विषयसूची
सामान्य अध्ययन-II
1. छठी अनुसूची में शामिल क्षेत्र
2. नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 (CAA)
3. जीएसटी क्षतिपूर्ति
4. ‘दुर्लभ बीमारियों’ से संबंधित स्वास्थ्य नीति
5. सिंधु जल आयोग की बैठक
6. अमेरिकी शांति योजना
7. संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (UNHRC)
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य
1. शहीदी दिवस
सामान्य अध्ययन- II
विषय: भारतीय संविधान- ऐतिहासिक आधार, विकास, विशेषताएँ, संशोधन, महत्त्वपूर्ण प्रावधान और बुनियादी संरचना।
छठी अनुसूची में शामिल क्षेत्र
संदर्भ:
हाल ही में, केंद्रीय गृह मंत्रालय (MHA) द्वारा लोकसभा को सूचित करते हुए कहा है, कि ‘वर्तमान में, छठी अनुसूची में शामिल असम के क्षेत्रों में पंचायत प्रणाली लागू करने का कोई प्रस्ताव नहीं है’।
इस संबंध में किये गए प्रयास- संविधान (125 वां संशोधन) विधेयक, 2019:
- 6 फरवरी, 2019 को, संविधान (125 वां संशोधन) विधेयक राज्य सभा में प्रस्तुत किया गया था। इस विधेयक में निर्वाचित ग्राम नगरपालिका परिषदों के गठन संबंधी प्रावधान किया गया है।
- यह विधेयक अभी भी क्रियाशील है और यह राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा स्वायत्त परिषदों, ग्रामों और नगरपालिका परिषदों के चुनाव कराये जाने का प्रस्ताव करता है।
संविधान की ‘छठी अनुसूची’ के बारे में:
संविधान की ‘छठी अनुसूची’ (Sixth Schedule), जनजातीय आबादी को सुरक्षा प्रदान करती है, तथा ‘स्वायत्त विकास परिषदों’ का गठन करके इन समुदायों को स्वायत्तता प्रदान करती है। इन ‘स्वायत्त परिषदों को भूमि, सार्वजनिक स्वास्थ्य, कृषि तथा अन्य विषयों पर क़ानून बनाने और लागू करने का अधिकार प्राप्त होता है।
- वर्तमान में, असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम राज्यों में 10 स्वायत्त परिषदें मौजूद हैं।
- यह विशेष प्रावधान, संविधान के अनुच्छेद 244 (2) और अनुच्छेद 275 (1) के तहत प्रदान किए गए है।
छठी अनुसूची के अंतर्गत प्रमुख प्रावधान:
- राज्यपाल के लिए ‘स्वायत्त ज़िलों’ को गठित करने और पुनर्गठित करने का अधिकार होता है।
- यदि किसी स्वायत्त ज़िले में विभिन्न जनजातियाँ हैं, तो राज्यपाल, उस ज़िले को कई स्वायत्त क्षेत्रों में विभाजित कर सकता है।
- संरचना: प्रत्येक स्वायत्त जिले में एक जिला परिषद होती है जिसमें 30 सदस्य होते हैं, जिनमें से चार राज्यपाल द्वारा नामित किए जाते हैं और शेष 26 वयस्क मताधिकार के आधार पर चुने जाते हैं।
- कार्यकाल: निर्वाचित सदस्य पाँच साल के कार्यकाल के लिये पद धारण करते हैं (यदि परिषद को इससे पहले भंग नहीं किया जाता है) और मनोनीत सदस्य राज्यपाल के प्रसाद पर्यंत पद पर बने रहते हैं।
- प्रत्येक स्वायत्त क्षेत्र में एक अलग क्षेत्रीय परिषद भी होती है।
- परिषदों की शक्तियां: ज़िला और क्षेत्रीय परिषदें अपने अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों का प्रशासन करती हैं। वे भूमि, वन, नहर के जल, स्थानांतरित कृषि, ग्राम प्रशासन, संपत्ति का उत्तराधिकार, विवाह एवं तलाक, सामाजिक रीति-रिवाजों जैसे कुछ निर्दिष्ट मामलों पर कानून बना सकती हैं, किंतु ऐसे सभी कानूनों पर राज्यपाल की सहमति आवश्यक होती है।
- ग्राम सभाएँ: अपने क्षेत्राधिकार में ज़िला और क्षेत्रीय परिषदें, जनजातियों के मध्य मुकदमों एवं मामलों की सुनवाई के लिये ग्राम परिषदों या अदालतों का गठन कर सकती हैं। ये अदालतें उनकी अपीलों की सुनवाई करती हैं। इन मुकदमों और मामलों पर उच्च न्यायालय का अधिकार क्षेत्र राज्यपाल द्वारा निर्दिष्ट किया जाता है।
प्रीलिम्स लिंक:
- भारतीय संविधान की 5 वीं और 6 वीं अनुसूची के बीच अंतर
- 5 वीं अनुसूची के तहत राज्यपाल की शक्तियां
- 5 वीं के अंतर्गत क्षेत्रों को शामिल करने अथवा बाहर निकालने की शक्ति किसे प्राप्त है?
- अनुसूचित क्षेत्र क्या हैं?
- वन अधिकार अधिनियम- प्रमुख प्रावधान
- जनजातीय सलाहकार परिषद- रचना और कार्य
मेंस लिंक:
भारतीय संविधान की 5 वीं और 6 वीं अनुसूची के मध्य अंतर स्पष्ट कीजिए।
स्रोत: द हिंदू
विषय: सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय।
नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 (CAA)
(Citizenship (Amendment) Act)
संदर्भ:
नागरिकता कानून के अंतर्गत नियमों को निर्धारित करने हेतु सरकार के लिए लोकसभा द्वारा 9 अप्रैल तक तथा राज्य सभा द्वारा 9 जुलाई तक का समय दिया गया है।
नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 (CAA), 12 दिसंबर, 2019 को अधिसूचित किया गया था और इसे 10 जनवरी, 2020 से लागू किया गया।
(नोट: किसी भी नए अथवा संशोधित कानून को लागू करने के लिए ‘नियम’ निर्धारित करना अनिवार्य होता है, और इनको प्रायः क़ानून के अधिनियमित होने की तिथि के छह महीने के भीतर तैयार किया जाता है।)
पृष्ठभूमि:
नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 के माध्यम से नागरिकता अधिनियम, 1955 में संशोधन किया गया है।
- नागरिकता अधिनियम, 1955 में नागरिकता प्राप्त करने हेतु विभिन्न तरीके निर्धारित किये गए हैं।
- इसके तहत, भारत में जन्म के आधार पर, वंशानुगत, पंजीकरण, प्राकृतिक एवं क्षेत्र समाविष्ट करने के आधार पर नागरिकता हासिल करने का प्रावधान किया गया है।
नागरिकता (संशोधन) अधिनियम (CAA) के बारे में:
CAA का उद्देश्य पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के- हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी और ईसाई – उत्पीड़ित अल्पसंख्यकों को भारतीय नागरिकता प्रदान करना है।
- इन समुदायों के, अपने संबंधित देशों में धार्मिक आधार पर उत्पीड़न का सामना करने वाले जो व्यक्ति 31 दिसंबर 2014 तक भारत में पलायन कर चुके थे, उन्हें अवैध अप्रवासी नहीं माना जाएगा बल्कि उन्हें भारतीय नागरिकता दी जाएगी।
- अधिनियम के एक अन्य प्रावधान के अनुसार, केंद्र सरकार कुछ आधारों पर ‘ओवरसीज़ सिटीज़न ऑफ इंडिया’ (OCI) के पंजीकरण को भी रद्द कर सकती है।
अपवाद:
- संविधान की छठी अनुसूची में शामिल होने के कारण यह अधिनियम त्रिपुरा, मिजोरम, असम और मेघालय के आदिवासी क्षेत्रों पर लागू नहीं होता है।
- इसके अलावा बंगाल ईस्टर्न फ्रंटियर रेगुलेशन, 1873 के तहत अधिसूचित ‘इनर लिमिट’ के अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों भी इस अधिनियम के दायरे से बाहर होंगे।
इस कानून से संबंधित मुद्दे:
- यह क़ानून संविधान के मूल सिद्धांतों का उल्लंघन करता है। इसके अंतर्गत धर्म के आधार पर अवैध प्रवासियों की पहचान की गयी है।
- यह क़ानून स्थानीय समुदायों के लिए एक जनसांख्यिकीय खतरा समझा जा रहा है।
- इसमें, धर्म के आधार पर अवैध प्रवासियों को नागरिकता का पात्र निर्धारित किया गया है। साथ ही इससे, समानता के अधिकार की गारंटी प्रदान करने वाले संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन होगा।
- यह किसी क्षेत्र में बसने वाले अवैध प्रवासियों की नागरिकता को प्राकृतिक बनाने का प्रयास करता है।
- इसके तहत, किसी भी कानून के उल्लंघन करने पर ‘ओसीआई’ पंजीकरण को रद्द करने की अनुमति गी गई है। यह एक व्यापक आधार है जिसमें मामूली अपराधों सहित कई प्रकार के उल्लंघन शामिल हो सकते हैं।
प्रीलिम्स लिंक:
- नागरिकता (संशोधन) अधिनियम (CAA) के बारे में
- प्रमुख विशेषताएं
- अधिनियम में किन धर्मों को शामिल किया गया है?
- अधिनियम कवर किए गए देश?
- अपवाद
मेंस लिंक:
नागरिकता (संशोधन) अधिनियम के कार्यान्वयन से संबंधित मुद्दों पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: द हिंदू
विषय: सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय।
जीएसटी क्षतिपूर्ति
(GST compensation)
संदर्भ:
केंद्र सरकार, वर्ष के दौरान किये गए क्षतिपूर्ति उपकर संग्रह से, इस वर्ष राज्यों को जीएसटी क्षतिपूर्ति के रूप में 30,000 करोड़ रुपए की राशि जारी करेगी।
वर्ष 2020-21 के लिए राज्यों की बकाया क्षतिपूर्ति राशि लगभग 77,000 करोड़ रुपए से अधिक होने की संभावना है।
GST का नुकसान होने पर केंद्र के लिए राज्यों को भुगतान क्यों करना चाहिए?
जीएसटी क्षतिपूर्ति अधिनियम (GST Compensation Act), 2017 के अनुसार, राज्यों को जीएसटी लागू होने के बाद पहले पांच वर्षो तक, अर्थात वर्ष 2022 तक, होने वाले राजस्व के किसी भी नुकसान की भरपाई, पातक एवं विलासिता वस्तुओं (Sin and Luxury Goods), अर्थात सिगरेट और तंबाकू उत्पादों, पान मसाला, कैफीनयुक्त पेय, कोयला एवं कुछ लक्ज़री यात्री वाहनों आदि पर लगाये गए ‘उपकरों’ की वसूली से की जाएगी।
- हालांकि, आर्थिक मंदी के कारण जीएसटी और उपकर, दोनों के संग्रह में पिछले वर्ष की तुलना में गिरावट आयी है, जिसके परिणामस्वरूप पिछले वर्ष भुगतान किए गए मुआवजे तथा संग्रहीत उपकर के मध्य 40% का अंतर हो गया है।
- COVID-19 के कारण अर्थव्यवस्था को होने वाले नुकसान से राज्यों को इस वर्ष तीन लाख करोड़ के जीएसटी राजस्व अंतर का सामना करना पड़ सकता है। इसे वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अप्रत्याशित ‘दैवीय घटना’ (Act of God) करार दिया गया है।
क्षतिपूर्ति उपकर क्या है?
क्षतिपूर्ति उपकर (Compensation Cess) के विधि-विधान जीएसटी (राज्यों को मुआवजा) संशोधन विधेयक, 2017 द्वारा निर्दिष्ट किए गए थे।
- इस अधिनियम में माना गया है कि सभी करों को जीएसटी में समाहित करने के बाद से प्रत्येक राज्य के जीएसटी राजस्व में, वित्तीय वर्ष 2015-16 में एकत्र की गई राशि से, प्रति वर्ष 14% की दर से वृद्धि होगी।
- राज्य द्वारा किसी भी वर्ष में इस राशि से कम कर-संग्रह किये जाने पर होने वाली हानि की भरपाई की जाएगी। राज्यों को इस राशि का भुगतान प्रति दो महीने में अनंतिम खातों के आधार पर किया जाएगा, तथा प्रति वर्ष राज्य के खातों के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक द्वारा ऑडिट किए जाने के पश्चात समायोजित किया जाएगा।
- यह योजना पाँच वर्षों, अर्थात् जून 2022 तक के लिए वैध है।
क्षतिपूर्ति उपकर निधि:
राज्यों को राजस्व हानि होने पर क्षतिपूर्ति प्रदान करने हेतु ‘क्षतिपूर्ति उपकर कोष’ (Compensation cess fund) का गठन किया गया है। कुछ वस्तुओं पर अतिरिक्त उपकर लगाया जाएगा और इस उपकर का उपयोग राज्यों को मुआवजे का भुगतान करने के लिए किया जाएगा।
- इन वस्तुओं में पान मसाला, सिगरेट और तम्बाकू उत्पाद, वायवीय पानी, कैफीनयुक्त पेय पदार्थ, कोयला और कुछ यात्री मोटर वाहन सम्मिलित हैं।
- जीएसटी अधिनियम में कहा गया है कि संग्रीह्त उपकर तथा जीएसटी परिषद द्वारा निर्धारित की गयी इस तरह की अन्य राशि को क्षतिपूर्ति उपकर निधि में जमा की जायेगी।
प्रीलिम्स लिंक:
- जीएसटी क्या है?
- SGST और IGST क्या हैं?
- संबंधित संवैधानिक प्रावधान।
- GST के दायरे से बाहर वस्तुएं।
- उपकर क्या होता है?
- अधिभार (Surcharge) क्या होता है?
- क्षतिपूर्ति उपकर निधि क्या होती है?
स्रोत: द हिंदू
विषय: स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय।
‘दुर्लभ बीमारियों’ से संबंधित स्वास्थ्य नीति
(Health policy on rare diseases)
संदर्भ:
हाल ही में, दिल्ली उच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार से 31 मार्च तक ‘दुर्लभ रोगों’ के लिए ‘राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति’ को अंतिम रूप देने और अदालत को सूचित करने के लिए कहा है।
‘दुर्लभ बीमारियाँ’ क्या हैं?
‘दुर्लभ बीमारी’ (rare diseases) को अनाथ बीमारी या ‘ऑर्फ़न डिजीज’ (orphan disease) के रूप में भी जाना जाता है। ये आबादी के छोटे प्रतिशत को प्रभावित करने वाली बीमारियाँ होती है, अर्थात प्रायः कम लोगों में पायी जाती है।
अधिकांश दुर्लभ रोग आनुवंशिक होते हैं। किसी व्यक्ति में, ये रोग, कभी-कभी पूरे जीवन भर मौजूद रहते हैं, भले ही इसके लक्षण तत्काल दिखाई न देते हों।
भारत में प्रायः पाई जाने वाली सबसे आम दुर्लभ बीमारियाँ:
हीमोफिलिया, थैलेसीमिया, सिकल-सेल एनीमिया और बच्चों में प्राथमिक रोगप्रतिरोधक क्षमता की कमी, ऑटो-इम्यून डिजीज, लाइसोसोमल स्टोरेज डिसऑर्डर जैसे पॉम्पी डिजीज, हिर्स्चस्प्रुंग डिसीज, गौचर डिजीज, सिस्टिक फाइब्रोसिस, हेमांगीओमास तथा कुछ प्रकार के पेशीय विकृति रोग, भारत में प्रायः पाई जाने वाली सबसे आम दुर्लभ बीमारियों के उदाहरण है।
संबंधित चिंताएँ और चुनौतियाँ:
- इन बीमारियों के व्यापक रोग-विज्ञान संबंधी आंकड़ों को इकट्ठा करना कथन होता है, जिससे ये बीमारियाँ स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों के समक्ष महत्वपूर्ण चुनौती खड़ी करती है। इसके परिणामस्वरूप बीमारी की व्यापकता निर्धारित करने, उपचार लागत का अनुमान लगाने और अन्य परेशानियों के साथ-साथ, समय पर और सही निदान करने में बाधा उत्पन्न होती है।
- दुर्लभ बीमारियों से संबंधित के कई मामले गंभीर, पुराने और प्राणघातक भी हो सकते हैं। इन बीमारियों से ग्रसित कुछ मामलों में, प्रभावित व्यक्ति, जिनमें अधिकाँशतः बच्चे होते हैं, किसी तरह के विकलांगता का शिकार भी हो सकते हैं।
- वर्ष 2017 की एक रिपोर्ट के अनुसार, दुर्लभ बीमारियों से संबधित दर्ज किये गए नए मामलों में 50 प्रतिशत से अधिक बच्चे थे, और ये बीमारियाँ, एक साल से कम आयु के मरीजों में 35 प्रतिशत, एक से पांच साल आयु के मरीजों में 10 प्रतिशत तथा पांच से पंद्रह वर्ष की आयु के मरीजों में 12 प्रतिशत मौतों के लिए जिम्मेदार थीं।
भारत द्वारा इस दिशा में किये जा रहे प्रयास:
केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने 450 ‘दुर्लभ बीमारियों‘ के इलाज हेतु एक राष्ट्रीय नीति जारी की है।
इस नीति का उद्देश्य, दुर्लभ बीमारियों की एक रजिस्ट्री शुरू करना है, जिसे भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) द्वारा तैयार किया जाएगा।
इस नीति के तहत, दुर्लभ बीमारियों की तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है:
- एक बार के उपचार की जरूरत वाली बीमारियाँ,
- दीर्घकालिक किंतु सस्ते उपचार की आवश्यकता वाली बीमारियाँ तथा
- महंगे एवं दीर्घकालिक उपचार की आवश्यकता वाली बीमारियाँ।
पहली श्रेणी के कुछ रोगों, ऑस्टियोपेट्रोसिस (osteopetrosis) तथा न्यून-प्रतिरक्षा विकार (immune deficiency disorders) आदि को शामिल किया गया है।
वित्तीय सहायता: नीति के अनुसार, एक बार के उपचार की जरूरत वाली दुर्लभ बीमारियों से पीड़ित रोगियों को, राष्ट्रीय आरोग्य निधि योजना के तहत, 15 लाख रुपये की सहायता प्रदान की जाएगी। यह सुविधा केवल प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना के लाभार्थियों तक सीमित रहेगी।
राजकीय हस्तक्षेप का औचित्य:
- प्रत्येक नागरिक को सस्ती, सुलभ और विश्वसनीय स्वास्थ्य देखभाल सेवाएं प्रदान करना राज्य की जिम्मेदारी है।
- संविधान के अनुच्छेद 21, 38 और 47 में स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं के महत्व का उल्लेख किया गया है और इस प्रकार, राज्य अनुच्छेदों के गैर न्यायोचित होने का हवाला देकर इस जिम्मेदारी से पलायन नहीं कर सकते है।
- यद्यपि, दवा कंपनियों को दुर्लभ बीमारियों के इलाज हेतु दवाओं को विकसित करने के लिए प्रोत्साहन दिया जाता है, फिर भी फार्मास्युटिकल कंपनियां अपना आर्थिक हित देखती हैं और ऑर्फ़न ड्रग्स की मांग कम होने के कारण, अपनी मनमर्जी के हिसाब से इन दवाओं की कीमत तय करती हैं। इसलिए इन दवाओं की अत्यधिक कीमतों को प्रतिबंधित करने हेतु सरकार द्वारा विनियमन किया जाना चाहिए।
प्रीलिम्स लिंक:
- दुर्लभ बीमारियों संबंधी भारत की नीति
- किन रोगों को दुर्लभ रोगों के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है?
मेंस लिंक:
‘दुर्लभ रोग’ क्या हैं? ये किस प्रकार फैलते हैं और इनके प्रसार को कैसे रोका जा सकता है?
स्रोत: द हिंदू
विषय: भारत एवं उसके पड़ोसी- संबंध।
सिंधु जल आयोग की बैठक
संदर्भ:
ढाई साल से अधिक समय-अंतराल के बाद भारतीय और पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडलों द्वारा ‘स्थायी सिंधु आयोग’ (Permanent Indus Commission) की 116 वीं बैठक शुरू की गई है।
यह बैठक, दोनों पड़ोसी देशों के मध्य द्विपक्षीय संबंधों के सामान्य किये जाने हेतु व्यापक प्रक्रिया के एक भाग के रूप में देखी जा रही है।
सिंधु जल संधि के बारे में:
- यह एक जल-वितरण समझौता है, जिस पर वर्ष 1960 में, विश्व बैंक की मध्यस्था से भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू तथा पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान ने हस्ताक्षर किये थे।
- सिंधु जल समझौते (Indus Water Treaty- IWT) के अनुसार, तीन पूर्वी नदियों- रावी, ब्यास और सतलज- के पानी पर भारत को पूरा नियंत्रण प्रदान किया गया।
- पाकिस्तान,पश्चिमी नदियों- सिंधु, चिनाब और झेलम को नियंत्रित करता है।
- संधि के अनुसार, पाकिस्तान और भारत के जल आयुक्तों को वर्ष में दो बार मिलने तथा परियोजना स्थलों और नदी पर किये जा रहे महत्वपूर्ण कार्यों के तकनीकी पहलुओं के बारे में सूचित करना आवश्यक है।
- समझौते के तहत दोनों पक्ष, जल प्रवाह तथा उपयोग किए जा रहे पानी की मात्रा का विवरण साझा करते हैं।
स्थायी सिंधु आयोग:
- स्थायी सिंधु आयोग (Permanent Indus Commission), भारत और पाकिस्तान के अधिकारियों की सदस्यता वाला एक द्विपक्षीय आयोग है, इसका गठन सिंधु जल संधि, 1960 के लक्ष्यों को कार्यान्वित करने तथा इनका प्रबंधन करने के लिए किया गया था।
- ‘सिंधु जल समझौते’ के अनुसार, इस आयोग की, वर्ष में कम से कम एक बार, बारी-बारी से भारत और पाकिस्तान में नियमित रूप से बैठक आयोजित की जानी चाहिए।
आयोग के कार्य:
- नदियों के जल संबंधी किसी भी समस्या का अध्ययन करना तथा दोनो सरकारों को रिपोर्ट करना।
- जल बंटवारे को लेकर उत्पन्न विवादों को हल करना।
- परियोजना स्थलों और नदी के महत्वपूर्ण सिरों पर होने वाले कार्यों के लिए तकनीकी निरीक्षण की व्यवस्था करना।
- प्रत्येक पाँच वर्षों में एक बार, तथ्यों की जांच करने के लिए नदियों के निरीक्षण हेतु एक सामान्य दौरा करना।
- समझौते के प्रावधानों के कार्यान्वयन हेतु आवश्यक कदम उठाना।
प्रीलिम्स लिंक:
- सिंधु और उसकी सहायक नदियाँ।
- सिंधु जल समझौते पर हस्ताक्षर कब किए गए थे?
- समझौते को किसने भंग किया?
- समझौते की मुख्य विशेषताएं?
- स्थायी सिंधु आयोग के कार्य।
- इससे संबंधित चर्चित पनबिजली परियोजनाएं।
मेंस लिंक:
सिंधु जल समझौते के महत्व पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: द हिंदू
विषय: भारत के हितों पर विकसित तथा विकासशील देशों की नीतियों तथा राजनीति का प्रभाव; प्रवासी भारतीय।
अमेरिकी शांति योजना
(U.S. peace plan)
संदर्भ:
अफगान राष्ट्रपति अशरफ गनी द्वारा ‘अमेरिकी शांति प्रस्ताव’ के प्रत्युत्तर में एक शांति योजना तैयार की गयी है, जिसके तहत उन्होंने आगामी छह माह के भीतर नए राष्ट्रपति का चुनाव करने का प्रस्ताव दिया है। ज्ञातव्य है कि, राष्ट्रपति अशरफ गनी ने कुछ दिन पूर्व अमेरिका द्वारा पेश किये गए एक शांति प्रस्ताव को नकार दिया था।
राष्ट्रपति अशरफ गनी, अगले महीने तुर्की में होने वाली एक सभा में अपने प्रस्ताव का खुलासा करेंगे। यह ‘अमेरिकी प्रस्ताव’ को अस्वीकार करने का संकेत भी होगा, जिसमे उनकी निर्वाचित सरकार को अंतरिम प्रशासन द्वारा प्रतिस्थापित करने का प्रस्ताव किया गया था।
अमेरिकी- तालिबान शांति समझौता:
- अमेरिकी सरकार और तालिबान के बीच 29 फरवरी, 2020 को एक शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे।
- इस समझौते में, अमेरिका तथा ‘उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन’ (NATO) के सैनिकों को अफगानिस्तान से वापस बुलाने की मांग की गई थी।
अफगानिस्तान में शांति का भारत के लिए महत्व:
भारत द्वारा अफगानिस्तान में स्थायी शांति और स्थिरता स्थापित करने हेतु नए सिरे से प्रयास करने तथा बाहरी रूप से प्रायोजित आतंकवाद और हिंसा को समाप्त करने का आह्वान किया गया है।
- आर्थिक रूप से, यह भारत के लिए, तेल और खनिज संपन्न मध्य एशियाई गणराज्यों का प्रवेश द्वार है।
- पिछले पांच वर्षों में अफगानिस्तान, भारतीय विदेशी सहायता प्राप्त करने वाला दूसरा सबसे बड़ा देश बन गया है।
समझौते के कुछ महत्वपूर्ण सिद्धांतों में:
समझौते पर हस्ताक्षर होने के 14 महीने के भीतर नाटो या गठबंधन सेना की संख्या में कमी करने तथा अमेरिकी सैनिकों की वापसी को शामिल किया गया है।
तालिबान द्वारा की गई आतंकवाद-रोधी प्रमुख प्रतिबद्धता:
तालिबान अपने किसी भी सदस्य, अल-क़ायदा सहित किसी अन्य व्यक्ति या समूह को, अफ़गानिस्तान की धरती का उपयोग, संयुक्त राज्य अमेरिका और उसके सहयोगियों की सुरक्षा को खतरे में डालने के लिए नहीं करने देगा।
प्रीलिम्स लिंक:
- समझौते के बारे में
- नाटो क्या है?
मेंस लिंक:
अमेरिकी- तालिबान शांति समझौता के महत्व पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: द हिंदू
विषय: महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थान, संस्थाएँ और मंच- उनकी संरचना, अधिदेश।
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (UNHRC)
(UN Human Rights Council)
संदर्भ:
हाल ही में, भारत ने, जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद की बैठक में श्रीलंका के मानवाधिकार रिकॉर्ड पर होने वाले महत्वपूर्ण मतदान में भाग नहीं लिया।
हालाँकि, 47 सदस्यीय मानवाधिकार परिषद में 22 सदस्य देशों द्वारा ‘श्रीलंका में सुलह, जवाबदेही और मानवाधिकारों को प्रोत्साहन देना’ शीर्षक वाले ‘संकल्प’ के पक्ष में मतदान करने के बाद इसे पारित कर दिया गया।
‘संकल्प’ के बारे में:
- यह संकल्प, संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार प्रमुख ‘मिशेल बैचलेट’ (Michelle Bachelet) को वर्ष 2009 में तमिल टाइगर विद्रोहियों की पराजय के साथ समाप्त हुए श्रीलंका के गृहयुद्ध से संबंधित ‘अपराधों’ के साक्ष्य इकट्ठा करने और उन्हें संरक्षित करने का आदेश देता है।
- संकल्प में यह दावा भी किया गया है, कि राजपक्षे प्रशासन के दौरान श्रीलंका में मानवाधिकार स्थिति ख़राब हुई है तथा यह भी कहा गया है, कि मानवाधिकार रक्षकों तथा जातीय एवं धार्मिक अल्पसंख्यकों को समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।
UNHRC के बारे में:
‘संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद’ (UNHRC) का पुनर्गठन वर्ष 2006 में इसकी पूर्ववर्ती संस्था, संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग (UN Commission on Human Rights) के प्रति ‘विश्वसनीयता के अभाव’ को दूर करने में सहायता करने हेतु किया गया था।
इसका मुख्यालय जिनेवा, स्विट्जरलैंड में स्थित है।
संरचना:
- वर्तमान में, ‘संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद’ (UNHRC) में 47 सदस्य हैं, तथा समस्त विश्व के भौगोलिक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने हेतु सीटों का आवंटन प्रतिवर्ष निर्वाचन के आधार पर किया जाता है।
- प्रत्येक सदस्य तीन वर्षों के कार्यकाल के लिए निर्वाचित होता है।
- किसी देश को एक सीट पर लगातार अधिकतम दो कार्यकाल की अनुमति होती है।
UNHRC के कार्य:
- परिषद द्वारा संयुक्त राष्ट्र के सभी 193 सदस्य देशों की ‘सार्वभौमिक आवधिक समीक्षा’ (Universal Periodic Review- UPR) के माध्यम से मानव अधिकार संबंधी विषयों पर गैर-बाध्यकारी प्रस्ताव पारित करता है।
- यह विशेष देशों में मानवाधिकार उल्लंघनों हेतु विशेषज्ञ जांच की देखरेख करता है।
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के समक्ष चुनौतियाँ तथा इसमें सुधारों की आवश्यकता:
- ‘संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के सदस्य-देशों जैसे सऊदी अरब, चीन और रूस के मानवाधिकार रिकॉर्ड इसके उद्देश्य और मिशन के अनुरूप नहीं हैं, जिसके कारण आलोचकों द्वारा परिषद की प्रासंगिकता पर सवाल उठाये जाते है।
- UNHRC में कई पश्चिमी देशों द्वारा निरंतर भागीदारी के बावजूद भी ये मानव अधिकारों संबंधी समझ पर गलतफहमी बनाये रखते हैं।
- UNHRC की कार्यवाहियों के संदर्भ में गैर-अनुपालन (Non-compliance) एक गंभीर मुद्दा रहा है।
- अमेरिका जैसे शक्तिशाली राष्ट्रों की गैर-भागीदारी।
प्रीलिम्स लिंक:
- UNHRC के बारे में
- संरचना
- कार्य
- ‘सार्वभौमिक आवधिक समीक्षा’ (UPR) क्या है?
- UNHRC का मुख्यालय
- हाल ही में UNHRC की सदस्यता त्यागने वाले देश
स्रोत: द हिंदू
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य
शहीदी दिवस
- 23 मार्च 1931 को, स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह, शिवराम राजगुरु और सुखदेव थापर के लिए उनकी क्रांतिकारी गतिविधियों के अपराध में ब्रिटिश सरकार ने फांसी पर लटका दिया था।
- इस दिन को भारत में शहीदी दिवस या शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन को ‘सर्वोदय दिवस‘ के रूप में भी जाना जाता है।