विषय – सूची
सामान्य अध्ययन-II
1. सातवीं अनुसूची
2. न्यायाधीशों का सुनवाई से इनकार
3. ब्रिटेन की वैक्सीन: वैश्विक रूप क्रांतिकारी परिवर्तन करने में सक्षम
सामान्य अध्ययन-III
1. मुखाकृति पहचान तकनीक
2. इथेनॉल ऊत्पादन
3. सशस्त्र बल (विशेष अधिकार) अधिनियम (AFSPA)
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य
1. डिब्रू-सैखोवा राष्ट्रीय उद्यान
2. एस्टोनिया, पैराग्वे और डोमिनिकन गणराज्य में 3 भारतीय मिशन
3. आकाश मिसाइल
सामान्य अध्ययन- II
विषय: भारतीय संविधान- ऐतिहासिक आधार, विकास, विशेषताएँ, संशोधन, महत्त्वपूर्ण प्रावधान और बुनियादी संरचना।
सातवीं अनुसूची
(Seventh Schedule)
संदर्भ:
हाल ही में, भारतीय उद्योग परिसंघ (Confederation of Indian Industry- CII) द्वारा पर्यटन को समवर्ती सूची में शामिल करने की मांग की गयी है।
CII के अनुसार, इससे पर्यटन क्षेत्र को केंद्र और राज्यों द्वारा प्रभावी ढंग से विनियमित किया जा सकेगा और साथ ही पर्यटन के विकास हेतु केंद्र और राज्य नीतियां बनाने में सक्षम होंगे।
संविधान की सातवीं अनुसूची
संविधान के अनुच्छेद 246 के तहत सातवीं अनुसूची संघ और राज्यों के बीच शक्तियों के विभाजन से संबंधित है।
इसमें तीन सूचियाँ सम्मिलित हैं- संघ सूची, राज्य सूची और समवर्ती सूची।
- इसमें, संघीय सूची के तहत दिये गये विषयों पर केन्द्र सरकार को कानून बनाने का अधिकार है, तथा राज्य सूची में वर्णित विषयों पर राज्य सरकारों को कानून बनाने के अधिकार प्रदान किया गया है।
- दूसरी ओर समवर्ती सूची के अंतर्गत आने वाले विषयों पर केन्द्र और राज्य दोनों को कानून बनाने का अधिकार है। हालाँकि किसी विवाद की स्थिति में केन्द्र द्वारा निर्मित कानून ही मान्य होंगे।
प्रीलिम्स लिंक:
- सातवीं अनुसूची क्या है?
- सातवीं अनुसूची के तहत विषय
- अवशिष्ट शक्तियां
- केंद्रीय कानून और राज्य कानून के मध्य संघर्ष की स्थिति में परिणाम?
मेंस लिंक:
भारतीय संविधान की सातवीं अनुसूची की समीक्षा की आवश्यकता पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: द हिंदू
विषय: विभिन्न घटकों के बीच शक्तियों का पृथक्करण, विवाद निवारण तंत्र तथा संस्थान।
न्यायाधीशों का सुनवाई से इनकार
(Recusal of Judges)
संदर्भ:
हाल ही में, आंध्र उच्च न्यायालय द्वारा ‘आंध्रप्रदेश निर्माण मिशन’ (Mission Build A.P) के तहत गुंटूर और विशाखापत्तनम जिले में सरकारी भूमि की प्रस्तावित बिक्री के खिलाफ दायर याचिकाओं की सुनवाई के लिए न्यायाधीश को सुनवाई से अलग करने संबंधी याचिका को खारिज कर दिया गया है।
‘न्यायिक निरर्हता’ अथवा ‘सुनवाई से इंकार’ का तात्पर्य:
किसी पीठासीन न्यायायिक अधिकारी अथवा प्रशासनिक अधिकारी द्वारा हितों के टकराव के कारण किसी न्यायिक सुनवाई अथवा आधिकारिक कार्रवाई में भागीदारी से इंकार करने को न्यायिक निरर्हता (Judicial disqualification), ‘सुनवाई से इंकार’ करना अथवा ‘रिक्युजल’ (Recusal) कहा जाता है।
‘सुनवाई से इंकार’ करने हेतु सामान्य आधार:
किसी न्यायाधीश अथवा अन्य निर्णयकर्ता को किसी मामले की सुनवाई से अलग करने हेतु विभिन्न आधारों पर प्रस्ताव पेश किया जाता है।
इन प्रस्तावों में सुनवाई हेतु नियुक्त न्यायाधीश को निम्नलिखित अन्य आधारों पर भी चुनौती दी जाती है:
- किसी तर्कशील निष्पक्ष पर्यवेक्षक को लगता है कि, न्यायाधीश किसी एक पक्षकार के प्रति सद्भाव रखता है, अथवा अन्य पक्षकार के प्रति द्वेषपूर्ण है, अथवा न्यायाधीश किसी के प्रति पक्षपाती हो सकता है।
- न्यायाधीश का मामले में व्यक्तिगत हित है अथवा वह मामले में व्यक्तिगत हित रखने वाले किसी व्यक्ति से संबंध रखता है।
- न्यायाधीश की पृष्ठभूमि अथवा अनुभव, जैसे कि न्यायाधीश के वकील के रूप में किये गए पूर्व कार्य।
- मामले से संबंधित तथ्यों अथवा पक्षकारों से व्यक्तिगत तौर पर परिचय।
- वकीलों या गैर-वकीलों के साथ एक पक्षीय संवाद।
- न्यायाधीशों के अधिनिर्णय, टिप्पणियां अथवा आचरण।
इस संबंध में क़ानून
न्यायाधीशों द्वारा ‘सुनवाई से इंकार’ करने संबंधी कोई निश्चित नियम निर्धारित नहीं हैं।
हालाँकि, सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों द्वारा पद की शपथ लेने के समय, न्याय करने हेतु ‘बिना किसी डर या पक्षपात, लगाव या वैमनस्य के’ अपने कर्तव्यों को निभाने का वादा किया जाता है ।
सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणी
जस्टिस जे चेलमेश्वर ने सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन बनाम भारत संघ (2015) मामले में अपनी राय दी थी कि ’जहां भी किसी न्यायाधीश के आर्थिक हित प्रतीत होते है, वहां पक्षपात संबंधी किसी ‘वास्तविक खतरे’ अथवा ‘तर्कपूर्ण संदेह’ की जांच की आवश्यकता नहीं है।
प्रीलिम्स लिंक:
- न्यायिक निरर्हता के लिए आधार।
- सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को शपथ कौन दिलाता है?
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 127 और 128 किससे संबंधित हैं?
मेंस लिंक:
‘सुनवाई से इंकार’ (Recusal), सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों के लिए नैतिकता की एक चयनात्मक आवश्यकता बन गया है। चर्चा कीजिए।
स्रोत: द हिंदू
विषय: स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय।
ब्रिटेन की वैक्सीन: वैश्विक रूप क्रांतिकारी परिवर्तन करने में सक्षम
संदर्भ:
हाल ही में, ब्रिटेन में ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका (Oxford-AstraZeneca) वैक्सीन के लिए अनुमोदित कर दिया गया है। इससे कोविड-19 के प्रसरण पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ेगा क्योंकि यह अब तक अनुमोदित किये जाने वाले टीकों में सबसे सुलभ टीका है और इसकी उपलब्धता इसी प्रकार बने रहने की संभावना है।
भारत के लिए यह काफी महत्वपूर्ण है, क्योंकि देश में वैक्सीन का वितरण करने के लिए पुणे स्थित सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (SII) ने एस्ट्राजेनेका के साथ अनुबंध किया है।
इस टीके की कार्यविधि
यह नया टीका एक वायरल वेक्टर वैक्सीन (viral vector vaccine) है, जो पहले ही अनुमोदित हो चुके mRNA टीकों की तुलना में एक अलग तरीके से कार्य करता है।
वायरल वेक्टर वैक्सीन, SARS-CoV-2 जीन को DNA के रूप में मानव कोशिकाओं में पहुंचाने के लिए एक अन्य ‘नॉन-रेप्लिकेटिंग वायरस’ (Non-Replicating virus) का प्रयोग करता है, जिससे सुरक्षात्मक प्रतिरक्षा प्रतिक्रियाओं को उत्प्रेरित करने के लिए वायरल प्रोटीन का निर्माण होता है।
टीकों का प्रकार:
निष्क्रिय (Inactivated): इस प्रकार के टीकों को नष्ट किये जा चुके Covid-19 वायरस के कणों का उपयोग करके निर्मित किया जाता है। इन कणों की एक विशेष डोज़ रोगी को दी जाती है, इससे शरीर में मृत वायरस से लड़ने के लिए शरीर में एंटीबॉडी का निर्माण होता है और प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होती है।
नॉन-रेप्लिकेटिंग वायरल वेक्टर वैक्सीन’: इसमें, Covid-19 स्पाइक प्रोटीन को कोशिकाओं में संचारित करने के लिए किसी अन्य वायरस के आनुवंशिक रूप से संशोधित प्रकार का उपयोग किया जाता है।
प्रोटीन सबयूनिट (Protein subunit): इस वैक्सीन में एक लक्षित तरीके से प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने के लिए वायरस के एक भाग का उपयोग किया जाता है। इस प्रक्रिया में वायरस के ‘स्पाइक प्रोटीन’ वाले भाग को लक्षित किया जाता है।
आरएनए (RNA): इस प्रकार की वैक्सीन में संदेशवाहक RNA (mRNA) अणुओं का उपयोग करते हैं, यह कोशिकाओं के विशिष्ट प्रोटीन का निर्माण करने के निर्देश देते है। कोरोनावायरस मामले में mRNA, को ‘स्पाइक प्रोटीन’ निर्मित करने का निर्देश देने के लिए कूटबद्ध (coded) किया जाता है।
डीएनए (DNA): ये टीके आनुवंशिक रूप से संशोधित डीएनए अणुओं का उपयोग करते हैं। इन संशोधित डीएनए अणुओं को प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने के लिए दोबारा एंटीजन से कूटबद्ध किया जाता है।
प्रीलिम्स लिंक:
- SARS-CoV-2 शरीर में किस प्रकार फैलता है?
- T- कोशिकाएँ क्या होती हैं?
- वैक्सीन के प्रकार।
- ChAdOx1 Covid-19 वैक्सीन किस प्रकार निर्मित की गयी है?
- वैक्सीन किस प्रकार कार्य करती हैं?
स्रोत: द हिंदू
सामान्य अध्ययन- III
विषय: सूचना प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष, कंप्यूटर, रोबोटिक्स, नैनो-टैक्नोलॉजी, बायो-टैक्नोलॉजी और बौद्धिक संपदा अधिकारों से संबंधित विषयों के संबंध में जागरुकता।
मुखाकृति पहचान तकनीक
(Facial recognition technology)
संदर्भ:
यद्यपि, हाल के दिनों में कई सरकारी विभागों द्वारा मुखाकृति पहचान करने वाली (Facial recognition tracking– FRT) प्रणाली का उपयोग शुरू किया गया है, किंतु इस संभावित रूप से आक्रामक तकनीक तकनीक के उपयोग को विनियमित करने के संबंध में कोई विशेष कानून या दिशानिर्देश तैयार नहीं किये गए हैं।
पृष्ठभूमि:
- वर्तमान में भारत की विभिन्न केंद्रीय और राज्य सरकारों की एजेंसियों द्वारा निगरानी करने, सुरक्षा अथवा प्रमाणीकरण के लिए 16 भिन्न फेशियल रिकॉग्निशन ट्रैकिंग (FRT) प्रणालियों का उपयोग किया जा रहा है।
- विभिन्न सरकारी विभागों द्वारा अन्य 17 FRT प्रणालियां स्थापित किए जाने की प्रक्रिया में हैं।
संबंधित चिंताएँ
- विशिष्ट कानूनों या दिशानिर्देशों की अनुपस्थिति, निजता तथा वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता संबंधी मूल अधिकारों के लिए एक बड़ा खतरा है। यह उच्चतम न्यायालय द्वारा ‘न्यायमूर्ति के.एस. पुट्टस्वामी बनाम भारत संघ’ मामले में दिए गए निजता संबंधी ऐतिहासिक फैसले में निर्धारित मानदंडो पर खरा नहीं उतरता है।
- कई संस्थानों द्वारा चेहरे की पहचान प्रणाली / फेशियल रिकॉग्निशन सिस्टम (FRS) की शुरू करने पहले ‘निजता प्रभाव मूल्यांकन’ (Privacy Impact Assessment) नहीं किया गया है।
- कार्यात्मक विसर्पण (Function creep): जब किसी व्यक्ति द्वारा मूल निर्दिष्ट उद्देश्य के अतिरिक्त जानकारी का उपयोग किया जाता है, तो इसे कार्यात्मक विसर्पण (Function creep) कहा जाता है। जैसे कि, पुलिस ने दिल्ली उच्च न्यायालय से लापता बच्चों को ट्रैक करने के लिए फेशियल रिकॉग्निशन सिस्टम (FRS) का उपयोग करने की अनुमति ली थी, किंतु पुलिस इसका उपयोग सुरक्षा और निगरानी और जांच करने के लिए कर रही है ।
- इससे एक अत्यधिक-पुलिसिंग जैसी समस्या भी उत्पन्न हो सकती है, जैसे कि कुछ अल्पसंख्यक समुदायों की बिना किसी कानूनी प्रावधान के अथवा बिना किसी ज़िम्मेदारी के निगरानी की जाती है। इसके अलावा, ‘सामूहिक निगरानी’ के रूप में एक और समस्या उत्पन्न हो सकती है, जिसमें विरोध प्रदर्शनों के दौरान पुलिस द्वारा FRT प्रणाली का उपयोग किया जाता है।
- सामूहिक निगरानी (Mass surveillance): यदि कोई व्यक्ति सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करने जाता है, और पुलिस उस व्यक्ति की पहचान करने में सक्षम होती है और व्यक्ति को इसके दुष्परिणाम भुगतने पद सकते हैं।
- फेशियल रिकॉग्निशन सिस्टम (FRS) को वर्ष 2009 में केंद्रीय मंत्रिमडल द्वारा जारी एक नोट के आधार पर लागू किया जाता है। लेकिन कैबिनेट नोट का कोई वैधानिक महत्व नहीं होता है, यह मात्र एक प्रक्रियात्मक नोट होता है।
‘मुखाकृति पहचान’ (Facial recognition) क्या है?
- फेशियल रिकॉग्निशन एक बायोमेट्रिक तकनीक है, जिसमे किसी व्यक्ति की पहचान करने और उसे भीड़ में चिह्नित करने के लिए चेहरे की विशिष्टताओं का उपयोग किया जाता है।
- स्वचालित ‘मुखाकृति पहचान’ प्रणाली (Automated Facial Recognition System- AFRS), व्यक्तियों के चेहरों की छवियों और वीडियो के व्यापक डेटाबेस के आधार पर कार्य करती है। किसी अज्ञात व्यक्ति की एक नई छवि – जिसे सामन्यतः किसी सीसीटीवी फुटेज से प्राप्त किया जाता है – की तुलना मौजूदा डेटाबेस में उपलब्ध छवियों से करके उस व्यक्ति की पहचान की जाती है।
- कृत्रिम बुद्धिमत्ता तकनीक द्वारा आकृति-खोज और मिलान के लिए उपयोग की जाने वाली को ‘तंत्रिकीय नेटवर्क” (Neural Networks) कहा जाता है।
फेशियल रिकॉग्निशन के लाभ:
- अपराधियों की पहचान और सत्यापन परिणामों में सुधार।
- भीड़ के बीच किसी व्यक्ति को चिह्नित करने में आसानी।
- पुलिस विभाग की अपराध जांच क्षमताओं में वृद्धि।
- जरूरत पड़ने पर नागरिकों के सत्यापन में सहायक है।
समय की मांग:
पुट्टस्वामी फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया है, कि सार्वजनिक स्थानों पर भी निजता एक मौलिक अधिकार है। और अगर इन अधिकारों का उल्लंघन करने की आवश्यकता होती है, तो सरकार को इस तरह की कार्रवाई के पीछे उचित एवं विधिसम्मत कारणों को स्पष्ट करना होगा।
प्रीलिम्स लिंक:
- ‘मुखाकृति पहचान तकनीक’ (FRT) क्या है?
- यह किस प्रकार कार्य करती है?
- पुट्टस्वामी निर्णय किससे संबंधित है?
मेंस लिंक:
‘मुखाकृति पहचान तकनीक’ (FRT)- उपयोग एवं चिंताएं।
स्रोत: द हिंदू
विषय: सूचना प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष, कंप्यूटर, रोबोटिक्स, नैनो-टैक्नोलॉजी, बायो-टैक्नोलॉजी और बौद्धिक संपदा अधिकारों से संबंधित विषयों के संबंध में जागरुकता।
इथेनॉल उत्पादन
संदर्भ:
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने देश में इथेनॉल आसवन क्षमता को बढ़ाने के लिए संशोधित योजना को मंजूरी दी है, इसके तहत शीरा के अलावा अनाज (चावल, गेहूं, जौ, मक्का और सोरघम), गन्ना और चुकंदर जैसी खाद्य वस्तुओं से इथेनॉल का उत्पादन किया जाएगा।
निहितार्थ:
- इस निर्णय से जौ, मक्का, मक्का और चावल जैसे अनाज से इथेनॉल उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा।
- इस योजना से उत्पादन और आसवन क्षमता में 1,000 करोड़ लीटर तक की वृद्धि होगी और वर्ष 2030 तक पेट्रोल में 20% इथेनॉल के मिश्रण लक्ष्य को पूरा करने में मदद मिलेगी।
‘इथेनॉल मिश्रित पेट्रोल’ कार्यक्रम के बारे में:
- इथेनॉल मिश्रित पेट्रोल (Ethanol Blended Petrol– EBP) कार्यक्रम को वर्ष 2003 में प्रायोगिक आधार पर शुरू किया गया था।
- इसका उद्देश्य वैकल्पिक और पर्यावरण के अनुकूल ईंधन के उपयोग को बढ़ावा देना है।
‘इथेनॉल’ क्या होता है?
इथेनॉल एक जैव ईधन है और मकई, गन्ना, जूट, आलू जैसे कृषि उत्पादों के जैवभार से निर्मित उप-उत्पाद (by-product) होता है।
इथेनॉल (Ethanol)
- इथेनॉल का उत्पादन स्टार्च की उच्च मात्रा वाली फसलों, जैसे कि गन्ना, मक्का, गेहूँ आदि से किया जा सकता है।
- भारत में, इथेनॉल का उत्पादन मुख्यतः गन्ना के शीरे से किण्वन प्रक्रिया द्वारा किया जाता है।
- इथेनॉल को विभिन्न सम्मिश्रणों को बनाने के लिए गैसोलीन के साथ मिश्रित किया जा सकता है।
- चूंकि इथेनॉल के अणुओं में ऑक्सीजन पाया जाता है, जिसकी वजह से इंजन, ईंधन को पूर्णतयः दहन करने में सक्षम होता है, परिणामस्वरूप उत्सर्जन और पर्यावरण प्रदूषण कम होता है।
- इथेनॉल का उत्पादन सूर्य की उर्जा प्राप्त करने वाले पादपों से किया जाता है, इसलिए इथेनॉल को नवीकरणीय ईंधन भी माना जाता है।
प्रीलिम्स लिंक:
- इथेनॉल क्या है? इसका उत्पादन किस प्रकार किया जाता है?
- इथेनॉल और शीरे के बीच अंतर?
- ’इथेनॉल सम्मिश्रण कार्यक्रम’ क्या है?
- ‘इथेनॉल सम्मिश्रण’ के लाभ?
मेंस लिंक:
वर्ष 2013 के इथेनॉल मिश्रित पेट्रोल (EBP) कार्यक्रम पर एक टिप्पणी लिखिए।
स्रोत: द हिंदू
विषय: संचार नेटवर्क के माध्यम से आंतरिक सुरक्षा को चुनौती, आंतरिक सुरक्षा चुनौतियों में मीडिया और सामाजिक नेटवर्किंग साइटों की भूमिका, साइबर सुरक्षा की बुनियादी बातें, धन-शोधन और इसे रोकना।
सशस्त्र बल (विशेष अधिकार) अधिनियम (AFSPA)
(Armed Forces (Special Powers) Act)
संदर्भ:
गृह मंत्रालय ने हाल ही में, पूरे नागालैंड राज्य को सशस्त्र बल (विशेष अधिकार) अधिनियम (Armed Forces (Special Powers) Act – AFSPA) के तहत अगले छह महीने के लिए लिए अशांत क्षेत्र घोषित कर दिया है।
गृह मंत्रालय के अनुसार, संपूर्ण नागालैंड राज्य की सीमा के भीतर आने वाला क्षेत्र ऐसी अशांत और खतरनाक स्थिति में है जिससे वहां नागरिक प्रशासन की सहायता के लिए सशस्त्र बलों का प्रयोग करना आवश्यक है।
AFSPA का तात्पर्य
साधारण शब्दों में, सशस्त्र बल (विशेष अधिकार) अधिनियम (AFSPA) के तहत सशस्त्र बलों के लिए ‘अशांत क्षेत्रों’ में सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने की शक्ति प्राप्त होती है।
सशस्त्र बलों को प्राप्त शक्तियां:
- इसके तहत सशस्त्र बलों को किसी क्षेत्र में पाँच या अधिक व्यक्तियों के जमावड़े को प्रतिबंधित करने अधिकार होता है, इसके अलावा, इन्हें किसी व्यक्ति द्वारा कानून का उल्लंघन करने संबंधी शंका होने पर उचित चेतावनी देने के बाद बल प्रयोग करने अथवा गोली चलाने की भी शक्ति प्राप्त होती है।
- यदि उचित संदेह होने पर, सेना किसी व्यक्ति को बिना वारंट के भी गिरफ्तार कर सकती है; बिना वारंट के किसी भी परिसर में प्रवेश और जांच कर सकती है, तथा आग्नेयास्त्र रखने पर प्रतिबंध लगा सकती है।
- गिरफ्तार किए गए या हिरासत में लिए गए किसी भी व्यक्ति को एक रिपोर्ट तथा गिरफ्तारी के कारणों से संबधित विवरण के साथ निकटतम पुलिस स्टेशन के प्रभारी अधिकारी को सौंपाजा सकता है।
‘अशांत क्षेत्र’ और इसे घोषित करने की शक्ति
- अशांत क्षेत्र (disturbed area) को सशस्त्र बल (विशेष अधिकार) अधिनियम (AFSPA) की धारा 3 के तहत अधिसूचना द्वारा घोषित किया जाता है। विभिन्न धार्मिक, नस्लीय, भाषा या क्षेत्रीय समूहों या जातियों या समुदायों के बीच मतभेद या विवाद के कारण किसी क्षेत्र को अशांत घोषित किया जा सकता है।
- केंद्र सरकार, या राज्य के राज्यपाल या केंद्र शासित प्रदेश के प्रशासक राज्य या केंद्रशासित प्रदेश के पूरे या हिस्से को अशांत क्षेत्र घोषित कर सकते हैं।
AFSPA अधिनियम की समीक्षा
19 नवंबर, 2004 को केंद्र सरकार द्वारा उत्तर पूर्वी राज्यों में अधिनियम के प्रावधानों की समीक्षा करने के लिए न्यायमूर्ति बी पी जीवन रेड्डी की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय समिति नियुक्त की गयी थी।
समिति ने अपनी रिपोर्ट वर्ष 2005 में प्रस्तुत की, जिसमें निम्नलिखित सिफारिशें शामिल थीं:
- AFSPA को निरस्त किया जाना चाहिए और विधिविरूद्ध क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम (Unlawful Activities (Prevention) Act), 1967 में उचित प्रावधान सम्मिलित किये जाने चाहिए;
- सशस्त्र बलों और अर्धसैनिक बलों की शक्तियों को स्पष्ट रूप से निर्दिष्ट करने के लिए विधिविरूद्ध क्रियाकलाप अधिनियम को संशोधित किया जाना चाहिए और
- सशस्त्र बलों को तैनात किए जाने वाले प्रत्येक जिले में शिकायत सेल स्थापित किए जाने चाहिए।
लोक व्यवस्था पर दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग की 5 वीं रिपोर्ट में भी AFSPA को निरस्त करने की सिफारिश की गयी है।
स्रोत: द हिंदू
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य
डिब्रू-सैखोवा राष्ट्रीय उद्यान
(Dibru-Saikhowa National Park)
संदर्भ:
असम के मुख्यमंत्री द्वारा डिब्रू-सैखोवा राष्ट्रीय उद्यान में रहने वालों के पुनर्वास हेतु 31 जनवरी की समय सीमा तय की है।
संबंधित प्रकरण
वर्ष 1999 में डिब्रू-सैखोवा वन्यजीव अभयारण्य को एक राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा दिए जाने के बाद से यह मामला लटका हुआ है।
राष्ट्रीय उद्यान के बारे में:
- यह असम में ब्रह्मपुत्र नदी के दक्षिण तट पर अवस्थित है।
- यह उत्तर-पूर्वी भारत का सबसे बड़ा अनूप वन (swamp forest) है।
- यह बर्डलाइफ़ इंटरनेशनल द्वारा अधिसूचित महत्वपूर्ण बर्ड एरिया (IBA) के रूप में चिह्नित है।
- यह दुर्लभ सफेद पंखों वाले जंगली बत्तखों के साथ-साथ जंगली घोड़ों के लिए सबसे प्रसिद्ध है।
- इस उद्यान में अर्ध-सदाबहार वन, पर्णपाती वन, चित्तीदार और दलदली वन और आर्द्र सदाबहार वन पाए जाते हैं।
- मगुरी मोटापुंग (Maguri Motapung) आर्द्रभूमि इस अभ्यारण्य का एक हिस्सा है।
एस्टोनिया, पैराग्वे और डोमिनिकन गणराज्य में 3 भारतीय मिशन
- हाल ही में, केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 2021 में एस्टोनिया, पैराग्वे और डोमिनिकन गणराज्य में 3 भारतीय मिशन खोलने को मंजूरी दी है।
- इन देशों में तीन भारतीय मिशन खोलने से भारत का राजनयिक दायरा बढ़ाने, राजनीतिक संबंधों को गहरा करने, द्विपक्षीय व्यापार, निवेश और आर्थिक जुड़ाव में विकास को सक्षम करने, और भारत के विदेश नीति उद्देश्यों के लिए समर्थन जुटाने में मदद मिलेगी।
(नोट: उपर्युक्त देशों की भौगोलिक अवस्थिति के बारे में एक सामान्य जानकारी जुटाएं)।
आकाश मिसाइल
केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा आकाश मिसाइल प्रणाली के निर्यात को मंजूरी प्रदान की गयी है।
- आकाश, स्वदेशी रूप से विकसित और निर्मित सतह से हवा में मार करने वाली एक मिसाइल है।
- जिसकी मारक क्षमता 25 किलोमीटर तक है।
- इस मिसाइल को 2014 में भारतीय वायु सेना तथा 2015 में भारतीय सेना में शामिल किया गया था।
- यह लगभग 5 मैक की गति से उड़ान भरने में सक्षम है और 30 मीटर से लेकर 18 किलोमीटर की ऊँचाई तक उड़ान भर सकती है।