विषयसूची
सामान्य अध्ययन-II
1. फ़िल्म प्रमाणन अपीलीय अधिकरण (FCAT)
2. केंद्र सरकार द्वारा इतालवी नौसैनिकों संबंधी मामला बंद करने हेतु सम्मति की मांग
सामान्य अध्ययन-III
1. G-SAP: बाजार प्रोत्साहन हेतु प्रतिभूति अधिग्रहण योजना
2. सरकार द्वारा अफ़ीम की पैदावार बढ़ाने संबंधी उपायों पर विचार
3. एक घंटे के भीतर डेंगू के निदान हेतु उपकरण
4. ‘नेट-ज़ीरो’ और इस पर भारत की आपत्तियाँ
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य
1. विश्व स्वास्थ्य दिवस
2. मधुक्रांति पोर्टल:
3. ‘अनामाया’
4. बैसाखी
5. लाल सागर
सामान्य अध्ययन-II
विषय: सांविधिक, विनियामक और विभिन्न अर्द्ध-न्यायिक निकाय।
फ़िल्म प्रमाणन अपीलीय अधिकरण (FCAT)
(Film Certificate Appellate Tribunal)
संदर्भ:
हाल ही सरकार द्वारा एक अध्यादेश के माध्यम से ‘फ़िल्म प्रमाणन अपीलीय अधिकरण’ (Film Certificate Appellate Tribunal– FCAT) को समाप्त कर दिया गया।
4 अप्रैल को लागू किए गए ‘अधिकरण सुधार (सुव्यवस्थीकरण और सेवा शर्तें) अध्यादेश’, 2021 (Tribunals Reforms (Rationalisation and Conditions of Service) Ordinance, 2021), के द्वारा सिनेमैटोग्राफ अधिनियम, 1952 में कुछ अनुच्छेदों को निरसित कर दिया गया है तथा अन्य अनुच्छेदों में ‘अधिकरण’ (Tribunal) शब्द की जगह ‘उच्च न्यायालय’ कर दिया गया है।
FCAT के बारे में:
- ‘फ़िल्म प्रमाणन अपीलीय अधिकरण’ (FCAT), सिनेमैटोग्राफ अधिनियम, 1952 के तहत सूचना और प्रसारण मंत्रालय द्वारा वर्ष 1983 में गठित एक वैधानिक निकाय था।
- इसका मुख्य कार्य केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (CBFC) के फैसलों से असंतुष्ट प्रमाणपत्र आवेदकों द्वारा सिनेमैटोग्राफ अधिनियम की धारा 5C के तहत दायर की गई अपील पर सुनवाई करना था।
- संरचना: ‘अधिकरण’ में एक अध्यक्ष तथा एक सचिव सहित चार अन्य सदस्य शामिल होते थे, जिनकी नियुक्ति भारत सरकार द्वारा की जाती थी। ट्रिब्यूनल का मुख्यालय नई दिल्ली में था।
इस कदम के निहितार्थ:
FCAT को समाप्त करने का अर्थ है कि, अब फिल्म निर्माताओं को, CBFC प्रमाणन से असंतुष्ट होने पर, इसे चुनौती देने के लिए उच्च न्यायालय में अपील करनी होगी।
प्रीलिम्स लिंक:
- CBFC के बारे में
- संरचना
- FCAT के बारे में
- FCAT के निर्णय
- सिनेमैटोग्राफ अधिनियम, 1952 के बारे में
मेंस लिंक:
FCAT की भूमिकाओं और कार्यों पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
विषय: भारत के हितों पर विकसित तथा विकासशील देशों की नीतियों तथा राजनीति का प्रभाव; प्रवासी भारतीय।
केंद्र सरकार द्वारा इतालवी नौसैनिकों संबंधी मामला बंद करने हेतु सम्मति की मांग
संदर्भ:
हाल ही में, सरकार द्वारा उच्चतम न्यायालय से, वर्ष 2012 में केरल तट के नजदीक दो मछुआरों की हत्या के आरोपी दो इतालवी नौसैनिकों के खिलाफ भारत में लंबित आपराधिक मुकदमों को बंद करने संबंधी आवेदन पर ‘तत्काल सुनवाई करने का आग्रह’ किया गया है।
पृष्ठभूमि:
इतालवी जहाज एनरिका लेक्सी पर तैनात, जिरोने (Girone) और लाटोरे (Latorre) नामक दो इतालवी अधिकारियों द्वारा ‘मछुआरों’ को ‘समुद्री डाकू’ समझते हुए गोली मार कर हत्या कर दी थी।
संबंधित प्रकरण:
- पिछले साल अगस्त में एक वर्चुअल सुनवाई के दौरान, अदालत ने यह स्पष्ट कर दिया था कि, अदालत, पीडितो के परिवारजनों को पर्याप्त मुआवजा दिये जाने के बाद ही भारत में इतालवी नौसैनिकों के विरुद्ध आपराधिक मुकदमे को समाप्त करेगी।
- अदालत ने, सरकार से, मारे गए मछुआरों के परिवारों के लिए ‘पर्याप्त’ मुआवजा राशि देने हेतु इटली के साथ वार्ता करने के लिए भी कहा था।
सरकार का पक्ष:
आठ महीने पहले, केंद्र सरकार द्वारा शीर्ष अदालत को, इस मामले में ‘स्थायी मध्यस्थता न्यायालय’ (Permanent Court of Arbitration- PCA) के फैसले को ‘स्वीकार करने व उसका पालन करने’ संबंधी अपने निर्णय के बारे में सूचित किया गया था।
- हेग स्थित ‘स्थायी मध्यस्थता न्यायालय’ (PCA) ने कहा था, कि ‘इतालवी नौसैनिकों पर इनके मूल देश इटली में मुकदमा चलाया जाना चाहिए’।
- सरकार ने अदालत को स्पष्ट करते हुए कहा है, कि भारत, ‘संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि’ (United Nations Convention on the Law of the Sea- UNCLOS) के तहत गठित ‘मध्यस्थता अधिकरण’ के फैसले के प्रति बाध्य है।
- चूंकि, भारत संयुक्त राष्ट्र अभिसमय पर हस्ताक्षरकर्ता है, अतः यह फैसला ‘अंतिम’ है और इसके खिलाफ अपील नहीं की जा सकती है।
अधिकरण का निर्णय क्या था?
- 3: 2 के नजदीकी वोट के साथ, अधिकरण ने फैसला सुनाते हुए कहा कि, इतालवी नौसनिकों को ‘संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि’ (UNCLOS) के तहत इतालवी राज्य-अधिकारियों के रूप में राजनयिक प्रतिरक्षा हासिल थी।
- इस घटना की आपराधिक जांच फिर से शुरू करने के लिए “इटली द्वारा व्यक्त की गई प्रतिबद्धता” को ध्यान में रखते हुए, अधिकरण ने कहा कि, इस मामले में, भारत को अपने अधिकार क्षेत्र का उपयोग नहीं करना चाहिए।
प्रीलिम्स लिंक:
- PCA- रचना, कार्य और सदस्य
- UNCLOS क्या है?
- UNCLOS के अनुच्छेद 87, 90 और 100 किससे संबंधित हैं?
- इंटरनेशनल ट्रिब्यूनल फॉर लॉ ऑफ द सी (ITLOS) के बारे में
- NIA क्या है?
- स्थायी मध्यस्थता न्यायालय (PCA) के बारे में
- भारतीय संविधान का अनुच्छेद 253
मेंस लिंक:
PCA के कार्यों और महत्व पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: द हिंदू
सामान्य अध्ययन-III
विषय: भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधनों को जुटाने, प्रगति, विकास तथा रोज़गार से संबंधित विषय।
G-SAP: बाजार प्रोत्साहन हेतु प्रतिभूति अधिग्रहण योजना
(Government Security Acquisition Programme: G-SAP)
संदर्भ:
भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने, हाल ही में, वित्तीय वर्ष 2022 में ‘पैदावार वक्र’ अर्थात ‘यील्ड वक्र’ (yield curve) के व्यवस्थित रूप से विकसित होने हेतु एक द्वितीयक बाजार सरकारी प्रतिभूति अधिग्रहण कार्यक्रम (Government Security Acquisition Programme) अर्थात G-SAP 1.0 की घोषणा की है।
इस कार्यक्रम के तहत, केंद्रीय बैंक द्वारा 1 ट्रिलियन रुपये (या एक लाख करोड़ रुपये) मूल्य के सरकारी बॉन्ड कह्रीदे जाएंगे।
महत्व:
GSAP 1.0, बॉन्ड बाजार के लिए और अधिक सहूलियत प्रदान करेगा। चूंकि, इस वर्ष सरकार की उधारी में वृद्धि हुई है, अतः आरबीआई के लिए यह सुनिश्चित करना है कि भारतीय बाजार में कोई व्यवधान न हो।
- यह कार्यक्रम, रेपो दर और दस-वर्षीय सरकारी बॉन्ड से होने वाली आय के बीच अंतर को कम करने में मदद करेगा।
- G-SAP, करीब-करीब ‘मुक्त बाज़ार परिचालन’ (OMO) कैलेंडर के प्रयोजन को पूरा करेगा, जोकि बॉन्ड बाजार की मांग सूची में लंबे समय से शामिल हैं।
‘मुक्त बाज़ार परिचालन’ (OMO) क्या होता है?
मुक्त बाज़ार परिचालन (Open Market Operation- OMO), भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) या देश के केंद्रीय बैंक द्वारा सरकारी प्रतिभूतियों और ट्रेजरी बिलों की बिक्री और खरीद होती है।
- OMO का उद्देश्य अर्थव्यवस्था में मुद्रा आपूर्ति को विनियमित करना है।
- यह मात्रात्मक मौद्रिक नीति उपकरणों में से एक होता है।
कार्यविधि:
भारतीय रिजर्व बैंक, मुक्त बाज़ार परिचालन (OMO) का निष्पादन वाणिज्यिक बैंकों के माध्यम से करता है तथा इसके तहत RBI जनता के साथ सीधे व्यापार नहीं करता है।
OMO बनाम तरलता:
- जब केंद्रीय बैंक मौद्रिक प्रणाली में तरलता (liquidity) में वृद्धि करना चाहता है, तो वह खुले बाजार में सरकारी प्रतिभूतियों की खरीद करेगा। इस प्रकार केंद्रीय बैंक, वाणिज्यिक बैंकों को तरलता प्रदान करता है।
- इसके विपरीत, जब केंद्रीय बैंक मौद्रिक प्रणाली में तरलता को कम करना चाहता है, तो वह सरकारी प्रतिभूतियों की बिक्री करेगा। इस प्रकार केंद्रीय बैंक अप्रत्यक्ष रूप से धन की आपूर्ति को नियंत्रित करता है और अल्पकालिक ब्याज दरों को प्रभावित करता है।
भारतीय रिजर्व बैंक दो प्रकार से ‘मुक्त बाज़ार परिचालन’ (OMO) का निष्पादन करता है:
- एकमुश्त खरीद (Outright Purchase– PEMO) – यह स्थायी प्रक्रिया होती है और इसमें सरकारी प्रतिभूतियों की एकमुश्त बिक्री या खरीद की जाती है।
- पुनर्खरीद समझौता (Repurchase Agreement– REPO) – यह अल्पकालिक प्रक्रिया होती है और पुनर्खरीद के अधीन होती है।
प्रीलिम्स लिंक:
- मौद्रिक बनाम राजकोषीय नीति उपकरण
- मात्रात्मक बनाम गुणात्मक उपकरण
- OMO क्या हैं?
- PEMO बनाम REPO
मेंस लिंक:
‘मुक्त बाज़ार परिचालन’ (OMO) क्या होता हैं? इसके महत्व पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
विषय: मुख्य फसलें- देश के विभिन्न भागों में फसलों का पैटर्न- सिंचाई के विभिन्न प्रकार एवं सिंचाई प्रणाली- कृषि उत्पाद का भंडारण, परिवहन तथा विपणन, संबंधित विषय और बाधाएँ; किसानों की सहायता के लिये ई-प्रौद्योगिकी।
सरकार द्वारा अफ़ीम की पैदावार बढ़ाने संबंधी उपायों पर विचार
संदर्भ:
केंद्र सरकार द्वारा ‘क्षाराभ’ अर्थात ऐल्कलॉइड (alkaloids) की पैदावार को बढ़ावा देने हेतु भारत में अफीम की खेती से होने वाली ‘सांद्रित अफीम डंठल’ (concentrated poppy straw- CPS) का उत्पादन शुरू करने के लिए निजी क्षेत्र को शामिल करने का फैसला किया गया है।
‘ऐल्कलॉइड’ का उपयोग चिकित्सीय उद्देश्यों के लिए किया जाता है और इसे कई देशों को निर्यात किया जाता है।
अफीम की खेती:
- केवल कुछ देशों को ही ‘ऐल्कलॉइड’ के निर्यात और निष्कर्षण के लिए अफीम की खेती करने की अनुमति है।
- भारत द्वारा, वर्तमान में, केवल वित्त मंत्रालय के अधीन राजस्व विभाग द्वारा नियंत्रित सुविधाओं में अफीम के गोंद से ‘ऐल्कलॉइड’ का निष्कर्षण किया जाता है। इस कारण किसानों को अफीम की फली को हाथ से चीरकर ‘गोंद’ निकलना पड़ता है और इसे सरकारी कारखानों को बेचना पड़ता है।
पृष्ठभूमि:
भारत की अफीम फसल का क्षेत्रफल, पिछले कुछ वर्षों से लगातार कम होता जा रहा है, तथा CPS निष्कर्षण विधि के उपयोग से, औषधीय उपयोगों के लिए ‘कोडीन’ (अफीम से निकाले गए) जैसे उत्पादों के आयात पर सामयिक निर्भरता में कटौती करने में सहायता मिलेगी।
स्रोत: द हिंदू
विषय: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में भारतीयों की उपलब्धियाँ; देशज रूप से प्रौद्योगिकी का विकास और नई प्रौद्योगिकी का विकास।
एक घंटे के भीतर डेंगू के निदान हेतु उपकरण
संदर्भ:
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान दिल्ली के अनुसंधानकर्ताओं ने डेंगू के शीघ्र निदान हेतु हाथ में पकड़ने वाली ‘भूतल-संवर्धित रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी’ अर्थात ‘सरफेस एनहैंस्ड रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी’ (SERS) आधारित प्लेटफॉर्म विकसित किया है। यह उपकरण, एक घंटे के भीतर डेंगू परीक्षण के परिणाम (त्वरित निदान) भी प्रदान करता है।
शिक्षा मंत्रालय के IMPRINT इंडिया कार्यक्रम द्वारा इस अनुसंधान कार्य को वित्त पोषित किया गया है।
शीघ्र निदान की आवश्यकता:
डेंगू का शुरुआती निदान, किसी मरीज की सेहत बिगड़ने से रोकने के लिए अत्याधिक महत्वपूर्ण होता है। हालांकि, ‘रिवर्स ट्रांसक्रिपटेस पॉलीमरेज़ चेन रिएक्शन’ (RT-PCR) का उपयोग करके न्यूक्लिक एसिड का पता लगाने वाले जैसी पारंपरिक नैदानिक प्रक्रियाओं में, काफी समय लगता है और इसमें डेंगू निदान के लिए महंगे उपकरणों और अभिकर्मकों की भी आवश्यकता होती है।
‘सरफेस एनहैंस्ड रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी’ (SERS) क्या है?
खुरदरी धात्विक सतहों पर अणुओं को अवशोषित करके अथवा प्लास्मोनिक-मैग्नेटिक सिलिका नैनोट्यूब जैसी सूक्ष्मसंरचनाओं द्वारा रमन प्रकीर्णन को बढाने वाली सतह के प्रति संवेदनशील एक तकनीक है।
प्रीलिम्स लिंक:
- सीवी रमन और उनके प्रमुख योगदान के बारे में।
- रमन प्रभाव क्या है?
- SERS क्या है?
- रेले प्रकीर्णन और रमन प्रकीर्णन के बीच अंतर।
- रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी क्या है?
- IMPRINT इंडिया प्रोग्राम के बारे में।
मेंस लिंक:
रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी पर एक टिप्पणी लिखिए।
स्रोत: द हिंदू
विषय: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन।
‘नेट-ज़ीरो’ और इस पर भारत की आपत्तियाँ
(What is net-zero and what are India’s objections?)
संदर्भ:
वैश्विक जलवायु नेतृत्व को पुनः हासिल करने के प्रयास में, अमेरिकी राष्ट्रपति ‘जो बिडेन’ द्वारा आयोजित आगामी ‘वर्चुअल क्लाइमेट लीडर्स समिट’ में अमेरिका द्वारा वर्ष 2050 तक के लिए ‘नेट-जीरो उत्सर्जन’ (net-zero emission) लक्ष्य के प्रति प्रतिबद्ध होने की व्यापक संभावना है।
‘नेट-ज़ीरो’ (Net-Zero) लिए प्रतिबद्ध अन्य देश:
- ब्रिटेन और फ्रांस सहित कई अन्य देशों द्वारा वर्तमान सदी के मध्य तक ‘नेट-जीरो उत्सर्जन’ परिदृश्य हासिल करने का वादा करते हुए पहले से ही कानून बना जा चुके हैं। यहां तक कि, चीन भी वर्ष 2060 तक ‘नेट-ज़ीरो’ हासिल करने का वादा कर चुका है।
- यूरोपीय संघ द्वारा, पूरे यूरोप में, इससे संबंधित एक समान कानून तैयार करने पर काम कर रहा है, जबकि कनाडा, दक्षिण कोरिया, जापान और जर्मनी सहित कई अन्य देशों द्वारा ‘नेट-ज़ीरो’ भविष्य के प्रति प्रतिबद्ध होने का इरादा व्यक्त किया है।
‘नेट-ज़ीरो’ क्या है?
- ‘नेट-ज़ीरो’ (Net-Zero), जिसे ‘कार्बन-तटस्थता’ (carbon-neutrality) भी कहा जाता है, का मतलब यह नहीं है, कि कोई देश अपने सकल उत्सर्जन को शून्य तक ले जाएगा। बल्कि, ‘नेट-ज़ीरो’ एक ऐसी स्थिति होती है, जिसमें किसी देश के उत्सर्जन को, ‘वायुमंडल से ग्रीनहाउस गैसों के अवशोषण तथा निराकरण’ के द्वारा क्षतिपूरित (compensated) किया जाता है।
- उत्सर्जन के अवशोषण में वृद्धि करने हेतु अधिक संख्या में कार्बन सिंक, जैसे कि जंगल, तैयार किये जा सकते हैं, जबकि वायुमंडल से गैसों का निराकरण करने अथवा निष्कासित करने के लिए कार्बन कैप्चर और भंडारण जैसी अत्याधुनिक तकनीकों की आवश्यकता होती है।
‘नेट-ज़ीरो’ की आवश्यकता:
- पिछले दो वर्षों से, हर देश को वर्ष 2050 तक के ‘नेट-ज़ीरो’ लक्ष्य पर हस्ताक्षर करने को राजी करने हेतु, एक काफी सक्रिय अभियान चल रहा है।
- तर्क दिया जा रहा है कि, वर्ष 2050 तक वैश्विक ‘कार्बन-तटस्थता’ ही ‘पेरिस समझौते’ के अंतर्गत निर्धारित, वैश्विक तापमान में वृद्धि को, पूर्व-औद्योगिक काल की तुलना में, 2 डिग्री सेल्सियस के अंदर सीमित रखने का लक्ष्य हासिल करने का एकमात्र तरीका है।
- ‘नेट-ज़ीरो’ सूत्रीकरण, किसी भी देश के लिए उत्सर्जन-कटौती संबंधित लक्ष्य निर्धारित नहीं करता है।
‘नेट-ज़ीरो’ और पेरिस समझौता:
- वर्ष 2015 का पेरिस समझौते में, जोकि जलवायु परिवर्तन से निपटने हेतु एक नई वैश्विक संरचना है, ‘नेट-ज़ीरो’ लक्ष्य का कोई उल्लेख नहीं है।
- पेरिस समझौते के तहत, प्रत्येक हस्ताक्षरकर्ता को, उसकी क्षमता के अनुरूप, सर्वाधिक उपयुक्त जलवायु कार्रवाई करना अनिवार्य है।
- इसके तहत, सभी देशों को अपने लिए पांच या दस वर्षीय जलवायु लक्ष्य निर्धारित करना तथा उनकी प्राप्ति का प्रदर्शन करना आवश्यक है।
- अन्य अनिवार्यताओं के तहत, प्रत्येक समय-सीमा के पश्चात नए समयावधि के लिए निर्धारित लक्ष्य, पूर्व-अवधि के लक्ष्यों से अधिक महत्त्वाकांक्षी होने चाहिए।
भारत की ‘नेट-ज़ीरो’ के प्रति आपत्तियां:
अमेरिका और चीन के बाद, भारत, ग्रीनहाउस गैसों का दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा उत्सर्जक देश है, और ‘नेट-ज़ीरो’ लक्ष्य से बाहर रहने वाला एकमात्र प्रमुख देश है।
भारत, अकेला इस लक्ष्य का विरोध कर रहा है क्योंकि इससे भारत के सर्वाधिक प्रभावित होने की संभावना है।
भारत के लिए अद्वितीय चुनौतियां:
- आगामी दो से तीन दशकों में, भारत का उत्सर्जन, विश्व में सर्वाधिक तेज गति से बढ़ने की संभावना है, क्योंकि भारत में, लाखों लोगों को गरीबी से बाहर निकालने हेतु उच्च विकास पर जोर दिया जा रहा है।
- कितना भी वनरोपण अथवा पुनःवनीकरण इस बढ़े हुए उत्सर्जन की क्षतिपूर्ति नहीं कर सकता है।
- वर्तमान में, कार्बन-निष्कर्षण करने वाली अधिकांश तकनीकें या तो अविश्वसनीय हैं या बहुत महंगी हैं।
प्रीलिम्स लिंक:
- ‘जलवायु नेताओं’ के शिखर सम्मेलन के बारे में।
- नेट-ज़ीरो क्या है?
- नेट-ज़ीरो के लिए प्रतिबद्ध देश।
- पेरिस समझौते के बारे में।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य
विश्व स्वास्थ्य दिवस
(World Health Day)
- 7 अप्रैल को ‘विश्व स्वास्थ्य दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।
- 7 अप्रैल, वर्ष 1948 को ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ (WHO) के गठन हुआ था, इसी उपलक्ष्य में इस दिन को विश्व स्वास्थ्य दिवस के रूप में मनाया जाता है।
- इस वर्ष का विषय: “सभी के लिए एक न्यायपूर्ण, स्वस्थ दुनिया का निर्माण” (Building a fairer, healthier world for everyone)।
मधुक्रांति पोर्टल:
- “मधुक्रांति पोर्टल”, राष्ट्रीय मधुमक्खीपालन और शहद मिशन (NBHM) के तहत राष्ट्रीय मधुमक्खी बोर्ड (NBB), कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय की एक पहल है।
- यह पोर्टल डिजिटल प्लेटफॉर्म पर शहद व अन्य मधुमक्खी उत्पादों के ट्रेसेबिलिटी स्रोत को प्राप्त करने के लिए ऑनलाइन पंजीकरण हेतु विकसित किया गया है।
‘अनामाया’
(Anamaya)
- अनामया, पीरामल फाउंडेशन और बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन (BMGF) द्वारा समर्थित एक आदिवासी स्वास्थ्य सहयोग है।
- यह भारत के जनजातीय समुदायों में स्वास्थ्य एवं पोषण की स्थिति को बेहतर करने के लिए विभिन्न सरकारी एजेंसियों और संगठनों के प्रयासों को एकीकृत करेगी।
- यह पहल, जनजातीय समुदायों में ‘रोकी जा सकने वाली मौतों’ को ख़त्म करने के लिए प्रतिबद्ध है।
बैसाखी
- पाकिस्तान उच्चायोग द्वारा भारत के सिख तीर्थयात्रियों को वार्षिक बैसाखी समारोह में भाग लेने के लिए 1,100 से अधिक वीजा जारी किए गए हैं।
- धार्मिक तीर्थस्थलों की यात्राओं पर पाकिस्तान-भारत प्रोटोकॉल के ढांचे के तहत, भारत से हर साल बड़ी संख्या में सिख तीर्थयात्री विभिन्न धार्मिक त्योहार मनाने पाकिस्तान जाते हैं।
- बैसाखी, हिंदू सौर नव वर्ष की शुरुआत को चिह्नित करती है। वैसाखी, बैसाख महीने के पहले दिन, आमतौर पर हर साल 13 या 14 अप्रैल को मनाया जाता है, तथा यह सिख धर्म में एक ऐतिहासिक और धार्मिक त्योहार है।
लाल सागर
(Red sea)
लाल सागर (इरिथ्रियन सागर भी), अफ्रीका और एशिया के बीच स्थित, हिंद महासागर का समुद्री खाड़ी जलक्षेत्र है। यह दक्षिण में बाब अल-मन्देब जलसन्धि तथा अदन की खाड़ी के माध्यम से महासागर से जुडती है। इसके उत्तर में सिनाई प्रायद्वीप, अकाबा की खाड़ी, और स्वेज की खाड़ी (स्वेज नहर के लिए मार्ग) स्थित है। ये सागर, ‘लाल सागर रिफ्ट’ से होकर गुजरता है, जोकि ‘ग्रेट रिफ्ट वैली’ का एक भाग है।
लाल सागर की लवणता, विश्व औसत से लगभग 4 प्रतिशत अधिक है। इसके कई कारक है:
- सागर में प्रवाहित होने वाली महत्वपूर्ण नदियों या धाराओं का अभाव।
- कम लवणता वाले हिंद महासागर के साथ सीमित संबद्धता।
- वाष्पीकरण की उच्च दर और बहुत कम वर्षा।
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