[Mission 2022] INSIGHTS करेंट अफेयर्स+ पीआईबी नोट्स [ DAILY CURRENT AFFAIRS + PIB Summary in HINDI ] 8 February 2022

विषयसूची

 

सामान्य अध्ययन-II

1. समान मतदाता सूची और एक साथ मतदान

2. धर्म और पहनावे की स्वतंत्रता

3. केरल के राज्यपाल द्वारा ‘लोकायुक्त अध्यादेश’ पर हस्ताक्षर

4. आईबी मंत्रालय द्वारा टीवी एवं अन्य प्लेटफार्मों पर प्रदर्शित सामग्री का विनियमन

5. ईरान परमाणु समझौता

 

सामान्य अध्ययनIII

1. विधिविरूद्ध क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम

 

प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य

1. ऑपरेशन आहट

2. जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय की पहली महिला कुलपति

3. कवल टाइगर रिजर्व

4. परय शिक्षालय

5. घोस्ट आर्मी

6. साउथ कोल ग्लेशियर

 


सामान्य अध्ययन-II


 

विषय: जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की मुख्य विशेषताएँ।

समान मतदाता सूची और एक साथ मतदान


(Common Electoral Roll and Simultaneous Poll)

संदर्भ:

हाल ही में, केंद्र सरकार ने स्पष्ट करते हुए कहा है कि, सरकार द्वारा देश के सभी निर्वाचन निकायों के लिए एक ‘समान मतदाता सूची’ (Common Electoral Roll) और ‘एक साथ चुनाव’ (Simultaneous Elections) कराने हेतु ‘जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951’ में संशोधन करने की योजना नहीं बनाई जा रही है।

क्योंकि, इन प्रावधानों के खिलाफ काफी चिंताएं व्यक्त की गई हैं, और इस मामले पर अभी तक कोई सहमति नहीं बन पाई है।

पृष्ठभूमि:

यद्यपि, केंद्र सरकार द्वारा ‘जन प्रतिनिधित्व अधिनियम’ में संशोधन करने की अभी कोई योजना नहीं बनाई जा रही है, फिर भी, सरकार ‘स्थानीय निकाय चुनावों’ के लिए राज्यों द्वारा ‘समान मतदाता सूची’ को अपनाने की संभावना पर ‘निर्वाचन आयोग’ सहित विभिन्न हितधारकों के साथ बैठकें की जा रही हैं। इसके अलावा, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी कई बार “एक राष्ट्र, एक चुनाव” (One Nation, One Election) के पक्ष में सार्वजानिक रूप से बोल चुके हैं।

एक राष्ट्र, एक चुनाव’ के बारे में:

एक राष्ट्र-एक चुनाव / ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ (One Nation-One Election) का तात्पर्य लोकसभा, राज्य विधानसभाओं, पंचायतों और शहरी स्थानीय निकायों के लिए प्रति पांच वर्षो में एक बार और एक साथ चुनाव कराने से है।

बहुधा होने वाले चुनावों होने से उत्पन्न चुनौतियाँ:

  1. भारी व्यय।
  2. चुनाव के समय में आदर्श आचार संहिता लागू होने के परिणामस्वरूप नीतियों में रूकावट।
  3. आवश्यक सेवाओं के वितरण पर प्रभाव।
  4. चुनाव के दौरान तैनात किये जाने वाले जन-बल पर अतिरिक्त भार।
  5. राजनीतिक दलों, विशेषकर छोटे दलों पर दबाव में वृद्धि, क्योंकि दिन प्रतिदिन महंगे होते जा रहे हैं।

एक साथ चुनाव कराए जाने के लाभ:

  • प्रशासन एवं अनुरूपता: सत्तारूढ़ दल, हमेशा चुनाव अभियान मोड में रहने के बजाय कानून और प्रशासन पर ध्यान केंद्रित कर सकेंगे।
  • धन के व्यय और प्रशासन में किफ़ायत।
  • नीतियों और कार्यक्रमों में निरंतरता।
  • प्रशासन क्षमता: सरकारों द्वारा लोकलुभावन उपायों में कमी।
  • सभी चुनाव एक ही बार होने से मतदाताओं पर काले धन के प्रभाव में कमी।

क्षेत्रीय दलों पर प्रभाव:

लोकसभा और राज्य विधान सभा चुनाव एक साथ होने पर, मतदाताओं में केंद्र व राज्य, दोनों में एक ही पार्टी को सत्ता में लाने के लिए मतदान करने की प्रवृत्ति हमेशा रहती है।

एक साथ चुनाव कराए जाने संबंधी प्रावधान लागू किए जाने हेतु, संविधान और कानूनों में किए जाने वाले परिवर्तन:

  1. अनुच्छेद 83, संसद के सदनों के कार्यकाल से संबंधित है, इसमें संशोधन किए जाने की आवश्यकता होगी।
  2. अनुच्छेद 85 (राष्ट्रपति द्वारा लोकसभा को भंग करने संबंधी अनुच्छेद)
  3. अनुच्छेद 172 (राज्य विधानसभाओं के कार्यकाल से संबंधित अनुच्छेद)
  4. अनुच्छेद 174 (राज्य विधानसभाओं के विघटन से संबंधित अनुच्छेद)
  5. अनुच्छेद 356 (राष्ट्रपति शासन से संबंधित अनुच्छेद)

संसद और विधानसभाओं, दोनों के कार्यकालों की स्थिरता हेतु ‘जनप्रतिनिधित्व अधिनियम (Representation of People Act), 1951’ में संशोधन किये जाने की आवश्यकता होगी। इसमें निम्नलिखित महत्वपूर्ण तत्व सम्मिलित किए जाने चाहिए:

  1. एक साथ चुनाव कराने संबंधी आवश्यक प्रक्रियाओं को सुविधाजनक बनाने हेतु भारत के निर्वाचन आयोग (ECI) की शक्तियों और कार्यों का पुनर्गठन।
  2. जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 2 में ‘एक साथ चुनाव’ की परिभाषा जोड़ी जा सकती है।

समान मतदाता सूची:

‘समान मतदाता सूची’ (Common Electoral Roll) के तहत, लोकसभा, विधानसभा और अन्य चुनावों के लिए केवल एक ‘मतदाता सूची’ का उपयोग किया जाएगा।

हमारे देश में कितने प्रकार की ‘मतदाता सूची’ होती है और इनमे क्या भिन्नताएं है?

कई राज्यों में, पंचायत और नगर पालिका चुनावों के लिए ‘मतदाता सूची’ तथा ‘संसद एवं विधानसभा चुनावों’ के लिए इस्तेमाल की जाने वाली ‘मतदाता सूची’ भिन्न होती हैं।

इस भिन्नता का कारण यह है, कि हमारे देश में चुनावों की जिम्मेदारी और संचालन दो संवैधानिक प्राधिकरणों – भारत के निर्वाचन आयोग (Election Commission of India- ECI) और ‘राज्य निर्वाचन आयोग’ (State Election Commissions -SECs) को सौंपा गया है।

महत्व:

  1. पृथक मतदाता सूची तैयार करने में दोगुनी मेहनत और व्यय लगता है।
  2. इसलिए, भारी मात्रा में मेहनत और व्यय को बचाने के विधि के रूप में, एक समान मतदाता सूची और एक साथ चुनाव कराए जाने पर प्रायः विचार किया जाता रहता है।

 

इंस्टा जिज्ञासु:

क्या आप जानते हैं कि ‘समान मतदाता सूची’ का मुद्दा, वर्ष 2002 में न्यायमूर्ति एम एन वेंकटचलैया की अध्यक्षता में गठित ‘संविधान के कामकाज की समीक्षा के लिए राष्ट्रीय आयोग’ द्वारा पंचायती राज संस्थानों, राज्य विधानसभा और संसद के चुनावों के लिए एक समान मतदाता सूची की सिफारिश किए जाने के बाद से चर्चा के केंद्र में बना हुआ है?

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. मतदान का अधिकार- क्या यह संवैधानिक अधिकार है?
  2. औपनिवेशिक शासन के दौरान मतदान का अधिकार- संक्षिप्त घटनाएँ।
  3. पोस्टल बैलेट क्या है?
  4. ईसीआई- संरचना और प्रमुख कार्य।
  5. गुप्त मतदान क्या है?
  6. आधार नंबर क्या है?

मेंस लिंक:

‘वन नेशन वन वोटर आईडी’ की आवश्यकता और महत्व पर चर्चा कीजिए।

स्रोत: द हिंदू।

 

विषय: भारतीय संविधान- ऐतिहासिक आधार, विकास, विशेषताएँ, संशोधन, महत्त्वपूर्ण प्रावधान और बुनियादी संरचना।

धर्म और पहनावे की स्वतंत्रता


(Freedom of religion and attire)

संदर्भ:

हाल ही में, कर्नाटक के उडुपी जिले के एक कॉलेज में हिजाब पहनने के कारण छह छात्राओं के प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। यह मुद्दा, ‘धर्म की स्वतंत्रता’ की व्याख्या करने तथा हिजाब पहनने का अधिकार संवैधानिक रूप से संरक्षित है अथवा नहीं, विषय पर कानूनी सवाल उठाता है।

संविधान के तहत ‘धार्मिक स्वतंत्रता’ का संरक्षण:

संविधान का अनुच्छेद 25(1) सभी व्यक्तियों को अंतःकरण की स्वतंत्रता का और धर्म के अबाध रूप से मानने, आचरण करने और प्रचार करने के समान अधिकार की गारंटी देता है।

यह अधिकार, ‘नकारात्मक स्वतंत्रता’ (Negative Liberty) की गारंटी प्रदान करता है – जिसका अर्थ है, कि राज्य यह सुनिश्चित करेगा कि इस स्वतंत्रता का प्रयोग करने में कोई हस्तक्षेप या बाधा नहीं हो।

सीमाएं: सभी मौलिक अधिकारों की तरह, सार्वजनिक व्यवस्था, शालीनता, नैतिकता, स्वास्थ्य और राज्य के अन्य हितों के आधार पर, राज्य द्वारा इस अधिकार को प्रतिबंधित किया जा सकता है।

इस संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियां:

  • लोगों को संविधान के अंतर्गत धर्म को मानने, आचरण करने और प्रचार करने का अधिकार है (अनुच्छेद 25)।
  • प्रत्येक व्यक्ति अपनी पसंद के धर्म अथवा अपने जीवन साथी का चुनाव करने के लिए अंतिम न्यायाधीश होता है। अदालतें, किसी व्यक्ति द्वारा अपनी पसंद के धर्म या जीवन साथी के चुनाव संबंधी फैसले में शामिल नहीं हो सकती हैं।
  • धार्मिक आस्था, ‘निजता के मौलिक अधिकार’ का एक भाग है।

1954 का शिरूर मठ मामला: इस मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा ‘अनिवार्यता के सिद्धांत’ (Doctrine of “Essentiality”) का प्रतिपादन किया गया था। अदालत द्वारा “धर्म” (Religion) शब्द में सभी अनुष्ठानों और प्रथाओं को किसी धर्म का “अभिन्न” अंग माना गया, और किसी धर्म की ‘अनिवार्य’ एवं ‘गैर- अनिवार्य’ प्रथाओं को निर्धारित करने की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली गयी।

हिजाबके संदर्भ में अदालत के फैसले?

  • आमना बिंत बशीर बनाम केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (2016) मामले में, केरल उच्च न्यायालय ने हिजाब (HIJAB) पहनने की प्रथा को एक अनिवार्य धार्मिक प्रथा के रूप में माना, किंतु सीबीएसई द्वारा निर्धारित ड्रेस कोड को रद्द नहीं किया। इसके बजाय, अदालत ने अतिरिक्त सुरक्षा उपायों- जैसे कि जरूरत पड़ने पर यह जांच करना कि छात्रों ने पूरी बाजू के कपडे पहने हैं अथवा नहीं – का प्रावधान किया था।
  • फातिमा तसनीम बनाम केरल राज्य (2018) मामले में, केरल उच्च न्यायालय ने कहा, कि किसी संस्था के सामूहिक अधिकारों को, याचिकाकर्ता के व्यक्तिगत अधिकारों पर प्राथमिकता दी जाएगी। इस मामले में दो लड़कियां शामिल थीं जो हेडस्कार्फ़ पहनना चाहती थीं। स्कूल ने हेडस्कार्फ की अनुमति देने से इनकार कर दिया। हालाँकि, अदालत ने अपील को खारिज कर दिया क्योंकि उस समय याचिकाकर्ता छात्राएं प्रतिवादी-विद्यालय में अध्ययन नहीं कर रही थी।

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. अनुच्छेद 12 के तहत राज्य की परिभाषा
  2. अनुच्छेद 13(3) किससे संबंधित है?
  3. उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों की रिट अधिकारिता
  4. अनुच्छेद 21 और 25 का अवलोकन

मेंस लिंक:

भारतीय संविधान के तहत धर्म की स्वतंत्रता के महत्व पर चर्चा कीजिए।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस।

 

विषय: विभिन्न संवैधानिक पदों पर नियुक्ति और विभिन्न संवैधानिक निकायों की शक्तियाँ, कार्य और उत्तरदायित्व।

केरल के राज्यपाल द्वारा ‘लोकायुक्त अध्यादेश’ पर हस्ताक्षर


संदर्भ:

हाल ही में, केरल के राज्यपाल द्वारा ‘केरल लोकायुक्त अधिनियम’, 1999 (Kerala Lok Ayukta Act, 1999) में संशोधन का प्रस्ताव करने वाले अध्यादेश पर हस्ताक्षर कर दिए गए हैं। संशोधन अध्यादेश के पारित होने के पश्चात, राज्य सरकार लोकायुक्त के आदेशों का पालन करने के लिए बाध्य नहीं होगी।

‘केरल लोकायुक्त अधिनियम’ में प्रस्तावित संशोधन:

  • सुनवाई का अवसर प्रदान करने के बाद, सरकार ‘लोकायुक्त’ के फैसले को स्वीकार या अस्वीकार कर सकती है।
  • वर्तमान में, ‘केरल लोकायुक्त अधिनियम’ की धारा 14 के तहत, लोकायुक्त द्वारा निर्देशित किए जाने पर एक लोक सेवक को पद खाली करना अनिवार्य है।

संशोधनों के विरोध का कारण:

संशोधनों का विरोध दो कारणों से किया जा रहा है:

  1. अधिनियम के प्रावधान एक अध्यादेश के माध्यम से संशोधित किए जा रहे हैं, और इसलिए इस विषय पर कोई उचित चर्चा नहीं की गयी है।
  2. प्रस्तावित संशोधन, ‘केंद्रीय लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम’, 2013 की मूल भावना का उल्लंघन करते है।

‘लोकायुक्त’ एवं ‘लोकायुक्त अधिनियम’ के बारे में अधिक जानकारी के लिए कृपया इस लेख को पढ़ें।

अध्यादेश जारी करने की शक्ति:

अध्यादेश जारी करने की शक्ति ‘राष्ट्रपति’ और ‘राज्यपाल’ की सबसे महत्वपूर्ण विधायी शक्ति होती है। अप्रत्याशित अथवा आवश्यक स्थितियों से निपटने के लिए, संविधान द्वारा यह शक्ति उन्हें प्रदान की गयी है।

  • संविधान का अनुच्छेद 123 के अंतर्गत, राष्ट्रपति को संसद के अवकाश के दौरान अध्यादेश प्रख्यापित करने हेतु कानून बनाने की शक्ति प्रदान की गयी है।
  • राष्ट्रपति द्वारा प्रख्यापित अध्यादेश शक्ति एवं प्रभाव में, संसद द्वारा पारित ‘अधिनियम’ के समान होते हैं, किंतु इनकी प्रकृति अस्थायी कानूनों की भांति होती है।
  • इसी भांति, संविधान के अनुच्छेद 213 के तहत, किसी राज्य के राज्यपाल को, राज्य विधानसभा (या द्विसदनीय विधायिकाओं वाले राज्यों में दो सदनों में से कोई भी) सत्र जारी होने की स्थिति में, अध्यादेश जारी करने की शक्ति होती है।
  • संविधान में संसद (या राज्य विधानमंडल) का सत्र जारी नहीं होने के दौरान, केंद्र और राज्य सरकारों को कानून बनाने की अनुमति दी गयी है।

अध्यादेश लागू रहने की अवधि:

संविधान में उल्लखित प्रावधानों के अनुसार, लागू किए जाने के बाद संसद (या राज्य विधानमंडल) की अगली बैठक के समय से छह सप्ताह के अंत तक, अध्यादेश को सदन द्वारा पारित नहीं किए जाने पर, यह समाप्त हो जाएगा।

अध्यादेश के माध्यम से क़ानून बनाए जाने से संबंधित चिंताएं:

यद्यपि, अध्यादेश को मूल रूप से एक आपातकालीन प्रावधान के रूप में परिकल्पित किया गया था, किंतु बाद में इसे नियमित रूप से इस्तेमाल किया जाने लगा।

  1. 1950 के दशक में, प्रति वर्ष औसतन 1 अध्यादेश केंद्र द्वारा जारी किए गए थे। पिछले कुछ वर्षों में, इसमें काफी उछाल देखा गया है; वर्ष 2019 में 16 और वर्ष 2020 में 15 अध्यादेश जारी किए गए।
  2. पुनः प्रख्यापन/ पुनः प्रवर्तन (Repromulgation): 1986 में सुप्रीम कोर्ट की पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ द्वारा सुनाए गए फैसले के अनुसार, अध्यादेशों का ‘पुनः प्रख्यापन’ (Repromulgation) संवैधानिक योजना के विपरीत है।
  3. कृष्ण कुमार सिंह बनाम बिहार राज्य मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि अध्यादेश जारी करने का अधिकार, एक स्वतंत्र उपकरण नहीं है, बल्कि इसके लिए एक शर्त की कसौटी पर खरा उतरना आवश्यक है कि देश अथवा राज्य में “ऐसी परिस्थितियां मौजूद हैं जिससे तत्काल कार्रवाई करना आवश्यक हो गया है”।

अध्यादेशों के पुन: प्रख्यापन को रोकने हेतु न्यायिक संरक्षोपाय:

  • ‘आर सी कूपर बनाम भारत संघ’ मामले (1970) में सुप्रीम कोर्ट के अनुसार, राष्ट्रपति द्वारा जारी अध्यादेश को लागू करने के फैसले को इस आधार पर चुनौती दी जा सकती है कि ‘तत्काल कार्रवाई’ की आवश्यकता नहीं थी, और अध्यादेश मुख्य रूप से विधायिका में बहस और चर्चा को दरकिनार करने के लिए जारी किया गया था।
  • ‘डी सी वाधवा बनाम बिहार राज्य’ मामले (1987) में कहा गया था, कि अध्यादेशों को प्रख्यापित करने के लिए कार्यपालिका की विधायी शक्ति का उपयोग, विधायिका की कानून बनाने की शक्ति के विकल्प के रूप में किए जाने की बजाय, असाधारण परिस्थितियों में किया जाना है।

 

इंस्टा जिज्ञासु:

44वें संविधान संशोधन ने दोहराया गया है कि ‘तत्काल कार्रवाई’ की आवश्यकता न होने की स्थिति में अध्यादेश जारी करने के लिए ‘राष्ट्रपति की संतुष्टि’ को चुनौती दी जा सकती है।

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. अनुच्छेद 123
  2. अनुच्छेद 213
  3. अध्यादेश बनाने की शक्तियाँ
  4. राज्यपाल की शक्तियाँ
  5. अध्यादेशों का पुनः प्रख्यापन
  6. अध्यादेश बनाने की शक्ति से संबंधित सुप्रीम कोर्ट के फैसले

मेंस लिंक:

अध्यादेशों और उनके पुनः प्रख्यापन से जुड़ी चिंताओं पर चर्चा कीजिए।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस।

 

विषय: सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय।

आईबी मंत्रालय द्वारा टीवी एवं अन्य प्लेटफार्मों पर प्रदर्शित सामग्री का विनियमन


संदर्भ:

31 जनवरी को, सूचना और प्रसारण मंत्रालय (Information and Broadcasting Ministry) द्वारा ‘सुरक्षा कारणों’ का हवाला देते हुए मलयालम समाचार चैनल ‘मीडिया वन’ के प्रसारण पर रोक लगा दी गयी।

इसके कुछ समय बाद, केरल उच्च न्यायालय द्वारा ‘समाचार चैनल’ को अपना कार्य जारी रखने की अनुमति देते हुए मंत्रालय के फैसले पर रोक लगा दी गयी।

‘सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय’ किन क्षेत्रों में सामग्री को विनियमित कर सकता है?

  • वर्ष 2021 तक, ‘सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय’ के लिए इंटरनेट को छोड़कर, टीवी चैनल, समाचार पत्र और पत्रिकाएं, सिनेमाघरों और टीवी पर फिल्में, और रेडियो पर प्रसारित होने वाली सामग्री को विनियमित करने की शक्ति होती है।
  • ‘सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम’, 2021 के लागू होने के उपरांत: ‘सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय’ की नियामक शक्तियां इंटरनेट सामग्री तथा विशेष रूप से डिजिटल समाचार प्लेटफॉर्म और ओटीटी प्लेटफॉर्म जैसे नेटफ्लिक्स, अमेज़ॅन प्राइम या हॉटस्टार तक विस्तारित कर दी गयी हैं।

मंत्रालय द्वारा अपनी शक्तियों का प्रयोग:

  • केबल टीवी नेटवर्क नियमों के माध्यम से: सूचना और प्रसारण मंत्रालय द्वारा वर्ष 2021 में, केबल टीवी नेटवर्क को विनियमित करते हुए ‘केबल टेलीविजन नेटवर्क नियम, 1994’ में संशोधन किया किया गया और नए नियमों के तहत किसी भी सामग्री प्रसारण के संबंध में नागरिकों द्वारा की गई शिकायतों के समाधान हेतु एक “वैधानिक” तंत्र का प्रावधान किया गया।
  • इलेक्ट्रॉनिक मीडिया मॉनिटरिंग सेल: यह प्रकोष्ठ ‘केबल टीवी नेटवर्क नियम, 1994’ में उल्लिखित प्रोग्रामिंग और विज्ञापन कोड (संहिता) के किसी भी उल्लंघन के लिए चैनलों की निगरानी करता है। संहिता का उल्लंघन किए जाने पर चैनल का अपलिंकिंग लाइसेंस (प्रसरण हेतु उपग्रह को सामग्री भेजने के लिए) या डाउनलिंकिंग लाइसेंस रद्द किया जा सकता है।

‘केबल टेलीविजन नेटवर्क (संशोधन) नियम, 2021 का अवलोकन:

केबल टेलीविजन नेटवर्क (संशोधन) नियम, 2021  (Cable Television Networks (Amendment) Rules of 2021) के तहत शिकायतों के निपटारे हेतु त्रिस्तरीय तंत्र का प्रावधान किया गया है।

  1. प्रसारकों द्वारा स्व-नियमन (self-regulation by broadcasters),
  2. प्रसारकों के स्व-नियमन निकायों द्वारा स्व-नियमन (self-regulation by the self-regulating bodies of the broadcasters) और
  3. केंद्र सरकार के स्तर पर एक अंतर-विभागीय समिति द्वारा निगरानी (oversight by an Inter-Departmental Committee at the level of the Union government)।

शिकायत निवारण प्रक्रिया:

  1. नियमों के अनुसार, चैनलों पर प्रसारित किसी भी कार्यक्रम से परेशानी होने पर दर्शक उस संबंध में प्रसारक से लिखित शिकायत कर सकता है। ऐसी शिकायत प्राप्त होने के 15 दिनों के भीतर प्रसारक को उसका निपटारा करना होगा और शिकायतकर्ता को अपना निर्णय बताना होगा।
  2. यदि शिकायतकर्ता, प्रसारक के जबाव से संतुष्ट नहीं होता है, तो शिकायत को टीवी चैनलों द्वारा स्थापित स्व-विनियमन निकाय के पास भेजा जा सकता है। ये स्व-नियामक निकाय अपील प्राप्ति के 60 दिनों के भीतर अपील का निपटारा करेंगे।
  3. यदि शिकायतकर्ता स्व-नियामक निकाय के निर्णय से संतुष्ट नहीं है, वह इस तरह के निर्णय के 15 दिनों के भीतर, निगरानी तंत्र के तहत विचार करने के लिए केंद्र सरकार से अपील कर सकता है।
  4. इस प्रकार की अपीलों पर निगरानी तंत्र के तहत गठित अंतर-विभागीय समिति द्वारा कार्रवाई की जाएगी।

समिति की संरचना:

इस समिति की अध्यक्षता सूचना और प्रसारण मंत्रालय में अतिरिक्त सचिव द्वारा की जाएगी और इसमें विभिन्न मंत्रालयों के सदस्य शामिल होंगे।

समिति की शक्तियां:

  1. यह समिति, केंद्र सरकार के लिए संबंधित मामलों पर सलाह देने, चेतावनी जारी करने, भर्त्सना करने, या किसी प्रसारक को फटकार लगाने अथवा माफी की मांग करने के संबंध में सिफारिश करेगी।
  2. यह समिति आवश्यक समझे जाने पर, किसी प्रसारक (ब्रॉडकास्टर) किसी कार्यक्रम के प्रसारण के दौरान ‘चेतावनी सूचना या एक खंडन (Disclaimer) शामिल करने, किसी सामग्री को हटाने या संशोधित करने, चैनल या किसी कार्यक्रम को एक निर्दिष्ट समय अवधि के लिए बंद करने के लिए कह सकती है।

वर्तमान शिकायत निवारण तंत्र:

वर्तमान में, नियमों के तहत कार्यक्रम/विज्ञापन संहिताओं के उल्लंघन से संबंधित नागरिकों की शिकायतों का समाधान करने हेतु एक अंतर-मंत्रालयी समिति के माध्यम से एक संस्थागत तंत्र कार्य करता है, हालांकि, इस समिति के पास वैधानिक आधार नहीं है।

नए नियमों का महत्व:

  1. यह नियम, शिकायतों के निवारण हेतु एक सशक्त संस्थागत व्यवस्था करने का मार्ग प्रशस्त प्रशस्त करते हैं।
  2. इनके माध्यम से, प्रसारकों और उनके स्व-नियामक निकायों पर जवाबदेही एवं जिम्मेदारी निर्धारित की गई है।

केबल टेलीविजन नेटवर्क (विनियमन) अधिनियम, 1995:

(Cable Television Networks (Regulation) Act, 1995)

  • केबल टेलीविजन नेटवर्क (विनियमन) अधिनियम के अधीन प्रशासित किसी भी मीडिया द्वारा अधिनियम के प्रावधानों तथा ‘प्रोग्राम कोड’ का पहली बार उल्लंघन करने पर दो साल तक की कैद अथवा 1,000 रुपए तक जुर्माना या दोने हो सकते है, इसके बाद फिर से अपराध करने पर पांच साल तक की कैद तथा 5,000 रुपए तक जुर्माना हो सकता है।
  • ‘प्रोग्राम कोड’ में केबल टीवी चैनलों के लिए एक विस्तृत ‘निषिद्ध’ सूची शामिल की गए है, जिसमे कहा गया है, कि किसी भी प्रकार के अश्लील, अपमानजनक, मिथ्या और परोक्ष में इशारा करने वाले तथा अर्ध-सत्य विवरण देने वाले कार्यक्रमों का प्रसारण नहीं किया जाना चाहिए।

नए नियमों किस प्रकार की सामग्री का प्रतिषेध किया गया है?

  • नए क़ानूनों में, प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, रेडियो, फिल्म या ओटीटी प्लेटफॉर्म पर अनुमत या निषिद्ध सामग्री पर किसी विशिष्ट कानून का उल्लेख नहीं हैं।
  • उपरोक्त सभी प्लेटफॉर्म पर प्रसारित होने वाली सामग्री को देश में ‘वाक् एवं अभिवयक्ति की स्वतंत्रता’ संबंधी नियमों का पालन करना होगा। संविधान के अनुच्छेद 19(1) में, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की सुरक्षा करते हुए, राज्य की सुरक्षा, विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध, सार्वजनिक व्यवस्था, शालीनता और नैतिकता आदि से संबंधित सामग्री सहित कुछ “उचित प्रतिबंधों” को भी सूचीबद्ध किया गया है।

 

इंस्टा जिज्ञासु:

  1. क्या आप इंडियन ब्रॉडकास्टिंग फाउंडेशन (IBF) के बारे में जानते हैं?
  2. क्या ‘इंडियन ब्रॉडकास्टिंग फाउंडेशन’ के अधिकार-क्षेत्र में डिजिटल स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म को भी कवर किया गया है?

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. केबल टेलीविजन नेटवर्क (विनियमन) अधिनियम, 1995 के बारे में
  2. नवीनतम संशोधन
  3. अंतर-विभागीय समिति की संरचना
  4. समिति के कार्य

मेंस लिंक:

नवीनतम संशोधनों की आवश्यकता और महत्व पर चर्चा कीजिए।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस।

 

विषय: भारत के हितों पर विकसित तथा विकासशील देशों की नीतियों तथा राजनीति का प्रभाव; प्रवासी भारतीय।

ईरान परमाणु समझौता


(Iran nuclear deal)

संदर्भ:

पश्चिमी देशों के राजनयिकों ने 2015 के ईरान परमाणु समझौते (Iran nuclear deal) को पुनर्जीवित करने के लिए इस महीने के अंत में समय सीमा निर्धारित की है।

यह समझौता वर्ष 2018 में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा समाप्त कर दिया गया था।

संबंधित प्रकरण:

अमेरिका के ईरान परमाणु समझौते से अलग होने के बाद, अमेरिकी अधिकारियों द्वारा ईरान के तेजी से बढ़ रहे परमाणु कार्यक्रमों के बारे में चिंता व्यक्त की जा रही है। दूसरी ओर, ईरान पहले ही कई बार कह चुका है कि उसके द्वारा देश में यूरेनियम ईंधन का संवर्धन किया जा रहा है।

अमेरिका द्वारा रखी गयी मांगे:

अमेरिका का कहना है, कि ईरान द्वारा मूल समझौते की शर्तों का अनुपालन किए जाने तथा कथित बैलिस्टिक मिसाइल भंडार और प्रॉक्सी संघर्षों से संबंधित अन्य मुद्दों का समाधान किए जाने पर, वह इस समझौते में फिर से शामिल हो जाएगा।

ईरान परमाणु समझौते’ के बारे में:

  • इसे ‘संयुक्त व्यापक कार्य योजना’ (Joint Comprehensive Plan of Action – JCPOA) के रूप में भी जाना जाता है।
  • यह समझौता अर्थात ‘संयुक्त व्यापक कार्य योजना’, ईरान तथा P5 + 1+ EU (चीन, फ्रांस, रूस, यूनाइटेड किंगडम, संयुक्त राज्य अमेरिका तथा जर्मनी, और यूरोपीय संघ) के मध्य वर्ष 2013 से 2015 से तक चली लंबी वार्ताओं का परिणाम था।
  • इस समझौते के तहत, तेहरान द्वारा, परमाणु हथियारों के सभी प्रमुख घटकों, अर्थात सेंट्रीफ्यूज, समृद्ध यूरेनियम और भारी पानी, के अपने भण्डार में महत्वपूर्ण कटौती करने पर सहमति व्यक्त की गई थी।

अमेरिका के समझौते से अलग होने के बाद ईरान की प्रतिक्रिया:

  • राष्ट्रपति ट्रम्प द्वारा, वर्ष 2018 में, अमेरिका को समझौते से बाहर कर लिया गया था। इसके अलावा, उन्होंने ईरान पर प्रतिबंधों और अन्य सख्त कार्रवाइयों को लागू करके उस पर ‘अधिकतम दबाव’ डालने का विकल्प चुना था।
  • इसकी प्रतिक्रिया में ईरान ने यूरेनियम संवर्द्धन और अपकेन्द्रण यंत्रों (Centrifuges) का निर्माण तेज कर दिया, साथ ही इस बात पर जोर देता रहा कि, उसका परमाणु विकास कार्यक्रम नागरिक उद्देश्यों के लिए है, और इसका उपयोग सैन्य उद्देश्यों के लिए नहीं किया जाएगा।
  • फिर, जनवरी 2020 में, इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स के कमांडर जनरल क़ासिम सुलेमानी पर ड्रोन हमले के बाद, ईरान ने ‘संयुक्त व्यापक कार्य योजना’ (JCPOA) की शर्तो का पालन नहीं करने की घोषणा कर दी।
  • JCPOA के भंग होने से ईरान, उत्तर कोरिया की भांति परमाणु अस्थिरता की ओर उन्मुख हो गया, जिससे इस क्षेत्र में और इसके बाहर भी महत्वपूर्ण भू-राजनीतिक अस्थिरता की स्थिति उत्पन्न हो गई है।

भारत के लिए इस समझौते का महत्व:

  • ईरान पर लगे प्रतिबंध हटने से, चाबहार बंदरगाह, बंदर अब्बास पोर्ट, और क्षेत्रीय संपर्को से जुडी अन्य परियोजनाओं में भारत के हितों को फिर से सजीव किया जा सकता है।
  • इससे भारत को, पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह में चीनी उपस्थिति को बेअसर करने में मदद मिलेगी।
  • अमेरिका और ईरान के बीच संबंधों की बहाली से भारत को ईरान से सस्ते तेल की खरीद और ऊर्जा सुरक्षा में सहायता मिलेगी।

 

इंस्टा जिज्ञासु:

क्या आपने ‘व्यापक परमाणु परीक्षण-प्रतिबंध संधि’ (CTBT) के बारे में सुना है? क्या भारत इस संधि का सदस्य है?

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. JCPOA क्या है? हस्ताक्षरकर्ता
  2. ईरान और उसके पड़ोसी।
  3. IAEA क्या है? संयुक्त राष्ट्र के साथ संबंध
  4. यूरेनियम संवर्धन क्या है?

मेंस लिंक:

संयुक्त व्यापक कार्य योजना (JCPOA)  पर एक टिप्पणी लिखिए।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस।

 


सामान्य अध्ययन-III


 

विषय: आंतरिक सुरक्षा के लिये चुनौती उत्पन्न करने वाले शासन विरोधी तत्त्वों की भूमिका।

विधिविरूद्ध क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम


(Unlawful Activities (Prevention) Act)

संदर्भ:

पत्रकारों, कार्यकर्ताओं और राज्य में कथित हिंसा पर ट्वीट करने वाले लोगों को ‘विधिविरूद्ध क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम’ (Unlawful Activities (Prevention) Act – UAPA) के तहत बार-बार नोटिस भेजने के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा त्रिपुरा पुलिस और सरकार की खिंचाई की गयी है।

पृष्ठभूमि:

अक्टूबर 2021 के अंत में, त्रिपुरा में अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय की एक मस्जिद, कुछ दुकानों और घरों में कथित रूप से तोड़फोड़ की गई थी। यह सांप्रदायिक हिंसा, कथित तौर पर पड़ोसी देश बांग्लादेश में हुई हिंदू विरोधी हिंसा की वजह से शुरू हुई थी।

विधिविरूद्ध क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम के बारे में:

1967 में पारित, विधिविरूद्ध क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम (Unlawful Activities (Prevention) Act-UAPA) का उद्देश्य भारत में गैरकानूनी गतिविधि समूहों की प्रभावी रोकथाम करना है।

  • यह अधिनियम केंद्र सरकार को पूर्ण शक्ति प्रदान करता है, जिसके द्वारा केंद्र सरकार किसी गतिविधि को गैरकानूनी घोषित कर सकती है।
  • इसके अंतर्गत अधिकतम दंड के रूप में मृत्युदंड तथा आजीवन कारावास का प्रावधान किया गया है।

प्रमुख बिंदु:

UAPA के तहत, भारतीय और विदेशी दोनों नागरिकों को आरोपित किया जा सकता है।

  • यह अधिनियम भारतीय और विदेशी अपराधियों पर समान रूप से लागू होता है, भले ही अपराध भारत के बाहर विदेशी भूमि पर किया गया हो।
  • UAPA के तहत, जांच एजेंसी के लिए, गिरफ्तारी के बाद चार्जशीट दाखिल करने के लिए अधिकतम 180 दिनों का समय दिया जाता है, हालांकि, अदालत को सूचित करने के बाद इस अवधि को और आगे बढ़ाया जा सकता है।

वर्ष 2019 में किए गए संशोधनों के अनुसार:

  • यह अधिनियम राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (NIA) के महानिदेशक को, एजेंसी द्वारा मामले की जांच के दौरान, आतंकवाद से होने वाली आय से निर्मित संपत्ति पाए जाने पर उसे ज़ब्त करने की शक्ति प्रदान करता है।
  • यह अधिनियम राज्य में डीएसपी अथवा एसीपी या उससे ऊपर के रैंक के अधिकारी के अतिरिक्त, आतंकवाद संबंधी मामलों की जांच करने हेतु ‘राष्ट्रीय जाँच एजेंसी’ के इंस्पेक्टर या उससे ऊपर के रैंक के अधिकारियों को जांच का अधिकार प्रदान करता है।
  • अधिनियम में किसी व्यक्ति को आतंकवादी के रूप में अभिहित करने का प्रावधान भी शामिल है।

दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा परिभाषित UAPA की रूपरेखा:

जून 2021 में, विधिविरूद्ध क्रियाकलाप निवारण अधिनियम (Unlawful Activities Prevention Act- UAPA), 1967 की एक अन्य रूप से “अस्पष्ट” धारा 15 की रूपरेखा को परिभाषित करते हुए, दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा, अधिनियम की धारा 18, 15, 17 को लागू करने पर कुछ महत्वपूर्ण सिद्धांत निर्धारित किए गए थे।

UAPA की धारा 15, 17 और 18:

  1. अधिनियम की धारा 15, ‘आतंकवादी कृत्यों’ से संबंधित अपराधों को आरोपित करती है।
  2. धारा 17 के तहत आतंकवादी कृत्यों के लिए धन जुटाने पर दण्डित करने का प्रावधान किया गया है।
  3. धारा 18, के अंतर्गत ‘आतंकवादी कृत्य करने हेतु साजिश आदि रचने’ या आतंकवादी कृत्य करने हेतु तैयारी करने वाले किसी भी कार्य’ संबंधी अपराधों के लिए आरोपित किया जाता है।

अदालत द्वारा की गई प्रमुख टिप्पणियां:

  • “आतंकवादी अधिनियम” (Terrorist Act) को हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए।
  • अदालत ने ‘हितेंद्र विष्णु ठाकुर मामले’ में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि, ‘आतंकवादी गतिविधियां’ वे होती है, जिनसे निपटना, सामान्य दंड कानूनों के तहत कानून प्रवर्तन एजेंसियों की क्षमता से बाहर होता है।

 

इंस्टा जिज्ञासु:

क्या आप जानते हैं कि विधिविरूद्ध क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम (UAPA) की धारा 3(1) के तहत, “यदि केंद्र सरकार को इस बात का यकीन हो जाता है, कि कोई एसोसिएशन / या संस्था, एक गैरकानूनी एसोसिएशन है, या बन गई है, तो वह सरकारी राजपत्र में ‘अधिसूचना’ के माध्यम से, ऐसे संगठनों को गैर-कानूनी घोषित कर सकती है?

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. विधिविरूद्ध क्रियाकलाप की परिभाषा
  2. अधिनियम के तहत केंद्र की शक्तियां
  3. क्या ऐसे मामलों में न्यायिक समीक्षा लागू है?
  4. 2004 और 2019 में संशोधन द्वारा किए गए बदलाव।
  5. क्या विदेशी नागरिकों को अधिनियम के तहत आरोपित किया जा सकता है?

मेंस लिंक:

क्या आप सहमत हैं कि विधिविरूद्ध क्रियाकलाप (निवारण) संशोधन अधिनियम मौलिक अधिकारों के लिए हानिकारक साबित हो सकता है? क्या राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए स्वतंत्रता का बलिदान करना न्यायसंगत है? चर्चा कीजिए।

स्रोत: द हिंदू।

 


प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य


ऑपरेशन आहट

  • मानव तस्करी को रोकने के लिए शुरू किया गया एक राष्ट्रव्यापी अभियान है।
  • इसे ‘रेलवे सुरक्षा बल’ द्वारा शुरू किया गया है।
  • ऑपरेशन आहट (Operation AAHT) के तहत, रेलवे सुरक्षा बल (RPF) द्वारा लंबी दूरी की ट्रेनों में विशेष बल तैनात किए जाएगी। ऑपरेशन के तहत मुख्य रूप से तस्करों से महिलाओं और बच्चों को बचाने पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।

 

 जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय की पहली महिला कुलपति

  • शांतिश्री धूलिपुडी पंडित (Santishree Dhulipudi Pandit) जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की पहली महिला कुलपति नियुक्त की गयी हैं।
  • शांतिश्री पंडित, वर्तमान में महाराष्ट्र में सावित्रीबाई फुले विश्वविद्यालय की कुलपति हैं।
  • राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद, द्वारा इन्हें पांच साल की अवधि के लिए नियुक्ति किया गया है।

 

कवल टाइगर रिजर्व

कवल टाइगर रिज़र्व (Kawal Tiger Reserve) द्वारा 12 और 13 फरवरी को अपना पहला ‘बर्ड वॉक’ (Bird Walk) आयोजित किया जा रहा है।

  • ‘कवल बाघ अभ्यारण्य’, पक्षियों की 300 से अधिक प्रजातियों और 600 से अधिक वृक्ष प्रजातियों, वनस्पतियों और जीवों में समृद्ध है।
  • ‘कवल टाइगर रिज़र्व’ तेलंगाना में स्थित है।
  • यह रिजर्व राज्य के उत्तरी तेलंगाना क्षेत्र में स्थित सबसे पुराना अभयारण्य है।
  • मुख्य रूप से गोदावरी और ‘कदम’ के जलग्रहण क्षेत्र ( catchment area) में अवस्थित है।
  • अभयारण्य, राज्य के मानव गतिविधियों से मुक्त एवं सागौन के सबसे समृद्ध जंगलों में से एक है

Current Affairs

 

परय शिक्षालय

  • पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा हाल ही में, कक्षा 1 से 7 तक के छात्रों के लिए एक ओपन-एयर क्लासरूम – परय शिक्षालय (Paray Shikshalaya) अर्थात पड़ोस स्कूल शुरू किया गया है।
  • इस पहल का उद्देश्य, कोविड-19 महामारी के दौरान स्कूल छोड़ चुके छात्रों को अपनी शिक्षा जारी रखने के लिए प्रोत्साहित करना है।

Current Affairs

 

घोस्ट आर्मी

  • घोस्ट आर्मी (Ghost Army), द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान तैनात अमेरिकी सेना की पहली मोबाइल ‘सामरिक छल इकाई’ (Tactical Deception Unit) थी।
  • हाल ही में, अमेरिकी राष्ट्रपति द्वारा ‘घोस्ट आर्मी’ को मान्यता देने के लिए “घोस्ट आर्मी कांग्रेसनल गोल्ड मेडल एक्ट” नामक एक विधेयक पर हस्ताक्षर किए गए हैं।

Current Affairs

 

साउथ कोल ग्लेशियर

हाल ही के अध्ययनों के अनुसार, पिछले 25 वर्षों में ‘साउथ कोल ग्लेशियर’ (South Col Glacier) की 54 मी से अधिक मोटाई कम हो चुकी है।

  • अपने इतिहास में पहली बार सतह पर हिम-निर्माण की तुलना में 80 गुना तेजी से पिघल रहा है।
  • ‘साउथ कोल ग्लेशियर’, माउंट एवरेस्ट और ल्होत्से के बीच एक तीव्र-किनारों वाला कोल (COL) है।
  • यह ग्लेशियर समुद्र तल से लगभग 7,906 मीटर (25,938 फीट) की ऊंचाई पर स्थित है।

Current Affairs

 


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