विषयसूची
सामान्य अध्ययन–II
1. पाइका विद्रोह
2. स्मार्ट सिटीज मिशन
सामान्य अध्ययन-II
1. जाति जनगणना
2. रक्षा उपकरणों से संबधित नकारात्मक आयात सूची
3. बांध सुरक्षा विधेयक
सामान्य अध्ययन-III
1. हाइपरसोनिक हथियार
2. मुखाकृति पहचान तकनीक
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य
1. मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय
2. भारतीय सार्स-कोव-2 जीनोमिक्स कंसोर्टियम
सामान्य अध्ययन–I
विषय: 18वीं सदी के लगभग मध्य से लेकर वर्तमान समय तक का आधुनिक भारतीय इतिहास- महत्त्वपूर्ण घटनाएँ, व्यक्तित्व, विषय।
पाइका विद्रोह
संदर्भ:
हाल ही में केंद्रीय संस्कृति मंत्री ने ‘पाइका विद्रोह’ (Paika Rebellion) के संदर्भ में निम्नलिखित अनुशंसा करते हुए कहा है, कि
“ओडिशा में हुए वर्ष 1817 के ‘पाइका विद्रोह’ को स्वतंत्रता का पहला युद्ध नहीं कहा जा सकता, लेकिन अंग्रेजों के खिलाफ एक जन-विद्रोह की शुरुआत के रूप में मानते हुए इस विद्रोह को कक्षा 8 की ‘राष्ट्रीय शैक्षिक एवं प्रशिक्षण अनुसंधान परिषद’ (NCERT) इतिहास की पाठ्यपुस्तक में केस स्टडी के रूप में शामिल किया जाएगा।“
‘पाइका’ कौन थे?
16 वीं शताब्दी के बाद ओडिशा में कई राजाओं द्वारा ‘लगान-मुक्त भूमि’ (निश-कर जागीर) और खिताब के बदले सैन्य सेवाएं प्रदान करने हेतु समाज के विभिन्न समूहों से लोगों को भर्ती किया गया था, जिन्हें ‘पाइका’ कहा जाता था।
ये ओडिशा के पारंपरिक भू-स्वामी नागरिक सैनिक थे और लड़ाई के समय योद्धाओं के रूप में कार्य करते थे।
पाइका विद्रोह की शुरुआत:
- जब 1803 में ईस्ट इंडिया कंपनी की सेनाओं ने अधिकांश ओडिशा पर कब्जा कर लिया और ‘खोरदा’ के राजा की पराजय के बाद पाइकों की शक्ति एवं प्रतिष्ठा घटने लगी।
- अंग्रेज, इस आक्रामक और युद्धक नयी प्रजा के प्रति अभ्यस्त और सहज नहीं थे, और उन्होंने इस मामले को देखने के लिए ‘वाल्टर ईवर’ की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन किया।
- इस आयोग ने पाइकाओं को दी गई वंशानुगत लगान-मुक्त भूमि ब्रिटिश प्रशासन द्वारा वापस लिए जाने की सिफारिश की, और इस सिफारिश का उत्साहपूर्वक पालन किया गया।
- इसके बाद अंग्रेज़ों ने पाइकों की जमीन हड़प ली और कंपनी की सरकार और उसके कर्मचारियों द्वारा उनसे जबरन वसूली और उनका उत्पीड़न किया जाने लगा। इसके जबाव में पाइकों ने विद्रोह कर दिया।
- इस विद्रोह का नेतृत्व खोरदा के राजा मुकुंद देव द्वितीय के महासेनापति ‘बख्शी जगबंधु विद्याधर महापात्र भरमारबार राय’ ने किया था।
- हालांकि, नमक की कीमत में वृद्धि, करों के भुगतान के लिए कौड़ी मुद्रा का उन्मूलन और खुले तौर पर जबरन वसूली करने वाली भूमि राजस्व नीति आदि विद्रोह के अन्य अंतर्निहित कारण भी थे।
परिणाम:
शुरुआत में ‘कंपनी’ को इस विद्रोह का सामना करने में काफी कठिनाई हुई, लेकिन मई 1817 तक वे विद्रोह को दबाने में सफल रहे।
कई पाइका नेताओं को फांसी दे दी गई या निर्वासित कर दिया गया। वर्ष 1825 में जगबंधु ने आत्मसमर्पण कर दिया।
पाइका विद्रोह: राष्ट्रवादी आंदोलन या किसान विद्रोह?
ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा अपनी सेना के बल पर प्रभुत्व में विस्तार करने के दौरान, ‘पाइका विद्रोह’ भारत में हुए किसान विद्रोहों में से एक है।
इस विद्रोह में कई मौकों पर यूरोपीय उपनिवेशवादियों और मिशनरियों के साथ हिंसक रूप से भिड़त भी हुई थी; इस वजह से पाइकाओं के प्रतिरोध को कभी-कभी औपनिवेशिक शासन के खिलाफ प्रतिरोध की पहली अभिव्यक्ति के रूप में देखा जाता है – और इसलिए ‘पाइका विद्रोह’ को प्रकृति में “राष्ट्रवादी” माना जाता है।
प्रीलिम्स लिंक:
- पाइका विद्रोह
- ‘पाइका’ कौन थे?
- वाल्टर ईवर आयोग
मेंस लिंक:
पाइका विद्रोह राष्ट्रवादी आंदोलन है या किसान विद्रोह? चर्चा कीजिए।
स्रोत: द हिंदू।
विषय: महिलाओं की भूमिका और महिला संगठन, जनसंख्या एवं संबद्ध मुद्दे, गरीबी और विकासात्मक विषय, शहरीकरण, उनकी समस्याएँ और उनके रक्षोपाय।
स्मार्ट सिटीज मिशन
संदर्भ:
COVID-19 महामारी के कारण हुई देरी और अगस्त में नीति आयोग द्वारा की गयी सिफारिश के आधार पर ‘स्मार्ट सिटीज मिशन’ (SCM) के तहत सीमा, ‘भाग लेने वाले सभी 100 शहरों’ के लिए, परियोजनाओं को पूरा करने की समय जून 2023 तक बढ़ा दी गई है।
स्मार्ट सिटी मिशन:
- स्मार्ट सिटीज मिशन (Smart Cities Mission), भारत सरकार ने 2015 में शुरू किया था।
- मिशन के तहत परियोजनाओं को पूरा करने के लिए चयनित शहरों को पांच साल का समय दिया गया था, जिसमें स्मार्ट सिटी का पहला सेट 2021 में पूरा होने की उम्मीद है।
- इस मिशन में 100 शहरों को शामिल किया जाएगा और इसकी अवधि पांच साल (वित्तीय वर्ष 2015-16 से वित्तीय वर्ष 2019-20) की होगी।
- इस मिशन का उद्देश्य, शहरी कार्यों को एकीकृत करना, दुर्लभ संसाधनों का अधिक कुशलता से उपयोग करना और नागरिकों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार करना है।
- यह, आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय के तहत एक अभिनव पहल है।
- यह एक ‘केंद्र प्रायोजित योजना’ है।
‘स्मार्ट सिटी’ में परिकल्पित ‘चार स्तंभ’:
- सामाजिक अवसंरचना (Social Infrastructure)
- भौतिक अवसंरचना (Physical Infrastructure)
- प्रशासन सहित संस्थागत अवसंरचना (Institutional Infrastructure)
- आर्थिक अवसंरचना (Economic Infrastructure)
इस योजना के तहत की गई प्रगति (जून 2021 तक):
- इस मिशन के तहत कुल प्रस्तावित परियोजनाओं में से 5,924 परियोजनाओं के टेंडर जारी हो चुके हैं, 5,236 परियोजनाओं के लिए कार्य आदेश जारी किए जा चुके हैं और 2,665 परियोजनाएं पूरी तरह से चालू हैं।
- 24,964 करोड़ रुपए की 212 निजी-सार्वजनिक परियोजनाएं पूरी हो चुकी हैं।
- 70 स्मार्ट शहर विकसित किए जा चुके हैं और इनमे एकीकृत कमांड और नियंत्रण केंद्रों (Integrated Command and Control Centres – ICCCs) का संचालन शुरू हो गया है।
आगे की चुनौतियां:
- ऊर्जा दक्ष और हरित भवनों के निर्माण में अभी काफी प्रगति अपेक्षित है।
- शहरी निकायों को आत्मनिर्भर बनाना।
- सार्वजनिक परिवहन की हिस्सेदारी घटती जा रही है। बढ़ते शहरीकरण की जरूरतों को पूरा करने के लिए इसमें वृद्धि किए जाने की जरूरत है।
- शहरीकरण में वृद्धि के कारण, बढ़ता वायु प्रदूषण और सड़कों पर भीड़भाड़ में वृद्धि।
इंस्टा जिज्ञासु:
- क्या आप ‘ग्लोबल स्मार्ट सिटी इंडेक्स’ के बारे में जानते हैं?
- क्या आपको ‘शहरी नवाचार सूचकांक’ (CiX) के बारे में याद है?
प्रीलिम्स लिंक:
- ‘स्मार्ट सिटीज मिशन’ के बारे में
- इंडिया स्मार्ट सिटी अवार्ड्स (ISCA)- नवीनतम संस्करण
- रैंकिंग के लिए उपयोग किए जाने वाले पैरामीटर
- AMRUT मिशन के बारे में
स्रोत: द हिंदू।
सामान्य अध्ययन–II
विषय: सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय।
जातिगत जनगणना
(Caste census)
संदर्भ:
बिहार राज्य-विशिष्ट जाति-आधारित गणना आयोजित करने की योजना बना रहा है। कुछ समय पहले, मुख्यमंत्री के नेतृत्व में बिहार के नेताओं के एक प्रतिनिधिमंडल की प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की थे और उनसे देश में जाति जनगणना कराने का आग्रह किया था। बाद में, केंद्र सरकार ने इसे आयोजित करने से इनकार कर दिया। इसके बाद बिहार सरकार द्वारा यह कदम उठाया जा रहा है।
संबंधित प्रकरण:
हाल ही में, केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित करते हुए कहा था, कि 2011 की सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना (Socio-Economic Caste Census – SECC) में एकत्रित किया गया जाति-आधारित आंकड़े “अनुपयोगी” है, जबकि वर्ष 2016 में, ‘भारत के महारजिस्ट्रार एवं जनगणना आयुक्त’ (Registrar-General and Census Commissioner of India) द्वारा ग्रामीण विकास पर गठित संसद की स्थायी समिति को जानकारी देते हुए कहा था, व्यक्तिगत जाति और धर्म पर एकत्रित किए गए 98.87 प्रतिशत आंकड़े त्रुटि मुक्त” हैं।
सरकार के अनुसार सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना के आंकड़े “अनुपयोगी” क्यों है?
- सरकार के अनुसार, 1931 में किए गए सर्वेक्षण में शामिल जातियों की कुल संख्या 4,147 थी, जबकि सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना (SECC) के आंकड़ों के अनुसार, देश में 46 लाख से अधिक विभिन्न जातियाँ हैं। यह माना जा सकता है, कि कुछ जातियां उप-जातियों में विभाजित हो सकती हैं, लेकिन इनकी कुल संख्या इस हद तक अधिक नहीं हो सकती है।
- गणनाकारों द्वारा एक ही जाति के लिए अलग-अलग वर्तनी का इस्तेमाल किया गया और इस वजह से सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना की पूरी कवायद अनुपयोगी हो गई है। सरकार ने कहा, कि कई मामलों में उत्तरदाताओं ने अपनी जातियों का खुलासा करने से इनकार भी कर दिया था।
अब तक ‘जाति-संबंधी’ विवरण एकत्र करने की विधि:
- गणनाकारों के द्वारा, जनगणना के एक भाग के रूप में ‘अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति’ संबंधी विवरण एकत्र किया जाता है, जबकि इसके तहत, अन्य जातियों का विवरण एकत्र नहीं किया जाता है।
- जनगणना की मुख्य पद्धति के अंतर्गत, सभी नागरिक गणनाकार के लिए ‘स्व-घोषित’ जानकारी प्रदान करते हैं।
- अब तक, विभिन्न राज्यों में ‘पिछड़ा वर्ग आयोगों’ द्वारा पिछड़ी जातियों की जनसंख्या का पता लगाने हेतु अपनी-अपनी गणना की जाती रही है।
जनगणना में किस प्रकार के जाति संबंधी आंकड़े प्रकाशित किए जाते हैं?
- स्वतंत्र भारत में, 1951 से 2011 के बीच की गई प्रत्येक जनगणना में केवल अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों पर आंकड़े प्रकाशित किए गए हैं। अन्य जातियों के विवरण को जनगणना में प्रकाशित नहीं किया गया है।
- हालांकि, इससे पहले वर्ष 1931 तक की गई प्रत्येक जनगणना में जाति संबंधी आंकड़े प्रकशित किए जाते थे।
‘सामाजिक-आर्थिक और जातिगत जनगणना’ (SECC) 2011 के बारे में:
वर्ष 2011 में आयोजित ‘सामाजिक-आर्थिक और जातिगत जनगणना’ (Socio-Economic and Caste Census- SECC) विभिन्न समुदायों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति के बारे में आंकड़े प्राप्त करने के लिए एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम था।
- इसके दो घटक थे: पहला, ग्रामीण और शहरी परिवारों का एक सर्वेक्षण तथा पूर्व निर्धारित मापदंडों के आधार पर इन परिवारों की रैंकिंग, और दूसरा ‘जातिगत जनगणना’।
- हालांकि, सरकार द्वारा केवल ग्रामीण और शहरी परिवारों में लोगों की आर्थिक स्थिति का विवरण जारी किया गया था। जाति संबंधी आंकड़े अभी तक जारी नहीं किए गए हैं।
‘जनगणना’ और ‘सामाजिक-आर्थिक और जातिगत जनगणना’ में अंतर:
- जनगणना, भारत की आबादी की तस्वीर प्रदान करती है, जबकि सामाजिक-आर्थिक और जातिगत जनगणना’ (SECC) राज्य द्वारा सहायता प्राप्त करने वाले लाभार्थियों की पहचान करने का एक उपकरण होती है।
- ‘जनगणना’, ‘जनगणना अधिनियम’ 1948 (Census Act of 1948) के अंतर्गत आती है और इसके सभी आकड़ों को गोपनीय माना जाता है, जबकि SECC के तहत दी गई सभी व्यक्तिगत जानकारी, सरकारी विभागों द्वारा परिवारों को लाभ प्रदान करने और/या रोकने हेतु उपयोग करने के लिए उपलब्ध रहती है।
जातिगत जनगणना के लाभ:
प्रत्येक जाति की आबादी की सटीक संख्या, सभी का समान प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने हेतु आरक्षण नीति को तैयार करने में मदद करेगी।
संबंधित चिंताएं:
- संभावना है, कि जातिगत जनगणना से कुछ वर्गों में नाराज़गी पैदा होगी और कुछ समुदाय अपने लिए अधिक या अलग कोटा की मांग करेंगे।
- कथित तौर यह माना जाता है, कि मात्र व्यक्तियों को किसी जाति से जुड़े होने का ठप्पा लगाने से, समाज में जाति-व्यवस्था हमेशा बनी रह सकती है।
इंस्टा जिज्ञासु:
क्या आप जानते हैं, कि ‘आईना-ए-अकबरी’ में जनसंख्या, उद्योग, धन और कई अन्य विशेषताओं से संबंधित व्यापक आंकड़े मिलते हैं? इस पुस्तक में अन्य किन विषयों का विवरण दिया गया है?
प्रीलिम्स लिंक:
- ‘जनगणना’ क्या है?
- इस संबंध में वैधानिक प्रावधान
- ‘जनगणना’ की विधि
- जनगणना 2011 की प्रमुख विशेषताएं
- ‘राष्ट्रीय पिछड़ा आयोग’ के बारे में
मेंस लिंक:
जाति आधारित जनगणना की आवश्यकता और महत्व पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: द हिंदू।
विषय: सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय।
रक्षा उपकरणों से संबधित नकारात्मक आयात सूची
संदर्भ:
सरकार द्वारा अपनी ‘नकारात्मक आयात सूची नीति’ (Negative Imports List Policy) में कुछ बदलाव किए गए हैं। इसके तहत, निम्नलिखित मुख्य परिवर्तन शामिल है:
- नए नियमों के तहत, सशस्त्र बल अब कुछ विशेष परिस्थितियों में रक्षा उपकरणों का आयात कर सकते हैं, भले ही वह उपकरण नकारात्मक आयात सूची में शामिल हो।
- इसमें “तत्काल आवश्यकता” होने की स्थित में घरेलू उद्योग द्वारा आपूर्ति नहीं कर पाने, अथवा स्वदेशी उत्पादों के पर्याप्तता में होने के कारण सैनिकों की सुरक्षा दांव पर लगने, जैसे परिदृश्यों को शामिल किया गया है।
- नए नियमों में, पहली बार अगस्त 2020 में तैयार की गयी ‘नकारात्मक आयात सूची’ में उल्लिखित वस्तुओं की समीक्षा करने या हटाने का भी प्रावधान भी किया गया है।
नकारात्मक आयात सूची नीति / सकारात्मक स्वदेशीकरण सूची:
अगस्त 2020 में लागू की गई ‘नकारात्मक आयात सूची’ (Negative Imports List Policy/Positive Indigenisation List) का मतलब है कि, सशस्त्र बलों अर्थात सेना, नौसेना और वायु सेना द्वारा इस सूची में शामिल वस्तुओं की खरीद केवल घरेलू निर्माताओं से की जाएगी।
इन घरेलू निर्माताओं के रूप में, निजी क्षेत्र अथवा रक्षा सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम (Defence Public Sector Undertakings- DPSUs) शामिल होंगे।
इस नीति की आवश्यकता तथा प्रभाव:
स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट के अनुसार, भारत द्वारा 2014 और 2019 के बीच 16.75 बिलियन अमेरिकी डॉलर की रक्षा-संबंधी वस्तुओं का आयात किया गया और इस अवधि के दौरान यह विश्व में दूसरा सबसे बड़ा आयातक देश रहा।
- सरकार, रक्षा क्षेत्र में आयातित वस्तुओं पर निर्भरता को कम करना चाहती है और घरेलू रक्षा विनिर्माण उद्योग को बढ़ावा देना चाहती है।
- नकारात्मक आयात सूची में सम्मिलित वस्तुओं के आयात की संभावना को नकारते हुए, भारतीय सैन्य बलों की आवश्यकताओं की पूर्ती के लिए घरेलू रक्षा उद्योग को आगे बढ़ने तथा निर्माण करने का अवसर दिया गया है।
दूसरी सूची:
मई 2021 रक्षा मंत्रालय द्वारा 108 वस्तुओं की दूसरी ‘नकारात्मक आयात सूची’ (Negative Import List) जारी की गई है, और इसका नाम परिवर्तित कर ‘सकारात्मक स्वदेशीकरण सूची’ (Positive Indigenisation List) कर दिया गया है। इन सभी वस्तुओं की खरीद स्वदेशी स्रोतों से की जाएगी।
- अब इस नई सूची शामिल कुल वस्तुओं की संख्या 209 हो गई है।
- ‘दूसरी सकारात्मक स्वदेशीकरण सूची’ में जटिल प्रणालियां, सेंसर, सिम्युलेटर, हथियार और गोला-बारूद जैसे हेलीकॉप्टर, नेक्स्ट जेनरेशन कॉर्वेट, एयर बोर्न अर्ली वार्निंग एंड कंट्रोल (AEW&C) सिस्टम, टैंक इंजन, आदि को शामिल किया गया है।
इस कदम का महत्व एवं निहितार्थ:
- सूची में स्थानीय रक्षा उद्योग की क्षमता को मान्यता दी गई है।
- यह प्रौद्योगिकी व विनिर्माण क्षमताओं में नए निवेश को आकर्षित करके घरेलू अनुसंधान और विकास को भी बढ़ावा देगा।
- यह सूची ‘स्टार्ट-अप’ के साथ-साथ सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSMEs) के लिए भी एक उत्कृष्ट अवसर प्रदान करती है जिसे इस पहल से जबरदस्त बढ़ावा मिलेगा।
इंस्टा जिज्ञासु:
क्या आप जानते हैं कि ‘कर अधिकारियों’ द्वारा भी एक नकारात्मक सूची बनाई जाती है? (हालांकि यह सूची इस विषय से सीधे संबंधित नहीं है, किंतु इसके बारे में जानकारी रखना आवश्यक है)।
वैश्विक स्तर पर ‘सैन्य व्यय रुझानों’ पर रिपोर्ट के बारे में पढ़िए।
प्रीलिम्स लिंक:
- यह नीति कब शुरू की गई थी?
- विशेषताएं
- अपवाद
- कार्यान्वयन मंत्रालय
मेंस लिंक:
‘नकारात्मक आयात सूची’ नीति की आवश्यकता और महत्व पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: द हिंदू।
विषय: सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय।
बांध सुरक्षा विधेयक 2019
संदर्भ:
हाल ही में, राज्यसभा द्वारा ‘बांध सुरक्षा विधेयक’ 2019 (Dam Safety Bill, 2019) को पारित कर दिया गया, जिससे देश में बांध सुरक्षा अधिनियम को लागू करने का रास्ता तैयार हो गया है।
यह विधेयक 2 अगस्त, 2019 को लोकसभा में पारित किया गया था।
संबंधित चिंताएं:
- इस विधेयक में बांधो की ‘परिचालन सुरक्षा’ की तुलना में ‘संरचनात्मक सुरक्षा’ पर बहुत अधिक ध्यान दिया गया है।
- बांधों से प्रभावित लोगों को अपर्याप्त मुआवजा दिया जाता है।
- विधेयक में हितधारकों की सटीक परिभाषा दिए जाने के साथ-साथ एक ‘स्वतंत्र नियामक’ का प्रावधान किए जाने की आवश्यकता है।
- कई राज्यों का कहना है कि यह अपने बांधों के प्रबंधन के संबंध में राज्यों की संप्रभुता का अतिक्रमण करता है, और संविधान में निहित संघवाद के सिद्धांतों का उल्लंघन करता है। ये राज्य इसे सुरक्षा-संबंधी चिंताओं की आड़ में केंद्रीय सत्ता को मजबूत करने के प्रयास के रूप में देखते हैं।
इस विधेयक को केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तुत किए जाने के कारण:
हालांकि यह विषय संसद के दायरे में नहीं आता है, फिर भी केंद्र सरकार ने इस विधेयक को पेश करने का फैसला मुख्य रूप से इसलिए किया है, क्योंकि ‘बांध-सुरक्षा’ देश में चिंता का विषय है। और, इस संबंध में कोई कानूनी और संस्थागत सुरक्षा उपाय उपलब्ध नहीं हैं।
‘बांध सुरक्षा विधेयक, 2019’ के प्रमुख बिंदु:
- ‘बांध सुरक्षा विधेयक’ देश के सभी बड़े बांधों की निगरानी, निरीक्षण, परिचालन और रखरखाव संबंधी पर्याप्त सुविधा प्रदान करेगा, ताकि बांध के फेल होने की स्थिति में होने वाली आपदा को रोका जा सके।
- बांधों के सुरक्षित परिचालन को सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक संरचनात्मक और गैर-संरचनात्मक उपायों की दिशा में यह विधेयक केंद्र और राज्य दोनों स्तरों पर एक संस्थागत तंत्र की व्यवस्था प्रदान करेगा।
- विधेयक के प्रावधान के अनुसार, एकसमान बांध सुरक्षा नीतियां, प्रोटोकॉल और प्रक्रियाओं को विकसित करने में मदद करने के लिए ‘बांध सुरक्षा पर एक राष्ट्रीय समिति’ (NCDS) का गठन किया जाएगा।
- यह विधेयक बांध सुरक्षा नीतियां और मानकों के राष्ट्रव्यापी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने की दिशा में एक नियामक संस्था के तौर पर ‘राष्ट्रीय बांध सुरक्षा प्राधिकरण’ (NDSA) स्थापित करने की सुविधा भी प्रदान करता है।
- इस विधेयक में राज्यों के स्तर पर ‘बांध सुरक्षा पर राज्य समिति’ (SCDS) का गठन करने और राज्य बांध सुरक्षा संगठन स्थापित करने की व्यवस्था की गई है।
महत्व:
- बांध सुरक्षा विधेयक, भारत के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लिए एक समान बांध सुरक्षा प्रक्रियाओं को अपनाने में मदद करेगा, जो बांधों की सुरक्षा सुनिश्चित करेगी और ऐसे बांधों से होने वाले लाभों की सुरक्षा हो सकेगी। इससे मानव जीवन, पशुधन और संपत्ति की सुरक्षा में भी मदद मिलेगी।
- विधेयक में, बांधों के नियमित निरीक्षण, आपातकालीन कार्य योजना, व्यापक बांध सुरक्षा समीक्षा, बांध सुरक्षा के लिए पर्याप्त मरम्मत और रखरखाव निधि, उपकरण और सुरक्षा नियमावली सहित बांध सुरक्षा से संबंधित सभी मुद्दों पर प्रावधान किए गए हैं।
- विधेयक में ‘बांध सुरक्षा’ की जिम्मेदारी बांध के मालिक पर निर्धारित की गयी है, और कुछ कृत्यों के करने पर तथा किसी लापरवाही के लिए दंडात्मक प्रावधानों का प्रावधान भी किया गया है।
आवश्यकता:
- पिछले पचास वर्षों में, भारत में बांधों और संबंधित बुनियादी ढांचे में काफी निवेश किया गया है, और वर्तमान में भारत, बड़े बांधों की संख्या में संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन के बाद तीसरे स्थान पर है। मौजूदा समय में, देश में 5254 बड़े बांध कार्यशील हैं और 447 अन्य बड़े बांध निर्माणाधीन हैं।
- इसके अलावा, देश में हजारों मध्यम और छोटे बांध मौजूद हैं।
- जहां बांधों ने भारत में तेजी से और सतत कृषि विकास और विकास को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, वहीं बांध सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए एक समान कानून और प्रशासनिक ढांचे की आवश्यकता लंबे समय से महसूस की जा रही है।
- केंद्रीय जल आयोग द्वारा ‘राष्ट्रीय बांध सुरक्षा समिति’ (NCDS), केंद्रीय बांध सुरक्षा संगठन (CDSO) और राज्य बांध सुरक्षा संगठन (SDSO) के माध्यम से इस दिशा में लगातार प्रयास किया जा रहा है, लेकिन इन संगठनों के पास कोई वैधानिक शक्ति नहीं है, और ये केवल सलाहकार प्रकृति के हैं।
- भारत में लगभग 75 प्रतिशत बड़े बांध 25 वर्ष से अधिक पुराने हैं और लगभग 164 बांध 100 वर्ष से अधिक पुराने हो चुके हैं, ऐसे में यह चिंता का विषय है।
- ख़राब रखरखाव वाले, असुरक्षित बांध मानव जीवन, वनस्पतियों और जीवों, सार्वजनिक और निजी संपत्तियों और पर्यावरण के लिए खतरा हो सकते हैं।
- अतीत में, भारत में 42 बांध विफल हो चुके हैं।
स्रोत: द हिंदू।
सामान्य अध्ययन–III
विषय: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी- विकास एवं अनुप्रयोग और रोज़मर्रा के जीवन पर इसका प्रभाव। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में भारतीयों की उपलब्धियाँ; देशज रूप से प्रौद्योगिकी का विकास और नई प्रौद्योगिकी का विकास।
हाइपरसोनिक हथियार
संदर्भ:
हाल ही में, अमेरिका ने कहा है, कि चीन द्वारा ‘हाइपरसोनिक हथियारों’ (Hypersonic Weapons) का अनुसरण किए जाने से “क्षेत्र में तनाव बढ़ रहा है” और अमेरिका ने चीन द्वारा उत्पन्न संभावित खतरों को रोकने के लिए अपनी क्षमताओं को बनाए रखने का प्रण किया है।
संबंधित प्रकरण:
चीन की बढ़ती सैन्य ताकत, और एशिया में अमेरिकी प्रभुत्व को समाप्त करने संबंधी चीन के अभियान ने वाशिंगटन में बेचैनी पैदा कर दी है।
अपनी सैन्य क्षमताओं को तेजी से बढाने संबंधी चीन के प्रयास, जुलाई में एक ‘हाइपरसोनिक हथियार’ के परीक्षण से उजागर हो गए थे। यह अस्त्र, वायुमंडल में पुन: प्रवेश करने और अपने लक्ष्य पर मार करने के लिए एक गतिशील पथ पर ग्लाइडिंग करने से पहले आंशिक रूप से पृथ्वी की परिक्रमा करने में सक्षम था।
चिंता:
विशेषज्ञों का कहना है कि यह हथियार प्रणाली स्पष्ट रूप से अमेरिकी मिसाइल रक्षा से बचने के उद्देश्य से तैयार की गई है। जबकि, चीन का कहना है कि, उसने मिसाइल का नहीं बल्कि एक पुन: प्रयोज्य अंतरिक्ष वाहन का परीक्षण किया है।
‘हाइपरसोनिक गति’ क्या हैं?
हाइपरसोनिक गति (Hypersonic speeds), ध्वनि की गति से 5 या अधिक गुना तेज होती है।
भारत एवं विश्व के लिए चिंताएं और निहितार्थ:
- सैधांतिक रूप में यह अस्त्र दक्षिणी ध्रुव के ऊपर से उड़ान भरने में सक्षम है। चूंकि अमेरिकी मिसाइल रक्षा प्रणाली उत्तरी ध्रुवीय मार्ग पर केंद्रित है, अतः चीन का यह हथियार अमेरिकी सेना के लिए एक बड़ी चुनौती बन सकता है।
- हाल के दिनों में चीन के साथ संबंधों को देखते हुए, भारत विशेष रूप से नवीनतम घटनाओं को लेकर चिंतित है। चीन के पास इस तरह की क्षमताएं, जमीनी संपत्ति के साथ-साथ हमारी अंतरिक्षीय संपत्तियों के लिए खतरे पैदा कर सकती हैं।
प्रयुक्त तकनीक:
इस विशेष परीक्षण में चीन द्वारा प्रयुक्त तकनीक पर सटीक विवरण के बारे में अभी जानकारी नहीं है। लेकिन अधिकांश हाइपरसोनिक वाहनों में मुख्य रूप से ‘स्क्रैमजेट तकनीक’ (Scramjet Technology) का उपयोग किया जाता है।
‘स्क्रैमजेट तकनीक’ के बारे में:
‘स्क्रैमजेट’ (Scramjets), ध्वनि की गति के गुणकों में गति के वायु-प्रवाह को संभालने के लिए डिज़ाइन किए गए इंजनों की एक श्रेणी है।
- एक ‘एयर-ब्रीदिंग स्क्रैमजेट इंजन’ (Air-Breathing Scramjet Engine) में, वायुमंडल से हवा दो मैक से अधिक की सुपरसोनिक गति से इंजन के दहन कक्ष में प्रवेश करती है।
- दहन कक्ष में, यह हवा वहां मौजूद ईंधन से मिलकर ‘सुपरसोनिक दहन’ (Supersonic Combustion) उत्पन्न करती है, किंतु, इस तकनीक में, क्रूजर की उड़ान अधिकतम छह से सात मैक (Mach) की हाइपरसोनिक गति से हो सकती है। इसलिए इसे ‘सुपरसोनिक दहन रैमजेट’ (Supersonic Combustion Ramjet) या स्क्रैमजेट कहा जाता है।
इंस्टा जिज्ञासु:
रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) और ISRO दोनों के द्वारा हाइपरसोनिक प्रौद्योगिकी का विकास और परीक्षण किया जा चुका है। इस बारे में अधिक जानकारी के लिए पढ़िए।
प्रीलिम्स लिंक:
- HSTDV को किसके द्वारा विकसित किया गया है?
- हाइपरसोनिक तकनीक का सफल परीक्षण करने वाले देश
- स्क्रैमजेट क्या है?
- ICBM क्या हैं?
- क्रूज मिसाइल क्या हैं?
- बैलिस्टिक मिसाइलें क्या हैं?
मेंस लिंक:
हाइपरसोनिक प्रौद्योगिकी प्रदर्शन वाहन (HSTDV) के सफल परीक्षण का भारत के लिए क्या महत्व है? चर्चा कीजिए।
स्रोत: द हिंदू।
विषय: सूचना प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष, कंप्यूटर, रोबोटिक्स, नैनो-टैक्नोलॉजी, बायो-टैक्नोलॉजी और बौद्धिक संपदा अधिकारों से संबंधित विषयों के संबंध में जागरुकता।
मुखाकृति पहचान तकनीक
(Facial recognition technology)
संदर्भ:
तीन साल की देरी के बाद, मार्च 2022 में, यात्रीगण देश के चार हवाई अड्डों पर अपने बोर्डिंग पास के रूप में ‘फेस स्कैन’ (Face Scan) का उपयोग कर सकेंगे।
- चेहरे की पहचान प्रौद्योगिकी-आधारित बायोमेट्रिक बोर्डिंग सिस्टम को सबसे पहले पर, वाराणसी, पुणे, कोलकाता और विजयवाड़ा के हवाईअड्डों पर शुरू की जाएगी और यह सेवा मार्च 2022 से लाइव हो जाएगी।
- इसके बाद, इस प्रौद्योगिकी को देश के विभिन्न हवाई अड्डों पर चरणबद्ध तरीके से विस्तारित किया जाएगा।
कार्यान्वयन:
‘भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण’ द्वारा ‘डिजीयात्रा नीति’ (DigiYatra Policy) के हिस्से के रूप में इस प्रौद्योगिकी को लागू करने का दायित्व ‘NEC कॉरपोरेशन प्राइवेट लिमिटेड’ के लिए सौंपा गया है। इसका उद्देश्य कागज रहित हवाई यात्रा और हवाई अड्डे में प्रवेश करने से लेकर विमान में चढ़ने तक एक सहज यात्रा की सुविधा प्रदान करना चाहता है।
इस नीति को अक्टूबर 2018 में अनावरण किया गया था, और मूल योजना के अनुसार, चेहरे की पहचान तकनीक का रोल-आउट अप्रैल 2019 के लिए निर्धारित किया गया था।
‘मुखाकृति पहचान’ (Facial recognition) क्या है?
फेशियल रिकॉग्निशन एक बायोमेट्रिक तकनीक है, जिसमे किसी व्यक्ति की पहचान करने और उसे भीड़ में चिह्नित करने के लिए चेहरे की विशिष्टताओं का उपयोग किया जाता है।
- स्वचालित ‘मुखाकृति पहचान’ प्रणाली (Automated Facial Recognition System- AFRS), व्यक्तियों के चेहरों की छवियों और वीडियो के व्यापक डेटाबेस के आधार पर कार्य करती है। किसी अज्ञात व्यक्ति की एक नई छवि – जिसे सामन्यतः किसी सीसीटीवी फुटेज से प्राप्त किया जाता है – की तुलना मौजूदा डेटाबेस में उपलब्ध छवियों से करके उस व्यक्ति की पहचान की जाती है।
- कृत्रिम बुद्धिमत्ता तकनीक द्वारा आकृति-खोज और मिलान के लिए उपयोग की जाने वाली को ‘तंत्रिकीय नेटवर्क” (Neural Networks) कहा जाता है।
फेशियल रिकॉग्निशन के लाभ:
- अपराधियों की पहचान और सत्यापन परिणामों में सुधार।
- भीड़ के बीच किसी व्यक्ति को चिह्नित करने में आसानी।
- पुलिस विभाग की अपराध जांच क्षमताओं में वृद्धि।
- जरूरत पड़ने पर नागरिकों के सत्यापन में सहायक है।
संबंधित चिंताएँ:
- विशिष्ट कानूनों या दिशानिर्देशों की अनुपस्थिति, निजता तथा वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता संबंधी मूल अधिकारों के लिए एक बड़ा खतरा है। यह उच्चतम न्यायालय द्वारा ‘न्यायमूर्ति के.एस. पुट्टस्वामी बनाम भारत संघ’ मामले में दिए गए निजता संबंधी ऐतिहासिक फैसले में निर्धारित मानदंडो पर खरा नहीं उतरता है।
- कई संस्थानों द्वारा चेहरे की पहचान प्रणाली / फेशियल रिकॉग्निशन सिस्टम (FRS) की शुरू करने पहले ‘निजता प्रभाव मूल्यांकन’ (Privacy Impact Assessment) नहीं किया गया है।
- कार्यात्मक विसर्पण (Function creep): जब किसी व्यक्ति द्वारा मूल निर्दिष्ट उद्देश्य के अतिरिक्त जानकारी का उपयोग किया जाता है, तो इसे कार्यात्मक विसर्पण (Function creep) कहा जाता है। जैसे कि, पुलिस ने दिल्ली उच्च न्यायालय से लापता बच्चों को ट्रैक करने के लिए फेशियल रिकॉग्निशन सिस्टम (FRS) का उपयोग करने की अनुमति ली थी, किंतु पुलिस इसका उपयोग सुरक्षा और निगरानी और जांच करने के लिए कर रही है ।
- इससे एक अत्यधिक-पुलिसिंग जैसी समस्या भी उत्पन्न हो सकती है, जैसे कि कुछ अल्पसंख्यक समुदायों की बिना किसी कानूनी प्रावधान के अथवा बिना किसी ज़िम्मेदारी के निगरानी की जाती है। इसके अलावा, ‘सामूहिक निगरानी’ के रूप में एक और समस्या उत्पन्न हो सकती है, जिसमें विरोध प्रदर्शनों के दौरान पुलिस द्वारा FRT प्रणाली का उपयोग किया जाता है।
- सामूहिक निगरानी (Mass surveillance): यदि कोई व्यक्ति सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करने जाता है, और पुलिस उस व्यक्ति की पहचान करने में सक्षम होती है और व्यक्ति को इसके दुष्परिणाम भुगतने पद सकते हैं।
- फेशियल रिकॉग्निशन सिस्टम (FRS) को वर्ष 2009 में केंद्रीय मंत्रिमडल द्वारा जारी एक नोट के आधार पर लागू किया जाता है। लेकिन कैबिनेट नोट का कोई वैधानिक महत्व नहीं होता है, यह मात्र एक प्रक्रियात्मक नोट होता है।
समय की मांग:
पुट्टस्वामी फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया है, कि सार्वजनिक स्थानों पर भी निजता एक मौलिक अधिकार है। और अगर इन अधिकारों का उल्लंघन करने की आवश्यकता होती है, तो सरकार को इस तरह की कार्रवाई के पीछे उचित एवं विधिसम्मत कारणों को स्पष्ट करना होगा।
प्रीलिम्स लिंक:
- ‘मुखाकृति पहचान तकनीक’ (FRT) क्या है?
- यह किस प्रकार कार्य करती है?
- पुट्टस्वामी निर्णय किससे संबंधित है?
मेंस लिंक:
‘मुखाकृति पहचान तकनीक’ (FRT)- उपयोग एवं चिंताएं।
स्रोत: द हिंदू।
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य
मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय
‘मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय’ (Office of the High Commissioner for Human Rights – OHCHR), जिसे संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय भी कहा जाता है, संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार निकायों में से एक है।
- संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) द्वारा OHCHR को संपूर्ण विश्व में सभी के मानवाधिकारों की सुरक्षा करने और उन्हें प्रोत्साहन देने का दायित्व सौंपा गया है।
- OHCHR, मानवाधिकार क्षेत्र पर ‘वैश्विक मानवाधिकार मानकों के कार्यान्वयन’ में सहायता के लिए तकनीकी विशेषज्ञता उपलब्ध कराता है और क्षमता-विकास में सहयोग करता है।
- यह, संयुक्त राष्ट्र सचिवालय का एक भाग है और इसकी स्थापना वर्ष 1993 में की गयी थी।
- इसका मुख्यालय जिनेवा (स्विट्ज़रलैंड) में है, और इसके कई क्षेत्रीय कार्यालय भी हैं।
- OHCHR के अध्यक्ष ‘मानवाधिकार उच्चायुक्त’ होते हैं।
OHCHR अनुदान: ‘मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय’ के लिए लगभग 2/3 राशि, दानदाताओं और सदस्य राष्ट्रों द्वारा स्वैच्छिक अंशदान के रूप में प्राप्त होती है। शेष राशि की आपूर्ति, संयुक्त राष्ट्र के आम बजट द्वारा की जाती है।
भारतीय सार्स-कोव-2 जीनोमिक्स कंसोर्टियम
‘इंडियन SARS-CoV-2 जीनोमिक्स कंसोर्टियम (Indian SARS-CoV-2 Consortium on Genomics – INSACOG) को संयुक्त रूप से केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय, और जैव प्रौद्योगिकी विभाग (DBT) द्वारा वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) और ‘भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद’ (ICMR) के सहयोग से शुरू किया गया है।
- ‘यह, SARS-CoV-2 में जीनोमिक विविधताओं की निगरानी के लिए 28 राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं का एक समूह है।
- यह पूरे देश में SARS-CoV-2 वायरस की संपूर्ण जीनोम अनुक्रमण करता है, जिससे वायरस के प्रसार और विकास को समझने में सहायता मिलती है।
- INSACOG का उद्देश्य रोग की गतिशीलता और गंभीरता को समझने के लिए नैदानिक नमूनों की अनुक्रमण पर ध्यान केंद्रित करना है।
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