विषयसूची
सामान्य अध्ययन-II
1. तदर्थ न्यायाधीशों की नियुक्ति
2. जम्मू-कश्मीर का दरबार स्थानांतरण
3. ‘सार्थक’ कार्यक्रम
4. 1.617: वायरस का ‘डबल म्यूटेंट’ प्रकार
5. अफ्रीकी स्वाइन फीवर (ASF)
सामान्य अध्ययन-III
1. आरबीआई द्वारा नाबार्ड के लिए 50,000 करोड़ रुपए की सहायता
2. सौर ऊर्जा क्षेत्र हेतु प्रोत्साहन
3. नागरिक सुरक्षा स्वयंसेवक
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य
1. हांगकांग से पलायन करने वाले प्रवासियों हेतु ब्रिटेन में ‘निधि’ की स्थापना
2. ज्ञानवापी मस्जिद
सामान्य अध्ययन-II
विषय: विभिन्न संवैधानिक पदों के लिए विभिन्न संवैधानिक पदों, शक्तियों, कार्यों और जिम्मेदारियों की नियुक्ति।
तदर्थ न्यायाधीशों की नियुक्ति
(Appointment of ad hoc judges)
संदर्भ:
हाल ही में, सर्वोच्च न्यायालय ने सहमति व्यक्त की है, कि ‘उच्च न्यायालयों में लंबित मामलों को निपटाने हेतु तदर्थ आधार पर सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को नियुक्त करने की योजना’, नियमित न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रक्रिया को रोकने या इसे आगे बढ़ाने का बहाना नहीं बनना चाहिए।
आवश्यकता:
उच्च न्यायालयों में, 1 अप्रैल को, नियमित न्यायाधीशों के 411 पद रिक्त थे, जबकि न्यायाधीशों के कुल स्वीकृत पदों की संख्या 1,080 है। वर्तमान में, उच्च न्यायालयों में कुल 669 न्यायाधीशों कार्यरत हैं।
अदालत द्वारा की गयी टिप्पणी:
उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों को, संबंधित उच्च न्यायालयों में न्यायिक रिक्तियों को भरने में उनके प्रयासों के समक्ष विशेष अवरोध आने की स्थिति में ही ‘तदर्थ न्यायाधीशों’ (Ad Hoc Judges) की नियुक्ति करनी चाहिए, भले ही उनकी अदालत में लंबित मामलों की संख्या ‘लाल रेखा’ पार कर गयी हो। नियमित सिफारिशों के स्थान पर, तदर्थ न्यायाधीशों की नियुक्ति नहीं की जानी चाहिए।
समय की मांग:
एक ऐसी प्रक्रिया लागू की जानी चाहिए जिसमे, मुख्य न्यायाधीश द्वारा ‘तदर्थ न्यायाधीश’ की नियुक्ति-प्रक्रिया कब शुरू की जानी चाहिए; इस प्रकार की नियुक्तियों के लिए लंबित मामलों की सीमा-रेखा; तदर्थ न्यायाधीशों का कार्यकाल एवं भत्ते आदि विवरण दिया गया हो।
इस संबंध में संवैधानिक प्रावधान:
अनुच्छेद 224A के अंतर्गत तहत संविधान में तदर्थ न्यायाधीशों (ad-hoc judges) की नियुक्ति संबंधी प्रावधान किये गए हैं।
अपनाई जाने वाली प्रक्रिया:
- उपरोक्त अनुच्छेद के तहत, किसी राज्य के उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश किसी भी समय, राष्ट्रपति की पूर्व सहमति से, उसी उच्च न्यायालय अथवा किसी अन्य उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में कार्य कर चुके किसी व्यक्ति से राज्य के उच्च न्यायालय में न्यायाधीश के रूप में कार्य करने का अनुरोध कर सकता है।
- इस प्रकार नियुक्त किये गए न्यायाधीश को राष्ट्रपति द्वारा निर्धारित भत्ते प्रदान किये जाएंगे। उसके लिए उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के सभी आधिकारिता, शक्तियां और विशेषाधिकार प्राप्त होंगे, किंतु उसके लिए उस उच्च न्यायालय का न्यायाधीश नहीं माना जाएगा।
प्रीलिम्स लिंक:
- सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की नियुक्ति।
- शक्तियाँ और कार्य।
- प्रक्रिया।
मेंस लिंक:
उच्चतम न्यायालय ने उच्च न्यायालयों में लंबित मामलों का निपटारा करने हेतु सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की नियुक्ति किए जाने पर जोर दिया है। टिप्पणी कीजिए।
स्रोत: द हिंदू
विषय: विभिन्न घटकों के बीच शक्तियों का पृथक्करण, विवाद निवारण तंत्र तथा संस्थान।
जम्मू-कश्मीर का दरबार स्थानांतरण
संदर्भ:
इस वर्ष, जम्मू और कश्मीर में लगभग एक सौ पचास वर्षों (डेढ़ सदी) से चली आ रही ‘दरबार स्थानांतरण’ (Durbar Move) की परंपरा भंग होने वाली है। इस वर्ष, गर्मियों में ‘दरबार स्थानांतरण’ के दौरान केवल “संवेदनशील रिकॉर्ड” ही जम्मू से श्रीनगर ले जाया जा रहा है, जबकि पिछले वर्षों में, इस प्रक्रिया के दौरान समूचे प्रशासन और रिकॉर्ड को स्थानांतरित किया जाता था।
‘दरबार स्थानांतरण’ क्या है?
- यह, लगभग एक सदी पुरानी प्रथा है, जिसमें सरकार, राज्य की दो राजधानियों, श्रीनगर और जम्मू, में छह-छह महीने कार्य करती है।
- ख़बरों के अनुसार, यह परंपरा 19 वीं शताब्दी के अंत में जम्मू और कश्मीर के डोगरा शासक महाराजा रणबीर सिंह द्वारा शुरू की गई थी।
- चूंकि, तत्कालीन डोगरा शासकों का राज्य कश्मीर के निकटवर्ती लद्दाख तक विस्त्तारित था, अतः ‘दरबार स्थानांतरण’ की शुरुआत, प्रशासन को कश्मीर की जनता के दरवाजे तक ले जाने के लिए की गई थी।
- इस परंपरा से जम्मू, कश्मीर और लद्दाख के लोगों के बीच संपर्क और संबंध अधिक प्रगाढ़ हुए।
इस परंपरा से संबंधित आलोचनाएँ:
- ‘दरबार स्थानांतरण’ प्रक्रिया में इस बेकार और अनावश्यक गतिविधि पर समय, प्रयास और ऊर्जा की भारी बर्बादी होती है।
- यह सुरक्षा बलों पर भी भार डालती है। इससे कार्य-अक्षमता विकसित होती है, जिसके परिणामस्वरूप शासन-अभाव जैसी स्थिति उत्पन्न होती है।
- इसी से, न्याय-व्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, और न्यायिक प्रशासन के लिए बाधा उत्पन्न होती है।
- यह प्रक्रिया, न्याय-वितरण में देरी का कारण बंटी है, क्योंकि एक क्षेत्र में, याची के लिए, एक बार में छह महीने तक सरकारी रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं होते हैं।
- केंद्र शासित प्रदेश के, महत्वपूर्ण और संवेदनशील प्रकृति के सरकारी दस्तावेजों और संसाधनों को, परिवहन करने की प्रक्रिया में काफी जोखिम होता है। इनके लिए संदूकों में पैक करके किराए के ट्रकों में जम्मू से श्रीनगर, लगभग 300 किमी ले जाया जाता है, साल में यह क्रिया दो बार की जाती है।
इस संदर्भ में उच्च न्यायालय की टिप्पणी:
- पिछले साल, जम्मू और कश्मीर उच्च न्यायालय ने कहा कि, ‘दरबार स्थानांतरण’ या ‘दरबार मूव’ परंपरा का कोई कानूनी औचित्य या संवैधानिक आधार नहीं है।
- अदालत की एक खंड पीठ ने, इस परंपरा को बेकार और अनावश्यक गतिविधि पर होने वाले समय, प्रयास और ऊर्जा की भारी बर्बादी बताते हुए कहा कि, जबकि केंद्रशासित प्रदेश, अपनी जनता को बुनियादी जरूरतें भी प्रदान करने में असमर्थ है, ऐसे में राज्य के मूल्यवान संसाधनों (वित्तीय और भौतिक) को पूरी तरह से गैर-जरूरी कार्यों के लिए डायवर्ट नहीं किया जा सकता है।
- अदालत ने सिफारिश की, कि इस परंपरा के औचित्यपूर्ण होने की स्थिति में, संसाधनों एवं समय की बचत होगी जिसका उपयोग केंद्रशासित प्रदेश के कल्याण और विकास हेतु किया जा सकेगा; तथा इससे होने वाली धन की बचत का उपयोग, कोविड संबंधित से संबंधित मुद्दों, जैसे कि, खाद्य-सामग्री की कमी, बेरोजगारी और स्वास्थ्य देखभाल के लिए भी किया जा सकता है।
प्रीलिम्स लिंक:
- जम्मू-कश्मीर में महत्वपूर्ण पर्वत श्रंखलाएं और मार्ग
- जम्मू और श्रीनगर को जोड़ने वाली सड़कें और सुरंगें
- संविधान में इसे विशेष प्रावधान क्यों दिए गए थे?
- ‘दरबार स्थानांतरण’ क्या है?
मेंस लिंक:
दरबार स्थानांतरण’ से संबंधित मुद्दों पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
विषय: स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय।
‘सार्थक’ कार्यक्रम
(SARTHAQ)
संदर्भ:
हाल ही में, शिक्षा मंत्री द्वारा ‘सार्थक’ (SARTHAQ) नामक एक ‘निर्देशात्मक और विचारोत्तेजक योजना’ जारी की गई है।
‘गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के माध्यम से ‘छात्रों’ और ‘शिक्षकों’ की समग्र उन्नति’ (सार्थक), अर्थात् [‘Students’ and Teachers’ Holistic Advancement through Quality Education or SARTHAQ] के बारे में:
- राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP)-2020 के लक्ष्यों एवं उद्देश्यों के अनुसरण में और राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों को इस कार्य में सहायता करने हेतु यह योजना शुरू की गई है।
- इस कार्यक्रम का उद्देश्य प्राथमिक और माध्यमिक स्तर पर छात्रों का सर्वांगीण विकास करना है।
- यह कार्यक्रम, छात्रों तथा शिक्षकों के लिए एक सुरक्षित, समावेशी और अनुकूल शिक्षण वातावरण तैयार करेगा।
- ‘सार्थक’ (SARTHAQ) का प्रमुख ध्यान गतिविधियों को इस तरह परिभाषित करना है, जिससे लक्ष्यों, परिणामों और समय सीमा की स्पष्ट रूपरेखा प्रस्तुत की जा सके। उदाहरण के लिए, यह NEP की सिफारिश को 297 कार्य योजनाओं सहित जिम्मेदार एजेंसियों, समय-सीमाओं, तथा इन कार्यों के 304 परिणामों के साथ जोड़ता है।
इस योजना को राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के निम्नलिखित उद्देश्यों को पूरा करने के लिए कार्यान्वित किया जा रहा है:
- यह स्कूली शिक्षा के लिए नए राष्ट्रीय एवं राज्य पाठ्यक्रम ढांचे, शुरुआती बचपन की देखभाल एवं पाठ्यक्रम सुधारों के लिए मार्ग प्रशस्त करेगा
- इस कार्यक्रम में सभी स्तरों पर सकल नामांकन अनुपात, शुद्ध नामांकन अनुपात और ड्रॉप आउट एवं स्कूल तक न पहुंचने वाले बच्चों की संख्या कम करने, पर ध्यान दिया जाएगा।
- यह, ग्रेड 3 तक गुणवत्ता ECCE और ‘मूलभूत साक्षरता एवं संख्यात्मकता के सार्वभौमिक अधिग्रहण’ तक पहुंच प्रदान करेगा।
- यह, सभी चरणों में व्यावसायिक शिक्षा, खेल, कला, भारत का ज्ञान, 21 वीं सदी के कौशल, नागरिकता के मूल्य और पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूकता आदि को पाठ्यक्रम में लागू करेगा।
- यह प्रायोगिक शिक्षा पर ध्यान केंद्रित करेगा।
- इससे शिक्षक शिक्षण कार्यक्रमों की गुणवत्ता में भी सुधार होगा।
प्रीलिम्स लिंक:
- राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) के बारे में।
- प्रमुख विशेषताएं।
- SARTHAQ क्या है?
मेंस लिंक:
राष्ट्रीय शिक्षा नीति के महत्व पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: पीआईबी
विषय: स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय।
B.1.617: वायरस का ‘डबल म्यूटेंट’ प्रकार
संदर्भ:
“डबल म्यूटेंट” वायरस, जिसे पिछले महीने वैज्ञानिकों ने भारत में महामारी के प्रसार पर असर डालने वाले वायरस के रूप में चिह्नित किया था, का औपचारिक वैज्ञानिक वर्गीकरण करके इसे ‘B.1.617’ नाम दिया गया है।
भारत में वायरस का यह ‘वैरिएंट’ आम है – हालांकि हर राज्य में इसके प्रसार संबंधी स्पष्ट जानकारी नहीं है।
इसके E484Q और L425R, नामक ‘उत्परिवर्तनों’ (Mutations) का निर्धारण किया जा चुका है, ये ‘उत्परिवर्तन’ इस वायरस को अधिक संक्रामक और एंटीबॉडी के प्रति बेअसर बनाने में सक्षम हैं।
वर्तमान में चिंता का विषय:
कुछ अध्ययनों से पता चलता है कि ये उत्परिवर्तन, कोरोनवायरस को ‘टी कोशिकाओं’ (T cells) के प्रति प्रतिरोधी बना सकते हैं। ‘टी सेल्स’, वायरस से संक्रमित कोशिकाओं को लक्षित करने और नष्ट करने के लिए आवश्यक कोशिकाओं का एक प्रकार होती है।
‘वायरस उत्परिवर्तिन’ का कारण:
उत्परिवर्तन अथवा ‘म्युटेशन’ का तात्पर्य, जीनोम अनुक्रमण में होने वाला परिवर्तन होता है।
- वायरस में ‘उत्परिवर्तन’ उनके क्रमिक विकास की एक स्वाभाविक प्रक्रिया होती है।
- लाखों लोगों के संक्रमित हो जाने के बाद वायरस पर ‘क्रमिक विकास’ का दबाव बढ़ जाता है।
SARS-CoV-2 के मामले में, जोकि एक राइबोन्यूक्लिक एसिड (RNA) वायरस है, उत्परिवर्तन का अर्थ, उसके अणु-क्रम संयोजन व्यवस्था में बदलाव होता है।
आरएनए वायरस में उत्परिवर्तन, प्रायः वायरस द्वारा स्व-प्रतिलिपियाँ (copies of itself) बनाते समय गलती करने के कारण होता है।
प्रीलिम्स लिंक:
- कोविड-19 क्या है?
- उत्परिवर्तन क्या है?
- mRNA क्या है?
- RT- PCR टेस्ट क्या है?
मेंस लिंक:
कोविड- 19 वायरस के उत्परिवर्तन से संबंधित चिंताओं पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: द हिंदू
विषय: स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय।
अफ्रीकी स्वाइन फीवर (ASF)
(African swine fever)
संदर्भ:
मिजोरम के लुंगलेई (Lunglei) जिले में संदिग्ध अफ्रीकी स्वाइन फीवर (African swine fever- ASF) के प्रकोप से 276 घरेलू सुअरों की मौत हो गई है।
निवारक उपायों के रूप में, स्थानीय अधिकारियों द्वारा प्रभावित क्षेत्र और जिले से सूअरों की खरीद और आपूर्ति को प्रतिबंधित कर दिया गया है।
अफ्रीकी स्वाइन फीवर (ASF) के बारे में:
- ASF एक अत्यधिक संक्रामक और घातक पशु रोग है, जो घरेलू और जंगली सूअरों को संक्रमित करता है। इसके संक्रमण से सूअर एक प्रकार के तीव्र रक्तस्रावी बुखार (Hemorrhagic Fever) से पीड़ित होते है।
- इसे पहली बार 1920 के दशक में अफ्रीका में देखा गया था।
- इस रोग में मृत्यु दर 100 प्रतिशत के करीब होती है, और चूंकि इस बुखार का कोई इलाज नहीं है, अतः इसके संक्रमण को फैलने से रोकने का एकमात्र तरीका जानवरों को मारना है।
- अफ्रीकी स्वाइन फीवर से मनुष्य के लिए खतरा नहीं होता है, क्योंकि यह केवल जानवरों से जानवरों में फैलता है।
- FAO के अनुसार, यह रोग अत्याधिक संक्रामक है तथा इसकी सीमापार संक्रमण क्षमता से इस क्षेत्र के सभी देशों में संकट उत्पन्न हो गया है, इसके साथ ही एक बार फिर इस रोग का भूत अफ्रीका से बाहर पाँव पसार रहा है। यह रोग, वैश्विक खाद्य सुरक्षा तथा घरेलू आय के लिए महत्वपूर्ण संकट उत्पन्न कर सकता है।
प्रीलिम्स लिंक:
- स्वाइन फीवर और स्वाइन फ्लू में अंतर?
- क्या स्वाइन फीवर मनुष्यों को संक्रमित कर सकता है?
- क्या यह एक वायरल बीमारी है?
- इसकी खोज सबसे पहले कहाँ हुई थी?
- 2020 में कौन से देश इससे प्रभावित हुए हैं?
- क्या इसके खिलाफ कोई टीका उपलब्ध है?
मेंस लिंक:
अफ्रीकी स्वाइन स्वाइन फीवर, लक्षण और इसके प्रसरण पर एक टिप्पणी लिखिए।
स्रोत: द हिंदू
सामान्य अध्ययन-III
विषय: समावेशी विकास तथा इससे उत्पन्न विषय।
आरबीआई द्वारा नाबार्ड के लिए 50,000 करोड़ रुपए की सहायता
संदर्भ:
हाल ही में, भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने महामारी के प्रभाव को कम करने और आर्थिक पुनरुद्धार में मदद करने हेतु वित्तीय वर्ष 2022 में, नए ऋणों के रूप में अखिल भारतीय वित्तीय संस्थानों को 50,000 करोड़ रुपए की सहायता प्रदान करने को कहा है।
विवरण:
- तदनुसार, ‘नाबार्ड’ (NABARD) को कृषि और संबद्ध गतिविधियों, ग्रामीण गैर-कृषि क्षेत्र और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों-सूक्ष्म वित्तीय संस्थानों को सहायता प्रदान करने हेतु एक वर्ष के लिए, 25,000 करोड़ रुपए की विशेष तरलता सुविधा (Special Liquidity Facility– SLF) प्रदान की जाएगी।
- आवास क्षेत्र को सहायता प्रदान करने हेतु राष्ट्रीय आवास बैंक को, एक वर्ष के लिए, 10,000 करोड़ रुपए की ‘विशेष तरलता सुविधा’ (SLF) दी जाएगी।
- ‘सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों’ (MSMEI) के वित्त पोषण हेतु ‘सिडबी’ (SIDBI) को इस सुविधा के तहत ₹ 15,000 करोड़ प्रदान किए जाएंगे।
राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) के बारे में:
- ‘नाबार्ड’ (NABARD), भारत की संसद द्वारा ‘राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक अधिनियम’, 1981 के द्वारा 12 जुलाई 1982 को स्थापित किया गया एक शीर्ष विकास और विशेष बैंक है।
- इसका मुख्य कार्य, कृषि और ग्रामीण गैर-कृषि क्षेत्रों के उन्नयन हेतु ऋण प्रवाह में वृद्धि के माध्यम से ग्रामीण भारत का उत्थान करना है।
- इसकी स्थापना, बी. शिवरामन की अध्यक्षता में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा गठित एक समिति की सिफारिशों के आधार की गयी थी।
- ‘नाबार्ड’ ने, भारतीय रिजर्व बैंक के अधीन, कृषि ऋण विभाग (Agricultural Credit Department- ACD) और ग्रामीण योजना एवं ऋण प्रकोष्ठ (Rural Planning and Credit Cell – RPCC) तथा कृषि पुनर्वित्त एवं विकास कॉरपोरेशन (Agricultural Refinance and Development Corporation – ARDC) को प्रतिस्थापित किया है।
- ‘नाबार्ड’ “भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि और अन्य आर्थिक गतिविधियों हेतु ऋण के क्षेत्र में नीति, योजना और संचालन से संबंधित मामलों” में अधिकृत संस्थान है।
महत्वपूर्ण कार्य:
- यह ग्रामीण आधारभूत संरचना के निर्माण हेतु वित्तीय सहायता प्रदान करता है।
- यह, निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने में बैंकिंग उद्योगों को निर्देशित एवं प्रेरित करने हेतु ज़िला स्तरीय ऋण योजनाएँ (district level credit plans) तैयार करता है।
- यह सहकारी बैंकों एवं क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (RRBs) का निरीक्षण करता है और साथ ही उन्हें कोर बैंकिंग समाधान प्लेटफॉर्म (Core Banking Solution- CBS) से जुड़ने में सहयोग करता है।
- यह हस्तकला कारीगरों को प्रशिक्षण उपलब्ध कराता है एवं इन वस्तुओं की प्रदर्शनी हेतु एक मार्केटिंग प्लेटफॉर्म (विपणन मंच) विकसित करने में उनकी मदद करता है।
प्रीलिम्स लिंक:
- नाबार्ड के बारे में
- भूमिका और कार्य
- RRB क्या हैं?
- CBS क्या है?
स्रोत: द हिंदू
विषय: बुनियादी ढाँचाः ऊर्जा, बंदरगाह, सड़क, विमानपत्तन, रेलवे आदि।
‘सौर ऊर्जा क्षेत्र’ के लिए प्रोत्साहन
(Incentives for solar energy sector)
संदर्भ:
हाल ही में, केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा दो उत्पादन संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजनाओं (Production-Linked Incentive scheme: PLI scheme) को मंजूरी दी गई है:
- श्वेत वस्तुओं (एयर कंडीशनर तथा एलईडी लाइट) [White goods (air-conditioners and LED lights)]।
- उच्च दक्षता वाले सौर फोटोवोल्टिक मॉड्यूल (High-efficiency solar photovoltaic module)।
पीएलआई योजना के बारे में:
- पीएलआई योजना (PLI scheme) का प्रमुख उद्देश्य क्षेत्र आधारित अक्षमताओं को दूर करके, बड़े पैमाने की अर्थव्यवस्था का निर्माण और दक्षता को सुनिश्चित करते हुए भारत में विनिर्माण को विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाना है।
- इसकी रूपरेखा भारत में उपकरणों व कल-पुर्जों के सम्पूर्ण इको-सिस्टम को ध्यान में रखते हुए तैयार की गयी है, ताकि भारत को वैश्विक आपूर्ति-श्रृंखला का महत्वपूर्ण हिस्सा बनाया जा सके।
- इस योजना के तहत, आगामी पांच वर्षों के दौरान भारत में निर्मित वस्तुओं की वृद्धिमान बिक्री पर 4 प्रतिशत से 6 प्रतिशत की दर से प्रोत्साहन दिया जायेगा।
- इस योजना से वैश्विक निवेश आकर्षित करने, बड़े पैमाने पर रोजगार के अवसर पैदा करने और निर्यात में काफी वृद्धि होने की उम्मीद है।
लाभ:
- समेकित सोलर पीवी विनिर्माण संयंत्रों की क्षमता में 10,000 मेगावॉट की वृद्धि होगी।
- सोलर पीवी विनिर्माण परियोजनाओं में 17,200 करोड़ रुपये का प्रत्यक्ष निवेश होगा।
- सामग्री संतुलन के लिए पांच साल के लिए 17,500 करोड़ रुपये की मांग बढ़ेगी।
- करीब 30,000 लोगों को प्रत्यक्ष रोजगार और 1,20,000 लोगों को अप्रत्यक्ष रोजगार मिलेगा।
- हर वर्ष करीब 17,500 करोड़ रुपये का आयात नहीं करना पड़ेगा।
- उच्च कुशलता वाले सोलर पीवी मॉड्यूल को हासिल करने के लिए अनुसंधान एवं विकास कार्य में गति आएगी।
स्रोत: पीआईबी
विषय: आंतरिक सुरक्षा के लिये चुनौती उत्पन्न करने वाले शासन विरोधी तत्त्वों की भूमिका।
नागरिक सुरक्षा स्वयंसेवक
(Civil defence volunteers)
संदर्भ:
दिल्ली पुलिस ने हाल ही में एक बयान जारी किया गया, जिसमें कहा गया है कि ‘नागरिक सुरक्षा कर्मियों’ जिन्हें ‘दिल्ली सिविल डिफेंस’ (DCD) स्वयंसेवक भी कहा जाता है, को पुलिस बैरिकेड्स का उपयोग करके लोंगो को रोकने और कोविड-19 के उपयुक्त व्यवहार, जैसे कि मास्क पहनने, का उल्लंघन करने पर अभियोग लगाने की शक्ति नहीं हैं।
संबंधित प्रकरण:
महामारी के दौरान अपने काम के लिए प्रशंसा हासिल करने से लेकर ज्यादती करने के आरोपों का सामना करने तक, हाल के दिनों में, राष्ट्रीय राजधानी में नागरिक सुरक्षा स्वयंसेवकों की भूमिका गहन जांच के दायरे में आ गई है।
हाल ही में, ऐसी ही एक घटना आईआईटी-दिल्ली के पास सिविल डिफेंस कर्मियों के एक समूह और आम जनता के बीच पूरी तरह से लड़ाई-झगड़े में बदल गई थी।
तो, ये ‘नागरिक रक्षा स्वयंसेवक’ कौन हैं?
- ‘नागरिक रक्षा स्वयंसेवक’, दिल्ली में, जिला मजिस्ट्रेटों की कमान में कार्य करने वाले पुरुष और महिलाएं हैं।
- इनकी शीर्ष कमान संभागीय आयुक्त के पास होती है, जिसके लिए जिला मजिस्ट्रेटों द्वारा रिपोर्ट की जाती है।
- नागरिक सुरक्षा स्वयंसेवक ‘नागरिक सुरक्षा अधिनियम, 1968’ के तहत कार्य करते हैं।
‘नागरिक सुरक्षा’ (सिविल डिफेंस) क्या है?
- ‘नागरिक सुरक्षा अधिनियम’ (Civil Defence Act), 1968 के अनुसार, ‘नागरिक सुरक्षा’ (सिविल डिफेंस) को ऐसे किसी भी उपाय के रूप में पारिभाषित किया गया है, “जिसके द्वारा, भारत में किसी भी प्रतिकूल हमले की स्थिति होने पर व्यक्तियों, संपत्ति और स्थानों की रक्षा की जाती है, किन्तु वास्तविक मुठभेड़ नहीं होती है”।
- अधिनियम में वर्ष 2010 के संशोधन से, ‘सिविल डिफेंस’ की परिभाषा में विस्तार करते हुए ‘आपदा प्रबंधन’ को भी इसकी जिम्मेदारियों में शामिल किया गया है।
‘स्वयंसेवकों’ की मूल भूमिका:
- स्थानीय प्रशासन की सहायता करना।
- महामारी के दौरान, स्वयंसेवकों ने हॉटस्पॉट की जाँच में भाग लेने और जरूरतमंदों के लिए भोजन वितरित करने के माध्यम से फ्रंटलाइन कार्यकर्ताओं की भूमिका निभाई।
- हाल के महीनों में, ‘दिल्ली सिविल डिफेंस’ स्वयंसेवकों को बाजारों और अन्य भीड़भाड़ वाले स्थानों पर और तथा टीकाकरण केंद्रों पर सामाजिक दूरी सुनिश्चित करने के लिए भी तैनात किया गया है।
प्रीलिम्स लिंक:
- ‘नागरिक सुरक्षा स्वयंसेवक’ कौन हैं?
- भूमिका और कार्य
- नियुक्ति
- जवाबदेही
मेंस लिंक:
दिल्ली में नागरिक सुरक्षा स्वयंसेवकों की भूमिकाओं और कार्यों से जुड़े मुद्दों पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य
हांगकांग से पलायन करने वाले प्रवासियों हेतु ब्रिटेन में ‘निधि’ की स्थापना
- ब्रिटिश सरकार द्वारा, उसके पूर्व उपनिवेश ‘हांगकांग’ में बढ़ते हुए राजनीतिक दमन से बचने के लिए, हांगकांग से आने वाले प्रवासियों को देश में बसने के लिए सहायता हेतु 43 मिलियन डॉलर (59 मिलियन डॉलर) का फंड स्थापित किया जा रहा है।
- ब्रिटिश नेशनल (ओवरसीज) पासपोर्ट धारकों को, विशेष वीजा देने, काम करने हेतु मार्ग खोलने, निवास, तथा संभावित रूप से हांगकांग की 4 मिलियन आबादी में से 5 मिलियन लोगों को संभावित नागरिकता देने का प्रस्ताव किया गया है।
ज्ञानवापी मस्जिद
(Gyanvapi Mosque)
वाराणसी की एक स्थानीय अदालत ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) को काशी विश्वनाथ मंदिर से सटी ‘ज्ञानवापी मस्जिद’ का एक सर्वेक्षण करने का निर्देश दिया है। इससे यह पता लगाया जाएगा कि, मौजूदा इमारत किसी प्रकार का ‘आरोपण’, ‘परिवर्तन’ या ‘परिवर्धन’ है अथवा किसी भी अन्य धार्मिक इमारत की संरचनात्मक अतिव्याप्ति है।
संबंधित प्रकरण:
अदालत ने यह यह आदेश एक याचिका के आधार पर जारी किया है, जिसमे, जिस भूमि पर ‘ज्ञानवापी मस्जिद’ बनी हुई है, उसे हिन्दुओं को वापस सौपने की मांग की गई है। याचिका में दावा किस्या गया है, कि मुगल बादशाह औरंगजेब ने मस्जिद बनाने के लिए पुराने काशी विश्वनाथ मंदिर के कुछ हिस्सों को गिरा दिया था।
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