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INSIGHTS करेंट अफेयर्स+ पीआईबी नोट्स [ DAILY CURRENT AFFAIRS + PIB Summary in HINDI ] 19 May 2021

 

विषयसूची

 सामान्य अध्ययन-II

1. भारतीय संविधान का अनुच्छेद 311

2. चुनावी बांड

3. ज्यादा कार्य-घंटो के कारण हृदय रोगों से होने वाली मौतों में वृद्धि: रिपोर्ट

4. इज़राइल-फिलीस्तीन संघर्ष

5. आर्कटिक क्षेत्र का सैन्यीकरण किए जाने का अमेरिका द्वारा विरोध

 

सामान्य अध्ययन-III

1. हिम तेंदुए पर ‘विश्व वन्यजीव कोष’ की रिपोर्ट

 

प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य

1. अंतर्राष्ट्रीय संग्रहालय दिवस 2021

2. ‘न्यूज़ शोकेस’

3. कोलंबो बंदरगाह शहर

 


सामान्य अध्ययन- II


 

विषय: भारतीय संविधान- ऐतिहासिक आधार, विकास, विशेषताएँ, संशोधन, महत्त्वपूर्ण प्रावधान और बुनियादी संरचना।

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 311


संदर्भ:

हाल ही में, महाराष्ट्र पुलिस के एक निलंबित अधिकारी को मुंबई पुलिस आयुक्त ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 311 (2) (b) के तहत बिना विभागीय जांच के सेवा से बर्खास्त कर दिया।

लोक सेवकों के लिए प्राप्त संरक्षोपाय:

  • अनुच्छेद 311 (1): के अनुसार, किसी लोक सेवक को, उसकी नियुक्ति करने वाले प्राधिकारी के अधीनस्थ किसी प्राधिकारी द्वारा पदच्युत नहीं किया जाएगा या पद से नहीं हटाया जाएगा।
  • अनुच्छेद 311 (2): के अनुसार, किसी लोक सेवक को, उसके विरुद्ध आरोपों के संबंध में सुनवाई का युक्तियुक्त अवसर दिए बगैर उसे पदच्युत अथवा पद से नहीं हटाया जाएगा या ओहदे में अवनत नहीं किया जाएगा।

अनुच्छेद 311 तहत संरक्षोपाय:

अनुच्छेद 311, का उद्देश्य लोक सेवकों के लिए एक सुरक्षा कवच प्रदान करना है। इसके अंतर्गत लोक सेवकों के लिए उनके खिलाफ लगे आरोपों की जांच के दौरान अपना पक्ष रखने हेतु अवसर दिए जाने का प्रावधान किया गया है, ताकि उन्हें मनमाने ढंग से सेवा से बर्खास्त नहीं किया जा सके।

अनुच्छेद 311 (2) (b) में इन संरक्षोपायों के अपवाद हेतु भी प्रावधान किये गए हैं।

  • इसमें कहा गया है, “जहाँ किसी व्यक्ति को पदच्युत करने या पद से हटाने या पंक्ति में अवनत करने के लिए सशक्त प्राधिकारी का यह समाधान हो जाता है कि किसी कारण से, जो उस प्राधिकारी द्वारा लिखित रूप में दर्ज किया जाएगा, कि इस मामले में जाँच करना युक्तियुक्त रूप से साध्य नहीं है”।

क्या अनुच्छेद 311 (2) के तहत की गई बर्खास्तगी को सरकारी कर्मचारी द्वारा चुनौती दी जा सकती है?

हां, इन प्रावधानों के तहत बर्खास्त किए गए सरकारी कर्मचारी ‘राज्य प्रशासनिक न्यायाधिकरण’ या ‘केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण’ (CAT) या न्यायालयों में अपील कर सकते हैं।

प्रीलिम्स लिंक:

  1. अनुच्छेद 311 (2) के बारे में।
  2. संविधान के तहत लोक सेवकों के लिए प्राप्त संरक्षोपाय

मेंस लिंक:

संविधान के अंतर्गत लोक सेवकों के लिए प्राप्त संरक्षोपायों पर एक टिप्पणी लिखिए।

स्रोत: द हिंदू

 

विषय: शासन व्यवस्था, पारदर्शिता और जवाबदेही के महत्त्वपूर्ण पक्ष, ई-गवर्नेंस- अनुप्रयोग, मॉडल, सफलताएँ, सीमाएँ और संभावनाएँ; नागरिक चार्टर, पारदर्शिता एवं जवाबदेही और संस्थागत तथा अन्य उपाय।

चुनावी बांड


(Electoral Bonds)

संदर्भ:

तमिलनाडु, पुडुचेरी, पश्चिम बंगाल, असम और केरल ने जोर-शोर से चल रहे चुनावी अभियान के दौरान, 1 अप्रैल से 10 अप्रैल के बीच ‘भारतीय स्टेट बैंक’ (SBI) ने ₹695.34 करोड़ के चुनावी बांड्स की बिक्री की।

वर्ष 2018 में इस योजना की शुरुआत होने के बाद से, किसी भी विधानसभा चुनाव के दौरान यह सर्वाधिक राशि की बांड्स बिक्री थी।

चुनावी बांड्स / ‘इलेक्टोरल बांड’ क्या होते हैं?

  • चुनावी बॉन्ड / ‘इलेक्टोरल बांड’ (Electoral Bond), राजनीतिक दलों को चंदा देने के लिए एक वित्तीय साधन है।
  • इन बांड्स के लिए, 1,000 रुपए, 10,000 रुपए, 1 लाख रुपए, 10 लाख रुपए और 1 करोड़ रुपए के गुणकों में जारी किया जाता है, और इसके लिए कोई अधिकतम सीमा निर्धारित नहीं की गयी है।
  • इन बॉन्डों को जारी करने और भुनाने के लिए ‘भारतीय स्टेट बैंक’ को अधिकृत किया गया है। यह बांड जारी होने की तारीख से पंद्रह दिनों की अवधि के लिए वैध होते हैं।
  • ये बॉन्ड किसी पंजीकृत राजनीतिक दल के निर्दिष्ट खाते में प्रतिदेय होते हैं।
  • ये बांड, केंद्र सरकार द्वारा निर्दिष्ट जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर महीनों में प्रत्येक दस दिनों की अवधि में किसी भी व्यक्ति द्वारा खरीदे जा सकते है, बशर्ते उसे भारत का नागरिक होना चाहिए अथवा भारत में निगमित या स्थित होना चाहिए ।
  • कोई व्यक्ति, अकेले या अन्य व्यक्तियों के साथ संयुक्त रूप से इन बांड्स को खरीद सकता है।
  • बांड्स पर दान देने वाले के नाम का उल्लेख नहीं होता है।

प्रीलिम्स लिंक:

  1. चुनावी बांड क्या हैं?
  2. पात्रता
  3. बांड का मूल्यवर्ग
  4. विशेषताएं
  5. ये बांड कौन जारी कर सकता है?

मेंस लिंक:

पारदर्शी राजनीतिक वित्तपोषण सुनिश्चित करने में चुनावी बांड की प्रभावशीलता की आलोचनात्मक रूप से परीक्षण कीजिए तथा इसके लिए विकल्प सुझाएँ?

स्रोत: द हिंदू।

 

विषय: स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय।

ज्यादा कार्य-घंटो के कारण हृदय रोगों से होने वाली मौतों में वृद्धि: रिपोर्ट


संदर्भ:

हाल ही में, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) द्वारा लंबे समय तक काम करने और इसके प्रभाव पर एक रिपोर्ट प्रकाशित की गई है।

रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष:

  • प्रति सप्ताह 55 घंटे या उससे अधिक काम करना, स्वास्थ्य के लिए एक गंभीर खतरा है।
  • ज्यादा कार्य-घंटो के कारण वर्ष 2016 में ह्रदयाघात और इस्किमिक हृदय रोगों (Ischemic Heart Disease) अर्थात हार्ट फ़ेल होने की वजह से 745,000 मौतें हुईं, जोकि वर्ष 2000 के बाद से 29% अधिक थीं।
  • अध्ययन के निष्कर्षों के अनुसार, प्रति सप्ताह 55 घंटे या उससे अधिक काम करने वालों के लिए प्रति सप्ताह 35-40 घंटे काम करने वालों की तुलना में ह्रदयाघात से मरने का खतरा 35% तथा इस्केमिक हृदय रोग से मरने का खतरा 17% अधिक होता है।

सर्वाधिक संवेदनशील समूह:

  • पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र और दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्रों में रहने वाले लोगों तथा मध्यम आयु वर्ग या अधिक उम्र के कर्मियों, विशेष रूप से पुरुषों (लगभग 72% पुरुष) की, कार्य-संबंधी रोगों से अधिक मौतें होती हैं।
  • रिपोर्ट के अनुसार, सर्वाधिक मौतें 60-79 वर्ष आयु-वर्ग के लोगों की दर्ज की गई। प्रति सप्ताह 55 घंटे या उससे अधिक काम करने वालों में सर्वाधिक लोग 45 से 74 वर्ष आयु-वर्ग के थे।

संबंधित चिंताएं:

  • लंबे समय तक काम करना, वर्तमान में, कार्य-संबंधी रोगों के कुल अनुमानित भार के लगभग एक-तिहाई के लिए जिम्मेदार माना जाता है और इसे व्यावसायिक रोगों संबंधी खतरों का सबसे बड़ा कारक साबित किया जा चुका है।
  • इसकी वजह से चिंतन की दिशा, स्वास्थ्य के लिए अपेक्षाकृत नए और अधिक मनो-सामाजिक व्यावसायिक खतरों की और मुड़ गई है।
  • इसके अलावा, लंबे समय तक काम करने वाले लोगों की संख्या बढ़ रही है और अब वैश्विक स्तर पर यह कुल आबादी का 9% हो चुकी है। यह प्रवृत्ति, अधिक संख्या में लोगों को काम से संबंधित विकलांगता और समय से पहले मृत्यु के जोखिम में डाल रही है।

महामारी का प्रभाव:

  • वर्तमान में जारी महामारी से एक नए तरीके की विकास-प्रक्रिया गति पकड़ रही है, जिसमें कार्य-समय में वृद्धि की प्रवृत्ति को बढ़ावा मिल सकता है।
  • कई उद्योगों में टेली-वर्किंग एक आम बात हो गई है, जिससे प्रायः घर और काम के बीच की सीमा-रेखा अस्पष्ट हो जाती है।
  • इसके अलावा, कई व्यवसायों को, पैसे बचाने के लिए अपने काम को कम करना पड़ा है अथवा काम बंद करने पर विवश होना पड़ा है, और जो लोग अभी भी वेतनयाफ्ता हैं, वे लंबे समय तक काम करना पड़ रहा है।

आवश्यकता:

कोई भी नौकरी, ह्रदयाघात या हृदय रोगों का जोखिम उठाने के लायक नहीं होती है। श्रमिकों के स्वास्थ्य की रक्षा करने हेतु सरकारों, नियोक्ताओं और श्रमिकों को कार्य-समय की सीमाओं का निर्धारण करने के लिए मिलकर काम करने की आवश्यकता है।

सरकार, अनिवार्य ओवरटाइम पर प्रतिबंध लगाने तथा कार्य-समय की अधिकतम सीमा सुनिश्चित करने वाले कानून लागू कर सकती है।

स्रोत: लाइवमिंट

 

विषय: भारत के हितों पर विकसित तथा विकासशील देशों की नीतियों तथा राजनीति का प्रभाव; प्रवासी भारतीय।

 इज़राइल-फिलीस्तीन संघर्ष


संदर्भ:

हाल ही में, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में, भारत ने न्यायसंगत रूप से फिलीस्तीनी पक्ष के लिए अपना दृढ़ समर्थन तथा ‘दो-राष्ट्र समाधान’ (Two-State Solution) पर अपनी अटल प्रतिबद्धता को दोहराया है।

पृष्ठभूमि:

वर्तमान में, इजराइल और गाजा पट्टी में लड़ाई जारी है। इस लड़ाई में, लगभग 200 फिलिस्तीनी मारे जा चुके हैं, और अधिकारियों का कहना है कि मरने वालों में लगभग आधी संख्या महिलाओं और बच्चों की है। इजराइल में कम से कम 10 लोगों के मारे जाने की सूचना प्राप्त हुई है।

इज़राइल और फिलीस्तीनियों के बीच बढ़ते हुए संघर्ष को देखते हुए ‘संयुक्त राष्ट्र’ ने इसे ‘पूर्ण-स्तर के युद्ध’ में बदलने की चेतावनी दी है।

सबसे पहले, गाजा पट्टी कहाँ है?

गाजा पट्टी (Gaza Strip) एक पूर्णतयः कृत्रिम रूप से निर्मित रचना है, जिसे इज़राइल के निर्माण के दौरान, वर्ष 1948 में फिलिस्तीन की लगभग तीन-चौथाई विस्थापित, कुछ मामलों में निष्कासित, अरब आबादी को बसाने के लिए तैयार किया गया था।

  • इस दौरान, अधिकांश शरणार्थी, पड़ोसी देशों, जैसकि जॉर्डन, सीरिया और लेबनान में बिखरे गए।
  • कुछ शरणार्थी आबादी ‘वेस्ट बैंक’ में बस गई, जिस पर 1948 के बाद जॉर्डन ने अपना अधिकार स्थापित कर लिया।
  • विस्थापित आबादी की बड़ी संख्या ‘गाजा पट्टी’ में जाकर बस गई, जोकि मिस्र और वर्तमान इजराइल के मध्य स्थित एक संकरी सी तटीय पट्टी है।
  • वर्तमान में, गाजा पट्टी की कुल आबादी में से लगभग 70% आबादी शरणार्थी हैं।

‘गाजा पट्टी’ पर किसका नियंत्रण है?

‘हमास’ (Hamas) ने वर्ष 2007 में गाजा पट्टी पर बलपूर्वक कब्जा कर लिया था। इसके तुरंत बाद, इज़राइल ने गाजा की सीमाओं को पूरी तरह से बंद कर दिया और गाजा को एक दुश्मन इकाई घोषित कर दिया। गाजा को एक देश का दर्जा प्राप्त नहीं है।

‘हमास’ को इसके द्वारा आम नागरिकों पर किए गए हमलों के इतिहास को देखते हुए, इज़राइल तथा संयुक्त राज्य अमेरिका सहित अधिकांश अंतर्राष्ट्रीय समुदाय द्वारा एक आतंकवादी संगठन के रूप में देखा जाता है।

इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष- ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:

  • जॉर्डन नदी और भूमध्य सागर के बीच भूमि के एक टुकड़े को लेकर यहूदियों और अरबों के बीच 100 वर्षों से भी अधिक समय से संघर्ष जारी है।
  • साल 1882 से 1948 के बीच दुनिया भर के यहूदी फिलिस्तीन में एकत्र हुए थे। इतिहास में, इस घटना को अलियाह (Aliyahs) के नाम से जाना जाता है।
  • फिर वर्ष 1917 में, प्रथम विश्व युद्ध के बाद तुर्क साम्राज्य का पतन हो गया और फिलिस्तीन पर ब्रिटेन ने नियंत्रण कर लिया।
  • इस क्षेत्र में अल्पसंख्यक यहूदी और बहुसंख्यक अरब निवास करते थे।
  • इस क्षेत्र पर ब्रिटेन का कब्ज़ा होने के बाद, फिलीस्तीन में यहूदियों को बसाने के उद्देश्य से बालफोर घोषणा (Balfour Declaration) जारी की गई। जबकि, उस समय फिलिस्तीन में बहुसंख्यक आबादी अरबों की थी।
  • यहूदियों ने इस ‘बालफोर घोषणा’ का समर्थन किया जबकि फिलिस्तीनियों ने इसे मानने से अस्वीकार कर दिया। कुछ समय पहले यूरोप में हुए होलोकॉस्ट (Holocaust) में लगभग 6 मिलियन यहूदी मारे जा चुके थे, और इस कारण से एक पृथक यहूदी राज्य की मांग तेजी पर चल रही थी।
  • यहूदियों ने फिलिस्तीन को अपना प्राकृतिक घर बताते हुए इस पर अपना दावा किया, और दूसरी और अरबों ने भी अपनी जमीन को नहीं छोड़ा और अपना दावा कायम रखा।
  • अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने यहूदियों का समर्थन किया।
  • 1947 में, संयुक्त राष्ट्र द्वारा फिलिस्तीन को एक पृथक यहूदी देश और अरब देश में विभाजित करने के पक्ष में मतदान किया गया, जिसमें यरूशलेम एक अंतरराष्ट्रीय शहर बना दिया गया।
  • विभाजन की इस योजना को यहूदी नेताओं ने स्वीकार कर लिया किंतु अरब पक्ष ने इसे खारिज कर दिया और कभी मान्यता नहीं दी।

इज़राइल का निर्माण और ‘विनाश’:

  • वर्ष 1948 में ब्रिटेन ने इस क्षेत्र से अपना नियंत्रण वापस ले लिया और यहूदियों ने इज़राइल के निर्माण की घोषणा कर दी। हालांकि, फिलीस्तीनियों ने इसका विरोध किया, किंतु यहूदी पीछे नहीं हटे और इसके परिणामस्वरूप दोनों के मध्य सशस्त्र संघर्ष शुरू हो गया।
  • इसी दौरान पड़ोसी अरब देशों ने भी इस क्षेत्र पर हमले किए, किंतु इजरायली सैनिकों ने इन्हें पराजित कर दिया। इस लड़ाई के बाद हजारों फिलिस्तीनियों को अपने घरों से पलायन करना पड़ा। इस घटना के लिए ‘अल-नकबा’ (Al-Nakba), या “विनाश” कहा जाता है।
  • लड़ाई के समाप्त होने के बाद इस क्षेत्र के अधिकाँश भू-भाग को इज़राइल ने अपने नियंत्रण में ले लिया।
  • फिर, जॉर्डन का इज़राइल के साथ युद्ध हुआ जिसमे ‘वेस्ट बैंक’ कहे जाने वाले क्षेत्र पर जॉर्डन ने अपना कब्ज़ा कर लिया तथा गाजा पर मिस्र ने अपना अधिकार जमा लिया।
  • यरुशलम शहर, दो हिस्सों में विभाजित हो गया, इसके पूर्व भाग पर जॉर्डन का अधिकार है, जबकि पश्चिमी भाग पर इज़राइल का नियंत्रण है। अभी तक, किसी भी औपचारिक शांति समझौते पर हस्ताक्षर नहीं किए गए है और इस क्षेत्र में होने वाले तनाव के लिए प्रत्येक पक्ष एक-दूसरे को दोषी ठहराता रहता है, और इस क्षेत्र में लड़ाई होती रहती है।
  • वर्ष 1967 में, इजरायली सेना ने पूर्वी यरुशलम और वेस्ट बैंक, सीरिया की ‘गोलन हाइट्स’, गाजा और मिस्र के सिनाई प्रायद्वीप के विभिन्न क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया था।

वर्तमान परिदृश्य:

  • इज़राइल का अभी भी वेस्ट बैंक पर कब्जा है, हालांकि इसने गाजा पर अपना अधिकार छोड़ दिया है किंतु, संयुक्त राष्ट्र अभी भी भूमि के इस भाग को अधिकृत क्षेत्र का हिस्सा मानता है।
  • इज़राइल, पूरे यरुशलम को अपनी राजधानी होने का दावा करता है, जबकि फिलिस्तीनी, पूर्वी यरुशलम को भविष्य के फिलिस्तीनी राष्ट्र की राजधानी होने का दावा करते हैं।
  • अमेरिका, पूरे यरुशलम शहर पर इज़राइल के दावे को मान्यता देने वाले गिने-चुने देशों में से एक है।

वर्तमान घटनाक्रम:

  • पूर्वी यरुशलम, गाजा और वेस्ट बैंक में रहने वाले इज़राइल और फिलिस्तीनियों के बीच अक्सर तनाव में वृद्धि होती रहती है।
  • गाजा पर ‘हमास’ नामक एक फिलीस्तीनी उग्रवादी समूह का शासन है, जो कई बार इज़राइल से संघर्ष कर चुका है। ‘हमास’ को प्राप्त होने वाले हथियारों की आपूर्ति पर रोक लगाने हेतु इज़राइल और मिस्र ने गाजा की सीमाओं पर कड़ा नियंत्रण लगाया हुआ है।
  • गाजा और वेस्ट बैंक में फिलीस्तीनियों का कहना है, कि वे इज़राइल की कार्रवाइयों और प्रतिबंधों के कारण पीड़ित हैं। इज़राइल का कहना है कि वह केवल फिलिस्तीनी हिंसा से खुद को बचाने के लिए कार्रवाइयां कर रहा है।
  • अप्रैल 2021 के मध्य में रमजान के पवित्र मुस्लिम महीने की शुरुआत के बाद से पुलिस और फिलिस्तीनियों के बीच हुई झड़पों के साथ तनाव में वृद्धि हो गई है।
  • पूर्वी यरुशलम में कुछ फिलीस्तीनी परिवारों को बेदखल किए जाने की धमकी से भी आग और भड़की है।

प्रीलिम्स लिंक:

  1. वेस्ट बैंक कहाँ है?
  2. गाजा पट्टी
  3. गोलन हाइट्स
  4. ‘हमास’ कौन हैं?
  5. ‘अल-नकबा’ क्या है?
  6. इजराइल-फिलिस्तीन संघर्ष के बारे में

मेंस लिंक:

लंबे समय से चले आ रहे इजराइल-फिलिस्तीन संघर्ष को समाप्त करने के उपाय सुझाएं।

स्रोत: द हिंदू।

 

विषय: महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थान, संस्थाएँ और मंच- उनकी संरचना, अधिदेश।

 आर्कटिक क्षेत्र का सैन्यीकरण किए जाने का अमेरिका द्वारा विरोध


संदर्भ:

आर्कटिक परिषद के विदेश मंत्रियों की होने वाली बैठक की पूर्व संध्या पर, अमेरिका ने आर्कटिक क्षेत्र में हो रही सैन्य गतिविधियों में बढ़ोत्तरी के बारे में चिंता व्यक्त की है।

रूस द्वारा इस सामरिक क्षेत्र में अपनी सैन्य गतिविधियों का बचाव करने के बाद अमेरिका द्वारा यह विषय उठाया गया है।

संबंधित चिंताएं:

आर्कटिक क्षेत्र में सैन्य गतिविधियों की होने वाली वृद्धि से, संभावित दुर्घटनाओं का खतरा बढ़ता है, और ये, इस क्षेत्र में शांतिपूर्ण और स्थाई भविष्य के साझा लक्ष्य को कमजोर करती हैं।

पृष्ठभूमि:

हाल के वर्षों में, राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने रूस के आर्कटिक क्षेत्र को एक रणनीतिक प्राथमिकता बना दिया है और सैन्य अवसंरचनाओं तथा खनिज निष्कर्षण हेतु निवेश करने का आदेश दिया है, जिससे आर्कटिक परिषद के सदस्यों में तनाव बढ़ गया है।

‘आर्कटिक परिषद’ के बारे में:

  • ‘आर्कटिक परिषद’ (Arctic council), एक अंतर-सरकारी मंच है, जो आर्कटिक क्षेत्र के राष्ट्रों की सरकारों और इस क्षेत्र में रहने वाले लोगों के समक्ष आने वाले मुद्दों का समाधान करती है।
  • यह, किसी संधि पर आधारित अंतरराष्ट्रीय संगठन नहीं है, बल्कि एक अंतरराष्ट्रीय मंच है जो आम सहमति के आधार पर कार्य करता है।
  • ‘आर्कटिक परिषद’ के निर्णय, सिफारिशें या दिशानिर्देश गैर-प्रवर्तनीय होते हैं और पूर्णतयः राष्ट्र विशेष का विशेषाधिकार होते हैं।
  • इसका अधिदेश में ‘सैन्य सुरक्षा’ को स्पष्ट रूप से बाहर रखा गया है।

‘आर्कटिक परिषद’ के भागीदार:

1996 के ओटावा घोषणापत्र में निम्नलिखित देशों को आर्कटिक परिषद के सदस्यों के रूप में सूचीबद्ध किया गया है: कनाडा, डेनमार्क, फिनलैंड, आइसलैंड, नॉर्वे, रूसी संघ, स्वीडन और संयुक्त राज्य अमेरिका।

  • इसके अलावा, आर्कटिक के स्थानीय लोगों का प्रतिनिधित्व करने वाले छह संगठनों को स्थायी प्रतिभागी (Permanent Participants) के रूप में दर्जा प्राप्त है।
  • इस संगठनों में, अलयूत इंटरनेशनल एसोसिएशन (Aleut International Association), आर्कटिक अथाबास्कन काउंसिल (Arctic Athabaskan Council), गिविन काउंसिल इंटरनेशनल (Gwich’in Council International), इनुइट परि-धुर्वीय काउंसिल (Inuit Circumpolar Council), रशियन एसोसिएशन ऑफ इंडिजिनस पीपल्स ऑफ द नॉर्थ तथा सामी काउंसिल (Saami Council) शामिल हैं।
  • आर्कटिक परिषद में पर्यवेक्षक का दर्जा, गैर-आर्कटिक राज्यों के साथ-साथ अंतर-सरकारी, अंतर-संसदीय, वैश्विक, क्षेत्रीय और गैर-सरकारी संगठनों के लिए खुला है। पर्यवेक्षक सदस्यों के लिए, आर्कटिक क्षेत्र में उनके योगदान के आधार पर परिषद द्वारा निर्णय लिया जाता है।

आर्कटिक परिषद कार्य समूह:

  1. आर्कटिक संदूषक कार्रवाई कार्यक्रम (Arctic Contaminants Action Program- ACAP) – यह प्रदूषकों के उत्सर्जन को कम करने के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रमों को प्रोत्साहित करने वाले तंत्रों को मजबूत करना और इनका समर्थन करना।
  2. आर्कटिक निगरानी एवं आकलन कार्यक्रम (Arctic Monitoring and Assessment Programme- AMAP) – यह, आर्कटिक पर्यावरण, पारिस्थितिक तंत्र और मानव आबादी की निगरानी करता है, और सरकारों को प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों से निपटने के लिए वैज्ञानिक सलाह प्रदान करता है।
  3. आर्कटिक वनस्पतियों और जीवों का संरक्षण (Conservation of Arctic Flora and Fauna- CAFF) – यह आर्कटिक जैव विविधता के संरक्षण संबंधी मामलों का समाधान करता है तथा आर्कटिक के जीवित संसाधनों की संवहनीयता सुनिश्चित करने के लिए कार्य करता है।
  4. आपातकालीन निवारण, तैयारी और प्रतिक्रिया (Emergency Prevention, Preparedness and Response- EPPR) – यह, आर्कटिक पर्यावरण को प्रदूषकों या रेडियोन्यूक्लाइड के आकस्मिक निर्गमन के खतरे तथा इसके प्रभाव से बचाव करता है।
  5. आर्कटिक समुद्री पर्यावरण का संरक्षण (Protection of the Arctic Marine Environment- PAME) – यह आर्कटिक समुद्री पर्यावरण का संरक्षण और सतत उपयोग सुनिश्चित करता है।
  6. सतत विकास कार्यसमूह (Sustainable Development Working Group – SDWG) – आर्कटिक में सतत विकास को आगे बढ़ाने और समग्र रूप से आर्कटिक समुदायों की स्थितियों में सुधार हेतु कार्य करता है।

प्रीलिम्स लिंक:

  1. NISER क्या है?
  2. आर्कटिक परिषद के बारे में।
  3. NCPOR के बारे में।
  4. IndARC क्या है?
  5. आर्कटिक में भारत के स्थायी अनुसंधान केंद्र के बारे में।

मेंस लिंक:

आर्कटिक के सैन्यीकरण किये जाने से संबंधित मुद्दों पर चर्चा कीजिए।

स्रोत: द हिंदू।

 


सामान्य अध्ययन- III


 

विषय: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन।

हिम तेंदुए पर विश्व वन्यजीव कोष की रिपोर्ट


(WWF report on snow leopard)

संदर्भ:

हाल ही में, ‘प्रकृति संरक्षण हेतु विश्व वन्यजीव कोष’ (Worldwide Fund for Nature-WWF) द्वारा “हिम तेंदुआ अनुसंधान के लगभग 100 साल – हिम तेंदुआ क्षेत्र में जानकारी स्थिति की स्थानिक सुस्पष्ट समीक्षा” (Over 100 Years of Snow Leopard Research — A spatially explicit review of the state of knowledge in the snow leopard range) शीर्षक से एक रिपोर्ट जारी की गई है।

रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष:

  1. 12 से अधिक एशियाई देशों में, हिम तेंदुए के 70 प्रतिशत से अधिक आवास क्षेत्रों, पर शोध नहीं किया गया है।
  2. हिम तेंदुआ पर सर्वाधिक अनुसंधान नेपाल, भारत और चीन द्वारा किया गया है, इन देशों के बाद मंगोलिया और पाकिस्तान का स्थान है।
  3. हिम तेंदुओं की आबादी का आकलन, अब तक किये जाने वाले शोध का प्रमुख केंद्र रहा है, इसके बाबजूद , बड़े आकार की इस बिल्ली प्रजाति के, मात्र तीन प्रतिशत से भी कम क्षेत्र के बारे में प्रचुर आंकड़े उपलब्ध हैं।
  4. वैश्विक स्तर पर, एशिया के ऊंचे पहाड़ों पर अधिकतम लगभग 4,000 हिम तेंदुए ही बचे हैं और इस बची हुई आबादी को निरंतर और उभरते हुए खतरों का सामना करना पड़ रहा है।

हिम तेंदुओं के समक्ष खतरों में शामिल हैं:

इनके आवासों का नष्ट होना तथा आवासों का निम्नीकरण, अवैध शिकार, मानव समुदायों के साथ संघर्ष आदि में वृद्धि।

भारत में हिम तेंदुआ संरक्षण:

  1. भारत सरकार ‘प्रोजेक्ट स्नो लेपर्ड’ (Project Snow Leopard- PSL) के माध्यम से हिम तेंदुए और उसके आवास-स्थलों का संरक्षण कर रही है।
  2. भारत, वर्ष 2013 से ‘वैश्विक हिम तेंदुआ और पारिस्थितिकी तंत्र संरक्षण’ (Global Snow Leopard and Ecosystem Protection- GSLEP) कार्यक्रम में भी भागीदार रहा है।
  3. हिम तेंदुआ संरक्षण के लिए, भारत ने तीन बड़े परिदृश्यों को चिन्हित किया है: लद्दाख एवं हिमाचल प्रदेश में हेमिस- स्पिति, (Hemis-Spiti), उत्तराखंड में गंगोत्री-नंदा देवी और सिक्किम एवं अरुणाचल प्रदेश में विस्तृत खंगचेंदजोंगा- तवांग (Khangchendzonga – Tawang)।
  4. हिम तेंदुआ और उसके वास स्थान संरक्षण हेतु समावेशी और भागीदारी के दृष्टिकोण को बढ़ावा देने के लिए वर्ष 2009 में प्रोजेक्ट स्नो लेपर्ड (Project Snow Leopard- PSL) की शुरुआत की गयी थी।
  5. हिम तेंदुआ, पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के बहाली कार्यक्रम (Recovery Programme) हेतु 21 गंभीर रूप से लुप्तप्राय प्रजातियों की सूची में सम्मिलित है।

संरक्षण स्थिति:

हिम तेंदुओं को IUCN और भारतीय वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम 1972 की अनुसूची-I में असुरक्षित (Vulnerable) के रूप में वर्गीकृत किया गया है।

  • वन्यजीवों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर अभिसमय (CITES) की परिशिष्ट I और प्रवासी प्रजाति अभिसमय (CMS) में सूचीबद्ध हैं।
  • यह स्थिति, विश्व स्तर पर और भारत में, इन प्रजातियों को उच्चतम संरक्षण दर्जा प्रदान करने की आवश्यकता को रेखांकित करती है।

भारत द्वारा शुरू किए गए संरक्षण प्रयास:

  • प्रोजेक्ट स्नो लेपर्ड (PSL): यह पूरी तरह से स्थानीय समुदाय को शामिल करते हुए संरक्षण हेतु समावेशी और सहभागी दृष्टिकोण को बढ़ावा देता है।
  • सुरक्षित हिमालय (SECURE Himalaya): वैश्विक पर्यावरण सुविधा (Global Environment Facility- GEF) – संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) द्वारा उच्च तुंगता पर पाई जाने वाली जैव विविधता के संरक्षण तथा स्थानीय समुदायों की प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र पर निर्भरता को कम करने वाली परियोजना हेतु वित्तपोषण किया जा रहा है।
  • यह परियोजना, वर्तमान में चार हिम तेंदुआ क्षेत्र के राज्यों, अर्थात् जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और सिक्किम में चालू है।

प्रीलिम्स लिंक:

  1. IUCN के तहत हिम तेंदुए की संरक्षण स्थिति
  2. प्रोजेक्ट हिम तेंदुए के बारे में
  3. भारत में हिम तेंदुए- वितरण और संरक्षण केंद्र
  4. GSLEP के बारे में
  5. बिश्केक घोषणा के बारे में

स्रोत: डाउन टू अर्थ

 


प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य


अंतर्राष्ट्रीय संग्रहालय दिवस 2021

(International Museum Day)

अंतर्राष्ट्रीय संग्रहालय दिवस हर वर्ष 18 मई को मनाया जाता है।

  • 2021 का विषय: ‘संग्रहालय का भविष्य: पुनर्प्राप्त और पुनर्कल्पना’ (The Future of Museums: Recover and Reimagine) है।
  • अंतर्राष्ट्रीय संग्रहालय दिवस का उद्देश्य, इस तथ्य के बारे में जागरूकता बढ़ाना है कि, “संग्रहालय सांस्कृतिक आदान-प्रदान, संस्कृतियों के संवर्धन और लोगों के बीच आपसी समझ, सहयोग और शांति का विकास करने का महत्वपूर्ण साधन हैं।”

‘न्यूज़ शोकेस’

(News Showcase)

  • हाल ही में, गूगल द्वारा राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और स्थानीय समाचार संगठनों सहित 30 समाचार प्रकाशकों को शामिल करते हुए, भारत में, एक ‘समाचार प्रदर्शन-मंजूषा’ अर्थात ‘न्यूज़ शोकेस’ शुरू करने की घोषणा की गई है।
  • यह ‘न्यूज शोकेस’ पार्टनर प्रकाशकों को सामग्री को क्यूरेट करने की अनुमति देता है जिसे गूगल के समाचार और खोज प्लेटफॉर्म पर ‘स्टोरी पैनल’ के रूप में प्रदर्शित किया जाएगा।
  • इसके लिए, प्रौद्योगिकी फर्में, प्रकाशकों को उनकी सामग्री का लाइसेंस देने, वॉल पर प्रदर्शित की जाने वाली सामग्री तक भुगतान करने वाले पाठकों के लिए सीमित पहुंच प्रदान करती है।
  • वैश्विक स्तर पर, जर्मनी, ब्राज़ील, कनाडा, फ़्रांस, जापान, यू.के., ऑस्ट्रेलिया, इटली और अर्जेंटीना सहित देशों में 700 से अधिक समाचार प्रकाशनों ने ‘गूगल न्यूज़ शोकेस’ के लिए अनुबंधों पर हस्ताक्षर किए हैं।

कोलंबो बंदरगाह शहर

(Colombo Port City)

यह एक चीन द्वारा वित्त पोषित, एक कर-मुक्त विदेशी अंतःक्षेत्र (Enclave) है, जिसे श्रीलंका द्वारा दुबई और सिंगापुर की तर्ज पर पेश किया गया है।

यह श्रीलंका में सबसे बड़ा एकल विदेशी निवेश है तथा चीन द्वारा वित्त पोषित कई विशाल एशियाई अवसंरचना परियोजनाओं में से एक है।

इसके लिए श्रीलंका की संसद में एक विधेयक पेश किया गया है, जिसके पारित होने पर, इस पोर्ट सिटी को एक आयोग द्वारा प्रशासित किया जाएगा। इस आयोग के लिए निवेश-अनुमोदन प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए विशेष शक्तियां प्रदान की जाएंगी।

पोर्ट सिटी के भीतर लेनदेन में विदेशी मुद्रा की प्रधानता रहेगी और इसमें किसी भी कर्मचारी द्वारा अर्जित किए जाने वाले वेतन कर-मुक्त होंगे।


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