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INSIGHTS करेंट अफेयर्स+ पीआईबी नोट्स [ DAILY CURRENT AFFAIRS + PIB Summary in HINDI ] 10 April 2021

 

विषयसूची

 सामान्य अध्ययन-II

1. उपासना स्थल अधिनियम, 1991

2. जम्मू में रोहिंग्या की प्रवासियों की रिहाई से उच्चतम न्यायालय का इंकार

3. भूटान और चीन के मध्य सीमा वार्ता तय

4. संयुक्तराष्ट्र में चीन और पाकिस्तान द्वारा एक-दूसरे के ‘मूल हितों’ को समर्थन

5. नौवहन कार्यवाही की स्वतंत्रता (FONOP)

 

सामान्य अध्ययन-III

1. केन-बेतवा परियोजना

 

प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य

1. नैनोस्निफर

 


सामान्य अध्ययन-II


 

विषय: सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय।

उपासना स्थल अधिनियम


(Places of Worship Act)

संदर्भ:

विशेषज्ञों के अनुसार, उपासना स्थल अधिनियम (Places of Worship Act), 1991 के अंतर्गत काशी और मथुरा जैसे धार्मिक स्थलों की जाँच करना प्रतिबंधित है।

संबंधित प्रकरण:

  • यह मामला, हाल ही में वाराणसी की एक अदालत द्वारा ‘काशी विश्वनाथ मंदिर-ज्ञानवापी मस्जिद’ परिसर में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को जांच करने का आदेश जारी करने के बाद सामने आया है।
  • विशेषज्ञों ने यह भी सवाल उठाया है, कि क्या सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ द्वारा उचित ठहराए गए कानून के खिलाफ, सिविल कोर्ट के न्यायाधीश को इस तरह का निर्देश जारी करने की शक्ति हासिल है?

उपासना स्थल अधिनियम, 1991 के बारे में:

  • अधिनियम में यह घोषणा की गयी है, कि किसी भी उपासना स्थल का धार्मिक स्वरूप वैसा ही रहेगा जैसा 15 अगस्त 1947 को था।
  • इसमें कहा गया है कि कोई भी व्यक्ति किसी भी धार्मिक संप्रदाय के उपासना स्थल को अलग संप्रदाय या वर्ग में नहीं बदलेगा।
  • इस क़ानून के अनुसार, 15 अगस्त 1947 को विद्यमान किसी उपासना स्थल के धार्मिक स्वरूप के संपरिवर्तन के संदर्भ में किसी न्यायालय, अधिकरण या अन्य प्राधिकारी के समक्ष लंबित कोई वाद, अपील या अन्य कार्यवाही इस अधिनियम के प्रारंभ पर उपशमित हो जाएगी और इसं पर आगे कानूनी कार्यवाही नहीं की जा सकती है।

अधिनियम के उद्देश्य:

  • इस अधिनियम का उद्देश्य, किसी उपासना स्थल के धार्मिक स्वरूप को, उसकी 15 अगस्त 1947 को विद्यमान स्थिति में स्थिर रखना है।
  • अधिनियम में, उपासना स्थल के उक्त तिथि को विद्यमान धार्मिक स्वरूप के रखरखाव का भी प्रावधान किया गया है।
  • इसका उद्देश्य किसी भी समूह द्वारा उपासना स्थल की पूर्व स्थिति के बारे में, तथा उस संरचना अथवा भूमि पर नए दावे करने से रोकने हेतु पहले से उपाय करना था।
  • इस क़ानून से दीर्घकालीन सांप्रदायिक सद्भाव के संरक्षण में मदद करने की अपेक्षा की गयी थी।

अपवाद:

अधिनियम के प्रावधान निम्नलिखित संदर्भों में लागू नहीं होंगे:

  1. उक्त उपधाराओं में निर्दिष्ट कोई उपासना स्थल, जो प्राचीन संस्मारक तथा पुरातत्वीय स्थल और अवशेष अधिनियम, 1958 के अन्तर्गत आने वाला कोई प्राचीन और ऐतिहासिक संस्मारक या कोई पुरातत्वीय स्थल या अवशेष है।
  2. इस अधिनियम के प्रारंभ के पूर्व किसी न्यायालय, अधिकरण या अन्य प्राधिकारी द्वारा, उपरोक्त मामलों से संबंधित कोई वाद, अपील या अन्य कार्यवाही, जिसका अंतिम रूप से विनिश्चय, परिनिर्धारण या निपटारा कर दिया गया है।
  3. इस अधिनियम की कोई बात उत्तर प्रदेश राज्य के अयोध्या में स्थित राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद के रूप में सामन्यतः ज्ञात स्थान या उपासना स्थल से संबंधित किसी वाद, अपील या अन्य कार्यवाही पर लागू नहीं होगी। इस अधिनियम के उपबंध, किसी अन्य लागू क़ानून के ऊपर प्रभावी होंगे ।

प्रीलिम्स लिंक:

  1. उपासना स्थल अधिनियम की मुख्य विशेषताएं
  2. उद्देश्य
  3. कानून के तहत अपवाद

मेंस लिंक:

‘उपासना स्थल अधिनियम’ से संबंधित मुद्दों पर एक टिप्पणी लिखिए।

स्रोत: द हिंदू

 

विषय: भारत एवं इसके पड़ोसी- संबंध।

जम्मू में रोहिंग्या की प्रवासियों की रिहाई से उच्चतम न्यायालय का इंकार


संदर्भ:

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है, कि जम्मू में बंद अवैध रोहिंग्या प्रवासियों को कानून का पालन किए बगैर वापस म्यांमार नहीं भेजा जाएगा।

केंद्र सरकार ने, अदालत को आश्वासन देते हुए कहा है कि रोहिंग्या प्रवासियों को देश से निर्वासित करने में कानून का निष्ठापूर्वक पालन किया जाएगा।

संबंधित प्रकरण:

कुछ समय पूर्व, अदालत में रोहिंग्या शरणार्थियों से संबंधित एक याचिका दायर की गई थी, जिसमे, हिरासत में लिए गये रोहिंग्या शरणार्थियों को तत्काल तुरंत रिहा करने तथा केंद्र शासित प्रदेश सरकार और गृह मंत्रालय को अनौपचारिक शिविरों में रोहिंग्याओं के लिए शीघ्र ही ‘शरणार्थी पहचान पत्र’ जारी करने हेतु निर्देश देने की मांग की गयी है।

अदालत की टिप्पणी:

हालांकि, संविधान में प्रतिष्‍ठापित ‘समता का अधिकार’ (अनुच्छेद 14) और ‘विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया’ (अनुच्छेद 21) का अधिकार भारत के नागरिकों तथा प्रवासियों, दोनों को प्राप्त है, तथा ‘निर्वासित नहीं किए जाने का अधिकार’ नागरिकता के आनुषंगिक है।

  1. ‘निर्वासित नहीं किए जाने का अधिकार’, संविधान के अनुच्छेद 19 (1)(e) के तहत प्रद्दत ‘भारत के किसी भी हिस्से में निवास करने या बसने के अधिकार’ के ‘आनुषांगिक’ या ‘सहवर्ती’ है।
  2. संविधान का अनुच्छेद 19 (1)(e), भारत के प्रत्येक नागरिक को, देश के संपूर्ण राज्य क्षेत्र में सर्वत्र अबाध रूप से भ्रमण करने, निवास करने और बसने का अधिकार प्रदान करता है।

भारत में शरणार्थियों पर लागू होने वाले कानून और नियम:

भारत में, विशेष रूप से शरणार्थियों से संबंधित कोई कानून पारित नहीं किया गया है।

  • इसलिए, रोहिंग्या शरणार्थियों को अक्सर ‘विदेशियों विषयक अधिनियम’ (Foreigners Act), 1946 तथा ‘विदेशियों विषयक आदेश’ (Foreigners Order), 1948 के तहत सरकार द्वारा निर्वासित किये जाने वाले अवैध आप्रवासियों के वर्ग में शामिल कर लिया जाता है।
  • हालांकि, एक विधिक रूप से, शरणार्थी, अप्रवासियों की एक विशेष श्रेणी होते है और उन्हें ‘अवैध अप्रवासियों के वर्ग में शामिल नहीं किया जा सकता है।

प्रीलिम्स लिंक:

  1. रोहिंग्या कौन हैं?
  2. ‘रखाइन प्रदेश’ की अवस्थिति।
  3. अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के बारे में।
  4. अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) बनाम अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय।

मेंस लिंक:

रोहिंग्या संकट पर एक टिप्पणी लिखिए।

स्रोत: द हिंदू

 

विषय: भारत एवं इसके पड़ोसी- संबंध।

 भूटान और चीन के मध्य सीमा वार्ता तय  


संदर्भ:

भूटान और चीन, दोनों देश, शीघ्र ही सीमा-वार्ता आयोजित करने तथा सीमा-विवाद संबंधी समाधान प्रक्रिया को तेज करने हेतु रोडमैप पर चर्चा करने के लिए सहमत हो गए हैं।

आगामी वार्ता, दोनों देशों के मध्य सीमा वार्ता प्रक्रिया का 25 वां दौर होगा। वर्ष 2017 में हुए डोकलाम गतिरोध, तथा अरुणाचल प्रदेश के साथ लगने वाली भूटान की पूर्वी सीमा पर जून 2020 में चीन के द्वारा अपना दावा करने के बाद यह पहली वार्ता होगी।

विवादित क्षेत्र:

अब तक, इन वार्ताओं में दो विवादित क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित किया गया है: भूटान के उत्तर में अवस्थित ‘पसामलंग घाटी’ (Pasamlung Valley) तथा ‘जकरलंग घाटी’ (Jakarlung Valley) और भूटान के पश्चिम में भारत के साथ त्रिकोणीय जंक्शन पर अवस्थित ‘डोकलाम’।

हालांकि, जून 2020 में संयुक्त राष्ट्र की एक पर्यावरणीय बैठक में, चीन ने भूटान के पूर्वी क्षेत्र में अवस्थित ‘सकतेंग वन्यजीव अभयारण्य’ (Sakteng Wildlife sanctuary) को भी विवादित बताते हुए, अभयारण्य को दिए जा रहे अनुदान पर आपत्ति जताई थी।

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भारत के लिए चिंता का विषय:

  • चीन द्वारा किये जाने वाले क्षेत्रीय दावे, भारत के छोटे पड़ोसी देशों पर दबाव डालने तथा इन देशों को भारत के साथ किसी प्रकार की निकटता रखने के लिए दंडित करने हेतु, चीनी रणनीति का एक हिस्सा है।
  • वर्ष 2017 में चीन ने ‘डोकलाम पठार’ में घुसपैठ की थी, जिस पर भूटान अपना दावा करता है, जिससे भारतीय और चीनी सेनाओं के बीच ‘गतिरोध’ की स्थिति उत्पन्न हो गई थी।

प्रीलिम्स लिंक:

  1. मानचित्र पर निम्नलिखित को खोजें: सकतेंग, डोकलाम, जकरलंग, चुम्बी घाटी और डोकलाम।
  2. भारत, भूटान और चीन के मध्य त्रि-पक्षीय संधि-स्थल सीमा।

मेंस लिंक:

डोकलाम स्टैंड-ऑफ पर एक टिप्पणी लिखिए।

स्रोत: द हिंदू

  

विषय: भारत एवं इसके पड़ोसी- संबंध।

संयुक्तराष्ट्र में चीन और पाकिस्तान द्वारा एक-दूसरे के मूल हितोंको समर्थन


संदर्भ:

चीन और पाकिस्तान ने संयुक्तराष्ट्र संबंधी मामलों पर द्विपक्षीय विमर्श करने के बाद, संयुक्त राष्ट्र में एक-दूसरे के “मूल एवं प्रमुख हितों” का समर्थन करने का वादा किया है।

बीजिंग, ‘संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद’ में कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान का समर्थन करेगा और इस्लामाबाद, चीन को हांगकांग और शिनजियांग मुद्दों पर समर्थन देगा।

भारत के लिए चिंता का विषय:

  • चीन और पाकिस्तान, अपने संबंधों को आधिकारिक तौर पर ‘हर-मौसम के साथी’ (all-weather partners) तथा दोनों देशों को ‘आयरन ब्रदर्स’ बताते हैं। हाल ही के महीनों में, दोनों देशों ने अपने लिए संवेदनशील समझे जाने वाले मुद्दों पर एक दूसरे को अत्यंत महत्वपूर्ण समर्थन देने संबंधी समझौता किया है।
  • दोनों देशों के मध्य रिश्तों में यह विकास, विशेषकर भारत, यू.एस., ऑस्ट्रेलिया और जापान के चतुर्पक्षीय फ्रेमवर्क तथा ‘नियम-आधारित व्यवस्था’, जिसे ‘क्वाड’ भी कहा जाता है, को लक्षित करते हुए, संयुक्त राज्य अमेरिका के नेतृत्व वाले “चयनात्मक बहुपक्षवाद” (Selective Multilateralism) की चीन द्वारा कड़ी आलोचना के दौरान हुआ है।
  • वर्ष 2019 और 2020 में, चीन ने ‘संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद’ में कम से कम तीन मौकों पर कश्मीर मुद्दे को उठाया था, जिसमे चीन ने, भारत द्वारा अनुच्छेद 370 को निरसित करने, जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन तथा इसके विशेष दर्जे को रद्द करने संबंधी मामलों पर चर्चा करने का प्रस्ताव किया था।

स्रोत: द हिंदू

 

विषय: महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थान, संस्थाएँ और मंच- उनकी संरचना, अधिदेश।

नौवहन कार्यवाही की स्वतंत्रता (FONOP)


(Freedom of Navigation Operation)

संदर्भ:

हाल ही में, अमेरिकी नौसेना ने सार्वजनिक रूप जारी एक बयान में कहा है, कि उसने, इसी सप्ताह की शुरुआती दिनों में भारत के ‘विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र’ (Exclusive Economic Zone- EEZ) में लक्षद्वीप के निकट, जानबूझ कर, नई दिल्ली की पूर्व सहमति के बिना, ‘नौवहन स्वतंत्रता कार्यवाही’ अर्थात ‘फ्रीडम ऑफ़ नैविगेशन ऑपरेशन’ (FONOP) को अंजाम दिया है।

अमेरिका ने दावा किया है, कि भारत के समुद्री कानून, अंतर्राष्ट्रीय कानून- ‘संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि’ (United Nations Convention on the Law of the Sea- UNCLOS) – के अनुरूप नहीं है। भारत ने अमेरिका के इस दावे को खारिज करते हुए इस फैसले का विरोध किया है ।

पृष्ठभूमि:

  • भारत के समुद्री कानून के अनुसार, किसी भी देश को उसके ‘विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र’ (EEZ) में सैन्य अभ्यास करने से पहले उसकी सहमति लेना आवश्यक है।
  • हालांकि किसी देश की, अपने तट से 12 समुद्री मील की दूरी तक क्षेत्रीय-जल पर ‘पूर्ण संप्रभुता’ होती है, किंतु उसके लिए, आधाररेखा से 200 समुद्री मील तक विस्तारित ‘विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र’ में केवल समुद्री संसाधनों की खोज और उपयोग संबंधी विशेष अधिकार प्राप्त होते हैं।

संबंधित प्रकरण:

अमेरिका का कहना है, कि, भारत की पूर्व सहमति लेने की आवश्यकता, अंतरराष्ट्रीय कानूनों और ‘फ्रीडम ऑफ़ नैविगेशन ऑपरेशन’ (FONOP) से असंगत है।

भारत, चीन और कई अन्य देशों के विपरीत, अमेरिका द्वारा ‘संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि’ (UNCLOS) की अभिपुष्टि नहीं की गई है। तथा अमेरिका, चीन के आक्रामक क्षेत्रीय दावों को चुनौती देने के लिए विवादित दक्षिण चीन सागर तथा हिंद महासागर क्षेत्र सहित अन्य क्षेत्रों में, नियमित रूप से ‘फ्रीडम ऑफ़ नैविगेशन ऑपरेशन’ (FONOP) करता रहता है।

वर्तमान में चिंता का विषय:

ऐसे समय में जब अमेरिका द्वारा हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के खिलाफ एक ‘विश्वसनीय निवारण’ तैयार करने हेतु ‘क्वाड’ तथा अन्य तंत्रों के माध्यम से भारत का नजदीकी सहयोग हासिल करने का प्रयास किया जा रहा है, तब भारत के ‘विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र’ में अमेरिका द्वारा ‘फ्रीडम ऑफ़ नैविगेशन ऑपरेशन’ की ‘आक्रामक रूप से सार्वजनिक घोषणा का लहजा और तेवर’ भारतीय सुरक्षा संस्थानों के कान खड़े करता है।

‘फ्रीडम ऑफ़ नैविगेशन ऑपरेशन’ क्या है?

‘नौवहन स्वतंत्रता कार्यवाही’ अर्थात ‘फ्रीडम ऑफ़ नैविगेशन ऑपरेशन’ (FONOP) में अमेरिकी नौसेना द्वारा तटवर्ती देशों के विशिष्ट क्षेत्रों के जल में मार्ग बनाना शामिल है।

  • अमेरिकी रक्षा विभाग (DoD) के अनुसार, ‘नौवहन स्वतंत्रता’ अर्थात फ्रीडम ऑफ़ नैविगेशन’ (FON) कार्यक्रम 40 वर्षों से अस्तित्व में है, और ‘विश्वभर में इसके नौवहन और हवाई मार्ग संबंधी अधिकारों तथा स्वतंत्रता का दावा करने और इनका प्रयोग करने के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका की नीति को लगातार पुष्टि करता रहता है।‘
  • इस प्रकार के अभिकथन इस बात का संकेत देते हैं, कि संयुक्त राज्य अमेरिका अन्य देशों के अत्यधिक समुद्री दावों को चुपचाप स्वीकार नहीं करता है, और इस प्रकार, यह, इन देशों द्वारा किए गए दावों को अंतर्राष्ट्रीय कानून में स्वीकार किए जाने से रोक देता है।

प्रीलिम्स लिंक:

  1. UNCLOS क्या है?
  2. EEZ क्या है?
  3. FONOP के बारे में

मेंस लिंक:

विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र (EEZ) के महत्व पर चर्चा कीजिए।

स्रोत: द हिंदू

 


सामान्य अध्ययन-III


 

विषय: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन।

केन-बेतवा परियोजना


(Ken-Betwa project)

संदर्भ:

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने केंद्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर के लिए, ‘केन-बेतवा नदी जोड़ो परियोजना’ (Ken-Betwa river linking project) लागू नहीं करने के लिए एक पत्र लिखा है।

क्योंकि, इस ‘नदी जोड़ो परियोजना’ से ‘पन्ना टाइगर रिजर्व’ को काफी नुक्सान होगा। राज्य सरकार का खुला अनुमान है कि इस परियोजना से बाघ अभ्यारण्य का लगभग 40 प्रतिशत इलाक़ा नष्ट हो जाएगा।

पृष्ठभूमि:

  • केंद्रीय जलशक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत द्वारा ‘विश्व जल दिवस’ के अवसर पर उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के साथ भारत की पहली प्रमुख नदी-जोड़ो परियोजना पर काम शुरू करने के लिए एक त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे। इसके तहत केन और बेतवा नदियों को परस्पर जोड़ा जाएगा।
  • जल के बंटवारे को लेकर दो राज्यों के बीच असहमति के कारण, इस परियोजना के विचार को मंजूरी मिलने के लगभग 18 साल बाद इस समझौता ज्ञापन (MoA) पर हस्ताक्षर किए गए थे।

केन-बेतवा परियोजना के बारे में:

दो-भागों में पूरी की जाने वाली परियोजना के रूप में परिकल्पित ‘केन-बेतवा परियोजना’ देश की पहली नदी जोड़ो परियोजना है।

  • इसे अंतरराज्यीय नदी स्थानांतरण मिशन हेतु एक मॉडल परियोजना के रूप में माना जाता है।
  • इस परियोजना का उद्देश्य, मध्य प्रदेश में केन नदी से अधिशेष जल को उत्तर प्रदेश की बेतवा नदी में स्थानांतरित करना है, जिससे सूखा-प्रवण बुंदेलखंड क्षेत्र के उत्तरप्रदेश में झांसी, बांदा, ललितपुर और महोबा जिलों और मध्य प्रदेश के टीकमगढ़, पन्ना और छतरपुर जिलों को सिंचित किया जा सकेगा।

प्रमुख तथ्य:

  1. केन और बेतवा नदियों का उद्गम मध्यप्रदेश में होता है और ये यमुना की सहायक नदियाँ हैं।
  2. केन नदी, उत्तर प्रदेश के बाँदा जिले में और बेतवा नदी हमीरपुर जिले में यमुना नदी में मिल जाती हैं।
  3. राजघाट, परीछा और माताटीला बांध, बेतवा नदी पर स्थित हैं।
  4. केन नदी, पन्ना बाघ अभ्यारण्य से होकर गुजरती है।

प्रीलिम्स लिंक:

  1. परियोजना के बारे में
  2. केन और बेतवा- सहायक नदियाँ और संबंधित राज्य।

मेंस लिंक:

‘केन-बेतवा नदी जोड़ परियोजना’ के महत्व पर चर्चा कीजिए।

स्रोत: द हिंदू

 


प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य


नैनोस्निफर

(NanoSniffer)

  • यह एक ‘माइक्रोसेंसर-आधारित विस्फोटक ट्रेस डिटेक्टर’ (Microsensor based explosive trace detector- ETD) है।
  • यह आईआईटी बॉम्बे इनक्यूबेटेड स्टार्टअप नैनोस्निफ टेक्नोलॉजीज (IIT Bombay Incubated Startup Nanosniff Technologies) द्वारा विकसित किया गया विश्व का पहला माइक्रोसेन्सर आधारित एक्सप्लोसिव ट्रेस डिटेक्टर (ETD) है।
  • ‘नैनोस्निफर’, अनुसंधान, विकास और विनिर्माण के मामले में 100% ‘मेड इन इंडिया उत्पाद’ है। ‘नैनोस्निफर’ की मुख्य तकनीक अमेरिका और यूरोप में पेटेंट द्वारा संरक्षित है।
  • यह उपकरण, 10 सेकंड से भी कम समय में विस्फोटक का पता लगा सकता है और यह विस्फोटको की विभिन्न वर्गों में पहचान और वर्गीकरण भी करता है।


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