विषयसूची
सामान्य अध्ययन-II
1. अनुपूरक अनुदान मांग
2. सफेद फास्फोरस बम
सामान्य अध्ययन-III
1. अंतर्राष्ट्रीय गणित दिवस 2022
2. लघु उपग्रह प्रक्षेपण यान
3. कोरोनल मास इजेक्शन
4. यमुना नदी प्रदूषण
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य
1. सिलिप्सिमोपोडी बाइडेनी
2. गैलियम नाइट्राइड
सामान्य अध्ययन-II
विषय: भारतीय संविधान- ऐतिहासिक आधार, विकास, विशेषताएँ, संशोधन, महत्त्वपूर्ण प्रावधान और बुनियादी संरचना।
अनुपूरक अनुदान मांग
(Supplementary demand for grants)
संदर्भ:
सरकार द्वारा चालू वित्त वर्ष में अतिरिक्त ₹1.07 लाख करोड़ का व्यय करने के लिए संसद से मंजूरी की मांग की गयी है।
प्रधानमंत्री आवास योजना के लिए ‘राष्ट्रीय लघु बचत कोष’ से लिए गए ऋणों के निपटान तथा ‘उर्वरक सब्सिडी पर होने वाले उच्च व्यय’ के लिए ‘व्यय प्रतिबद्धताओं’ को पूरा करने के लिए 1.58 ट्रिलियन रुपये के अतिरिक्त खर्च की आवश्यकता है।
‘अनुपूरक अनुदान मांग’ क्या होती है?
जब किसी सरकारी व्यय हेतु विनियोग अधिनियम द्वारा प्राधिकृत राशि उस वर्ष हेतु चालू वित्तीय वर्ष में अपर्याप्त पाई जाती है, तो अनुपूरक अनुदानों की मांग (Supplementary Demands for Grants) की जाती है।
संवैधानिक प्रावधान:
वर्ष 1949 में, भारत के संविधान में अनुपूरक (Supplementary), अतिरिक्त (additional) अथवा अधिक अनुदान (excess grants) और प्रत्ययानुदान (votes of credit) और अपवादानुदान (exceptional grants) का उल्लेख में किया गया है।
- अनुच्छेद 115: अनुपूरक, अधिक तथा अतिरिक्त अनुदान।
- अनुच्छेद 116: लेखानुदान (Votes on account) प्रत्ययानुदान और अपवादानुदान।
अनुदान मांगों हेतु अपनाई जाने वाली प्रक्रिया:
- जब सरकार के पास आवश्यक व्यय हेतु संसद द्वारा अधिकृत अनुदान कम पड़ जाता है, तो संसद के समक्ष अतिरिक्त अनुदान के लिए एक आकलन प्रस्तुत किया जाता है।
- संसद द्वारा ये अनुदान वित्तीय वर्ष की समाप्ति से पहले पारित किए जाते हैं।
- जब वास्तविक व्यय संसद द्वारा स्वीकृत अनुदान से अधिक हो जाता है, तो वित्त मंत्रालय द्वारा अतिरिक्त अनुदान की मांग पेश की जाती है।
- भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक द्वारा अधिक व्यय संबंधी जानकारी को संसद के संज्ञान में लाया जाता है।
- लोक लेखा समिति द्वारा इन अधिक व्यय संबंधी जानकारियों की जांच करती है तथा संसद के लिए सिफारिशें देती है।
- अतिरिक्त व्यय हेतु अनुदान मांग, वास्तविक व्यय होने के बाद की जाती है तथा संसद में चालू वित्त वर्ष की समाप्ति के बाद पेश की जाती है।
अन्य अनुदान:
अतिरिक्त अनुदान (Additional Grant): यह तब प्रदान की जाती है, जब उस वर्ष हेतु बजट में किसी नयी सेवा के संबंध में व्यय परिकल्पित न किया गया हो और चालू वित्तीय वर्ष के दौरान अतिरिक्त व्यय की आवश्यकता उत्पन्न हो गयी हो।
अधिक अनुदान (Excess Grant): इस प्रकार के अनुदान की मांग तब रखी जाती है, जब उस वर्ष के बजट में उस सेवा के लिए निर्धारित राशि से ज्यादा राशि व्यय हो जाती है। वित्त वर्ष के उपरांत इस पर लोक सभा में मतदान होता है। इस परकार की मांग को लोक सभा में पेश करने से पहले संसदीय लोक लेखा समिति से मंजूरी मिलना अनिवार्य होता है।
अपवादानुदान (Exceptional Grants): इसे विशेष प्रयोजन के लिए मंजूर किया जाता है तथा यह वर्तमान वित्तीय वर्ष या सेवा से सम्ब्बंधित नहीं होती है।
सांकेतिक अनुदान (Token Grant): यह अनुदान तब जारी की जाती है जब पहले से प्रस्तावित किसी सेवा के अतिरिक्त नयी सेवा के लिए धन की आवश्यकता होती है। इसके लिए लोकसभा में प्रस्ताव रखा जाता है तथा उस पर मतदान होता है, फिर धन की व्यवस्था की जाती है। यह किसी अतिरिक्त व्यय से संबंधित नहीं होती है।
प्रीलिम्स लिंक:
निम्नलिखित के बारे में जानिए:
- अतिरिक्त अनुदान।
- अधिक अनुदान।
- अपवादानुदान।
- सांकेतिक अनुदान।
- अनुदान मागों हेतु प्रक्रिया।
- संबंधित संवैधानिक प्रावधान
- CAG और PAC।
स्रोत: पीआईबी।
विषय: महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थान, संस्थाएँ और मंच- उनकी संरचना, अधिदेश।
सफेद फास्फोरस बम
(White Phosphorus bombs)
संदर्भ:
रूस और यूक्रेन द्वारा ‘सफेद फास्फोरस हथियारों’ (White Phosphorus Munitions) का इस्तेमाल किए जाने के आरोप सामने आ रहे हैं।
‘सफेद फास्फोरस’ के बारे में:
‘सफेद फास्फोरस’ (White Phosphorus) एक रंगहीन, मोम जैसा ठोस पदार्थ होता है। खुली वायु के संपर्क में आने पर इसका रंग श्वेत / सफ़ेद या पीला हो जाता है।
- उपस्थिति: ‘फास्फोरस’ का यह अपरूप प्रकृति में स्वाभाविक रूप से नहीं पाया जाता है। और इसे फॉस्फेट चट्टानों से निर्मित किया जाता है।
- यह एक अत्यधिक ज्वलनशील पदार्थ है, जो हवा में ऑक्सीजन के साथ अभिक्रिया करता है।
- यह कमरे के तापमान से 10 से 15 डिग्री अधिक तापमान पर आग पकड़ सकता है।
- इसकी ज्वलनशील प्रकृति के कारण, प्रत्येक देश में इसके निर्माण और संचालन के संबंध में सख्त नियम लागू किए गए हैं।
अनुप्रयोग:
- ‘सफेद फास्फोरस’ का मुख्य रूप से सेना में उपयोग किया जाता है, और अन्य अनुप्रयोगों में उर्वरक, खाद्य योजक और सफाई यौगिकों में एक घटक के रूप में शामिल हो सकते हैं।
- प्रारंभ में, इसका उपयोग कीटनाशकों और आतिशबाजी में भी किया जाता था, लेकिन कई देशों ने कई क्षेत्रों में इसके उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया है।
क्या यह एक ‘आग लगाने वाला’ या ‘रासायनिक हथियार’ है?
- ‘सफेद फास्फोरस’ (White Phosphorus – WP) को अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों द्वारा ‘आग लगाने वाले’ (Incendiary) या ‘रासायनिक हथियार’ के रूप में वर्गीकृत नहीं किया गया है।
- एक अंतर सरकारी संगठन और ‘रासायनिक हथियार अभिसमय’ के लिए कार्यान्वयन निकाय ‘रासायनिक हथियार निषेध संगठन’ (Organisation for the Prohibition of Chemical Weapons – OPCW) द्वारा ‘रासायनिक हथियारों की तीन अनुसूचियों’ में से किसी में भी ‘सफेद फास्फोरस’ को सूचीबद्ध नहीं किया गया है।
‘सफेद फास्फोरस’ पर संयुक्त राष्ट्र के क़ानून:
संयुक्त राष्ट्र ‘सफेद फास्फोरस’ को ‘आग लगाने वाला’ रसायन (Incendiary Chemical) मानता है।
- ‘आग लगाने वाले हथियारों के उपयोग के निषेध अथवा प्रतिबंध’ (Prohibitions or Restrictions on the Use of Incendiary Weapons) पर गठित प्रोटोकॉल III के सामान्य नियम तब लागू हो सकते हैं, जब सफेद फास्फोरस का उपयोग सैन्य कार्यों में किया जाता है।
- प्रोटोकॉल III में विशेष रूप से उल्लेख किया गया है कि, यह प्रोटोकॉल युद्धपोतों के द्वारा रोशनी, ट्रेसर, धूम्रपान या सिग्नलिंग सिस्टम के लिए ‘सफेद फास्फोरस’ का इस्तेमाल किए जाने पर लागू नहीं होगा, जिससे कई लोगों को यह भ्रम बना रहता है कि – ‘सफेद फास्फोरस’ के उपयोग को युद्ध अपराध माना जा सकता है या नहीं।
- प्रोटोकॉल III ‘सैन्य कार्रवाई’ में व्हाइट फॉस्फोरस के उपयोग पर विशेष रूप से प्रतिबंध नहीं लगाता है। यह प्रोटोकॉल केवल नागरिक आबादी के द्वारा इसके उपयोग को प्रतिबंधित करता है।
संबंधित चिंताएं:
‘सफेद फास्फोरस’ को ‘आग लगाने वाला’ (Incendiary) माना जाने का मुख्य कारण, मनुष्यों पर इसका प्रभाव है।
- मानव त्वचा के संपर्क में आने पर ‘सफेद फास्फोरस’, तापीय और रासायनिक दोनों तरह से जल सकता है।
- त्वचा के संपर्क में आने पर यह कई रसायनों का उत्पादन कर सकता है, जैसेकि फॉस्फोरस पेंटोक्साइड जो त्वचा में मौजूद जल के साथ अभिक्रिया करता है और फॉस्फोरिक एसिड पैदा करता है जोकि अत्यधिक संक्षारक होता है।
‘रासायनिक हथियार निषेध संगठन’ (OPCW) के बारे में:
यह,‘परमाणु अप्रसार संधि’ (Non-Proliferation Treaty- NPT) की शर्तों को लागू करने और इनका कार्यान्वयन करने हेतु ‘रासायनिक हथियार अभिसमय’ (Chemical Weapons Convention- CWC), 1997 के द्वारा स्थापित एक अंतरराष्ट्रीय संगठन है।
- OPCW और संयुक्त राष्ट्र के बीच संबंध समझौते के तहत, वर्ष 2001 तक OPCW, अपने निरीक्षण और अन्य कार्रवाईयों के बारे में संयुक्त राष्ट्र महासचिव के माध्यम से संयुक्त राष्ट्र को रिपोर्ट करती थी।
- इस संगठन को रासायनिक हथियारों को खत्म करने संबंधी व्यापक प्रयासों के लिए वर्ष 2013 के नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
शक्तियां:
OPCW को हस्ताक्षरकर्ता देशों द्वारा ‘समझौते’ के अनुपालन को सत्यापित करने हेतु निरीक्षण करने की शक्ति प्राप्त है।
‘रासायनिक हथियार अभिसमय’ द्वारा निम्नलिखित कृत्यों को निषिद्ध किया गया है:
- रासायनिक हथियारों का विकास, उत्पादन, अधिग्रहण, संग्रहण, या प्रतिधारित रखना।
- रासायनिक हथियारों का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष हस्तांतरण।
- रासायनिक हथियारों का उपयोग अथवा सैन्य उपयोग के लिए तैयारी।
- CWC -निषिद्ध गतिविधियों में शामिल होने के लिए अन्य राज्यों की सहायता करना, प्रोत्साहित करना या प्रेरित करना।
- ‘युद्ध की एक विधि के रूप में’ दंगा नियंत्रण एजेंटों का उपयोग।
इंस्टा जिज्ञासु:
क्या आप जानते है, कि भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) को ‘रासायनिक हथियार निषेध संगठन’ (OPCW) द्वारा 2021 से शुरू होने वाले तीन साल के कार्यकाल के लिए बाहरी लेखा परीक्षक के रूप में चुना गया है। इस बारे में अधिक जानकारी हेतु पढ़िए।
प्रीलिम्स लिंक:
- OPCW के बारे में
- CWC क्या है
- सदस्य
- कार्यकारी परिषद के कार्य
- OPCW के बाह्य लेखा परीक्षक की भूमिका और कार्य
मेंस लिंक:
‘रासायनिक हथियार अभिसमय’ पर एक टिप्पणी लिखिए।
स्रोत: द हिंदू।
सामान्य अध्ययन-III
विषय: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी- विकास एवं अनुप्रयोग और रोज़मर्रा के जीवन पर इसका प्रभाव। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में भारतीयों की उपलब्धियाँ
अंतर्राष्ट्रीय गणित दिवस 2022
(International Maths Day)
संदर्भ:
14 मार्च, हर साल ‘अंतरराष्ट्रीय गणित दिवस’ (International Day of Mathematics) के रूप में मनाया जाता है।
- ‘अंतर्राष्ट्रीय गणित दिवस’ कई अंतरराष्ट्रीय और क्षेत्रीय संगठनों के सहयोग से ‘अंतर्राष्ट्रीय गणितीय संघ’ के नेतृत्व में एक प्रोजेक्ट है।
- पहला अंतर्राष्ट्रीय गणित दिवस मार्च 2020 में मनाया गया था।
- 14 मार्च पहले से ही कई देशों में पाई दिवस (Pi Day) के रूप में मनाया जाता है, क्योंकि इस तारीख को कुछ देशों में 3/14 के रूप में लिखा जाता है और ‘गणितीय स्थिरांक’ ‘पाई’ का मान भी लगभग 3.14 है।
अंतर्राष्ट्रीय गणित दिवस, 2022 का विषय: ‘गणित यूनाइट्स’ (Mathematics Unites) है।
‘राष्ट्रीय गणित दिवस’ के बारे में:
भारत में प्रतिवर्ष 22 दिसंबर को राष्ट्रीय गणित दिवस (National Mathematics Day) मनाया जाता है।
- इस दिवस का आयोजन महान गणितज्ञ ‘श्रीनिवास रामानुजन’ (Srinivasa Ramanujan) की जयंती और गणित के क्षेत्र में उनके योगदान को हमेशा याद रखने किया जाता है, इन्होने गणितीय विश्लेषण, संख्या सिद्धांत, अपरिमित श्रृंखला (Infinite Series), क्रमागत भिन्नों (Continued Fractions) के बारे में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
- 22 दिसंबर 2021 को डॉ रामानुजन की 134वीं जयंती थी।
श्रीनिवास रामानुजन के जीवन की प्रमुख बातें:
- वर्ष 1911 में, रामानुजन ने इंडियन मैथमेटिकल सोसाइटी के जर्नल में अपना पहला लेख प्रकाशित किया।
- वर्ष 1914 में रामानुजन इंग्लैंड पहुंचे, वहां प्रसिद्ध विद्वान हार्डी ने उन्हें पढ़ाया और रामानुजन के साथ कुछ शोधों में सहयोग किया।
- उन्होंने रीमैन श्रृंखला (Riemann series), दीर्घवृत्तीय समाकलन (elliptic integrals), हाइपरज्यामितीय श्रेणी (hypergeometric series), जीटा फ़ंक्शन के कार्यात्मक समीकरण और विचलन श्रेणी (divergent series) के अपने सिद्धांत पर काम किया।
- हार्डी ने देखा कि रामानुजन के कार्यों में मुख्यतः अब तक अन्य विशुद्ध गणितज्ञों के लिए भी अज्ञात क्षेत्र शामिल थे।
- हार्डी द्वारा अस्पताल में भर्ती रामानुजन से मिलने के लिए प्रसिद्ध यात्रा के बाद 1729 संख्या को हार्डी-रामानुजन संख्या के रूप में जाना जाता है।
- रामानुजन के गृह राज्य, तमिलनाडु में 22 दिसंबर को ‘राज्य आईटी दिवस’ रूप में मनाया जाता है।
2015 में गणितज्ञ रामानुजन पर देव पटेल-अभिनीत ‘द मैन हू नो इन्फिनिटी’ (The Man Who Knew Infinity) बायोपिक बनाई गयी थी।
इंस्टा जिज्ञासु:
14 मार्च, 1879 को अल्बर्ट आइंस्टीन का जन्म हुआ था। उन्हें 20वीं सदी का सबसे प्रभावशाली भौतिक विज्ञानी माना जाता है।
- उन्होंने सापेक्षता के विशेष और सामान्य सिद्धांत विकसित किए और फोटोइलेक्ट्रिक प्रभाव की व्याख्या के लिए 1921 में भौतिकी के लिए नोबेल पुरस्कार भी जीता।
- उन्हें ‘सापेक्षता के सिद्धांत’ को विकसित करने, तथा क्वांटम यांत्रिकी के विकास में उनके योगदान के लिए भी जाना जाता है।
प्रीलिम्स लिंक और मेंस लिंक:
- श्री रामानुजन की प्रमुख उपलब्धियां और योगदान
- राष्ट्रीय गणित दिवस।
- अंतर्राष्ट्रीय गणित दिवस।
स्रोत: द हिंदू।
विषय: सूचना प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष, कंप्यूटर, रोबोटिक्स, नैनो-टैक्नोलॉजी, बायो-टैक्नोलॉजी और बौद्धिक संपदा अधिकारों से संबंधित विषयों के संबंध में जागरुकता।
लघु उपग्रह प्रक्षेपण यान
(Small Satellite Launch Vehicle – SSLV)
संदर्भ:
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO), मई में अपने स्वदेश निर्मित मिनी रॉकेट लॉन्चर – ‘लघु उपग्रह प्रक्षेपण यान’ (Small Satellite Launch Vehicle – SSLV)- की पहली उड़ान के लिए तैयारी पूरी कर चुका है।
‘लघु उपग्रह प्रक्षेपण यान’ के बारे में:
स्वदेश में विकसित मिनी-रॉकेट-लॉन्चर को विशेष रूप से छोटे वाणिज्यिक उपग्रहों को पृथ्वी की सतह से 200-2,000 किमी से कम उचाई पर – पृथ्वी की निचली कक्षाओं (LEO) में ले जाने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
- यह 500 किलोग्राम वजन के उपग्रहों को पृथ्वी की निचली कक्षा में ले जाने में सक्षम है।
- SSLV, 110 टन भार के साथ इसरो का सबसे छोटा प्रक्षेपण वाहन है।
- इसको इंटिग्रेट होने में मात्र 72 घंटे का समय लगेगा तथा इसको एकीकृत करने के लिए मात्र छह लोगों की आवश्यकता होगी।
- इसके निर्माण में लगभग मात्र 30 करोड़ रुपए की लागत आयेगी।
- यह यान एक बार में कई माइक्रोसेटेलाइट लॉन्च करने के लिए सबसे उपयुक्त वाहन है, और यह कई कक्षाओं में उपग्रह भेजने में सक्षम है।
आवश्यकता:
- हाल के वर्षों में, विकासशील देशों, निजी संस्थाओं और विश्वविद्यालयों द्वारा पृथ्वी की निचली कक्षाओं में छोटे उपग्रहों को भेजे जाने संबंधी जरूरतों की वजह से छोटे उपग्रहों का प्रक्षेपण काफी महत्वपूर्ण हो गया है।
- केवल राष्ट्रीय मांग को पूरा करने के लिए, हर साल लगभग 15 से 20 ‘लघु उपग्रह प्रक्षेपण यानों’ (SSLVs) की आवश्यकता होगी।
ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (PSLV):
छोटे उपग्रहों का प्रक्षेपण, अब तक ISRO के शक्तिशाली वाहन – ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (Polar Satellite Launch Vehicle) – द्वारा बड़े उपग्रहों के प्रक्षेपण के साथ किया जाता रहा है। PSLV अब तक 50 से अधिक सफल प्रक्षेपण कर चुका है।
ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान / ’पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल’, इसरो द्वारा एक स्वदेशी रूप से विकसित उपभोजित (Expendable) प्रक्षेपण प्रणाली है।
- यह मध्यम भारवाली प्रक्षेपण यानो की श्रेणी के अंतर्गत आता है, तथा यह भू-तुल्यकालिक अंतरण कक्षा (Geo Synchronous Transfer Orbit), पृथ्वी की निचली कक्षा (Lower Earth Orbit) और सूर्य तुल्यकाली ध्रुवीय कक्षा (Polar Sun Synchronous Orbit) सहित विभिन्न कक्षाओं तक उपग्रहों को पहुंचाने में सक्षम है।
- PSLV, 1000 किलो वजन तक उपग्रहों को प्रक्षेपित करने में सक्षम है। किंतु, इस प्रक्षेपण यान को एकीकृत करने में 70 दिन का समय लगता है।
- ध्रुवीय उपग्रह प्रमोचक राकेट (PSLV) भारत का तृतीय पीढ़ी का प्रमोचक राकेट है। यह पहला भारतीय प्रमोचक राकेट है जो द्रव चरणों से सुसज्जित है।
पीएसएलवी के बारे में अधिक जानकारी के लिए पढ़िए।
PSLV और GSLV के मध्य अंतर:
- वर्तमान में, भारत के पास दो प्रक्षेपण यान हैं, ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान / ’पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल’(PSLV) और भू-तुल्यकाली उपग्रह प्रक्षेपण वाहन / जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (GSLV)।
- PSLV को ‘पृथ्वी की निचली कक्षा में परिभ्रमण करने वाले उपग्रहों’ (low-Earth Orbit satellites) को ध्रुवीय और सूर्य तुल्यकालिक कक्षाओं में प्रक्षेपित करने के लिए विकसित किया गया था। बाद में, इस राकेट ने, भू-तुल्यकालिक, चंद्र और अंतर-ग्रहीय अंतरिक्ष यानों को सफलतापूर्वक प्रक्षेपित करके इसकी बहुमुखी उपयोग क्षमता साबित की है।
- दूसरी ओर, भू-तुल्यकाली उपग्रह प्रक्षेपण वाहन (GSLV)।, को इन्सैट श्रेणी के भारी भू- तुल्यकालिक उपग्रहों को कक्षाओं में लॉन्च करने के लिए विकसित किया गया था। अपने तीसरे और अंतिम चरण में, जीएसएलवी में स्वदेशी रूप से विकसित ऊपरी चरण के क्रायोजेनिक का उपयोग किया गया था।
अंतरिक्ष से संबंधित विभिन्न कक्षाएँ:
- भूस्थिर कक्षा (Geostationary orbit – GEO)
- पृथ्वी की निचली कक्षा (Low Earth orbit – LEO)
- पृथ्वी की मध्यम कक्षा (Medium Earth orbit – MEO)
- ध्रुवीय कक्षा और सूर्य-तुल्यकालिक कक्षा (Sun-synchronous orbit – SSO)
- अंतरण कक्षाएँ और भूस्थिर स्थानांतरण कक्षा (geostationary transfer orbit – GTO)
- लैग्रेंज बिंदु (Lagrange points – L-points)
अधिक विवरण हेतु पढ़िए।
इंस्टा जिज्ञासु:
आप ‘न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड’ (NSIL), नव निर्मित इसरो की वाणिज्यिक शाखा के बारे में क्या जानते हैं?
प्रीलिम्स लिंक:
- भूस्थैतिक कक्षा क्या है?
- भू-तुल्यकालिक कक्षा क्या है?
- ध्रुवीय कक्षा क्या है?
- अंतरण कक्षा क्या है?
- पीएसएलवी के बारे में।
- अमेजोनिया -1 के बारे में।
मेंस लिंक:
संचार उपग्रह क्या हैं? भारत के लिए उनके महत्व पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: द हिंदू।
विषय: सूचना प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष, कंप्यूटर, रोबोटिक्स, नैनो-टैक्नोलॉजी, बायो-टैक्नोलॉजी और बौद्धिक संपदा अधिकारों से संबंधित विषयों के संबंध में जागरुकता।
कोरोना द्रव्य उत्क्षेपण / कोरोनल मास इजेक्शन
(Coronal Mass Ejections- CMEs)
संदर्भ:
भारतीय शोधकर्ताओं ने सौर कोरोना (Solar Corona) की स्थिर पृष्ठभूमि को अलग करने और ‘गतिशील कोरोना’ (Dynamic Corona) को प्रकट करने की एक सरल तकनीक विकसित की है।
इस तकनीक को ‘आर्यभट्ट अनुसंधान संस्थान’ और ‘भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान’ द्वारा संयुक्त रूप से विकसित किया गया है।
तकनीक के बारे में: (परीक्षा की दृष्टि से बहुत प्रासंगिक नहीं है)।
स्थिर पृष्ठभूमि को अलग करने का सरल दृष्टिकोण ‘कोरोना द्रव्य उत्क्षेपण’ / कोरोनल मास इजेक्शन (Coronal Mass Ejections- CMEs) की पहचान की दक्षता में सुधार कर सकता है
‘कोरोना द्रव्य उत्क्षेपण’ (CMEs) के बारे में:
कोरोनल मास इजेक्शन (CMEs), सूर्य के कोरोना से बड़ी मात्रा में प्लाज्मा और चुंबकीय क्षेत्र का बाहर की ओर उत्क्षेपण होता है।
- इस उत्क्षेपण में ‘कोरोना की अरबों टन सामग्री’ को बाहर निकल सकती है और इसके साथ ही एक सन्निहित चुंबकीय क्षेत्र (फ्लक्स में जमे हुए) भी उत्क्षेपित हो सकता है।
- यह उत्क्षेपित चुंबकीय क्षेत्र, पृष्ठभूमि में मौजूद सौर पवन ‘अंतरग्रहीय चुंबकीय क्षेत्र’ (Interplanetary Magnetic Field) की शक्ति से अधिक मजबूत होता है।
गति एवं आकार:
कोरोनल मास इजेक्शन (CMEs), 250 किमी प्रति सेकंड की धीमी गति से लेकर 3,000 किमी/सेकेंड तक की गति से सूर्य से बाहर की ओर यात्रा करते हैं।
- पृथ्वी की दिशा में होने वाले तीव्रतम ‘कोरोना द्रव्य उत्क्षेपण’ हमारे ग्रह तक मात्र 15-18 घंटों में पहुंच सकते हैं। जबकि धीमी गति से होने वील ‘कोरोनल मास इजेक्शन’ को पृथ्वी तक आने में कई दिन का समय लग सकता है।
- सूर्य से दूर जाने के साथ-साथ ‘कोरोना द्रव्य उत्क्षेपणों’ के आकार में वृद्धि होती जाती है, और एक बड़े कोरोना द्रव्य उत्क्षेपण’ का आकार, हमारे ग्रह तक पहुंचने तक पृथ्वी और सूर्य के बीच की दूरी के लगभग एक चौथाई के बराबर, तक पहुंच सकता है।
प्रभाव:
- ‘कोरोनल मास इजेक्शन’ की वजह से पृथ्वी पर रेडियो और चुंबकीय गड़बड़ी उत्पन्न होती है।
- इनकी वजह से, पृथ्वी के निकट अंतरिक्ष में अंतरिक्ष मौसम को परिवर्तित हो सकता है।
प्रीलिम्स लिंक:
- ‘सोलर फ्लेयर्स’ क्या हैं?
- ‘सनस्पॉट’ क्या हैं?
- ‘सौर लपटें’ पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र को किस प्रकार प्रभावित करती हैं?
- सूर्य का ‘11 वर्ष का चक्र’ क्या है?
- कोरोनल मास इजेक्शन (CMEs) क्या हैं?
मेंस लिंक:
कोरोनल मास इजेक्शन (CMEs) क्या होते हैं? इनका पृथ्वी पर क्या प्रभाव पड़ता है?
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस।
विषय: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन।
यमुना नदी प्रदूषण
(Yamuna river pollution)
संदर्भ:
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) द्वारा किए गए अनुमानों के अनुसार, दिल्ली में प्रतिदिन 3,800 मिलियन लीटर सीवेज उत्पन्न होता है। राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा अभियान (NMCG) द्वारा इसे रोकने के उपाय तलाश की रही है।
पृष्ठभूमि:
- 1,300 किलोमीटर से अधिक लंबी यमुना देश की सबसे प्रदूषित नदियों में से एक है, और राष्ट्रीय राजधानी के आधे से अधिक हिस्से को पानी भी उपलब्ध कराती है।
- यमुना की धारा का सिर्फ 2% या 22 किमी दिल्ली में पड़ता है, लेकिन यमुना में 98% प्रदूषण ‘राष्ट्रीय राजधानी’ से अनुपचारित या अर्ध-उपचारित औद्योगिक अपशिष्टों या सीवेज के कारण है। इन अपशिष्टों को यमुना की दिल्ली से होकर गुजरने वाले 22 किमी के हिस्से में नदी में छोड़ा जा रहा है।
यमुना इतनी प्रदूषित क्यों है?
- दिल्ली के ‘सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट’ नदी में छोड़े जा रहे प्रदूषकों के लिए सर्वाधिक बड़े योगदानकर्ता हैं।
- विभिन्न प्रकार के उद्योगों से निकलने वाले प्रदूषक, भी एक प्रमुख मुद्दा है।
- दिल्ली में नदी के किनारे कृषि-गतिविधियाँ भी नदी के प्रदूषण में योगदान करती हैं।
- हरियाणा के खेतों से कृषि अपशिष्ट और कीटनाशकों का निर्वहन भी प्रदूषण में योगदान देता है।
- नदी में जल प्रवाह की मात्रा कम होने के कारण प्रदूषक जमा हो जाते हैं और प्रदूषण का स्तर बढ़ जाता है।
यमुना नदी के बारे में:
- यमुना नदी, गंगा की एक प्रमुख सहायक नदी है।
- इसकी उत्पत्ति उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में बंदरपूँछ शिखर के पास यमुनोत्री नामक ग्लेशियर से निकलती है।
- यह उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा और दिल्ली से प्रवाहित होने के बाद उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में गंगा नदी से मिलती है।
- इसकी प्रमुख सहायक नदियाँ चंबल, सिंध, बेतवा और केन हैं।
इंस्टा जिज्ञासु:
क्या आप जानते हैं कि अनुच्छेद 21 में ‘जीवन के अधिकार’ के व्यापक शीर्षक के तहत, स्वच्छ पर्यावरण का अधिकार, और प्रदूषण मुक्त जल का अधिकार से संबंधित प्रावधान किए गए हैं?
प्रीलिम्स लिंक:
- यमुना नदी कितने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से होकर बहती है?
- यमुना की सहायक नदियाँ
- पीने के पानी में अमोनिया की अधिकतम स्वीकार्य सीमा?
- सल्फेट का स्वीकार्य स्तर
- पानी की कठोरता की वांछनीय सीमा
- मल कोलिफॉर्म का वांछनीय स्तर
स्रोत: द हिंदू।
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य
सिलिप्सिमोपोडी बाइडेनी
(Syllipsimopodi Bideni)
जलवायु परिवर्तन को संबोधित करने और अपने राष्ट्रपति कार्यकाल की शुरुआत से ‘जो बिडेन’ की उनकी योजनाओं से उत्साहित होकर, शोधकर्ताओं ने एक नए खोजे गए जीवाश्म ‘वैम्पायर स्क्वीड’ का नाम उनके नाम पर ‘सिलिप्सिमोपोडी बाइडेनी’ (Syllipsimopodi Bideni रखा है।
- सिलिप्सिमोपोडी बाइडेनी’, को असाधारण रूप से अच्छी तरह से संरक्षित ‘वैम्पाइरोपॉड’ के रूप में वर्णित किया गया है।
- इस जीवाश्म की खोज मोंटाना के ‘मिसिसिपियन बियर गुल्च लेगरस्टेट’ से की गई थी।
- सिलिप्सिमोपोडी बाइडेनी प्रजाति का जीवाश्म, वर्तमान ऑक्टोपस के सबसे पुराने-ज्ञात संबंधी का प्रतिनिधित्व करता है, और इसकी 10 भुजाएँ हैं, जिसमें दो अन्य आठ की अपेक्षा दोगुनी लंबी हैं।
इस खोज का महत्व:
- यह एकमात्र ज्ञात ‘वैम्पायरोपोड’ (Vampyropod) है, और 10 भुजाओं के साथ ऑक्टोपस वंश के एकमात्र सदस्य का प्रतिनिधित्व करता है।
- यह नमूना लगभग 328 मिलियन वर्ष पुराने एक पूरी तरह से नए जीनस और प्रजाति का है।
- यह पहला और एकमात्र ज्ञात वैम्पाइरोपॉड है जिसमें 10 कार्यात्मक उपांग हैं।
गैलियम नाइट्राइड
‘गैलियम नाइट्राइड परितंत्र सक्षम केंद्र और इनक्यूबेटर’ (Gallium Nitride Ecosystem Enabling Centre and Incubator – GEECI) बेंगलुरु में स्थापित किया गया है।
- इस सुविधा केंद्र की स्थापना इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय और आईआईएससी, बेंगलुरु द्वारा संयुक्त रूप से की गई है।
- इसका उद्देश्य विशेष रूप से रणनीतिक अनुप्रयोगों सहित आरएफ और बिजली अनुप्रयोगों के लिए जीएएन (GaN) आधारित डेवलपमेंट लाइन फाउंड्री सुविधा स्थापित करना है।
‘गैलियम नाइट्राइड’ के बारे में:
गैलियम नाइट्राइड (Gallium Nitride – GaN) को इलेक्ट्रॉनिक्स चिप्स के लिए सिलिकॉन के बाद दूसरा सबसे महत्वपूर्ण पदार्थ माना जाता है।
गैलियम नाइट्राइड के गुण: उच्च ताप क्षमता, आयनीकरण विकिरण के प्रति कम संवेदनशीलता, तेज-स्विचिंग गति, उच्च तापीय चालकता और कम प्रतिरोध।
अनुप्रयोग:
- गैलियम नाइट्राइड (GaN) एक अर्धचालक है, जो आमतौर पर नीले प्रकाश उत्सर्जक डायोड (LEDs) में उपयोग किया जाता है।
- गैलियम नाइट्राइड प्रौद्योगिकी का अनुप्रयोग, 5जी, अंतरिक्ष और रक्षा के क्षेत्र में सामरिक महत्व का है।
- गैलियम नाइट्राइड (GaN) ई-वाहनों और वायरलेस संचार को सक्षम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
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