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[Mission 2022] INSIGHTS करेंट अफेयर्स+ पीआईबी नोट्स [ DAILY CURRENT AFFAIRS + PIB Summary in HINDI ] 14 September 2021

 

विषय सूची:

सामान्य अध्ययन-I

1. सारागढ़ी का युद्ध

 

सामान्य अध्ययन-II

1. राष्ट्रीय वित्तीय रिपोर्टिंग प्राधिकरण

2. राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग

 

सामान्य अध्ययन-III

1. दिवाला और दिवालियापन संहिता

2. इनपुट टैक्स क्रेडिट (आईटीसी)

3. जलवायु परिवर्तन पर ‘ग्राउंड्सवेल’ रिपोर्ट

 

प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य

1. क्लाइमेट एक्शन एंड फाइनेंस मोबिलाइजेशन डायलॉग

2. T+1 निपटान प्रणाली

 


सामान्य अध्ययन- I


 

विषय: 18वीं सदी के लगभग मध्य से लेकर वर्तमान समय तक का आधुनिक भारतीय इतिहास- महत्त्वपूर्ण घटनाएँ, व्यक्तित्व, विषय।

 सारागढ़ी की लड़ाई


इस वर्ष 12 सितंबर को ‘सारागढ़ी की लड़ाई’ (Battle of Saragarhi) को 124 वर्ष पूरे हो गए। इस लड़ाई से देश-विदेश की सेनाएं प्रेरणा लेती है, और इसके ऊपर कई किताबें लिखी जा चुकी हैं और कई फिल्मे भी बन चुकी हैं।

‘सारागढ़ी का लड़ाई’ के बारे में:

सारागढ़ी का युद्ध 12 सितंबर 1897 को लड़ा गया था। इसे विश्व के सैन्य इतिहास में सबसे बेहतरीन अंतिम मोर्चों में से एक माना जाता है।

  • इस युद्ध में ब्रिटिश सेना के इक्कीस सैनिकों ने 8,000 से अधिक अफरीदी और ओरकजई कबायली लड़ाकों का मुकबला किया था, और उन्होंने सात घंटों तक किले पर कब्ज़ा नहीं होने दिया।
  • हालांकि, गिनती में काफी कम होने के बाबजूद, 36वीं सिख प्लाटून के सैनिकों ने हवलदार ईशर सिंह के नेतृत्व में अपनी अंतिम सांस तक लड़ाई लड़ी, जिसमें 200 कबायली मारे गए और 600 से अधिक बुरी तरह से घायल हुए थे।

सारागढ़ी का महत्व:

सारागढ़ी का किला, ‘फोर्ट लॉकहार्ट’ और ‘फोर्ट गुलिस्तान’ के बीच स्थित संचार दुर्ग था।

  • ऊबड़ खाबड़ ‘उत्तर पश्चिम सीमांत प्रांत’ (NWFP) में स्थित इन दोनों किलों (जो अब पाकिस्तान में हैं) का निर्माण महाराजा रणजीत सिंह ने करवाया था, बाद में अंग्रेजों ने इनका नाम परिवर्तित कर दिया था।
  • इन दोनों महत्वपूर्ण किलों में, ‘उत्तर पश्चिम सीमांत प्रांत’ के बीहड़ इलाके में बड़ी संख्या में तैनात किए जाने वाले ब्रिटिश सैनिक रहते थे, सारागढ़ी का किला, इन दोनों किलों में संपर्क कायम रखने में सहायक था।

इस युद्ध की विरासत:

तत्कालीन ब्रिटेन में मरणोपरांत वीरता पदक नहीं देने की परंपरा थी। इस परंपरा को तोड़ते हुए महारानी विक्टोरिया ने 36वीं सिख प्लाटून के 21 शहीद सैनिकों – गैर-सैनिक कार्य करने वाले शहीद को छोड़कर – के लिए प्रत्येक को 500 रुपये, दो ‘मरबा’ (50 एकड़) जमीन और ‘इंडियन ऑर्डर ऑफ मेरिट’ (विक्टोरिया क्रॉस के समान पदक) से सम्मानित किया।

  • कुछ दिनों के बाद, अंग्रेजों ने किले पर फिर से अधिकार कर लिया और सारागढ़ी की जली हुई ईंटों से शहीदों के लिए एक स्मारक स्तंभ का निर्माण करवाया।
  • अंग्रेजों ने इन शहीदों के सम्मान में अमृतसर और फिरोजपुर में गुरुद्वारों की स्थापना की।

 

इंस्टा जिज्ञासु:

क्या आप ‘गंडमक की संधि’ (Treaty of Gandamak) के बारे में जानते हैं? इस संधि के परिणामस्वरूप. दूसरे अफगान युद्ध (1878-80) के पश्चात् अफगान विदेश नीति पर अंग्रेजों के नियंत्रण में आ गयी थी।

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. ‘सारागढ़ी का लड़ाई’ के बारे में
  2. कारण
  3. परिणाम
  4. प्रमुख प्रतिभागी

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस।

 


सामान्य अध्ययन- II


 

विषय: सांविधिक, विनियामक और विभिन्न अर्द्ध-न्यायिक निकाय।

 राष्ट्रीय वित्तीय रिपोर्टिंग प्राधिकरण (NFRA)


(National Financial Reporting Authority)

संदर्भ:

हितधारकों के साथ संबंध प्रगाढ़ करने के प्रयास में, राष्ट्रीय वित्तीय रिपोर्टिंग प्राधिकरण (National Financial Reporting Authority – NFRA) द्वारा एकल हितधारकों के सलाहकार समूह का गठन किया जाएगा और साथ ही समूह की सहायता हेतु एक शोध प्रकोष्ठ की स्थापना की जाएगी।

आवश्यकता:

इस संदर्भ में किए गए सर्वेक्षण में अधिकांश उत्तरदाताओं ने लंबे समय तक एक तरफ़ा / स्टैंड-अलोन तरीके से कानून बनाने की प्रक्रिया के बजाय एक ‘समाधान तंत्र’ स्थापित किए जाने की तत्काल आवश्यकता पर जोर दिया था।

राष्ट्रीय वित्तीय रिपोर्टिंग प्राधिकरण (NFRA) के बारे में:

‘राष्ट्रीय वित्तीय रिपोर्टिंग प्राधिकरण’ का गठन भारत सरकार द्वारा कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 132 (1) के तहत 01 अक्तूबर, 2018 को किया गया था।

आवश्यकता:

इसका उद्देश्‍य स्‍वतंत्र विनियामकों को स्‍थापित करना और लेखापरीक्षा मानकों को लागू करना, लेखापरीक्षा की गुणवत्ता व लेखापरीक्षा फर्मों की स्‍वतंत्रता को सुदृढ़ बनाना है। अतएव, कंपनियों की वित्‍तीय स्‍थिति के प्रकटीकरण में निवेशक और सार्वजनिक तंत्र का विश्‍वास बढ़ाना है।

NFRA की संरचना:

कंपनी अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार, राष्ट्रीय वित्तीय रिपोर्टिंग प्राधिकरण में एक अध्यक्ष तथा अधिकतम 15 सदस्य होंगे। अध्यक्ष की नियुक्ति केंद्र सरकार द्वारा की जायेगी।

प्रकार्य और कर्त्तव्य:

  1. केंद्रीय सरकार द्वारा अऩुमोदन के लिए लेखाकर्म और लेखापरीक्षा नीतियां तथा कंपनियों द्वारा अपनाए जाने वाले मानकों की अनुशंसा करना;
  2. लेखाकर्म मानकों और लेखापरीक्षा मानकों सहित अनुपालन वाले की निगरानी और लागू करना;
  3. ऐसे मानकों सहित अनुपालन सुनिश्चित करने वाले व्यवसायों की सेवा की गुणवत्ता का पर्यवेक्षण करना;
  4. उक्त प्रकार्यों और कर्त्तव्यों के लिए आवश्यक अथवा अनुषंगी ऐसे अऩ्य प्रकार्य और कर्त्तव्यों का निष्पादन करना।

शक्तियां:

  • NFRA यह सूचीबद्ध कंपनियों तथा गैर-सूचीबद्ध सार्वजनिक कंपनियों की जांच कर सकता है जिनकी जिनकी प्रदत्त पूंजी पांच सौ करोड़ रुपये से कम न हो अथवा वार्षिक कारोबार एक हजार करोड़ रुपये से कम न हो।
  • यह किसी नियत वर्ग के वाणिज्यिक संस्थान अथवा किसी व्यक्ति के संबंध में इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड अकाउंटेंट ऑफ इंडिया (ICAI) के सदस्यों द्वारा किए गए पेशेवर कदाचार की जांच कर सकता है।

 

इंस्टा जिज्ञासु:

क्या आपने जीएसटी के तहत ‘कंपोजिशन स्कीम’ के बारे में सुना है? इसके उद्देश्य एवं अहर्ता क्या हैं?

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. NFRA का गठन किस प्रावधान के तहत किया गया है?
  2. ICAI के बारे में।
  3. NFRA की संरचना।
  4. कंपनी अधिनियम 2013- प्रमुख प्रावधान।

मेंस लिंक:

राष्ट्रीय वित्तीय रिपोर्टिंग प्राधिकरण (NFRA) के प्रमुख कार्यों पर चर्चा करें और इसके महत्व पर एक टिप्पणी लिखिए।

स्रोत: द हिंदू।

 

विषय: सांविधिक, विनियामक और विभिन्न अर्द्ध-न्यायिक निकाय।

राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (NCM)


(National Commission for Minorities)

संदर्भ:

हाल ही में, पूर्व आईपीएस अधिकारी इकबाल सिंह लालपुरा को ‘राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग’ (National Commission for Minorities – NCM) का अध्यक्ष चुना गया है।

NCM के बारे में:

  • राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (NCM) की स्थापना केंद्र सरकार द्वारा ‘राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम’, 1992 के अंतर्गत की गयी है।
  • यह आयोग, भारत के संविधान में प्रदत्त तथा संसद और राज्य विधानमंडलों द्वारा अधिनियमित कानून के अनुसार अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा और सुरक्षा हेतु किए गए संरक्षोपायों के कामकाज की निगरानी करता है।

कृपया ध्यान दें, छह धार्मिक समुदायों, अर्थात, मुस्लिम, ईसाई, सिख बौद्ध, पारसी और जैन को को पूरे भारत में केंद्र सरकार द्वारा भारत के राजपत्र में अल्पसंख्यक समुदायों के रूप में अधिसूचित किया गया है।

पृष्ठभूमि:

अल्पसंख्यक आयोग (Minorities Commission) को गठित किए जाने संबंधी परिकल्पना वर्ष 1978 में गृह मंत्रालय के संकल्प-पत्र में की गई थी।

  • वर्ष 1984 में, ‘अल्पसंख्यक आयोग’ को गृह मंत्रालय से अलग कर दिया गया और इसे नव निर्मित ‘लोक कल्याण मंत्रालय’ के अधीन रखा गया।
  • वर्ष 1992 में, ‘राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम (NCM अधिनियम), 1992′ को अधिनियमित किया गया, और इसके तहत ‘अल्पसंख्यक आयोग’ को वैधानिक निकाय का दर्जा प्राप्त हुआ साथ ही इसका नाम बदलकर ‘राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग’ (NCM) कर दिया गया।
  • वर्ष 1993 में, पांच धार्मिक समुदायों अर्थात, मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध और पारसी को अल्पसंख्यक समुदायों के रूप में अधिसूचित किया गया था।
  • तत्पश्चात, 27 जनवरी, 2014 को केंद्र सरकार की अधिसूचना के तहत जैन समुदाय को भी अल्पसंख्यक समुदाय के रूप में अधिसूचित किया गया।

आयोग की संरचना:

  • ‘राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग’ में एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष और पांच सदस्य होते हैं और ये सभी अल्पसंख्यक समुदायों से चुने जाते हैं।
  • इनके अलावा, आयोग में केंद्र सरकार द्वारा सात अन्य प्रतिष्ठित, योग्य और सत्यनिष्ठ सदस्य मनोनीत किए जाते है।
  • प्रत्येक सदस्य पद ग्रहण करने की तिथि से तीन वर्ष की अवधि के लिए पद धारण करता है।

अल्पसंख्यकों की सुरक्षा हेतु अन्य संवैधानिक प्रावधान:

  • अनुच्छेद 15 और 16
  • अनुच्छेद 25
  • अनुच्छेद 26
  • अनुच्छेद 28
  • अनुच्छेद 29
  • अनुच्छेद 30
  • अनुच्छेद 350-B: 7वें संवैधानिक (संशोधन) अधिनियम 1956 द्वारा इस अनुच्छेद को संविधान में जोड़ा गया था। इसमें, भाषाई अल्पसंख्यक-वर्गों के लिए भारत के राष्ट्रपति द्वारा एक विशेष अधिकारी नियुक्त किए जाने का प्रावधान किया गया है।

(उपरोक्त अनुच्छेदों के बारे में जानिए) ।

क्या आप जानते हैं कि अल्पसंख्यक स्कूलों को ‘शिक्षा का अधिकार नीति’ लागू करने से छूट दी गई है और यह सरकार के ‘सर्व शिक्षा अभियान’ के अंतर्गत भी नहीं आते हैं। इस बारे में अधिक जानने हेतु पढ़िए

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (NCM) के बारे में
  2. संरचना
  3. कार्य
  4. भारत में अल्पसंख्यक समूह
  5. अल्पसंख्यक सूची से शामिल करने या बाहर करने हेतु अपनाई जाने वाली प्रक्रिया

मेंस लिंक:

संविधान द्वारा अल्पसंख्यकों को प्रदत्त अधिकारों की विवेचना कीजिए।

स्रोत: द हिंदू।

 


सामान्य अध्ययन- III


 

विषय: उदारीकरण का अर्थव्यवस्था पर प्रभाव, औद्योगिक नीति में परिवर्तन तथा औद्योगिक विकास पर इनका प्रभाव।

दिवाला और दिवालियापन संहिता (IBC)


(Insolvency and Bankruptcy Code)

संदर्भ:

हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा, कि वर्ष 2016 की ‘दिवाला और दिवालियापन संहिता’ (Insolvency and Bankruptcy Code – IBC) से पहले भारत में ‘दिवाला संबंधी मामलों’ के निपटाने वाले तंत्र की विफलता का मुख्य कारण “न्यायिक देरी” थी। आईबीसी में ‘कंपनी कानून अधिकरणों’ से नए क़ानून के तहत समय सीमा का “कड़ाई से पालन” करने और समाधान के लिए लंबित मामलों का निपटारा करने का आग्रह किया गया है।

संबंधित प्रकरण:

‘दिवाला और दिवालियापन संहिता’ (IBC) में, ‘कॉर्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया’ (corporate insolvency resolution process – CIRP) को पूरा करने हेतु अधिकतम 330 दिनों की समय सीमा निर्धारित की गयी  है।

यद्यपि, पिछले महीने प्रकाशित एक संसदीय समिति की रिपोर्ट के अनुसार, कि 71 प्रतिशत से अधिक मामले अधिकरणों के समक्ष 180 दिनों से अधिक समय से लंबित हैं।

देरी के कारण:

  1. ‘राष्ट्रीय कंपनी विधि अपीलीय अधिकरण’ (NCLAT) के लिए ‘कॉर्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया’ (CIRP) को शुरू करने में काफी समय लगता है।
  2. कानूनी झगड़ों की अधिकता।
  3. NCLAT और सुप्रीम कोर्ट में की जाने वाली अपीलें।

इस तरह की देरी के प्रभाव:

  • निर्णायक प्राधिकरण (NCLAT) द्वारा समाधान योजना को मंजूरी देने में अधिक देरी, परिणामी योजना के कार्यान्वयन को प्रभावित करती है।
  • संस्थागत और बारंबार होने वाली, इस प्रकार की देरी से,समझौता-वार्ता के दौरान पक्षकारों द्वारा किए जाने वाले वाणिज्यिक मूल्यांकन पर एक निश्चित प्रभाव पड़ता है।
  • इसके अलावा, इस प्रकार के बिलंब, व्यावसायिक अनिश्चितता और कॉर्पोरेट देनदार की कीमतों में गिरावट का कारण बनते हैं और दिवाला प्रक्रिया को अक्षम और महंगा बनाते हैं।

दिवाला और दिवालियापन संहिता (IBC)  के बारे में:

IBC को वर्ष 2016 में अधिनियमित किया गया था, इसका उद्देश्य विफल व्यवसायों से संबधित निपटान कार्यवाहियों में तीव्रता लाना तथा आर्थिक सुधारों को प्रोत्साहन देना था।

  • यह संहिता, सभी वर्गों के ऋण-दाताओं तथा ऋण-कर्ताओं के लिए इन्सॉल्वेंसी- निपटान हेतु, मौजूदा विधायी ढांचे के प्रावधानों को समेकित करके एक मंच प्रदान करती है।

दिवाला प्रकिया निस्तारण सुविधा हेतु संहिता के अंतर्गत गठित संस्थाएं:

  1. दिवाला पेशेवर’ (Insolvency Professionals)
  2. ‘पेशेवर दिवाला एजेंसियां’ (Insolvency Professional Agencies)
  3. सूचना सुविधाएँ (Information Utilities)
  4. निर्णायक प्राधिकरण (Adjudicating authorities) जैसेकि, राष्ट्रीय कंपनी विधि अधिकरण (NCLT); और ऋण वसूली अधिकरण (DRT)।
  5. दिवाला और दिवालियापन बोर्ड (Insolvency and Bankruptcy Board)

 

इंस्टा जिज्ञासु:

हाल ही में, दिवाला और दिवालियापन संहिता (संशोधन) विधेयक, 2021 के माध्यम से ‘सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSMEs) के लिए दिवाला समाधान तंत्र के रूप में ‘प्री-पैक’ का प्रस्ताव रखा गया है। ‘प्री-पैक’ क्या हैं?

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. दिवाला और दिवालियापन क्या है?
  2. IBC कोड के तहत स्थापित विभिन्न संस्थाएं
  3. राष्ट्रीय कंपनी विधि अधिकरण (NCLT) – संरचना तथा कार्य
  4. ऋण वसूली अधिकरण क्या हैं?
  5. आईबीसी की धारा 7, 9 और 10

मेंस लिंक:

दिवाला प्रक्रिया कार्यवाहीयों के निलंबन से कोविड -19 के प्रकोप से प्रभावित कंपनियों को किस प्रकार सहायता मिलेगी। चर्चा कीजिए।

स्रोत: द हिंदू।

 

विषय: भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधनों को जुटाने, प्रगति, विकास तथा रोज़गार से संबंधित विषय।

इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC)


संदर्भ:

हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास उच्च न्यायालय द्वारा अप्रयुक्त ‘इनपुट टैक्स क्रेडिट’ संबंधी एक फैसले की पुष्टि की है, इस फैसले में उच्च न्यायालय ने निवेशित सेवाओं की वजह से संचित होने वाले अप्रयुक्त ‘इनपुट टैक्स क्रेडिट’ (Input Tax Credit – ITC) की वापसी को निष्पादित करने हेतु ‘केंद्रीय वस्तु एवं सेवा कर’ (CGST) नियमों में शामिल एक वित्तीय सूत्र को बरकरार रखा था।

पृष्ठभूमि:

मद्रास उच्च न्यायालय द्वारा पिछले साल दिए गए एक फैसले के अनुसार, केंद्रीय माल और सेवा कर (Central Goods and Service Tax – CGST) अधिनियम की धारा 54 (3), जिसके तहत ‘व्युत्क्रमित शुल्क-संरचना’ (Inverted Duty Structure) की वजह से कर-संचय होने पर ‘इनपुट टैक्स क्रेडिट’ (ITC) की वापसी का प्रावधान है, संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन नहीं करती है। अधिनियम में कहा गया है, कि व्युत्क्रमित शुल्क-संरचना’ के तहत कर-वापसी केवल चुकाए गए टैक्स पर की जाएगी न कि निवेशित सेवाओं पर।

‘इनपुट टैक्स क्रेडिट’ (ITC) क्या होता है?

  • यह किसी कारोबार द्वारा माल की ‘खरीद’ पर भुगतान किया जाने वाला ‘कर’ होता है, और माल की बिक्री करने पर ‘कर-देयता’ (Tax Liability) को कम करने के लिए इसका उपयोग किया जा सकता है।
  • सरल शब्दों में, इनपुट क्रेडिट का मतलब आउटपुट पर टैक्स देते समय इनपुट पर चुकाए गए टैक्स को घटाकर शेष राशि का भुगतान करना है।

अपवाद: ‘कंपोजिशन स्कीम’ के तहत कोई व्यवसाय इनपुट टैक्स क्रेडिट का लाभ नहीं उठा सकता है। ‘इनपुट टैक्स क्रेडिट’ (ITC) का उपयोग व्यक्तिगत उपयोग के लिए अथवा छूट वाले सामानों के लिए  नहीं किया जा सकता है।

इसके दुरुपयोग पर चिंता:

  1. केवल टैक्स क्रेडिट का दावा करने के लिए नकली चालान बनाकर बेईमान व्यवसायों द्वारा प्रावधान के दुरुपयोग की संभावना हो सकती है।
  2. कुल जीएसटी देयता का 80% तक ITC द्वारा निपटान किया जा रहा है और केवल 20% नकद के रूप में जमा किया जा रहा है।
  3. वर्तमान व्यवस्था के तहत, इनपुट आपूर्तिकर्ताओं द्वारा पहले ही भुगतान किए गए करों और ITC दावों के उसी समय मिलान करने का कोई प्रावधान नहीं उपलब्ध नहीं है।
  4. वर्तमान में ITC दावे और आपूर्तिकर्ताओं द्वारा भुगतान किए गए करों के साथ मिलान करने के समय में काफी अंतर रहता है। इसलिए फर्जी चालान के आधार पर आईटीसी का दावा किए जाने की संभावना अधिक रहती है।

प्रीलिम्स लिंक:

  1. जीएसटी क्या है?
  2. कंपोजिशन स्कीम क्या है?
  3. इनपुट टैक्स क्रेडिट क्या है?

मेंस लिंक:

‘इनपुट टैक्स क्रेडिट’ के महत्व पर चर्चा कीजिए।

स्रोत: द हिंदू।

 

विषय: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन।

 जलवायु परिवर्तन पर ग्राउंड्सवेलरिपोर्ट


(Groundswell report on climate change)

संदर्भ:

हाल ही में, विश्व बैंक द्वारा जलवायु परिवर्तन पर ‘ग्राउंड्सवेल’ रिपोर्ट जारी की गई है। इसमें बताया गया है कि धीमी गति से शुरू होने वाले जलवायु परिवर्तन के प्रभाव, जैसेकि पानी की कमी, घटती फसल उत्पादकता और समुद्र स्तर में वृद्धि, आदि से वर्ष 2050 तक लाखों लोग किस प्रकार प्रभावित हो सकते हैं।

रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु एवं निष्कर्ष:

रिपोर्ट में ”जलवायु प्रवासियों” के रूप में तीन अलग-अलग परिदृश्यों के तहत जलवायु कार्रवाई और विकास के अलग-अलग पहलुओं का वर्णन किया गया है। इसमे शामिल है:

  1. उच्च स्तर के उत्सर्जन और असमान विकास के साथ सबसे निराशावादी परिदृश्य: रिपोर्ट में विश्लेषण के आधार पर अनुमान व्यक्त किया गया है, कि विश्व के छह क्षेत्रों में 216 मिलियन आबादी को अपने ही देशों में दूसरी जगहों पर पलायन करना पड़ सकता है। ये छह क्षेत्र, लैटिन अमेरिका; उत्तरी अफ्रीका; उप सहारा अफ्रीका; पूर्वी यूरोप और मध्य एशिया; दक्षिण एशिया; और पूर्वी एशिया और प्रशांत महासागरीय क्षेत्र हैं।
  2. उत्सर्जन के निम्न स्तर और समावेशी, सतत विकास सहित जलवायु के सर्वाधिक अनुकूल परिदृश्य: इस स्थिति में भी, पूरे विश्व में 44 मिलियन आबादी को अपना घर छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है।
  3. सबसे खराब परिदृश्य: मरुस्थलीकरण, कमजोर समुदीय तटरेखा और कृषि पर आबादी की निर्भरता के कारण ‘उप-सहारा अफ्रीका’ सबसे संवेदनशील क्षेत्र होगा और इस क्षेत्र में सर्वाधिक संख्या में प्रवासन होने की संभावना होगी, जिसके तहत 86 मिलियन आबादी अपने देशों की सीमाओं के भीतर ही विस्थापित हो सकते हैं।

अन्य प्रभाव:

आंतरिक जलवायु प्रवास के हॉटस्पॉट वर्ष 2030 तक काफी हद तक दृष्टिगोचर हो सकते हैं और वर्ष 2050 तक इनका काफी तेजी से विस्तार होता रहेगा।

रिपोर्ट में नीतिगत सिफारिशों की एक श्रृंखला भी दी गयी है, जो जलवायु प्रवास के कारकों को धीमा करने और अपेक्षित प्रवास-प्रवाह से निपटने हेतु तैयारी करने में मदद कर सकती है।

इन सिफारिशों में शामिल हैं:

  1. वैश्विक उत्सर्जन को कम करना और पेरिस समझौते के तापमान लक्ष्यों को पूरा करने के लिए हर संभव प्रयास करना।
  2. दूरदर्शी, हरित, लचीली और समावेशी विकास योजना में आंतरिक जलवायु प्रवासन को शामिल करना।
  3. प्रवास के प्रत्येक चरण के लिए तैयारी करना, ताकि एक अनुकूलन रणनीति के रूप में आंतरिक जलवायु प्रवास के, सकारात्मक विकास परिणाम प्राप्त हो सकें।
  4. अच्छी तरह से लक्षित नीतियों को बनाने हेतु, आंतरिक जलवायु प्रवास के कारकों की बेहतर समझ के लिए निवेश करना।

 इंस्टा जिज्ञासु:

लगभग तीन दशकों से संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा पृथ्वी पर लगभग हर देश को ‘पक्षकार सम्मलेन’ (Conference of the Parties – COPs) नामक मंच पर ‘वैश्विक जलवायु शिखर सम्मेलन’ के लिए एक साथ  लाया जा रहा है। COP-26 का आयोजन कहाँ होने वाला है और इसका एजेंडा क्या होगा?

 

स्रोत: द हिंदू।

 


प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य


क्लाइमेट एक्शन एंड फाइनेंस मोबिलाइजेशन डायलॉग (CAFMD)

(Climate Action and Finance Mobilization Dialogue)

हाल ही में, भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका (यूएसए) द्वारा ‘जलवायु कार्यवाही एवं वित्त संग्रहण संवाद’ अर्थात “क्लाइमेट एक्शन एंड फाइनेंस मोबिलाइजेशन डायलॉग (CAFMD)” का शुभारम्भ किया गया है।

  • यह अप्रैल, 2021 में जलवायु पर लीडर्स समिट में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति श्री जोसेफ बाइडेन द्वारा शुरू किए गए भारत-अमेरिका जलवायु और स्वच्छ ऊर्जा एजेंडा 2030 भागीदारी के दो ट्रैक में से एक है।
  • यह संवाद, भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका दोनों को वित्तीय पहलुओं को संबोधित करते हुए जलवायु परिवर्तन पर सहयोग को नवीनीकृत करने का अवसर प्रदान करेगा।
  • CAFMD, जलवायु कार्रवाई को सुदृढ़ करने हेतु पेरिस समझौते के तहत परिकल्पित ‘जलवायु वित्त’ को मुख्य रूप से ‘अनुदान’ और ‘रियायती वित्त’ के रूप में उपलब्ध कराने में सहायक होगा।

 

T+1 निपटान प्रणाली

(T+1 settlement system)

हाल ही में, भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) द्वारा स्टॉक मार्केट एक्सचेंजों के लिए ‘T+1 निपटान प्रणाली’ की पेशकश की गयी है। यदि स्टॉक एक्सचेंज, इस प्रस्ताव से सहमत होते हैं, तो निवेशकों को उनके द्वारा बेचे गए या खरीदे गए शेयरों के लिए, अपने खातों में तेजी से और सुरक्षित और जोखिम मुक्त वातावरण में राशि प्राप्त हो सकेगी।

T+1 (T+2, T+3) चक्र क्या है?

T+1 (T+2, T+3) शब्दावली, प्रतिभूति लेनदेन की निपटान तिथि को संदर्भित करने से संबंधित है।

  • “T” का अर्थ लेन-देन की तारीख होता है, अर्थात यह जिस दिन प्रतिभूतियों का लेन-देन किया जाता है उस तारीख को दर्शाता है।
  • 1, 2, या 3 संख्याएं यह दर्शाती है कि लेन-देन की तारीख के कितने दिन बाद, निपटान- अर्थात धन का हस्तांतरण होता है या प्रतिभूति का स्वामित्व प्राप्त होता है।
  • स्टॉक और म्यूचुअल फंड, आमतौर पर T+1 चक्र के अनुसार संचालित होते हैं, और बॉन्ड तथा मुद्रा-बाजार फंड, T+1, T+2, और T+3 के बीच परिवर्तित होते रहते हैं।

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