विषयसूची
सामान्य अध्ययन-II
1. अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (आईसीसी)
सामान्य अध्ययन-III
1. उतिष्ठ भारत (स्टैंड अप इंडिया) योजना
2. इंजेन्युटी हेलीकाप्टर
3. ‘वन संरक्षण अधिनियम’ मसौदा संशोधन
4. चिल्का झील, बंगाल की खाड़ी का एक भाग: एक अध्ययन
5. महेंद्रगिरि में ओडिशा का दूसरा बायोस्फीयर रिजर्व प्रस्तावित
सामान्य अध्ययन-IV
1. गंभीर अपराध से बरी अभ्यर्थी को नियोक्ता द्वारा खारिज किया जा सकता है: सुप्रीम कोर्ट
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य
1. संकल्प से सिद्धि
सामान्य अध्ययन-II
विषय: महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थान, संस्थाएँ और मंच- उनकी संरचना, अधिदेश।
अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC)
(International Criminal Court)
संदर्भ:
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बिडेन द्वारा पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC) के दो शीर्ष अधिकारियों पर लगाए गए प्रतिबंधों को हटा दिया गया है।
संबंधित प्रकरण:
अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC) द्वारा अफगानिस्तान में अमेरिकी सैनिकों द्वारा कथित अपराधों की जांच की जा रही थी। किंतु, ट्रम्प प्रशासन अफगानिस्तान में की गई कार्रवाईयों के लिए अमेरिकियों के खिलाफ तथा फिलिस्तीनियों के खिलाफ की गई कार्रवाईयों के लिए इजरायल पर मुकदमा चलाने पर खुले आम ट्रिब्यूनल के विरुद्ध था।
आईसीसी के बारे में:
- अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (International Criminal Court -ICC) हेग, नीदरलैंड में स्थित है। यह नरसंहार, युद्ध अपराधों तथा मानवता के खिलाफ अपराधों के अभियोजन के लिए अंतिम न्यायालय है।
- आईसीसी, विश्व का प्रथम स्थायी अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय है, जिसकी स्थापना अंतरराष्ट्रीय समुदायों के प्रति गंभीर अपराधों के दोषी अपराधियों पर मुकदमा चलाने तथा उन्हें सजा देने के लिए की गयी है।
- इसकी स्थापना ‘रोम संविधि’ (Rome Statute) के अंतर्गत की गयी, और यह कानून, 1 जुलाई 2002 को लागू हुआ।
वित्तीयन (Funding): न्यायालय का व्यय, मुख्य रूप से सदस्य देशों द्वारा पूरा किया जाता है, हालांकि इसे सरकारों, अंतर्राष्ट्रीय संगठनों, निजी व्यक्तियों, निगमों तथा अन्य संस्थाओं से स्वैच्छिक योगदान भी प्राप्त होता है।
संरचना और मतदान शक्ति:
- अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC) के प्रबंधन, विधायी निकाय तथा सदस्य सभा में प्रत्येक सदस्य राज्य का एक प्रतिनिधि शामिल होता है।
- प्रत्येक सदस्य का एक वोट होता है तथा सर्वसम्मति से निर्णय लेने के लिए “हर संभव प्रयास” किया जाता है। किसी विषय पर सर्वसम्मति नहीं होने पर वोटिंग द्वारा निर्णय किया जाता है।
- आईसीसी में एक अध्यक्ष तथा दो उपाध्यक्ष होते है, इनका चुनाव सदस्यों द्वारा तीन वर्ष के कार्यकाल के लिए किया जाता है।
प्रीलिम्स लिंक:
- ICJ और ICC के मध्य अंतर
- इन संगठनों की भौगोलिक अवस्थिति
- रोम संविधि क्या है?
- आईसीसी के आदेश।
- जब इसके आदेश लागू नहीं किए जाते हैं तो क्या होता है?
मेंस लिंक:
अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC) पर एक टिप्पणी लिखिए।
स्रोत: द हिंदू
सामान्य अध्ययन-III
विषय: समावेशी विकास तथा इससे उत्पन्न विषय।
उतिष्ठ भारत (स्टैंड अप इंडिया) योजना
(Stand Up India Scheme)
योजना के अंतर्गत प्रदर्शन:
पांच वर्ष पूर्व अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) और महिला उद्यमियों को बढ़ावा देने हेतु भारत सरकार द्वारा ‘उतिष्ठ भारत (स्टैंड अप इंडिया) योजना (Stand Up India Scheme) की शुरुआत की गयी थी।
इस योजना के तहत, अब तक:
- बैंकों द्वारा 14 लाख से अधिक खातों में 25,000 करोड़ रुपए से अधिक राशि अनुमोदित की गई है।
- इस योजना के अंतर्गत, इसमें से अधिकाँश राशि पर महिलाओं के नेतृत्व वाले उद्यमों का वर्चस्व रहा है, और इस योजना अवधि को वर्ष 2025 तक बढ़ा दिया गया है।
‘उतिष्ठ भारत’ योजना / ‘स्टैंड अप इंडिया’ स्कीम के बारे में:
- आर्थिक सशक्तिकरण के जमीनी स्तर पर उद्यमशीलता को बढ़ावा देने और रोजगार सृजन हेतु 5 अप्रैल 2016 को ‘उतिष्ठ भारत’ योजना की शुरुआत की गई थी।
- इस योजना का उद्देश्य, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और महिला उद्यमियों जैसे सीमित सेवा लाभ प्राप्त करने वाले लोगों तक संस्थागत ऋण संरचनाओं का लाभ प्रदान करना है।
- इसका उद्देश्य, प्रत्येक बैंक शाखा द्वारा कम से कम एक अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और महिला उद्यमी को नई (ग्रीनफील्ड) परियोजना की स्थापना करने हेतु 10 लाख से 1करोड़ रुपये के बीच बैंक ऋण प्रदान करना है।
- इसके तहत, SIDBI और NABARD के कार्यालयों को ‘स्टैंड-अप कनेक्ट सेंटर’ (SUCC) के रूप में अभिहित किया जाएगा।
योजना के अंतर्गत पात्रता:
- 18 वर्ष से अधिक आयु के अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति और / महिला उद्यमी।
- योजना के अंतर्गत ऋण सहायता केवल ग्रीनफील्ड परियोजना के लिए प्रदान की जाएगी।
- उधारकर्ता के लिए किसी भी बैंक अथवा वित्तीय संस्थान में ‘डिफ़ॉल्ट’ (बकाया) नहीं होना चाहिए।
- गैर-निजी उद्यमों के मामले में, कम से कम 51% हिस्सेदारी और नियंत्रण, अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति और / महिला उद्यमी के पास होना चाहिए।
स्रोत: द हिंदू
विषय: सूचना प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष, कंप्यूटर, रोबोटिक्स, नैनो-टैक्नोलॉजी, बायो-टैक्नोलॉजी और बौद्धिक संपदा अधिकारों से संबंधित विषयों के संबंध में जागरुकता।
इंजेन्युटी हेलीकाप्टर
(Ingenuity Helicopter)
संदर्भ:
नासा के ‘इंजेन्युटी मिनी-हेलीकॉप्टर’ (Ingenuity Mini-Helicopter) को, हाल ही में, पहली उड़ान भरने के लिए मंगल की सतह पर उतार दिया गया है।
इस हेलीकॉप्टर को ‘परसिवरेंस रोवर’ (Perseverance rover), जिसने इसी वर्ष 18 फरवरी को मंगल ग्रह की सतह का स्पर्श किया है, के अधोभाग में जोड़ा गया था।
‘इंजेन्युटी’ के समक्ष मंगल ग्रह पर आने वाली चुनौतियां:
- इंजेन्युटी हेलीकाप्टर, मंगल के विरल वातावरण में उडान भरेगा, जिसका घनत्व पृथ्वी के वातावरण की तुलना में मात्र एक प्रतिशत है, इस कारण इसकी उड़ान में काफी कठिनाई का सामना करना पड़ेगा।
- किन्तु, इसकी उड़ान के लिए ग्रह के गुरुत्वाकर्षण से सहायता मिलेगी, जोकि पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण का मात्र एक-तिहाई है।
- ‘इंजेन्युटी’ को मंगल ग्रह पर होने वाली कड़ी ठंडी रातों के दौरान, अपने बगैर सुरक्षा कवच वाले उपकरणों को जमने और टूटने से बचाने हेतु आवश्यक हीटर चलाना होगा, जिसके लिए इसे अब अपनी बैटरी का उपयोग करना पड़ेगा।
‘इंजेन्युटी मंगल हेलीकाप्टर’ के बारे में:
‘इंजेन्युटी’ हेलीकाप्टर, एक छोटा समाक्षीय (coaxial), ड्रोन रोटरक्राफ्ट है, जोकि नासा के मंगल अभियान-2020 का एक भाग है। यह अन्य भू-भागों के ऊपर, काम के स्थानों का पता लगाने तथा ग्रह पर मंगल रोवर्स का भविष्य में मार्ग तय करने संबंधी योजना बनाने में, ‘फ्लाइंग प्रोब’ के संभावित उपयोग हेतु एक ‘तकनीकी प्रदर्शन’ के रूप में कार्य करेगा।
‘परसिवरेंस रोवर’ के बारे में:
- परसिवरेंस रोवर (Perseverance rover) को, जुलाई 2020 में लॉन्च किया गया था।
- मंगल ग्रह पर परसिवरेंस अभियान का मुख्य उद्देश्य खगोल-जीवविज्ञान (astrobiology) का अध्ययन तथा प्राचीन सूक्ष्मजीवीय जीवन के खगोलीय साक्ष्यों की खोज करना है।
- यह रोवर, ग्रह के भूविज्ञान और अतीत के जलवायु के बारे में विवरण उपलब्ध कराएगा तथा मानव जाति के लिए लाल ग्रह के अन्वेषण का मार्ग प्रशस्त करेगा। यह, मंगल ग्रह की चट्टानों तथा रेगोलिथ अर्थात विखंडित चट्टानों और धूल (Reglolith) के नमूने एकत्र करने वाला पहला मिशन होगा।
- इसमें ईधन के रूप में, प्लूटोनियम के रेडियोधर्मी क्षय से उत्पन्न ताप द्वारा जनित विद्युत शक्ति का उपयोग किया गया है।
- परसिवरेंस रोवर में MOXIE अथवा मार्स ऑक्सीजन ISRU एक्सपेरिमेंट नामक एक विशेष उपकरण लगा है, जो मंगल ग्रह पर कार्बन-डाइऑक्साइड-समृद्ध वातावरण से कार्बन डाइऑक्साइड का उपयोग करके पहली बार आणविक ऑक्सीजन का निर्माण करेगा। (ISRU- In Situ Resource Utilization, अर्थात स्व-स्थानिक संशाधनो का उपयोग)
प्रीलिम्स लिंक:
- मंगल मिशन
- पर्सविरन्स रोवर – उद्देश्य
- पर्सविरन्स रोवर पर उपकरण
- UAE के ‘होप’ मिशन तथा चीन के तियानवेन -1 अंतरिक्ष यान के बारे में
- पाथफाइंडर मिशन
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
विषय: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन।
‘वन संरक्षण अधिनियम’ मसौदा संशोधन
संदर्भ:
हाल ही में, केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 (FCA) में कई संशोधन प्रस्तावित किए गए हैं।
मसौदा संशोधन:
- मंत्रालय द्वारा, जंगलों में रेलवे, सड़कों, वृक्षारोपण, तेल-अन्वेषण, वन्यजीव पर्यटन और ‘रणनीतिक परियोजनाओं’ को छूट देने का प्रस्ताव किया गया हैं।
- इसके तहत, राज्य सरकारों को निजी व्यक्तियों और कॉर्पोरेशंस (corporations) के लिए ‘वन भूमि’ को पट्टे पर देने का अधिकार प्रदान किया जाएगा।
- इन संशोधनों का उद्देश्य वनों के अभिनिर्धारण की प्रक्रिया समयबद्ध तरीके से पूरी करना है।
- इनके तहत, ‘प्रवेश वर्जित’ / नो-गो (no-go) क्षेत्रों का सृजन करने का प्रस्ताव भी किया गया है, जिनमे कुछ विशिष्ट परियोजनाओं के लिए अनुमति नहीं दी जाएगी।
संबंधित मुद्दे एवं चिंताएं:
- यदि इन प्रस्तावित संशोधनों को लागू किया जाता है, तो ‘गोदावरमन मामले’ (टीएन गोदावरमन थिरुमुलकपाद बनाम भारत संघ एवं अन्य) में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा वर्ष 1996 में सुनाए गए एतिहासिक फैसले के प्रावधान प्रभावहीन हो जाएंगे।
- ये मामला नीलगिरी पहाड़ियों में लकड़ी की अवैध कटाई को रोकने के लिए एक याचिका के रूप में शुरू हुआ था, किंतु ‘वन संरक्षण अधिनियम’ (Forest Conservation Act- FCA) के क्षेत्राधिकार में विस्तार के साथ समाप्त हुआ था।
प्रस्तावित संशोधनों का आशय इस ‘फैसले’ की व्यापकता को सीमित करना है, इसके लिए ‘वन संरक्षण अधिनियम’ (FCA) की अनुप्रयोज्यता सीमा को मात्र निम्नलिखित भूमियों तक सीमित किया जाएगा:
- भारतीय वन अधिनियम, 1927 के तहत घोषित या अधिसूचित वन भूमि।
- 25 अक्टूबर 1980 से पहले सरकारी रिकॉर्ड में वन भूमि के रूप में दर्ज भूमि। किंतु, यदि 12 दिसंबर 1996 से पहले, इस प्रकार की भूमि को उपयोग हेतु ‘वन भूमि’ से गैर-भूमि में परिवर्तित कर दिया गया हो, तो इन पर ‘वन संरक्षण अधिनियम’ (FCA) के प्रावधान लागू नहीं होंगे।
- संशोधन की तिथि से एक वर्ष की अवधि तक, राज्य सरकार की विशेषज्ञ समिति द्वारा ‘वन’ के रूप में अभिनिर्धारित भूमि।
वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 के बारे में:
- वन (संरक्षण) अधिनियम (FCA), देश में वनों की कटाई को नियंत्रित करने हेतु एक प्रमुख कानून है।
- इसके तहत, केंद्र सरकार द्वारा पूर्व मंजूरी के बिना, किसी भी “गैर-वानिकी” उपयोग के लिए जंगलों की कटाई को प्रतिबंधित किया गया है।
- अनापत्ति हासिल करने की प्रक्रिया के तहत स्थानीय वन अधिकार-धारकों और वन्यजीव अधिकारियों से सहमति प्राप्त करना अनिवार्य किया गया है।
- इसके अंतर्गत, केंद्र सरकार के लिए, इस प्रकार के अनुरोधों को अस्वीकार करने या कानूनी रूप से बाध्यकारी शर्तों के साथ अनुमति देने का अधिकार प्राप्त है।
प्रीलिम्स लिंक:
- वन (संरक्षण) अधिनियम (FCA) के प्रमुख प्रावधान।
- गोदावरमन केस किससे संबंधित है?
मेंस लिंक:
वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 पर एक टिप्पणी लिखिए।
स्रोत: डाउन टू अर्थ
विषय: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन।
चिल्का झील, बंगाल की खाड़ी का एक भाग: एक अध्ययन
संदर्भ:
एशिया की सबसे बड़ी खारे पानी की झील, ओडिशा में चिल्का झील, कभी बंगाल की खाड़ी का भाग थी। राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान (National Institute of Oceanography- NIO), गोवा के समुद्री पुरातत्व विभाग द्वारा किये गए एक अध्ययन में इस तथ्य का पता चला है।
चिल्का झील का निर्माण:
- चिल्का झील के निर्माण की प्रक्रिया, संभवतः लगभग 20,000 वर्ष पूर्व, प्लेस्टोसीन युग (Pleistocene epoch) के अंतिम दौर में शुरू हुई होगी।
- भारत की प्रायद्वीपीय नदी, महानदी अपने प्रवाह के साथ भारी मात्रा में गाद (silt) भी लाती रही, जिसका कुछ भाग इसके डेल्टा में जमा होता रहा।
- तलछट से भरी हुई महानदी के बंगाल की खाड़ी में मिलने से पहले इसके मुहाने पर बालुका रोधों (sand bars) का निर्माण हुआ।
- इन बालुका रोधों के कारण सागरीय जल का प्रतिवाह, नदी के मुहाने (estuary) पर मंद ताजे पानी में होने लगा, जिसके परिणामस्वरूप विशाल खारे पानी की झील का निर्माण हुआ।
ऐतिहासिक साक्ष्य:
- ग्रीक भूगोलवेत्ता क्लॉडियस टॉलेमी (150 CE) ने पलोर (Palur) को कलिंग का एक महत्वपूर्ण बंदरगाह के रूप में वर्णित किया तथा इसे ‘पालौरा‘ (चिल्का के निकट स्थित) बताया।
- चीनी तीर्थयात्री ह्वेन त्सांग (Xuanzang), 7 वीं शताब्दी ईस्वी, ने ‘ची-ली-ता-लो-चिंग’ (Che-li-ta-lo-Ching) नामक एक समृद्धिशाली बंदरगाह का जिक्र किया था। यह बंदरगाह चिलिका के तट पर छतरगढ़ में अवस्थित था।
- ब्राहमण पुराण (लगभग 10 वीं शताब्दी ईस्वी) के अनुसार, चिल्का, व्यापार और वाणिज्य का एक महत्वपूर्ण केंद्र था, और यहाँ से जावा, मलाया और सीलोन के लिए जहाजों के माध्यम से व्यापार होता था।
- प्रसिद्ध संस्कृत कवि कालिदास ने कलिंग के राजा का ‘माधोधिपति’ या ‘सागर का भगवान’ के रूप में वर्णन किया था।
‘चिल्का’ के बारे में:
- चिल्का (Chilika), की लंबाई उत्तर-दक्षिण दिशा में 64 किलोमीटर, तथा पूर्व-पश्चिम दिशा में चौड़ाई 5 किमी है।
- यह झील, सातपाड़ा के निकट उथले और संकरे चैनल के माध्यम से समुद्र से जुडती है। इस चैनल में कई बालू के ढेर (shoals), सैंड स्पिट्स, बालुका रोध पाए जाते हैं, जिससे झील का पानी का प्रवाह समुद्र की और नहीं हो पाटा है, तथा यह संरचनाएं ज्वारीय प्रवाह को भी झील में आने से रोकती हैं।
- चिल्का, एशिया की सबसे बड़ी और विश्व की दूसरी सबसे बड़ी लैगून है।
- यह भारतीय उपमहाद्वीप में प्रवासी पक्षियों के लिए सबसे बड़ा शीतकालीन मैदान है और कई संकटग्रस्त पौधों और जीव प्रजातियों का वास स्थल है।
- वर्ष 1981 में, चिल्का झील को रामसर अभिसमय के तहत अंतर्राष्ट्रीय महत्व की पहली भारतीय आर्द्रभूमि के रूप में नामित किया गया था।
- चिल्का का प्रमुख आकर्षण इरावदी डॉल्फ़िन हैं जिन्हें अक्सर सतपाड़ा द्वीप के नकदीक देखा जाता है।
- इस लैगून क्षेत्र के लगभग 16 वर्ग किमी में एक नलबन द्वीप (सरकंडो का जंगल) है, जिसे वर्ष 1987 में एक ‘पक्षी अभयारण्य’ (Nalbana Bird Sanctuary) घोषित किया गया था।
- कालिजई मंदिर – चिलिका झील में एक द्वीप पर स्थित है।
स्रोत: डाउन टू अर्थ
विषय: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन।
महेंद्रगिरि में ओडिशा का दूसरा बायोस्फीयर रिजर्व प्रस्तावित
संदर्भ:
ओडिशा सरकार द्वारा राज्य के दक्षिणी भाग में स्थिति ‘महेंद्रगिरि’ को राज्य का दूसरा ‘जैवमंडल भंडार’ बनाने का प्रस्ताव किया गया है। ‘महेंद्रगिरि’ जैव विविधता से समृद्ध एक पर्वतीय पारिस्थितिकी तंत्र है।
5,569 वर्ग किलोमीटर में विस्तृत ‘सिमलीपाल जैवमंडल रिजर्व’ ओडिशा का पहला ‘बायोस्फीयर रिजर्व’ है, इसे 20 मई, 1996 को अधिसूचित किया गया था।
प्रस्तावित ‘महेंद्रगिरी बायोस्फीयर रिजर्व’ के बारे में:
- इसका क्षेत्रफल लगभग 470,955 हेक्टेयर है तथा यह पूर्वी घाट के ‘गजपति’ और ‘गंजम’ जिलों में विस्तारित है।
- इसका पर्वतीय पारिस्थितिकी तंत्र, दक्षिण भारतीय और हिमालीय वनस्पतियों और जीवों के मध्य एक संक्रमण क्षेत्र के रूप में कार्य करता है, जो इस क्षेत्र को आनुवांशिक विविधता का पारिस्थितिक क्षेत्र बनाता है।
- महेंद्रगिरि पर ‘सौरा जनजाति’ निवास करती है, जोकि कांधा जनजाति के साथ ‘विशेष रूप से कमजोर आदिवासी समूह’ है।
‘जीवमंडल भंडार’ / ‘बायोस्फीयर रिजर्व’ क्या हैं?
किसी स्थलीय या तटीय / समुद्री पारिस्थितिक तंत्र अथवा दोनों के संयोजन से निर्मित विशाल क्षेत्रों में फैले प्राकृतिक और सांस्कृतिक परिदृश्यों के प्रतिनिधि भागों को ‘संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन’ (United Nations Educational, Scientific and Cultural Organization- UNESCO) द्वारा ‘जीवमंडल भंडार’ / ‘बायोस्फीयर रिजर्व’ (Biosphere Reserve- BR) के रूप में घोषित किया जाता है, इन्हें रूप से अंतर्राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त होती है।
- ‘बायोस्फीयर रिजर्व’ में प्रकृति के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक और सामाजिक विकास तथा संबद्ध सांस्कृतिक मूल्यों के रखरखाव को संतुलित करने का प्रयास किया जाता है।
- बायोस्फीयर रिज़र्व की अवधारणा को वर्ष 1971 में ‘संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (UNESCO) के ‘मैन एंड बायोस्फियर प्रोग्राम’ के भाग के रूप में लॉन्च किया गया था।
‘बायोस्फीयर रिजर्व’ के रूप में घोषित किए जाने हेतु मानदंड:
- प्रस्तावित स्थल में, प्रकृति संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण एक संरक्षित तथा न्यूनतम बाधित ‘कोर क्षेत्र’ होना चाहिए।
- कोर क्षेत्र, एक जैव-भौगोलिक इकाई होना चाहिए और इसका क्षेत्रफल, सभी पोषण स्तरों का प्रतिनिधित्व करने वाली जीवनक्षम आबादी को भरण-पोषण करने के लिए पर्याप्त होना चाहिए।
- प्रस्तावित स्थल में, स्थानीय समुदायों की भागीदारी और जैव विविधता संरक्षण में उनके ज्ञान का उपयोग किया जाना चाहिए।
- पर्यावरण के सामंजस्यपूर्ण उपयोग हेतु पारंपरिक आदिवासी या ग्रामीण तौर-तरीकों के संरक्षण की संभावनाएं होनी चाहिए।
प्रीलिम्स लिंक:
- ‘जीवमंडल भंडार’ क्या हैं?
- मानदंड
- सुरक्षा
- यूनेस्को MAB नेटवर्क के बारे में।
मेंस लिंक:
यूनेस्को के ‘मैन एंड बायोस्फियर प्रोग्राम’ पर एक टिप्पणी लिखिए।
स्रोत: डाउन टू अर्थ
सामान्य अध्ययन-IV
विषय: लोक प्रशासन में लोक/सिविल सेवा मूल्य तथा नीतिशास्त्र।
गंभीर अपराध से बरी अभ्यर्थी को नियोक्ता द्वारा खारिज किया जा सकता है: सुप्रीम कोर्ट
संदर्भ:
हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि, किसी लोक नियोजक द्वारा, अतीत में, संदेह के लाभ पर गंभीर अपराध से बरी, नौकरी हेतु आवेदन करने वाले किसी अभ्यर्थी को अस्वीकार किया जा सकता है।
अदालत की टिप्पणी:
- किसी व्यक्ति के मात्र बरी होने का तथ्य पर्याप्त नहीं होगा, बल्कि यह इस बात पर निर्भर करेगा कि यह सबूतों के अभाव के आधार पर पूर्ण रूप से एकदम बरी किया गया है, अथवा आपराधिक न्यायशास्त्र (criminal jurisprudence) के तहत मामले को उचित संदेह से परे साबित करने के लिए आवश्यक मानक पूरा नहीं होने पर, आरोपी को संदेह का लाभ देते हुए बरी किया गया है।
- संदेह के लाभ के आधार पर बरी होना, सम्मान के साथ बरी होने से काफी भिन्न होता है। किसी जघन्य अपराध के आरोप में सम्मान के साथ बरी होने होने वाले किसी व्यक्ति को सार्वजनिक रोजगार के लिए पात्र माना जाना चाहिए।
- इसके अलावा, किसी आपराधिक मामले में बरी होना, किसी पद पर नियुक्ति के लिए अभ्यर्थी को स्वतः ही हकदार नहीं बना देता है।
‘सम्मान के साथ’ बरी किया जाना:
जब किसी अभियुक्त के खिलाफ अभियोजन पक्ष द्वारा पेश किये गए साक्ष्य, अभियुक्त पर लगाए गए आरोपों को साबित करने में पूर्णतयः विफल रहते है, और अभियुक्त को पूर्ण विवेचना के बाद बरी कर दिया जाता है, तो इसे ‘सम्मान के साथ’ बरी किया जाना (Honourably Acquitted) कहा जा सकता है।
पृष्ठभूमि:
यह मामला, राजस्थान के मामले से संबंधित है, जिसमे गवाहों के मुकर जाने से वर्ष 2009 में एक व्यक्ति को हत्या के आरोप से बरी कर दिया गया। वह व्यक्ति, एक महिला के ऊपर ट्रैक्टर चढाने तथा इसका विरोध करने वाले लोगों पर चाकू से हमला करने वाले एक समूह में शामिल था।
स्रोत: द हिंदू
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य
संकल्प से सिद्धि
यह जनजातीय मामलों के मंत्रालय के तहत ट्राइफ़ेड (TRIFED) द्वारा शुरू किया गया ‘गांव एवं डिजिटल कनेक्ट अभियान’ है।
- यह 1 अप्रैल, 2021 से शुरू किया गया 100 दिन की मुहिम है।
- इस मुहिम से 150 टीमें (ट्राइफेड एवं राज्य कार्यन्वयनकारी एजेंसियों से प्रत्येक क्षेत्र में 10) जुड़ेंगी, जिनमें से प्रत्येक 10 गांवों का दौरा करेंगी। प्रत्येक क्षेत्र में 100 गांव तथा देश में 1500 गांवों को अगले 100 दिनों में कवर किया जाएगा।
- इस मुहिम का मुख्य उद्देश्य इन गांवों में वन धन विकास केन्द्रों को सक्रिय बनाना है।
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