विषय सूची:
सामान्य अध्ययन-I
1. भगत सिंह
सामान्य अध्ययन-II
1. निर्दलीय विधायकों के लिए दलबदल विरोधी कानून
2. कुत्तों से होने वाले रेबीज के उन्मूलन हेतु राष्ट्रीय कार्ययोजना
3. जातिगत जनगणना
4. राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण
सामान्य अध्ययन-III
1. आज के समय में पैदा हुए बच्चों पर जलवायु परिवर्तन का बोझ
2. आगामी 25 वर्षों में पंजाब का मरुस्थलीकरण
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य
1. विश्व समुद्री दिवस
2. जोजिला सुरंग
सामान्य अध्ययन- I
विषय: स्वतंत्रता संग्राम- इसके विभिन्न चरण और देश के विभिन्न भागों से इसमें अपना योगदान देने वाले महत्त्वपूर्ण व्यक्ति/उनका योगदान।
भगत सिंह
संदर्भ:
28 सितंबर 2021 को क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह की 114 वीं जयंती मनायी जाती गयी।
भगत सिंह के बारे में प्रमुख तथ्य:
- भगत सिंह का जन्म 1907 में लायलपुर जिले (अब पाकिस्तान में) में हुआ था, और वह राजनीतिक गतिविधियों में गहराई से संलिप्त एक सिख परिवार में पले-बढ़े।
- 1923 में, भगत सिंह ने नेशनल कॉलेज, लाहौर में प्रवेश लिया। इस कॉलेज की स्थापना लाला लाजपत राय और भाई परमानंद द्वारा की गयी थी, और इसका प्रबंधन भी इनके द्वारा ही किया जा रहा था।
- 1924 में भगत सिंह, कानपुर में एक साल पहले ‘सचिंद्रनाथ सान्याल’ द्वारा शुरू किए गए संगठन ‘हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन’ (HRA) के सदस्य बन गए।
- 1928 में, HRA का नाम ‘हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन’ से बदलकर ‘हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन’ (HSRA) कर दिया गया।
- वर्ष 1925-26 में भगत सिंह और उनके साथियों ने ‘नौजवान भारत सभा’ नाम से एक जुझारू युवा संगठन बनाया।
- 1927 में, उन्हें पहली बार एक छद्म नाम ‘विद्रोही’ से एक लेख लिखने पर ‘काकोरी मामले’ से संबंध रखने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था।
- 1928 में लाला लाजपत राय ने साइमन कमीशन के आगमन के विरोध में एक जुलूस का नेतृत्व किया था। पुलिस ने इस जुलूस पर क्रूरतापूर्वक लाठीचार्ज किया, जिसमें लाला लाजपत राय गंभीर रूप से घायल हो गए और बाद में उनकी मौत हो गई।
- लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए भगत सिंह और उनके साथियों ने पुलिस अधीक्षक जेम्स ए स्कॉट की हत्या की साजिश रची।
- हालांकि, इन क्रांतिकारियों ने गलती से जेपी सॉन्डर्स को मार डाला। इस घटना को लाहौर षडयंत्र केस (1929) के नाम से जाना जाता है।
- 8 अप्रैल, 1929 को भगत सिंह और बी.के. दत्त ने, ‘सार्वजनिक सुरक्षा विधेयक’ (Public Safety Bill) और ‘व्यापार विवाद विधेयक’ (Trade Dispute Bill) नामक दो दमनकारी कानूनों के पारित होने के विरोध में ‘केंद्रीय विधान सभा’ में बम फेंका।
- इसका उद्देश्य किसी की हत्या करना नहीं था, बल्कि बहरों को अपनी आवाज सुनाना और विदेशी सरकार को उसके द्वारा किए जा रहे क्रूर शोषण की याद दिलाना था।
भगत सिंह पर मुकद्दमा:
भगत सिंह और बी.के. दत्त ने ‘केंद्रीय विधान सभा’ में बम फेकने के बाद ने आत्मसमर्पण कर दिया और मुकदमे का सामना किया ताकि वे अपने उद्देश्य और कार्य को और आगे बढ़ा सकें। इस घटना के लिए उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी।
- हालांकि, भगत सिंह को लाहौर षडयंत्र मामले में जे.पी. सॉन्डर्स की हत्या और बम निर्माण के आरोप में फिर से गिरफ्तार कर लिया गया था।
- इस मामले में उन्हें दोषी पाया गया और 23 मार्च, 1931 को लाहौर में सुखदेव और राजगुरु के साथ फांसी पर लटका दिया गया।
- हर साल 23 मार्च को स्वतंत्रता सेनानियों भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को श्रद्धांजलि के रूप में शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है।
प्रीलिम्स लिंक:
निम्नलिखित के बारे में जानिए:
- हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन
- हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन
- नौजवान भारत सभा
- काकोरी षड्यंत्र केस
- लाहौर षडयंत्र केस
मेंस लिंक:
एक क्रांतिकारी और एक समाजवादी भगत सिंह का भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में बहुत बड़ा योगदान है। चर्चा कीजिए।
स्रोत: द हिंदू।
सामान्य अध्ययन- II
विषय: भारतीय संविधान- ऐतिहासिक आधार, विकास, विशेषताएँ, संशोधन, महत्त्वपूर्ण प्रावधान और बुनियादी संरचना।
निर्दलीय विधायकों के लिए दलबदल विरोधी कानून
संदर्भ:
गुजरात के वडगाम निर्वाचन क्षेत्र से निर्वाचित निर्दलीय विधायक जिग्नेश मेवाणी ने कांग्रेस पार्टी को समर्थन देने का वादा करते हुए कहा है, कि हालांकि वह औपचारिक रूप से कांग्रेस में शामिल नहीं हुए हैं, लेकिन वह पार्टी की विचारधारा में शामिल हो गए हैं। अत: दसवीं अनुसूची के प्रावधान इस मामले में इन पर लागू नहीं होते हैं।
प्रासंगिकता: भारतीय संविधान की दसवीं अनुसूची
भारतीय संविधान की ‘दसवीं अनुसूची’ (Tenth Schedule) ‘दल-बदल विरोधी कानून’ के रूप में जानी जाती है।
- इसमें उन परिस्थितियों को निर्दिष्ट किया गया है, जिनके तहत विधायकों द्वारा राजनीतिक दल परिवर्तन करने पर, कानून के अंतर्गत कार्रवाई की जा सकती है।
- ‘दसवीं अनुसूची’ को संविधान में 52वें संशोधन अधिनियम के माध्यम से जोड़ा गया था।
- इसमें, निर्दलीय विधायकों द्वारा भी चुनाव के बाद किसी पार्टी में शामिल होने की स्थिति के बारे में भी प्रावधान किए गए हैं।
इस क़ानून में उन परिस्थितियों को निर्दिष्ट किया गया है, जिनके तहत सांसदों द्वारा राजनीतिक दल परिवर्तन करने पर कानून के तहत कार्रवाई की जा सकती है। यह क़ानून दल-बदलने वाले सांसदों के संदर्भ में तीन प्रकार की परिस्थितियां निर्धारित करता है:
- जब कोई सदस्य, जिस राजनीतिक पार्टी के टिकट पर निर्वाचित हुआ हो, स्वेच्छा से उस पार्टी की सदस्यता का त्याग कर देता है, अथवा सदन में उस पार्टी की इच्छा के विपरीत मतदान करता है।
- जब कोई सदस्य स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में निर्वाचित होता है, तथा चुनाव के बाद किसी राजनीतिक दल में शामिल हो जाता है।
- मनोनीत सांसदों के संदर्भ में, यह कानून निर्दिष्ट करता है कि कोई सदस्य सदन में नामित होने के छह महीने के भीतर, किसी राजनीतिक पार्टी में शामिल होने का विकल्प चुन सकते हैं। लेकिन, यदि इस अवधि के पश्चात वे किसी पार्टी में शामिल होते है, तो उनकी सदस्यता रद्द हो जाएगी।
निरर्हता से संबंधित मामले:
‘दल-बदल विरोधी कानून’ के तहत, किसी सांसद या विधायक की ‘निरर्हता’ (Disqualification) का फैसला करने की शक्ति सदन के पीठासीन अधिकारी के पास होती है।
- यह कानून, इस प्रकार के निर्णय लिए जाने हेतु कोई ‘समय सीमा’ निर्दिष्ट नहीं करता है।
- पिछले वर्ष, सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, कि दलबदल विरोधी मामलों का फैसला ‘स्पीकर’ द्वारा तीन महीने के समय के भीतर किया जाना चाहिए।
निरर्हता के आधार:
यदि किसी राजनीतिक दल से संबंधित सदन का सदस्य:
- स्वेच्छा से अपनी राजनीतिक पार्टी की सदस्यता त्याग देता है, अथवा
- यदि वह सदन में अपने राजनीतिक दल के निर्देशों के विपरीत मत देता है अथवा मतदान में अनुपस्थित रहता है तथा अपने राजनीतिक दल से उसने पंद्रह दिनों के भीतर क्षमादान न पाया हो।
- यदि चुनाव के बाद कोई निर्दलीय उम्मीदवार किसी राजनीतिक दल में शामिल हो जाता है।
- यदि विधायिका का सदस्य बनने के छह महीने बाद कोई नामित सदस्य (Nominated Member) किसी पार्टी में शामिल होता है।
कानून के तहत अपवाद:
हालांकि, सदन के सदस्य कुछ परिस्थितियों में निरर्हता के जोखिम उठाए बिना अपनी पार्टी बदल सकते सकते हैं।
- इस विधान में किसी दल के द्वारा किसी अन्य दल में विलय करने करने की अनुमति दी गयी है बशर्ते कि उसके कम से कम दो-तिहाई विधायक विलय के पक्ष में हों।
- ऐसे परिदृश्य में, अन्य दल में विलय का निर्णय लेने वाले सदस्यों तथा मूल दल में रहने वाले सदस्यों को अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता है।
इंस्टा जिज्ञासु:
क्या आप जानते हैं, कि दलबदल विरोधी कानून (1969, 1973) बनाने के शुरुआती प्रयासों में राजनीतिक दलों में शामिल होने वाले निर्दलीय विधायकों को शामिल नहीं किया गया था? इनके लिए कानून के अधीन कब लाया गया? इसके बारे में एक संक्षिप्त अवलोकन करें।
प्रीलिम्स लिंक:
- दल-बदल कानून संबधित विभिन्न समितियों और आयोगों के नाम
- समिति तथा आयोग में अंतर
- पीठासीन अधिकारी तथा न्यायिक समीक्षा का निर्णय
- राजनीतिक दलों के विलय तथा विभाजन में अंतर
- क्या पीठासीन अधिकारी पर दलबदल विरोधी कानून लागू होता है?
- संबंधित मामलों में उच्चत्तम न्यायालय के निर्णय
मेंस लिंक:
दलबदल विरोधी कानून के प्रावधानों का परीक्षण कीजिए। क्या यह कानून अपने उद्देश्यों को पूरा करने में विफल रहा है? चर्चा कीजिए।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस।
विषय: स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय।
कुत्तों से होने वाले रेबीज के उन्मूलन हेतु राष्ट्रीय कार्ययोजना
संदर्भ:
‘विश्व रेबीज दिवस’ के अवसर पर, केंद्र सरकार द्वारा वर्ष 2030 तक ‘कुत्तों से होने वाले रेबीज के उन्मूलन के लिए राष्ट्रीय कार्ययोजना’ (National Action Plan for dog Mediated Rabies Elimination – NAPRE) का अनावरण किया गया है।
कार्ययोजना का मसौदा मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय के परामर्श से ‘राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र’ (NCDC) द्वारा तैयार किया गया है।
‘रेबीज’ के बारे में:
‘रेबीज’ (Rabies) एक घातक किंतु निरोध्य वायरल बीमारी (Preventable Viral Disease) है। यह बीमारी किसी पागल जानवर द्वारा काट लेने, या खरोंच देने पर व्यक्तियों और और पालतू जानवरों में फैल सकती है।
- रेबीज, ज्यादातर चमगादड़, रैकून, स्कंक और लोमड़ियों और कुत्तों जैसे जंगली जानवरों में पाया जाता है. और दुनिया भर में रेबीज से होने वाली ज्यादातर मौतें, कुत्ते के काटने से होती हैं।
- रेबीज वायरस, व्यक्ति के केंद्रीय तंत्रिका तंत्र को संक्रमित करता है।
- यदि किसी व्यक्ति को ‘रेबीज’ के संपर्क में आने के बाद उचित चिकित्सा देखभाल नहीं मिलती है, तो इसका वायरस दिमागी बीमारी का कारण बन सकता है, अंततः जिसके परिणामस्वरूप व्यक्ति की मृत्यु भी हो सकती है।
- पालतू जानवरों को टीका लगाकर, वन्यजीवों से दूर रहकर और लक्षणों के शुरू होने से पहले संभावित जोखिम के बाद चिकित्सा देखभाल प्राप्त करने से ‘रेबीज’ को रोका जा सकता है।
‘रेबीज’ कैसे फैलता है?
रेबीज वायरस, संक्रमित जानवर की ‘लार’ या ‘मस्तिष्क/तंत्रिका तंत्र के ऊतकों’ (जैसे कि छिली हुई त्वचा, या आंखों, नाक या मुंह की श्लेष्मा झिल्ली के माध्यम से) के साथ सीधे संपर्क में आने से फैलता है।
संचरण:
रेबीज वायरस, केवल स्तनधारियों को प्रभावित करता है।
भारत में रेबीज:
भारत में हर साल लगभग 20,000 मौतें ‘रेबीज’ से मौतें होती हैं। दुनिया भर में, 59, 000 से अधिक लोग हर साल रेबीज से मर जाते हैं, जिनमें से लगभग 40 प्रतिशत 15 वर्ष से कम आयु के होते हैं।
- रेबीज, भारत में व्यापक रुग्णता और मृत्यु दर के लिए जिम्मेदार है।
- यह रोग पूरे देश में स्थानिक रूप से फ़ैल सकता है।
- अंडमान और निकोबार और लक्षद्वीप द्वीप समूह को छोड़कर, पूरे देश से मानव के रेबीज के संक्रमित होने के मामले सामने आते हैं।
- रेबीज के मामले में, लगभग 96% मौतें और रुग्णता कुत्ते के काटने से जुड़ी होती है।
इंस्टा जिज्ञासु:
टेटनस या रेबीज में अधिक खतरनाक क्या है? इस बारे में जानने हेतु पढ़िए।
प्रीलिम्स लिंक:
- रेबीज के बारे में
- राष्ट्रीय कार्य योजना के बारे में
- NCDC के बारे में
मेंस लिंक:
रेबीज पर राष्ट्रीय कार्य योजना के महत्व पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: पीआईबी।
विषय: सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय।
जातिगत जनगणना
संदर्भ:
केंद्र सरकार ने पिछले हफ्ते सुप्रीम कोर्ट को सूचित करते हुए बताया था, कि 2011 की सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना (Socio-Economic Caste Census – SECC) में एकत्रित किया गया जाति-आधारित आंकड़े “अनुपयोगी” है, जबकि वर्ष 2016 में, ‘भारत के महारजिस्ट्रार एवं जनगणना आयुक्त’ (Registrar-General and Census Commissioner of India) द्वारा ग्रामीण विकास पर गठित संसद की स्थायी समिति को जानकारी देते हुए कहा था, व्यक्तिगत जाति और धर्म पर एकत्रित किए गए 98.87 प्रतिशत आंकड़े त्रुटि मुक्त” हैं।
सरकार के अनुसार सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना के आंकड़े “अनुपयोगी” क्यों है?
- सरकार के अनुसार, 1931 में किए गए सर्वेक्षण में शामिल जातियों की कुल संख्या 4,147 थी, जबकि सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना (SECC) के आंकड़ों के अनुसार, देश में 46 लाख से अधिक विभिन्न जातियाँ हैं। यह माना जा सकता है, कि कुछ जातियां उप-जातियों में विभाजित हो सकती हैं, लेकिन इनकी कुल संख्या इस हद तक अधिक नहीं हो सकती है।
- गणनाकारों द्वारा एक ही जाति के लिए अलग-अलग वर्तनी का इस्तेमाल किया गया और इस वजह से सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना की पूरी कवायद अनुपयोगी हो गई है। सरकार ने कहा, कि कई मामलों में उत्तरदाताओं ने अपनी जातियों का खुलासा करने से इनकार भी कर दिया था।
अब तक ‘जाति-संबंधी’ विवरण एकत्र करने की विधि:
- गणनाकारों के द्वारा, जनगणना के एक भाग के रूप में ‘अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति’ संबंधी विवरण एकत्र किया जाता है, जबकि इसके तहत, अन्य जातियों का विवरण एकत्र नहीं किया जाता है।
- जनगणना की मुख्य पद्धति के अंतर्गत, सभी नागरिक गणनाकार के लिए ‘स्व-घोषित’ जानकारी प्रदान करते हैं।
- अब तक, विभिन्न राज्यों में ‘पिछड़ा वर्ग आयोगों’ द्वारा पिछड़ी जातियों की जनसंख्या का पता लगाने हेतु अपनी-अपनी गणना की जाती रही है।
जनगणना में किस प्रकार के जाति संबंधी आंकड़े प्रकाशित किए जाते हैं?
- स्वतंत्र भारत में, 1951 से 2011 के बीच की गई प्रत्येक जनगणना में केवल अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों पर आंकड़े प्रकाशित किए गए हैं। अन्य जातियों के विवरण को जनगणना में प्रकाशित नहीं किया गया है।
- हालांकि, इससे पहले वर्ष 1931 तक की गई प्रत्येक जनगणना में जाति संबंधी आंकड़े प्रकशित किए जाते थे।
‘सामाजिक-आर्थिक और जातिगत जनगणना’ (SECC) 2011 के बारे में:
वर्ष 2011 में आयोजित ‘सामाजिक-आर्थिक और जातिगत जनगणना’ (Socio-Economic and Caste Census- SECC) विभिन्न समुदायों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति के बारे में आंकड़े प्राप्त करने के लिए एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम था।
- इसके दो घटक थे: पहला, ग्रामीण और शहरी परिवारों का एक सर्वेक्षण तथा पूर्व निर्धारित मापदंडों के आधार पर इन परिवारों की रैंकिंग, और दूसरा ‘जातिगत जनगणना’।
- हालांकि, सरकार द्वारा केवल ग्रामीण और शहरी परिवारों में लोगों की आर्थिक स्थिति का विवरण जारी किया गया था। जाति संबंधी आंकड़े अभी तक जारी नहीं किए गए हैं।
‘जनगणना’ और ‘सामाजिक-आर्थिक और जातिगत जनगणना’ में अंतर:
- जनगणना, भारत की आबादी की तस्वीर प्रदान करती है, जबकि सामाजिक-आर्थिक और जातिगत जनगणना’ (SECC) राज्य द्वारा सहायता प्राप्त करने वाले लाभार्थियों की पहचान करने का एक उपकरण होती है।
- ‘जनगणना’, ‘जनगणना अधिनियम’ 1948 (Census Act of 1948) के अंतर्गत आती है और इसके सभी आकड़ों को गोपनीय माना जाता है, जबकि SECC के तहत दी गई सभी व्यक्तिगत जानकारी, सरकारी विभागों द्वारा परिवारों को लाभ प्रदान करने और/या रोकने हेतु उपयोग करने के लिए उपलब्ध रहती है।
जातिगत जनगणना के लाभ:
प्रत्येक जाति की आबादी की सटीक संख्या, सभी का समान प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने हेतु आरक्षण नीति को तैयार करने में मदद करेगी।
संबंधित चिंताएं:
- संभावना है, कि जातिगत जनगणना से कुछ वर्गों में नाराज़गी पैदा होगी और कुछ समुदाय अपने लिए अधिक या अलग कोटा की मांग करेंगे।
- कथित तौर यह माना जाता है, कि मात्र व्यक्तियों को किसी जाति से जुड़े होने का ठप्पा लगाने से, समाज में जाति-व्यवस्था हमेशा बनी रह सकती है।
इंस्टा जिज्ञासु:
क्या आप जानते हैं, कि ‘आईना-ए-अकबरी’ में जनसंख्या, उद्योग, धन और कई अन्य विशेषताओं से संबंधित व्यापक आंकड़े मिलते हैं? इस पुस्तक में अन्य किन विषयों का विवरण दिया गया है?
प्रीलिम्स लिंक:
- ‘जनगणना’ क्या है?
- इस संबंध में वैधानिक प्रावधान
- ‘जनगणना’ की विधि
- जनगणना 2011 की प्रमुख विशेषताएं
- ‘राष्ट्रीय पिछड़ा आयोग’ के बारे में
मेंस लिंक:
जाति आधारित जनगणना की आवश्यकता और महत्व पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: द हिंदू।
विषय: सांविधिक, विनियामक और विभिन्न अर्द्ध-न्यायिक निकाय।
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण
संदर्भ:
28 सितंबर को ‘राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण’ (National Disaster Management Authority – NDMA) का 17वां स्थापना दिवस मनाया गया।
NDMA के बारे में:
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA), भारत में आपदा प्रबंधन के लिए सर्वोच्च वैधानिक निकाय है।
- इसका गठन 27 सितंबर 2006 को आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के तहत किया गया था।
- ‘राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण’ आपदा प्रबंधन के लिए नीतियों, योजनाओं और दिशानिर्देशों को निर्धारित करने के लिए जिम्मेवार निकाय है।
- राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के पांच प्रमुख प्रभाग नीति एवं योजना प्रभाग, प्रशमन प्रभाग, प्रचालन प्रभाग, संचार तथा सूचना प्रौद्योगिकी प्रभाग, प्रशासन और वित्त प्रभाग हैं।
कृपया ध्यान दें, ‘आपदा प्रबंधन अधिनियम’ के अंतर्गत, भारत में आपदा प्रबंधन के लिए समग्र और एकीकृत कार्यविधि लागू करने हेतु, प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में ‘राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण’ (NDMA) और राज्यों के मुख्यमंत्रियों की अध्यक्षता में ‘राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण’ (SDMAs) के विनिर्माण की परिकल्पना की गई है।
कार्यकलाप और उत्तरदायित्व:
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण, शीर्ष निकाय के रूप में, आपदा प्रबंधन के लिए नीतियों, योजनाओं और दिशानिर्देशों को निर्धारित करता है, ताकि आपदाओं के लिए समय पर और प्रभावी प्रक्रिया सुनिश्चित की जा सके। इस दिशा में, इसकी निम्नलिखित जिम्मेदारियां हैं:
- आपदा प्रबंधन के संबंध में नीतियां निर्धारित करना।
- राष्ट्रीय योजना का अनुमोदन करना।
- राष्ट्रीय योजना के अनुसार भारत सरकार के मंत्रालयों या विभागों द्वारा तैयार की गई योजनाओं का अनुमोदन करना।
- राज्य योजना तैयार करने में राज्य प्राधिकरणों द्वारा अपनाए जाने वाले दिशानिर्देशों का निर्धारण करना।
- भारत सरकार के विभिन्न मंत्रालयों या विभागों द्वारा उनकी विकास योजनाओं और परियोजनाओं में आपदा की रोकथाम के उपायों अथवा इसके प्रभावों के शमन के उपायों को एकीकृत करने के लिए दिशानिर्देशों का निर्धारण करना।
- आपदा प्रबंधन के लिए नीति और योजना के लिए प्रतर्वन और कार्यान्वयन को समन्वित करना।
- प्रशमन के उद्देश्य के लिए निधियों के प्रावधान की सिफारिश करना।
- केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित प्रमुख आपदाओं से प्रभावित अन्य देशों को सहायता प्रदान करना।
- आपदा की रोकथाम या आपदा स्थितियों या आपदाओं से निपटने के लिए शमन या तैयारी और क्षमता निर्माण के लिए जो भी आवश्यक हो, उपाय करना।
- राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान (एनआईडीएम) के कार्यान्वयन के बारे में व्यापक नीतियों और दिशानिर्देशों को निर्धारित करना।
प्रीलिम्स लिंक:
- ‘आपदा प्रबंधन अधिनियम’ क्या है?
- इस अधिनियम के तहत स्थापित निकाय
- राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) की संरचना
- आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत राज्यों और केंद्र की शक्तियां
- अधिसूचित आपदा क्या है?
- NDRF के कार्य
- तरल ऑक्सीजन और इसके उपयोग के बारे में।
मेंस लिंक:
क्या आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005, देश के मुख्य आपदा प्रबंधन कानून के अनुकूल नहीं है? वर्तमान स्थिति में एक महामारी कानून की आवश्यकता का विश्लेषण कीजिए।
स्रोत: द हिंदू।
सामान्य अध्ययन- III
विषय: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन।
आज के समय में पैदा हुए बच्चों पर जलवायु परिवर्तन का बोझ
संदर्भ:
हाल ही में शोधकर्ताओं द्वारा ‘आज के समय में पैदा हुए बच्चों पर जलवायु परिवर्तन का बोझ’ पर एक अध्ययन प्रकाशित किया गया था।
यह अध्ययन ‘इंटर-सेक्टोरल इंपैक्ट मॉडल इंटरकंपेरिज़न प्रोजेक्ट’ (ISIMIP) के डेटा पर आधारित है।
अध्ययन की कार्यविधि:
अंतर-सरकारी जलवायु परिवर्तन समिति (Intergovernmental Panel on Climate Change- IPCC) द्वारा देश-स्तर पर जीवन-प्रत्याशा आंकड़ों, जनसंख्या आंकड़ों और तापमान प्रक्षेप-पथों (Temperature Trajectories) के साथ-साथ ISIMIP के आंकड़ों का उपयोग किया गया था।
प्रमुख निष्कर्ष:
- आज के समय में पैदा हुए बच्चे, वर्तमान वयस्कों की तुलना में चरम जलवायु की घटनाओं से अधिक प्रभावित होंगे।
- 2021 में पैदा हुए वच्चों के, अपने जीवनकाल के दौरान, वर्तमान में 60 वर्ष की आयु वाले व्यक्ति की तुलना में, लगभग दोगुनी वनाग्नि की घटनाओं, दो से तीन गुना अधिक सूखा, लगभग तीन गुना अधिक नदीय बाढ़ और फसल खराब होने की घटनाओं और लगभग सात गुना अधिक ग्रीष्म-लहरों का सामना करने की संभावना है।
आवश्यकता:
वर्तमान “अपर्याप्त” जलवायु नीतियों के परिदृश्य में, खतरनाक चरम ग्रीष्म-लहरों की घटनाएं, जो आज वैश्विक भूमि क्षेत्र के लगभग 15% को प्रभावित करती हैं, इस सदी के अंत तक 46% तक तिगुनी हो सकती हैं।
हालांकि, यदि:
- जैसा कि पेरिस जलवायु समझौते के तहत तय किया गया है, सभी देश अपनी जलवायु नीतियों का पालन करते हैं तो यह प्रभाव 22% तक सीमित हो सकता है। जो कि, वर्तमान में चरम जलवायु से प्रभावित वैश्विक भूमि क्षेत्र से सिर्फ सात प्रतिशत अंक अधिक होगा।
- यदि हम वर्तमान उत्सर्जन कटौती के लिए किए वादों को पूरा करते हुए जलवायु संरक्षण को बढ़ाते हैं और 1.5-डिग्री लक्ष्य के अनुरूप कार्रवाई करते हैं, तो हम विश्व स्तर पर, युवाओं के लिए चरम जलवायु घटनाओं के लिए संभावित जोखिम को औसतन 24% तक कम कर सकते हैं।
इंटर-सेक्टोरल इंपैक्ट मॉडल इंटरकंपेरिज़न प्रोजेक्ट (ISIMIP) क्या है?
यह एक समुदाय द्वारा संचालित जलवायु-प्रभाव प्रतिरूपण पहल है, जिसके तहत जलवायु परिवर्तन के विभिन्न प्रभावों का आकलन किया जाता है।
यह पहल, पॉट्सडैम इंस्टीट्यूट फॉर क्लाइमेट इम्पैक्ट रिसर्च (Potsdam Institute for Climate Impact Research – PIK) और ‘इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर एप्लाइड सिस्टम्स एनालिसिस’ (IIASA) द्वारा शुरू की गयी है, और इसमें पूरे विश्व में 100 से अधिक मॉडलिंग समूह शामिल हो चुके हैं।
भागीदार:
गैर सरकारी संगठन, निजी क्षेत्र, नीति-/निर्णय निर्माता।
कार्यप्रणाली:
इंटर-सेक्टोरल इंपैक्ट मॉडल इंटरकंपेरिज़न प्रोजेक्ट (ISIMIP) को एक सिमुलेशन राउंड में व्यवस्थित किया जाता है, जो एक फोकस विषय पर निर्देशित होता है। प्रत्येक राउंड के लिए, एक सिमुलेशन प्रोटोकॉल, फोकस विषय के आधार पर सामान्य सिमुलेशन परिदृश्यों के एक सेट को परिभाषित करता है। भाग लेने वाले मॉडलिंग समूहों को ‘जलवायु इनपुट डेटा’ का एक सामान्य सेट प्रदान किया जाता है। सभी क्षेत्रों में सुसंगत प्रभाव सिमुलेशन सुनिश्चित करने के लिए अन्य डेटा भी आवश्यक होते हैं।
इंस्टा जिज्ञासु:
महत्वपूर्ण जलवायु शिखर सम्मेलनों के बारे में जानिए।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस।
विषय: आपदा और आपदा प्रबंधन।
आगामी 25 वर्षों में पंजाब का मरुस्थलीकरण
संदर्भ:
जल स्तर में कमी का अध्ययन करने हेतु गठित पंजाब विधानसभा समिति ने हाल ही में कहा है, कि यदि भूमिगत जलभृतों (Underground Aquifers) से पानी खींचने की वर्तमान प्रवृत्ति जारी रही तो राज्य अगले 25 वर्षों में रेगिस्तान में बदल जाएगा।
इस प्रकार की एक भविष्यवाणी पहले भी की जा चुकी है। लगभग दो दशक पहले, पंजाब के जल स्तर में कमी पर एक अध्ययन (द स्टेट ऑफ द वर्ल्ड रिपोर्ट, 1998) में लगभग 25 वर्षों की समय सीमा का अनुमान लगाते हुए कहा गया था कि पंजाब में सभी जलभृत लगभग 2025 तक समाप्त हो सकते हैं।
पंजाब में पानी की स्थिति वाकई कितनी चिंताजनक है?
- पंजाब के 138 ब्लॉकों में से, 109 ब्लाक पहले ही ‘गहरे’ या अति-शोषित क्षेत्र में पहुँच चुके हैं, जिसका अर्थ है कि इन क्षेत्रों में भूजल की निकासी 100 प्रतिशत से अधिक है।
- दो ब्लाक, ‘डार्क/क्रिटिकल’ जोन (भूजल निष्कर्षण 90 से 100 प्रतिशत) के अंतर्गत आते हैं, जबकि पांच ब्लाक, सेमी-क्रिटिकल (भूजल निकासी 70 से 90 प्रतिशत) क्षेत्र के अंतर्गत आते हैं।
- इसका अर्थ है कि राज्य के करीब 80 फीसदी ब्लॉक पहले ही सूख चुके हैं और चार फीसदी ब्लॉक सूखने की कगार पर हैं।
- 3 से 10 मीटर की गहराई पर पानी की उपलब्धता, जिसे पानी निकालने के लिए एक सेंट्रीफ्यूगल पंप की आवश्यकता होती है, सर्वाधिक वांछनीय है। लेकिन वर्तमान में, पंजाब के लगभग 84 प्रतिशत भूभाग में पानी 20 से 30 मीटर, या 30 मीटर से भी अधिक नीचे मिल पाता है।
इस कमी के कारण:
- जितना पानी जलभृतों में भरा जा रहा है, उससे कही ज्यादा पानी निकाला जा रहा है। पंजाब में जल निकासी की दर पुनःपूर्ति दर के मुकाबले 1.66 गुना अधिक है।
- दोषपूर्ण फसल पद्धति को अपनाने के कारण जल निकासी की दर बढ़ती जा रही है। रोपाई के लिए खेतों को तैयार करने के लिए ‘पडलिंग विधि’ (Puddling Method) इस्तेमाल की जाती है, जिसकी वजह से पानी के पुनःपूर्ति में बाधा उत्पन्न होती है।
आवश्यकता:
किसानों को कम पानी की आवश्यकता वाले ‘फसल प्रतिरूप’ को चुनने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, और हमारे यहाँ एकमात्र उपलब्ध गहरे जलभृतों को बचाने के लिए ‘ड्रिप सिंचाई’ या अन्य ‘जल प्रबंधन तंत्र’ को अपनाना चाहिए।
इंस्टा जिज्ञासु:
भारत सरकार द्वारा हाल ही में मरुस्थलीकरण और भूमि क्षरण एटलस जारी किया गया था। इसमें क्या है? इसका संक्षिप्त अवलोकन करिए।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस।
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य
विश्व समुद्री दिवस
इस वर्ष 30 सितंबर को ‘विश्व समुद्री दिवस’ को मनाया गया।
- इस दिन का महत्व समुद्री क्षेत्र के लिए अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन (आईएमओ) के महत्व पर जोर देना और समुद्री सुरक्षा, समुद्री रक्षा और समुद्री पर्यावरण के प्रति इसके योगदान पर जोर देना है।
- विश्व समुद्री दिवस पहली बार 17 मार्च, 1978 को 1958 में आईएमओ के पहले सम्मेलन को लागू करने के अवसर को चिह्नित करने के लिए मनाया गया था।
- तब से हर साल सितंबर के अंतिम सप्ताह के दौरान विश्व समुद्री दिवस विश्व स्तर पर मनाया जाता है।
2021 के लिए थीम “नाविक: नौपरिवहन के भविष्य का आधार” (Seafarers: at the core of shipping’s future) है।
जोजिला सुरंग
‘जोजिला सुरंग’ (Zojila tunnel) श्रीनगर घाटी और लेह के मध्य पूरे साल संपर्क बनाए रखने में सक्षम होगी।
- यह एशिया की सबसे लंबी द्वि-दिशात्मक (Bi-Directional) सुरंग होगी।
- यह सुरंग प्रसिद्ध जोजिला दर्रे से होती हुई श्रीनगर, द्रास, कारगिल और लेह से जोड़ेगी।
- समुद्र तल से 11,500 फीट से अधिक ऊंचाई पर स्थित यह सभी मौसमी में क्रियाशील ‘जोजिला टनल’ की लम्बाई 14.15 किमी होगी।
- ‘जोजिला सुरंग’ NH-1 के 434 किलोमीटर लंबे श्रीनगर-कारगिल-लेह खंड पर यात्रा को हिमस्खलन की घटनाओं से मुक्त करेगी, सुरक्षा बढ़ाएगी और यात्रा के समय को 3 घंटे से अधिक से घटाकर केवल 15 मिनट कर देगी।
संदर्भ:
सरकार द्वारा वर्ष 2024 के गणतंत्र दिवस से पहले कश्मीर और लद्दाख में अपनी दर्शनीय अवसंरचना परियोजना, ‘जोजिला सुरंग’ को पूरा करने पर जोर दिया जा रहा है।
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