विषयसूची
सामान्य अध्ययन-I
1. श्री अरबिंदो
2. श्यामा प्रसाद मुखर्जी रुर्बन मिशन
सामान्य अध्ययन-II
1. नीति आयोग का राज्य स्वास्थ्य सूचकांक
2. विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम, 2010
3. ईरान परमाणु वार्ता
सामान्य अध्ययन-III
1. पूर्वव्यापी कराधान
2. चीन द्वारा ‘कृत्रिम सूर्य’ के लिए परमाणु संलयन परीक्षण
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य
1. ई.ओ. विल्सन
2. जीरो-डे वल्नरबिलिटी तथा लॉग4जे
सामान्य अध्ययन-I
विषय: 18वीं सदी के लगभग मध्य से लेकर वर्तमान समय तक का आधुनिक भारतीय इतिहास- महत्त्वपूर्ण घटनाएँ, व्यक्तित्व, विषय।
श्री अरबिंदो
संदर्भ:
हाल ही में, प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने, श्री अरबिंदो (Sri Aurobindo) की 150वीं जयंती पर आयोजित किए जाने वाले स्मरणोत्सव के लिए गठित ‘उच्च स्तरीय समिति’ की पहली बैठक की अध्यक्षता की।
- बैठक में उन्होंने देश भर के 150 विश्वविद्यालयों को श्री अरबिंदो के जीवन और दर्शन के विभिन्न पहलुओं पर लेख लिखने हेतु शामिल करने और इस अवसर पर 150 लेखों को प्रकाशित करने का सुझाव दिया।
- श्री अरबिंदो का जन्म 15 अगस्त, 1872 को कोलकाता, पश्चिम बंगाल में हुआ था।
‘श्री अरबिंदो’ के बारे में:
- श्री अरबिंदो (अरविन्द घोष), ‘आध्यात्मिक विकास के माध्यम से पृथ्वी पर दिव्य जीवन’ के दर्शन को प्रतिपादित करने वाले एक योगी, द्रष्टा, दार्शनिक, कवि और भारतीय राष्ट्रवादी थे।
- इन्होंने युवा अवस्था में वर्ष 1902 से 1910 तक स्वतन्त्रता संग्राम में क्रान्तिकारी के रूप में भाग लिया।
- बाद में श्री अरबिंदो एक योगी बन गये और इन्होंने पांडिचेरी में एक ‘आध्यात्मिक साधकों’ के एक संप्रदाय की स्थापना की, जो 1926 में ‘श्री अरबिंदो आश्रम’ के रूप में विकसित हुआ।
- वह अमेरिकी क्रांति, इटली में विद्रोह और मध्यकालीन इंग्लैंड के खिलाफ फ्रांसीसी विद्रोहों से बहुत प्रभावित थे।
- उन्होंने कांग्रेस के अधिवेशनों में भाग लिया और साथ ही वर्ष 1902 में कलकत्ता में ‘अनुशीलन समिति’ की स्थापना में सहयोग किया।
- उन्होंने और उनके भाई क्रांतिकारी बारिन घोष (Barin Ghose) ने युगांतर पत्रिका में कई लेख लिखे, जिसने कई युवाओं को क्रांतिकारी कार्य करने के लिए प्रेरित किया।
- वे ‘बंदे मातरम’ जैसे समाचार पत्रों का संपादन करने वाले पत्रकार भी थे।
- मई 1908 में, अरबिंदो को ‘अलीपुर षडयंत्र केस’ के सिलसिले में गिरफ्तार किया गया था।
- 1914 में उन्होंने ‘आर्य पत्रिका’ का प्रकाशन शुरू किया।
- उन्होंने काफी संख्या में रचनाएँ की। उनकी सबसे प्रख्यात साहित्यिक उपलब्धि ‘सावित्री’ थी। इस महाकाव्य कविता में लगभग 24000 पंक्तियां हैं।
- उन्होंने एक प्रकार का योग विकसित किया जिसे ‘एकात्म योग’ (Integral Yoga) कहा जाता है।
राष्ट्रवाद का उनका सिद्धांत:
श्री अरबिंदो घोष को भारतीय राष्ट्रवाद का पैगम्बर माना जाता था। बंकिमचंद्र, तिलक और दयानंद के साथ-साथ, उन्होंने भारत में राष्ट्रवाद के सिद्धांत को विकसित किया।
- श्री अरबिंदो का राष्ट्रवाद का सिद्धांत, वेदांत दर्शन पर आधारित था, जिसमें ‘मनुष्य और ईश्वर’ में एकरूपता और एकात्मकता की बात कही गयी थी।
- उन्होंने कहा कि, भारत वास्तव में ‘भारत माता’ है जो अपने लाखों बच्चों की एकजुट शक्ति और सत्ता का प्रतिनिधित्व करती है। भारत माता, अपने लोगों की अनंत ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करती है: उन्होंने भारत माता को ईश्वर की तरह बताया और कहा कि यह भारत को स्वतंत्र कराना, ईश्वर का दिव्य मिशन है।
- उन्होंने कहा कि गांवों को अपनी स्वायत्तता और स्वशासन कायम रखना चाहिए, लेकिन साथ ही, ‘राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देने की कोशिश करनी चाहिए। ‘राष्ट्रीय स्वराज’ का आदर्श, ‘आत्मनिर्भर, स्वायत्त और स्वशासी, पुराने ग्राम समाज’ पर आधारित होना चाहिए।
प्रीलिम्स लिंक:
- श्री अरबिंदो के बारे में
- भारत के स्वतंत्रता संग्राम में उनका योगदान
- महत्वपूर्ण साहित्यिक कृतियाँ
- जिन संगठनों से वह जुड़े थे
- अलीपुर षडयंत्र कांड
मेंस लिंक:
स्वामी विवेकानंद और श्री अरबिंदो ने भारतीय दार्शनिक मस्तिष्क में क्रांति ला दी और उसे जागृत किया। उन्हें “अनेकता में एकता” के दर्शन के महान प्रतिपादक के रूप में देखा जा सकता है। विस्तार से चर्चा कीजिए।
स्रोत: द हिंदू।
विषय: महिलाओं की भूमिका और महिला संगठन, जनसंख्या एवं संबद्ध मुद्दे, गरीबी और विकासात्मक विषय, शहरीकरण, उनकी समस्याएँ और उनके रक्षोपाय।
श्यामा प्रसाद मुखर्जी रुर्बन मिशन
संदर्भ:
नवीनतम सर्वेक्षण के अनुसार योजना के प्रदर्शन का विश्लेषण:
- श्यामा प्रसाद मुखर्जी रूर्बन मिशन (Shyama Prasad Mukherji Rurban Mission – SPMRM) के कार्यान्वयन में तेलंगाना पहले स्थान पर रहा।
- इसके बाद SPMRM के कार्यान्वयन में तमिलनाडु और गुजरात ने क्रमशः दूसरा और तीसरा स्थान प्राप्त किया।
‘श्यामा प्रसाद मुखर्जी रूर्बन मिशन’ के बारे में:
‘श्यामा प्रसाद मुखर्जी रुर्बन मिशन’ (Shyama Prasad Mukherji Rurban Mission-SPMRM) का शुभारंभ 21 फरवरी, 2016 को हुआ था।
इस कार्यक्रम को विकास की दहलीज पर पहुँच चुके ग्रामीण क्षेत्रों में उत्प्रेरक हस्तक्षेप करने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
- केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा शुरू किए गये ‘श्यामा प्रसाद मुखर्जी रुर्बन मिशन’ के तहत स्थान-संबंधी नियोजन के जरिए ‘क्लस्टर आधारित एकीकृत विकास’ पर फोकस किया जाता है।
- इसके तहत, देश भर के ऐसे ग्रामीण क्षेत्रों में ग्रामीण क्लस्टरों की पहचान की जाती है, जहां शहरी घनत्व में वृद्धि, गैर-कृषि रोजगारों के उच्च स्तर, आर्थिक गतिविधियां बढ़ने और अन्य सामाजिक-आर्थिक पैमाने जैसे शहरीकरण के बढ़ते संकेत मिल रहे हैं।
- यह एक केंद्र प्रायोजित योजना है।
- वित्तीयन: इस कार्यक्रम के तहत होने वाले व्यय को, मैदानी क्षेत्र के राज्यों के लिए केंद्र और राज्य के बीच 60:40 के अनुपात में और हिमालयी और पूर्वोत्तर राज्यों के लिए 90:10 के अनुपात में साझा किया जाता है।
- योजना का मुख्य उद्देश्य आर्थिक, तकनीकी और सुविधाओं और सेवाओं से संबंधित ग्रामीण-शहरी विभाजन को पाटना है।
विकास:
मिशन के तहत, केंद्र सरकार द्वारा जिला प्रशासन के साथ समन्वय करते हुए एवं गांवों की आत्मा को बरकरार रखते हुए, उचित नागरिक सुविधाओं के साथ शहरों की तर्ज पर, ग्रामीण ग्राम पंचायतों और गांवों का बहुस्तरीय चरणबद्ध विकास करने संबंधी उपाय किए जाते हैं।
‘रुर्बन क्षेत्र’ क्या है?
‘रुर्बन क्लस्टर’ (Rurban Cluster), मैदानी और तटीय क्षेत्रों में लगभग 25000 से 50000 की आबादी-युक्त तथा रेगिस्तान, पहाड़ी या आदिवासी क्षेत्रों में 5000 से 15000 की आबादी वाले, भौगोलिक रूप से सटे हुए गांवों का समूह होता है। इन क्लस्टर्स में आम तौर पर विकास की संभावनाएं दिखायी देती हैं, तथा इन जगहों पर आर्थिक वृद्धि के लिए आवश्यक चालक तत्व पाए जाते है और ये स्थानीय और प्रतिस्पर्धी लाभ उठाने में सक्षम होते हैं।
इस मिशन के तहत परिकल्पित परिणाम:
- आर्थिक, तकनीकी और सुविधाओं और सेवाओं से संबंधित, ग्रामीण-शहरी विभाजन को पाटना।
- ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी और बेरोजगारी को कम करने पर जोर देते हुए स्थानीय आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करना।
- क्षेत्र में विकास का प्रसार करना।
- ग्रामीण क्षेत्रों में निवेश आकर्षित करना।
आवश्यकता:
2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में 6 लाख से अधिक गाँव हैं, तथा लगभग 7,000 कस्बे और शहरी केंद्र हैं। कुल जनसंख्या में, ग्रामीण जनसंख्या 69% और शहरी जनसंख्या 31% है।
- देश की लगभग 70% आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है और कुल श्रम शक्ति का लगभग 50% अभी भी कृषि पर निर्भर है जोकि पर्याप्त रूप से उत्पादक नहीं है।
- देश में ग्रामीण क्षेत्रों के अधिकाँश क्षेत्र में एकाकी बस्तियां नहीं पायी जाती हैं, बल्कि अपेक्षाकृत एक दूसरे के निकट स्थित ‘बस्तियों’ का समूह होता है। इन क्लस्टर्स में आम तौर पर विकास की संभावनाएं पायी जाती हैं, आर्थिक वृद्धि के लिए आवश्यक चालक तत्वों की मौजूदगी के साथ-साथ, ये स्थानीय और प्रतिस्पर्धी लाभ उठाने में सक्षम होते हैं।
- एक बार विकसित हो जाने के बाद इन समूहों को ‘रूर्बन’ (RURBAN) के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है।
प्रीलिम्स लिंक:
- रुर्बन मिशन
- प्रमुख बिंदु
- रुर्बन क्षेत्र
- भारत में शहरी विकास
मेंस लिंक:
भारत में शहरी विकास से संबंधित सरोकारों पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: द हिंदू।
सामान्य अध्ययन-II
विषय: स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय।
नीति आयोग का राज्य स्वास्थ्य सूचकांक
संदर्भ:
हाल ही में, नीति आयोग ने 2019-20 के लिए ‘राज्य स्वास्थ्य सूचकांक’ (State Health Index) का चौथा संस्करण जारी किया है।
- इस रिपोर्ट को “स्वस्थ राज्य, प्रगतिशील भारत” शीर्षक दिया गया है।
- यह राज्य और केंद्रशासित प्रदेशों की रैंकिंग उनके स्वास्थ्य परिणामों में साल-दर-साल क्रमिक प्रदर्शन के साथ-साथ उनकी व्यापक स्थिति के आधार पर तय करती है।
- इस रिपोर्ट को नीति आयोग ने विश्व बैंक की तकनीकी सहायता और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के गहन परामर्श से विकसित किया है।
नवीनतम सूचकांक में विभिन्न राज्यों का प्रदर्शन:
- ‘राज्य स्वास्थ्य सूचकांक’ में केरल लगातार चौथे साल शीर्ष स्थान पर है।
- ‘उत्तर प्रदेश’ को सूचकांक में सबसे निचला स्थान प्राप्त हुआ है।
- तमिलनाडु और तेलंगाना क्रमशः दूसरे और तीसरे स्थान पर हैं।
- स्वास्थ्य सूचकांक में, छोटे राज्यों की श्रेणी में मिजोरम शीर्ष स्थान पर, तथा नागालैंड सबसे निचले स्थान पर है।
- केंद्र शासित प्रदेशों में, दादरा और नगर हवेली और दमन और दीव को शीर्ष स्थान पर, और अंडमान और निकोबार को सबसे नीचे स्थान पर रखा गया है।
राज्यों की रैंकिंग का आधार:
राज्य स्वास्थ्य सूचकांक, राज्य और केंद्रशासित प्रदेशों के प्रदर्शन का आकलन करने के लिए एक वार्षिक साधन है।
- यह ‘स्वास्थ्य से संबंधित परिणामों‘, ‘शासन व सूचना‘ और ‘प्रमुख इनपुट/प्रक्रियाओं‘ के क्षेत्र के तहत एक समूह में एकत्रित 24 संकेतकों पर आधारित एक भारित (वेटेज) समेकित सूचकांक है।
- परिणाम संकेतकों के लिए उच्च अंक के साथ हर एक क्षेत्र को इसके महत्व के आधार पर भार तय किया गया है।
उदाहरण के लिए:
- स्वास्थ्य परिणाम (Health outcomes) क्षेत्र में नवजात मृत्यु दर, 5 वर्ष से कम आयु की मृत्यु दर और जन्म के समय लिंग अनुपात जैसे मानदंडों को शामिल किया जाता है।
- शासन (Governance) क्षेत्र में, संस्थागत प्रसव, स्वास्थ्य-क्षेत्र के लिए निर्धारित प्रमुख पदों पर वरिष्ठ अधिकारियों की औसत नियुक्तियों को किया जाता है।
महत्व:
‘राज्य स्वास्थ्य सूचकांक’ को, स्वास्थ्य परिणामों को हासिल करने की गति में तेजी लाने हेतु सहकारी और प्रतिस्पर्धी संघवाद का लाभ उठाने के लिए, एक उपकरण के रूप में विकसित किया गया है।
- यह वर्तमान प्रणाली की तुलना में, ‘परिणाम’ एवं वार्षिक प्रदर्शन के ‘परिणाम-आधारित मापन’ पर अधिक ध्यान देने के लिए, राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों तथा केंद्रीय मंत्रालयों को प्रेरित करने हेतु एक उपकरण के रूप में भी कार्य करता है।
- सूचकांक का वार्षिक प्रकाशन, और गतिक आधार पर सार्वजनिक रूप से इसकी उपलब्धता से, ‘सतत विकास लक्ष्यों’ (SDGs) की ‘लक्ष्य संख्या 3’ को हासिल करने के प्रति प्रत्येक हितधारक के सतर्क रहने की उम्मीद की जाती है।
प्रीलिम्स लिंक:
- ‘राज्य स्वास्थ्य सूचकांक’ के बारे में
- रैंकिंग मानदंड
- नवीनतम निष्कर्ष
मेंस लिंक:
हाल ही में जारी नीति आयोग की ‘राज्य स्वास्थ्य सूचकांक’ रिपोर्ट के निष्कर्षों का विश्लेषण कीजिए।
स्रोत: द हिंदू।
विषय: सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय।
विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम, 2010
संदर्भ:
हाल ही में, केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा ‘नोबेल पुरस्कार विजेता मदर टेरेसा’ द्वारा स्थापित ‘मिशनरीज ऑफ चैरिटी’ (Missionaries of Charity – MoC) नामक एक ‘कैथोलिक धार्मिक समूह’ के FCRA पंजीकरण को नवीनीकृत करने से इनकार कर दिया गया है।
- गृह मंत्रालय के अनुसार, मिशनरीज ऑफ चैरिटी के नवीनीकरण आवेदन पर विचार करते हुए कुछ प्रतिकूल जानकारियां देखी गयीं। इन्हें देखते हुए इसके नवीनीकरण आवेदन को खारिज कर दिया गया।
- किसी भी गैर-सरकारी संगठन तथा अन्य संगठन के लिए, विदेशी अनुदान प्राप्त करने हेतु ‘विदेशी अंशदान विनियमन अधिनियम’ (Foreign Contribution Regulation Act – FCRA) के तहत पंजीकृत होना आवश्यक होता है।
पृष्ठभूमि:
गृह मंत्रालय (MHA) के अनुसार, 2016 और 2020 के बीच, सरकार द्वारा 6,600 से अधिक ‘गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) के ‘विदेशी अंशदान विनियमन अधिनियम’ (FCRA) लाइसेंस रद्द कर दिए और लगभग 264 NGOs के FCRA लाइसेंस निलंबित किए जा चुके हैं।
विनियम:
विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम, के माध्यम से विदेशों से प्राप्त होने वाले अनुदान को नियमित नियंत्रित किया जाता है, तथा यह अधिनियम सुनिश्चित करता है, कि इस तरह के अनुदान से देश की आंतरिक सुरक्षा पर प्रतिकूल प्रभाव न पड़े। इस अधिनियम को पहली बार वर्ष 1976 में अधिनियमित किया गया था, इसके बाद वर्ष 2010 और फिर 2020 में इसे संशोधित किया जा चुका है।
- विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम, 2010 (Foreign Contribution (Regulation) Act, 2010) की धारा 5 में, केंद्र सरकार के लिए किसी संगठन को राजनीतिक प्रकृति के रूप में घोषित करने और विदेशी स्रोतों से प्राप्त होने वाले धन तक पहुंच को रोकने के लिए “अनियंत्रित और बेलगाम शक्तियां” दी गयी हैं।
- ‘विदेशी अंशदान विनियमन अधिनियम’ (FCRA) को गृह मंत्रालय द्वारा लागू किया जाता है।
- अधिनियम के तहत ‘पूर्व संदर्भ श्रेणी’ (Prior Reference Category): इसका तात्पर्य है कि, किसी गैर सरकारी संगठन को दान करने के लिए, विदेशी दाता को गृह मंत्रालय से पूर्व अनुमति लेनी आवश्यक है।
उच्चतम न्यायालय की नवीनतम टिप्पणियां:
उच्चतम न्यायालय ने सरकार से पूछा है, कि गृह मंत्रालय को ‘विदेशी अंशदान विनियमन अधिनियम’ के तहत गैर सरकारी संगठनों को विदेशी धन की आमद और उसके बाद के बहिर्वाह पर नजर रखने का कार्य क्यों सौंपा गया है।
विनियमन की आवश्यकता:
- इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) की जानकारी से पता चला है, कि भारत में आने वाले विदेशी धन का उपयोग राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को अस्थिर करने वाली गतिविधियों को ‘वित्त-पोषित’ करने के लिए किया गया था। जानकारी से यह भी संकेत मिलता है, कि इस धन-राशि का इस्तेमाल नक्सलियों को प्रशिक्षित करने के लिए भी किया गया था। अतः, इसमें राष्ट्रीय सुरक्षा, राष्ट्र की अखंडता का तत्व शामिल है।
- सीबीआई के अनुसार, 22 लाख से अधिक गैर-सरकारी संगठनों में से केवल 10 प्रतिशत के द्वारा ही अपनी वार्षिक आय और व्यय विवरण, अपने पंजीकृत प्राधिकरणों के समक्ष दाखिल किया जाता है।
वर्ष 2020 का नवीनतम संशोधन और संबद्ध आलोचनाएँ:
- विदेशी अंशदान (विनियमन) संशोधन, 2020 के तहत पंजीकृत गैर सरकारी संगठन (NGO) के लिए भारतीय स्टेट बैंक की नई दिल्ली शाखा में एक निर्दिष्ट FCRA खाता खोलना अनिवार्य किया गया था। गैर सरकारी संगठन (NGO) केवल इस निर्दिष्ट खाते में ही विदेशी अनुदान दान स्वीकार कर सकेंगे।
- इस प्रावधान के खिलाफ, याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया है कि यह नियम ग्रामीण भारत में, और राजधानी से दूर काम कर रहे गैर सरकारी संगठनों के लिए काफी भारी-भरकम और थकाऊ होगा।
प्रीलिम्स लिंक:
- ‘विदेशी अंशदान विनियमन अधिनियम’ (FCRA) के बारे में
- ‘गैर सरकारी संगठनों के विदेशी वित्त पोषण’ के बारे में
- मदर टेरेसा
मेंस लिंक:
‘विदेशी अंशदान विनियमन अधिनियम’ (FCRA) के प्रमुख प्रावधानों और ऐसे कानून की आवश्यकता पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: द हिंदू।
विषय: भारत के हितों पर विकसित तथा विकासशील देशों की नीतियों तथा राजनीति का प्रभाव; प्रवासी भारतीय।
पांच महीने के बाद ईरान परमाणु वार्ता फिर से शुरू
संदर्भ:
2015 के ईरान परमाणु समझौते को पुनर्जीवित करने के लिए, ‘वियना’ में ‘संयुक्त व्यापक कार्य योजना’ (Joint Comprehensive Plan of Action – JCPOA) के रूप में प्रसिद्ध ‘अंतर्राष्ट्रीय वार्ता’ फिर से शुरू हो गई है।
- इस वार्ता में, ईरान परमाणु समझौते (Iran Nuclear Deal) के शेष भागीदार – ईरान, चीन, रूस, जर्मनी, फ्रांस और यूनाइटेड किंगडम- भाग ले रहे हैं।
- इस वार्ता में, वर्ष 2018 में तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के समझौते से हटने और ईरान पर प्रतिबंध लगाने के बाद, संयुक्त राज्य अमेरिका को समझौते में वापस लाने का प्रयास किया जाएगा।
‘ईरान परमाणु समझौते’ के बारे में:
- इसे ‘संयुक्त व्यापक कार्य योजना’ (Joint Comprehensive Plan of Action – JCPOA) के रूप में भी जाना जाता है।
- यह समझौता अर्थात ‘संयुक्त व्यापक कार्य योजना’, ईरान तथा P5 + 1+ EU (चीन, फ्रांस, रूस, यूनाइटेड किंगडम, संयुक्त राज्य अमेरिका तथा जर्मनी, और यूरोपीय संघ) के मध्य वर्ष 2013 से 2015 से तक चली लंबी वार्ताओं का परिणाम था।
- इस समझौते के तहत, तेहरान द्वारा, परमाणु हथियारों के सभी प्रमुख घटकों, अर्थात सेंट्रीफ्यूज, समृद्ध यूरेनियम और भारी पानी, के अपने भण्डार में महत्वपूर्ण कटौती करने पर सहमति व्यक्त की गई थी।
वर्तमान में चिंता का विषय:
- राष्ट्रपति ट्रम्प द्वारा, वर्ष 2018 में, अमेरिका को समझौते से बाहर कर लिया गया था। इसके अलावा, उन्होंने ईरान पर प्रतिबंधों और अन्य सख्त कार्रवाइयों को लागू करके उस पर ‘अधिकतम दबाव’ डालने का विकल्प चुना था।
- इसकी प्रतिक्रिया में ईरान ने यूरेनियम संवर्द्धन और अपकेन्द्रण यंत्रों (Centrifuges) का निर्माण तेज कर दिया, साथ ही इस बात पर जोर देता रहा कि, उसका परमाणु विकास कार्यक्रम नागरिक उद्देश्यों के लिए है, और इसका उपयोग सैन्य उद्देश्यों के लिए नहीं किया जाएगा।
- फिर, जनवरी 2020 में, इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स के कमांडर जनरल क़ासिम सुलेमानी पर ड्रोन हमले के बाद, ईरान ने ‘संयुक्त व्यापक कार्य योजना’ (JCPOA) की शर्तो का पालन नहीं करने की घोषणा कर दी।
- JCPOA के भंग होने से ईरान, उत्तर कोरिया की भांति परमाणु अस्थिरता की ओर उन्मुख हो गया, जिससे इस क्षेत्र में और इसके बाहर भी महत्वपूर्ण भू-राजनीतिक अस्थिरता की स्थिति उत्पन्न हो गई है।
इस समझौते का भारत के लिए महत्व:
- ईरान पर लगे प्रतिबंध हटने से, चाबहार बंदरगाह, बंदर अब्बास पोर्ट, और क्षेत्रीय संपर्को से जुडी अन्य परियोजनाओं में भारत के हितों को फिर से सजीव किया जा सकता है।
- इससे भारत को, पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह में चीनी उपस्थिति को बेअसर करने में मदद मिलेगी।
- अमेरिका और ईरान के बीच संबंधों की बहाली से भारत को ईरान से सस्ते तेल की खरीद और ऊर्जा सुरक्षा में सहायता मिलेगी।
इंस्टा जिज्ञासु:
क्या आपने ‘व्यापक परमाणु परीक्षण-प्रतिबंध संधि’ (CTBT) के बारे में सुना है? क्या भारत इस संधि का सदस्य है?
प्रीलिम्स लिंक:
- JCPOA क्या है? हस्ताक्षरकर्ता
- ईरान और उसके पड़ोसी।
- IAEA क्या है? संयुक्त राष्ट्र के साथ संबंध
- यूरेनियम संवर्धन क्या है?
मेंस लिंक:
संयुक्त व्यापक कार्य योजना (JCPOA) पर एक टिप्पणी लिखिए।
स्रोत: द हिंदू।
सामान्य अध्ययन-III
विषय: भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधनों को जुटाने, प्रगति, विकास तथा रोज़गार से संबंधित विषय।
पूर्वव्यापी कराधान
संदर्भ:
ब्रिटेन के एक प्रमुख उर्जा कंपनी ‘केयर्न एनर्जी पीएलसी’ (Cairn Energy Plc) ने भारत सरकार और इसकी विदेशी इकाईयों के खिलाफ ₹10,247 करोड़ के ‘पूर्वव्यापी कर’ (retrospective tax) मामले में दायर मुकदमों को आखिरकार वापस ले लिया है। केयर्न एनर्जी द्वारा, भारत के खिलाफ फ्रांस और नीदरलैंड में भी दर्ज मामलों को वापस लेने की प्रक्रिया पूरी की जा रही है।
‘केयर्न एनर्जी पीएलसी’ द्वारा यह सभी मुकदमे भारत सरकार से ‘अपनी राशि वसूल करने’ को ‘एयर इंडिया’ की संपत्ति जब्त करने के लिए दायर किए गए थे।
पृष्ठभूमि:
‘केयर्न एनर्जी पीएलसी’ द्वारा मुकदमों को वापस लेने का फैसला, एक अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता निर्णय के बाद लिया गया है। अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता न्यायालय ने अपने निर्णय में, भारत को केयर्न एनर्जी पर लगाए गए ₹ 10,247 करोड़ के ‘पूर्वव्यापी कर’ को वापस लेने तथा कंपनी को पैसे वापस करने का निर्देश दिया था।
संबंधित प्रकरण:
दिसंबर 2020 में, नीदरलैंड स्थित ‘स्थायी मध्यस्थता न्यायालय’ (Permanent Court of Arbitration -PCA) में तीन सदस्यीय ‘अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थ न्यायाधिकरण’ (International Arbitral Tribunal) द्वारा सर्वसम्मति से फैसला सुनाते हुए कहा, कि भारत सरकार द्वारा ‘ब्रिटेन-भारत द्विपक्षीय निवेश संधि’ (India-UK Bilateral Investment Treaty) और ‘निष्पक्ष और न्यायसंगत समाधान की गारंटी’ उल्लंघन किया गया है, और इसकी वजह से ब्रिटिश ऊर्जा कंपनी को नुकसान पहुंचा है।
- इसके अलावा मध्यस्थ न्यायाधिकरण ने भारत सरकार को ‘केयर्न एनर्जी’ के लिए 1.2 अरब डॉलर का मुआवजा देने का आदेश दिया था।
- भारत सरकार द्वारा ब्रिटेन-भारत द्विपक्षीय निवेश समझौते का हवाला देते हुए वर्ष 2012 में लागू पूर्वव्यापी कर कानून (retrospective tax law) के तहत आंतरिक व्यापार पुनर्गठन पर करों (taxes) की मांग की गयी थी, जिसे केयर्न एनर्जी ने चुनौती दी थी।
- वर्ष 2014 में, भारतीय कर विभाग द्वारा ‘केयर्न एनर्जी’ से ‘कर’ के रूप में 10,247 करोड़ रुपये की मांग की थी।
- वर्ष 2015 में, केयर्न एनर्जी पीएलसी ने भारत सरकार के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता कार्यवाही शुरू की।
इसके आगे का घटनाक्रम:
कृपया ध्यान दें, हाल ही में भारत सरकार द्वारा ‘कराधान कानून (संशोधन) अधिनियम’ पारित किया गया था, जिसके अंतर्गत, जनवरी 2016 में केयर्न के खिलाफ मूल रूप से लगाए जाने वाले ‘करों’ के निर्धारण को रद्द कर दिया गया, और साथ ही केयर्न से वसूले गए 7,900 करोड़ रुपये को वापस किए जाने आदेश भी दिया गया है।
‘पूर्वव्यापी कराधान’ के बारे में:
‘पूर्वव्यापी कराधान’ (Retrospective Taxation) के तहत, किसी देश को, कानून पारित होने की तारीख से पहले से, कुछ उत्पादों, वस्तुओं या सेवाओं और सौदों पर, पूर्वव्यापी कर लगाने तथा कंपनियों पर पूर्वव्यापी दंड लगाने की अनुमति होती है।
- विभिन्न देशों द्वारा अपनी कराधान नीतियों में उन विसंगतियों को ठीक करने के लिए इस मार्ग का उपयोग किया जाया हैं, जिनके तहत अतीत में ‘कंपनियों’ को ऐसी खामियों का लाभ उठाने का अवसर मिल गया था।
- ‘पूर्वव्यापी कराधान’ से उन कंपनियों को नुकसान पहुँचाता है जिनके द्वारा जानबूझकर या अनजाने में देश के कर नियमों की अलग-अलग व्याख्या की गई थी।
‘स्थायी मध्यस्थता न्यायालय’
(Permanent Court of Arbitration – PCA)
‘स्थायी मध्यस्थता न्यायालय’ (PCA) की स्थापना 1899 में हुई थी और इसका मुख्यालय ‘द हेग’, नीदरलैंड्स में है।
- यह एक अंतर सरकारी संगठन है जो विवाद समाधान क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय समुदाय की सेवा करने और देशों के बीच ‘मध्यस्थता’ और विवाद समाधान के अन्य तरीकों की सुविधा प्रदान करने के लिए समर्पित है।
- इसके सभी निर्णय, जिन्हें ‘अवार्ड’ (Award) कहा जाता है, विवाद में शामिल सभी पक्षों के लिए बाध्यकारी होते हैं और तत्काल लागू किए जाते हैं।
इंस्टा जिज्ञासु:
मध्यस्थता (arbitration), मध्यगता या बीचबचाव (mediation) और सुलह (conciliation) एक दूसरे से किस प्रकार भिन्न हैं?
प्रीलिम्स लिंक:
- ‘मध्यस्थता’ क्या है?
- हालिया संशोधन।
- अन्तर्राष्ट्रीय मध्यस्थता न्यायालय के बारे में।
- भारतीय मध्यस्थता परिषद के बारे में।
- 1996 अधिनियम के तहत मध्यस्थों की नियुक्ति।
- स्थायी मध्यस्थता न्यायालय (PCA) – संरचना, कार्य और सदस्य।
मेंस लिंक:
मध्यस्थता एवं सुलह (संशोधन) अधिनियम के महत्व पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: द हिंदू।
विषय: सूचना प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष, कंप्यूटर, रोबोटिक्स, नैनो-टैक्नोलॉजी, बायो-टैक्नोलॉजी और बौद्धिक संपदा अधिकारों से संबंधित विषयों के संबंध में जागरुकता।
चीन द्वारा ‘कृत्रिम सूर्य’ के लिए परमाणु संलयन परीक्षण
संदर्भ:
चीन के शीर्ष वैज्ञानिकों द्वारा सफलतापूर्वक ‘कृत्रिम सूर्य’ (Artificial Sun) का निर्माण करने का दावा किया जा रहा है। चीन द्वारा बनाया गया कृत्रिम सूर्य वास्तविक सूर्य, पृथ्वी जिसके चारो ओर परिक्रमा करती है, से लगभग दस गुना अधिक गर्म है।
- इस कृत्रिम सूर्य को ‘प्रायोगिक उन्नत सुपरकंडक्टिंग टोकामक’ (Experimental Advanced Superconducting Tokamak – EAST)) के नाम से जाना जाता है।
- चीन ने, इसी वर्ष जून माह में, एक नवीनतम प्रयोग के दौरान, EAST द्वारा 101 सेकंड की अवधि तक 216 मिलियन फ़ारेनहाइट (120 मिलियन डिग्री सेल्सियस) का प्लाज्मा तापमान पैदा करने में सफलता हासिल करके एक नया रिकॉर्ड बनाया था।
प्रयोग का कार्यान्वयन एवं परिणाम:
- विशेषज्ञों द्वारा, पहले की तुलना में आठ गुना अधिक ऊर्जा का महा-विस्फोट निर्मित करने के लगभग 200 लेजर बीम की अपनी विशाल श्रंखला को एक छोटे से स्थान पर केंद्रित किया गया।
- हालांकि, प्रयोग में उत्पन्न ऊर्जा अत्याल्प समय – एक सेकंड के सिर्फ 100 ट्रिलियनवें हिस्से – के लिए उत्पन्न की जा सकी, किंतु वैज्ञानिक जितनी उर्जा का उपयोग कर रहे थे, उससे कहीं अधिक ऊर्जा पैदा करने में सक्षम थे।
इस प्रयोग में वैज्ञानिकों ने हाइड्रोजन के दो समस्थानिकों का प्रयोग किया था, जिससे विशाल मात्रा में हीलियम उत्पन्न हुई।
इस उपलब्धि का महत्व:
- ऐसा माना जाता है, कि सूर्य के केंद्र का तापमान 15 मिलियन डिग्री सेल्सियस है, और इस उपलब्धि का मतलब है, कि EAST द्वारा पैदा किया गया तापमान ‘सूर्य के तापमान से लगभग सात गुना अधिक’ है।
- यह, न्यूनतम अपशिष्ट उत्पादों सहित स्वच्छ और असीमित ऊर्जा उत्पादित करने हेतु चीन द्वारा किए जा रहे प्रयासों की दिशा एक महत्वपूर्ण कदम है।
‘EAST’ क्या है?
‘प्रायोगिक उन्नत सुपरकंडक्टिंग टोकामक’ (Experimental Advanced Superconducting Tokamak – EAST) मिशन में ‘सूर्य की ऊर्जा उत्पादन प्रक्रिया’ की नकल की जा रही है।
- ‘प्रायोगिक उन्नत सुपरकंडक्टिंग टोकामक’ रिएक्टर, एक ‘उन्नत परमाणु संलयन प्रायोगिक अनुसंधान उपकरण’ (Advanced Nuclear Fusion Experimental Research Device) है और चीन के हेफ़ेई (Hefei) में स्थित है।
- यह वर्तमान में देश भर में कार्यरत तीन प्रमुख स्वदेशी टोकामक में से एक है।
- EAST परियोजना ‘अंतर्राष्ट्रीय ताप-नाभिकीय प्रायोगिक रिएक्टर’ (International Thermonuclear Experimental Reactor- ITER) कार्यक्रम का हिस्सा है। इस आईटीईआर सुविधा का परिचालन वर्ष 2035 आरंभ होगा, इसके बाद यह विश्व का सबसे बड़ा ‘परमाणु संलयन रिएक्टर’ बन जाएगी।
- आईटीईआर परियोजना में भारत, दक्षिण कोरिया, जापान, रूस और संयुक्त राज्य अमेरिका सहित कई देशों द्वारा योगदान किया जा रहा है।
‘कृत्रिम सूर्य’ EAST किस प्रकार कार्य करता है?
यह ‘प्रायोगिक उन्नत सुपरकंडक्टिंग टोकामक’ अर्थात EAST, सूर्य एवं तारों द्वारा में हो रही ‘परमाणु संलयन प्रक्रिया’ (Nuclear Fusion Process) का अनुकरण करता है।
- परमाणु संलयन हेतु, हाइड्रोजन परमाणुओं पर अत्यधिक ताप और दाब प्रयुक्त किया जाता है, ताकि वे पिघलकर परस्पर संलयित हो जाएं।
- हाइड्रोजन में पाए जाने वाले ‘ड्यूटेरियम और ट्रिटियम’ नाभिक, परस्पर संलयित होकर भारी हीलियम नाभिकों का निर्माण करते हैं, और इस प्रक्रिया में न्यूट्रॉन अणुओं सहित भारी मात्रा में ऊर्जा निर्मुक्त होती हैं।
- इसमें, ईंधन को 150 मिलियन डिग्री सेल्सियस से अधिक के तापमान तक गर्म किया जाता है, जिससे ‘अपरमाणविक अणुओं’ (Subatomic Particles) का एक गर्म प्लाज्मा “सूप” निर्मित होता है।
- एक शक्तिशाली चुंबकीय क्षेत्र की मदद से, प्लाज्मा को रिएक्टर की दीवारों से दूर रखा जाता है, क्योंकि रिएक्टर की सतह के संपर्क में आने से ‘प्लाज्मा’ के ठंडा होने तथा बड़ी मात्रा में ऊर्जा उत्पन्न करने की क्षमता खोने की आशंका होती है।
- संलयन अभिक्रिया होने के लिए प्लाज्मा को लंबी अवधि तक परिरुद्ध किया जाता है।
संलयन प्रक्रिया, विखंडन प्रक्रिया से बेहतर क्यों होती है?
- हालांकि, किसी नाभिक का विखंडन (fission) करना एक आसान प्रक्रिया होती है, किंतु इसमें काफी अधिक मात्रा में परमाणु अपशिष्ट उत्सर्जित होते हैं।
- विखंडन प्रक्रिया के विपरीत, संलयन (Fusion) प्रक्रिया में ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन नहीं होता है और इसमें दुर्घटनाओं का जोखिम होता है तथा इसे एक सुरक्षित प्रक्रिया माना जाता है।
- संलयन प्रक्रिया पर एक बार नियंत्रण हासिल करने के बाद, परमाणु संलयन से बहुत कम लागत पर संभवतः असीमित स्वच्छ ऊर्जा हासिल की सकती है।
अन्य किन देशों द्वारा यह उपलब्धि हासिल की चुकी है?
उच्च प्लाज्मा तापमान हासिल करने वाला चीन अकेला देश नहीं है। वर्ष 2020 में, दक्षिण कोरिया के KSTAR रिएक्टर ने 20 सेकंड तक 100 मिलियन डिग्री सेल्सियस से अधिक प्लाज्मा तापमान हासिल करते रखते हुए एक नया रिकॉर्ड बनाया था।
इंस्टा जिज्ञासु:
फ्रांस में निर्माणाधीन विश्व की सबसे बड़ी ‘परमाणु संलयन परियोजना’ में भारत की भूमिका के बारे में जानकारी हेतु पढ़िए।
प्रीलिम्स लिंक:
- टोकामक (Tokamak) क्या है?
- चीन का EAST कार्यक्रम क्या है?
- परमाणु संलयन बनाम परमाणु विखंडन
- संलयन और विखंडन के उपोत्पाद
- सूर्य की ‘कोर’ के बारे में।
- ITER क्या है?
मेंस लिंक:
चीन द्वारा विकसित किए जा रहे कृत्रिम सूर्य के महत्व का वर्णन कीजिए।
स्रोत: द हिंदू।
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य
ई.ओ. विल्सन
अग्रणी अमेरिकी वैज्ञानिक, प्रोफेसर और लेखक, एडवर्ड. ओ. विल्सन (Edward. O. Wilson) का हाल ही में, 92 वर्ष की आयु में निधन हो गया।
- विभिन्न कीटों पर उनके अध्ययन और पृथ्वी को बचाने के आह्वान करने के लिए उन्हें “डार्विन का प्राकृतिक उत्तराधिकारी” उपनाम दिया गया था।
- उन्हें ‘चींटियों और उनके व्यवहार’ पर दुनिया का अग्रणी अधिकारिक विद्वान् माना जाता है।
- अपने करियर की शुरुआत में एक कीट विज्ञानी (Entomologist) के रूप में, कीटों का अध्ययन करने के साथ-साथ पक्षियों, स्तनधारियों और मनुष्यों के सामाजिक संबंधों का अध्ययन करते हुए अपने दायरे को व्यापक रूप से विस्तृत किया। उन्होंने, एक प्रभावी और विवादास्पद रूप से – समाजिक-जैवशास्त्र (Sociobiology) के रूप में जाना जाने वाला ‘विज्ञान का एक नया क्षेत्र’ स्थापित किया।
- उन्होंने सैकड़ों वैज्ञानिक लेखों और 30 से अधिक पुस्तकों की रचना की, जिनमें से दो रचनाओं -1978 में ऑन ह्यूमन नेचर, और 1990 में ‘द एंट्स’- के लिए ‘नॉन-फिक्शन श्रेणी में’ पुलित्जर पुरस्कार प्रदान किया गया था।
जीरो-डे वल्नरबिलिटी तथा लॉग4जे
0 दिन / जीरो-डे वल्नरबिलिटी (zero-day vulnerability) एक प्रकार का सुरक्षा दोष है, जिसे सार्वजनिक रूप से प्रकट नहीं किया गया है। इसके लिए अभी तक कोई सॉफ़्टवेयर पैच या उपचार तकनीक उपलब्ध नहीं है।
- लॉग4शैल (Log4Shell) को सार्वजनिक रूप से प्रकट किए जाने से कम से कम एक सप्ताह पहले, इसके इस्तेमाल करने के प्रयासों को देखते हुए, यह कहा जा सकता है कि यह ‘जीरो-डे वल्नरबिलिटी’ थी, हालांकि, इसे केवल एक बहुत ही संक्षिप्त अवधि के लिए नोट किया गया था।
- लॉग4जे (log4j), जावा सॉफ्टवेयर के लिए व्यापक रूप से इस्तेमाल की जाने वाली ‘सॉफ्टवेयर लॉगिंग लाइब्रेरी’ है। इस महीने की शुरुआत में, इस लाइब्रेरी में एक महत्वपूर्ण सुरक्षा भेद्यता के बारे में जानकारी सार्वजनिक रूप से प्रकट की गई थी।
Join our Official Telegram Channel HERE for Motivation and Fast Updates
Subscribe to our YouTube Channel HERE to watch Motivational and New analysis videos