विषयसूची
सामान्य अध्ययन-II
1. चार धाम परियोजना
सामान्य अध्ययन–II
1. दलबदल-रोधी कानून
2. समान नागरिक संहिता
3. मेकेदातु विवाद
4. व्यापक आर्थिक सहयोग समझौता
5. सोसायटी फॉर वर्ल्डवाइड इंटरबैंक फाइनेंशियल टेलीकम्युनिकेशन
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य
1. अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन
2. मिलन 2022
सामान्य अध्ययन-I
विषय: भारतीय संस्कृति में प्राचीन काल से आधुनिक काल तक के कला के रूप, साहित्य और वास्तुकला के मुख्य पहलू शामिल होंगे।
चार धाम
(Char Dham)
संदर्भ:
हाल ही में, वयोवृद्ध पर्यावरणविद् रवि चोपड़ा ने ‘चार धाम परियोजना’ (Char Dham project) पर ‘सुप्रीम कोर्ट’ की ‘उच्चाधिकार प्राप्त समिति’ (High Powered Committee – HPC) के अध्यक्ष के रूप में इस्तीफा दे दिया है। उन्होंने कहा है, “उनका विश्वास था कि उच्चाधिकार प्राप्त समिति’ इस संवेदनशील (हिमालयी) पारिस्थितिकी की रक्षा कर सकती है, जोकि अब टूट चुका है”।
संबंधित प्रकरण:
27 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट के महासचिव को सौंपे गए अपने त्याग पत्र में, पर्यावरणविद् रवि चोपड़ा ने शीर्ष अदालत के दिसंबर 2021 के आदेश का उल्लेख किया, जिसमें ‘उच्चाधिकार प्राप्त समिति’ (HPC) द्वारा की गयी सिफारिशों को ‘सुप्रीम कोर्ट’ द्वारा सितंबर 2020 में जारी पहले आदेश में स्वीकार किए जाने, तथा बाद में HPC की सिफारिशों को लागू करने की बजाय ‘रक्षा जरूरतों को पूरा करने’ का हवाला देकर सड़क मार्ग को चौड़ा करने के लिए सरकार की मांग को स्वीकार कर लिया गया था।
इस प्रकरण में अदालत की कार्यवाही:
- वर्ष 2018 में, इस परियोजना को एक ‘गैर सरकारी संगठन’ द्वारा पेड़ों की कटाई, पहाड़ियों को काटने और खुदाई की गई सामग्री को डंप करने’की वजह से हिमालयी पारिस्थितिकी पर पड़ने वाले इसके संभावित प्रभाव के कारण चुनौती दी गई थी।
- वर्ष 2019 में, सुप्रीम कोर्ट द्वारा परियोजना से जुड़े मुद्दों की जांच के लिए ‘रवि चोपड़ा’ का अध्यक्षता एक ‘उच्चाधिकार प्राप्त समिति’ (HPC) का गठन किया गया, और अदालत ने सितंबर 2020 में, सड़क की चौड़ाई आदि पर समिति द्वारा दी गयी सिफारिश को स्वीकार कर लिया।
- नवंबर 2020 में, रक्षा मंत्रालय ने सेना की आवश्यकता को पूरा करने के लिए सड़कों को चौड़ा करने की मांग की।
- दिसंबर 2021 में, सुप्रीम कोर्ट ने सितंबर 2020 के अपने आदेश को इस आधार पर संशोधित किया कि अदालत “राष्ट्र की रक्षा हेतु कानून द्वारा निर्धारित संस्था की नीतिगत पसंद पर पूछताछ नहीं कर सकती”।
‘चारधाम परियोजना’ (Chardham Project) के बारे में:
- चारधाम परियोजना में, हिंदूओं के पवित्र तीर्थ स्थलों- बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री- को आपस में जोड़ने के लिए, 12,000 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत से 900 किलोमीटर लंबाई के राष्ट्रीय राजमार्गों को विकसित और चौड़ा किया जाना शामिल है।
- इस राजमार्ग को ‘चार धाम महामार्ग’ (चार धाम राजमार्ग) और ‘राजमार्ग निर्माण परियोजना’ को ‘चार धाम महामार्ग विकास परियोजना’ कहा जाएगा।
संबंधित पर्यावरणीय चिंताएं:
- पर्वतीय इलाकों में बड़े पैमाने पर निर्माण कार्य, आपदा के लिए एक नुस्खा होते है क्योंकि पेड़ों की कटाई किए जाने और चट्टानों के ढीले होने से भूस्खलन का खतरा बढ़ जाता है।
- ‘अनिवार्य पर्यावरण मंजूरी’ और ‘पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन’ (Environment Impact Assessment – EIA) प्रक्रियाओं को दरकिनार करते हुए परियोजना को निष्पादित किया जा रहा है।
- परियोजना के तहत सड़क बनाने के लिए कथित तौर पर 25,000 से अधिक पेड़ काटे गए है, जोकि पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र के लिए एक गंभीर चिंता का विषय है।
- चूंकि चौपहिया वाहनों के लिए चौड़े मार्ग बनाने के लिए ज्यादा उत्खनन और विस्फोटन करना होगा, जिससे इस क्षेत्र की स्थलाकृति फिसलन और भूस्खलन के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाएगी, परिणामस्वरूप सभी मौसमों में चालू रहने वाले राजमार्ग बनाने का उद्देश्य प्रभावित हो सकता है।
चारधाम परियोजना (Chardham Project) में अब तक का घटनाक्रम:
- चार धाम सड़क परियोजना की आधारशिला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा दिसंबर 2016 में रखी गयी थी।
- लेकिन, इस परियोजना को पर्यावरणीय आधार पर अदालतों में चुनौती दी गयी थी, जिसमे याचिकाकर्ताओं ने परियोजना के लिए पर्यावरणीय मंजूरी में अनियमितताओं का आरोप लगाया और कहा कि मौजूदा मानदंडों के उल्लंघन करते हुए परियोजना पर कार्य किया जा रहा है।
- इस परियोजना को सितंबर 2018 में ‘राष्ट्रीय हरित अधिकरण’ (NGT) द्वारा मंजूरी प्रदान की गयी थी, लेकिन, इसके आदेश को इस आधार पर अदालत में चुनौती दी गयी, कि यह आदेश, मामले की सुनवाई करने वाली पीठ बेंच से अलग अन्य पीठ बेंच द्वारा पारित किया गया है। जिस पर, सुप्रीम कोर्ट ने अक्टूबर 2018 में NGT के आदेश पर रोक लगा दी।
- सितंबर 2020 में, सुप्रीम कोर्ट ने एक रिट याचिका पर सुनवाई करते हुए एक आदेश पारित किया जिसमें कहा गया था, कि केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्रालय के 2018 के परिपत्र में निर्धारित ‘चार धाम परियोजना’ के लिए राजमार्गों की चौड़ाई 5 मीटर से अधिक नहीं होनी चाहिए। लेकिन रक्षा मंत्रालय ने उसी वर्ष दिसंबर में, राजमार्गों की चौड़ाई 10 मीटर किए जाने की अनुमति देने के लिए, अदालत से आदेश में संशोधन करने का अनुरोध किया।
- जिसके बाद, शीर्ष अदालत ने एक ‘उच्चाधिकार प्राप्त समिति’ (High-Powered Committee – HPC) को राजमार्गों की चौड़ाई पर केंद्र सरकार द्वारा पेश किए गए तर्कों पर गौर करने के लिए कहा।
प्रीलिम्स लिंक:
- परियोजना का अवलोकन
- इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण राष्ट्रीय उद्यान और वन्यजीव अभयारण्य
- इन स्थानों से बहने वाली महत्वपूर्ण नदियाँ
- राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों के बीच अंतर
मेंस लिंक:
चारधाम परियोजना के महत्व की विवेचना कीजिए।
स्रोत: द हिंदू।
सामान्य अध्ययन-II
विषय: भारतीय संविधान- ऐतिहासिक आधार, विकास, विशेषताएँ, संशोधन, महत्त्वपूर्ण प्रावधान और बुनियादी संरचना।
दलबदल-रोधी कानून
(Anti-defection law)
संदर्भ:
हाल ही में, पश्चिम बंगाल विधानसभा अध्यक्ष बिमान बनर्जी द्वारा विपक्ष के नेता सुवेंदु अधिकारी द्वारा दायर की गयी एक याचिका को खारिज कर दिया गया। याचिका में, चुनाव के उपरांत दल बदलने के लिए ‘दलबदल-रोधी कानून’(Anti-defection law) के तहत ‘मुकुल रॉय’ को विधायक के रूप में अयोग्य / निर्हरक घोषित करने की मांग की गई थी।
- भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष ‘मुकुल रॉय’ पिछले साल जून में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए थे।
- विधानसभा अध्यक्ष फैसले के मद्देनजर, मुकुल रॉय अब सदन में भाजपा विधायक के रूप में बने रहेंगे।
हाई कोर्ट का फैसला:
उच्च न्यायालय ने विधानसभा अध्यक्ष से मुकुल राय को सदन के सदस्य के रूप में अयोग्य ठहराए जाने की याचिका पर सात अक्टूबर तक फैसला लेने को कहा था।
- अदालत ने कहा था, कि यदि विधानसभा अध्यक्ष उपरोक्त तिथि तक कोई फैसला लेने में असफल रहते हैं तो अदालत इस मामले पर फैसला करेगी।
- यहां तक कि, सुप्रीम कोर्ट ने भी स्पीकर द्वारा अयोग्यता याचिका पर जल्द फैसला लेने की उम्मीद जताई थी।
भारतीय संविधान की दसवीं अनुसूची: प्रासंगिकता
भारतीय संविधान की दसवीं अनुसूची, ‘दल-बदल रोधी कानून’ के रूप में लोकप्रिय है।
- इसमें उन परिस्थितियों को निर्दिष्ट किया गया है, जिनके तहत सांसदों / विधायकों द्वारा राजनीतिक दलों को बदलने पर कानून के तहत कार्रवाई की जा सकती है।
- इस अनुसूची को 52वें संशोधन अधिनियम द्वारा संविधान में जोड़ा गया था।
- इसमें निर्दलीय विधायकों के चुनाव के बाद किसी पार्टी में शामिल हो जाने संबंधी स्थितियों के बारे में भी प्रावधान किए गए हैं।
इस क़ानून में किसी सांसद या विधायक द्वारा राजनीतिक दल बदलने के संबंध में निम्नलिखित तीन परिदृश्यों को निर्दिष्ट किया गया है:
- जब किसी राजनीतिक दल से संबंधित सदन का सदस्य स्वेच्छा से अपनी राजनीतिक पार्टी की सदस्यता त्याग देता है, अथवा यदि वह सदन में अपने राजनीतिक दल के निर्देशों के विपरीत मत देता है अथवा मतदान में अनुपस्थित रहता है तथा अपने राजनीतिक दल से उसने पंद्रह दिनों के भीतर क्षमादान न पाया हो।
- जब कोई विधायक, जो निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में अपनी सीट जीत चुका है, चुनाव के बाद किसी राजनीतिक दल में शामिल हो जाता है। [उपरोक्त दो मामलों में, सांसद / विधायक, दल परिवर्तन करने (या शामिल होने) पर विधायिका में अपनी सीट खो देता है।]
- मनोनीत सदस्यों से संबंधित: मनोनीत सदस्यों (Nominated Member) के मामले में, कानून उन्हें मनोनीत किए जाने के बाद, किसी राजनीतिक दल में शामिल होने के लिए छह महीने का समय देता है। यदि वे इस समयावधि के बाद किसी पार्टी में शामिल होते हैं, तो वे सदन में अपनी सीट खो देते हैं।
निर्हरता से संबंधित मामले:
- दल-बदल विरोधी कानून के तहत, किसी सांसद या विधायक की निर्हरता / अयोग्यता के विषय में फैसला करने की शक्ति विधायिका के पीठासीन अधिकारी के पास होती है।
- कानून में इस विषय पर निर्णय लेने हेतु कोई समय सीमा निर्दिष्ट नहीं की गयी है।
- पिछले वर्ष, सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, कि विधायिका के पीठासीन अधिकारी द्वारा दलबदल रोधी मामलों का फैसला तीन महीने की समयावधि में किया जाना चाहिए।
कानून के तहत अपवाद:
सदन के सदस्य कुछ परिस्थितियों में निरर्हता के जोखिम के बिना अपनी पार्टी बदल सकते सकते हैं।
- इस विधान में किसी दल के द्वारा किसी अन्य दल में विलय करने करने की अनुमति दी गयी है बशर्ते कि उसके कम से कम दो-तिहाई विधायक विलय के पक्ष में हों।
- ऐसे परिदृश्य में, अन्य दल में विलय का निर्णय लेने वाले सदस्यों तथा मूल दल में रहने वाले सदस्यों को अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता है।
कानून में खामियां:
इस क़ानून का विरोध करने वालों का कहना है, कि मतदाताओं द्वारा चुनाव में व्यक्तियों को चुना जाता है, न कि पार्टियों को और इसलिए दलबदल रोधी कानून निष्फल है।
इस विषय में अदालत द्वारा हस्तक्षेप:
कुछ मामलों में न्यायालयों ने विधायिका के कामकाज में हस्तक्षेप किया है।
- 1992 में, सुप्रीम कोर्ट की पांच-न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ ने कहा था, कि अध्यक्ष के समक्ष ‘दलबदल-रोधी कानून’ से संबंधित कार्यवाही एक ‘अधिकरण’ के समान है और इस प्रकार, इसे न्यायिक समीक्षा के अंतर्गत रखा जा सकता है।
- जनवरी 2020 में, सुप्रीम कोर्ट ने संसद से विधान सभा अध्यक्षों को प्राप्त ‘दलबदल-रोधी कानून के तहत विधायकों को अयोग्य घोषित करने अथवा नहीं करने’ का निर्धारण करने संबंधी विशेष शक्ति से वंचित करने हेतु संविधान में संशोधन करने के लिए कहा था।
- मार्च 2020 में, सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर के मंत्री थौनाओजम श्यामकुमार सिंह की विधानसभा सदस्यता रद्द कर दी थी और उनके लिए “अगले आदेश तक विधानसभा में प्रवेश करने से प्रतिबंधित कर दिया। इनके खिलाफ निर्हरता याचिकाएं 2017 से स्पीकर के समक्ष लंबित थीं।
इंस्टा जिज्ञासु:
क्या आप जानते हैं कि दलबदल रोधी कानून (1969, 1973) बनाने के शुरुआती प्रयासों में राजनीतिक दलों में शामिल होने वाले निर्दलीय विधायकों को शामिल नहीं किया गया था? फिर, उन्हें कानून के तहत कब शामिल किया गया? इसके बारे में जानकारी हेतु संक्षिप्त अवलोकन कीजिए।
प्रीलिम्स लिंक:
- दल-बदल कानून संबधित विभिन्न समितियों और आयोगों के नाम
- समिति तथा आयोग में अंतर
- पीठासीन अधिकारी तथा न्यायिक समीक्षा का निर्णय
- राजनीतिक दलों के विलय तथा विभाजन में अंतर
- क्या पीठासीन अधिकारी पर दलबदल विरोधी कानून लागू होता है?
- संबंधित मामलों में उच्चत्तम न्यायालय के निर्णय
मेंस लिंक:
दलबदल रोधी कानून के प्रावधानों का परीक्षण कीजिए। क्या यह कानून अपने उद्देश्यों को पूरा करने में विफल रहा है? चर्चा कीजिए।
स्रोत: द हिंदू।
विषय: भारतीय संविधान- ऐतिहासिक आधार, विकास, विशेषताएँ, संशोधन, महत्त्वपूर्ण प्रावधान और बुनियादी संरचना।
समान नागरिक संहिता
(Uniform Civil Code)
संदर्भ:
हाल ही में, स्कूलों और कॉलेजों में हिजाब पहनने को लेकर उठे विवाद के बीच केंद्रीय मंत्री और भाजपा नेता गिरिराज सिंह ने कहा है कि ‘समान नागरिक संहिता’ (Uniform Civil Code) लागू किया जाना ‘समय की जरूरत’ है और इस पर संसद और समाज दोनों में चर्चा होनी चाहिए।
संबंधित प्रकरण:
कर्नाटक के उडुपी जिले के एक सरकारी प्री-यूनिवर्सिटी कॉलेज में कुछ छत्राओं के हिजाब पहनने कर आने और कुछ हिंदू छात्रों द्वारा कॉलेज में भगवा स्कार्फ पहन कर इसका विरोध करने के बाद, दिसंबर के अंत में देश में ‘हिजाब विवाद’ की शुरुआत हुई थी।
- इसके बाद, यह विवाद राज्य के विभिन्न हिस्सों में स्थित अन्य शैक्षणिक संस्थानों में भी फैल गया, और हाल ही में कुछ स्थानों पर विरोध प्रदर्शनों ने हिंसक रूप ले लिया, जिससे सरकार को इन संस्थानों में तीन दिन की छुट्टी घोषित करनी पड़ी।
- हिजाब प्रतिबंध का मुद्दा थमने का नाम नहीं ले रहा है क्योंकि मुस्लिम लड़कियां कॉलेज में हिजाब पहनने पर अड़ी हैं।
- मुस्लिम मौलवियों का तर्क है कि ‘हिजाब पर प्रतिबंध’ लगाया जाना संविधान में निहित ‘धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार’ का उल्लंघन करता है।
पृष्ठभूमि:
हालांकि, राज्य के नीति के निर्देशक सिद्धांतों से संबंधित संविधान के भाग IV के अनुच्छेद 44 में संविधान-निर्माताओं द्वारा ये उम्मीद और अपेक्षा की गई है, कि राज्य, भारत के संपूर्ण भू-भाग में नागरिकों के लिए एक ‘समान नागरिक संहिता’ सुनिश्चित करने का प्रयास करेंगे, किंतु इस दिशा में अब तक कोई कोई कार्रवाई नहीं की गई है।
‘समान नागरिक संहिता’ क्या है?
समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code), सभी नागरिकों के लिए, एक धर्म-निरपेक्ष रूप से अर्थात धर्म को ध्यान में रखे बिना, तैयार किए गए शासकीय कानूनों का एक व्यापक समूह होती है।
संबंधित संवैधानिक प्रावधान:
संविधान के अनुच्छेद 44 में कहा गया है, कि देश में एक ‘समान नागरिक संहिता’ (UCC) होनी चाहिए। इस अनुच्छेद के अनुसार, ‘राज्य, भारत के समस्त राज्यक्षेत्र में नागरिकों के लिए एक ‘समान सिविल संहिता’ सुनिश्चित करने का प्रयास करेगा।‘ चूंकि ‘नीति-निदेशक सिद्धांत’ प्रकृति में केवल दिशा-निर्देशीय हैं, अतः राज्यों के लिए इनका पालन करना अनिवार्य नहीं है।
भारत में निम्नलिखित कारणों से एक ‘समान नागरिक संहिता’ की आवश्यकता है:
- एक धर्मनिरपेक्ष गणराज्य में धार्मिक प्रथाओं के आधार पर विभेदित नियमों के बजाय सभी नागरिकों के लिए ‘एक समान कानून’ की आवश्यकता होती है।
- ‘लैंगिक न्याय’: धार्मिक कानूनों के अतर्गत, चाहे वे हिंदू हो या मुस्लिम, आमतौर पर महिलाओं के अधिकार काफी सीमित होते हैं। धार्मिक परम्पराओं के अंतर्गत प्रचलित कई प्रथाएं भारतीय संविधान में प्रदत्त ‘मौलिक अधिकारों की गारंटी’ के विपरीत होती हैं।
- न्यायालयों ने भी, अक्सर, शाह बानो मामले में दिए गए फैसले सहित, अपने निर्णयों में कहा है कि सरकार के लिए एक ‘समान नागरिक संहिता’ लागू करने की दिशा में अग्रसर होना चाहिए।
क्या भारत में पहले से ही नागरिक मामलों में ‘एक समान संहिता’ नहीं है?
भारतीय कानून के अंतर्गत, अधिकांश नागरिक मामलों, जैसे कि- भारतीय अनुबंध अधिनियम, नागरिक प्रक्रिया संहिता, माल बिक्री अधिनियम, संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम, भागीदारी अधिनियम, साक्ष्य अधिनियम आदि- में एक समान संहिता का पालन किया जाता है। हालांकि, राज्यों द्वारा इन कानूनों में सैकड़ों संशोधन किए गए हैं और इसलिए कुछ मामलों में, इन धर्मनिरपेक्ष नागरिक कानूनों के अंतर्गत भी काफी विविधता है।
इस समय ‘समान नागरिक संहिता’ (UCC) वांछनीय क्यों नहीं है?
- धर्मनिरपेक्षता, देश में फ़ैली हुई बहुलता / अनेकता के प्रतिकूल नहीं हो सकती है।
- सांस्कृतिक विविधता को इस हद तक जोखिम में नहीं डाला जा सकता है, जिससे ‘एकरूपता’ के लिए हमारा आग्रह ही राष्ट्र की क्षेत्रीय अखंडता के लिए खतरा बन जाए।
इंस्टा जिज्ञासु:
क्या आप जानते हैं कि गोवा में ‘समान नागरिक संहिता’ लागू है?
- गोवा की पुर्तगाली नागरिक संहिता, 1867, मूलतः पुर्तगालियों द्वारा बनाया गया एक विदेशी संहिता / कोड है।
- गोवा की ‘नागरिक संहिता’ / सिविल कोड के चार भाग हैं, जो ‘नागरिकों की धारण शक्ति’ (Civil Capacity), ‘अधिकारों का अधिग्रहण’, ‘संपत्ति का अधिकार’ और ‘अधिकारों और उपचारों का उल्लंघन’ से संबंधित हैं।
- इसकी शुरुआत, ‘गॉड और डोम लुइस, पुर्तगाल के राजा और अल्गार्वे’ के नाम से होती है।
- यह संहिता, गोवा, दमन और दीव प्रशासन अधिनियम, 1962 की धारा 5 (1) के कारण अभी भी लागू है, इस अधिनियम के तहत गोवा की ‘नागरिक संहिता’ को जारी रखने की अनुमति दी गई थी।
प्रीलिम्स लिंक:
- ‘समान नागरिक संहिता’ (UCC) के बारे में।
- ‘राज्य के नीति निदेशक सिद्धांत’ (DPSP) क्या हैं।
- DPSP का प्रवर्तन।
- शाह बानो केस किससे संबंधित है?
मेंस लिंक:
इस समय ‘समान नागरिक संहिता’ (UCC) वांछनीय क्यों नहीं है? चर्चा कीजिए।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस।
विषय: सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय।
मेकेदातु विवाद
(Mekedatu issue)
संदर्भ:
हाल ही में, तमिलनाडु ने कर्नाटक द्वारा प्रस्तावित ‘मेकेदातु संतुलन जलाशय-सह-पेय जल परियोजना’ (Mekedatu Balancing Reservoir-cum-Drinking Water Project) पर ‘कावेरी जल प्रबंधन प्राधिकरण’ (CWMA) द्वारा एक विशेष चर्चा के विचार को खारिज कर दिया है।
तमिलनाडु ने अपनी पक्ष दोहराते हुए कहा है, कि यह विषय न्यायालय में विचाराधीन है और इस पर कोई चर्चा नहीं होनी चाहिए।
संबंधित प्रकरण एवं परियोजना में देरी का कारण:
तमिलनाडु द्वारा ‘मेकेदातु’ (Mekedatu) में कावेरी नदी पर कर्नाटक द्वारा जलाशय बनाने के कदम का विरोध किया जा रहा है। कर्नाटक, 67 हजार मिलियन क्यूबिक फीट (tmc ft) की भंडारण क्षमता वाले जलाशय से ‘पीने के पानी के रूप में’ 4.75 हजार मिलियन क्यूबिक फीट जल का उपयोग करना चाहता है, जोकि तमिलनयह राज्य के लिए “मंजूर नहीं” है।
हालांकि, कर्नाटक सरकार का कहना है, कि ‘मेकेदातु परियोजना’ से कोई “खतरा” नहीं है और राज्य द्वारा इस परियोजना को शुरू किया किया जाएगा।
कर्नाटक और तमिलनाडु के मध्य जल बंटवारा:
बंटवारे के अनुसार, कर्नाटक द्वारा कावेरी नदी के पानी को तीन स्रोतों से छोड़ा जाना अपेक्षित है:
- एक, काबिनी नदी के निचले प्रवाह क्षेत्रों में बहने वाला जल, कृष्णराजसागर जलाशय के जलग्रहण क्षेत्र, शिमशा, अर्कावती, और सुवर्णावती नदियों की उप-घाटी, और छोटी नदियों का पानी।
- दूसरा, काबिनी बांध से।
- तीसरा कृष्णराजसागर बांध से।
दूसरे और तीसरे स्रोतों के मामले में – जोकि कर्नाटक के नियंत्रण में हैं- राज्य के उपयोग हेतु पर्याप्त पानी जमा करने के बाद ही तमिलनाडु को पानी छोड़ा जाता है।
- चूंकि, पहले स्रोत के मामले में कोई बांध शामिल नहीं है, इसलिए इन क्षेत्रों का पानी, बिना किसी रोक-टोक के स्वतंत्र रूप से तमिलनाडु में बह रहा है।
- किंतु अब, तमिलनाडु राज्य सरकार को लगता है, कि कर्नाटक इस स्रोत को भी मेकेदातु बांध के माध्यम से अवरुद्ध करने की “साजिश” कर रहा है।
- मेकेदातु क्षेत्र, उस अंतिम मुक्त बिंदु का प्रतिनिधित्व करता है जहां से कावेरी की ऊपरी धारा का पानी कर्नाटक से तमिलनाडु राज्य में अप्रतिबंधित प्रवाहित होता है।
समाधान हेतु उपाय:
केंद्र सरकार का कहना है, कि इस परियोजना के लिए ‘कावेरी जल प्रबंधन प्राधिकरण’ (the Cauvery Water Management Authority – CWMA) की अनुमति लेना आवश्यक है।
- कर्नाटक द्वारा भेजी गई ‘विस्तृत परियोजना रिपोर्ट’ (Detail Project Report – DPR) को अनुमोदन के लिए CWMA के समक्ष कई बार पेश किया चुका है, किंतु संबधित राज्यों, कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच सहमति नहीं बन पाने के कारण इस मुद्दे पर चर्चा नहीं हो सकी है।
- साथ ही, ‘कावेरी जल विवाद प्राधिकरण’ (Cauvery Water Dispute Tribunal) के अंतिम निर्णय, जिसे सर्वोच्च न्यायालय द्वारा संशोधित किया गया था, के अनुसार, ‘जल शक्ति मंत्रालय’ द्वारा ‘विस्तृत परियोजना रिपोर्ट’ (DPR) पर विचार करने के लिए पहले CWMA की स्वीकृति लेना आवश्यक है।
चूंकि, यह परियोजना एक अंतर-राज्यीय नदी के पार प्रस्तावित की गई है, अतः इसे ‘अंतरराज्यीय जल विवाद अधिनियम’ (Interstate Water Dispute Act) के अनुसार, परियोजना के लिए नदी के निचले तटवर्ती राज्यों की मंजूरी लेना भी आवश्यक है।
‘मेकेदातु परियोजना’ के बारे में:
‘मेकेदातु’ एक बहुउद्देशीय (जल एवं विद्युत्) परियोजना है।
- परियोजना के तहत, कर्नाटक के रामनगर जिले में कनकपुरा के पास एक ‘संतोलन जलाशय’ (Balancing Reservoir) का निर्माण किया जाना प्रस्तावित है।
- इस परियोजना का उद्देश्य, बेंगलुरू शहर और इसके निकटवर्ती क्षेत्रों के लिए पीने के प्रयोजन हेतु पानी (75 टीएमसी) का भंडारण और आपूर्ति करना है। इस परियोजना के माध्यम से लगभग 400 मेगावाट बिजली उत्पन्न करने का भी प्रस्ताव किया गया है।
- परियोजना की अनुमानित लागत 9,000 करोड़ रुपये है।
तमिलनाडु द्वारा इस परियोजना का विरोध करने के कारण:
- तमिलनाडु का कहना है, कि ‘उच्चतम न्यायालय’ और ‘कावेरी जल विवाद अधिकरण’ (CWDT) के अनुसार ‘कावेरी बेसिन में उपलब्ध मौजूदा भंडारण सुविधाएं, जल भंडारण और वितरण के लिए पर्याप्त है, अतः कर्नाटक का यह प्रस्ताव पूर्व-दृष्टया असमर्थनीय है और इसे सीधे खारिज कर दिया जाना चाहिए।
- तमिलनाडु के अनुसार- प्रस्तावित जलाशय का निर्माण केवल पीने के पानी के लिए नहीं किया जा रहा है, बल्कि इसके द्वारा सिंचाई की सीमा बढाया जाएगा, जोकि ‘कावेरी जल विवाद निर्णय’ का स्पष्ट उल्लंघन है।
अधिकरण तथा सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए निर्णय:
‘कावेरी जल विवाद अधिकरण’ (CWDT) का गठन वर्ष 1990 में की गयी थी और वर्ष 2007 में दिए गए अपने अंतिम फैसले में, तमिलनाडु को 419 टीएमसी फीट, कर्नाटक को 270 टीएमसी फीट, केरल को 30 टीएमसी फीट और पुडुचेरी को 7 टीएमसी फीट पानी का बटवारा किया था। अधिकरण ने, बारिश की कमी वाले वर्षों में, सभी राज्यों के लिए जल-आवंटन की मात्रा कम कर दी जाएगी।
- हालांकि, तमिलनाडु और कर्नाटक दोनों द्वारा इस बटवारे पर अप्रसन्नता व्यक्त की और जल बंटवारे को लेकर दोनों राज्यों में विरोध और हिंसा के प्रदर्शन हुए। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस मामले पर सुनवाई की गई और वर्ष 2018 के फैसले में, बंटवारा करते हुए तमिलनाडु के पूर्व निर्धारित हिस्से में से 75 टीएमसी फीट पानी कर्नाटक को दे दिया।
- इस प्रकार, नया बटवारे के अनुसार, तमिलनाडु के लिए 25 टीएमसी फीट पानी मिला और कर्नाटक को 284.75 टीएमसी फीट पानी दिया गया। केरल और पुडुचेरी का हिस्सा अपरिवर्तित रहा।
इंस्टा जिज्ञासु:
क्या आप जानते हैं कि 2018 में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार के लिए ‘कावेरी प्रबंधन योजना’ अधिसूचित करने का निर्देश दिया था? इस योजना के प्रमुख घटक कौन से हैं?
प्रीलिम्स लिंक:
- कावेरी की सहायक नदियाँ।
- बेसिन में अवस्थित राज्य।
- नदी पर स्थित महत्वपूर्ण जलप्रपात तथा बांध।
- मेकेदातु कहाँ है?
- प्रोजेक्ट किससे संबंधित है?
- इस परियोजना के लाभार्थी।
मेंस लिंक:
मेकेदातु परियोजना पर एक टिप्पणी लिखिए।
स्रोत: द हिंदू।
विषय: द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक समूह और भारत से संबंधित और/अथवा भारत के हितों को प्रभावित करने वाले करार।
व्यापक आर्थिक सहयोग समझौता
(Comprehensive Economic Cooperation Agreement – CECA)
संदर्भ:
भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच अंतरिम व्यापार समझौते में, दोनों पक्षों द्वारा “संवेदनशील” माने जानी वस्तुओं को शामिल करने की संभावना नहीं है।
30 दिनों में, भारतीय और ऑस्ट्रेलियाई वार्ताकारों द्वारा “अंतरिम समझौता” तैयार कर लिया जाएगा और यह समझौता दोनों पक्षों के लिए “लाभदायक” दस्तावेज होगा।
पृष्ठभूमि:
दोनों पक्षों ने एक ‘व्यापक मुक्त व्यापार समझौते’ – (Comprehensive Economic Cooperation Agreement – CECA) – पर हस्ताक्षर किए जाने के बारे में विश्वास व्यक्त किया है और कहा है कि यह “अंतरिम समझौता” (Interim Agreement), “लाभों की फसल काटने से पहले किया गया समझौता” (Early Harvest Deals) है, जिसका उद्देश्य अंतिम CECA पर वार्ता पूरी होने से पहले द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ावा देना है।
भारत-ऑस्ट्रेलिया द्विपक्षीय व्यापार:
- वित्त वर्ष 2011 में भारत द्वारा ऑस्ट्रेलिया के लिए $4.04 बिलियन कीमत का निर्यात किया गया था, जबकि ऑस्ट्रेलिया से $8.24 बिलियन का आयात किया गया।
- ऑस्ट्रेलिया को निर्यात किए जाने वाली प्रमुख वस्तुओं में पेट्रोलियम उत्पाद, दवाएं, पॉलिश किए गए हीरे, सोने के आभूषण, परिधान आदि शामिल थे, जबकि ऑस्ट्रेलिया मुख्यतः कोयला, तरल नाइट्रोजन गैस (LNG), एल्यूमिना और गैर-मौद्रिक सोना, आदि का आयात किया गया।
- सेवा क्षेत्र में, भारत द्वारा किए गए निर्यात में यात्रा, दूरसंचार और कंप्यूटर, सरकारी और वित्तीय सेवाएं आदि शामिल थी, जबकि ऑस्ट्रेलिया से होने वाले सेवा क्षेत्रक आयात में मुख्यतः शिक्षा और निजी यात्राएँ शामिल थी।
- वर्ष 2020 में भारत, मुख्यतः कोयला और अंतर्राष्ट्रीय शिक्षा के व्यापार की वजह से, ऑस्ट्रेलिया का सातवां सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार तथा छठा सबसे बड़ा निर्यात गंतव्य देश था।
भारत के लिए समझौते का महत्व:
‘अंतरिम समझौता’, भारत द्वारा आगामी वर्षों में ‘मुक्त व्यापार क्षेत्र समझौता’ (FTA) को हासिल किए जाने के लक्ष्य के एक चरण की शुरुआत होगा।
- ऑस्ट्रेलिया के अलावा, भारत द्वारा इजरायल, कनाडा, यूरोपीय संघ और संयुक्त अरब अमीरात के साथ इसी तरह के FTA और “लाभों की फसल काटने से पहले किया गया समझौता” किए जाने हेतु वार्ता की जा रही है।
- छह देशों के संगठन, ‘गल्फ कोऑपरेशन काउंसिल’ (GCC) द्वारा भी भारत के साथ एक ‘मुक्त व्यापार क्षेत्र समझौता’ (FTA) करने में रुचि दिखाई गई है। ‘गल्फ कोऑपरेशन काउंसिल’ में बहरीन, कुवैत, ओमान, कतर, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात शामिल हैं।
इंस्टा जिज्ञासु:
CECA और CEPA के मध्य अंतर:
- CECA का तात्पर्य ‘व्यापक आर्थिक सहयोग समझौता’ (Comprehensive Economic Cooperation Agreement) होता है, जबकि
- CEPA का तात्पर्य ‘व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौता’ (Comprehensive Economic Partnership Agreement) से है।
CECA और CEPA के बीच प्रमुख “तकनीकी” अंतर यह है, कि ‘व्यापक आर्थिक सहयोग समझौते’ (CECA) में ‘नकारात्मक सूची’ और टैरिफ दर कोटा (TRQ) में शामिल मदों को छोड़कर, सूचीबद्ध/सभी वस्तुओं पर चरणबद्ध तरीके से केवल “टैरिफ में कमी/उन्मूलन” को शामिल किया जाता है।
- ‘व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौता’ (CEPA) के अंतर्गत, सेवाओं, निवेश तथा ‘आर्थिक साझेदारी के अन्य क्षेत्रों’ में व्यापार को भी शामिल किया जाता है।
- अतः CEPA, ‘व्यापक आर्थिक सहयोग समझौते’ (CECA) की तुलना में अधिक व्यापक होता है, और इसका विस्तार अधिक होता है।
- आमतौर पर, किसी देश के साथ पहले ‘व्यापक आर्थिक सहयोग समझौते’ (CECA) पर हस्ताक्षर किए जाते हैं और उसके बाद ‘व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौता’ (CEPA) के लिए बातचीत शुरू की जाती है।
प्रीलिम्स लिंक:
- ‘व्यापक आर्थिक सहयोग समझौता’ (CECA) के बारे में
- ‘व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौता’ (CEPA) के बारे में
- अन्य देशों के साथ भारत के ‘मुक्त व्यापार समझौते’ (FTAs)।
मेंस लिंक:
भारत-ऑस्ट्रेलिया ‘व्यापक आर्थिक सहयोग समझौता’ (CECA) के महत्व पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: द हिंदू।
विषय: महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थान, संस्थाएँ और मंच- उनकी संरचना, अधिदेश।
सोसाइटी फॉर वर्ल्डवाइड इंटरबैंक फाइनेंशियल टेलीकम्युनिकेशन
(Society for Worldwide Interbank Financial Telecommunication – SWIFT)
संदर्भ:
यूक्रेन मामले पर पर वाशिंगटन और मॉस्को के बीच बढ़ते तनाव के बीच, राजनीतिक टिप्पणीकारों का कहना है कि संयुक्त राज्य अमेरिका, अंतिम उपाय के रूप में, रूस को ‘सोसाइटी फॉर वर्ल्डवाइड इंटरबैंक फाइनेंशियल टेलीकम्युनिकेशन’ अर्थात ‘स्विफ्ट’ (Society for Worldwide Interbank Financial Telecommunication – SWIFT) से बाहर कर सकता है।
SWIFT से निष्कासित किए जाने के बाद की स्थिति:
यदि किसी देश को सबसे अधिक भागीदारी वाले वित्तीय सुविधा मंच अर्थात ‘सोसाइटी फॉर वर्ल्डवाइड इंटरबैंक फाइनेंशियल टेलीकम्युनिकेशन’ अर्थात ‘स्विफ्ट’ से बाहर रखा जाता है, तो इससे संबधित देश की विदेशी फंडिंग प्रभावित होगी, और वह देश पूरी तरह से घरेलू निवेशकों पर निर्भर हो जाएगा। वर्तमान में, संस्थागत निवेशक लगातार नए क्षेत्रों में नए बाजारों की तलाश कर रहे हैं, तब ऐसे में SWIFT से निष्कासन विशेष रूप से परेशानी की बात है।
SWIFT क्या है?
स्विफ्ट (SWIFT), वित्तीय संस्थानों द्वारा एक मानकीकृत प्रणाली के माध्यम से ‘सूचना एवं निर्देशों’ को सुरक्षित रूप से भेजने और प्राप्त करने हेतु प्रयुक्त किया जाने वाला एक मैसेजिंग नेटवर्क है। SWIFT के तहत, प्रत्येक वित्तीय संगठन का एक विशिष्ट कोड होता है, जिसका उपयोग भुगतान भेजने और प्राप्त करने के लिए किया जाता है।
- SWIFT के अंतर्गत वित्त-अंतरण (फंड ट्रांसफर) की सुविधा नहीं होती है, बल्कि, इसके जरिये ‘भुगतान आदेश’ (payment orders) भेजे जाते हैं। ये ‘भुगतान आदेश’ एक दूसरे के साथ व्यापार करने वाले संस्थानों के बीच जारी किए जाते है।
- SWIFT एक सुरक्षित ‘वित्तीय संदेश’ वाहक होता है – दूसरे शब्दों में, यह संदेशों को एक बैंक से इच्छित बैंक प्राप्तकर्ता तक पहुंचाता है।
इसकी मुख्य भूमिका, एक सुरक्षित ट्रांसमिशन चैनल प्रदान करना है ताकि बैंक A को पता चले कि बैंक B को भेजा गया उसका संदेश, बैंक B को ही प्राप्त हुआ है और किसी अन्य के लिए नहीं। दूसरी ओर, बैंक B जानता है कि निर्दिष्ट संदेश बैंक A द्वारा ही भेजा गया है, और मार्ग में इस संदेश को किसी ने भी पढ़ा या बदला नहीं है। स्वभावतः, संदेश भेजने से पहले बैंकों को निश्चित रूप से जांच-प्रक्रिया पूरी करने की जरूरत होती है।
SWIFT की अवस्थिति:
‘सोसाइटी फॉर वर्ल्डवाइड इंटरबैंक फाइनेंशियल टेलीकम्युनिकेशन’ (S SWIFT) का मुख्यालय बेल्जियम में है, और यह 200 से अधिक देशों और क्षेत्रों में 11,000 से अधिक बैंकिंग और प्रतिभूति संगठनों को आपस में जोड़ता है।
SWIFT का प्रशासन:
- यह यूरोपीय सेंट्रल बैंक के साथ बेल्जियम, कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, नीदरलैंड, यूनाइटेड किंगडम, संयुक्त राज्य अमेरिका, स्विट्जरलैंड और स्वीडन के G-10 केंद्रीय बैंकों द्वारा विनियमित किया जाता है। इसका प्रमुख निरीक्षक (ओवरसियर) ‘नेशनल बैंक ऑफ बेल्जियम’ है।
- 2012 में ‘स्विफ्ट ओवरसाइट फोरम’ की स्थापना की गयी थी। G-10 प्रतिभागियों में भारत, ऑस्ट्रेलिया, रूस, दक्षिण कोरिया, सऊदी अरब, सिंगापुर, दक्षिण अफ्रीका, तुर्की गणराज्य और पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के केंद्रीय बैंक इस फोरम में शामिल हैं।
SWIFT इंडिया:
‘स्विफ्ट इंडिया’ शीर्ष भारतीय सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के बैंकों एवं ‘सोसाइटी फॉर वर्ल्डवाइड इंटरबैंक फाइनेंशियल टेलीकम्युनिकेशन’ (SWIFT) का एक संयुक्त उद्यम है। कंपनी को भारतीय वित्तीय समुदाय को उच्च गुणवत्ता वाली घरेलू वित्तीय संदेश सेवाएं देने के लिए बनाया गया था। इस उद्यम में, वित्तीय समुदाय के लिए कई क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान देने की काफी संभावनाएं हैं।
SWIFT का महत्व:
- स्विफ्ट के ग्राहकों द्वारा भेजे गए संदेशों को इसकी विशेष सुरक्षा और पहचान तकनीक का उपयोग करके प्रमाणित किया जाता है।
- संदेशों के ग्राहक के पारितंत्र से बाहर जाते ही, इनमे ‘एन्क्रिप्शन’ (Encryption) जोड़ दिया जाता है।
- ये संदेश SWIFT के माध्यम से ऑपरेटिंग केंद्रों (OPCs) को प्रेषित किए जाते हैं जहां उन्हें संसाधित किया जाता है, और संप्रेषण प्रक्रिया के दौरान – जब तक कि वे सुरक्षित रूप से रिसीवर तक नहीं पहुंच जाते- सभी संदेश ‘अपनी सभी गोपनीयता और अखंडता प्रतिबद्धताओं के अधीन’ SWIFT संरक्षित वातावरण में रहते हैं।
इंस्टा जिज्ञासु:
वेबसाइट के अनुसार, स्विफ्ट का पहली बार इस्तेमाल 1973 में किया गया था। 1977 में 22 देशों के 518 संस्थानों के साथ यह प्रणाली शुरू हुई थी।
स्रोत: हिंदू।
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन
‘अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन’ (International Labour Organisation – ILO) की स्थापना, प्रथम विश्व युद्ध के बाद ‘लीग ऑफ़ नेशंस’ के लिए एक एजेंसी के रूप में की गयी थी।
- इसे वर्ष 1919 में ‘वर्साय की संधि’ (Treaty of Versailles) द्वारा स्थापित किया गया था।
- ‘अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन’, वर्ष 1946 में ‘संयुक्त राष्ट्र’ (United Nations– UN) की पहली विशिष्ट एजेंसी बन गया।
- वर्ष 1969 में इसके लिए ‘नोबेल शांति पुरस्कार’ प्रदान किया गया।
- यह संयुक्त राष्ट्र की ऐसी एकमात्र त्रिपक्षीय एजेंसी है, जिसमे सरकारें, नियोक्ता और श्रमिक एक साथ शामिल होते है।
- मुख्यालय: जिनेवा, स्विट्जरलैंड।
इसके द्वारा प्रकाशित प्रमुख रिपोर्ट्स:
- विश्व रोजगार और सामाजिक आउटलुक (World Employment and Social Outlook)
- वैश्विक वेतन रिपोर्ट (Global Wage Report)
मिलन 2022
(Milan 2022)
भारत द्वारा आयोजित एक बहुपक्षीय नौसेना अभ्यास, ‘मिलन’(MILAN) की शुरुआत, चार तटवर्ती नौसेनाओं की भागीदारी के साथ 1995 में अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में हुई थी।
- मित्र नौसेनाओं का यह द्विवार्षिक युद्धाभ्यास, पिछले ढाई दशकों में, उत्तरोत्तर परिमाण में विस्तारित हुआ है, 2018 में आयोजित पिछले संस्करण में 17 देशों ने भाग लिया था।
- मिलन 2022 पहली बार ‘नियति के शहर’ विशाखापत्तनम में आयोजित किया जाएगा। मिलन 2022, इस युद्धाभ्यास का ग्यारहवां संस्करण है और इसे पूर्वी नौसेना कमान के तत्वावधान में आयोजित किया जाएगा।
- पहली बार इस युद्धाभ्यास को अंडमान की बजाय ‘विजाग’ में स्थानांतरित किया गया है।
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