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य
1. इस्लामोफोबिया का मुकाबला करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय दिवस
सामान्य अध्ययन-II
विषय: भारत एवं इसके पड़ोसी- संबंध।
एक्ट ईस्ट पॉलिसी
(Act East Policy)
संदर्भ:
हाल ही में “एक्ट ईस्ट पॉलिसी” (Act East Policy) पर एक वेबिनार का आयोजन किया गया था।
‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’ के बारे में:
भारत की ‘एक्ट ईस्ट’ (Act East) नीति अर्थात ‘पूरब में काम करो नीति, विभिन्न स्तरों पर विस्तृत एशिया-प्रशांत क्षेत्र के साथ आर्थिक, रणनीतिक और सांस्कृतिक संबंधों को बढ़ावा देने के लिए एक ‘कूटनीतिक पहल’ है।
- इसे 1991 में तत्कालीन प्रधान मंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव द्वारा शुरू की गयी ‘लुक ईस्ट पॉलिसी’ (Look East Policy) अर्थात ‘पूरब की ओर देखो नीति’ का आधुनिक संस्करण माना जाता है।
- “एक्ट ईस्ट पॉलिसी” की शुरुआत नवंबर 2014 में म्यांमार में आयोजित ‘पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन’ में की गई थी।
“एक्ट ईस्ट पॉलिसी” के तहत भारत सरकार, आसियान देशों के साथ बेहतर संबंध विकसित करने के लिए 3 सी (संस्कृति, कनेक्टिविटी और वाणिज्य) अर्थात 3 C’s (Culture, Connectivity, and Commerce) पर जोर देती है।
“लुक ईस्ट पॉलिसी” एवं “एक्ट ईस्ट पॉलिसी” के बीच प्रमुख अंतर:
- “पूर्व की ओर देखो नीति” (लुक ईस्ट पॉलिसी) में ‘दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के संघ’ (आसियान) के साथ आर्थिक एकीकरण पर ध्यान केंद्रित किया गया था, और नीति केवल दक्षिण पूर्व एशिया तक ही सीमित थी।
- दूसरी ओर “एक्ट ईस्ट पॉलिसी”, आसियान देशों के आर्थिक एकीकरण तथा पूर्वी एशियाई देशों के साथ सुरक्षा सहयोग पर केंद्रित है।
‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’ के उद्देश्य:
- क्षेत्रीय, द्विपक्षीय और बहुपक्षीय स्तरों पर निरंतर जुड़ाव के माध्यम से एशिया-प्रशांत क्षेत्र के देशों के साथ आर्थिक सहयोग, सांस्कृतिक संबंधों को बढ़ावा देना और रणनीतिक संबंध विकसित करना।
- उत्तर-पूर्वी भारतीय राज्यों के अन्य पड़ोसी देशों के साथ संपर्कों को बढ़ाना।
विशेषज्ञों के अनुसार- भारत सरकार “एक्ट ईस्ट पॉलिसी” के तहत आसियान देशों के साथ बेहतर संबंध विकसित करने के लिए, 3 सी अर्थात संस्कृति, कनेक्टिविटी और वाणिज्य, (3 C’s – Culture, Connectivity, and Commerce) पर यकीन करती है।
महत्व:
- एक्ट ईस्ट पॉलिसी (AEP) के तहत, ‘भारत-जापान रणनीतिक साझेदारी’ को पूरी तरह से एक नए स्तर पर ले जाया गया है, जो भारत-प्रशांत सहयोग के महत्व को रेखांकित करता है।
- भारत एक स्वतंत्र, खुला और समावेशी एवं एक सहकारी और सहयोगी क़ानून-आधारित व्यवस्था पर स्थापित ‘इंडो-पैसिफिक’ में विश्वास करता है।
- ‘आसियान की केंद्रीयता’ क्षेत्रीय स्तर पर ‘इंडो-पैसिफिक’ की स्थायी समकालीन विशेषता बनी हुई है।
- भारत ने दक्षिण, दक्षिणपूर्व और पूर्वी एशिया के देशों के साथ अपने संपर्कों के केंद्र में ‘इंडो-पैसिफिक’ को रखा है। धीरे-धीरे ‘एक्ट ईस्ट’ पॉलिसी, ‘एक्ट इंडो-पैसिफिक’ नीति में तब्दील होती जा रही है।
प्रीलिम्स लिंक:
- ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’ क्या है?
- भारत-प्रशांत क्षेत्र
- SAARC
- पूर्व की ओर देखो नीति
मेंस लिंक:
‘लुक ईस्ट पॉलिसी’ के महत्व पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: द हिंदू।
विषय: केन्द्र एवं राज्यों द्वारा जनसंख्या के अति संवेदनशील वर्गों के लिये कल्याणकारी योजनाएँ और इन योजनाओं का कार्य-निष्पादन; इन अति संवेदनशील वर्गों की रक्षा एवं बेहतरी के लिये गठित तंत्र, विधि, संस्थान एवं निकाय।
सोशल स्टॉक एक्सचेंज
(Social Stock Exchange)
संदर्भ:
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर स्टॉक से संबंधित सुझाव देने वाले अपंजीकृत सलाहकारों पर ‘भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड’ (SEBI) की कार्रवाई का केंद्र सरकार ने समर्थन किया है।
संबधित प्रकरण:
यूट्यूब, ट्विटर, टेलीग्राम सहित कई सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म SEBI के साथ गैर-पंजीकृत कई सलाहकार शेयर बाजारों पर सलाह प्रदान कर रहे हैं।
अब, ‘भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड’ ऐसे सलाहकारों पर अपनी पकड़ मजबूत करने जा रहा है, क्योंकि इनके द्वारा दी गयी सलाहे निवेशकों को अक्सर गुमराह करती हैं और बाजार को नुकसान पहुंचाती है।
पृष्ठभूमि:
पहली बार 2019 के बजट भाषण के दौरान SEBI के विनियामक अधिकार के तहत एक ‘सोशल स्टॉक एक्सचेंज’ (SSE) गठित करने का प्रस्ताव पेश किया गया था।
- सितंबर, 2019 में SEBI द्वारा इशरात हुसैन की अध्यक्षता में सोशल स्टॉक एक्सचेंज (Social Stock Exchanges – SSE) पर एक ‘कार्यकारी समूह’ (Working Group) का गठन किया गया था।
- सितंबर 2020 में, SEBI द्वारा एक ‘टास्क ग्रुप’ का गठन किया गया, क्योंकि उसे लगा कि ‘कार्यकारी समूह’ की सिफारिश पर और विशेषज्ञ सलाह और स्पष्टता की आवश्यकता है।
‘सोशल स्टॉक एक्सचेंज’ (SSE) क्या है?
- भारत में सोशल स्टॉक एक्सचेंज एक नवीन अवधारणा है। इस स्टॉक एक्सचेंज पर सामाजिक उद्यमों और स्वैच्छिक संगठनों को सूचीबद्ध कराया जाएगा। इसके तहत सामाजिक संगठन इक्विटी और बांड और म्यूचुअल फंड की तरह यूनिट जारी कर कोष जुटा सकेंगे।
- प्रस्ताव के अनुसार, ‘सोशल स्टॉक एक्सचेंज’ मौजूदा स्टॉक एक्सचेंज जैसे BSE और / या नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) में रखा जा सकते है।
महत्व:
- इसके साथ, सामाजिक कल्याण उद्यमों और गैर-लाभकारी संस्थाओं के लिए एक पारदर्शी इलेक्ट्रॉनिक प्लेटफॉर्म पर तथाकथित सामाजिक पूंजी जुटाने में सक्षम हो सकेंगी, जिससे वे कोरोनोवायरस महामारी के कारण तबाह हुए रोजगार के साधनों का पुनर्निर्माण करने में सहयोग कर सकते हैं।
- समिति की इन सिफारिशों को यदि एक पैकेज के रूप में लागू किया जाता हैं, तो एक जीवंत और सहायक पारिस्थितिकी तंत्र हो सकता है, जिससे गैर-लाभकारी क्षेत्र द्वारा सामाजिक प्रभाव का निर्माण करने के लिए अपनी पूरी क्षमता का उपयोग किया जा सकेगा।
सामाजिक पूंजी की आवश्यकता:
- भारत के लिए उन रोजगार के साधनों, जो उसकी अर्थव्यवस्था के आधार हैं, को दुरस्त करने और उनके पुनर्निर्माण के लिए सहनशील पूंजी (Patient Capital) की एक महत्वपूर्ण राशि की आवश्यकता होगी। वित्तीय लाभ को प्राथमिकता देने वाली ‘परम्परागत पूंजी’ (Conventional capital) इस तरह का बोझ उठाने में पूरी तरह से सक्षम नहीं हो पाएगी।
- दूसरी ओर, इस भूमिका के लिए सामाजिक पूंजी (Social capital) अधिक अनुकूल है। यह न केवल सहनशील है, बल्कि इसका लक्ष्य, कोविड-19 की वजह से ढहने के कगार पर पहुँच चुकी सामाजिक संरचनाओं के लिए सहायता देना और इनका सुदृढ़ीकरण करना है।
‘सामाजिक उद्यम’ क्या है?
- ‘सामाजिक उद्यम’ (social enterprise) राजस्व निर्माण करने वाले व्यवसाय होते है। इसका मुख्य लक्ष्य एक सामाजिक उद्देश्य, जैसे स्वास्थ्य सेवा या स्वच्छ ऊर्जा की प्राप्ति करना है।
- इसका कोई अर्थ नहीं है कि एक सामाजिक उद्यम, अत्यधिक लाभदायक नहीं हो सकता है। वास्तव में, अधिकांश सामाजिक उद्यम पारंपरिक व्यवसायों की तरह दिखते और संचालित होते हैं। इनमे एकमात्र अंतर यह होता है कि इन संस्थाओं द्वारा उत्पन्न लाभ का उपयोग आवश्यक रूप से हितधारकों के भुगतान के लिए नहीं किया जाता है, इसके स्थान पर उनके सामाजिक कार्यक्रमों में पुनर्निवेश किया जाता है।
प्रीलिम्स लिंक:
- सामाजिक उद्यम क्या है?
- SSE क्या है?
- सामाजिक पूंजी क्या है?
- सेबी- प्रमुख कार्य।
मेंस लिंक:
भारत को अपनी अर्थव्यवस्था के आधारभूत कार्मिकों की आजीविका को सुधारने तथा पुनर्निर्माण करने हेतु काफी सामाजिक पूंजी की आवश्यकता होगी। चर्चा कीजिए।
स्रोत: पीआईबी।
सामान्य अध्ययन-III
विषय: मुख्य फसलें- देश के विभिन्न भागों में फसलों का पैटर्न- सिंचाई के विभिन्न प्रकार एवं सिंचाई प्रणाली- कृषि उत्पाद का भंडारण, परिवहन तथा विपणन, संबंधित विषय और बाधाएँ; किसानों की सहायता के लिये ई-प्रौद्योगिकी।
एग्रीस्टैक
(AgriStack)
संदर्भ:
सरकार द्वारा ‘कृषि डेटासेट का डिजिटल ‘स्टैक’ बनाने पर कार्य किया जा रहा है, जिसके मूल में ‘भूमि रिकॉर्ड’ तैयार करना है।
किंतु, इस तरह के ‘केंद्रीकृत स्टैक’ में पुराने और अशुद्ध भूमि अभिलेखों का किया जाएगा; मजबूत डेटा संरक्षण कानून के बगैर किसानों के व्यक्तिगत और वित्तीय विवरण का उपयोग किया जाएगा। और चूंकि ग्रामीण क्षेत्रों में डिजिटल साक्षरता का स्तर अभी काफी निम्न है। इसलिए, विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसा ‘एग्रीस्टैक’ (AgriStack) समस्यात्मक है।
एग्रीस्टैक के बारे में:
- ‘एग्रीस्टैक’ (AgriStack), भारत के किसानों और कृषि क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित करते हुए केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित प्रौद्योगिकियों और डिजिटल डेटाबेस का एक संग्रह है।
- केंद्र सरकार का दावा है, कि इस प्रकार के नए डेटाबेस मुख्य रूप से कृषि आपूर्ति श्रृंखला में ऋणों तक पहुंच में कमी और अपव्यय जैसे मुद्दों से निपटने के लिए तैयार किए जा रहे हैं।
विशेषताएं और महत्व:
- एग्रीस्टैक’ के तहत, सरकार का लक्ष्य ‘स्मार्ट और सुव्यवस्थित कृषि’ के लिए एक किसान इंटरफ़ेस विकसित करने हेतु माइक्रोसॉफ्ट (Microsoft) को किसानों की निजी जानकारी के ‘आवश्यक डेटा सेट’ प्रदान करना है।
- ये डिजिटल भंडार सब्सिडी, सेवाओं और नीतियों के सटीक लक्ष्यीकरण में मदद करेगा।
- इस कार्यक्रम के तहत, देश के प्रत्येक किसान को विशिष्ट पहचान के लिए भूमि अभिलेखों से जुड़ी एक एफआईडी अर्थात ‘किसान आईडी’ (farmers’ ID) प्रदान की जाएगी। भारत में 140 मिलियन कार्यात्मक कृषि-भूमि जोतें (farm-land holdings) है।
संबंधित चिंताओं के कारण:
- यह परियोजना, बगैर ‘डेटा संरक्षण कानून’ बनाए कार्यान्वित की जा रही थी।
- यह एक ऐसी प्रक्रिया साबित हो सकती है, जिसमे निजी डाटा प्रोसेसिंग संस्थाओं को किसान की भूमि के बारे में, खुद किसान की तुलना में अधिक जानकारी हो सकती हैं।
- सुरक्षा उपायों के बिना, निजी संस्थाएं किसानों के डेटा का जितना चाहें उपयोग कर सकेंगी।
- यह जानकारी विषमता, प्रौद्योगिकी कंपनियों की ओर झुकी हुई है, जिससे किसानों, विशेष रूप से छोटे और सीमांत किसानों का और अधिक शोषण हो सकता है।
आवश्यकता:
- वर्तमान में, संपूर्ण भारत में अधिकांश किसान, छोटे और सीमांत किसान हैं जिनके पास उन्नत तकनीकों या औपचारिक ऋण तक पहुंच सीमित है। तकनीकों और औपचारिक ऋण तक पहुंच में सुधार होने से फसल-उत्पादन में सुधार और बेहतर मूल्य प्राप्त करने में मदद मिल सकती है।
- कार्यक्रम के तहत, नई प्रस्तावित डिजिटल कृषि प्रौद्योगिकियों और सेवाओं में मवेशियों की निगरानी के लिए सेंसर, मिट्टी का विश्लेषण करने और कीटनाशक लगाने के लिए ड्रोन, कृषि उपज में उल्लेखनीय सुधार और किसानों की आय को बढ़ावा देना शामिल है।
प्रीलिम्स लिंक:
- एग्रीस्टैक क्या है?
- इसकी कार्यविधि
- कार्यान्वयन
- विशेषताएं
मेंस लिंक:
एग्रीस्टैक के कार्यान्वयन से जुड़ी चिंताओं पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: पीआईबी।
विषय: मुख्य फसलें- देश के विभिन्न भागों में फसलों का पैटर्न- सिंचाई के विभिन्न प्रकार एवं सिंचाई प्रणाली- कृषि उत्पाद का भंडारण, परिवहन तथा विपणन, संबंधित विषय और बाधाएँ; किसानों की सहायता के लिये ई-प्रौद्योगिकी।
ग्रीनहाउस बागवानी
(Greenhouse Horticulture)
संदर्भ:
2021 में भारत के ‘ग्रीनहाउस बागवानी’ (Greenhouse Horticulture) बाजार का बाजार मूल्य 190.84 मिलियन अमेरिकी डॉलर था और वर्ष 2030 तक इसके 271.25 मिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है।
- अनुमानित अवधि के दौरान बाजार में 4.19% की वृद्धि दर दर्ज करने की उम्मीद है।
- 2021 में, भारत का ग्रीनहाउस बागवानी उत्पादन 27.71 मिलियन टन था।
‘ग्रीनहाउस बागवानी’ के बारे में:
ग्रीनहाउस बागवानी को ‘संरक्षित फसल’ (Protected Cropping) के रूप में भी जाना जाता है। इस पद्धति में, बदलती वृद्धिमान परिस्थितियों और/या प्रतिकूल मौसम, कीटों और बीमारियों से सुरक्षा प्रदान करने के लिए विशेष ढांचों / संरचनाओं के भीतर, नीचे या आश्रय वाली ‘बागवानी फसलों’ का उत्पादन किया जाता है।
बागवानी विकास प्रभावित करने वाले कारक:
- जनसंख्या और भोजन की मांग में जोरदार वृद्धि।
- सरकार के प्रयत्नों के कारण बागवानी के अंतर्गत उद्यमशीलता में वृद्धि।
‘बागवानी’ के बारे में:
‘बागवानी’ या ‘उद्यान कृषि’ (Horticulture) शब्द दो लैटिन शब्दों ‘हॉर्टस’ (Hortus) अर्थात ‘उद्यान’ और ‘कल्चरा’ (Cultura) अर्थात कल्टीवेशन (कृषि) से मिलकर बना है। इसलिए इसका अर्थ है, बगीचे में खेती की जाने वाली फसलें।
- यह मानव भोजन, गैर-खाद्य उपयोगों और सामाजिक आवश्यकताओं के लिए फलों, सब्जियों, फूलों और अन्य पौधों के उत्पादन, उपयोग और सुधार करने का विज्ञान और कला है।
- एलएच बेली (H. Bailey) को ‘अमेरिकी बागवानी’ का जनक माना जाता है और एम.एच. मैरीगौड़ा (M.H. Marigowda) को भारतीय बागवानी का जनक माना जाता है।
डेटा विश्लेषण:
- भारत, विश्व में चीन के बाद फलों और सब्जियों का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है।
- बागवानी फसलें, भारत में कुल कृषि उपज का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, और एक विस्तृत खेती क्षेत्र को कवर करती हैं, इसके अलावा सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में इनका योगदान लगभग 28 प्रतिशत है।
- भारत से कृषि वस्तुओं के कुल निर्यात में बागवानी फसलों का हिस्सा 37 प्रतिशत हैं।
- वर्ष 2019-20 के दौरान, देश में 25.66 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र से 320.77 मिलियन टन बागवानी उत्पादन दर्ज किया गया था।
चुनौतियां:
- कम या सीमित लागत के कारण मशीनरी और उपकरणों की उपलब्धता-अंतराल और फसल कटाई के बाद के प्रबंधन की ऊँची लागत की वजह से, काफी नुकसान का सामना करना पड़ता है।
- कोल्ड स्टोरेज और अच्छी तरह से जुड़े परिवहन नेटवर्क जैसे आपूर्ति श्रृंखला के बुनियादी ढांचे का अभाव।
- मुख्य रूप से निर्यात के लिए उच्च इनपुट लागत और बाजार आसूचना की सीमित उपलब्धता के कारण बागवानी फसलों को लगाने में कठिनाइयाँ।
- खाद्यान्नों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) जैसे कोई सुरक्षा प्रावधान उपलब्ध नहीं हैं।
- देश में मौजूदा मांग की तुलना में बागवानी वस्तुओं का उत्पादन काफी कम है।
एकीकृत बागवानी विकास मिशन:
(Mission for Integrated Development of Horticulture – MIDH)
यह फल, सब्जी, मशरूम, मसालों, फूल, आदि को शामिल करते हुए बागवानी क्षेत्र के फसलों के समग्र विकास हेतु एक ‘केंद्र प्रायोजित योजना’ है।
- इस योजना को ‘कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय’ द्वारा वर्ष 2014-15 से लगातार कार्यान्वित किया जा रहा है।
- एकीकृत बागवानी विकास मिशन (MIDH) के तहत, भारत सरकार पूर्वोत्तर और हिमालयी राज्यों को छोड़कर सभी राज्यों में विकास कार्यक्रमों के कुल परिव्यय का 60% योगदान करती है, जिसमें 40% हिस्सा राज्य सरकारों द्वारा दिया जाता है।
- पूर्वोत्तर और हिमालयी राज्यों के मामले में भारत सरकार 90% योगदान करती है।
बागवानी पर एकीकृत बागवानी विकास मिशन की पांच प्रमुख योजनाएं हैं-
- राष्ट्रीय बागवानी मिशन (National Horticulture Mission – NHM)
- पूर्वोत्तर और हिमालयी राज्यों के लिए बागवानी मिशन (Horticulture Mission for North East and Himalayan States – HMNEH)
- राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड (National Horticulture Board – NHB)
- नारियल विकास बोर्ड (Coconut Development Board – CDB) और
- केंद्रीय बागवानी संस्थान (Central Institute of Horticulture – CIH), नागालैंड।
प्रीलिम्स लिंक:
- राष्ट्रीय बागवानी मिशन
- विशेषताएं
- उप योजनाएं
- राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड
मेंस लिंक:
राष्ट्रीय बागवानी मिशन के महत्व पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: पीआईबी।
विषय: समावेशी विकास तथा इससे उत्पन्न विषय।
सूक्ष्मवित्त विनियम
(Microfinance Regulations)
संदर्भ:
हाल ही में, आरबीआई द्वारा ‘सूक्ष्मवित्त ऋण देने संबंधी नए मानदंड’ (New Microfinance Lending Norms) जारी किए गए हैं।
इन मानदंडों के अनुसार:
- ये मानदंड सभी संस्थाओं, बैंकों, गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां (NBFCs), और माइक्रोफाइनेंस संस्थान (MFIs) पर समान रूप से लागू होंगे।
- एक माइक्रोफाइनेंस ऋण को आरबीआई द्वारा 3 लाख रुपये तक की वार्षिक घरेलू आय वाले परिवार को दिए गए ‘संपार्श्विक-मुक्त’ ऋण (Collateral-Free loan) के रूप में परिभाषित किया गया है।
- कम आय वाले परिवारों को दिए जाने वाले सभी संपार्श्विक-मुक्त ऋण, अंतिम उपयोग और आवेदन/प्रसंस्करण/वितरण के तरीके की परवाह किए बिना, ‘माइक्रोफाइनेंस ऋण’ माने जाते हैं।
- वित्तीय संस्थाओं के पास उधारकर्ताओं की आवश्यकताओं के अनुसार माइक्रोफाइनेंस ऋणों पर चुकौती आवधिकता का लचीलापन प्रदान करने के लिए बोर्ड द्वारा अनुमोदित नीति होनी चाहिए। घरेलू आय के आकलन के लिए उनके पास बोर्ड द्वारा अनुमोदित नीति भी होनी चाहिए।
‘माइक्रोफाइनेंस’ अथवा ‘सूक्ष्म वित्त’ क्या है?
माइक्रोफाइनेंस (Microfinance), गरीब और निम्न आय वाले परिवारों को छोटे ऋण और अन्य वित्तीय सेवाएं प्रदान करने हेतु वित्तीय सेवा का एक रूप होता है।
- सूक्ष्म वित्त संस्थान (MFIs) वे वित्तीय कंपनियां होती हैं जो उन लोगों को लघु ऋण प्रदान करती हैं जिनके पास बैंकिंग सुविधाओं तक पहुंच नहीं है।
- “लघु ऋण” (Small Loans) की परिभाषा, विभिन्न देशों के बीच अलग-अलग होती है। भारत में, 1 लाख रुपये से कम के सभी ऋणों को सूक्ष्म ऋण माना जा सकता है।
सूक्षम ऋण (Microcredit) विभिन्न संस्थागत चैनलों के माध्यम से प्रदान किए जाते हैं, जैसे:
- लघु वित्त बैंकों (SFBs) और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (RRBs) सहित सभी अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक (Scheduled commercial banks)
- सहकारी बैंक
- गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां (NBFCs)
- NBFCs के रूप में पंजीकृत माइक्रोफाइनेंस संस्थान (MFIs)।
प्रस्ताव का महत्व:
- आरबीआई ने इस कदम से माइक्रोफाइनेंस क्षेत्र की परिपक्वता में अपना विश्वास जताया है।
- यह एक दूरंदेशी कदम है जहां पारदर्शी शर्तों पर उचित ब्याज दर तय करने की जिम्मेदारी संस्था को सौपी गयी है।
स्रोत: द हिंदू।
विषय: बुनियादी ढाँचाः ऊर्जा, बंदरगाह, सड़क, विमानपत्तन, रेलवे आदि।
सुधार-आधारित और परिणाम-संबद्ध, संशोधित वितरण क्षेत्रक योजना
(Reforms-Based and Results-Linked, Revamped Distribution Sector Scheme)
संदर्भ:
‘ग्रामीण विद्युतीकरण निगम’ (Rural Electrification Corporation – REC) और ‘विद्युत् वित्त निगम’ (Power Finance Corporation – PFC) द्वारा 31 मार्च तक उत्तर प्रदेश, असम और मेघालय सहित राज्यों के लिए धन-राशि की पहली किश्त जारी की जाएगी। आरईसी और पीएफसी राज्य द्वारा संचालित ऋणदाता इकाइयाँ है, और पिछले साल अगस्त में केंद्रीय विद्युत् मंत्रालय द्वारा शुरू की गई 3.03 लाख करोड़ रुपये की ‘संशोधित वितरण क्षेत्र योजना’ (Revamped Distribution Sector Scheme – RDSS) के लिए नोडल ऋणदाता एजेंसियां हैं।
यह धनराशि केंद्र सरकार से अनुदान के तदर्थ 10% के रूप में वितरित की जाएगी, और शेष राशि का वितरण योजना के तहत विभिन्न शर्तों को पूरा करने वाले संबंधित डिस्कॉम पर निर्भर करेगा।
योजना के बारे में:
- ‘सुधार-आधारित और परिणाम-संबद्ध, संशोधित वितरण क्षेत्रक योजना’ (Reforms-Based and Results-Linked, Revamped Distribution Sector Scheme) 03 ट्रिलियन रुपये के मूल्य की योजना है, जिसमे केंद्र की हिस्सेदारी 97,631 करोड़ रु है।
- इसका उद्देश्य डिस्कॉम (निजी क्षेत्र की डिस्कॉम को छोड़कर) की परिचालन क्षमता और वित्तीय स्थिरता में सुधार करना है।
योजना के प्रमुख बिंदु:
- यह एक ‘सुधार-आधारित और परिणाम-संबद्ध’ योजना है।
- इस योजना का उद्देश्य निजी क्षेत्र के DISCOMs के अलावा सभी DISCOMs / विद्युत विभागों की परिचालन क्षमता और वित्तीय स्थिरता में सुधार करना है।
- इस योजना के तहत, आपूर्ति बुनियादी ढांचे (Supply Infrastructure) को मजबूत करने के लिए DISCOMs को सशर्त वित्तीय सहायता प्रदान की जाएगी।
- यह सहायता पूर्व-अर्हता मानदंडों को पूरा करने के साथ-साथ DISCOM द्वारा बुनियादी स्तर पर न्यूनतम मानकों को पूरा करने की उपलब्धि पर आधारित होगी।
- इस योजना के तहत, वितरण क्षेत्र में, बिजली फीडर से लेकर उपभोक्ता स्तर तक एक ‘अनिवार्य स्मार्ट मीटरिंग इकोसिस्टम’ शामिल किया गया है – जिसमें लगभग 250 मिलियन परिवार शामिल होंगे।
- यह योजना असंबद्ध फीडरों के लिए फीडर वर्गीकरण हेतु वित्त पोषण पर भी ध्यान केंद्रित करती है।
- इस योजना में फीडरों के सौरकरण से सिंचाई के लिए दिन में सस्ती / निःशुल्क बिजली मिलेगी और किसानों को अतिरिक्त आय होगी।
कार्यान्वयन:
‘एकीकृत विद्युत विकास योजना’ (Integrated Power Development Scheme), ‘दीन दयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना’ (DDUGJY) और ‘प्रधानमंत्री सहज बिजली हर घर योजना’ जैसी मौजूदा विद्युत क्षेत्र सुधार योजनाओं को इस अम्ब्रेला कार्यक्रम में विलय कर दिया जाएगा।
- योजना का कार्यान्वयन “सभी के लिए अनुकूल एक व्यवस्था” (one-size-fits-all) दृष्टिकोण के बजाय प्रत्येक राज्य के लिए तैयार की गई कार्य योजना पर आधारित होगा।
- योजना के कार्यान्वयन को सुविधाजनक बनाने के लिए ‘ग्रामीण विद्युतीकरण निगम’ (REC) लिमिटेड और ‘पावर फाइनेंस कॉर्पोरेशन’ (PFC) को नोडल एजेंसियों के रूप में नामित किया गया है।
योजना के उद्देश्य:
- 2024-25तक अखिल भारतीय स्तर पर ‘कुल तकनीकी और वाणिज्यिक हानि’ (aggregate technical and commercial loss- AT&C loss) औसत को 12-15% तक कम करना।
- 2024-25 तक बिजली की लागत और आपूर्ति-कीमत अंतराल को घटाकर शून्य करना।
- आधुनिक DISCOMs के लिए संस्थागत क्षमताओं का विकास करना।
- वित्तीय रूप से टिकाऊ और परिचालन रूप से कुशल वितरण क्षेत्र के माध्यम से उपभोक्ताओं को बिजली आपूर्ति की गुणवत्ता, विश्वसनीयता और सामर्थ्य में सुधार करना।
इंस्टा जिज्ञासु:
क्या आप ‘एनर्जी मिक्स’ (Energy Mix) के बारे में जानते हैं? इस बारे में अधिक जानकारी हेतु पढ़िए।
क्या आप नेट जीरो (Net-Zero) के बारे में जानते हैं? इस बारे में अधिक जानकारी हेतु पढ़िए।
प्रीलिम्स लिंक:
- REC के बारे में।
- DDGJY के बारे में।
- IPDS के बारे में।
- संशोधित वितरण क्षेत्र योजना के प्रमुख बिंदु
मेंस लिंक:
भारत में विद्युत क्षेत्र के सुधारों पर एक टिप्पणी लिखिए।
स्रोत: पीआईबी।
विषय: भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधनों को जुटाने, प्रगति, विकास तथा रोज़गार से संबंधित विषय।
भारत में बेरोजगारी
(Unemployment in India)
संदर्भ:
राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) द्वारा जारी नवीनतम ‘आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण’ (Periodic Labour Force Survey – PLFS) के अनुसार:
- 2021 की अप्रैल-जून तिमाही में भारत की शहरी बेरोजगारी दर बढ़कर 12.6 प्रतिशत हो गई, जबकि जनवरी-मार्च तिमाही में यह 9.3 प्रतिशत थी।
- हालांकि, इसमें कोविड महामारी की पहली लहर के दौरान देखे गए 20.8 प्रतिशत के बेरोजगारी स्तर से कमी आयी है।
महामारी का प्रभाव:
महामारी का सबसे बड़ा नुकसान बेरोजगारी के रूप में होगा। ‘भारतीय अर्थव्यवस्था निगरानी केंद्र’ (Centre for Monitoring Indian Economy – CMIE) के अनुसार, देश की बेरोजगारी दर अप्रैल के अधिकांश दिनों में बढ़ी है और 7.4 प्रतिशत तक पहुंच गई, और इसके मार्च में 6.5% की तुलना में लगभग 8% अधिक होने की आशंका है।
- शहरी और ग्रामीण भारत में लगभग 10 मिलियन वेतनभोगी नौकरियां खो गई हैं, और यह सुनिश्चित नहीं है कि कितने लोगों को अपनी आजीविका वापस मिलेगी।
- शहरी महिलाओं का प्रदर्शन, शहरी पुरुषों की तुलना में खराब रहा है। 15-29 आयु वर्ग में, शहरी महिलाओं की बेरोजगारी दर अप्रैल-जून 2021 के दौरान पुरुषों के लिए 24 प्रतिशत की तुलना में 31 प्रतिशत थी।
- अप्रैल-जून 2020 में शहरी महिलाओं और पुरुषों की बेरोजगारी दर क्रमशः 36 प्रतिशत और 34.3 प्रतिशत रही।
भारत में बेरोजगारी के प्रकार:
प्रच्छन्न बेरोजगारी (Disguised Unemployment):
- यह एक ऐसी घटना है जिसमें वास्तव में आवश्यकता से अधिक लोगों को नियोजित किया जाता है।
- यह मुख्य रूप से भारत के कृषि और असंगठित क्षेत्रों में पायी जाती है।
मौसमी बेरोजगारी (Seasonal Unemployment):
- यह साल के कुछ खास मौसमों के दौरान होने वाली एक बेरोजगारी होती है।
- भारत में खेतिहर मजदूरों के लिए पूरे साल भर विरले ही काम मिल पाता है।
संरचनात्मक बेरोजगारी (Structural Unemployment):
- यह बाजार में उपलब्ध नौकरियों और बाजार में उपलब्ध श्रमिकों के कौशल के बीच विषमता होने से उत्पन्न होने वाली बेरोजगारी की एक श्रेणी है।
- भारत में बहुत से लोगों को अपेक्षित कौशल की कमी के कारण नौकरी नहीं मिलती है और खराब शिक्षा स्तर के कारण उन्हें प्रशिक्षित करना मुश्किल हो जाता है।
चक्रीय बेरोजगारी (Cyclical Unemployment):
- यह ‘व्यापार चक्र’ का परिणाम होता है, जिसमे मंदी के दौरान बेरोजगारी बढ़ती है और आर्थिक विकास होने के साथ घटती जाती है।
- भारत में चक्रीय बेरोजगारी के आंकड़े नगण्य हैं। यह एक ऐसी घटना है जो ज्यादातर पूंजीवादी अर्थव्यवस्थाओं में पाई जाती है।
तकनीकी बेरोजगारी (Technological Unemployment):
- यह तकनीक में बदलाव होने के कारण नौकरियों में कमी होने से उत्पन्न बेरोजगारी होती है।
- 2016 में, विश्व बैंक के आंकड़ों के अनुमानों के अनुसार, भारत में ऑटोमेशन से खतरे में पड़ी नौकरियों का अनुपात साल-दर-साल 69% है।
प्रतिरोधात्मक या घर्षण जनित बेरोजगारी (Frictional Unemployment):
- प्रतिरोधात्मक बेरोज़गारी को ‘खोज बेरोज़गारी’ भी कहा जाता है। जब कोई व्यक्ति नई नौकरी की तलाश करता है या नौकरी को बदलता है, तो नौकरियों के बीच खाली समय अंतराल को प्रतिरोधात्मक बेरोज़गारी के रूप में जाना जाता है।
- दूसरे शब्दों में, एक कर्मचारी को एक नई नौकरी खोजने या मौजूदा नौकरी से एक नई नौकरी में स्थानांतरित करने के लिए समय की आवश्यकता होती है, जिसमे अपरिहार्य समय की देरी घर्षण-जनित बेरोजगारी का कारण बनती है। इसे अक्सर स्वैच्छिक बेरोजगारी के रूप में माना जाता है क्योंकि यह नौकरी की कमी के कारण नहीं होता है, बल्कि वास्तव में, बेहतर अवसरों की तलाश में श्रमिक स्वयं अपनी नौकरी छोड़ देते हैं।
अतिसंवेदनशील रोज़गार (Vulnerable Employment):
- इसका मतलब अनौपचारिक रूप से काम करने वाले व्यक्तियों से है, जो उचित नौकरी अनुबंध के बिना और इस प्रकार बिना किसी कानूनी सुरक्षा के कार्य करते हैं।
- इन व्यक्तियों को ‘बेरोजगार’ माना जाता है क्योंकि उनके काम का रिकॉर्ड कभी नहीं रखा जाता है।
- यह भारत में बेरोजगारी के मुख्य प्रकारों में से एक है।
बेरोजगारी के कारण:
- बड़ी आबादी।
- कामकाजी आबादी में किसी शैक्षिक स्तर या व्यावसायिक कौशल की कमी या अभाव।
- अपर्याप्त राज्य सहयोग, कानूनी जटिलताएं और छोटे/कुटीर उद्योगों या छोटे व्यवसायों के लिए ढांचागत कमी, वित्तीय और बाजार संबंध, लागत और अनुपालन की अधिकता ऐसे उद्यमों को अव्यवहार्य बना देती है।
- आवश्यक शिक्षा/कौशल की कमी के कारण अनौपचारिक क्षेत्र से जुड़ा विशाल कार्यबल, जिसका विवरण किसी भी रोजगार डेटा में दर्ज नहीं होता है। उदाहरण के लिए: घरेलू सहायक, निर्माण श्रमिक आदि।
- स्कूलों और कॉलेजों में पढ़ाया जाने वाला पाठ्यक्रम उद्योगों की वर्तमान आवश्यकताओं के अनुसार नहीं होता है। यह संरचनात्मक बेरोजगारी का मुख्य कारण है।
- बुनियादी ढांचे की अपर्याप्त वृद्धि और विनिर्माण क्षेत्र में कम निवेश, द्वितीयक क्षेत्र की रोजगार क्षमता को सीमित करता है।
- कृषि क्षेत्र में कम उत्पादकता के साथ-साथ कृषि श्रमिकों के लिए वैकल्पिक अवसरों की कमी, जो प्राथमिक से माध्यमिक और तृतीयक क्षेत्रों में संक्रमण को कठिन बना देती है।
- प्रतिगामी सामाजिक मानदंड, जो महिलाओं को रोजगार करने/जारी रखने से रोकते हैं।
प्रभाव:
- बेरोजगारी की समस्या गरीबी की समस्या को जन्म देती है।
- युवा लंबे समय तक बेरोजगारी के बाद, पैसा कमाने के लिए अवैध और गलत गतिविधियों में लिप्त हो जाते हैं। इससे देश में अपराध भी बढ़ रहे हैं।
- बेरोजगार व्यक्तियों को असामाजिक तत्वों द्वारा आसानी से बहकाया जा सकता है। इससे उनका देश के लोकतांत्रिक मूल्यों से विश्वास उठ जाता है।
- अक्सर यह देखा जाता है कि बेरोजगार लोग ड्रग्स और शराब के आदी हो जाते हैं या आत्महत्या करने का प्रयास करते हैं, जिससे देश के मानव संसाधनों को नुकसान होता है।
- यह देश की अर्थव्यवस्था को भी प्रभावित करता है क्योंकि जिस कार्यबल को संसाधन उत्पन्न करने के लिए लाभकारी रूप से नियोजित किया जा सकता था, वह वास्तव में शेष कामकाजी आबादी पर निर्भर हो जाता है, इस प्रकार राज्य के लिए सामाजिक आर्थिक लागत बढ़ जाती है। उदाहरण के लिए, बेरोजगारी में 1 प्रतिशत की वृद्धि से सकल घरेलू उत्पाद में 2 प्रतिशत की कमी आती है।
सरकार द्वारा उठाए गए कदम:
- ग्रामीण क्षेत्रों में पूर्ण रोजगार के अवसर पैदा करने के लिए 1980 में एकीकृत ग्रामीण विकास कार्यक्रम (IRDP) शुरू किया गया था।
- स्वरोजगार हेतु ग्रामीण युवाओं का प्रशिक्षण (TRYSEM): यह योजना 1979 में 18 से 35 वर्ष की आयु के बेरोजगार ग्रामीण युवाओं को स्वरोजगार के लिए कौशल हासिल करने में मदद करने के उद्देश्य से शुरू की गई थी। अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के युवाओं और महिलाओं को प्राथमिकता दी गई।
- RSETI/RUDSETI: युवाओं में बेरोजगारी की समस्या को कम करने के उद्देश्य से, 1982 में श्री धर्मस्थल मंजुनाथेश्वर एजुकेशनल ट्रस्ट, सिंडिकेट बैंक और केनरा बैंक द्वारा संयुक्त रूप से एक नई पहल का प्रयास किया गया, जिसके तहत कर्नाटक में धर्मस्थल के समीप ‘ग्रामीण विकास और स्वरोजगार प्रशिक्षण संस्थान’ (RURAL DEVELOPMENT AND SELF EMPLOYMENT TRAINING INSTITUTE – RUDSETI) की स्थापना की गयी थी। ‘ग्रामीण स्वरोजगार प्रशिक्षण संस्थान (RSETIs) अब भारत सरकार और राज्य सरकार के सक्रिय सहयोग से बैंकों द्वारा प्रबंधित किए जाते हैं।
- दो पूर्ववर्ती मजदूरी रोजगार कार्यक्रम – राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम (NREP) और ग्रामीण भूमिहीन रोजगार गारंटी कार्यक्रम (RLEGP) को मिलाकर जवाहर रोजगार योजना (JRY) 1 अप्रैल, 1989 से केंद्र और राज्यों के मध्य 80:20 लागत बंटवारे के आधार पर शुरू की गई थी।
- महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MNREGA): यह एक रोजगार योजना है जिसे 2005 में सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने के लिए उन सभी परिवारों को प्रति वर्ष न्यूनतम 100 दिनों के भुगतान कार्य की गारंटी देकर शुरू किया गया था। यह अधिनियम लोगों को ‘काम का अधिकार’ प्रदान करता है।
- 2015 में शुरू की गई प्रधान मंत्री कौशल विकास योजना (पीएमकेवीवाई) का उद्देश्य बड़ी संख्या में भारतीय युवाओं को उद्योग-प्रासंगिक कौशल प्रशिक्षण लेने में सक्षम बनाना है जो उन्हें बेहतर आजीविका हासिल करने में मदद करेगा।
- 2016 में शुरू की गई स्टार्ट अप इंडिया योजना का उद्देश्य एक ऐसा पारिस्थितिकी तंत्र विकसित करना है जो पूरे देश में उद्यमिता को बढ़ावा देता है और उसका पोषण करता है।
- स्टैंड अप इंडिया योजना, 2016 में शुरू की गई थी, जिसका उद्देश्य ग्रीनफील्ड उद्यम स्थापित करने के लिए कम से कम एक अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के उधारकर्ता और प्रति बैंक शाखा में कम से कम एक महिला उधारकर्ता को 10 लाख से 1 करोड़ रुपये के बीच बैंक ऋण की सुविधा प्रदान करना है।
प्रीलिम्स लिंक:
- श्रम बल की भागीदारी
- बेरोजगारी दर
- शहरी बनाम ग्रामीण बेरोजगारी
- लिंग संबंधी मुद्दे
मेंस लिंक:
भारत में बेरोजगारी से जुड़े मुद्दों पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: द हिंदू।
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य
इस्लामोफोबिया का मुकाबला करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय दिवस
- संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 15 मार्च को इस्लामोफोबिया का मुकाबला करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय दिवस के रूप में घोषित करने के लिए एक प्रस्ताव पारित किया है।
- हालांकि, भारत ने “एक धर्म को एक अंतरराष्ट्रीय दिवस के स्तर तक ऊंचा किए जाने” के खिलाफ फोबिया पर चिंता व्यक्त की है।
Join our Official Telegram Channel HERE for Motivation and Fast Updates
Subscribe to our YouTube Channel HERE to watch Motivational and New analysis videos