विषयसूची
सामान्य अध्ययन-III
1. ‘देशद्रोह’ की सीमाओं को परिभाषित करने का समय: उच्चतम न्यायालय
2. 30 जनवरी को ‘विश्व उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोग दिवस’ घोषित करने का प्रस्ताव
3. रक्षा उपकरणों से संबधित नकारात्मक आयात सूची
4. भासन चार द्वीप पर हजारों रोहिंग्याओं द्वारा विरोध प्रदर्शन
5. चीन में दम्पतियों को तीसरा बच्चा पैदा करने की अनुमति
सामान्य अध्ययन-III
1. 5G तकनीक
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य
1. लिटोरिया मीरा
2. केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (CBDT)
सामान्य अध्ययन- II
विषय: सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय।
‘देशद्रोह’ की सीमाओं को परिभाषित करने का समय: उच्चतम न्यायालय
संदर्भ:
हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि “अब देशद्रोह के लिए सीमाओं को परिभाषित करने का समय आ गया है”।
- उच्चतम न्यायालय द्वारा यह टिप्पणी दो समाचार चैनलों द्वारा दायर की गयी रिट याचिकाओं पर सुनवाई करने के दौरान की गयी।
- इन न्यूज़ चैनलों ने अपने खिलाफ दर्ज की गई प्राथमिकी और अवमानना के मामलों को रद्द करने की मांग करते हुए शीर्ष अदालत में याचिकाएं दायर की थीं।
संबंधित प्रकरण:
आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा, दो नेताओं के ‘आपत्तिजनक’ भाषणों को दिखाने के लिए दो तेलुगु समाचार चैनलों – TV5 और ABN आंध्र ज्योति के खिलाफ, कथित देशद्रोह के आरोप लगाया गया है।
याचिकाकर्ताओं का तर्क:
याचिकाकर्ताओं का कहना है, कि सरकार की कार्रवाई, उच्चतम न्यायालय द्वारा 30 अप्रैल को जारी किये गए आदेश का उल्लंघन करती है। इस आदेश में, शीर्ष अदालत ने कोविड -19 के मुद्दे पर अपनी शिकायतों को व्यक्त करने पर नागरिकों की गिरफ्तारी और उनके खिलाफ अभियोजन पर रोक लगाई थी।
आगे की कार्रवाई:
अदालत ने देशद्रोह के कठोर दंडात्मक अपराध समेत विभिन्न अपराधों के आरोपी चैनलों की याचिकाओं पर राज्य सरकार से चार सप्ताह के भीतर जवाब मांगा है।
देशद्रोह के संबंध में अदालत द्वारा की गई सामान्य टिप्पणियां:
- अब समय आ गया है, कि हम देशद्रोह की सीमा को परिभाषित करें।
- भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 124A (देशद्रोह) और धारा 153 (समुदायों के बीच शत्रुता को बढ़ावा देना) के, विशेष रूप से प्रेस और स्वतंत्र अभिव्यक्ति के अधिकारों से संबंधित विषयों पर, प्रावधानों की व्याख्या की आवश्यकता है।
पृष्ठभूमि:
सरकार के कोविड-19 प्रबंधन के बारे में अपनी शिकायतों को आवाज देने पर अथवा महामारी की दूसरी लहर के दौरान, चिकित्सा सेवाओं तक पहुंच, उपकरण, दवाएं और ऑक्सीजन सिलेंडर हासिल करने के लिए मदद मांगने के लिए आलोचकों, पत्रकारों, सोशल मीडिया उपयोगकर्ताओं, कार्यकर्ताओं और नागरिकों के खिलाफ राजद्रोह कानून का अंधाधुंध इस्तेमाल किया गया है।
‘देशद्रोह’ (Sedition) क्या होता है?
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 124A के अनुसार, “किसी भी व्यक्ति के द्वारा, शब्दों द्वारा, लिखित अथवा बोलने के माध्यम से, अथवा संकेतों द्वारा, या दृश्य- प्रदर्शन द्वारा, या किसी अन्य तरीके से, विधि द्वारा स्थापित सरकार के खिलाफ, घृणा या अवमानना दिखाने, उत्तेजित होने अथवा उत्तेजना भड़काने का प्रयास करने पर उसे, आजीवन कारावास और साथ में जुर्माना, या तीन साल तक की कैद और साथ में जुर्माना, या मात्र जुर्माने का दंड दिया जा सकता है।
एक यथोचित परिभाषा की आवश्यकता:
देशद्रोह कानून लंबे समय से विवादों में रहा है। अक्सर सरकारों के ‘भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 124-A’ कानून का उपयोग करने पर, उनकी नीतियों के मुखर आलोचकों द्वारा आलोचना की जाती है।
इसलिए, इस धारा को व्यक्तियों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के प्रतिबंध के रूप में देखा जाता है, और एक प्रकार से संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत प्रदत्त अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर लगाए जाने वाले उचित प्रतिबंधों संबंधी प्रावधानों के अंतर्गत आती है।
इस क़ानून को औपनिवेशिक ब्रिटिश शासकों द्वारा 1860 के दशक में लागू किया गया था, उस समय से लेकर आज तक यह क़ानून बहस का विषय रहा है। महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू सहित स्वतंत्रता आंदोलन के कई शीर्ष नेताओं पर राजद्रोह कानून के तहत मामले दर्ज किए गए थे।
- महात्मा गांधी द्वारा इस क़ानून को “नागरिक की स्वतंत्रता का हनन करने हेतु तैयार की गई भारतीय दंड संहिता की राजनीतिक धाराओं का राजकुमार” बताया था।
- नेहरू ने इस कानून को “अत्यधिक आपत्तिजनक और निंदनीय” बताते हुए कहा, कि “हमारे द्वारा पारित किसी भी कानूनों प्रावधानों में इसे कोई जगह नहीं दी जानी चाहिए” और “जितनी जल्दी हम इससे छुटकारा पा लें उतना अच्छा है।”
इस संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट के प्रासंगिक फैसले:
केदार नाथ सिंह बनाम बिहार राज्य मामला (1962):
- आईपीसी की धारा 124A के तहत अपराधों से संबंधित मामले की सुनवाई के दौरान, उच्चतम न्यायालय की पांच-न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ ने केदार नाथ सिंह बनाम बिहार राज्य मामले (1962) में कुछ मार्गदर्शक सिद्धांत निर्धारित किए थे।
- अदालत ने फैसला सुनाया था, कि सरकार के कार्यों की चाहें कितने भी कड़े शब्दों में नापसंदगी व्यक्त की जाए, यदि उसकी वजह से हिंसक कृत्यों द्वारा सार्वजनिक व्यवस्था भंग नहीं होती है, तो उसे दंडनीय नहीं माना जाएगा।
बलवंत सिंह बनाम पंजाब राज्य (1995) मामला:
- इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया था, कि केवल नारे लगाना, इस मामले में जैसे कि ‘खालिस्तान जिंदाबाद’, देशद्रोह नहीं है।
जाहिर है, देशद्रोह कानून को गलत तरीके से समझा जा रहा है और असहमति को दबाने के लिए इसका दुरुपयोग किया जा रहा है।
इंस्टा जिज्ञासु:
इतने सारे नकारात्मक तत्व होने के बावजूद, हमारे देश में अभी भी यह कानून प्रचलन में क्यों है? यहां पढ़ें:
प्रीलिम्स लिंक:
- देशद्रोह को किस क़ानून के तहत परिभाषित किया गया है?
- आईपीसी की धारा 124A किससे संबंधित है?
- आईपीसी की धारा 153 किससे संबंधित है?
- इस संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट के प्रासंगिक फैसले
- भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19
मेंस लिंक:
भारत में देशद्रोह कानून लागू करने से जुड़े मुद्दों पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: द हिंदू।
विषय: स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय।
30 जनवरी को ‘विश्व उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोग दिवस‘ घोषित करने का प्रस्ताव
संदर्भ:
विश्व स्वास्थ्य सभा (World Health Assembly) के 74 वें सत्र में, सभी प्रतिनिधियों द्वारा ‘संयुक्त अरब अमीरात’ द्वारा 30 जनवरी को ‘विश्व उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोग (World Neglected Tropical Diseases– NTD) दिवस‘ के रूप में घोषित करने हेतु प्रस्तुत किये गए प्रस्ताव को सर्वसम्मति से स्वीकार कर लिया गया है।
‘उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोगों’ के बारे में:
‘उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोग’ (Neglected Tropical Diseases- NTD), अफ्रीका, एशिया और अमेरिका के विकासशील क्षेत्रों में हाशिए पर रहने वाले समुदायों में पाए जाने वाले आम संक्रमण होते है।
- ये रोग, विभिन्न प्रकार के रोगजनकों जैसेकि वायरस, बैक्टीरिया, प्रोटोजोआ और परजीवी कृमियों के कारण फैलते हैं।
- इन रोगों के लिए, आमतौर पर तपेदिक, एचआईवी-एड्स और मलेरिया जैसी बीमारियों की तुलना में अनुसंधान और उपचार के लिए काफी कम व्यय किया जाता है।
- सर्पदंश, खाज-खुजली, याज़ (Yaws), ट्रेकोमा (Trachoma), काला-अज़ार (Leishmaniasis), चागास (Chagas) आदि, ‘उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोगों’ (NTDs) के कुछ उदहारण हैं।
‘उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोगों’ के उन्मूलन हेतु तीन रणनीतिक बदलावों का आह्वान करने वाला WHO का वर्ष 2021-2030 के लिए नया रोड मैप:
- प्रक्रिया को मापने की बजाय प्रभाव को मापा जाएगा।
- रोग-विशिष्ट योजना और प्रोग्रामिंग के स्थान पर सभी क्षेत्रों में सहयोगात्मक कार्य तक शुरू किया जाएगा।
- बाह्य रूप से संचालित एजेंडा के स्थान पर देश के स्वामित्व में और देश द्वारा वित्तपोषित कार्यक्रमों की शुरुआत की जाएगी।
‘विश्व उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोग दिवस‘ के लिए ‘30 जनवरी’ को चुनने का कारण:
- इस दिन, 30 जनवरी, 2012 को ‘उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोगों’ पर ‘लंदन घोषणा’ लागू की गई थी।
- अनौपचारिक रूप से, पहला ‘विश्व उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोग दिवस’ वर्ष 2020 में मनाया गया था।
‘उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोगों’ पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता क्यों है?
‘उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोगों’ (NTDs) से वैश्विक स्तर पर एक अरब से अधिक लोग प्रभावित होते हैं। हालाँकि ये बीमारियाँ रोकथाम-योग्य और उपचार-योग्य होती हैं, फिर भी, गरीबी और पारिस्थितिक तंत्र के साथ अपने जटिल अंतर्संबंधों की वजह से, ये बीमारियाँ विनाशकारी स्वास्थ्य, सामाजिक और आर्थिक परिणामों का कारण बनी हुई हैं।
इन बीमारियों का प्रसरण:
- दूषित पानी, वास-स्थानों की दयनीय स्थिति और स्वच्छता का अभाव, इन बीमारियों के फैलने का प्रमुख कारण होते हैं।
- बच्चे, उपेक्षित उष्णकटिबंधीय बीमारियों के सबसे अधिक शिकार होते हैं, तथा ये बीमारियाँ प्रतिवर्ष लाखों लोगों की मृत्यु अथवा स्थाई अपंगता का कारण बनती हैं, जिसके परिणामस्वरूप व्यक्ति को अक्सर जीवन भर शारीरिक पीड़ा और सामाजिक कलंक झेलना पड़ता है।
भारत में उपेक्षित बीमारियों पर अनुसंधान हेतु नीतियां:
- राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति (2017) में स्वास्थ्य आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए नवाचार को प्रोत्साहित करने पर जोर दिया गया है और सर्वाधिक जरूरतमंद लोगों तक सस्ती नई दवाईयों की पहुँच सुनिश्चित करती है, लेकिन इसमें विशेष रूप से उपेक्षित बीमारियों से निपटने का प्रावधान नहीं किया गया है।
- दुर्लभ रोगों के उपचार हेतु राष्ट्रीय नीति (2018) में संक्रामक उष्णकटिबंधीय बीमारीयों को शामिल किया गया हैं तथा इसमें दुर्लभ बीमारियों के उपचार पर अनुसंधान किए जाने की आवश्यकता पर बल दिया गया है। किंतु, इस नीति के तहत अनुसंधान वित्तपोषण हेतु अभी तक रोगों और क्षेत्रों की प्राथमिकता निर्धारित नहीं की गयी है।
इंस्टा जिज्ञासु:
क्या आप चगास रोग के बारे में जानते हैं? इसके बारे में और जानें: Read here
प्रीलिम्स लिंक:
- ‘विश्व स्वास्थ्य सभा’ के बारे में- रचना और कार्य
- उपेक्षित उष्णकटिबंधीय बीमारियों के उदाहरण
- 30 जनवरी को ‘विश्व उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोग दिवस’ के रूप में क्यों चुना गया है?
मेंस लिंक:
उपेक्षित उष्णकटिबंधीय बीमारियों पर एक टिप्पणी लिखिए।
स्रोत: डाउन टू अर्थ
विषय: सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय।
रक्षा उपकरणों से संबधित नकारात्मक आयात सूची
संदर्भ:
हाल ही में, रक्षा मंत्रालय द्वारा 108 वस्तुओं की दूसरी ‘नकारात्मक आयात सूची’ (Negative Import List) जारी की गई है, और अब इसका नाम परिवर्तित कर ‘सकारात्मक स्वदेशीकरण सूची‘ (Positive Indigenisation List) कर दिया गया है। इन सभी 108 वस्तुओं की खरीद स्वदेशी स्रोतों से की जाएगी।
- अब इस नई सूची शामिल कुल वस्तुओं की संख्या 209 हो गई है।
- ‘दूसरी सकारात्मक स्वदेशीकरण सूची‘ में जटिल प्रणालियां, सेंसर, सिम्युलेटर, हथियार और गोला-बारूद जैसे हेलीकॉप्टर, नेक्स्ट जेनरेशन कॉर्वेट, एयर बोर्न अर्ली वार्निंग एंड कंट्रोल (AEW&C) सिस्टम, टैंक इंजन, आदि को शामिल किया गया है।
इस कदम का महत्व और निहितार्थ:
- सूची में स्थानीय रक्षा उद्योग की क्षमता को मान्यता दी गई है।
- यह प्रौद्योगिकी व विनिर्माण क्षमताओं में नए निवेश को आकर्षित करके घरेलू अनुसंधान और विकास को भी बढ़ावा देगा।
- यह सूची ‘स्टार्ट-अप’ के साथ-साथ सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSMEs) के लिए भी एक उत्कृष्ट अवसर प्रदान करती है जिसे इस पहल से जबरदस्त बढ़ावा मिलेगा।
‘नकारात्मक आयात सूची’ नीति के बारे में:
- यह नीति, अगस्त 2020 में शुरू की गई थी। ‘नकारात्मक आयात सूची’ का मतलब है कि, सशस्त्र बलों अर्थात सेना, नौसेना और वायु सेना द्वारा इस सूची में शामिल वस्तुओं की खरीद केवल घरेलू निर्माताओं से की जाएगी।
- इन घरेलू निर्माताओं के रूप में, निजी क्षेत्र अथवा रक्षा सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम (Defence Public Sector Undertakings- DPSUs) शामिल होंगे।
इस नीति की आवश्यकता तथा प्रभाव:
स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट के अनुसार, भारत द्वारा 2014 और 2019 के बीच 16.75 बिलियन अमेरिकी डॉलर की रक्षा-संबंधी वस्तुओं का आयात किया गया और इस अवधि के दौरान यह विश्व में दूसरा सबसे बड़ा आयातक देश रहा।
- सरकार, रक्षा क्षेत्र में आयातित वस्तुओं पर निर्भरता को कम करना चाहती है और घरेलू रक्षा विनिर्माण उद्योग को बढ़ावा देना चाहती है।
- नकारात्मक आयात सूची में सम्मिलित वस्तुओं के आयात की संभावना को नकारते हुए, भारतीय सैन्य बलों की आवश्यकताओं की पूर्ती के लिए घरेलू रक्षा उद्योग को आगे बढ़ने तथा निर्माण करने का अवसर दिया गया है।
इंस्टा जिज्ञासु:
वैश्विक सैन्य व्यय के रुझानों पर रिपोर्ट: Read heer
प्रीलिम्स लिंक:
- यह नीति कब शुरू की गई थी?
- विशेषताएं
- अपवाद
- कार्यान्वयन मंत्रालय
मेंस लिंक:
‘नकारात्मक आयात सूची’ नीति की आवश्यकता और महत्व पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: द हिंदू
विषय: भारत एवं इसके पड़ोसी- संबंध।
भासन चार द्वीप पर हजारों रोहिंग्याओं द्वारा विरोध प्रदर्शन
संदर्भ:
हाल ही में, बांग्लादेश के तटवर्ती क्षेत्र में स्थित एक चक्रवात-प्रवण ‘भासन चार’ (Bhashan Char) द्वीप पर रहने लायक हालातों को लेकर कई हजार रोहिंग्याओं ने अनियंत्रित विरोध प्रदर्शन किया।
संबंधित प्रकरण:
दिसंबर के बाद से, बांग्लादेश द्वारा 18,000 शरणार्थियों को बंगाल की खाड़ी में स्थित एक गाद-निर्मित एवं निम्नस्थ भासन चार द्वीप पर स्थानांतरित किया जा चुका है, जहां ये लोग मलिन और तंग परिस्थितियों में रहते हैं।
वर्तमान में मुख्य चिंताएं:
- भासन चार (फ्लोटिंग आइलैंड), जिसे ‘चार पिया’ (Char Piya) या ‘थेंगर चार आइलैंड’ (Thengar Char Island) के नाम से भी जाना जाता है, बांग्लादेश के हटिया में स्थित एक द्वीप है।
- भासन चार द्वीप का निर्माण मात्र 20 वर्ष पूर्व बंगाल की खाड़ी में हिमालयन गाद से हुआ था। बांग्लादेश द्वारा इस विचार को पेश किये जाने के समय से ही भासन चार द्वीप पर मौसमी चरम स्थितियों और आपात स्थिति में मुख्य भूमि से दूरी को लेकर लगातार चिंताएं व्यक्त की जा रही हैं।
रोहिंग्या समुदाय के बारे में:
- रोहिंग्या, म्यांमार के कई जातीय अल्पसंख्यकों में से एक समुदाय है, जिसमे अधिकाँश आबादी मुस्लिम है। इस समुदाय के लोगों को म्यांमार द्वारा पूर्ण नागरिकता नहीं दी गई है।
- यह समुदाय मूल रूप से, एक देश-विहीन (स्टेटलेस), इंडो-आर्यन जातीय समूह हैं जो म्यांमार के रखाइन प्रांत में रहते हैं।
- इनकी अपनी भाषा और संस्कृति है और कहा जाता है, वे अरब व्यापारियों और अन्य समूहों के वंशज हैं, जो इस क्षेत्र में कई पीढ़ियों से बसे हुए हैं।
- वर्ष 2017 की शुरुआत में म्यांमार में ‘रोहिंग्या समुदाय के लोगों की संख्या लगभग एक मिलियन थी।
- अगस्त 2017 के बाद से लगभग 625,000 शरणार्थी रखाइन प्रांत से पलायन कर बांग्लादेश की सीमा में बस गए थे।
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस द्वारा ‘रोहिंग्या समुदाय के लोगों को, विश्व में सर्वाधिक नहीं, तो सबसे अधिक भेदभाव किये जाने वाले लोगों में से एक, के रूप में वर्णित किया गया है।
अंतर्राष्ट्रीय समझौतों के तहत रोहिंग्याओं को उपलब्ध सुरक्षा:
1951 के संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी अभिसमय और इसका प्रोटोकॉल 1967 (The 1951 Refugee Convention and its 1967 Protocol):
इसके अंतर्गत ‘शरणार्थी’ शब्द को परिभाषित किया गया है, तथा ‘शरणार्थियों’ के अधिकारों और शरण देने वाले राष्ट्रों की जिम्मेदारी को निर्धारित किया गया है।
- इस अभिसमय का मूल सिद्धांत, ‘शरणार्थियों को उनके मूल-देश में वापस नहीं भेजे जाने’ (non-refoulement) से संबंधित है, जिसके अनुसार, अपने देश में होने वाले उत्पीड़न से बचने के लिए, किसी दूसरे देश में शरण मागने आये हुए व्यक्ति को वापस लौटने के लिए विवश नहीं किया जाना चाहिए।
- हालांकि, चिंता का विषय यह है कि बांग्लादेश इस समझौते पर हस्ताक्षरकर्ता नहीं है।
‘नागरिक और राजनीतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय नियम‘ (International Covenant on Civil and Political Rights – ICCPR):
- भले ही शरणार्थी व्यक्ति शरण देने वाले देश में विदेशी होते हैं, किंतु उन्हें ‘नागरिक और राजनीतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय नियम’ (ICCPR), 1966 के अनुच्छेद 2 के आधार पर, नागरिकों के समान मौलिक अधिकारों और स्वतंत्रता, जैसेकि ‘कानून के समक्ष समानता का अधिकार’, ‘कानून का समान संरक्षण’ और ‘गैर-भेदभाव का अधिकार’ प्राप्त होता है
इंस्टा जिज्ञासु:
- विश्व के कुछ महत्वपूर्ण शरणार्थी संकटो के बारे में जाने। यहां पढ़ें, Read here
- क्या भारत रोहिंग्या संकट की समस्या का कोई समाधान कर सकता है? यहां पढ़ें,Read here
प्रीलिम्स लिंक:
- रोहिंग्या कौन हैं?
- रखाइन राज्य की अवस्थिति
- अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) बनाम अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय
- आईसीसीपीआर के बारे में
- 1951 का संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी अभिसमय
मेंस लिंक:
रोहिंग्या संकट पर एक टिप्पणी लिखिए।
स्रोत: द हिंदू
विषय: भारत के हितों पर विकसित तथा विकासशील देशों की नीतियों तथा राजनीति का प्रभाव; प्रवासी भारतीय।
चीन में दम्पतियों को तीसरा बच्चा पैदा करने की अनुमति
संदर्भ:
हाल ही में जारी किए गए, चीन के जनगणना आंकड़ों से पता चला है, कि देश की जनसंख्या वृद्धि दर, 1950 के दशक के बाद, सबसे धीमी है और कम होती जा रही है।
- इसके बाद से, चीन द्वारा प्रत्येक विवाहित जोड़े को तीन बच्चे पैदा करने की अनुमति देने संबंधी घोषणा की गई है।
- कृपया ध्यान दें, पांच साल पहले वर्ष 2016 में, चीन द्वारा पहली बार अपनी विवादास्पद ‘एक-बच्चा नीति’ (One-Child Policy) में बदलाव कर दो बच्चों की सीमा लगा दी थी।
चीन में ‘वन चाइल्ड पॉलिसी’ क्यों लागू की गई थी?
- चीन द्वारा ‘वन चाइल्ड पॉलिसी’ की शुरुआत वर्ष 1980 में की गई थी, उस समय चीन की जनसँख्या लगभग एक अरब के करीब पहुंच रही थी और कम्युनिस्ट पार्टी को इस बात की चिंता थी कि देश की बढ़ती आबादी, आर्थिक प्रगति को बाधित करेगी।
- इस नीति को लागू करने के लिए कई तरीके अपनाए गए थे, जिनके तहत, एक बच्चा पैदा करने वाले परिवारों के लिए आर्थिक रूप से प्रोत्साहन, गर्भनिरोधकों को व्यापक रूप से उपलब्ध कराना और नीति का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ प्रतिबंध लगाना, आदि शामिल थे।
इस नीति की आलोचनाएँ:
चीनी अधिकारियों द्वारा लंबे समय तक इस नीति को एक सफलता के रूप में बताया जाता रहा, और दावा किया गया कि, इस नीति ने, लगभग 40 करोड़ लोगों को पैदा होने से रोक कर देश के समक्ष आने वाली भोजन और पानी की कमी संबंधी गंभीर समस्याओं को टालने में मदद की है।
हालाँकि, एक बच्चे पैदा करने की सीमा, देश में असंतोष का एक कारण भी थी, जैसेकि:
- इसके लिए, राज्य द्वारा जबरन गर्भपात और नसबंदी जैसी क्रूर रणनीति का इस्तेमाल किया गया।
- यह नीति, गरीब चीनियों के लिए काफी अन्यायपूर्ण थी, क्योंकि अमीर लोग, नीति का उल्लंघन करने पर आर्थिक प्रतिबंधों का भुगतान कर सकते थे और गरीबों को दंड भुगतना पड़ता था।
- इस नीति को लागू करने के दौरान मानवाधिकारों का उल्लंघन किया गया।
- इसने सामाजिक नियंत्रण करने के एक उपकरण के रूप में, प्रजनन सीमाओं को लागू करने का मार्ग प्रशस्त किया।
- इसने पुरुषों के पक्ष में लिंगानुपात को प्रभावित किया।
- इसकी वजह से कन्या भ्रूणों के गर्भपात में वृद्धि हुई और इसी तरह अनाथालयों में परित्यक्त लड़कियों की संख्या बढ़ी।
- इसकी वजह से चीन में वृद्धो की संख्या में अन्य देशों की तुलना में तीव्र वृद्धि हुई, जिससे देश की विकास क्षमता प्रभावित हुई।
इस नीति को क्यों बंद कर दिया गया?
तेजी से बढ़ती वृद्ध आबादी की वजह से आर्थिक विकास को नुकसान पहुचने के भय से सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा एक-बच्चा नीति’ (One-Child Policy) में बदलाव कर प्रत्येक विवाहित जोड़े को दो बच्चे पैदा करने की अनुमति दी गई।
आगे के सुधारों की क्या आवश्यकता थी?
हालांकि, ‘वन चाइल्ड पॉलिसी’ में छूट देने से देश में युवा लोगों के अनुपात में कुछ सुधार तो हुआ किंतु इस नीति परिवर्तन के लिए ‘आसन्न जनसांख्यिकीय संकट’ को टालने हेतु अपर्याप्त माना गया।
आगे की चुनौतियां:
विशेषज्ञों का कहना है. कि केवल प्रजनन अधिकारों पर ढील देने से आगामी अवांछित जनसांख्यिकीय बदलाव से बचने में बहुत मदद नहीं मिल सकती है।
वर्तमान में कम बच्चे पैदा होने के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं:
- जीवन यापन, शिक्षा और वृद्ध माता-पिता के भरण-पोषण की बढ़ती लागत
- देश में लंबे समय तक काम करने की संस्कृति
- कई दम्पतियों का मानना है कि एक बच्चा काफी है, और वे अतिरिक्त बच्चे पैदा करने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं।
चीन की नवीनतम जनगणना रिपोर्ट के बारे में जानने हेतु: Read here
इंस्टा जिज्ञासु:
- भारत में ‘दो-बच्चों की नीति’ संबंधी कानून की आवश्यकता क्यों नहीं है? यहां पढ़ें, Read here
- क्या आप जानते हैं कि कुछ भारतीय राज्यों में भी इस प्रकार की नीतियां लागू हैं। यहां पढ़ें, Read here
स्रोत: द हिंदू।
सामान्य अध्ययन- III
विषय: सूचना प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष, कंप्यूटर, रोबोटिक्स, नैनो-टैक्नोलॉजी, बायो-टैक्नोलॉजी और बौद्धिक संपदा अधिकारों से संबंधित विषयों के संबंध में जागरुकता।
5G तकनीक
संदर्भ:
हाल ही में, बॉलीवुड अभिनेत्री जूही चावला ने दिल्ली उच्च न्यायालय में एक अपील दायर की गई है, जिसमे उन्होंने सेलुलर दूरसंचार द्वारा 5G तकनीक शुरू करने से पहले, इस तकनीक के उपयोग से उत्सर्जित होने वाले रेडियो-आवृत्ति विकिरण के ‘वयस्कों अथवा बच्चों के स्वास्थ्य, जीवन तथा इनके अंगो, और वनस्पतियों तथा जीवों’ पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभाव पर एक वैज्ञानिक अध्ययन कराए जाने की मांग की है।
5G क्या है?
5G तकनीक, मोबाइल ब्रॉडबैंड की अगली पीढ़ी है। यह तकनीक अंततः 4G LTE कनेक्शन को प्रतिस्थापित करेगी या इसमें महत्वपूर्ण वृद्धि करेगी।
5G तकनीक की विशेषताएं और लाभ:
- यह तकनीक, ‘मिलीमीटर वेव स्पेक्ट्रम’ (30-300 गीगाहर्ट्ज़) पर कार्य करती है, जिसके द्वारा काफी बड़ी मात्रा में डेटा को बहुत तेज गति से भेजा जा सकता है।
- 5G तकनीक, तीन बैंड्स अर्थात् निम्न, मध्य और उच्च आवृत्ति स्पेक्ट्रम में काम करती है।
- मल्टी-जीबीपीएस ट्रान्सफर रेट तथा अत्याधिक कम विलंबता (ultra-low latency), 5G तकनीक, इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT), और कृत्रिम बुद्धिमत्ता की ताकत का उपयोग करने वाली एप्लीकेशंस का समर्थन करेगी।
- 5G नेटवर्क की बढ़ी हुई क्षमता, लोड स्पाइक्स के प्रभाव को कम कर सकती है, जैसे कि खेल आयोजनों और समाचार कार्यक्रमों के दौरान होती है।
प्रौद्योगिकी का महत्व:
भारत की राष्ट्रीय डिजिटल संचार नीति 2018 में 5G के महत्व पर प्रकाश डाला गया है, जिसमें कहा गया है कि एक वृद्धिशील स्टार्ट-अप समुदाय सहित 5G, क्लाउड, इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) और डेटा एनालिटिक्स, अवसरों के एक नए क्षितिज को खोलने तथा डिजिटल जुड़ाव को तीव्र एवं गहन करने का वादा करता है।
5G से होने वाले संभावित स्वास्थ्य जोखिम:
- आज तक, और बहुत सारे शोध किए जाने के बाद, वायरलेस तकनीकों के संपर्क में आने से स्वास्थ्य पर कोई प्रतिकूल प्रभाव पड़ने के बारे में पता नहीं लगा है।
- ‘ऊतक तापन’ (Tissue heating), रेडियोफ्रीक्वेंसी क्षेत्रों और मानव शरीर के बीच अंतःक्रिया का मुख्य तंत्र होता है। वर्तमान प्रौद्योगिकियों से रेडियोफ्रीक्वेंसी स्तर के संपर्क में आने से मानव शरीर के तापमान में नगण्य वृद्धि होती है।
- जैसे-जैसे रेडियो आवृत्ति बढ़ती है, शरीर के ऊतकों में इसका प्रवेश कम होता जाता है और ऊर्जा का अवशोषण शरीर की सतह (त्वचा और आंख) तक सीमित हो जाता है।
- यदि, समग्र रेडियोफ्रीक्वेंसी स्तर का संपर्क अंतरराष्ट्रीय दिशानिर्देशों से नीचे रहता है, तो, सार्वजनिक स्वास्थ्य पर कोई असर पड़ने की संभावना नहीं है।
‘अंतर्राष्ट्रीय एक्सपोजर दिशानिर्देश’ क्या हैं?
विद्युत चुम्बकीय क्षेत्रों हेतु एक्सपोजर दिशानिर्देश, दो अंतरराष्ट्रीय निकायों द्वारा तैयार किये जाते हैं। वर्तमान में इनके द्वारा सुझाए गए दिशानिर्देशों का कई देश पालन करते हैं:
- अंतर्राष्ट्रीय गैर-आयनीकरण विकिरण संरक्षण आयोग (International Commission on Non-Ionizing Radiation Protection)
- अंतर्राष्ट्रीय विद्युत चुम्बकीय सुरक्षा समिति के माध्यम से ‘विद्युत और इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियर्स संस्थान’ (Institute of Electrical and Electronics Engineers)
- These guidelines are not technology-specific. They cover radiofrequencies up to 300 GHz, including the frequencies under discussion for 5G.
ये दिशानिर्देश, प्रौद्योगिकी-विशिष्ट नहीं होते हैं। इनके द्वारा 300 GHz तक की रेडियोफ्रीक्वेंसी को कवर किया जाता है, जिसमे 5G तकनीक संबंधी आवृत्तियां भी शामिल होती हैं।
अंतर्राष्ट्रीय प्रयास– अंतर्राष्ट्रीय विद्युत चुम्बकीय क्षेत्र (EMF) परियोजना:
WHO द्वारा वर्ष 1996 में एक अंतर्राष्ट्रीय विद्युतचुंबकीय क्षेत्र (Electromagnetic Fields- EMF) परियोजना की स्थापना की गई थी। यह परियोजना 0-300 गीगाहर्ट्ज़ आवृत्ति रेंज में बिजली और चुंबकीय क्षेत्रों के संपर्क में आने से स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव की जांच करती है और EMF विकिरण संरक्षण पर राष्ट्रीय अधिकारियों को सलाह देती है।
इंस्टा जिज्ञासु:
क्या भारत 5G तकनीक शुरू करने के लिए तैयार है? यहां पढ़ें,Read Here
प्रीलिम्स लिंक:
- 5G क्या है?
- 3G, 4G और 5G के बीच अंतर।
- अनुप्रयोग
- ‘स्पेक्ट्रम’ क्या होता है?
- EMF परियोजना के बारे में।
मेंस लिंक:
5G तकनीक के महत्व पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: द हिंदू
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य
लिटोरिया मीरा
(Litoria mira)
ये हाल ही में, न्यू गिनी के वर्षावनों में खोजी गई ‘चॉकलेट रंग’ की नई मेंढक प्रजाति हैं।
- इन मेढकों का यह नामकरण एक ‘लैटिन’ विशेषण मीरम (Mirum) से प्रेरित है, जिसका अर्थ होता है आश्चर्यचकित या अजीब। इसका नाम, वैज्ञानिकों के, मुख्य रूप से ऑस्ट्रेलियाई लिटोरिया जीनस के “ट्री फ्रॉग’ के अवर्गीकृत सदस्य की खोज करने पर आश्चर्यचकित होने की वजह से रखा गया है।
- ‘लिटोरिया मीरा’, लिटोरिया वर्ग के अन्य मेढकों से भिन्न होता है। इसका अपेक्षा सामान्य से कुछ बड़ा आकार, जालदार हाथ, अपेक्षाकृत छोटे और मजबूत अंग और आँखों के किनारे की त्वचा पर बैंगनी रंग के छोटे धब्बे होते हैं।
कृपया ध्यान दें: न्यू गिनी द्वीप और ऑस्ट्रेलिया का क्वींसलैंड, टोरेस जलसन्धि (Torres Strait) द्वारा एक दूसरे से अलग होते हैं।
केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (CBDT)
केंद्र सरकार द्वारा जेबी महापात्रा को तीन महीने के लिए केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (Central Board of Direct Taxes – CBDT) का अंतरिम प्रमुख नियुक्त किया गया है।
CBDT के बारे में:
- यह ‘केंद्रीय राजस्व बोर्ड अधिनियम’, 1963 के अनुसार स्थापित एक वैधानिक निकाय है।
- यह भारत की आधिकारिक ‘वित्तीय कार्रवाई कार्यबल’ इकाई है।
- यह वित्त मंत्रालय के अधीन राजस्व विभाग द्वारा प्रशासित होता है।
Join our Official Telegram Channel HERE for Motivation and Fast Updates
Subscribe to our YouTube Channel HERE to watch Motivational and New analysis videos