INSIGHTS करेंट अफेयर्स+ पीआईबी नोट्स [ DAILY CURRENT AFFAIRS + PIB Summary in HINDI ] 9 December

 

विषय – सूची

 सामान्य अध्ययन-I

1. माउंट एवरेस्ट की उंचाई में 3 फीट की वृद्धि

 

सामान्य अध्ययन-II

1. अदालत, अर्थव्यवस्था के लिए हानिकारक कोई भी कदम नहीं उठाएगी: उच्चतम न्यायालय

2. राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण (NCLAT)

3. आंध्र प्रदेश के एलुरु में रहस्यमयी बीमारी

4. पाकिस्तान एवं चीन द्वारा धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन: अमेरिका

 

सामान्य अध्ययन-III

1. ‘मेक इन इंडिया’ नीति का जीवन रक्षक दवाओं की आपूर्ति पर प्रभाव

2. चाइल्ड पोर्न पर कार्रवाई करने हेतु महाराष्ट्र पुलिस द्वारा सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल

 

प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य

1. श्रीलंका में टायर फैक्ट्री हेतु 300 मिलियन डॉलर का चीनी निवेश

2. उत्तरी आयरलैंड प्रोटोकॉल एवं इसकी आवश्यकता

3. जनसंख्या एवं विकास भागीदार (PPD)

 


सामान्य अध्ययन- I


 

विषय: भूकंप, सुनामी, ज्वालामुखीय हलचल, चक्रवात आदि जैसी महत्त्वपूर्ण भू-भौतिकीय घटनाएँ, भौगोलिक विशेषताएँ।

माउंट एवरेस्ट की उंचाई में 3 फीट की वृद्धि


संदर्भ:

हाल ही में, नेपाल और चीन के विदेश मंत्रियों द्वारा संयुक्त रूप से माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई को 8,848.86 मीटर प्रमाणित किया गया। इसके पूर्व माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई को वर्ष 1954 में मापा गया था, उसके बाद से इसकी उंचाई में समुद्रतल से 86 सेंटीमीटर की वृद्धि हुई है।

माउंट एवरेस्ट के बारे में:

  • माउंट एवरेस्ट नेपाल और चीन की सीमा पर अवस्थित है।
  • माउंट एवरेस्ट को नेपाल में सागरमाथा और चीन में माउंट क़ोमोलंगमा (Qomolangma) के नाम से भी जाना जाता है।

पृष्ठभूमि:

किसी भी अन्य पर्वत की उंचाई, शायद इतने विवाद का विषय नहीं रही है। वर्षों से, मांउट एवरेस्ट की उंचाई को लेकर यह बहस जारी है, कि इसकी उंचाई की गणना, चट्टानों की ऊंचाई तक की जानी चाहिए अथवा इसमें चट्टानों के ऊपर जमे ‘हिम’ की ऊंचाई भी शामिल की जानी चाहिए।

माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई का पूर्व मापन

इससे पहले, सर्वे ऑफ़ इण्डिया द्वारा वर्ष 1954 में माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई को मापा गया था, और इसके लिए थियोडोलाइट्स और जंजीरों जैसे उपकरणों का उपयोग किया गया था, उस समय जीपीएस जैसे उपकरण विकसित नहीं हुए थे।

  • सर्वे ऑफ़ इण्डिया द्वारा माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई 8,848 मीटर निर्धारित की गयी, जिसे वैश्विक रूप से, चीन के अलावा, सभी संदर्भो में स्वीकार किया गया।
  • वर्ष 1999 में, एक अमेरिकी टीम ने माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई 29,035 फीट (लगभग 8,850 मीटर) निर्धारित की थी।

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प्रीलिम्स लिंक:

  1. माउंट एवरेस्ट की अवस्थिति
  2. विश्व का सबसे ऊँचा पर्वत।
  3. जीपीएस और ग्लोनास (GLONASS) के मध्य अंतर
  4. ‘वलित पर्वत’ क्या होते हैं?

मेंस लिंक:

‘हिमालय पर्वत का भारत के लिए महत्व’ पर चर्चा कीजिए।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

 


सामान्य अध्ययन- II


 

विषय: विभिन्न घटकों के बीच शक्तियों का पृथक्करण, विवाद निवारण तंत्र तथा संस्थान।

अदालत, अर्थव्यवस्था के लिए हानिकारक कोई भी कदम नहीं उठाएगी: उच्चतम न्यायालय


संदर्भ:

हाल ही में, सर्वोच्च न्यायालय ने मौखिक रूप से टिप्पणी की है, कि अदालत, अर्थव्यवस्था को जोखिम में डालने वाला कोई भी आदेश पारित नहीं करेगी। 

संबंधित प्रकरण

उच्चतम न्यायालय में, उद्योग, रियल एस्टेट और विद्युत क्षेत्रों द्वारा केंद्र सरकार की प्रतिक्रिया के खिलाफ दायर की गई अलग-अलग याचिकाओं की सुनवाई की जा रही है। याचिका-कर्ताओं द्वारा प्रतिबंधो के दौरान ब्याज माफी सहित ऋणों में राहत दिए जाने की मांग की गयी है।

अदालत ने कहा है, कि केंद्र सरकार द्वारा दिए गए प्रत्युत्तर के अनुसार, प्रतिबंध-काल के दौरान सभी वर्गों और सभी प्रकार के ऋणकर्ताओं को ऋणों पर ब्याज की सामूहिक माफी देने से लगभग 6 लाख करोड़ रुपए से अधिक की हानि होगी।

केंद्र सरकार की चिंता का कारण:

  1. सरकार द्वारा ‘ब्याज-माफी पर विचार तक नहीं करने’ और ‘किश्तों की अदायगी हेतु मोहलत’ देने से मना करने का संभावित कारण, बैंकिंग क्षेत्र की डांवाडोल स्थिति है।
  2. यदि बैंकों पर इस भार को डाला जाता है, तो इससे बैंकों की कुल पूंजी का एक महत्वपूर्ण भाग समाप्त हो जाएगा, परिणामस्वरूप अधिकांश बैंक घाटे में चले जाएंगे और इनके असितत्व के लिए गंभीर सवाल खड़े हो जाएंगे।
  3. भारतीय बैंकिंग प्रणाली में प्रत्येक ऋण खाते से लगभग 8.5 जमा खाते जुड़े होते हैं। इसलिए, सरकार ऐसा कुछ भी नहीं कर सकती जिससे आर्थिक परिदृश्य प्रभावित होने की आशंका हो।

सरकार द्वारा किए गए विभिन्न उपाय:

वित्त मंत्रालय द्वारा आपदा प्रबंधन अधिनियम के अंतर्गत और भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा निरंतर कई उपाय किये गए हैं:

  1. सरकार द्वारा विद्युत् वितरण कंपनियों के लिए 90,800 करोड़ से अधिक तरलता सहायता की मंजूरी दी गयी है। इससे ये कंपनियां, विद्युत् उत्पादों और प्रसरण कंपनियों के लिए बकाया भुगतान करने में सक्षम होंगी।
  2. रियल एस्टेट क्षेत्र में, एक सरकारी सलाहकारी निर्देश (Government Advisory) जारी किया गया था जिसमे, कोविड-19 को प्राकृतिक आपदा (force-majeure) मानते हुए, रियल एस्टेट नियामक प्राधिकरणों के तहत परियोजनाओं के पंजीकरण और पूरे करने की तारीखों में विस्तार करने की अनुमति दी गई है।
  3. सरकार द्वारा सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम (MSME) क्षेत्र को राहत देने हेतु 3 लाख करोड़ रूपये तक की आपातकालीन ऋण योजनाओं को शुरू किया गया, जो कि, MSMEs को अपने नियमित परिचालन शुरू करने में सक्षम बनाने हेतु 100% सरकारी गारंटी द्वारा समर्थित है। इसके लिए 1.87 लाख करोड़ रूपये की राशि मंजूर की जा चुकी है।
  4. ऋण खातों को ‘मानक’ श्रेणी से ‘गैर-निष्पादित परिसंपत्ति’ (NPA) में परिवर्तित किये जाने और परिणामस्वरूप रेटिंग के प्रभावित होने संबंधी आशंकाओं को दूर करने हेतु आरबीआई द्वारा एक समाधान रूपरेखा (Resolution Framework) की घोषणा की गयी।
  5. भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) द्वारा प्रतिबंध काल के दौरान किए गए ‘डिफ़ॉल्ट’ को चिह्नित करने में शिथिलता प्रदान करने हेतु परिपत्र जारी किये गए।
  6. आरबीआई द्वारा गठित कामथ समिति ने कोविड-19 से प्रभावित 26 क्षेत्रों के ऋण पुनर्गठन हेतु वित्तीय मापदंडों की सिफारिश की है।

स्रोत: द हिंदू

 

विषय: सांविधिक, विनियामक और विभिन्न अर्द्ध-न्यायिक निकाय।

राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण (NCLAT)


राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण (National Company Law Appellate Tribunal-NCLAT) का गठन ‘कंपनी अधिनियम, 2013 के तहत किया गया है।

NCLAT के कार्य

राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण (NCLAT) एक अर्द्ध-न्यायिक निकाय है जो कंपनियों से संबंधित विवादों का निर्णय करता है।

NCLAT निम्नलिखित निकायों तथा कानूनों द्वारा पारित आदेशों व निर्णयों के खिलाफ सुनवाई करता है:

  1. दिवाला और दिवालियेपन संहिता (IBC), 2016 की धारा 61 के तहत राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण (National Company Law Tribunal- NCLT) द्वारा दिए गए आदेश।
  2. IBC की धारा 211 तथा भारतीय दिवाला और दिवालियापन बोर्ड के द्वारा धारा 202 के तहत दिए गए आदेश।
  3. भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) के निर्णय।

संरचना:

राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण (NCLAT)  के अध्यक्ष और न्यायिक सदस्यों की नियुक्ति भारत के मुख्य न्यायाधीश के परामर्श के बाद की जाएगी।

न्यायाधिकरण के सदस्यों और तकनीकी सदस्यों की नियुक्ति एक चयन समिति की सिफारिशों के आधार पर की जाएगी। चयन समिति में निम्नलिखित सम्मिलित होंगे:

  1. भारत के मुख्य न्यायाधीश या उनके नामित व्यक्ति- अध्यक्ष
  2. सुप्रीम कोर्ट के एक वरिष्ठ न्यायाधीश या उच्च न्यायालय के एक मुख्य न्यायाधीश- सदस्य
  3. कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय में सचिव — सदस्य
  4. कानून और न्याय मंत्रालय में सचिव-सदस्य
  5. वित्त मंत्रालय में वित्तीय सेवा विभाग में सचिव- सदस्य

पात्रता

  • अध्यक्ष – सर्वोच्च न्यायालय का वर्तमान/ पूर्व न्यायाधीश अथवा उच्च न्यायालय का वर्तमान/पूर्व मुख्य न्यायाधीश होना होना चाहिए।
  • न्यायिक सदस्य – किसी उच्च न्यायालय का न्यायाधीश होना चाहिए अथवा पांच वर्ष या उससे अधिक अवधि तक किसी न्यायाधिकरण का न्यायिक सदस्य के रूप में कार्य-अनुभव होना चाहिए।
  • तकनीकी सदस्य– निर्दिष्ट क्षेत्रों में, विशेष योग्यता, अखंडता और विशिष्ट ज्ञान और 25 वर्ष या उससे अधिक अवधि अनुभव रखने वाले व्यक्ति होना चाहिए।

कार्यकाल

न्याधिकरण के अध्यक्ष और सदस्यों की पदावधि पांच वर्ष होती है है और उन्हें अतिरिक्त पांच वर्षों के लिए फिर से नियुक्त किया जा सकता है।

प्रीलिम्स लिंक:

  1. NCLAT और NCLT के बारे में।
  2. कार्य
  3. अपील
  4. संरचना
  5. पात्रता
  6. कार्यकाल

स्रोत: द हिंदू

 

विषय: स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय।

आंध्र प्रदेश के एलुरु में रहस्यमयी बीमारी


(Eluru mystery disease)

संदर्भ:

आंध्र प्रदेश के एलुरु शहर (Eluru in Andhra Pradesh) में रहस्यमय बीमारी (Mysterious Disease) से लगभग 550 से अधिक लोग बीमार हो चुके हैं।

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) की टीम द्वारा रोगियों की जांच करने पर, इनके रक्त नमूनों में सीसा (lead) जैसे भारी तत्व पाए गए हैं।

बीमारी का कारण:

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) की विशेषज्ञ टीम द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट के अनुसार, एलुरु शहर में पीने के पानी और दूध में निकल (Nickel) और सीसा (Lead) जैसे भारी तत्वों की मौजूदगी प्राथमिक रूप से रहस्यमय बीमारी का कारण है।

बीमारी के लक्षण:

इस बीमारी से प्रभावित होने वाले व्यक्तियों द्वारा मिर्गी के दौरे पड़ने, घबराहट, उल्टी और सिरदर्द की शिकायतें की गयी। अब तक, यह बीमारी एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में नहीं फैली है।

संबंधित चिंताएं:

रक्त के नमूनों में रसायनों की उपस्थिति काफी कम पायी गयी थी, जिससे मरीज तेजी से ठीक हो रहे हैं। यदि विषाक्त पदार्थों की मात्रा अधिक होती, अथवा इसका हवा के माध्यम से प्रसरण होता, तो यह न्यूरोलॉजिकल सिस्टम को प्रभावित कर सकता था।

सीसा-विषाक्तता के सामान्य कारक:

  1. लेड-एसिड बैटरियों का अनियमित और घटिया रीसाइक्लिंग
  2. वाहनों की संख्या में वृद्धि और साथ ही वाहन की बैटरी रीसाइक्लिंग से संबंधित विनियमन और बुनियादी ढांचे की कमी।
  3. खतरनाक और अक्सर अवैध रीसाइक्लिंग कार्यों में लगे अकुशल श्रमिक बैटरियों को खुली जगहों पर तोड़ते है, जिससे एसिड और सीसे की धूल (lead dust) मिट्टी में अवशोषित हो जाती है।
  4. इन श्रमिकों द्वारा अवशिष्ट सीसे को कच्ची, खुली भट्टियों में पिघलाया जाता है, जिससे जहरीले धुएं का उत्सर्जन होता है और यह आसपास के वातावरण को विषाक्त करता है।

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प्रीलिम्स लिंक:

  1. WHO द्वारा सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक घोषित प्रमुख 10 रसायन
  2. सीसयुक्त पेंट निर्माण की समाप्ति के लिए वैश्विक गठबंधन के बारे में
  3. सीसा मुख्य रूप से किस उद्योग में प्रयुक्त किया जाता है?
  4. सीसे के सबसे बड़े प्राथमिक उत्पादक
  5. भारत में सीसा उत्पादन और खपत

मेंस लिंक:

सीसा विषाक्तता और इसे रोकने के तरीकों पर एक टिप्पणी लिखिए।

स्रोत: द हिंदू

 

विषय: भारत के हितों पर विकसित तथा विकासशील देशों की नीतियों तथा राजनीति का प्रभाव; प्रवासी भारतीय।

पाकिस्तान एवं चीन द्वारा धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन: अमेरिका


संदर्भ:

हाल ही में, संयुक्त राज्य अमेरिका के विदेश विभाग द्वारा ‘अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम’ (International Religious Freedom ActIRFA) के अनुसार विभिन्न देशों को अलग-अलग सूचियों में रखा गया है।

प्रमुख बिंदु:

  1. पाकिस्तान और चीन को, धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन करने के संदर्भ में विशेष रूप से चिंताजनक आठ देशों की सूची में शामिल किया गया है। अन्य आठ देश- म्यांमार, इरिट्रिया, ईरान, नाइजीरिया, उत्तर कोरिया, सऊदी अरब, ताजिकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान हैं।
  2. कोमोरोस, क्यूबा, ​​निकारागुआ और रूस को ‘विशेष निगरानी सूची’ (Special Watch ListSWL) में रखा गया है, क्योंकि इन देशों में सरकारें धार्मिक स्वतंत्रता के उल्लघंन संबंधी मामलों में लिप्त होती है, या इन्हें अनदेखा करती है।
  3. अल-शबाब, अल-कायदा, बोको हराम, हयात तहरीर अल-शाम, हौथिस, ISIS, ISIS-ग्रेटर सहारा, ISIS-पश्चिम अफ्रीका, जमात नस्र अल-इस्लाम वल मुस्लिमीन और तालिबान को विशेष चिंताजनक इकाईयों’ (Entities of Particular Concern) की सूची में शामिल किया गया।

विशेष रूप से, विदेश विभाग द्वारा भारत, रूस, सीरिया और वियतनाम को ‘विशेष चिंताजनक देश’ (Countries of Particular Concern-CPC) घोषित करने संबंधी अमेरिकी अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग (USCIRF) की सिफारिशों को स्वीकार नहीं किया गया है।

अमेरिकी अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग (USCIRF)

अमेरिकी अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग (United States Commission on International Religious Freedom-USCIRF), एक स्वतंत्र, द्विस्तरीय, संयुक्त राज्य अमेरिका का एक फ़ेडरल गवर्नमेंट कमीशन/ संघीय सरकारी आयोग है।

  • इसकी स्थापना अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम (International Religious Freedom ActIRFA) के तहत वर्ष 1998 में की गयी थी।
  • यह, विश्व में धर्म और आस्था संबंधी स्वतंत्रता के सार्वभौमिक अधिकार की निगरानी करता है।
  • USCIRF, वैश्विक स्तर पर, अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप, धार्मिक स्वतंत्रता संबंधी उल्लंघनों की निगरानी करता है, और राष्ट्रपति, विदेश सचिव और कांग्रेस को नीतिगत सिफारिशें प्रदान करता है।

‘अमेरिकी अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग’ एवं विदेश विभाग के अधीन ‘अन्तर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता कार्यालय’ में अंतर

(The difference between USCIRF and the state department’s Office of International Religious Freedom)

अमेरिकी अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग (USCIRF), एक स्वतंत्र, द्विस्तरीय, संघीय सरकारी इकाई है, जबकि ‘अन्तर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता कार्यालय’ (Office of International Religious FreedomIRF) अमेरिकी विदेश विभाग का हिस्सा है। हालांकि, IRF का गठन भी अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम (IRFA) के तहत ही किया गया है।

USCIRF और ‘अन्तर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता कार्यालय’ (IRF), दोनों के द्वारा प्रतिवर्ष अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर वार्षिक रिपोर्ट जारी की जाती है, किंतु दोनों रिपोर्ट्स का उद्देश्य भिन्न होता है।

  • विदेश विभाग की रिपोर्ट में विश्व के प्रत्येक देश में धार्मिक स्वतंत्रता के उल्लंघन संबंधी मामलों का विवरण होता है।
  • USCIRF की वार्षिक रिपोर्ट में, वैधानिक रूप से, विशेष चिंताजनक देश’ (Countries of Particular Concern-CPC) घोषित किए जाने हेतु सिफारिश की जाती है, जिसे आयोग की कार्यकारी शाखा (Executive Branch) द्वारा विचार किया जाता है।

पृष्ठभूमि:

मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा के अनुच्छेद 18 में प्रावधान किया गया है कि “सभी व्यक्तियों को विचार, विवेक और धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार है; इस अधिकार में अपने धर्म अथवा आस्था को बदलने की स्वतंत्रता भी सम्मिलित है, तथा इसके साथ, अकेले अथवा अन्य व्यक्तियों के साथ, सार्वजनिक स्थल पर अथवा निजी रूप से, अपने धर्म या आस्था की शिक्षाओं, पद्धतियों, पूजा एवं उसके पालन करने की स्वतंत्रता है।

प्रीलिम्स लिंक:

  1. USCIRF क्या है?
  2. प्रमुख चिंता वाले देश (Countries of Particular Concern-CPC) क्या है?
  3. मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा के बारे में

मेंस लिंक:

देश में सांप्रदायिक सद्भाव बनाए रखने में भारतीय राजनीति कितनी सफल रही है? चर्चा कीजिए।

स्रोत: द हिंदू

 


सामान्य अध्ययन- III


 

विषय: उदारीकरण का अर्थव्यवस्था पर प्रभाव, औद्योगिक नीति में परिवर्तन तथा औद्योगिक विकास पर इनका प्रभाव।

मेक इन इंडिया’ नीति का जीवन रक्षक दवाओं की आपूर्ति पर प्रभाव


संदर्भ:

हाल ही में, रेल मंत्रालय द्वारा ’उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्द्धन विभाग’ (Department for Promotion of Industry and Internal Trade-DPIIT) को लिखे एक पत्र में भारत के बाहर निर्मित कुछ मेडिकल उत्पादों, विशेषकर कोविड-19 और कैंसर के उपचार में इस्तेमाल होने वाली दवाओं, की खरीद के लिए छूट की मांग की गई है।

संबंधित प्रकरण

मौजूदा ‘मेक इन इंडिया’ नीति में, ‘स्थानीय आपूर्तिकर्ता श्रेणी’ के वर्ग-I और वर्ग-II हेतु आवश्यक ‘स्थानीय सामग्री मानदडों’ (Local Content Criteria) के पूरा नहीं करने पर आपूर्तिकर्ताओं से कुछ उत्पादों को खरीदने हेतु कोई विकल्प उपलब्ध नहीं है।

  1. वर्ग-I के तहत वे स्थानीय आपूर्तिकर्ता या सेवा प्रदाता आते हैं, जिनके उत्पादों अथवा सेवाओं में स्थानीय सामग्री का भाग 50% अथवा इससे अधिक होता है।
  2. वर्ग-II के अंतर्गत वे आपूर्तिकर्ता या सेवा प्रदाता आते हैं, जिनके उत्पादों अथवा सेवाओं में स्थानीय सामग्री का भाग 50% से कम तथा 20% से अधिक होता है।

आपूर्तिकर्ताओं के केवल उपरोक्त दो वर्ग ही, अधिकतम 200 करोड़ रूपये की अनुमानित कीमत के भीतर, सभी प्रकार की वस्तुओं, सेवाओं की खरीद और अन्य कार्यो हेतु बोली लगाने के पात्र होंगे।

इसका प्रभाव:

कैंसर के उपचार में इस्तेमाल होने वाली कुछ दवाओं का निर्माण भारत से बाहर किया जाता है, और  भारतीय बाजार में एजेंटों या डीलरों के माध्यम से उपलब्ध होता है। निर्धारित अनिवार्यताओं को पूरा किए बिना, इन एजेंटों से इस प्रकार के उत्पाद नहीं खरीदे जा सकते हैं।

निष्कर्ष:

रेलवे कर्मचारियों और उनके परिवार के सदस्यों को संतोषजनक स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने हेतु मानव जीवन रक्षक श्रेणी में इन दवाओं और चिकित्सा उत्पादों की निर्बाध आपूर्ति श्रृंखला अत्यंत आवश्यक है।

मेक इन इंडियानीति के बारे में:

भारत सरकार द्वारा ‘मेक इन इंडिया’ पहल का आरंभ 25 सितंबर 2014 को किया गया था। इसका उद्देश्य भारत में विनिर्माण को प्रोत्साहित करना और विनिर्माण और सेवा क्षेत्रों में समर्पित निवेश के माध्यम से अर्थव्यवस्था में तेजी लाना है।

मेक इन इंडियाके अंतर्गत लक्ष्य:

  1. अर्थव्यवस्था में विनिर्माण क्षेत्र की हिस्सेदारी बढ़ाने हेतु क्षेत्र की वृद्धि दर को 12-14% प्रतिवर्ष तक बढ़ाना।
  2. वर्ष 2022 तक अर्थव्यवस्था में 100 मिलियन अतिरिक्त विनिर्माण संबंधी नौकरियों का सृजन करना।
  3. वर्ष 2022 तक, (संशोधित 2025) सकल घरेलू उत्पाद में विनिर्माण क्षेत्र का योगदान वर्तमान 15-16% से बढ़ाकर 25% सुनिश्चित करना।

अब तक के परिणाम:

  1. वर्ष 2013-14 के दौरान प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) $16 बिलियन था, जो वर्ष 2015-16 में बढ़कर $36 बिलियन हो गया। किंतु, इसके बाद FDI में वृद्धि नहीं हुई है, और भारतीय औद्योगिकीकरण में इसका योगदान नहीं हो पा रहा है।
  2. विनिर्माण क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की पहले की तुलना में गिरावट दर्ज की गयी है। 2014-18 में 9.6 बिलियन डॉलर की तुलना में 2017-18 में यह घटकर 7 बिलियन डॉलर रह गया है।
  3. सेवा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश 23.5 बिलियन डॉलर है, जो कि विनिर्माण क्षेत्र की तुलना में तीन गुना से अधिक है। यह उल्लेखनीय रूप से विकसित कंप्यूटर सेवाओं के संदर्भ में भारतीय अर्थव्यवस्था के पारंपरिक मजबूत बिंदुओं को दर्शाता है।
  4. विनिर्मित उत्पादों के वैश्विक निर्यात में भारत की हिस्सेदारी लगभग 2% है, जबकि पड़ोसी देश, चीन की इस क्षेत्र में 18% की भागेदारी है।

प्रीलिम्स लिंक:

  1. ‘मेक इन इंडिया’ (MII) पहल
  2. लक्ष्य
  3. जीडीपी में सेवा क्षेत्र का हिस्सा
  4. नीति के तहत आवश्यक ‘स्थानीय सामग्री मानदड’

मेंस लिंक:

‘मेक इन इंडिया’ (MII) पहल के प्रदर्शन पर चर्चा कीजिए।

स्रोत: द हिंदू

 

विषय: संचार नेटवर्क के माध्यम से आंतरिक सुरक्षा को चुनौती, आंतरिक सुरक्षा चुनौतियों में मीडिया और सामाजिक नेटवर्किंग साइटों की भूमिका, साइबर सुरक्षा की बुनियादी बातें, धन-शोधन और इसे रोकना।

चाइल्ड पोर्न पर कार्रवाई करने हेतु महाराष्ट्र पुलिस द्वारा सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल


संदर्भ:

हाल ही में, महाराष्ट्र पुलिस की साइबर विंग दवारा इंटरपोल से एक सॉफ्टवेयर हासिल किया गया है। यह सॉफ्टवेयर ऑनलाइन अपलोड की गयी चाइल्ड पोर्नोग्राफी का पता लगाने में मदद करेगा।

चाइल्ड पोर्नोग्राफी के खिलाफ ऑनलाइन कार्रवाई करने हेतु इंटरपोल का सॉफ्टवेयर

  • इंटरपोल के सॉफ्टवेयर द्वारा कई फिल्टर लगे होने के बाबजूद, चित्रों में नग्नता और चेहरे की बनावट से व्यक्ति की उम्र आदि का पता करने हेतु कई तकनीकें प्रयुक्त की जाती हैं।
  • इसमें, चाइल्ड पोर्नोग्राफी के इर्द-गिर्द ‘कीवर्ड’ खोजने हेतु ‘इन-बिल्ट’ एल्गोरिदम इंस्टाल की गयी हैं, जिससे कानून प्रवर्तन एजेंसियों को इन अपराधों में लिप्त प्लेटफार्म्स का पता लगाने में मदद मिलेगी।
  • इन फिल्टर्स के आधार पर, सॉफ्टवेयर क्रॉलर इस प्रकार के चित्रों, वीडियो और टेक्स्ट को खोजने हेतु इंटरनेट को स्कैन करता है। इस प्रकार के किसी मीडिया के पाए जाने पर सॉफ्टवेयर इसे डेटाबेस में संबद्ध कर देता है, जिसके बाद चाइल्ड पोर्नोग्राफी के अंतर्गत आने वाले मीडिया की पहचान कर उस पर कार्यवाही की जाती है।

चाइल्ड पोर्नोग्राफी के खिलाफ महाराष्ट्र साइबर पुलिस द्वारा गठित ‘ट्रेस’ (TRACE) टीम

  • महाराष्ट्र के 12 अधिकारियों को इंटरपोल के दक्षिण एशियाई विंग में प्रशिक्षण हेतु भेजा गया था। ये अधिकारी, साइबर चाइल्ड उत्पीडन के खिलाफ रणनीतिकप्रतिक्रिया (Tactical Response against Cyber Child ExploitationTRACE) यूनिट का मुख्य भाग हैं।
  • ‘ट्रेस’ (TRACE) यूनिट का गठन मुख्य रूप से महाराष्ट्र में चाइल्ड पोर्नोग्राफी के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए किया गया है। यह यूनिट, बाल यौन शोषण सामग्री (Child Sexual Abuse Material- CSAM) के खिलाफ देश भर में, वर्ष 2019 से जारी अभियान का हिस्सा है।

वर्ष 2019 के बाद से भारत में CSAM के खिलाफ कार्रवाई को बढ़ावा

  • वर्ष 2019 के दौरान, बाल शोषण को रोकने के लिए काम करने वाली एक अमेरिका-आधारित गैर-लाभकारी संस्था, नेशनल सेंटर फॉर मिसिंग एंड एक्सप्लॉइड चिल्ड्रन (NCMEC) द्वारा भारतीय एजेंसियों के साथ सूचनाओं का साझा करना शुरू किया गया। उसके बाद से भारत में बाल यौन उत्पीड़न सामग्री (CSAM) के खिलाफ लड़ाई तेज हो गयी।
  • NCMEC द्वारा ये सूचनाएं नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (NCRB) को भेजी जाती है, जिसे चाइल्ड पोर्नोग्राफी से संबंधित घटना वाले राज्य को कार्यवाही के लिए भेज दिया जाता है।

महाराष्ट्र में ऑपरेशन ब्लैकफेस’ क्या है?

‘ऑपरेशन ब्लैकफेस’ (Operation Blackface), बाल यौन शोषण सामग्री (Child Sexual Abuse Material- CSAM) के खिलाफ देश भर में जारी कार्रवाई का एक हिस्सा है। NCRB द्वारा प्रदान की गई सूचना पर कार्रवाई करते हुए, महाराष्ट्र साइबर पुलिस के अधिकारी, शिकायतों को आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने वाले जिले को भेज देते है।

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प्रीलिम्स लिंक:

  1. इंटरपोल के बारे में
  2. ऑपरेशन ब्लैकफेस
  3. NCRB के बारे में
  4. नेशनल सेंटर फॉर मिसिंग एंड एक्सप्लॉइड चिल्ड्रेन (NCMEC) के बारे में
  5. महाराष्ट्र सरकार द्वारा गठित TRACE टीम क्या है?

मेंस लिंक:

बाल यौन उत्पीड़न सामग्री (CSAM) के खिलाफ भारत की लड़ाई में आने वाली चुनौतियों पर चर्चा कीजिए।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

 


प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य


श्रीलंका में टायर फैक्ट्री हेतु 300 मिलियन डॉलर का चीनी निवेश

श्रीलंका ने देश के विनिर्माण क्षेत्र में चीन द्वारा पहली बार बड़े स्तर पर निवेश किये जाने की घोषणा की है। चीन द्वारा एक रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण गहरे समुद्रीय बंदरगाह के नजदीक 300 मिलियन डॉलर की टायर फैक्ट्री स्थापित की जा रही है।

  • यह कारखाना हंबनटोटा बंदरगाह के समीप स्थापित किया जायेगा। हंबनटोटा बंदरगाह के निर्माण हेतु चीन द्वारा श्रीलंका को 1.4 बिलियन डॉलर का कर्ज दिया गया था, जिसे चुकाने में विफल रहने पर, श्रीलंका ने इस बंदरगाह को वर्ष 2017 में एक चीनी कंपनी को लीज पर दे दिया था।
  • पश्चिमी देशों और अन्य क्षेत्रीय ताकतों सहित, भारत भी लंबे समय से श्रीलंका में चीन के बढ़ते प्रभाव से चिंतित है।

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उत्तरी आयरलैंड प्रोटोकॉल एवं इसकी आवश्यकता

ब्रेक्सिट के बाद, रिपब्लिक ऑफ़ आयरलैंड गणराज्य और उत्तरी आयरलैंड के मध्य 310 मील लंबी सीमा, यूनाइटेड किंगडम और यूरोपीय संघ (EU) के बीच एकमात्र स्थलीय सीमा है।

उत्तरी आयरलैंड प्रोटोकॉल के रूप में तय व्यवस्था के तहत, 1 जनवरी को यूनाइटेड किंगडम और यूरोपीय संघ (EU) के मध्य नए संबंधों की शुरुआत के बाद से आयरिश सीमा पर वस्तुओं की जांच आवश्यक नहीं होगी।

सीमा पर जाँच न होने महत्वपूर्ण क्यों है?

  • उत्तरी आयरलैंड के इतिहास को देखते हुए सीमा एक संवेदनशील मुद्दा है, यहाँ शांति स्थापित करने के लिए समझौते किये गए, जिनमे सीमा स्पष्ट करने हेतु दिखाई देने वाले चिह्नों को हटाए जाने पर सहमति हुई थी।
  • आशंका इस बात है, कि यदि बॉर्डर पोस्ट या कैमरे जैसा कोई बुनियादी ढांचा स्थापित किया जाता है, तो इस पर हमला हो सकता है, जिससे राजनीतिक अस्थिरता उत्पन्न हो सकती है।

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जनसंख्या एवं विकास भागीदार (PPD)

(Partners in Population and Development)

संदर्भ:

हाल ही में, जनसंख्या एवं विकास भागीदारों (Partners in Population and Development- PPD) द्वारा एक अंतर-मंत्रालयी सम्मेलन का आयोजन किया गया। भारत ने इसमें भाग लिया।

पीपीडी के बारे में:

यह प्रजनन स्वास्थ्य, जनसंख्या और विकास के क्षेत्र में दक्षिण-दक्षिण सहयोग को बढ़ावा देने के लिए एक अंतरसरकारी संगठन है।

  • इसका सचिवालय ढाका, बांग्लादेश में स्थित है।
  • वर्तमान में, पीपीडी में 26 विकासशील देश सदस्य के रूप में शामिल है, जो दुनिया की 59% से अधिक आबादी का प्रतिनिधित्व करते है।
  • इसकी शुरुआत, अंतर्राष्ट्रीय जनसंख्या एवं विकास सम्मेलन (International Conference on Population and Development- ICPD), 1994 के दौरान की गयी थी। इस सम्मलेन में एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के दस विकासशील देशों ने काहिरा कार्यक्रम (Cairo Program of ActionPOA) को लागू करने में मदद करने हेतु एक अंतर-सरकारी गठबंधन का गठन किया गया था।
  • काहिरा कार्यक्रम (POA) को 179 देशों द्वारा समर्थन प्राप्त है। यह कार्यक्रम देशों के भीतर और देशों के मध्य प्रजनन स्वास्थ्य (reproductive health- RH) और परिवार नियोजन में अनुभवों के आदान-प्रदान के माध्यम से विकास को बढ़ावा देने और सरकारों, गैर सरकारी संगठनों, अनुसंधान संस्थानों और निजी क्षेत्र के बीच प्रभावी भागीदारी को बढ़ावा देने हेतु एक तंत्र स्थापित करने की आवश्यकता पर बल देता है।

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