विषय सूची
सामान्य अध्ययन-I
1. लाचित बोड़फुकन
2. जर्मनी में महिलाओं के लिए नया बोर्डरूम कोटा
3. इस वर्ष ‘उत्तर-पूर्वी मानसून’ के मंद होने के कारण
सामान्य अध्ययन-II
1. उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म समपरिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश 2020
2. पोषण अभियान
सामान्य अध्ययन-III
1. नेगेटिव यील्ड बॉण्ड
2. कॉरपोरेट घरानों को बैंकिंग लाइसेंस देने के प्रस्ताव पर कड़ी आलोचना
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य
1. सरकार द्वारा 43 अन्य ऐप्स पर प्रतिबंध
2. दक्षिण एशियाई विश्वविद्यालय (SAU)
3. सर छोटू राम
4. सहकार प्रज्ञा
सामान्य अध्ययन- I
विषय: 18वीं सदी के लगभग मध्य से लेकर वर्तमान समय तक का आधुनिक भारतीय इतिहास- महत्त्वपूर्ण घटनाएँ, व्यक्तित्व, विषय।
लाचित बोड़फुकन
(Lachit Borphukan)
संदर्भ:
प्रधानमंत्री ने लचित दिवस पर लाचित बोड़फुकन (Lachit Borphukan) को श्रद्धांजलि अर्पित की।
‘लाचित बोड़फुकन’ कौन थे?
- वह अहोम साम्राज्य में एक सेनापति थे।
- इन्हें सन् 1671 में हुए सराईघाट के प्रसिद्ध युद्ध के लिए जाना जाता है, जिसमे उन्होंने रामसिंह प्रथम के नेतृत्व में मुगल सेना द्वारा अहोम साम्राज्य पर कब्जा करने के प्रयास को विफल कर दिया।
- सराईघाट का युद्ध गुवाहाटी में ब्रह्मपुत्र के तट पर लड़ा गया था।
- राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (NDA) द्वारा वर्ष 1999 से प्रतिवर्ष सर्वश्रेष्ठ कैडेट को लाचित बोड़फुकन स्वर्ण पदक प्रदान किया जाता है।
पृष्ठभूमि:
सन् 1671 में सराईघाट की लड़ाई के अंतिम चरण के दौरान, जब मुगलों ने सराईघाट में नदी से होकर असमिया सेना पर हमला किया, तो कई असमिया सैनिकों की हिम्मत उखड गयी। ऐसे में आहोम साम्राज्य के सेनापति लाचित ने सभी सैनिकों का आह्वाहन किया और उन्हें अंतिम सांस तक लड़ने के लिए प्रेरित किया, जिसके परिणामस्वरूप मुगलों की जबरदस्त हार हुई।
प्रीलिम्स लिंक:
- लाचित बोड़फुकन को किस रूप में याद किया जाता है?
- सराईघाट का युद्ध किसके मध्य लड़ा गया था?
- किस भारतीय संस्थान द्वारा लाचित बोड़फुकन स्वर्ण पदक प्रदान किया जाता है?
मेंस लिंक:
सराईघाट की लड़ाई के कारणों और परिणामों पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: पीआईबी
विषय: महिलाओं की भूमिका और महिला संगठन, जनसंख्या एवं संबद्ध मुद्दे, गरीबी और विकासात्मक विषय, शहरीकरण, उनकी समस्याएँ और उनके रक्षोपाय।
जर्मनी में महिलाओं के लिए नया बोर्डरूम कोटा
(What is Germany’s new boardroom quota for women?)
संदर्भ:
जर्मनी में देश की सूचीबद्ध कंपनियों में वरिष्ठ प्रबंधन पदों पर काम करने वाली महिलाओं की संख्या हेतु एक अनिवार्य कोटा लागू किये जाने की योजना बनाई जा रही है
इस ऐतिहासिक कदम को देश में लैंगिक असमानता की खाई को कम करने संबंधी अगले कदम के रूप में देखा जा रहा है।
जर्मनी में ‘महिलाओं के लिए नया बोर्डरूम कोटा’ क्या है?
सहमत प्रावधानों के अनुसार:
- यदि सूचीबद्ध कंपनियों के कार्यकारी बोर्ड में तीन से अधिक सदस्य हैं, तो उनमें से एक सदस्य महिला होगी।
- जिन कंपनियों में संघीय सरकार की हिस्सेदारी है, उनके लिए न्यूनतम 30 प्रतिशत पर्यवेक्षी बोर्ड कोटा और कार्यकारी बोर्डों में न्यूनतम भागीदारी आवश्यक होगी।
जर्मनी में इस प्रकार के कोटा की आवश्यकता
- जर्मनी, यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। जर्मनी में, वर्ष 2015 से, महिलाओं के लिए पर्यवेक्षी बोर्डों में 30 प्रतिशत स्वैच्छिक कोटा निर्धारित था।
- हालांकि, विभिन्न रिपोर्ट्स में इस बात का संकेत किया गया है, कि इस प्रावधान से वरिष्ठ कार्यकारी पदों पर महिलाओं की संख्या के अनुपात में कोई अधिक सुधार नहीं हुआ था।
प्रीलिम्स लिंक:
- ‘महिलाओं के लिए बोर्डरूम कोटा’ क्या है?
- हाल ही में किस देश द्वारा इसे लागू किया गया है?
मेंस लिंक:
जर्मनी सरकार के इस प्रावधान से वरिष्ठ कार्यकारी पदों पर महिलाओं के अनुपात में किस प्रकार सुधार होगा? चर्चा कीजिए।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
विषय: भूकंप, सुनामी, ज्वालामुखीय हलचल, चक्रवात आदि जैसी महत्त्वपूर्ण भू-भौतिकीय घटनाएँ, भौगोलिक विशेषताएँ।
इस वर्ष ‘उत्तर-पूर्वी मानसून’ के मंद होने के कारण
(Why has the Northeast monsoon remained subdued this year?)
संदर्भ:
इस वर्ष, दक्षिणी प्रायद्वीपीय क्षेत्र में अब तक होने वाली वर्षा सामान्य स्तर से कम रही है।
इसके निम्नलिखित कारण बताए गए हैं:
- ‘ला नीना’ स्थिति की व्यापकता और साथ में निम्न दाब पेटी (low pressure belt) की सामान्य से हटकर उत्तर की ओर वर्तमान स्थिति।
- अंतर उष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र (Inter Tropical Convective Zone– ITCZ) की वर्तमान स्थिति।
‘ला नीना’ (La Niña), क्या है?
ला नीना (स्पेनिश भाषा में ‘ला नीना’ ‘छोटी लडकी’ को कहा जाता है), एक मौसमी परिघटना है, जिसके दौरान मध्य और पूर्वी भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर के सतहीय तापमान में असामान्य रूप से कमी आती है।
अल नीनो (El Niño) और ला नीना (La Niña) परिघटनाओं को संयुक्त रूप से अल नीनो दक्षिणी दोलन (El Niño Southern Oscillation – ENSO) कहा जाता है।
- ये वैश्विक मौसम- हवाएं, तापमान और वर्षा- को प्रभावित करने वाली व्यापक महासागरीय परिघटनाएं हैं।
- ये विश्व स्तर पर सूखा, बाढ़, गर्मी और शीत परिस्थितियों जैसे मौसम की चरम परिघटनाएँ उत्पन्न करने में सक्षम होती है।
इस परिघटना का सामान्य चक्र 9 से 12 माह तक का होता है, जो कभी-कभार 18 महीने तक विस्तारित हो जाता है- और इसकी प्रत्येक तीन से पांच वर्षों के अंतराल पर पुनरावृति होती है।
‘उत्तर-पूर्वी मानसून’ (Northeast Monsoon)
- ‘उत्तर-पूर्वी मानसून’ की उत्त्पत्ति अक्टूबर से दिसंबर के मध्य होती है, और दक्षिण-पश्चिम मानसून की तुलना में इसकी अवधि कम होती है।
- यह मानसून प्रायः दक्षिणी प्रायद्वीप तक ही सीमित रहता है।
- ‘उत्तर-पूर्वी मानसून’ से होने वाली वर्षा, तमिलनाडु, पुदुचेरी, कराईकल, यनम, तटीय आंध्र प्रदेश, केरल, उत्तर आंतरिक कर्नाटक, माहे और लक्षद्वीप के लिए काफी महत्वपूर्ण होती है।
- इस मानसून के कारण, कुछ दक्षिण एशियाई देशों, जैसे कि मालदीव, श्रीलंका और म्यांमार में भी अक्टूबर से दिसंबर के मध्य वर्षा होती है।
ला-नीना का ‘उत्तर-पूर्वी मानसून’ से संबंध
ला-नीना की स्थिति से दक्षिण-पश्चिम मानसून से होने वाली वर्षा में वृद्धि होती है, जबकि इससे ‘उत्तर-पूर्वी मानसून’ के दौरान होने वाली वर्षा पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
- ला-नीना (La Niña) के वर्षों के दौरान, बंगाल की खाड़ी में निर्मित संयुक्त प्रणाली (Synoptic Systems)- निम्नदाब अथवा चक्रवात- की स्थिति, सामान्य से काफी उत्तर की ओर हो जाती है।
- इसके अलावा, ये प्रणाली पश्चिम की ओर बढ़ने की बजाय, पीछे की ओर मुड़ जाती है। चूंकि, इस प्रणाली की स्थिति सामान्य से उत्तर की ओर होती है, जिसके परिणामस्वरूप दक्षिणी क्षेत्रों, जैसे तमिलनाडु, में अधिक वर्षा नहीं होती है।
प्रीलिम्स लिंक:
- अल-नीनो क्या है?
- ला-नीना क्या है?
- ENSO क्या है?
- ये परिघटनाएँ कब होती हैं?
- एशिया, अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया पर ENSO का प्रभाव।
मेंस लिंक:
ला-नीना मौसमी परिघटना के भारत पर प्रभाव संबंधी चर्चा कीजिए।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
सामान्य अध्ययन- II
विषय: सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय।
उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म समपरिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश 2020
(U.P. Unlawful Religious Conversion Prohibition Ordinance, 2020)
संदर्भ:
हाल ही में, उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा ‘उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म समपरिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश 2020’ (U.P. Unlawful Religious Conversion Prohibition Ordinance, 2020) पारित किया गया है।
अध्यादेश का अवलोकन:
- इसके तहत, विवाह के उद्देश्य से किए गए धर्म-परिवर्तन को गैर-जमानती अपराध बनाया गया है।
- ‘धर्म-परिवर्तन का उद्देश्य विवाह के लिए नहीं था’, यह साबित करने का दायित्व ‘अभियुक्त’ (Defendant) का होगा।
- धर्म परिवर्तन के लिए जिलाधिकारी से अनुमति लेनी होगी और इसके लिए दो महीने का नोटिस देना होगा।
- यदि किसी महिला द्वारा, मात्र विवाह के उद्देश्य से धर्म-परिवर्तन किया जाता है, तो उस विवाह को अमान्य घोषित किया जाएगा।
दंड:
- कानून के प्रावधानों का उल्लंघन करने पर 15,000 के जुर्माने और न्यूनतम एक साल की कारावास, जिसे पांच साल तक बढाया जा सकता है, का दंड दिया जाएगा।
- यदि किसी नाबालिग महिला अथवा अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति समुदाय की महिला का उक्त गैरकानूनी तरीकों से धर्म परिवर्तन कराया गया तो तीन से दस साल तक की सजा के साथ कम से कम 25,000 ₹ का जुर्माना देना होगा।
- इसके अतिरिक्त अध्यादेश में सामूहिक धर्म परिवर्तन कराने वाले संगठनों का रजिस्ट्रेशन रद्द करने सहित कड़ी कार्रवाई करने संबंधी प्रावधान किए गए हैं।
इस क़ानून से संबंधित विवाद
हाल ही में, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक मामले (सलामत अंसारी-प्रियंका खरवार मामले) में निर्णय सुनाते हुए कहा कि, किसी साथी को चुनने का अधिकार अथवा अपनी पसंद के व्यक्ति के साथ रहने का अधिकार, नागरिकों के ‘जीवन और स्वतंत्रता संबंधी मूल अधिकार’ का भाग है। अदालत के इस निर्णय के अगले दिन ही उत्तरप्रदेश सरकार द्वारा यह अध्यादेश लागू किया गया है।
अदालत ने फैसले में यह भी कहा कि, अदालत द्वारा इससे पहले ‘विवाह हेतु धर्मपरिवर्तन अस्वीकरणीय है’ बताया गया था, जो कि क़ानून के रूप में उचित नहीं था।
अध्यादेश की आलोचना
- इस अध्यादेश की कई कानूनी विद्वानों द्वारा तीखी आलोचना की गयी है, इनका कहना है कि, ‘लव जिहाद‘ की अवधारणा का कोई भी संवैधानिक या कानूनी आधार नहीं है।
- ये संविधान के अनुच्छेद 21 का हवाला देते हुए कहते हैं कि, संविधान में नागरिकों को अपनी पसंद के व्यक्ति से विवाह करने का अधिकार दिया गया है।
- इसके अलावा, अनुच्छेद 25 के तहत, अंतःकरण की स्वतंत्रता, अपनी पसंद के धर्म का पालन तथा इच्छानुसार धर्म परिवर्तन करने और साथ ही किसी भी धर्म को नहीं मानने के अधिकार की गारंटी प्रदान की गयी है।
संबंधित चिंताएं और चुनौतियाँ
इस तथाकथित नए ‘लव जिहाद’ कानून से संबंधित वास्तविक खतरा इस क़ानून की अस्पष्टता में है।
- इस कानून में “अनुचित प्रभाव” (Undue Influence), “प्रलोभन” (Allurement) और “बल-पूर्वक” (Coercion) जैसे खुली बनावट वाले वाक्यांशों का उपयोग किया गया है।
- वास्तव में, ‘क्या धर्म परिवर्तन सच में मात्र विवाह के उद्देश्य के लिए किया गया है?’ यह प्रश्न ही मूल रूप से अस्पष्ट है।
- व्यक्तिपरक मूल्यांकन और इन सूक्ष्म वाक्यांशों के अभिमूल्यन में है असली संकट निहित है – इसमें मामले को पूरी तरह से न्यायाधीश के विवेक पर छोड़ दिया गया है।
उच्चतम न्यायालय के विचार:
लिली थॉमस और सरला मुद्गल दोनों मामलों में भारत के उच्चतम न्यायालय ने पुष्टि की है कि वास्तविक आस्था के बिना और कुछ कानूनी लाभ उठाने के उद्देश्य से किए गए धर्म परिवर्तन का कोई आधार नहीं है।
प्रीलिम्स लिंक:
- अनुच्छेद 21 के बारे में
- अनुच्छेद 25
- सलामत अंसारी-प्रियंका खरवार मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय का निर्णय
मेंस लिंक:
किसी साथी को चुनने का अधिकार अथवा अपनी पसंद के व्यक्ति के साथ रहने का अधिकार, नागरिकों के ‘जीवन और स्वतंत्रता संबंधी मूल अधिकार’ का भाग है। चर्चा कीजिए।
स्रोत: द हिंदू
विषय: स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय।
पोषण अभियान
संदर्भ:
हाल ही में नीति आयोग द्वारा पोषण अभियान पर एक समीक्षा रिपोर्ट जारी की गयी है।
रिपोर्ट में दिए गए सुझाव:
- केंद्र द्वारा वर्ष 2022 तक नाटेपन, दुर्बलता और रक्त-अल्पता को कम करने हेतु निर्धारित लक्ष्यों को पूरा करने के लिए इस कार्यक्रम को आगे बढ़ाया जाना चाहिए।
- एक पोषण प्लस रणनीति के लिए, अभियान में चार प्रमुख स्तम्भों को सशक्त बनाने के साथ ही NHM/ICDS वितरण तंत्र संबंधी की चुनौतियों को दूर करने के अलावा अन्य सामाजिक निर्धारकों पर भी नए सिरे से ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है।
- स्तनपान के साथ-साथ पूरक आहार प्रदान किये जाने पर भी जोर दिया जाए। इससे भारत में नाटेपन के कुल मामलों में 60% से अधिक कमी की जा सकती है।
पोषण अभियान के बारे में:
- इस कार्यक्रम को बच्चों, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं के लिए पोषण परिणामों में सुधार करने हेतु शुरू किया गया है।
- इस कार्यक्रम को वर्ष 2022 तक पूरे किये जाने वाले विशिष्ट लक्ष्यों सहित वर्ष 2018 में आरंभ किया गया था।
इस कार्यक्रम का उद्देश्य:
- बच्चों में नाटेपन और दुर्बलता में प्रतिवर्ष 2% (वर्ष 2022 तक कुल 6%) की कमी करना।
- बच्चों, किशोरियों और गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं में प्रति वर्ष 3% (वर्ष 2022 तक कुल 9%) रक्त-अल्पता को कम करना।
इस मिशन का लक्ष्य वर्ष 2022 तक 0-6 साल आयु वर्ग के बच्चों में नाटेपन को 38.4% से 25% तक कम करना है।
पृष्ठभूमि:
पांच साल के कम आयु के एक तिहाई से अधिक बच्चे नाटेपन और दुर्बलता, तथा एक से चार आयु वर्ग के 40% बच्चे रक्त-अल्पता से ग्रसित हैं। वर्ष 2016 में जारी किये गए राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 4 के अनुसार, 50% से अधिक गर्भवती और अन्य महिलाओं में रक्त-अल्पता पायी गयी।
प्रीलिम्स लिंक:
- पोषण अभियान के तहत लक्ष्य और उद्देश्य।
मेंस लिंक:
पोषण अभियान के उद्देश्यों और महत्व पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: द हिंदू
सामान्य अध्ययन- III
विषय: भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधनों को जुटाने, प्रगति, विकास तथा रोज़गार से संबंधित विषय।
नेगेटिव यील्ड बॉण्ड
(Negative Yield Bonds)
संदर्भ:
हाल ही में,चीन द्वारा पहली बार निगेटिव-यील्ड ऋण (Negative Yield Debt) की बिक्री की गयी।
5-वर्षीय बॉण्ड की कीमत -0.152%, और 10-वर्षीय और 15-वर्षीय प्रतिभूतियों की सकारात्मक लाभ सहित कीमत 0.318% और 0.664% निर्धारित की गयी।
‘नेगेटिव यील्ड बॉण्ड’ क्या है?
नेगेटिव यील्ड बॉण्ड ऐसे ऋण प्रपत्र (Debt Instruments) होते हैं, जिनके द्वारा निवेशक को बॉण्ड की परिपक्वता अवधि पर बॉण्ड के क्रय मूल्य से कम राशि प्राप्त होती है।
- ये केंद्रीय बैंकों अथवा सरकारों द्वारा जारी किए जा सकते है।
- इसमें निवेशकों द्वारा ऋण-कर्ताओं को, अपनी राशि उनके पास रखने के लिए, ब्याज का भुगतान किया जाता है
निवेशकों द्वारा ‘नेगेटिव यील्ड बॉण्ड’ खरीदने का कारण
- इस प्रकार के प्रलेखों की प्रायः तनाव और अनिश्चितता की स्थिति में अधिक मांग होती है। ये निवेशकों की पूंजी में होने वाली गिरावट से सुरक्षा प्रदान करते हैं।
- मुद्रा के उतार-चढ़ाव से लेकर मुद्रा अपस्फीति जैसी स्थितियों से ‘नेगेटिव यील्ड बॉण्ड’ में निवेश करने वाले सुरक्षित निकल सकते है।
बॉण्ड कीमत और प्राप्ति (यील्ड) के मध्य संबंध:
इसमें, बॉण्ड की कीमत और बॉण्ड यील्ड अथवा ब्याज के मध्य नकारात्मक संबंध होता है; अर्थात जब बॉण्ड की कीमत बढ़ती है तो बॉण्ड यील्ड घटता है।
चूंकि, नेगेटिव यील्ड बॉण्ड एक ‘फिक्स्ड रेट इन्वेस्टमेंट’ होते हैं, और यही आंशिक रूप से बॉण्ड मूल्य और बॉण्ड यील्ड के बीच व्युत्क्रम संबंधों का कारण होता है।
- भविष्य में ब्याज दरों में वृद्धि की संभावना होने पर निवेशक अपने बॉण्ड को बेच सकते हैं और बाद में ऊँची दर वाले बॉण्ड को पुनः खरीद सकते है।
- इसके विपरीत, बॉण्ड निवेशक भविष्य में ब्याज दरों में कमी होने की संभावना होने पर बॉण्ड खरीद सकते है।
वर्तमान में नेगेटिव यील्ड बॉण्ड की मांग के प्रमुख कारक
- महामारी फैलने के बाद से वैश्विक केंद्रीय बैंकों द्वारा बड़ी मात्रा में नकदी प्रवाहित की गयी है, जिससे, इक्विटी, ऋण और वस्तुओं सहित विभिन्न परिसंपत्तियों की कीमतों में वृद्धि हुई है।
- कई निवेशक, इक्विटी में अपने जोखिम पोर्टफोलियो का बचाव करने हेतु नकारात्मक प्राप्ति देने वाले सरकारी ऋण में अस्थायी रूप से अपनी पूंजी लगा सकते हैं।
- यदि कोविड-19 महामारी की ताजा लहर से अर्थव्यवस्थाओं में और अधिक मंदी आती है, तो ब्याज दरों पर नकारात्मक दबाव पड़ सकता है, जिससे यील्ड में और भी कमी आ सकती है और इससे वर्तमान में जिन निवेशकों ने नेगेटिव यील्ड बॉण्ड में निवेश किया है, उन्हें लाभ हो सकता है।
प्रीलिम्स लिंक:
- नेगेटिव यील्ड बॉण्ड क्या हैं?
- बॉण्ड मूल्य और बॉण्ड यील्ड के बीच संबंध
मेंस लिंक:
वर्तमान में नेगेटिव यील्ड बॉण्ड लोकप्रियता क्यों बढ़ रही है? चर्चा कीजिए।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
विषय: समावेशी विकास तथा इससे उत्पन्न विषय।
कॉरपोरेट घरानों को बैंकिंग लाइसेंस देने के प्रस्ताव पर कड़ी आलोचना
संदर्भ:
भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा गठित एक आंतरिक कार्य समूह (Internal Working Group–IWG) की एक हालिया रिपोर्ट में दिए गए सुझावों की काफी आलोचना की जा रही है।
संबधित प्रकरण
भारतीय रिजर्व बैंक ने “भारतीय निजी क्षेत्र के बैंकों के स्वामित्व दिशानिर्देश और कॉर्पोरेट संरचना की समीक्षा” हेतु एक आंतरिक कार्य समूह (IWG) का गठन किया था। IWG द्वारा, हाल ही में अपनी रिपोर्ट सौंपी गयी है।
कार्य समूह की एक प्रमुख सिफारिश, बड़े कॉर्पोरेट या औद्योगिक घरानों को बैंकों के प्रवर्तक बनने की अनुमति दिए जाने के संबंध में थी
वर्तमान विवाद
- भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन और पूर्व डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने IWG के सुझाव की आलोचना करते हुए इसे ‘चौंकाने वाला’ बताया है।
- इनका मानना है, कि, सार्वजनिक क्षेत्र / सरकार के स्वामित्व वाले बैंकों के मौजूदा ढाँचे के लचर प्रशासन को औद्योगिक घरानों के स्वामित्व वाले अत्यधिक विवादित ढांचे के साथ प्रत्स्थापित करना, ‘छोटे-छोटे व्यय में किफायत करना और बडी रकम उडाना’ (penny wise pound foolish) होगा।
बड़े कॉर्पोरेट्स को निजी बैंक स्थापित करने की अनुमति देने संबधी सिफारिश की आलोचना का कारण
ऐतिहासिक रूप से, भारतीय रिजर्व बैंक का विचार रहा है, कि बैंकों के आदर्श स्वामित्व दर्जे को दक्षता, इक्विटी और वित्तीय स्थिरता के मध्य संतुलन को बढ़ावा देना चाहिए।
- निजी बैंकों की बड़ी भूमिका इसके जोखिमों से मुक्त नहीं होती है। वर्ष 2008 का वैश्विक वित्तीय संकट इस तथ्य को सही साबित करता है।
- मुख्य रूप से सरकारी स्वामित्व वाली बैंकिंग प्रणाली वित्तीय रूप से अधिक स्थिर मानी जाती है, क्योंकि संस्था के रूप में सरकार पर विश्वास होता है।
- विशेष रूप से, इस मामले में, बड़े कॉर्पोरेट्स को निजी बैंक खोलने की अनुमति देने के संबंधमें मुख्य चिंता का विषय ‘हितों का संघर्ष’ है, अथवा तकनीकी तौर पर ‘संबद्ध ऋण’ (Connected Lending) है।
‘संबद्ध ऋण’ (Connected Lending) क्या होते हैं?
‘संबद्ध ऋण’/ कनेक्टेड लेंडिंग एक ऐसी स्थिति होती है, जिसमे किसी बैंक का प्रवर्तक, खुद कर्जदार भी होता है। ऐसे में प्रवर्तक द्वारा जमाकर्ताओं के धन को अपने उपक्रमों में उपयोग करने की संभावना रहती है।
- बैंकिंग प्रणाली में कनेक्टेड लेंडिंग काफी लंबे समय से जारी है और आरबीआई इसे पकड़ पाने में हमेशा पीछे रहा है।
- आईसीआईसीआई बैंक, यस बैंक, डीएचएफएल आदि के हालिया प्रकरण, कनेक्टेड लेंडिंग के उदाहरण हैं।
- तथाकथित ऋणों की सदाबहार स्थिति (ever-greening of loans), जिसमे कर्जदार को पुराना ऋण चुकाने के लिए नया ऋण दिया जाता है, कनेक्टेड लेंडिंग का प्रारंभिक बिंदु होता है।
स्रोत: द हिंदू
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य
सरकार द्वारा 43 अन्य ऐप्स पर प्रतिबंध
सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा, अखंडता और संप्रभुता के लिए खतरे का हवाला देते हुए प्रमुख चीनी ऐप्स जैसे अलीसप्लायर (AliSuppliers), अलीएक्सप्रेस (AliExpress), अलीपे (Alipay) कैशियर, कैमकार्ड और डिंगटॉक सहित 43 और मोबाइल ऐप को ब्लाक कर दिया है।
इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) ने सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 69A के तहत 43 मोबाइल ऐप्स तक पहुंच को रोकने के लिए एक आदेश जारी किया गया है।
आईटी अधिनियम की धारा 69A , केंद्र सरकार को यह आदेश देने का अधिकार देती है कि देश की रक्षा, उसकी संप्रभुता और अखंडता, राज्य की सुरक्षा, विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों के हित में, लोक व्यवस्था या अपराध करने हेतु उकसाने से रोकने के लिए कुछ वेबसाइटों और कंप्यूटर संसाधनों तक पहुंच अवरुद्ध कर दी जाए।
दक्षिण एशियाई विश्वविद्यालय (SAU)
- वर्ष 2010 में स्थापित, भारत में स्थित यह एक अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय है।
- इसे दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (SAARC) के आठ सदस्य देशों द्वारा प्रायोजित किया जाता है।
- दक्षिण एशियाई विश्वविद्यालय (SAU) द्वारा प्रदान किए गए डिग्री और प्रमाणपत्र, राष्ट्रीय विश्वविद्यालयों / संस्थानों द्वारा दिए गए संबंधित डिग्री और प्रमाणपत्र के समान दर्जा रखते हैं।
सर छोटू राम
1881 में जन्मे, वह ब्रिटिश भारत में पंजाब प्रांत के एक प्रमुख राजनीतिज्ञ थे।
- उन्होंने भारतीय उपमहाद्वीप के उत्पीड़ित समुदायों के हित के लिए काम किया। इस उपलब्धि के लिए, उन्हें 1937 में नाइट की उपाधि प्रदान की गयी।
- वे नेशनल यूनियनिस्ट पार्टी के सह-संस्थापक थे।
- उनके प्रयासों से दो कृषि कानून लागू किये गए थे- 1934 का पंजाब ऋणग्रस्तता राहत अधिनियम तथा 1936 का पंजाब कर्जदार सुरक्षा अधिनियम। इन कानूनों ने किसानों को साहूकारों के चंगुल से मुक्त कराया और जमीन पर जोतदार के अधिकार को बहाल किया।
सहकार प्रज्ञा
- प्राथमिक सहकारी समितियों को आत्मनिर्भर भारत में बड़ी भूमिका निभाने में सहयोग करने के उद्देश्य से, सरकार द्वारा देश में ऐसी संस्थाओं से जुड़े किसानों के लिए एक अभिनव क्षमता निर्माण पहल ‘सहकार प्रज्ञा’ शुरू की गयी है।
- इसके तहत, देश के ग्रामीण क्षेत्रों में प्राथमिक सहकारी समितियों में मंत्रालय के तहत स्वायत्त निकाय राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम (NCDC) द्वारा सहकार प्रज्ञा के तहत प्रशिक्षित किया जाएगा।
- सहकार प्रज्ञा के तहत, ज्ञान, कौशल और संगठनात्मक क्षमताओं को स्थानांतरित करने के लिए पैंतालीस प्रशिक्षण मॉड्यूल तैयार किए गए हैं।










