विषय सूची:
सामान्य अध्ययन-II
1. बढ़ते हुए डिजिटल डिवाइड के परिणाम
2. रोहिंग्या संकट
3. OECD/G20 टैक्स समावेशी समझौता रूपरेखा
सामान्य अध्ययन-III
1. G-SAP: बाजार प्रोत्साहन हेतु सरकारी प्रतिभूति अधिग्रहण कार्यक्रम
2. पाक खाड़ी योजना
3. पराली दहन
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य
1. तवांग
सामान्य अध्ययन- II
विषय: केन्द्र एवं राज्यों द्वारा जनसंख्या के अति संवेदनशील वर्गों के लिये कल्याणकारी योजनाएँ और इन योजनाओं का कार्य-निष्पादन; इन अति संवेदनशील वर्गों की रक्षा एवं बेहतरी के लिये गठित तंत्र, विधि, संस्थान एवं निकाय।
बढ़ते हुए डिजिटल डिवाइड के परिणाम
संदर्भ:
हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट ने देश में ‘बढ़ते हुए डिजिटल डिवाइड’ के परिणामों को लेकर चिंता व्यक्त की है।
अदालत ने कहा है ही, ऑनलाइन कक्षाओं की वजह से होने वाले ‘डिजिटल विभाजन’ (Digital Divide), प्रत्येक बच्चे के लिए ‘शिक्षा के मूल अधिकार’ को बेअसर कर देगा।
ऑनलाइन कक्षाओं से बच्चे किस प्रकार प्रभावित हुए हैं?
छोटे बच्चे, जिनके माता-पिता इतने गरीब हैं कि महामारी के दौरान ऑनलाइन कक्षाओं के लिए घर पर लैपटॉप, टैबलेट या “इष्टतम” इंटरनेट पैकेज नहीं खरीद सकते हैं, उन्होंने स्कूल छोड़ दिया है और यहां तक कि इनको बालश्रम या इससे भी बदतर, ‘बाल-तस्करी’ में इस्तेमाल किए जाने का भी खतरा है।
इसके अलावा, ‘शिक्षा का अधिकार’ अब इस बात पर टिका है कि कौन ऑनलाइन कक्षाओं के लिए “गैजेट्स” खरीद सकता है और कौन नहीं।
संबंधित प्रकरण:
शीर्ष अदालत द्वारा दिल्ली उच्च न्यायालय के सितंबर 2020 में जारी आदेश को चुनौती देते हुए निजी स्कूल प्रबंधन द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई की जा रही है। दिल्ली उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में 25% आरक्षित ‘आर्थिक रूप से पिछड़े’ (EWS) और ‘वंचित समूह’ के छात्रों को मुफ्त में ऑनलाइन सुविधाएं प्रदान करने का निर्देश दिया था।
- उच्च न्यायालय ने कहा था, कि स्कूलों को इसके लिए सरकार से प्रतिपूर्ति दी जा सकती है।
- इस पर, दिल्ली सरकार का कहना है, कि ऑनलाइन गैजेट्स के लिए स्कूलों को प्रतिपूर्ति करने के लिए उसके पास संसाधन नहीं है।
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने फरवरी 2021 में हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी थी, लेकिन शीर्ष अदालत ने कहा कि केंद्र और दिल्ली जैसे राज्य, बच्चों के प्रति अपनी जिम्मेदारियों से मुकर नहीं सकते हैं।
आगे की कार्रवाई:
सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार से, हाई कोर्ट के फैसले में बरकरार रखे गए ‘हितकारी उद्देश्यों’ को कार्यान्वित करने के लिए एक योजना पेश करने को कहा है, और केंद्र सरकार को भी इस योजना के लिए परामर्श में शामिल किया जाए।
‘डिजिटल डिवाइड’ / ‘डिजिटल विभाजन’ का तात्पर्य:
‘डिजिटल डिवाइड’ का मतलब, इंटरनेट जैसे नए सूचना और संचार उपकरणों का उपयोग करने में सक्षम और संसाधन रखने वाले व्यक्तियों, और संसाधनों तथा प्रौद्योगिकी तक पहुंच नहीं रखने वाले लोगों के बीच का ‘अंतर’ है।
इसका एक अन्य अर्थ, प्रौद्योगिकियों का उपयोग करने के लिए आवश्यक कौशल, ज्ञान और क्षमताएं रखने और नहीं रखने वाले लोगों के बीच ‘अंतर’ भी होता है।
इसकी मौजूदगी:
डिजिटल डिवाइड, ग्रामीण क्षेत्रों और शहरी क्षेत्रों में रहने वालों के बीच, लैंगिक समुदायों के बीच, शिक्षित और अशिक्षित के बीच, विभिन्न आर्थिक वर्गों के बीच और वैश्विक स्तर पर अधिक और कम औद्योगिक रूप से विकसित देशों के बीच मौजूद हो सकता है।
भारत में स्थिति:
- हालांकि, भारत में स्मार्टफोन उपयोगकर्ताओं की संख्या 220 मिलियन हैं और, यह दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा स्मार्टफोन बाजार है, फिर भी कुल मिलाकर आबादी के लगभग 30 प्रतिशत के पास ही स्मार्टफोन की सुविधा उपलब्ध है।
- भारत में ग्रामीण-शहरी और अंतर-राज्यीय डिजिटल विभाजन बहुत बड़ा है।
- आंकड़ों के मुताबिक देश के 75 फीसदी से ज्यादा ‘ब्रॉडबैंड कनेक्शन’ केवल शीर्ष 30 शहरों में ही हैं।
- इसी तरह, उत्तर-पूर्वी राज्यों, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, उड़ीसा, छत्तीसगढ़ और असम जैसे कई राज्य ‘सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी’ (आईसीटी) के उपयोग और विकास में अन्य राज्यों से पीछे हैं।
- वैश्विक स्तर पर वर्ष 2017 में, इंटरनेट का उपयोग करने वालों में पुरुषों की संख्या, महिलाओं की तुलना में 12 प्रतिशत अधिक थी, जबकि भारत में कुल इंटरनेट उपयोगकर्ताओं में महिलाओं की संख्या केवल केवल 29% थी।
- भारत में डिजिटल डिवाइड का एक और महत्वपूर्ण कारण ‘नॉलेज डिवाइड’ है। ‘नॉलेज डिवाइड’ का सीधा संबंध डिजिटल डिवाइड से है।
डिजिटल डिवाइड का प्रभाव:
- महिलाओं के प्रतिनिधित्व में कमी: लैंगिक स्तर पर भारी ‘डिजिटल विभाजन’ के कारण, दूर-दराज के क्षेत्रों में हजारों भारतीय लड़कियों को ‘सूचना और संचार प्रौद्योगिकी’ (आईसीटी) तक पहुंच से वंचित कर दिया जाता है, जोकि नौकरियों में महिलाओं के प्रतिनिधित्व में कमी का प्रमुख कारण है।
- सूचना/ज्ञान पर रोक: ऑनलाइन सेवाओं और सूचनाओं तक पहुंच के लिए ‘समान अवसरों की कमी’ लोगों को उच्च/गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और कौशल प्रशिक्षण हासिल करने से वंचित करती है। इससे उन्हें अर्थव्यवस्था में योगदान करने और वैश्विक स्तर पर नेतृत्व करने में सहायता प्राप्त हो सकती थी।
- कल्याणकारी योजनाओं का वितरण न होना: विभिन्न योजनाओं में सेवाओं के वितरण हेतु ‘सूचना और संचार प्रौद्योगिकी’ का उपयोग शुरू किया जा रहा है, किंतु, डिजिटल विभाजन के कारण इनमें और अधिक समस्या पैदा हो रही है।
इंस्टा जिज्ञासु:
क्या आपने वित्तीय समावेशन हासिल करने और भारत में डिजिटल डिवाइड को पाटने में सक्षम ‘e-RUPI’ के बारे में सुना है?
स्रोत: द हिंदू।
विषय: भारत एवं इसके पड़ोसी- संबंध।
रोहिंग्या संकट
संदर्भ:
संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा सहायता दिए जाने संबंधी एक समझौते के बाद बांग्लादेश 80,000 से अधिक रोहिंग्या शरणार्थियों को बंगाल की खाड़ी में एक दूरस्थ द्वीप- ‘भासन चार’ (Bhashan Char) द्वीप – पर भेजने की योजना बना रहा है।
कई सहायता समूहों द्वारा संदेह व्यक्त करने के बावजूद, म्यांमार से आने वाले लगभग 19,000 मुस्लिम शरणार्थीयों को पहले ही बांग्लादेश की मुख्य भूमि पर भीड़-भाड़ वाले शिविरों से निकाल कर ‘भासन चार’ द्वीप पर भेजा जा चुका है।
पृष्ठभूमि:
भासन चार, बंगाल की खाड़ी में स्थित एक विवादित बाढ़-प्रवण द्वीप है, जिसे म्यांमार से पलायन करने वाले 10 लाख रोहिंग्या शरणार्थियों में से 1 लाख शरणार्थियों को बसाने के लिए विशेष रूप से विकसित किया गया है।
मानवाधिकार समूहों ने बांग्लादेश इस कदम की आलोचना की है और इनका कहना है कि, रोहिंग्या शरणार्थियों को उनकी इच्छा के खिलाफ भासन चार द्वीप पर जाने के लिए मजबूर किया जा रहा है। जबकि, सरकार का कहना है कि शरणार्थि द्वीप पर स्वेच्छा से जा रहे हैं।
‘रोहिंग्या समुदाय’ के बारे में:
- रोहिंग्या (Rohingyas), म्यांमार के कई जातीय अल्पसंख्यकों में से एक समुदाय हैं।
- वर्ष 2017 की शुरुआत में म्यांमार में ‘रोहिंग्या समुदाय के लोगों की संख्या लगभग एक मिलियन थी।
- उनकी अपनी भाषा और संस्कृति है और कहा जाता है, वे अरब व्यापारियों और अन्य समूहों के वंशज हैं, जो इस क्षेत्र में कई पीढ़ियों से बसे हुए हैं।
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस द्वारा ‘रोहिंग्या समुदाय के लोगों को, विश्व में सर्वाधिक नहीं, तो सबसे अधिक भेदभाव किये जाने वाले लोगों में से एक, के रूप में वर्णित किया गया है।
इंस्टा जिज्ञासु:
क्या आप शरणार्थी (Refugee) और प्रवासी (Migrant) में अंतर जानते हैं और क्या प्रवासी संरक्षण के हकदार होते हैं?
प्रीलिम्स लिंक:
- रोहिंग्या कौन हैं?
- रखाइन राज्य की अवस्थिति
- अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) बनाम अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय
- आईसीसीपीआर के बारे में
मेंस लिंक:
रोहिंग्या संकट पर एक टिप्पणी लिखिए।
स्रोत: द हिंदू।
विषय: महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थान, संस्थाएँ और मंच- उनकी संरचना, अधिदेश।
OECD/G20 टैक्स समावेशी समझौता रूपरेखा
(OECD/G20 Inclusive Framework tax deal)
संदर्भ:
‘आर्थिक सहयोग और विकास संगठन’ / G20 टैक्स संबंधी समावेशी समझौता रूपरेखा’ (OECD-G20 inclusive framework deal) के अंतर्गत, एक ‘दो-स्तंभीय समाधान’ (Two-Pillar Solution) 13 अक्टूबर को वाशिंगटन डीसी में होने वाली G20 वित्त मंत्रियों की बैठक में प्रस्तुत किया जाएगा, इसके बाद इस समाधान को महीने के अंत में प्रस्तावित रोम में होने वाली G20 लीडर्स समिट में रखा जाएगा।
विभिन्न देश वर्ष 2022 के दौरान एक बहुपक्षीय अभिसमय पर हस्ताक्षर करने का लक्ष्य बना रहे हैं, जिसका वर्ष 2023 में प्रभावी कार्यान्वयन किया जा सकता है।
पृष्ठभूमि:
भारत पहले ही ‘आर्थिक सहयोग और विकास संगठन’ / G20 टैक्स संबंधी समावेशी समझौता रूपरेखा’ (OECD-G20 inclusive framework deal) में सम्मिलित हो गया है।
- इस समझौते का उद्देश्य, अंतरराष्ट्रीय कर-नियमों में सुधार करना और यह सुनिश्चित करना है, कि बहुराष्ट्रीय उद्यमों द्वारा, जिस स्थान पर ये कारोबार करते हैं, उसके लिए उचित करों का भुगतान किया जाए।
- इस समझौते पर, वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के 90% से अधिक का प्रतिनिधित्व करने वाले 130 देशों और अधिकार-क्षेत्रों द्वारा हस्ताक्षर किए गए हैं।
प्रस्तावित फ्रेमवर्क के दो घटक:
- अंतरराष्ट्रीय और डिजिटल कंपनियों के साथ काम करना। पहला घटक यह सुनिश्चित करता है, कि डिजिटल कंपनियों सहित बड़े बहुराष्ट्रीय उद्यमों द्वारा कारोबार करने व लाभ अर्जित करने वाले स्थान पर करों का भुगतान किया जाए।
- लाभ का सीमा-पार अंतरण और ‘ट्रीटी शॉपिंग’ (treaty shopping) का समाधान करने करने हेतु निम्न-कर क्षेत्राधिकारों से निपटना। इस घटक का उद्देश्य ‘वैश्विक न्यूनतम कॉर्पोरेट कर-दर’ के माध्यम से देशों के बीच प्रतिस्पर्धा-स्तर निर्धारित करना है। वर्तमान में प्रस्तावित ‘वैश्विक न्यूनतम कॉर्पोरेट कर-दर’ (global minimum corporate tax rate) 15% है।
अपेक्षित परिणाम:
यदि यह समझौता लागू किया जाता है, तो नीदरलैंड और लक्ज़मबर्ग जैसे देशों, जहाँ करों की दर काफी कम है और बहामास और ब्रिटिश वर्जिन द्वीप समूह जैसे तथाकथित टैक्स हेवन की चमक फीकी पड़ सकती है।
भारत पर प्रभाव / निहितार्थ:
इस प्रकार की वैश्विक कर व्यवस्था लागू होने पर, भारत के लिए गूगल, अमेज़न और फेसबुक जैसी कंपनियों पर लगाए जाने वाली ‘समकारी लेवी’ (Equalisation Levy) को वापस लेना होगा।
‘समकारी लेवी’ क्या है?
(Equalisation Levy)
यह विदेशी डिजिटल कंपनियों पर लगाया जाने वाला एक ‘कर’ है। यह कर वर्ष 2016 से लागू है।
- गूगल और अन्य विदेशी ऑनलाइन विज्ञापन सेवा प्रदाताओं पर ऑनलाइन विज्ञापनों हेतु प्रति वर्ष 1 लाख रुपये से अधिक के भुगतान पर 6% समकारी लेवी लागू है।
- वित्त अधिनियम, 2020 में संशोधन के पश्चात समकारी लेवी के दायरे का विस्तार किया गया है, अब इसे वस्तुओं की ऑनलाइन बिक्री तथा ऑनलाइन सेवा प्रदान करने वाली अनिवासी ई-कॉमर्स कंपनियों तक विस्तारित किया गया है।
- इन कंपनियों पर 2% की दर से समकारी लेवी वसूल की जायेगी तथा यह 1 अप्रैल, 2020 से प्रभावी है।
BEPS क्या होता है?
‘आधार क्षरण एवं लाभ हस्तांतरण’ (Base Erosion and Profits Shifting – BEPS) का तात्पर्य, बहुराष्ट्रीय उद्यमों द्वारा उपयोग की जाने वाली ऐसी कर- नियोजन रणनीतियों से है, जिनके तहत ये कंपनियां, कर-भुगतान से बचने के लिए, कर-नियमों में अंतर और विसंगतियों का लाभ उठाती हैं
- विकासशील देशों के कॉर्पोरेट आयकर पर अधिक निर्भर होने की वजह से, इन्हें ‘आधार क्षरण एवं लाभ हस्तांतरण’ ( BEPS) से अनुचित नुकसान उठाना पड़ता है।
- BEPS पद्धति की वजह से देशों को सालाना 100-240 अरब अमेरिकी डॉलर का नुकसान होता है।
इंस्टा जिज्ञासु:
क्या आप ‘देश-दर-देश’ (Country-by-Country: CbC) रिपोर्ट के बारे में जानते हैं?
प्रीलिम्स लिंक:
- OECD – सदस्यों की भौगोलिक स्थिति के उद्देश्य, संरचना और अवलोकन।
- OECD बनाम WEF
- किसी समझौते पर हस्ताक्षर (signing) और अनुसमर्थन (ratification) के बीच अंतर।
- BEPS क्या है?
मेंस लिंक:
‘देश-दर-देश’ (Country-by-Country: CbC) रिपोर्ट क्या हैं? इसके महत्व पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: द हिंदू।
सामान्य अध्ययन- III
विषय: भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधनों को जुटाने, प्रगति, विकास तथा रोज़गार से संबंधित विषय।
G-SAP: बाजार प्रोत्साहन हेतु सरकारी प्रतिभूति अधिग्रहण कार्यक्रम
(Government Security Acquisition Programme: G-SAP)
संदर्भ:
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI), द्वारा फिलहाल ‘बाजार प्रोत्साहन हेतु सरकारी प्रतिभूति अधिग्रहण कार्यक्रम’ (G-Sec Acquisition Programme: GSAP) के तहत अपने बांडों की खरीदारी को रोका जा रहा है।
रिजर्व बैंक के अनुसार, पर्याप्त तरलता सुनिश्चित करने और वित्तीय बाजारों को स्थिर करने में यह उपाय सफल रहा है।
प्रभाव और परिणाम:
अन्य चलनिधि उपायों के साथ, ‘सरकारी प्रतिभूति अधिग्रहण कार्यक्रम’ (Government Security Acquisition Programme – GSAP) ने अनुकूल और व्यवस्थित वित्तपोषण की स्थिति और वसूली के लिए एक अनुकूल वातावरण की सुविधा प्रदान की है।
‘सरकारी प्रतिभूति अधिग्रहण कार्यक्रम (G–SAP) के बारे में:
‘सरकारी प्रतिभूति अधिग्रहण कार्यक्रम’ (Government Security Acquisition Programme: G-SAP), मूलतः बहुत बड़े पैमाने और आकार का, ‘शर्त रहित’ वाला और एक संरचित ‘मुक्त बाज़ार परिचालन’ (Open Market Operation- OMO) है।
- आरबीआई द्वारा ‘G-SAP’ को एक ‘विशिष्ट ख़ासियत’ वाला OMO बताया गया है।
- यहां ‘शर्त रहित ‘ (Unconditional) का अर्थ है, कि आरबीआई द्वारा पहले ही ‘बाजार के प्रवाह के बावजूद’ सरकारी प्रतिभूतियां खरीदने की प्रतिबद्धता व्यक्त की जा चुकी है।
उद्देश्य:
अर्थव्यवस्था में तरलता के प्रबंधन के साथ-साथ ‘पैदावार वक्र’ अर्थात ‘यील्ड वक्र’ (yield curve) के लिए एक स्थिर और व्यवस्थित विकास हासिल करना।
महत्व:
G-SAP बांड बाजार को और अधिक सुगम्य बनाएगा। चूंकि इस साल सरकार की उधारी में वृद्धि हुई है, अतः आरबीआई को यह सुनिश्चित करना होगा कि भारतीय बाजार में कोई व्यवधान उत्पन्न न हो।
- यह कार्यक्रम ‘रेपो दर’ और ‘दस वर्षीय सरकारी बांड प्रतिफल’ के बीच अंतर को कम करने में मदद करेगा।
- G-SAP, लंबे समय से बांड बाजार की इच्छित सूची में शामिल OMO कैलेंडर के उद्देश्यों को लगभग पूरा करेगा।
‘मुक्त बाज़ार परिचालन’ क्या होते हैं?
मुक्त बाज़ार परिचालन (Open Market Operation – OMO), भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) या देश के केंद्रीय बैंक द्वारा सरकारी प्रतिभूतियों और ट्रेजरी बिलों की बिक्री और खरीद होती है।
- OMO का उद्देश्य अर्थव्यवस्था में मुद्रा आपूर्ति को विनियमित करना है।
- यह मात्रात्मक मौद्रिक नीति उपकरणों में से एक होता है।
कार्यविधि:
भारतीय रिजर्व बैंक, मुक्त बाज़ार परिचालन (OMO) का निष्पादन वाणिज्यिक बैंकों के माध्यम से करता है तथा इसके तहत RBI जनता के साथ सीधे व्यापार नहीं करता है।
OMO बनाम तरलता:
- जब केंद्रीय बैंक मौद्रिक प्रणाली में तरलता (liquidity) में वृद्धि करना चाहता है, तो वह खुले बाजार में सरकारी प्रतिभूतियों की खरीद करेगा। इस प्रकार केंद्रीय बैंक, वाणिज्यिक बैंकों को तरलता प्रदान करता है।
- इसके विपरीत, जब केंद्रीय बैंक मौद्रिक प्रणाली में तरलता को कम करना चाहता है, तो वह सरकारी प्रतिभूतियों की बिक्री करेगा। इस प्रकार केंद्रीय बैंक अप्रत्यक्ष रूप से धन की आपूर्ति को नियंत्रित करता है और अल्पकालिक ब्याज दरों को प्रभावित करता है।
‘मुक्त बाज़ार परिचालन’ के प्रकार
भारतीय रिजर्व बैंक दो प्रकार से ‘मुक्त बाज़ार परिचालन’ (OMO) का निष्पादन करता है:
- एकमुश्त खरीद (Outright Purchase– PEMO) – यह स्थायी प्रक्रिया होती है और इसमें सरकारी प्रतिभूतियों की एकमुश्त बिक्री या खरीद की जाती है।
- पुनर्खरीद समझौता (Repurchase Agreement– REPO) – यह अल्पकालिक प्रक्रिया होती है और पुनर्खरीद के अधीन होती है।
इंस्टा जिज्ञासु:
नकारात्मक प्रतिफल बांड (Negative Yield Bonds) क्या हैं?
प्रीलिम्स लिंक:
- मौद्रिक बनाम राजकोषीय नीति उपकरण
- मात्रात्मक बनाम गुणात्मक उपकरण
- OMO क्या हैं?
- PEMO बनाम REPO
मेंस लिंक:
‘मुक्त बाज़ार परिचालन’ (OMO) क्या होता हैं? इसके महत्व पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: द हिंदू।
विषय: सीमावर्ती क्षेत्रों में सुरक्षा चुनौतियाँ एवं उनका प्रबंधन- संगठित अपराध और आतंकवाद के बीच संबंध।
पाक खाड़ी योजना
(Palk Bay scheme)
संदर्भ:
पाक की खाड़ी को मछुआरों के लिए और अधिक आकर्षक बनाने हेतु, केंद्र सरकार द्वारा ‘पाक खाड़ी योजना’ (Palk Bay scheme) के तहत ‘गहरे समुद्र में मत्स्यन’ करने वाले जहाजों की इकाई लागत बढ़ाने पर विचार कर किया जा रहा है।
‘पाक खाड़ी योजना’ के बारे में:
- ‘पाक खाड़ी योजना’ (Palk Bay scheme) की शुरुआत ‘नीली क्रांति कार्यक्रम’ के तहत जुलाई 2017 में की गयी थी।
- इस योजना को, लाभार्थीयों की भागीदारी सहित केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा वित्तपोषित किया जाता है।
- इसके अंतर्गत, राज्य के मछुआरों को तीन साल में 2,000 जहाज उपलब्ध कराए जाने और इनको ‘बॉटम ट्रालिंग (Bottom Trawling) पद्धति को छोड़ने के लिए प्रेरित की परिकल्पना की गयी थी।
योजना का कार्यान्वयन:
इसके तहत, पहले वर्ष (2017-18) के दौरान 500 नावों का निर्माण करने की योजना बनाई गई थी। प्रत्येक पोत की इकाई लागत (₹80 लाख) निर्धारित के गयी,जिसमे से केंद्र द्वारा 50%, राज्य सरकार द्वारा 20% और लाभार्थी द्वारा 10% लागत का वहन किया जाएगा और शेष 20% लागत का वहन संस्थागत वित्तपोषण के माध्यम से किया जाएगा।
गहरे समुद्र में मत्स्यन योजना के तहत लाभार्थियों के लिए शर्ते:
गहरे समुद्र में मत्स्यन योजना (Deep-Sea fishing plan) का उद्देश्य ‘पाक की खाड़ी’ से अधिक से अधिक मत्स्यन नौकाओं को हटाना है।
- ‘डीप सी फिशिंग’ परियोजना के संभावित लाभार्थियों के पास 12 मीटर से अधिक लंबा एक पंजीकृत, समुद्र में चलने योग्य ‘मत्स्यन पोत’ (trawl vessel) होना चाहिए, जिसका ‘पाक खाड़ी’ के बाहर स्क्रैप या नष्ट किया जाना चाहिए।
- नष्ट किए गए पोत का भौतिक रूप से ‘सत्यापन’ किया जाना भी आवश्यक है।
- इसके अलावा, इन ‘मत्स्यन पोतों’ के स्थान पर उपयोग की जाने वाली ‘टूना लॉन्ग लाइनर बोटस’ (tuna long liner boats) भी ‘पाक की खाड़ी’ में मत्स्यन या संचालन नहीं कर सकती हैं।
- योजना के तहत, नाव प्राप्त करने के पांच साल तक लाभार्थियों को अपनी नौका बेचने की अनुमति नहीं होगी।
योजना का महत्व:
इस योजना की परिकल्पना ‘पाक की खाड़ी’ में मत्स्यन को लेकर होने वाले संघर्ष को रोकने के उपाय के रूप में की गई थी।
केंद्र सरकार का मानना है, कि ‘गहरे समुद्र में मत्स्यन’ (डीप सी फिशिंग) पारिस्थितिक रूप से संवहनीय मत्स्यन को बढ़ावा देने और सीमा पार मत्स्यन / मछली पकड़ने की घटनाओं और अंतर्राष्ट्रीय समुद्री सीमा रेखा (IMBL) के निकट “मत्स्यन दबाव” को कम करने का “एकमात्र समाधान” है।
बॉटम ट्रालिंग (Bottom-Trawling) क्या होती है?
बॉटम ट्रालिंग, एक विनाशकारी मछली पकड़ने की पद्धति होती है, जिससे समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र बुरी तरह प्रभावित होता है। इस पद्धति में, बड़े आकार के मत्स्यन पोत (Trawlers) जालों में वजन बांधकर समुद्र की तली में फेंक देते है, जिससे सभी प्रकार के समुद्री जीव जाल में फंस जाते है, इन जालों को ट्रोलर से खींचा जाता है। इस पद्धति से क्षेत्र में मत्स्यन संसाधनों का अभाव हो जाता है। इसको प्रतिबंधित करना संवाहनीय मत्स्यन के लिए लाभदायक होता है।
‘बॉटम ट्रॉलिंग’ के साथ समस्या:
बॉटम ट्रालिंग (Bottom-Trawling), मत्स्यन की पारिस्थितिक रूप से विनाशकारी पद्धति है। इस पद्धति में, बड़े आकार के मत्स्यन पोत (Trawlers) मछली पकड़ने के जालों में वजन बांधकर समुद्र की तली में फेंक देते है, जिससे सभी प्रकार के समुद्री जीव जाल में फंस जाते है और क्षेत्र में मत्स्यन संसाधनों का अभाव हो जाता है।
बॉटम ट्रॉलिंग में, अल्पविकसित मछलियां भी फंस जाती है, जिससे समुद्री संसाधन भी समाप्त होने लगते हैं और समुद्री संरक्षण के प्रयास भी प्रभावित होते है। यह पद्धति, पाक की खाड़ी में तमिलनाडु के मछुआरों द्वारा शुरू की गई थी और बाद में श्रीलंका में गृहयुद्ध के दौरान काफी तेजी से इस पद्धति का प्रयोग किया गया था।
‘गहरे समुद्र में मत्स्यन योजना’ के बारे में:
‘बॉटम ट्रालिंग’ की समस्या का समाधान, ‘ट्रॉलिंग’ की बजाय ‘गहरे समुद्र में मत्स्यन’ किए जाने में निहित है।
- समुद्र/महासागर के भीतरी भागों में रहने वाली मछलियों को पकड़ने की गतिविधियों को गहरे समुद्र में मत्स्यन’ या ‘डीप सी फिशिंग’ कहा जाता है।
- इसके लिए नौकाओं को इस तरह से डिजाइन किया जाता है, जिससे मछुआरों को समुद्र के भीतरी हिस्सों और मछली प्रजातियों तक पहुंचने में आसानी हो सके।
- यह पद्धति दुनिया भर में, विशेष रूप से तटीय क्षेत्रों में प्रचलित है और इसमें पारिस्थितिक तंत्र को किसी प्रकार की क्षति भी नहीं पहुँचती है।
- जिन क्षेत्रों में पानी की गहराई न्यूनतम 30 मीटर होती है, उन्हें ‘गहरे समुद्र में मत्स्यन’ क्षेत्र माना जाता है।
स्रोत: द हिंदू।
विषय: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन।
पराली दहन
‘वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग’ के अनुसार, हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश में धान की खेती के क्षेत्रफल में कमी आने तथा किसानो द्वारा अधिक समय में पकने वाली धान की किस्मों का कम प्रयोग करने की वजह से इस साल ‘पराली जलाने’ (Stubble Burning) में कमी देखी जा सकती है।
इसके कारण:
- हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले आठ जिलों में, धान की फसल के अंतर्गत क्षेत्रफल, पिछले वर्ष की तुलना में चालू वर्ष के दौरान 7.72% कम हो गया है।
- गैर-बासमती किस्म के चावल से होने वाली धान की पराली, चालू वर्ष के दौरान पिछले वर्ष की तुलना में 12.42% कम होने की संभावना है।
- हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश की राज्य सरकारों और केंद्र सरकार द्वारा फसलों में विविधता लाने के साथ-साथ धान की पूसा-44 किस्म के उपयोग को कम करने के उपाय किए जा रहे हैं।
- पराली जलाने पर नियंत्रण के लिए रूपरेखा और कार्य योजना के तहत ‘फसल विविधीकरण’ और कम अवधि में अधिक उपज देने वाली ‘पूसा-44’ किस्म के प्रयोग को समाप्त किए जाने पर जोर दिया गया था।
‘पराली दहन’ (stubble Burning) क्या है?
किसानों द्वारा नवंबर में गेहूं की बुवाई के लिए खेत तैयार करने के दौरान ‘पराली दहन’ या पराली जलाना, एक आम बात है, क्योंकि धान की कटाई और गेहूं की बुवाई के बीच बहुत कम समय बचता है।
प्रभाव: पराली जलाने से हानिकारक गैसों जैसे कार्बन डाइऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड के साथ-साथ पार्टिकुलेट मैटर का उत्सर्जन होता है।
किसानों द्वारा ‘पराली जलाने’ का विकल्प चुनने का कारण:
- किसानों के पास, पराली का प्रभावी ढंग से उपयोग करने के विकल्प नहीं होते हैं।
- किसान, इस कृषि-अपशिष्ट से निपटने में अक्षम होते हैं क्योंकि वे अपशिष्ट पदार्थो का निपटान करने के लिए उपलब्ध नई तकनीक को वहन नहीं कर सकते।
- बहुधा, फसल खराब होने जाने की वजह से किसान की आय पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है, ऐसी स्थिति में किसान लागत में कटौती करने और पराली प्रबंधन के वैज्ञानिक तरीकों पर खर्च करने की बजाय, खेत में ही पराली जलाने का विकल्प चुनता है।
पराली जलाने के फायदे:
- इससे खेत, जल्दी साफ हो जाता है और यह सबसे सस्ता विकल्प है।
- खरपतवार नाशकों सहित खरपतवारों को नष्ट हो जाते हैं।
- सुंडिया और अन्य कीट मर जाते हैं।
- नाइट्रोजन बंध दुर्बल हो जाते हैं।
पराली जलाने के प्रभाव:
- प्रदूषण: खुले में पराली जलाने से वातावरण में बड़ी मात्रा में जहरीले प्रदूषक उत्सर्जित होते हैं जिनमें मीथेन (CH4), कार्बन मोनोऑक्साइड (CO), वाष्पशील कार्बनिक यौगिक (VOC) और कार्सिनोजेनिक पॉलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन जैसी हानिकारक गैसें होती हैं। अंततः ये स्मॉग का कारण बन जाते हैं।
- मृदा उर्वरता: पराली को खेत में जलाने से मिट्टी के पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं, जिससे यह कम उपजाऊ हो जाती है।
- ऊष्मा का प्रवेश: पराली जलाने से उत्पन्न गर्मी मिट्टी में प्रवेश करती है, जिससे जमीन में नमी और लाभकारी जीवाणु नष्ट हो जाते हैं।
पराली जलाने से बचने हेतु वैकल्पिक उपाय:
- धान की पुआल आधारित बिजली संयंत्रों को बढ़ावा देना। इससे रोजगार के अवसर भी पैदा होंगे।
- मृदा में फसल अवशेषों को शामिल करने से मिट्टी की नमी में सुधार हो सकता है, और बेहतर पौधों की वृद्धि के लिए मृदा के सूक्ष्मजीवों के विकास को सक्रिय करने में मदद मिल सकती है।
- कृषि-अवशिष्टों को कम्पोस्टिंग के माध्यम से समृद्ध जैविक खाद में परिवर्तित किया जा सकता है।
- वैज्ञानिक अनुसंधान के माध्यम से ‘यीस्ट प्रोटीन के निष्कर्षण’ जैसे औद्योगिक उपयोग के नए अवसरों की खोज की जा सकती है।
आवश्यकता: सुप्रीम कोर्ट द्वारा की गई टिप्पणियां
- पराली नहीं जलाने वालों को प्रोत्साहन दिया जा सकता है और इस पद्धति को जारी रखने वालों पर दंड लगाया जा सकता है।
- मौजूदा न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) योजना की व्याख्या इस प्रकार की जानी चाहिए, जिसके तहत, कृषि-अवशिष्टों को जलाने वाले लोगों को संबंधित राज्य MSP के लाभ से पूर्ण या आंशिक रूप से वंचित कर सकें।
छत्तीसगढ़ मॉडल:
छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा ‘गौठान’ स्थापित कर एक अभिनव प्रयोग किया गया है।
- ‘गौठान’ (Gauthans), प्रत्येक गाँव में पांच एकड़ का एक सामूहिक भूखंड होता है, जहाँ गाँव के सभी लोग अपनी-अपनी अप्रयुक्त पराली को इकठ्ठा करते हैं और इस पराली को गाय के गोबर और कुछ प्राकृतिक एंजाइमों को मिलाकर जैविक उर्वरक में परिवर्तित किया जाता है।
- इस योजना से ग्रामीण युवाओं के लिए ‘रोजगार’ भी उत्पन्न होता है।
- सरकार द्वारा ‘पराली’ को खेत से नजदीकी गौठान तक पहुंचाने में सहायता प्रदान की जाती है।
- छत्तीसगढ़ में अब तक 2,000 गौठानों को सफलतापूर्वक विकसित किया जा चुका है।
इंस्टा जिज्ञासु:
क्या आप पराली जलाने वाले घोल ‘पूसा’ (PUSA) के बारे में जानते हैं?
प्रीलिम्स लिंक:
- EPCA के बारे में
- NGT के बारे में
- CPCB के बारे में
- ‘राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और आसपास के क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन हेतु आयोग विधेयक, 2021 का अवलोकन
मेंस लिंक:
‘पर्यावरण प्रदूषण (रोकथाम एवं नियंत्रण) प्राधिकरण’ (Environment Pollution (Prevention and Control) Authority) अर्थात EPCA को क्यों भंग कर दिया गया था, और इसकी जगह पर किस निकाय का गठन किया गया है?
स्रोत: द हिंदू।
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य
तवांग
तवांग (Tawang) ऐतिहासिक रूप से तिब्बत का एक भाग था।
- वर्ष 1914 में हुए ‘शिमला समझौते’ के तहत ‘मैकमोहन रेखा’ को ब्रिटिश भारत और तिब्बत के बीच नई सीमा के रूप में माना गया था। इस संधि के तहत तिब्बत ने तवांग सहित अपने कुछ क्षेत्रों को अंग्रेजों के लिए दे दिया था। लेकिन, चीन ने इसके लिए मान्यता नहीं दी।
- वर्ष 1950 में, तिब्बत की वास्तविक स्वतंत्रता ख़त्म हो गयी और चीन ने इसे नव स्थापित पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना में शामिल किया।
- बाद में, वर्ष 1959 में, वर्तमान दलाई लामा तिब्बत से पलायन करने के दौरान ‘तवांग’ के रास्ते भारत आए थे।
- 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान, तवांग पर कुछ समय के लिए चीन का कब्ज़ा हो गया था, लेकिन युद्ध के अंत में चीन ने स्वेच्छा से अपने सैनिकों को वापस बुला लिया।
- इसके बाद, तवांग फिर से भारतीय प्रशासन के अधीन आ गया, लेकिन चीन ने तवांग सहित अरुणाचल प्रदेश के अधिकांश हिस्सों पर अपना दावा नहीं छोड़ा है।
चर्चा का कारण:
हाल ही में, ‘तवांग’ में भारत और चीन के गश्ती दलों के बीच मुठभेड़ हुई है।
- भारतीय गश्ती दल ने चीनी सैनिकों को हिरासत में ले लिया, जिन्हें बाद में छोड़ दिया गया।
- निर्धारित सीमा के संदर्भ में अलग-अलग धारणा होने के कारण दोनों देशों के ‘गश्ती दलों’ में मुठभेड़ हुई थी।
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