विषय सूची:
सामान्य अध्ययन-II
1. सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति
2. एनआरसी मसौदा जारी होने के दो वर्ष बाद भी लाखों लोगों के लिय अनिश्चित की स्थिति
3. भारतीय प्रतिनिधि मंडल की दोहा में तालिबान नेताओं से मुलाकात
4. सार्क संगठन में अफ़ग़ानिस्तान की सदस्यता सबंधी चिंताएँ
5. चीन द्वारा हिंद महासागर के लिए पहले सड़क-रेल परिवहन लिंक की शुरुआत
सामान्य अध्ययन-III
1. राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन
2. रेत और धूल भरी आंधी
3. तमिलनाडु सरकार द्वारा अत्याधुनिक परिवहन और परिधानों के लिए पार्कों की घोषणा
4. कोर सेक्टर में 9.4% की वृद्धि
5. सरकारी-प्रतिभूति सौदों का विदेशों में निपटारा
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य
1. टोक्यो पैरालिंपिक में भारत के लिए तिहरी खुशी
2. वैक्सीन खोज-कर्ता को ‘रमन मैग्सेसे पुरस्कार’
3. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) का संकल्प 2593
सामान्य अध्ययन- II
विषय: विभिन्न संवैधानिक पदों पर नियुक्ति और विभिन्न संवैधानिक निकायों की शक्तियाँ, कार्य और उत्तरदायित्व।
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति
संदर्भ: हाल ही में, उच्चतम न्यायालय के नौ नए न्यायाधीशों द्वारा शपथ ग्रहण की गयी।
प्रमुख बिंदु:
- भारत के प्रधान न्यायाधीश एन वी रमण ने उच्चतम न्यायालय के नौ नए न्यायाधीशों को पद की शपथ दिलाई। उच्चतम न्यायालय के इतिहास में पहली बार एक साथ नौ न्यायाधीशों ने शपथ ली है।
- नौ नए न्यायाधीशों के शपथ ग्रहण के साथ ही सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की कुल संख्या, मुख्य न्यायाधीश सहित 33 हो गई है। ज्ञात हो, कि सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की अधिकतम संख्या 34 निर्धारित की गयी है।
- शपथ ग्रहण करने वाले न्यायाधीशों में तीन महिला न्यायाधीश थीं, जिनमे से एक, न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना, वर्ष 2027 में भारत के मुख्य न्यायाधीश का पदभार ग्रहण कर सकती हैं। इसके अलावा, शीर्ष अदालत में एक साथ चार महिला न्यायाधीश पहली बार कार्य करेंगी।
- पहली बार सुप्रीम कोर्ट द्वारा शपथ ग्रहण समारोह के सीधे प्रसारण की अनुमति दी गयी।
‘कॉलेजियम प्रणाली’:
‘कॉलेजियम प्रणाली’ (Collegium System), न्यायाधीशों की नियुक्ति और स्थानांतरण संबंधी एक पद्धति है, जो संसद के किसी अधिनियम अथवा संविधान के किसी प्रावधान द्वारा गठित होने के बजाय उच्चतम न्यायालय के निर्णयों के माध्यम से विकसित हुई है।
- उच्चतम न्यायालय कॉलेजियम की अध्यक्षता भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) द्वारा की जाती है, और इसमें न्यायालय के चार अन्य वरिष्ठतम न्यायाधीश शामिल होते हैं।
- उच्च न्यायालय कॉलेजियम के अध्यक्ष संबंधित उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश होते हैं और इसमें संबंधित अदालत के चार अन्य वरिष्ठतम न्यायाधीश शामिल होते हैं।
संबंधित संवैधानिक प्रावधान:
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 124 (2) के अंतर्गत प्रावधान किया गया है कि उच्चतम न्यायालय के और राज्यों के उच्च न्यायालयों के ऐसे न्यायाधीशों से परामर्श करने के पश्चात्, जिनसे राष्ट्रपति इस प्रयोजन के लिए परामर्श करना आवश्यक समझे, राष्ट्रपति अपने हस्ताक्षर और मुद्रा सहित अधिपत्र द्वारा उच्चतम न्यायालय के प्रत्येक न्यायाधीश को नियुक्त करेगा।
- भारतीय संविधान का अनुच्छेद 217 कहता है, कि उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा, भारत के मुख्य न्यायमूर्ति, उस राज्य के राज्यपाल से परामर्श करने के पश्चात् तथा मुख्य न्यायाधीश के अलावा उच्च न्यायालय के अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति के मामले में, संबंधित उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श करने के पश्चात् की जाएगी।
न्यायपालिका में कॉलेजियम प्रणाली का विकास:
- प्रथम न्यायाधीश मामला (First Judges Case- 1981): इसमें निर्धारित किया गया कि, न्यायिक नियुक्तियों और तबादलों पर भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) के सुझाव की “प्रधानता” को “अकाट्य तर्क” मौजूद होने पर अस्वीकार किया जा सकता है। इस निर्णय ने अगले 12 वर्षों के लिये न्यायिक नियुक्तियों में न्यायपालिका पर कार्यपालिका की प्रधानता स्थापित कर दी है।
- दूसरा न्यायाधीश मामला (Second Judges Case-1993): सर्वोच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट करते हुए कॉलेजियम प्रणाली की शुरुआत की, कि, ‘परामर्श’ शब्द का अर्थ वास्तव में “सहमति” है। इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने आगे कहा कि यह मुख्य न्यायाधीश (CJI) की व्यक्तिगत राय नहीं होगी, बल्कि सर्वोच्च न्यायालय के दो वरिष्ठतम न्यायाधीशों के परामर्श से ली गई एक संस्थागत राय होगी।
- तीसरा न्यायाधीश मामला (Third Judges Case- 1998): वर्ष 1998 में राष्ट्रपति द्वारा जारी रेफरेंस (Reference) के बाद सर्वोच्च न्यायालय ने पाँच सदस्यीय निकाय के रूप में कॉलेजियम का विस्तार किया, जिसमें भारत के मुख्य न्यायाधीश और उनके चार वरिष्ठतम सहयोगी शामिल किए गए।
प्रीलिम्स लिंक:
- कॉलेजियम प्रणाली’ क्या है?
- सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों को किस प्रकार नियुक्त और हटाया जाता है?
- उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों को किस प्रकार नियुक्त और हटाया जाता है?
- संबंधित संवैधानिक प्रावधान
मेंस लिंक:
न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम प्रणाली से जुड़े मुद्दों पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: द हिंदू
विषय: सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय।
एनआरसी मसौदा जारी होने के दो वर्ष बाद भी लाखों लोगों के लिय अनिश्चित की स्थिति
संदर्भ:
वर्ष 2018 में प्रकाशित ‘राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर’ (NRC) मसौदा सूची में पहले बाहर कर दिए गए लोगों में से कुछ को बाद में प्रकशित मसौदा सूची में शामिल कर लिया गया था, किंतु इन्हें ‘आधार’ कार्ड आधारित सुविधाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा है।
इस विषय पर अन्य महत्वपूर्ण बिंदु:
- वर्ष 2018 में प्रकाशित असम के ‘राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर’ (National Register of Citizens- NRC) की मसौदा सूची में लाखों लोग छूट गए थे।
- सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी नियमों के अनुसार, ‘राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर’ (NRC) मसौदा सूची से बाहर राज जाने व्यक्तियों के लिए, खुद को ‘राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर’ में शामिल करने हेतु किए जाने वाले ‘दावों’ और किसी अन्य व्यक्ति के सूची में शामिल होने पर की जाने वाली ‘आपत्ति’ की सुनवाई प्रक्रिया के दौरान, अपनी बायोमेट्रिक्स पहचान दर्ज कराना अनिवार्य था।
- 2018 में प्रकाशित सूची से बाहर रह गए 27 लाख लोगों ने अपना बायोमेट्रिक विवरण जमा किया और इनमें से केवल 8 लाख लोगों को वर्ष 2019 में प्रकाशित अद्यतन मसौदा सूची में शामिल किया गया। किंतु, ये 8 लाख लोग अपना ‘आधार’ कार्ड बनवाने के लिए के लिए संघर्ष कर रहे हैं, और इनको ‘आधार कार्ड’ से जुडी सुविधाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा है।
- कोई स्पष्ट रास्ता नहीं मिल पाने और ‘आधार’ आधरित लाभों के नहीं मिलने की वजह से इन व्यक्तियों पर अत्यधिक मानसिक तनाव झेलना पड़ रहा है।
- यह स्थिति मुख्य रूप से ‘राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर’ प्रक्रिया पर स्पष्टता की कमी के कारण उत्पन्न हुई है। चूंकि, अभी तक क्योंकि पूर्ण और अंतिम ‘राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर’ सूची प्रकाशित नहीं हुई है, और इस वजह से सरकार ने अद्यतन सूची में शामिल किए गए इन व्यक्तियों को ‘आधार संख्या’ प्रदान करने पर रोक लगा रखी है।
आवश्यकता:
इन व्यक्तियों की अल्पकालिक चिंताओं को दूर करने के लिए शामिल हितधारकों (NRC राज्य समन्वयक, केंद्र सरकार, असम की राज्य सरकार और भारत के सर्वोच्च न्यायालय) द्वारा प्रयास किए जाने चाहिए, और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कोई भी व्यक्ति, विशेष रूप से इस महामारी के समय में राज्य द्वारा प्रदान की जाने वाले सुविधाओं यथा, खाद्य सब्सिडी से वंचित न रहे। इसके साथ ही, NRC की अंतिम सूची को समयबद्ध और न्यायसंगत तरीके से प्रकाशित करने के लिए एक तंत्र स्थापित किया जाना चाहिए।
‘राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर’ क्या है?
- राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर / पंजी (NRC) मुख्यतः अवैध भारतीय नागरिकों का आधिकारिक रिकॉर्ड है। इसमें ‘नागरिकता अधिनियम, 1955 के अनुसार, भारतीय नागरिक के रूप में पात्र व्यक्तियों के बारे में जनांकिक विवरण शामिल किया जाता है।
- सबसे पहले इस रजिस्टर को वर्ष 1951 की जनगणना के बाद तैयार किया गया था। इसके बाद, कुछ समय पूर्व तक कभी भी अद्यतन / अपडेट नहीं किया गया था।
- अब तक, केवल असम राज्य के लिए इस तरह के डेटाबेस को तैयार किया गया है।
- वर्ष 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने, नागरिकता अधिनियम, 1955 और नागरिकता नियम, 2003 के अनुसार, असम के सभी भागों में ‘राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर’ को अद्यतन करने का आदेश दिया था।
- यह प्रक्रिया आधिकारिक तौर पर वर्ष 2015 में शुरू हुई।
- संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों ने चेतावनी दी थी, कि असम में राष्ट्रीय नागरिक पंजी (NRC) लाखों नागरिकों को राज्यविहीन बना सकती है, जिससे भारत में अस्थिरता का माहौल बन सकता है।
प्रीलिम्स लिंक:
- जनगणना और NPR के बीच संबंध।
- NPR बनाम NRC
- NRC, असम समझौते से किस प्रकार संबंधित है।
- नागरिकता प्रदान करने और रद्द करने के लिए संवैधानिक प्रावधान।
- जनगणना किसके द्वारा की जाती है?
मेंस लिंक:
एक राष्ट्रव्यापी राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) प्रक्रिया क्यों नहीं संभव हो सकती है, चर्चा कीजिए।
विषय: भारत के हितों पर विकसित तथा विकासशील देशों की नीतियों तथा राजनीति का प्रभाव; प्रवासी भारतीय।
भारतीय प्रतिनिधि मंडल की दोहा में तालिबान नेताओं से मुलाकात
संदर्भ: हाल ही में, कतर की राजधानी ‘दोहा’ में भारत के प्रतिनिधि मंडल और तालिबान नेताओं के बीच एक आधिकारिक बैठक हुई है।
विवरण:
- ‘कतर’ में भारतीय राजदूत दीपक मित्तल ने तालिबान के राजनीतिक विभाग के प्रमुख ‘शेर मोहम्मद अब्बास स्टेनकजई’ से मुलाकात की।
- यह भारत और तालिबान शासन के बीच पहली सार्वजनिक मुलाक़ात थी।
- दोनों प्रतिनिधियों के मध्य चर्चा का विषय, अफगानिस्तान में फंसे भारतीय नागरिकों की सुरक्षा और शीघ्र वापसी और भारत आने के इच्छुक अफगान नागरिकों को यात्रा की अनुमति पर केंद्रित रही।
- भारत ने यह सुनिश्चित करने का मुद्दा भी उठाया कि अफगानिस्तान को भारत के खिलाफ आतंकवादी गतिविधियों को चलाने के लिए ‘मोर्चे’ के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जाएगा।
- सत्ता में आने के बाद, तालिबान शासन ने भारत के साथ ‘अच्छे संबंध’ रखने के अपने इरादे कई बार व्यक्त किए हैं।
- भारत, तालिबान की पाकिस्तान से निकटता को देखते हुए, अफगानिस्तान के साथ पूर्ण राजनयिक संबंध स्थापित करने के प्रति सावधान रहता है। क्योंकि, पाकिस्तान द्वारा भारत के रणनीतिक हितों को नुकसान पहुंचाने के लिए तालिबान का इस्तेमाल पहले भी प्रॉक्सी के रूप में कर चुका है।
- भारत ने तालिबान के साथ अपने भविष्य के रिश्तों के लिए ‘रुको और देखो’ दृष्टिकोण अपनाया हुआ है और अफगानिस्तान के साथ भारत की कोई भी बातचीत, मानव अधिकारों, महिलाओं और अल्पसंख्यकों के साथ व्यवहार, और लक्षित आतंकवादी समूहों के प्रति दृष्टिकोण के संबंध में अफगानिस्तान की कार्रवाइयों पर आधारित होगी।
अफगानिस्तान और इसकी रणनीतिक अवस्थिति:
अफ़गानिस्तान में स्थिरता का महत्व:
- अफ़गानिस्तान में तालिबान की बहाली का असर इसके पड़ोसी मध्य एशियाई देशों जैसे ताजिकिस्तान, उज़्बेकिस्तान आदि में फैल सकता है।
- तालिबान के पुनरुत्थान से इस क्षेत्र में ‘उग्रवाद’ फिर से जिंदा हो जाएगा और यह क्षेत्र ‘लश्कर-ए-तैयबा’, आईएसआईएस आदि के लिए एक सुरक्षित आश्रय स्थल बन सकता है।
- अफगानिस्तान में गृहयुद्ध होने से मध्य एशिया और उसके बाहर के देशों में शरणार्थी संकट उत्पन्न हो जाएगा।
- अफगानिस्तान की स्थिरता से मध्य एशियाई देशों को हिंद महासागर क्षेत्र में स्थित बंदरगाहों तक – सबसे कम-दूरी वाले मार्ग से – पहुंचने में मदद मिलेगी।
- अफगानिस्तान, मध्य-एशिया और शेष विश्व के बीच एक पुल की भूमिका निभाने वाली, क्षेत्रीय व्यापार हेतु और सांस्कृतिक रूप से, एक महत्वपूर्ण कड़ी है।
नए हालातों में, भारत के लिए तालिबान के साथ संपर्क स्थापित करना क्यों जरूरी है?
- अफ़ग़ानिस्तान में अब तालिबान की महत्वपूर्ण उपस्थिति है।
- भारत पहले से ही अफगानिस्तान में भारी निवेश कर चुका है। अपनी 3 अरब डॉलर की परिसंपत्तियों की सुरक्षा हेतु, भारत को अफगानिस्तान में सभी पक्षों के साथ संपर्क स्थापित करने चाहिए।
- तालिबान का पाकिस्तान के साथ गहन राज्य संबंध बनाना, भारत के हित में नहीं होगा।
- यदि भारत ने अभी संपर्क स्थापित नहीं किए, तो रूस, ईरान, पाकिस्तान और चीन, अफगानिस्तान के राजनीतिक और भू-राजनीतिक भाग्य-निर्माता के रूप में उभरेंगे, जो निश्चित रूप से भारतीय हितों के लिए हानिकारक होगा।
- अमेरिका ने क्षेत्रीय-संपर्को पर सबको चौंकाते हुए ‘अमेरिका-उजबेकिस्तान-अफगानिस्तान-पाकिस्तान’ के रूप में एक “क्वाड” (Quad) का गठन करने की घोषणा की है – जिसमें भारत को शामिल नहीं किया गया है।
- अपनी अर्थव्यवस्था को बढ़ाने के लिए, चाबहार बंदरगाह के माध्यम से अफगानिस्तान के साथ व्यापार करने संबधी भारत का प्रयास संकट में पड़ा हुआ है।
आवश्यकता:
- तालिबान द्वारा की जा रही हिंसा पर रोक लगाकर, अफ़ग़ान नागरिकों की सुरक्षा हेतु सामूहिक रूप से कार्य करने की तत्काल आवश्यकता है।
- अफगानिस्तान को शंघाई सहयोग संगठन (SCO) जैसे मध्य एशियाई संगठन में पर्याप्त स्थान दिया जाना चाहिए।
- अमरीका, ईरान, चीन और रूस को अफगानिस्तान में स्थिरता बनाए रखने के लिए भारत को सक्रिय रूप से शामिल करना चाहिए।
- शरणार्थी संकट उत्पन्न होने पर उसके लिए समेकित कार्रवाई की जानी चाहिए।
- निकटस्थ पड़ोसियों के साथ शांति बनाए रखने हेतु तालिबान के साथ भारत द्वारा संपर्क स्थापित किए जाने चाहिए।
इंस्टा जिज्ञासु:
अमेरिका-तालिबान शांति समझौते के बारे में जानिए।
प्रीलिम्स लिंक:
- तालिबान के बारे में
- अफगान संकट
- नाटो के बारे में
- अफगानिस्तान परियोजनाओं में भारत का निवेश
मेंस लिंक:
नये हालातों में भारत को अफगानिस्तान से क्यों और किस प्रकार के संबंध बनाने चाहिए? चर्चा कीजिए।
विषय: द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक समूह और भारत से संबंधित और/अथवा भारत के हितों को प्रभावित करने वाले करार।
सार्क संगठन में अफ़ग़ानिस्तान की सदस्यता सबंधी चिंताएँ
संदर्भ: तालिबान द्वारा सत्ता अधिग्रहण के बाद अफगानिस्तान में मौजूदा प्रशासन संबंधी अनिश्चितता के कारण ‘दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन’ (South Asian Association for Regional Cooperation – SAARC) में इसकी सदस्यता को लेकर चिंताएं उत्पन्न हो गयी हैं।
संबंधित विवरण:
- इस वर्ष अक्टूबर माह में ‘दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन’ (SAARC) की बैठक निर्धारित है।
- कुछ विशेषज्ञों का मानना है, कि अफगानिस्तान की सदस्यता और यहां तक कि SAARC का भविष्य कुछ हद तक तालिबान द्वारा एक समावेशी सरकार बनाने पर निर्भर करता है।
- यद्यपि, हाल के दिनों में पाकिस्तान द्वारा देश में आतंकवादी संगठनों के खिलाफ कार्रवाई करने में असमर्थ रहने की वजह से ‘SAARC’ की उच्च स्तरीय बैठकें बाधित हुई हैं, फिर भी, संगठन द्वारा अन्य क्षेत्रों में सदस्य देशों के मध्य जारी समन्वय, जैसेकि ‘महामारी प्रतिक्रिया’, को नहीं रोका गया है।
- संयुक्त राष्ट्र अथवा SAARC संगठन में तालिबान के अधीन अफगानिस्तान को सीट देने के संबंध में चिंताएं, तालिबान के पिछले शासनकाल में हुई हिंसक गतिविधियों और मानवाधिकारों के उल्लंघन को देखते हुए उत्पन्न हुई हैं। अफगानिस्तान में सत्ता संभालने के बाद, तालिबान शासन पर देश में अपने विरोधियों की ‘न्यायेतर हत्याओं’ का आरोप भी लगाया जा रहा है।
- अफगानिस्तान को SAARC समूह में 2007 में आठवें सदस्य के रूप में शामिल किया गया था। उस समय देश का नेतृत्व राष्ट्रपति हामिद करजई के हाथों में था।
- जिन अन्य क्षेत्रीय संगठनों में अफगानिस्तान की भागीदारी है, वहां भी इसी प्रकार के सवाल उठ रहे हैं। जैसेकि ICIMOD, हिंदुकुश-हिमालयी पर्वत प्रणाली का अध्ययन करने हेतु काठमांडू स्थित एक अंतर सरकारी संगठन है। और बांग्लादेश, भूटान, भारत, चीन, म्यांमार, नेपाल और पाकिस्तान के अलावा अफगानिस्तान भी इसका एक सदस्य है।
SAARC के बारे में:
दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (दक्षेस), दक्षिण एशिया के आठ देशों का आर्थिक और राजनीतिक संगठन है।
- दक्षेस के संस्थापक सदस्य, भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, नेपाल, मालदीव और भूटान है।
- वर्ष 2005 में आयोजित हुए 13वें वार्षिक शिखर सम्मेलन के दौरान ‘अफगानिस्तान’ दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (SAARC) का सबसे नवीनतम सदस्य बना।
- इस संगठन का मुख्यालय एवं सचिवालय नेपाल के काठमांडू में अवस्थित है।
दक्षेस (SAARC) का महत्व:
- दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (SAARC), विश्व के 3% क्षेत्रफल, 21% आबादी और 8% (US $ 2.9 ट्रिलियन) वैश्विक अर्थव्यवस्था का प्रतिनिधित्व करते हैं।
- यह विश्व की सबसे घनी आबादी वाला क्षेत्र है और सबसे उपजाऊ क्षेत्रों में से एक है।
- दक्षेस देशों की परंपरा, पोशाक, भोजन और संस्कृति और राजनीतिक पहलू लगभग सामान हैं, जिससे इनके कार्यों के समन्वय में मदद मिलती है।
- सभी दक्षेस देशों में गरीबी, अशिक्षा, कुपोषण, प्राकृतिक आपदाएं, आंतरिक संघर्ष, औद्योगिक और तकनीकी पिछड़ेपन, निम्न जीडीपी और खराब सामाजिक-आर्थिक स्थिति जैसी समान समस्याएं और मुद्दे हैं।
Why SAARC is relevant for India now?
वर्तमान में SAARC की भारत के लिए प्रासंगिकता:
भारत को SAARC के बारे में फिर से सोचना होगा, जोकि वर्ष 2014 से ही उहापोह की स्थित में है। दक्षिणी एशियाई क्षेत्र में चीन की बढ़ती आक्रामकता और आर्थिक प्रभुत्व का मुकाबला करने के लिए यह विशेष रूप से आवश्यक है।
- फिल्हाई, भारत द्वारा ‘दक्षेस’ (SAARC) के विकल्प के रूप में बिम्सटेक (BIMSTEC) जैसे अन्य क्षेत्रीय संगठनों में निवेश किया जा रहा है।
- चूंकि, BIMSTEC के सभी सदस्य देशों के मध्य, ‘दक्षेस’ देशों की भांति एक समान पहचान और इतिहास का अभाव है, इसलिए यह ‘दक्षेस’ (SAARC) की जगह नहीं ले सकता है।
- इसके अलावा, बिम्सटेक का ध्यान केवल बंगाल की खाड़ी क्षेत्र पर केंद्रित है, अतः यह यह सभी दक्षिण एशियाई देशों के साथ वार्ता करने या साझेदारी करने के लिए एक उपयुक्त मंच नहीं है।
प्रीलिम्स लिंक:
- सार्क बनाम बिम्सटेक
- इसके सदस्य और पर्यवेक्षक देश कौन हैं?
- सार्क से संबंधित महत्वपूर्ण संधियाँ और समझौते
- CPEC क्या है?
- बेल्ट एंड रोड पहल (Belt and Road initiative)
मेंस लिंक:
SAARC का पुनरुत्थान भारत को चीन से निपटने में किस प्रकार सहायक होगा, चर्चा कीजिए।
विषय: भारत के हितों, भारतीय प्रवासियों पर विकसित और विकासशील देशों की नीतियों और राजनीति का प्रभाव।
चीन द्वारा हिंद महासागर के लिए पहले सड़क-रेल परिवहन लिंक की शुरुआत
संदर्भ:
हाल ही में, चीन द्वारा हिंद महासागर तक संपर्क स्थापित करने वाले अपने पहले सड़क-रेल परिवहन लिंक को शुरू किया गया है, जिसके तहत, एक नई शुरू की गई रेलवे लाइन द्वारा म्यांमार की सीमा से पहला शिपमेंट पश्चिमी चीन स्थित एक प्रमुख वाणिज्यिक केंद्र ‘चेंगदू’ (Chengdu) के लिए भेजा गया है।
संबंधित विवरण:
- यह परियोजना चीन के लिए हिंद महासागर तक एक नया सड़क-रेल परिवहन मार्ग उपलब्ध कराती है।
- इस परिवहन गलियारे में ‘समुद्री-सड़क-रेल’ लिंक शामिल है।
- यह मार्ग, सिंगापुर, म्यांमार और चीन की आवागमन लाइनों को जोड़ता है, और वर्तमान में हिंद महासागर को दक्षिण-पश्चिम चीन से जोड़ने वाला सबसे सुविधाजनक स्थलीय और समुद्री मार्ग है।
- चीन द्वारा ‘रखाइन’ प्रांत के क्युकफ्यू (Kyaukphyu) में एक अन्य बंदरगाह विकसित करने की योजना पर कार्य किया जा रहा है, जिसके तहत चीन के ‘युन्नान प्रांत’ से सीधे बंदरगाह तक एक रेलवे लाइन भी प्रस्तावित है।
- चीनी योजनाकारों द्वारा पाकिस्तान में ग्वादर बंदरगाह को हिंद महासागर तक पहुचने के एक अन्य प्रमुख मार्ग के रूप में देखा जा रहा है, इसके बाद चीन को ‘मलक्का जलडमरूमध्य’ से गुजरने की आवश्यकता नहीं रहेगी।
- ग्वादर बंदरगाह को ‘चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे’ (CPEC) के एक भाग के रूप में विकसित किया जा रहा है, किंतु सुरक्षा संबंधी चिंताओं को देखते हुए इसे पर धीमी गति से कार्य आगे बढ़ रहा है। म्यांमार सीमा से पश्चिमी चीन के सबसे बड़े वाणिज्यिक केंद्र चेंगदू तक रेल परिवहन मार्ग शुरू होने के बाद, लागत और परिवहन की दृष्टि से भी, CPEC , म्यांमार मार्ग की तुलना में कम अनुकूल हैं।
चीन के ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ के बारे में:
BRI क्या है?
प्राचीन रेशम मार्ग (सिल्क रोड) से सम्बद्ध, ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ (Belt and Road Initiative – BRI) एक विशाल अवसंरचना निर्माण परियोजना है, जो पूर्वी एशिया से यूरोप तक विस्तृत होगी। इस परियोजना को 2013 में प्रारम्भ किया गया था।
- इस परियोजना के दो भाग हैं: भूमि आधारित सिल्क रोड आर्थिक बेल्ट और समुद्री सिल्क बेल्ट। दोनों योजनाओं को पहले सामूहिक रूप से “वन बेल्ट, वन रोड पहल” के रूप में संदर्भित किया गया था, जिसे कालांतर में “बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव” के रूप में जाना गया।
- इस परियोजना में रेलवे, ऊर्जा पाइपलाइनों, राजमार्गों और सुव्यवस्थित सीमा पार के विशाल नेटवर्क का निर्माण करना शामिल है।
पाकिस्तान और BRI:
- आज तक, विश्व की दो-तिहाई जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करने वाले 60 से अधिक देशों ने इस परियोजना पर या तो हस्ताक्षर कर दिए हैं या ऐसा करने में अपनी रुचि व्यक्त की है।
- विश्लेषकों का अनुमान है कि इस परियोजना का अब तक का सबसे बड़ा भाग चीन–पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) है, जिसकी अनुमानित लागत 60 बिलियन डॉलर है। यह गलियारा चीन को अरब सागर में स्थित पाकिस्तान के ग्वादर बन्दरगाह से जोड़ने वाली परियोजनाओं का एक संग्रह है।
मूल रेशम मार्ग (सिल्क रोड) क्या था?
मूल सिल्क रोड, चीन के हान राजवंश (206 ई.पू. – 220 ई.पू.) द्वारा पश्चिम की ओर राज्य-विस्तार करने के दौरान विकसित हुआ था। यह मार्ग, वर्तमान मध्य एशियाई देशों अफगानिस्तान, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उज्बेकिस्तान के साथ-साथ दक्षिण में स्थित आधुनिक भारत और पाकिस्तान में व्यापार नेटवर्क का निर्माण करता था। ये मार्ग यूरोप तक चार हजार मील से अधिक दूरी तक फैला हुआ था।
अन्य देशों ने BRI के प्रति क्या प्रतिक्रिया व्यक्त की है?
- कुछ देश इस परियोजना को चीन की शक्ति के चिंताजनक विस्तार के रूप में देखते हैं।
- संयुक्त राज्य अमेरिका ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा है कि, BRI, एशिया में चीन के नेतृत्व वाले क्षेत्रीय विकास और सैन्य विस्तार के लिए एक ट्रॉजन हॉर्स हो सकता है।
इस परियोजना से चीन क्या प्राप्त करने की आशा करता है?
चीन की इस पहल के पीछे भूराजनीतिक और आर्थिक दोनों प्रेरणाएं शामिल हैं।
- देश ने अधिक मुखर चीन के दृष्टिकोण को बढ़ावा दिया है, जबकि विकास की धीमी गति एवं संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ कठोर व्यापारिक संबंधों ने देश के नेतृत्व पर दबाव बनाया है कि वे अपनी वस्तु एवं सेवाओं के लिए नवीन बाजारों की तलाश करें।
- विशेषज्ञों का मानना है कि BRI, चीन की मेड इन चाइना 2025 आर्थिक विकास रणनीति के साथ- साथ शी जिनपिंग के नेतृत्व में एक साहसिक चीनी राज्य कौशल की प्रमुख रणनीतियों में से एक है।
- BRI, अमेरिका की “एशिया में धुरीकरण” (Pivot to Asia) की नीति के विरोधस्वरूप एक रणनीति के साथ- साथ चीन के लिए नवीन निवेश के अवसरों को विकसित करने, निर्यात बाजारों का निर्माण करने एवं चीनी आय और घरेलू खपत को बढ़ावा देने के एक माध्यम के रूप में भी कार्य करता है।
भारत के विचार:
- भारत ने विभिन्न देशों को यह समझाने का प्रयत्न किया कि BRI, एशिया पर प्रभुत्व स्थापित करने की एक योजना है एवं कुछ विश्लेषकों द्वारा सुझाई गयी “मोतियों की माला“ भू-आर्थिक रणनीति के सन्दर्भ में भारत ने चेतावनी दी है कि इसके माध्यम से चीन, हिंद महासागर में स्थित अपने पड़ोसी देशों के क्षेत्रीय चोक बिंदुओं पर नियंत्रण स्थापित के लिए अनिश्चित ऋण भार का निर्माण करता है।
- विशेष रूप से, नई दिल्ली इस परियोजना को लेकर लंबे समय से अशांत है क्योंकि इसके पारंपरिक प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान के साथ चीन के अत्यंत मधुर संबंध रहे हैं।
प्रीलिम्स लिंक
- ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ ( BRI) क्या है?
- इसका उद्देश्य
- इससे जुड़े महत्वपूर्ण स्थान
- मलक्का जलडमरूमध्य
मेंस लिंक
भारत के हितों पर ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ (BRI) परियोजना के प्रभाव पर चर्चा कीजिए।
सामान्य अध्ययन- III
विषय: बुनियादी ढाँचाः ऊर्जा, बंदरगाह, सड़क, विमानपत्तन, रेलवे आदि।
राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन (NMP)
(National Monetisation pipeline)
संदर्भ:
हाल ही में, नीति आयोग द्वारा ‘मुद्रीकरण’ लक्ष्य प्राप्त करने के लिए अपनी सिफारिशें कीं गयी हैं।
खुदरा भागीदारी में सुधार हेतु नीति आयोग की सिफारिशें:
- राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन (NMP) को सफल बनाने के लिए, सरकार को खुदरा निवेशकों को ‘इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट्स’ (InvITs) जैसे उपकरणों के प्रति आकर्षित करने के लिए आयकर छूट देनी चाहिए।
- हालांकि इससे राजकोष पर ‘राजस्व-हानि’ के रूप में भार में वृद्धि होगी, किंतु इससे दीर्घकालिक लाभ, इस भार से अधिक हो सकते हैं। क्योंकि, अतीत में, विशिष्ट बांडों में निवेश को पूंजीगत लाभ छूट के साथ संबद्ध करना, अतीत में सफल साबित हुआ था।
निवेशकों को अधिक सुविधा प्रदान करने हेतु InvITs को दिवाला और दिवालियापन संहिता (IBC) के दायरे में लाना।
- चूंकि ट्रस्टों को ‘कानूनी व्यक्ति’ के रूप में नहीं माना जाता है, इसलिए IBC नियम InvIT ऋणों पर लागू नहीं होते हैं। अतः, ऋणदाताओं के लिए परियोजना परिसंपत्तियों के संबंध में समाधान हेतु वर्तमान में कोई प्रक्रिया मौजूदा नहीं है।
- यद्यपि ऋणदाताओं को ‘वित्तीय आस्तियों के प्रतिभूतिकरण और पुनर्निर्माण और सुरक्षा ब्याज अधिनियम, 2002’ (SARFAESI Act : सरफेसी अधिनियम) और ऋणों की वसूली और दिवालियापन अधिनियम, 1993 के तहत संरक्षित किया जाता है, इसके अलावा, निवेशकों के लिए आईबीसी विनियमों के अंतर्गत प्रावधान अतिरिक्त सुविधा प्रदान करेंगे।
- इससे ऋणदाताओं को एक तीव्र और अधिक प्रभावी ‘ऋण पुनर्गठन और समाधान विकल्प’ तक पहुंचने में सहयता मिलेगी।
राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन (एनएमपी) के बारे में अधिक जानने हेतु यहाँ पढ़ें।
प्रीलिम्स लिंक:
- ‘राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन’ (NMP)के बारे में
- मुख्य विशेषताएं
- प्रयोज्यता
- लाभ
मेंस लिंक:
‘राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन’ परियोजना के महत्व पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: द हिंदू
विषय: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन।
रेत और धूल भरी आंधियां
(Sand and dust storms)
संदर्भ:
‘एशियन एंड पैसिफिक सेंटर फॉर द डेवलपमेंट ऑफ डिजास्टर इंफॉर्मेशन मैनेजमेंट’ (APDIM) द्वारा ‘एशिया और प्रशांत में सैंड एंड डस्ट स्टॉर्म रिस्क असेसमेंट’ शीर्षक से जारी रिपोर्ट के अनुसार, भारत में ‘रेत और धूल भरी आंधी’ (Sand and dust storms) से 500 मिलियन से अधिक लोग प्रभावित होते हैं।
APDIM, ‘एशिया और प्रशांत हेतु संयुक्त राष्ट्र आर्थिक और सामाजिक आयोग’ (United Nations Economic and Social Commission for Asia and the Pacific – UNESCAP) का एक क्षेत्रीय संस्थान है।
रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष:
- भारत में 500 मिलियन से अधिक और तुर्कमेनिस्तान, पाकिस्तान, उज्बेकिस्तान, ताजिकिस्तान और ईरान की 80 प्रतिशत से अधिक आबादी, ‘रेत और धूल भरी आँधियों’ की वजह से मध्यम और उच्च स्तर की खराब वायु गुणवत्ता से प्रभावित होती है।
- ‘दक्षिण पश्चिम एशिया’ में कराची, लाहौर और दिल्ली की ‘निम्न वायु गुणवत्ता’ के लिए ‘रेत और धूल भरी आँधियां’ एक (Sand and dust storms) एक महत्वपूर्ण कारण हैं। वर्ष 2019 में इन जगहों लगभग 60 मिलियन लोगों को वर्ष में 170 से अधिक ‘धूल भरे दिनों’ का सामना करना पड़ा था।
- पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण-पूर्वी तुर्की, ईरान और अफगानिस्तान के कुछ हिस्सों में अत्यधिक सूखे की स्थिति के कारण 2030 के दशक में ‘रेत और धूल भरी आँधियों’ के जोखिम में वृद्धि होने का अनुमान है।
‘रेत और धूल भरी आँधियां’ क्या हैं?
शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में ‘रेत और धूल भरी आंधी’ मौसम संबंधी आम खतरे हैं। ‘रेत और धूल भरी आँधियां’ आमतौर पर तूफानी झंझवातों अथवा ‘चक्रवात संबंधी तीव्र दाब-प्रवणता’ – जिसकी वजह से वायु की गति के एक विस्तृत क्षेत्र में काफी बढ़ जाती है- के कारण उत्पन्न होती हैं।
- ये तेज हवाएं, नग्न और शुष्क जमीन से बड़ी मात्रा में रेत और धूल को वातावरण में ऊपर ले जाती हैं, और रेत और धूल के इन कणों को अपने साथ सैकड़ों से हजारों किलोमीटर दूर तक बहा ले जाती हैं।
- क्षोभमंडल (पृथ्वी के वायुमंडल की सबसे निचली परत) में पाए जाने वाले लगभग 40% वायवीय / एरोसोल कण, वायु अपरदन से उत्पन्न धूल के कण होते हैं। इन खनिज धूल कणों का मुख्य स्रोत उत्तरी अफ्रीका, अरब प्रायद्वीप, मध्य एशिया और चीन के शुष्क क्षेत्र हैं।
- सतह से ऊपर उठने के बाद, धूल के कण तूफानी मिश्रण और संवहनीय उत्प्रवाह के माध्यम से ‘क्षोभमंडल’ की उपरी सीमा तक पहुँच जाते हैं। सतह पर वापस गिरने से पहले, ये धूल-कण हवाओं के साथ काफी लंबे समय तक यात्रा करते रहते हैं।
पर्यावरणीय प्रभाव:
- ‘रेत और धूल भरी आंधी’ एक सीमा-पारीय मौसम संबंधी जोखिम है। इससे कृषि, ऊर्जा, पर्यावरण, विमानन, मानव स्वास्थ्य सभी प्रभावित होते हैं।
- कुछ स्थानों पर, इन धूल भरे तूफानों में नमक की मात्रा काफी अधिक होती है, जिससे वनस्पति पर विषाक्त प्रभाव पड़ता है।
- हिमालय की हिंदू-कुश पर्वत श्रृंखला और तिब्बती पठार में भी धूल-कणों का काफी अधिक जमाव होता है। ये क्षेत्र पूरे एशिया में 1.3 बिलियन से अधिक लोगों के लिए ताजे पानी का स्रोत हैं।
- हिमनदों पर धूल-कणों के जमाव से ‘वार्मिंग’ / उष्मन प्रभाव उत्पन्न होता है, जिससे बर्फ के पिघलने की तीव्रता में वृद्धि होती है, और खाद्य सुरक्षा, ऊर्जा उत्पादन, कृषि, जल तनाव एवं बाढ़ सहित कई माध्यमों से समाज पर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है।
‘रेत और धूल भरी आंधी’ संयुक्त राष्ट्र द्वारा निर्धारित 17 ‘सतत विकास लक्ष्यों’ (SDG) में से 11 लक्ष्यों को सीधे प्रभावित करती है:
- सभी रूपों में निर्धनता-उन्मूलन
- भुखमरी उन्मूलन
- उत्तम स्वास्थ्य एवं खुशहाली
- स्वच्छ जल और स्वच्छता
- सस्ती और स्वच्छ ऊर्जा
- उत्कृष्ट कार्य और आर्थिक वृद्धि
- उद्योग नवाचार और बुनियादी सुविधाएँ
- संवहनीय शहर और समुदाय
- जलवायु कार्रवाई
- जलीय जीवन की सुरक्षा
- स्थलीय जीवों की सुरक्षा
‘धूल भरी आँधियों’ के सकारात्मक प्रभाव:
‘धूल भरी आँधियों’ के सभी प्रभाव नकारात्मक भी नहीं होते हैं। अपने निक्षेपण के क्षेत्रों में धूल-कणों की वजह से मृदा में पोषक तत्व की वृद्धि हो सकती है, और वनस्पति को भी लाभ पहुंच सकता है।
लोहे-तत्व युक्त धूल के कण, महासागरों के कुछ हिस्सों को लौह-तत्व से समृद्ध कर सकते हैं, फाइटोप्लांकटन संतुलन में सुधार करते हुए समुद्री खाद्य श्रंखला को प्रभावित कर सकते हैं।
आगे की राह:
- रेत और धूल भरी आंधियों द्वारा पड़ने वाले ‘सामाजिक-आर्थिक प्रभाव’ की गहरी समझ विकसित की जानी चाहिये।
- एक समन्वित निगरानी और पूर्व चेतावनी प्रणाली स्थापित की जानी चाहिए।
- जोखिमों को कम करने के लिए सर्वाधिक जोखिम वाले और प्रभावित भौगोलिक क्षेत्रों में कार्रवाई का समन्वय किया जाए।
- रेत और धूल भरी आंधियों से जुड़े जोखिमों का प्रबंधन उन स्थानों पर भी आवश्यक किया जाए, जहाँ पहले ऐसी घटनाओं के लिए स्रोत क्षेत्रों के रूप में मान्यता नहीं दी गई थी।
मेंस लिंक: रेत और धूल भरी आंधियों की उत्पत्ति पर चर्चा कीजिए और धूल भरी आंधियों के निर्माण में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव की जांच कीजिए।
स्रोत: डाउन टू अर्थ
विषय: भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधनों को जुटाने, प्रगति, विकास तथा रोज़गार से संबंधित विषय।
तमिलनाडु सरकार द्वारा अत्याधुनिक परिवहन और परिधानों के लिए पार्कों की घोषणा
संदर्भ:
हाल ही में, तमिलनाडु सरकार द्वारा एक समेकित परिधान पार्क और अत्यधुनिक परिवहन पार्क का निर्माण किए जाने की घोषणा की गई है।
संबंधित विवरण:
- इन दोनों पहलों से राज्य में आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलेगा।
- इलेक्ट्रिक वाहनों (ई-वाहनों) की शुरुआत और बढ़ती मांग के बाद ‘अत्यधुनिक परिवहन पार्क’ (future mobility park) देश में अपनी तरह का पहला पार्क होगा।
- राज्य में रक्षा निर्माण के लिए निवेश आकर्षित करने के लिए, एयरोस्पेस और रक्षा क्षेत्रों में अनुसंधान सहायता हेतु एक सामान्य परीक्षण सुविधा की स्थापना, जैसी पहल की भी घोषणा की गई है।
- राज्य सरकार द्वारा एक ‘राज्य एकीकृत प्रचालन-तंत्र योजना’ (State integrated logistics plan) की भी घोषणा की गई है, जिसके तहत ग्राहकों के लिए ‘माल ढुलाई’ को विनियमित किया जाएगा, और निर्यात को बढ़ावा देने के लिए एक ‘निर्यात प्रकोष्ठ’ की स्थापना की जाएगी। इसके साथ ही, एक ‘अनुसंधान और विकास नीति’ भी जारी की जाएगी।
‘अत्यधुनिक परिवहन पार्क’ क्या है?
‘अत्यधुनिक परिवहन पार्क’ में, स्वच्छ परिवहन, स्वचालन (automation), नए व्यापार मॉडल और स्थासंवहनीय यात्रा के नए तरीके, विकसित करने के लिए ‘डेटा विज्ञान, कृत्रिम बुद्धिमत्ता और ‘संवेदन प्रौद्योगिकी’ (sensing technology) का उपयोग किया जाएगा। इस प्रकार के मोबिलिटी पार्क, ब्रिटेन और अमेरिका के डेट्रॉइट शहर आदि जगहों पर स्थापित किए गए हैं।
चित्र: मोबिलिटी पार्क में उपलब्ध सुविधाएँ
प्रीलिम्स लिंक
- रक्षा गलियारा क्या है?
- ‘अत्यधुनिक परिवहन’ क्या है?
- परिधान क्षेत्र से संबंधित अवसर
मेंस लिंक
परिवहन के अधिक संवहनीय मॉडल तैयार करने के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग किस प्रकार किया जा सकता है?
इंस्टा-जिज्ञासु:
भविष्य के ‘अत्यधुनिक परिवहन पार्कों के बारे में और अधिक जानने हेतु देखें
विषय: भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधनों को जुटाने, प्रगति, विकास तथा रोज़गार से संबंधित विषय।
सरकारी-प्रतिभूति सौदों का विदेशों में निपटारा
संदर्भ:
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) द्वारा ‘अंतर्राष्ट्रीय केंद्रीय प्रतिभूति डिपॉजिटरी’ (International Central Securities Depositories – ICSD) के माध्यम से ‘सरकारी प्रतिभूतियों’ (G-secs) में लेनदेन का अंतर्राष्ट्रीय निपटान शुरू करने की योजना बनाई जा रही है।
संबंधित विवरण:
- इस प्रस्ताव से ‘सरकारी प्रतिभूति बाजार’ के लिए निवेशक आधार में विस्तार होगा।
- शुरू होने के बाद, इस उपाय से ‘गैर-निवासियों’ की ‘सरकारी प्रतिभूति बाजार’ तक पहुंच बढ़ेगी और साथ ही वैश्विक बांड सूचकांकों में ‘भारतीय सरकारी प्रतिभूतियां’ भी शामिल होंगी।
- अंतर्राष्ट्रीय केंद्रीय प्रतिभूति डिपॉजिटरी’ (ICSD) द्वारा ‘अंतरराष्ट्रीय प्रतिभूतियों’ जैसे कि यूरोबॉन्ड में कारोबार का निपटान किया जाता है, हालांकि कई लोग, या तो सीधे या स्थानीय एजेंटों के माध्यम से विभिन्न घरेलू प्रतिभूतियों में भी लेनदेन का निपटान करते हैं। ‘अंतर्राष्ट्रीय केंद्रीय प्रतिभूति डिपॉजिटरी’ में क्लियरस्ट्रीम, यूरोक्लियर और सिक्स एसआईएस आदि शामिल हैं।
‘सरकारी प्रतिभूतियाँ’ क्या होती हैं?
सरकारी प्रतिभूति (Government Security G-Sec), केंद्र सरकार अथवा राज्य सरकारों द्वारा जारी किये गए ‘व्यापार योग्य उपकरण’ (Tradeable Instrument) होती हैं। यह सरकार के ऋण दायित्वों को स्वीकार करती है।
- ऐसी प्रतिभूतियां, अल्पकालिक (ट्रेजरी बिल – एक वर्ष से कम अवधि की मूल परिपक्वता सहित) अथवा दीर्घकालिक (सरकारी बांड या दिनांकित प्रतिभूतियां – एक वर्ष या अधिक अवधि की मूल परिपक्वता सहित) दोनों प्रकार की हो सकती हैं।
- चूंकि इन्हें सरकार द्वारा जारी किया जाता है, अतः इनके डिफ़ॉल्ट होने का कोई जोखिम नहीं होता है, और इसलिए, उन्हें जोखिम-मुक्त सुरक्षित उपकरण (Gilt-Edged Instruments) कहा जाता है।
द्वितीयक बाजार में सरकारी प्रतिभूतियों (G-Secs) की कीमतों में तेजी से उतार-चढ़ाव होता है। इनकी कीमतों को प्रभावित करने वाले कारक निम्नलिखित होते हैं:
- प्रतिभूतियों की मांग और आपूर्ति।
- अर्थव्यवस्था के भीतर ब्याज दरों में होने वाले परिवर्तन तथा अन्य वृहत-आर्थिक कारक, जैसे तरलता और मुद्रास्फीति।
- अन्य बाजारों, जैसे वित्त, विदेशी मुद्रा, ऋण और पूंजी बाजार में होने वाला विकास।
- अंतर्राष्ट्रीय बॉन्ड बाजारों, विशेष रूप से यूएस ट्रेजरीज़ में होने वाला विकास।
- RBI द्वारा किये जाने वाले नीतिगत परिवर्तन, जैसे रेपो दरों में बदलाव, नकदी-आरक्षित अनुपात और खुले बाजार के परिचालन।
इंस्टा जिज्ञासु:
अंतर्राष्ट्रीय केंद्रीय प्रतिभूति डिपॉजिटरी’ (ICSD) के बारे में अधिक जानने हेतु पढ़े।
प्रीलिम्स लिंक:
- सरकारी प्रतिभूतियां (G-Secs) क्या होती हैं?
- अल्पकालिक और दीर्घकालिक प्रतिभूतियां
- G-Secs जारी करने के लिए केंद्र और राज्यों की शक्तियां
- RBI की भूमिका।
- इन प्रतिभूतियों की कीमतों को प्रभावित करने वाले कारक
मेंस लिंक:
सरकारी प्रतिभूतियां (G-Secs) क्या होती हैं? इनके महत्व पर चर्चा कीजिए।
विषय: भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधनों को जुटाने, प्रगति, विकास तथा रोज़गार से संबंधित विषय।
कोर सेक्टर में 9.4% की वृद्धि
संदर्भ:
भारत के आठ प्रमुख क्षेत्रों (core sectors) के उत्पादन में जुलाई माह के दौरान 9.4% की वृद्धि दर्ज की गई है।
संबंधित विवरण:
- जुलाई माह में, कच्चा तेल, उत्पादन में गिरावट दर्ज करने वाला एकमात्र क्षेत्र था। इसके उत्पादन में 3.2% की कमी आई थी।
- सीमेंट उत्पादन में जुलाई में सबसे तेजी से 21.8% की वृद्धि हुई, जबकि उर्वरकों के उत्पादन में 0.5% की सबसे धीमी वृद्धि दर्ज की गई। प्राकृतिक गैस का उत्पादन 18.9% बढ़ा, कोयले का उत्पादन 18.7% बढ़ा, जबकि स्टील और बिजली का उत्पादन क्रमशः 9.3% और 9% बढ़ा।
- मुख्य (कोर) क्षेत्रों में वृद्धि का श्रेय, पिछले जुलाई को आधार वर्ष निर्धारित किए जाने के बाद ‘आधार प्रभाव’ (base effect) को दिया गया है। विदित हो कि, गत वर्ष जुलाई माह के उत्पादन में 7.6% की कमी आई थी, और बुनियादी ढांचा व्यय पर सरकार द्वारा कुछ सकारात्मक कार्रवाई की गई थी।
- हालांकि, 2021-22 के पहले चार महीनों में ‘आठ प्रमुख उद्योगों’ का समग्र सूचकांक, महामारी पूर्व स्तर से नीचे रहा। और यह अप्रैल-जुलाई 2019 की अवधि की तुलना में 1.5% कम है।
‘कोर सेक्टर’ क्या है?
प्रमुख क्षेत्र (core sector) के आठ उद्योगों में कोयला, कच्चा तेल, प्राकृतिक गैस, रिफाइनरी उत्पाद, उर्वरक, इस्पात, सीमेंट और विद्युत् सम्मिलित हैं। औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (Index of Industrial Production – IIP) में शामिल वस्तुओं में आठ प्रमुख उद्योगों का भारांक लगभग 40% है।
भारांक के घटते क्रम में आठ प्रमुख उद्योग: रिफाइनरी उत्पाद> विद्युत् > इस्पात> कोयला> कच्चा तेल> प्राकृतिक गैस> सीमेंट> उर्वरक हैं।
औद्योगिक उत्पादन सूचकांक:
औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (IIP), किसी अर्थव्यवस्था में खनन, बिजली और विनिर्माण जैसे विभिन्न क्षेत्रों के विकास का विवरण देने वाला सूचकांक होता है।
- ‘अखिल भारतीय आईआईपी’ एक समग्र संकेतक होता है, जिसके द्वारा किसी समीक्षाधीन अवधि, आमतौर पर कोई विशिष्ट माह, के दौरान औद्योगिक उत्पादन और क्षेत्र विशिष्ट के प्रदर्शन को मापा जाता है।
- जिस माह के लिये इस सूचकांक की गणना की जा रही है उसकी समाप्ति के बाद सूचकांक संबंधी डेटा के प्रकाशन में छह सप्ताह का अंतराल होता है।
- इसे सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के अंतर्गत राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO), द्वारा मासिक रूप से संकलित और प्रकाशित किया जाता है।
प्रीलिम्स लिंक
- ‘कोर सेक्टर’ क्या है?
- ‘औद्योगिक उत्पादन सूचकांक’ (IIP) क्या है?
- कोर क्षेत्र की वृद्धि को प्रभावित करने वाले कारक
मेंस लिंक
देश में कोर सेक्टर की वृद्धि को बढ़ाने के लिए आवश्यक नीतियों की चर्चा कीजिए।
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य
टोक्यो पैरालिंपिक में भारत के लिए तिहरी खुशी
- मरियप्पन थंगावेलु ने पुरुषों की ऊंची कूद T63 फाइनल में रजत पदक जीता। इसी स्पर्धा में शरद कुमार ने कांस्य पदक हासिल किया।
- सिंहराज अधाना ने P1 पुरुषों की एयर पिस्टल SH1 श्रेणी में कांस्य पदक जीता।
- मरियप्पन, शरद और सिंहराज के समग्र प्रयासों से दो स्वर्ण, पांच रजत और तीन कांस्य सहित भारत के कुल पदकों की संख्या बढ़कर 10 हो चुकी है।
वैक्सीन खोज-कर्ता को ‘रमन मैग्सेसे पुरस्कार’
बांग्लादेशी वैक्सीन वैज्ञानिक और पाकिस्तान के एक माइक्रोफाइनेंस विशेषज्ञ, इस वर्ष के रेमन मैग्सेसे पुरस्कार के पांच प्राप्तकर्ताओं में शामिल हैं। रेमन मैग्सेसे पुरस्कार को नोबेल पुरस्कार का एशियाई संस्करण माना जाता है।
- बांग्लादेश से डॉ. फिरदौसी कादरी और पाकिस्तान से मुहम्मद अमजद साकिब के अलावा, अन्य विजेताओं में फिलिपिनो फिशर और सामुदायिक पर्यावरणविद् रॉबर्टो बैलोन, मानवीय कार्यों और शरणार्थी सहायता के लिए अमेरिकी स्टीवन मुंसी और खोजी पत्रकारिता के लिए इंडोनेशियाई संस्था ‘वॉचडॉक’ (Watchdoc) शामिल हैं।
- रमन मैगसेसे पुरस्कार (Ramon Magsaysay Award) एशिया के व्यक्तियों एवं संस्थाओं को उनके अपने क्षेत्र में विशेष रूप से उल्लेखनीय कार्य करने के लिये प्रतिवर्ष प्रदान किया जाता है। यह पुरस्कार, फ़िलीपीन्स के भूतपूर्व राष्ट्रपति रमन मैगसेसे की याद में दिया जाता है।
- रमन मैगसेसे पुरस्कार की स्थापना वर्ष 1958 में की गई थी और पहला पुरस्कार भारत के ‘विनोबा भावे’ को प्रदान किया गया था।
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) का संकल्प 2593
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा, भारत के वर्तमान अध्यक्षता में, 30 अगस्त, 2021 को, अफगानिस्तान की स्थिति पर एक प्रस्ताव पारित किया गया, जिसमें मांग की गई थी कि युद्धग्रस्त देश का इस्तेमाल किसी भी राष्ट्र को धमकाने या हमला करने या आतंकवादियों को आश्रय देने के लिए नहीं किया जाना चाहिए।
यह प्रस्ताव यू.एस., यूके, फ्रांस द्वारा प्रस्तुत किया गया था। प्रस्ताव के पक्ष में सुरक्षा परिषद के 13 सदस्यों ने मतदान किया, जबकि स्थायी सदस्य रूस और चीन मतदान से दूर रहे।
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