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[Mission 2022] INSIGHTS करेंट अफेयर्स+ पीआईबी नोट्स [ DAILY CURRENT AFFAIRS + PIB Summary in HINDI ] 9 September 2021

 

विषय सूची:

सामान्य अध्ययन-II

1. नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019

2. सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम

3. ईरान परमाणु समझौता

 

सामान्य अध्ययन-III

1. न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी)

2. झारखंड विधानसभा में स्थानीय लोगों के लिए 75% कोटा विधेयक पारित

3. असम सरकार की इलेक्ट्रिक वाहन नीति

 


सामान्य अध्ययन- I


 

विषय: संसद और राज्य विधायिका- संरचना, कार्य, कार्य-संचालन, शक्तियाँ एवं विशेषाधिकार और इनसे उत्पन्न होने वाले विषय।

 नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 (CAA)


(Citizenship (Amendment) Act)

संदर्भ:

हाल ही में, तमिलनाडु विधानसभा में ‘नागरिकता (संशोधन) अधिनियम’, 2019 (Citizenship (Amendment) Act, 2019) को निरस्त करने के लिए केंद्र से आग्रह करते हुए एक प्रस्ताव पारित किया गया है। इसके साथ ही, तमिलनाडु इस ‘अधिनियम’ के खिलाफ प्रस्ताव पारित करने वाले केरल और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों की सूची में शामिल हो गया है।

कारण: तमिलनाडु विधानसभा में सरकार ने ‘नागरिकता (संशोधन) अधिनियम’ के खिलाफ प्रस्ताव पारित करते हुए कहा, कि यह कानून हमारे संविधान में निर्धारित धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों के अनुरूप नहीं है और भारत में प्रचलित सांप्रदायिक सद्भाव के लिए भी अनुकूल नहीं है।

पृष्ठभूमि:

नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 (CAA), 12 दिसंबर, 2019 को अधिसूचित किया गया था और इसे 10 जनवरी, 2020 से लागू किया गया।

इस अधिनियम के माध्यम से ‘नागरिकता अधिनियम’, 1955 में संशोधन किया गया है।

  • नागरिकता अधिनियम, 1955 में नागरिकता प्राप्त करने हेतु विभिन्न तरीके निर्धारित किये गए हैं।
  • इसके तहत, भारत में जन्म के आधार पर, वंशानुगत, पंजीकरण, प्राकृतिक एवं क्षेत्र समाविष्ट करने के आधार पर नागरिकता हासिल करने का प्रावधान किया गया है।

नागरिकता (संशोधन) अधिनियम (CAA) के बारे में:

CAA का उद्देश्य पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के- हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी और ईसाई – उत्पीड़ित अल्पसंख्यकों को भारतीय नागरिकता प्रदान करना है।

  • इन समुदायों के, अपने संबंधित देशों में धार्मिक आधार पर उत्पीड़न का सामना करने वाले जो व्यक्ति 31 दिसंबर 2014 तक भारत में पलायन कर चुके थे, उन्हें अवैध अप्रवासी नहीं माना जाएगा बल्कि उन्हें भारतीय नागरिकता दी जाएगी।
  • अधिनियम के एक अन्य प्रावधान के अनुसार, केंद्र सरकार कुछ आधारों पर ‘ओवरसीज़ सिटीज़न ऑफ इंडिया’ (OCI) के पंजीकरण को भी रद्द कर सकती है।

अपवाद:

  • संविधान की छठी अनुसूची में शामिल होने के कारण यह अधिनियम त्रिपुरा, मिजोरम, असम और मेघालय के आदिवासी क्षेत्रों पर लागू नहीं होता है।
  • इसके अलावा बंगाल ईस्टर्न फ्रंटियर रेगुलेशन, 1873 के तहत अधिसूचित ‘इनर लिमिट’ के अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों भी इस अधिनियम के दायरे से बाहर होंगे।

इस कानून से संबंधित मुद्दे:

  • यह क़ानून संविधान के मूल सिद्धांतों का उल्लंघन करता है। इसके अंतर्गत धर्म के आधार पर अवैध प्रवासियों की पहचान की गयी है।
  • यह क़ानून स्थानीय समुदायों के लिए एक जनसांख्यिकीय खतरा समझा जा रहा है।
  • इसमें, धर्म के आधार पर अवैध प्रवासियों को नागरिकता का पात्र निर्धारित किया गया है। साथ ही इससे, समानता के अधिकार की गारंटी प्रदान करने वाले संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन होगा।
  • यह किसी क्षेत्र में बसने वाले अवैध प्रवासियों की नागरिकता को प्राकृतिक बनाने का प्रयास करता है।
  • इसके तहत, किसी भी कानून के उल्लंघन करने पर ‘ओसीआई’ पंजीकरण को रद्द करने की अनुमति गी गई है। यह एक व्यापक आधार है जिसमें मामूली अपराधों सहित कई प्रकार के उल्लंघन शामिल हो सकते हैं।

इंस्टा जिज्ञासु:

‘राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर’ (NRC), नागरिकता (संशोधन) अधिनियम (CAA) से किस प्रकार भिन्न है?  क्या दोनों में कोई समानता है?

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. नागरिकता (संशोधन) अधिनियम (CAA) के बारे में
  2. प्रमुख विशेषताएं
  3. अधिनियम में किन धर्मों को शामिल किया गया है?
  4. अधिनियम कवर किए गए देश?
  5. अपवाद

मेंस लिंक:

नागरिकता (संशोधन) अधिनियम के कार्यान्वयन से संबंधित मुद्दों पर चर्चा कीजिए।

स्रोत: द हिंदू।

 

विषय: विभिन्न संवैधानिक पदों पर नियुक्ति और विभिन्न संवैधानिक निकायों की शक्तियाँ, कार्य और उत्तरदायित्व।

सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम


संदर्भ:

हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम (Supreme Court Collegium) द्वारा कर्नाटक उच्च न्यायालय के दस अपर न्यायाधीशों (Additional Judges) और केरल उच्च न्यायालय के दो अपर न्यायाधीशों को इन संबंधित उच्च न्यायालयों में स्थायी न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति हेतु अनुमोदित किया गया है।

इस कदम का महत्व:

सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम द्वारा अदालतों में रिक्त पदों को भरने के लिए तेजी से प्रयास किए जा रहे हैं। वर्तमान में देश के 25 उच्च न्यायालयों में लगभग 465 से अधिक पद रिक्त हैं, और इन रिक्तियों को भरने के लिए ‘न्यायधीशों के नामों’ की लगातार अनुशंसाएँ होते रहने की संभावना है। देश के सभी उच्च न्यायालयों में न्यायधीशों के कुल 1,098 पद स्वीकृत है, और जिसमे से वर्तमान में 41% से अधिक पद रिक्त हैं।

उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीशों की नियुक्ति:

उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीशों की नियुक्तियां, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 124 के उपबंध (2) द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए, भारत के राष्ट्रपति द्वारा की जाती हैं।

सुप्रीम कोर्ट की कॉलेजियम द्वारा न्यायाधीशों के रूप में नियुक्त किए जाने हेतु नामों की सिफारिश की जाती है।

उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीश बनने हेतु अहर्ता:

  1. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 124 में उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति हेतु पात्रता से संबंधित मानदंडों का उल्लेख किया गया है।
  2. उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश बनने के लिए व्यक्ति का भारतीय नागरिक होना आवश्यक है।
  3. आयु की दृष्टि से, व्यक्ति की आयु 65 वर्ष से अधिक नहीं होनी चाहिए।
  4. व्यक्ति को किसी एक या एक से अधिक उच्च न्यायालय (निरंतर) के न्यायाधीश के रूप में न्यूनतम पांच साल तक सेवा का अनुभव या उच्च न्यायालय में अधिवक्ता के रूप में न्यूनतम 10 वर्ष का अनुभव या प्रतिष्ठित न्यायविद होना चाहिए।

क्या कॉलेजियम द्वारा की गयी सिफारिशें अंतिम और बाध्यकारी होती है?

कॉलेजियम द्वारा अपनी अंतिम रूप से तैयार सिफारिशों को अनुमोदन के लिए भारत के राष्ट्रपति के पास भेजी जाती हैं। राष्ट्रपति के लिए इन सिफारिशों को स्वीकार करने अथवा अस्वीकार करने की शक्ति प्राप्त होती है। यदि राष्ट्रपति  द्वारा इन सिफारिशों को खारिज कर दिया जाता है, तो इनके लिए कॉलेजियम के पास वापस भेज दिया जाता है। किंतु, यदि कॉलेजियम द्वारा राष्ट्रपति को अपनी सिफारिश दोबारा भेजी जाती हैं, तो राष्ट्रपति  उन सिफारिशों पर स्वीकृति देने के लिए बाध्य होता है।

कॉलेजियम पद्धति के खिलाफ आम आलोचना:

  • अपारदर्शिता और पारदर्शिता की कमी
  • भाई-भतीजावाद की गुंजाइश
  • सार्वजनिक विवादों में फंसना

आवश्यक सुधार:

  1. उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीशों की नियुक्ति हेतु, अधिमान्य रूप से एक स्वतंत्र व्यापक-आधार सहित संवैधानिक निकाय द्वारा क्रियान्वयित एक पारदर्शी और भागीदारी प्रक्रिया होनी चाहिए। इस प्रक्रिया में  न्यायिक विशिष्टता की बजाय न्यायिक प्रधानता की गारंटी दी जानी चाहिए।
  2. न्यायाधीशों का चयन करते समय स्वतंत्रता की सुनिश्चितता, विविधता का प्रतिबिंबन, पेशेवर क्षमता और सत्यनिष्ठा का प्रदर्शन होना चाहिए।
  3. एक निश्चित संख्या में रिक्तियों को भरने के लिए आवश्यक न्यायाधीशों का चयन करने के बजाय, कॉलेजियम को वरीयता और अन्य वैध मानदंडों के क्रम में राष्ट्रपति को नियुक्ति हेतु संभावित नामों का एक पैनल प्रस्तुत करना चाहिए।

current affairs

 

इंस्टा जिज्ञासु:

क्या आप जानते हैं, कि भारत के संविधान में ‘तदर्थ न्यायाधीशों’ की नियुक्ति का प्रावधान किया गया है? इससे संबंधित प्रावधान कौन से हैं?

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. कॉलेजियम प्रणाली’ क्या है?
  2. सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों को किस प्रकार नियुक्त और हटाया जाता है?
  3. उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों को किस प्रकार नियुक्त और हटाया जाता है?
  4. संबंधित संवैधानिक प्रावधान

मेंस लिंक:

राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग पर एक टिप्पणी लिखिए।

स्रोत: द हिंदू।

 

विषय: भारत के हितों पर विकसित तथा विकासशील देशों की नीतियों तथा राजनीति का प्रभाव; प्रवासी भारतीय।

ईरान परमाणु समझौता


(Iran nuclear deal)

संदर्भ:

अमेरिका और जर्मनी द्वारा ईरान पर अपने परमाणु कार्यक्रम पर वार्ता के लिए शीघ्र ही वापस लौटने का दबाव बढ़ाया जा रहा है।

  • इसी बीच, संयुक्त राष्ट्र की परमाणु निगरानी संस्था, ‘अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी’ (IAEA) ने कहा है, कि ईरान समझौते का उल्लंघन करते हुए ‘अत्यधिक संवर्धित यूरेनियम’ के अपने भंडार को बढ़ाता जा रहा है।
  • IAEA ने यह भी कहा है, कि ईरान ने ‘सत्यापन’ और ‘निगरानी कार्रवाहियों’ को “गंभीर रूप से कमजोर” भी कर दिया है।

पृष्ठभूमि:

वर्ष 2015 के ‘ईरान परमाणु समझौते’ के अंतिम दौर की वार्ता में समझौते के शेष पक्षकारों ने भाग लिया था, और यह वार्ता जून में समाप्त हो गई और इसे दोबारा शुरू करने के लिए कोई तारीख निर्धारित नहीं की गई है।

ईरान परमाणु समझौते’ के बारे में:

  • इसे ‘संयुक्त व्यापक कार्य योजना’ (Joint Comprehensive Plan of Action – JCPOA) के रूप में भी जाना जाता है।
  • यह समझौता अर्थात ‘संयुक्त व्यापक कार्य योजना’, ईरान तथा P5 + 1+ EU (चीन, फ्रांस, रूस, यूनाइटेड किंगडम, संयुक्त राज्य अमेरिका तथा जर्मनी, और यूरोपीय संघ) के मध्य वर्ष 2013 से 2015 से तक चली लंबी वार्ताओं का परिणाम था।
  • इस समझौते के तहत, तेहरान द्वारा, परमाणु हथियारों के सभी प्रमुख घटकों, अर्थात सेंट्रीफ्यूज, समृद्ध यूरेनियम और भारी पानी, के अपने भण्डार में महत्वपूर्ण कटौती करने पर सहमति व्यक्त की गई थी।

वर्तमान में चिंता का विषय:

  • राष्ट्रपति ट्रम्प द्वारा, वर्ष 2018 में, अमेरिका को समझौते से बाहर कर लिया गया था। इसके अलावा, उन्होंने ईरान पर प्रतिबंधों और अन्य सख्त कार्रवाइयों को लागू करके उस पर ‘अधिकतम दबाव’ डालने का विकल्प चुना था।
  • इसकी प्रतिक्रिया में ईरान ने यूरेनियम संवर्द्धन और अपकेन्द्रण यंत्रों (Centrifuges) का निर्माण तेज कर दिया, साथ ही इस बात पर जोर देता रहा कि, उसका परमाणु विकास कार्यक्रम नागरिक उद्देश्यों के लिए है, और इसका उपयोग सैन्य उद्देश्यों के लिए नहीं किया जाएगा।
  • फिर, जनवरी 2020 में, इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स के कमांडर जनरल क़ासिम सुलेमानी पर ड्रोन हमले के बाद, ईरान ने ‘संयुक्त व्यापक कार्य योजना’ (JCPOA) की शर्तो का पालन नहीं करने की घोषणा कर दी।
  • JCPOA के भंग होने से ईरान, उत्तर कोरिया की भांति परमाणु अस्थिरता की ओर उन्मुख हो गया, जिससे इस क्षेत्र में और इसके बाहर भी महत्वपूर्ण भू-राजनीतिक अस्थिरता की स्थिति उत्पन्न हो गई है।

इस समझौते का भारत के लिए महत्व:

  • ईरान पर लगे प्रतिबंध हटने से, चाबहार बंदरगाह, बंदर अब्बास पोर्ट, और क्षेत्रीय संपर्को से जुडी अन्य परियोजनाओं में भारत के हितों को फिर से सजीव किया जा सकता है।
  • इससे भारत को, पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह में चीनी उपस्थिति को बेअसर करने में मदद मिलेगी।
  • अमेरिका और ईरान के बीच संबंधों की बहाली से भारत को ईरान से सस्ते तेल की खरीद और ऊर्जा सुरक्षा में सहायता मिलेगी।

 

इंस्टा जिज्ञासु:

क्या आपने ‘व्यापक परमाणु परीक्षण-प्रतिबंध संधि’ (CTBT) के बारे में सुना है? क्या भारत इस संधि का सदस्य है?

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. JCPOA क्या है? हस्ताक्षरकर्ता
  2. ईरान और उसके पड़ोसी।
  3. IAEA क्या है? संयुक्त राष्ट्र के साथ संबंध
  4. यूरेनियम संवर्धन क्या है?

मेंस लिंक:

संयुक्त व्यापक कार्य योजना (JCPOA)  पर एक टिप्पणी लिखिए।

स्रोत: द हिंदू।

 


सामान्य अध्ययन- III


 

विषय: प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष कृषि सहायता तथा न्यूनतम समर्थन मूल्य से संबंधित विषय; जन वितरण प्रणाली- उद्देश्य, कार्य, सीमाएँ, सुधार; बफर स्टॉक तथा खाद्य सुरक्षा संबंधी विषय; प्रौद्योगिकी मिशन; पशु पालन संबंधी अर्थशास्त्र।

न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP)


संदर्भ:

आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडल समिति (Cabinet Committee on Economic Affairs – CCEA) ने ‘रबी विपणन सीजन’ (Rabi Marketing Season) 2022-23 के लिये सभी रबी फसलों के ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य’ (Minimum support price – MSP) में बढ़ोतरी करने को मंजूरी दे दी है।

इससे किसानों को उनकी फसलों के लिए अधिकतम लाभकारी मूल्य सुनिश्चित होंगे और वे विभिन्न प्रकार की फसलों को बोने के लिए भी प्रोत्साहित होंगे।

न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) क्या होता है?

‘न्यूनतम समर्थन मूल्य’ (Minimum Support Prices -MSPs), किसी भी फसल का वह ‘न्यूनतम मूल्य’ होता है, जिस पर सरकार किसानों से फसल खरीदती है। वर्तमान में, आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडल समिति, खरीफ और रबी, दोनों मौसमों में उगाई जाने वाली 23 फसलों के लिए ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य’ निर्धारित करती है।

MSP की गणना किस प्रकार की जाती है?

‘न्यूनतम समर्थन मूल्य’ (MSP) की गणना, किसानों की उत्पादन लागत के कम से कम डेढ़ गुना कीमत के आधार पर की जाती है।

  • 2018-19 के केंद्रीय बजट में की गई घोषणा के अनुसार, MSP को उत्पादन लागत के डेढ़ गुना के बराबर रखा जाएगा।
  • ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य’ (MSP) का निर्धारण ‘कृषि लागत एवं मूल्य आयोग’ (Commission for Agricultural Costs and PricesCACP) की संस्तुति पर, एक वर्ष में दो बार किया जाता है।
  • कृषि लागत एवं मूल्य आयोग’ (CACP) एक वैधानिक निकाय है, जो खरीफ और रबी मौसम के लिए कीमतों की सिफारिश करने वाली अलग-अलग रिपोर्ट तैयार करता है।

MSP निर्धारित करने में शामिल की जाने वाली उत्पादन लागतें: 

‘न्यूनतम समर्थन मूल्य’ (MSP) का निर्धारण करते समय, कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (CACP), ‘A2+FL’ तथा ‘C2’ लागत, दोनों को ध्यान में रखता है।

  1. A2’ लागत में कि‍सान द्वारा सीधे नकद रूप में और बीज, खाद, कीटनाशक, मजदूरों की मजदूरी, ईंधन, सिंचाई आदि पर किये गए सभी तरह के भुगतान को शामिल किया जाता है।
  2. A2+FL’ में ‘A2’ सहित अतिरिक्त अवैतनिक पारिवारिक श्रम का एक अनुमानित मूल्य शामिल किया जाता है।
  3. C2 लागत में, कुल नगद लागत और किसान के पारिवारिक पारिश्रामिक (A2+FL) के अलावा खेत की जमीन का किराया और कुल कृषि पूंजी पर लगने वाला ब्याज भी शामिल किया जाता है।

MSP की सीमाएं:

  1. ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य’ (MSP) के साथ प्रमुख समस्या गेहूं और चावल को छोड़कर अन्य सभी फसलों की खरीद के लिए सरकारी मशीनरी की कमी है। गेहूं और चावल की खरीद ‘भारतीय खाद्य निगम’ (FCI) के द्वारा ‘सार्वजनिक वितरण प्रणाली’ (PDS) के तहत नियमित रूप से की जाती है।
  2. चूंकि राज्य सरकारों द्वारा अंतिम रूप से अनाज की खरीद की जाती है और जिन राज्यों में अनाज की खरीद पूरी तरह से सरकार द्वारा की जाती हैं, वहां के किसानो को अधिक लाभ होता है। जबकि कम खरीद करने वाले राज्यों के किसान अक्सर नुकसान में रहते हैं।
  3. MSP-आधारित खरीद प्रणाली बिचौलियों, कमीशन एजेंटों और APMC अधिकारियों पर भी निर्भर होती है, और छोटे किसानों के लिए इन तक पहुंचना मुश्किल हो जाता है।

 

इंस्टा जिज्ञासु:

कृषि-वानिकी / ‘एग्रोफोरेस्ट्री’ क्या होती है? भारत को इसे बढ़ावा देने की आवश्यकता क्यों है?

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. CCEA की संरचना।
  2. CACP क्या है?
  3. MSP योजना में कितनी फसलें शामिल हैं?
  4. MSP की घोषणा कौन करता है?
  5. खरीफ और रबी फसलों के बीच अंतर

स्रोत: द हिंदू।

 

विषय: भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधनों को जुटाने, प्रगति, विकास तथा रोज़गार से संबंधित विषय।

झारखंड विधानसभा में स्थानीय लोगों के लिए 75% कोटा विधेयक पारित


संदर्भ:

हाल ही में, ‘झारखंड विधानसभा द्वारा ‘झारखंड राज्य स्थानीय उम्मीदवारों का नियोजन विधेयक, 2021’ (‘The Jharkhand State Employment of Local Candidates Bill, 2021’) पारित कर दिया गया है।

  • इस विधेयक में, स्थानीय लोगों को निजी क्षेत्र की नौकरियों में 40,000 रुपये तक के मासिक वेतन सहित 75% आरक्षण का प्रावधान किया गया है।
  • अधिनियम अधिसूचित होने के बाद, झारखंड ऐसा कानून पारित करने वाला आंध्र प्रदेश और हरियाणा के बाद तीसरा राज्य बन जाएगा।

विधेयक में निजी क्षेत्र की नौकरियों की परिभाषा:

विधेयक में, दुकानों, प्रतिष्ठानों, खदानों, उद्यमों, उद्योगों, कंपनियों, सोसाइटीज, ट्रस्टों, ‘सीमित देयता भागीदारी फर्मों’ और ‘दस या अधिक व्यक्तियों को रोजगार देने वाले किसी भी व्यक्ति’ को निजी क्षेत्र की इकाई के रूप में परिभाषित किया गया है। इसके अलावा, इस संदर्भ में सरकार द्वारा समय-समय पर अधिसूचित किया जा सकता है।

विधेयक के प्रमुख बिंदु:

  1. प्रत्येक नियोक्ता के लिए, इस विधेयक (अधिनियम में परिवर्तित होने के बाद) के लागू होने के तीन महीने के भीतर, एक निर्दिष्ट पोर्टल पर सकल मासिक वेतन के रूप में 40,000 रुपये – या सरकार द्वारा समय-समय पर अधिसूचित नियमों के अनुसार- से कम वेतन प्राप्त करने वाले कर्मचारियों को पंजीकृत करना अनिवार्य होगा।
  2. निर्दिष्ट पोर्टल पर पंजीकरण प्रक्रिया पूरी होने से पहले किसी भी व्यक्ति को नियुक्त या नियोजित नहीं किया जाना चाहिए।
  3. कोई भी स्थानीय उम्मीदवार निर्धारित पोर्टल में अपना पंजीकरण किये बिना 75 प्रतिशत आरक्षण का लाभ प्राप्त करने का पात्र नहीं होगा।
  4. वांछित कौशल योग्यता या प्रवीणता के पर्याप्त स्थानीय उम्मीदवार उपलब्ध नहीं होने पर, नियोक्ता इस नियम से छूट का दावा कर सकते हैं।
  5. नियोक्ताओं को पोर्टल पर रिक्तियों और रोजगार के बारे में एक त्रैमासिक विवरणी प्रस्तुत करनी होगी जिसकी जांच एक ‘अधिकृत अधिकारी’ (Authorised Officer – AO) द्वारा की जाएगी। ‘जिला रोजगार अधिकारी’ ‘अधिकृत अधिकारी’ (AO) के रूप में कार्य करेगा और वह सत्यापन के उद्देश्य से किसी भी रिकॉर्ड मी मांग कर सकता है।
  6. असुन्त्ष्ट नियोक्ता एओ या डीओ द्वारा पारित आदेश के 60 दिनों के भीतर एक अपीलीय प्राधिकारी – निदेशक, रोजगार और प्रशिक्षण, झारखंड सरकार- के समक्ष अपील दायर कर सकते है।

इस नीति से संबंधित चिंताएँ एवं अन्य मुद्दे:

  1. यह नीति अनुच्छेद 16 से सबंधित संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन करती है।
  2. विविधता में एकता पर प्रभाव: इस नीति से किसी क्षेत्र में स्थानीय बनाम गैर-स्थानीय द्वन्द की स्थिति उत्पन्न हो सकती है, जिससे देश के एकीकरण को खतरा पैदा हो सकता है।
  3. यह क्षेत्र में पूंजी निवेश को हतोत्साहित कर सकता है।
  4. एक व्यवसाय की स्वतंत्रता को प्रभावित करता है।
  5. प्रतिस्पर्धा की भावना के खिलाफ है।

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. विधेयक के प्रमुख प्रावधान।
  2. भारतीय संविधान का अनुच्छेद 16 किससे संबंधित है?
  3. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 बनाम आरक्षण।

मेंस लिंक:

75% निजी नौकरियों को आरक्षित करने संबंधी झारखंड सरकार के निर्णय से जुड़े मुद्दों पर चर्चा कीजिए।

स्रोत: द हिंदू।

 

विषय: बुनियादी ढाँचाः ऊर्जा, बंदरगाह, सड़क, विमानपत्तन, रेलवे आदि।

असम सरकार की ‘इलेक्ट्रिक वाहन नीति’


संदर्भ:

हाल ही में, असम सरकार ने वर्ष 2030 तक जीवाश्म ईंधन पर चलने वाले वाहनों को चरणबद्ध तरीके से हटाने हेतु एक इलेक्ट्रिक वाहन (Electric Vehicle – EV) नीति घोषित की है।

इस नीति के प्रमुख बिंदु:

  1. नीति का लक्ष्य खरीदारों के लिए विभिन्न प्रोत्साहनों के माध्यम से अगले पांच वर्षों के भीतर कम से कम 200,000 इलेक्ट्रिक वाहन (Electric Vehicle – EV) उपलब्ध कराना है।
  2. नीति के तहत, सभी सरकारी वाहनों और सार्वजनिक बसों के बेड़े को इलेक्ट्रिक में परिवर्तित करना और अगले पांच वर्षों के भीतर 2 लाख इलेक्ट्रिक वाहनों को तैनात किया जाएगा।
  3. लोगों को ‘इलेक्ट्रिक वाहन’ खरीदने के लिए प्रोत्साहित करने हेतु, राज्य सरकार दोपहिया वाहनों पर ₹20,000, तिपहिया वाहनों के लिए ₹50,000 और चौपहिया वाहनों के लिए ₹1.5 लाख की सब्सिडी देगी।
  4. इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए रजिस्ट्रेशन फीस, रोड टैक्स और पार्किंग फीस में शत-प्रतिशत छूट होगी।
  5. नीति में, पूरे राज्य में इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए चार्जिंग स्टेशन उपलब्ध कराए जाने की भी परिकल्पना की गई है। स्टेशन स्थापित करने वाले उद्यमियों को पहले पांच वर्षों के लिए अपने बिजली बिलों में 90% की छूट मिलेगी।

भारत में EV क्षेत्र को बढ़ावा देने हेतु सरकार की पहलें:

  1. सरकार का लक्ष्य ‘नेशनल इलेक्ट्रिक मोबिलिटी मिशन प्लान 2020 के तहत वर्ष 2020 तक 6 मिलियन इलेक्ट्रिक और हाइब्रिड वाहनों को सड़कों पर देखना है।
  2. इलेक्ट्रिक परिवहन में सुधार करने हेतु, ‘भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों को तेजी से अपनाना और विनिर्माण’ योजना (Faster Adoption and Manufacturing of Electric Vehicles in IndiaFAME India Scheme) की शुरुआत।
  3. स्मार्ट सिटी के क्रियान्वयन से इलेक्ट्रिक वाहनों के विकास को भी बढ़ावा मिलेगा।

आगे की चुनौतियां:

  1. वर्तमान में, भारतीय इलेक्ट्रिक वाहन (EV) बाजार की आम लोगों में पहुँच शेष विश्व की तुलना में काफी कम है।
  2. पूंजीगत लागत काफी अधिक है और इस पर लाभ और अदायगी अनिश्चित है।
  3. हाल के महीनों में रुपये का नाटकीय मूल्यह्रास होने के कारण भारतीय इलेक्ट्रिक वाहन उद्योग बुरी तरह प्रभावित हुआ है।
  4. इलेक्ट्रिक वाहनों में स्थानीय निवेश, कुल निवेश का मात्र लगभग 35% है।
  5. निवेश के संदर्भ में इलेक्ट्रिक वाहनों का उत्पादन बुरी तरह प्रभावित होगा।
  6. भारत में हाइब्रिड और इलेक्ट्रिक वाहनों को तेजी से अपनाना और विनिर्माण’ (फेम इंडिया) योजना को बार-बार आगे बढ़ाया गया है।
  7. ‘अनिश्चित नीतिगत माहौल’ और ‘सहायक बुनियादी ढांचे की कमी’ इलेक्ट्रिक वाहनों के उत्पादन में प्रमुख बाधाएं हैं।
  8. भारत के पास लिथियम और कोबाल्ट का कोई ज्ञात भंडार नहीं है, जिसकी वजह से भारतीय इलेक्ट्रिक वाहन (EV) बाजार, जापान और चीन से लिथियम-आयन बैटरी के आयात पर निर्भर है।

समय की मांग:

  1. इलेक्ट्रिक वाहनों को प्रभावी ढंग से शुरू करने के लिए, हमें एक संपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र विकसित करने के लिए सहगामी प्रयास करने की आवश्यकता है।
  2. वाहनों को सब्सिडी देने की बजाय बैटरियों को सब्सिडी देने पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है क्योंकि बैटरी की कीमत, इलेक्ट्रिक वाहन की कुल कीमत का लगभग आधी होती है।
  3. इलेक्ट्रिक टू-व्हीलर्स को बढ़ावा देने पर अधिक ध्यान देने की जरूरत है, क्योंकि देश में कुल वाहनों में टू-व्हीलर्स की हिस्सेदारी 76 फीसदी है और ये ईंधन की ज्यादा खपत करते है।
  4. निवेश आकर्षित करने के लिए चार्जिंग स्टेशनों का एक विस्तृत नेटवर्क स्थापित किया जाना आवश्यक है।
  5. टेक पार्क, सार्वजनिक बस डिपो और मल्टीप्लेक्स में कार्यस्थल, चार्जिंग पॉइंट स्थापित करने हेतु उपयुक्त स्थान हैं। बैंगलोर में, कुछ मॉल में पार्किंग स्थल में चार्जिंग पॉइंट स्थापित किए गए हैं।
  6. बड़े व्यापारी ‘कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी कंप्लायंस’ के रूप में चार्जिंग स्टेशनों में निवेश कर सकते हैं।
  7. भारत को इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए बैटरी बनाने के लिए कच्चे माल की जरूरत है, अतः बोलीविया, ऑस्ट्रेलिया और चिली में ‘लिथियम फ़ील्ड’ हासिल करना, तेल क्षेत्रों को खरीदने जितना महत्वपूर्ण हो सकता है।

स्रोत: द हिंदू।