INSIGHTS करेंट अफेयर्स+ पीआईबी नोट्स [ DAILY CURRENT AFFAIRS + PIB Summary in HINDI ] 06 May 2021

 

विषयसूची

सामान्य अध्ययन-I

1. ‘स्थलानुरेख’ क्या है?

 

सामान्य अध्ययन-II

1. मराठा आरक्षण असंवैधानिक है: उच्चतम न्यायालय

2. छत्तीसगढ़ की टीकाकरण नीति और इसका अदालत में विरोध

3. वैज्ञानिकों द्वारा सूत्र मॉडल पर प्रश्नचिह्न

 

सामान्य अध्ययन-III

1. लघु एवं मध्यम व्यवसायों को महामारी से बचाने के लिए आरबीआई द्वारा उपायों की घोषणा

 

प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य

1. ‘इंडियन SARS-CoV-2 जीनोमिक्स कंसोर्टियम (INSACOG)

2. वैश्विक नवाचार साझेदारी (GIP)

 


सामान्य अध्ययन-I


 

विषय: भूकंप, सुनामी, ज्वालामुखीय हलचल, चक्रवात आदि जैसी महत्त्वपूर्ण भू-भौतिकीय घटनाएँ, भौगोलिक विशेषताएँ और उनके स्थान।

‘स्थलानुरेख’ क्या है?


(What is a lineament?)

स्थलानुरेख (lineament), किसी भूदृश्य में, अंतर्निहित भूगर्भीय संरचना जैसेकि भ्रंश (Fault) के प्रभाव से निर्मित एक रेखीय आकृति होती है।

संदर्भ:

हाल के एक अध्ययन के अनुसार, उत्तरी असम के शोणितपुर क्षेत्र में लगातार भूकंप आने का एक कारक, एक अज्ञात स्थलानुरेख (lineament) है।

असम में लगातार भूकंप आने के कारण:

भारतीय भूगर्भीय सर्वेक्षण (Geological Survey of India- GSI) के अनुसार, शोणितपुर जिला, विवर्तनिक रूप से जटिल त्रिकोणीय क्षेत्र में अवस्थित है। यह क्षेत्र पूर्व-पश्चिम दिशा में फैले हुए अथेरखेत भ्रंश (Atherkhet Fault), उत्तरपश्चिम से दक्षिणपूर्व दिशा की ओर जाने वाले कोपिली भ्रंश (Kopili Fault) तथा उत्तर-दक्षिण दिशा में फैले स्थलानुरेख (lineament) से घिरा है।

पूर्वोत्तर भारत भूकंप के प्रति संवेदनशील क्यों है?

  1. सियांग दरार (Siang Fracture), एमला भ्रंश (Yemla Fault), नामुला क्षेप (Namula Thrust) और कैनियन क्षेप (Canyon Thrust) पूरे पूर्वोत्तर क्षेत्र में फैले हुए हैं तथा मुख्य हिमालय क्षेप (Main Himalayan Thrust), मुख्य सीमा क्षेप (Main Boundary Thrust), मुख्य केंद्रीय क्षेप (Main Central Thrust) तथा कई गौण भ्रंशो के सहारे सक्रिय हैं।
  2. पूर्वोत्तर क्षेत्र को भूकंपीय मंडल V (Seismic Zone V) में सीमांकित किया गया है, जोकि अति संवेदनशीलता वाले क्षेत्र को इंगित करता है।
  3. भारतीय प्लेट, उत्तर-पूर्व दिशा में, हिमालय क्षेत्र में यूरेशियन प्लेट की ओर गतिशील है। इन दोनों प्लेटों के तिर्यक टकराव तथा स्थानीय विवर्तनिक (टेक्टॉनिक) अथवा भ्रंश सरंचनाओ में संचित दबाव तथा तनाव का निर्गमन होने से भूकंप की घटनाएँ होती हैं।

प्रीलिम्स लिंक:

स्थलानुरेख (lineament) क्या होता है?

निम्नलिखित की पहचान करें:

  1. अथेरखेत भ्रंश
  2. कोपिली भ्रंश
  3. सियांग दरार
  4. एमला भ्रंश
  5. नामुला क्षेप
  6. कैनियन क्षेप

मेंस लिंक:

पूर्वोत्तर भारत भूकंप के प्रति अत्यधिक संवेदनशील क्यों है? चर्चा कीजिए।

स्रोत: द हिंदू

 


सामान्य अध्ययन-II


 

विषय : भारतीय संविधान- ऐतिहासिक आधार, विकास, विशेषताएँ, संशोधन, महत्त्वपूर्ण प्रावधान और बुनियादी संरचना।

मराठा आरक्षण असंवैधानिक है: उच्चतम न्यायालय


संदर्भ:

हाल ही में, उच्चतम न्यायालय के पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ द्वारा, राज्य के अधीन सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में मराठा समुदाय को आरक्षण देने वाले महाराष्ट्र के कानून को रद्द कर दिया गया।

‘मराठा आरक्षण कानून’ क्या था?

  1. नवंबर 2018 में, ‘महाराष्ट्र राज्य सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़ा वर्ग अधिनियम’ के अंतर्गत मराठा समुदाय को आरक्षण प्रदान किया गया था।
  2. इस विशेष अधिनियम को महाराष्ट्र राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग सहित विधानसभा और विधान परिषद दोनों के द्वारा अनुमोदित किया गया था।
  3. शिक्षा और नौकरियों में क्रमशः 12 और 13 प्रतिशत मराठा आरक्षण दिए जाने से समग्र आरक्षण सीमा (शिक्षा और नौकरियों में) बढ़कर 64 प्रतिशत और 65 प्रतिशत हो गई थी।

न्यायिक हस्तक्षेप:

प्रारंभ में, ‘सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़ा वर्ग’ (SEBC) के अंतर्गत दिए जाने वाले आरक्षण को बॉम्बे उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका के माध्यम से चुनौती दी गई थी। बॉम्बे उच्च न्यायालय ने आरक्षण को बरकरार रखते हुए कहा कि आरक्षण को 16 प्रतिशत की बजाय, इसे घटाकर शिक्षा में 12 प्रतिशत और नौकरियों में 13 प्रतिशत किया जाना चाहिए।

  • तदनुसार, मराठा छात्रों के लिए शैक्षणिक संस्थानों और नौकरियों में प्रदान करने हेतु अधिनियम लागू किया गया था।
  • 9 सितंबर, 2020 में, मराठा आरक्षण के समक्ष एक और बाधा उत्पन्न हो गई, क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इसके कार्यान्वयन पर रोक लगा दी गई और मामले को भारत के मुख्य न्यायाधीश के लिए सौंप दिया गया।

1992 का इंदिरा साहनी फैसला

वर्ष 1992 के इंद्रा साहनी बनाम भारत संघ मामले में दिए गए ऐतिहासिक फैसले में, मंडल कमीशन की रिपोर्ट को बरकरार रखा गया था, तथा शीर्ष अदालत द्वारा दो महत्वपूर्ण उदाहरण निर्धारित किये गए थे।

  1. सबसे पहले, अदालत ने कहा कि किसी समुदाय को आरक्षण प्रदान करने हेतु अर्हता कसौटी उसका “सामाजिक और शैक्षणिक पिछड़ापन” है।
  2. दूसरा, अदालत ने ऊर्ध्वाधर आरक्षण की 50% सीमा को दोहराते हुए तर्क दिया, कि यह प्रशासन में “दक्षता” सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है। हालांकि, अदालत ने कहा कि यह 50% की सीमा “असाधारण परिस्थितियों” छोड़कर लागू होगी।

मराठा आरक्षण क़ानून को रद्द करने का कारण:

  • मराठा आरक्षण दिए जाने से आरक्षण की सीमा निर्धारित 50 प्रतिशत को पार कर गई थी।
  • अदालत ने कहा, कि मराठा समुदाय के लिए अलग से आरक्षण प्रदान करने से,, अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और 21 (विधि की सम्यक प्रक्रिया) का उल्लंघन होता है।

महाराष्ट्र सरकार की दलीलें:

  • इंद्रा साहनी फैसले को पुनर्विचार के लिए 11-न्यायाधीशों की खंडपीठ के पास भेजा जाना चाहिए, क्योंकि इसमें एक मनमाने ढंग से सीमा का निर्धारण कर दिया गया, जिस पर संविधान में कोई विचार नहीं किया गया है।
  • इसके अतिरिक्त, इंद्र साहनी मामले के बाद में, सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए कुछ फैसलों में, स्वयं ही इस नियम से छूट ली गयी है।

1992 के फैसले पर पुनर्विचार करने पर अदालत की टिप्पणी:

अदालत ने कहा है, कि इस मामले पर पुनर्विचार करने की कोई आवश्यकता नहीं है। अदालत ने कहा कि हालाँकि, वर्ष 1992 में अदालत द्वारा 50% आरक्षण की सीमा का निर्धारण मनमाने ढंग से किया गया था, किंतु यह अब संवैधानिक रूप से मान्यता प्राप्त है।

मराठा आरक्षण, अपवादात्मक मामला क्यों नहीं हो सकता है?

मराठा समुदाय एक प्रभावशाली अगड़ा समुदाय है, तथा राष्ट्रीय जीवन की मुख्य धारा में शामिल हैं। इसलिए, अदालत ने उपरोक्त स्थिति को कोई एक असाधारण मामला नहीं माना है।

‘सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़ा वर्ग’ (SEBC) को चिह्नित करने हेतु राज्य की शक्ति तथा 102 वें संशोधन पर अदालत की टिप्पणी:

संविधान (एक सौ और दूसरा संशोधन) अधिनियम, 2018 के अंतर्गत ‘राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग’ को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया गया है।

इस संशोधन के तहत राष्ट्रपति के लिए पिछड़े वर्गों को अधिसूचित करने की शक्तियाँ प्रदान की गयीं हैं।

  • कई राज्यों द्वारा इस संशोधन की व्याख्या पर सवाल उठाए गए है, और इन्होने तर्क दिया है, कि यह संशोधन उनकी शक्तियों पर अंकुश लगाता है।
  • हालांकि, न्यायिक पीठ द्वारा एकमत से 102 वें संशोधन की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा गया।
  • पीठ की बहुमत राय के अनुसार, हालांकि ‘सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़ा वर्ग’ (SEBC) की पहचान केंद्रीय रूप से की जाएगी, किंतु फिर भी, राज्य सरकारों के लिए, आरक्षण की सीमा निर्धारित करने और “सहकारी संघवाद” की भावना में विशिष्ट नीति बनाने की शक्ति होगी।

प्रीलिम्स लिंक:

  1. 102 वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम के बारे में
  2. मराठा आरक्षण कानून के बारे में।
  3. भारतीय संविधान की 9 वीं अनुसूची क्या है।
  4. इंदिरा साहनी निर्णय।

मेंस लिंक:

मराठा आरक्षण कानून के बारे में सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले के निहितर्थों पर चर्चा कीजिए।

स्रोत: द हिंदू

 

विषय: सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय।

छत्तीसगढ़ की टीकाकरण नीति और इसका अदालत में विरोध


संदर्भ:

छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय द्वारा राज्य सरकार की टीकाकरण नीति के खिलाफ नेताओं और वकीलों द्वारा दायर की गई हस्तक्षेप याचिकाओं पर सुनवाई की जा रही है।

राज्य की नीति के अनुसार, राज्य सरकार द्वारा नागरिकों की आर्थिक स्थिति के आधार पर टीकाकरण किया जाएगा।

टीकाकरण नीति के प्रमुख बिंदु:

छत्तीसगढ़ राज्य की टीकाकरण नीति के अंतर्गत, 18-44 वर्ष आयुवर्ग की आबादी का तीन चरणों में टीकाकरण किया जाएगा।

  1. पहले चरण में, अंत्योदय कार्ड धारकों को टीकाकरण किया जाना है।
  2. दूसरे चरण में, बीपीएल कार्ड धारकों को टीकाकरण किया जाएगा।
  3. इसके बाद, तीसरे चरण में एपीएल कार्ड धारक को टीका लगाया जाएगा।

इस प्रकार के उप-वर्गीकरण की आवश्यकता:

  • राज्य के लिए उपलब्ध टीकों की सीमित संख्या के कारण इस प्रकार के उप-वर्गीकरण किया गया है।
  • इसके अलावा, शिक्षा की कमी, स्मार्ट फोन व इंटरनेट तक पहुंच के अभाव के कारण गरीब आबादी के लिए टीकाकरण का लाभ प्राप्त करना कठिन हो जाता है।

चूंकि, अंत्योदय समूह अधिकांशतः दूरदराज के क्षेत्रों में रहते हैं, जिनमे से अधिकतर या तो अशिक्षित हैं, या कोविद -19 महामारी, इसके लक्षणों, जटिलताओं, पोर्टल पर पंजीकरण करने की आवश्यकता और बुनियादी ढांचे से संबंधित जानकारी से अनभिज्ञ होते है, और काफी स्वतंत्र रूप से गतिविधियाँ करते रहते है, जिससे बीमारी और अधिक तेजी से फैलती है।

राज्य की टीकाकरण नीति के खिलाफ दिए गए तर्क:

  • राज्य सरकार द्वारा टीकाकरण के लिए किया गया यह उप-वर्गीकरण, संवैधानिक अधिदेश के परे है और प्रत्यक्षतः समानता के कानून और विधि के समक्ष समान अवसर का उल्लंघन करता है।
  • यह नागरिकों के बीच उनके जीवन के अधिकार के संदर्भ में भेदभाव करता है।

उच्च न्यायालय द्वारा राज्य सरकार के लिए दिए गए निर्देश:

  • राज्य द्वारा गरीबी रेखा से नीचे,अंत्योदय समूह और गरीबी रेखा से ऊपर की आबादी के लिए टीके आवंटन का एक उचित अनुपात तय किया जाए।
  • टीकों का उचित अनुपात निर्धारित करके राज्य सरकार द्वारा एक योजना बनाई जाए।
  • मौके पर पंजीकरण करने तथा टीका लगाने हेतु ‘हेल्प डेस्कों’ की स्थापना की जाए।

‘अंत्योदय कार्ड धारक’ कौन होते है?

‘अंत्योदय अन्न योजना’ केंद्र सरकार की एक योजना है, जिसके तहत “निर्धनों में भी सबसे निर्धन” की पहचान कर एक पीला राशन कार्ड दिया जाता है। यह इस बात का संकेत होता है, कि इनके लिए भारी रियायती दरों पर चावल, गेहूं और अन्य राशन मदें प्रदान की जाएंगी।

  • इस श्रेणी में, 15,000 रुपये से कम वार्षिक आय वाले परिवार, बिना किसी सहारे के वरिष्ठ नागरिक, विधवा और बेरोजगार व्यक्ति आते हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

 

विषय: स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय।

वैज्ञानिकों द्वारा सूत्र मॉडल पर प्रश्नचिह्न


संदर्भ:

सरकार समर्थित ‘सूत्र मॉडल’ (SUTRA model) द्वारा कोविड-19 महामारी की तीव्रता और कमी के बारे में पूर्वानुमान लगाने की क्षमता पर कई वैज्ञानिकों द्वारा सवाल उठाया जा रहा है। वैज्ञानिकों का कहना है, कि इस मॉडल की यह धारणा बनाने में कि “भारत में कोविड-19 महामारी की भयावह दूसरी लहर आने की संभावना नहीं है”, अतिकाय भूमिका हो सकती है।

SUTRA मॉडल क्या है?

‘ससेप्टेबल, अनडिटेक्टिड, टेस्टेड (पॉजिटिव), एंड रिमूव्ड अप्रोच’ (SUTRA) मॉडल पहली बार सार्वजनिक रूप से लोगों के ध्यान में तब आया, जब बीते अक्टूबर में इसके एक विशेषज्ञ सदस्य ने घोषणा की थी कि भारत ‘कोविड महामारी की चरम सीमा” से गुजर चुका है।

कोविड-प्रक्षेपवक्र का पूर्वानुमान लगाने के लिए सूत्र मॉडल तीन मुख्य मापदंडों का उपयोग करता है।

  1. बीटा (beta): इसे ‘संपर्क दर’ भी कहा जाता है, तथा यह किसी संक्रमित व्यक्ति द्वारा अन्य लोगों के संक्रमित होने के बारे में बताता है। यह R0 मान से संबंधित होता है, जो किसी संक्रमित व्यक्ति के द्वारा उसके संक्रमण के दौरान वायरस से संक्रमित होने वाले अन्य लोगों की संख्या होती है।
  2. पहुँच (Reach): यह महामारी के प्रति आबादी के जोखिम के स्तर को मापता है।
  3. एप्सिलॉन’ (epsilon): जो पता लगाए जा चुके और गैर-पता लगाए गए मामलों का अनुपात होता है।

इस मॉडल पर सवाल उठाए जाने के कारण:

  1. गलत पूर्वानुमान: मॉडल के अनुसार, अप्रैल के तीसरे सप्ताह तक महामारी की ‘दूसरी लहर’ चरम पर रहेगी तथा लगभग संक्रमण मामलों की संख्या लगभग 1 लाख रहेगी।
  2. कई मापदंड: सूत्र मॉडल, बहुत सारे मापदंडों पर निर्भर होने के कारण संदिग्ध हो जाता है, तथा जब इसके पूर्वानुमान गलत साबित हो जाते हैं तो इसके मापदंडो में अंशशोधन कर दिया जाता है।
  3. इसमें वायरस द्वारा किये जाने वाले व्यवहार के महत्व को शामिल नहीं किया गया है।
  4. तथ्य यह है कि कुछ लोग दूसरों की तुलना में वायरस को अधिक मात्रा में प्रसारित करने वाले होते हैं, जैसेकि, घर से काम करने वाले व्यक्ति की तुलना में ‘बाल काटने वाला नाई या कोई रिसेप्शनिस्ट’ वायरस का बड़ा प्रेषक होता है।
  5. सामाजिक या भौगोलिक विविधता के विवरण का अभाव।
  6. इसमें, आयु के हिसाब से जनसंख्या का स्तरीकरण नहीं किया जाता है और यह विभिन्न आयु समूहों के बीच संपर्कों को धयान में नहीं रखता है, जिससे इस मॉडल की वैधता कम होती है।

प्रीलिम्स लिंक और मेन्स लिंक:

SUTRA मॉडल से संबंधित मुद्दे और इसकी प्रमुख विशेषताएं।

स्रोत: द हिंदू

 


सामान्य अध्ययन-III


 

विषय: भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधनों को जुटाने, प्रगति, विकास तथा रोज़गार से संबंधित विषय।

लघु एवं मध्यम व्यवसायों को महामारी से बचाने के लिए आरबीआई द्वारा उपायों की घोषणा


संदर्भ:

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा देश में लघु एवं मध्यम व्यवसायों और व्यक्तिगत ऋणकर्ताओं को कोविड-19 की तीव्र दूसरी लहर के प्रतिकूल प्रभाव से बचाने हेतु उपायों की घोषणा की गई है।

घोषित उपाय:

  1. रिज़र्व बैंक द्वारा लघु वित्त बैंकों के लिए द्वारा रेपो दर पर ₹10,000 करोड़ के ‘विशेष दीर्घावधि रेपो परिचालन’ (special three-year long-term repo operations– SLTRO) करने का निर्णय लिया गया है। लघु वित्त बैंकें (SFBs), इस राशि से प्रति उधारकर्ता को ₹10 लाख तक का नया ऋण देने में सक्षम होंगी।
  2. लघु वित्त बैंकों (SFBs) के लिए व्यक्तिगत उधारकर्ताओं को आगे उधार देने के लिए लघु वित्त संस्थानों अर्थात MFIs (₹ 500 करोड़ तक की संपत्ति के आकार वाले) को नए ऋण देने की अनुमति दी गई है।
  3. राज्य सरकारों को अपने नकदी-प्रवाह और बाजार उधार के संदर्भ में अपनी वित्तीय स्थिति को बेहतर ढंग से प्रबंधित करने के लिए, ओवरड्राफ्ट (OD) सुविधाओं के लाभ के संबंध में कुछ छूट दी जा रही है। तदनुसार, एक तिमाही में ओवरड्राफ्ट की अधिकतम दिनों की संख्या 36 से 50 दिन और ओवरड्राफ्ट की लगातार दिनों की संख्या 14 से बढ़ाकर 21 दिन की जा रही है।

पात्रता:

  1. ₹25 करोड़ तक के सकल एक्सपोजर वाले उधारकर्ता, जिन्होंने पहले के पुनर्गठन ढांचे के तहत पुनर्गठन का कोई भी लाभ नहीं उठाया है, और 31 मार्च 2021 तक जिन्हें ‘मानक’ के रूप में वर्गीकृत किया गया था, प्रस्तावित फ्रेमवर्क के तहत पात्र होंगे।
  2. समाधान ढांचा 0 के तहत अपने ऋणों का पुनर्गठन करने वाले व्यक्तिगत उधारकर्ताओं और छोटे व्यवसायों के संबंध में, जहां समाधान योजना को दो वर्ष से कम की अधिस्थगन की अनुमति दी गई है, ताकि अधिस्थगन अवधि और / या अवशिष्ट अवधि को कुल 2 वर्षों तक बढ़ाया जा सके।
  3. पूर्व में पुनर्गठन किए गए छोटे व्यवसायों और एमएसएमई के संबंध में, कार्यशील पूंजी चक्र, मार्जिन आदि के पुनर्मूल्यांकन के आधार पर, कार्यशील पूंजी की स्वीकृत सीमाओं की समीक्षा करने के लिए, ऋण संस्थानों को एकबारगी उपाय के रूप में अनुमति दी जा रही है।

स्रोत: द हिंदू

 


प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य


इंडियन SARS-CoV-2 जीनोमिक्स कंसोर्टियम (INSACOG)

(Indian SARS-CoV-2 Genomic Consortia)

  • INSACOG को वर्ष 2020 में शुरू किया गया था, इसमें 10 लैब शामिल हैं।
  • ‘इंडियन SARS-CoV-2 जीनोमिक्स कंसोर्टियम का समग्र उद्देश्य बहु-प्रयोगशाला नेटवर्क के माध्यम से नियमित आधार पर SARS-CoV-2 में जीनोमिक परिवर्तनों की निगरानी करना है।
  • यह महत्वपूर्ण शोध कंसोर्टियम भविष्य में संभावित टीके विकसित करने में भी सहायता करेगा।

वैश्विक नवाचार साझेदारी (GIP)

(Global Innovation Partnership)

केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा वैश्विक नवाचार साझेदारी (Global Innovation Partnership- GIP) पर भारत और यूनाइटेड किंगडम के बीच समझौता-ज्ञापन को अनुमति प्रदान की गई है, यह अनुमति पूर्व रूप से प्रभावी होगी।

  • जीआईपी भारत के अन्वेषकों को अन्य देशों में अपने नवाचार का विकास करने में मदद करेगी।इससे नये बाजार मिलेंगे और अन्वेषक आत्मनिर्भर बनेंगे।
  • जीआईपी, नवाचार सतत विकास लक्ष्य सम्बन्धी सेक्टरों पर फोकस करेगा, ताकि लाभार्थी देश अपने-अपने सतत विकास लक्ष्यों को हासिल कर सकें।
  • बुनियादी वित्तपोषण, अनुदान, निवेश और तकनीकी सहयोग के जरिये यह साझेदारी भारतीय उद्यमियों और अन्वेषकों की सहायता करेगी, ताकि वे अपने नवाचार विकास समाधानों को विकासशील देशों तक पहुंचा सकें।
  • जीआईपी के तहत चुने गये नवाचार सतत विकास लक्ष्य प्राप्त करने में तेजी लायेंगे और निचले पायदान पर खड़ी आबादी को लाभ मिलेगा। इस तरह लाभार्थी देशों में बराबरी और समावेशी उद्देश्य को प्राप्त किया जा सकेगा।
  • जीआईपी से खुला और समावेशी ई-बाजार भी विकसित होगा, जिसके तहत बाजारों के बीच नवाचार का अंतरण होगा। इस दिशा में किये जाने वाले प्रयासों का लगातार आंकलन करने में मदद मिलेगी तथा पारदर्शिता और जवाबदेही को प्रोत्साहन मिलेगा।

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