HINDI INSIGHTS STATIC QUIZ 2020-2021
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Question 1 of 5
1. Question
संविधान संशोधन के बारे में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए।
- संविधान का अनुच्छेद 368 संविधान और उसकी प्रक्रिया में संशोधन करने के लिए संसद की शक्तियों से संबंधित है।
- संविधान संशोधन विधेयक केवल संसद में ही प्रस्तुत किया जा सकता है न कि राज्य विधानसभाओं में।
- राष्ट्रपति या तो संविधान संशोधन विधेयक पर अपनी सहमति रोक सकते हैं या पुनर्विचार के लिए उसे वापस भेज सकते हैं।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
Correct
उत्तर: c)
संविधान के भाग XX में अनुच्छेद 368 संविधान और इसकी प्रक्रिया में संशोधन करने के लिए संसद की शक्तियों से संबंधित है।
संसद के किसी भी सदन में संविधान संशोधन विधेयक प्रस्तुत किया जा सकता है न कि राज्य विधानसभाओं में।
विधेयक को मंत्री या निजी सदस्य द्वारा प्रस्तुत किया जा सकता है और उसे राष्ट्रपति की पूर्व अनुमति की आवश्यकता नहीं होती है।
यदि विधेयक संविधान के संघीय प्रावधानों में संशोधन से संबंधित है, तो इसे आधे राज्यों के विधानसभाओं द्वारा साधारण बहुमत से, अर्थात्, उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के बहुमत द्वारा अनुमोदित किया जाना चाहिए।
संसद के दोनों सदनों द्वारा विधिवत रूप से पारित होने और राज्य विधानसभाओं द्वारा अनुसमर्थित किए जाने के बाद, जहां आवश्यक हो, विधेयक को राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है।
राष्ट्रपति द्वारा विधेयक पर अपनी सहमति देना आवश्यक होता है। वह न तो विधेयक पर अपनी सहमति को रोक सकता है और न ही संसद के पुनर्विचार के लिए वापस कर सकता है।
Incorrect
उत्तर: c)
संविधान के भाग XX में अनुच्छेद 368 संविधान और इसकी प्रक्रिया में संशोधन करने के लिए संसद की शक्तियों से संबंधित है।
संसद के किसी भी सदन में संविधान संशोधन विधेयक प्रस्तुत किया जा सकता है न कि राज्य विधानसभाओं में।
विधेयक को मंत्री या निजी सदस्य द्वारा प्रस्तुत किया जा सकता है और उसे राष्ट्रपति की पूर्व अनुमति की आवश्यकता नहीं होती है।
यदि विधेयक संविधान के संघीय प्रावधानों में संशोधन से संबंधित है, तो इसे आधे राज्यों के विधानसभाओं द्वारा साधारण बहुमत से, अर्थात्, उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के बहुमत द्वारा अनुमोदित किया जाना चाहिए।
संसद के दोनों सदनों द्वारा विधिवत रूप से पारित होने और राज्य विधानसभाओं द्वारा अनुसमर्थित किए जाने के बाद, जहां आवश्यक हो, विधेयक को राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है।
राष्ट्रपति द्वारा विधेयक पर अपनी सहमति देना आवश्यक होता है। वह न तो विधेयक पर अपनी सहमति को रोक सकता है और न ही संसद के पुनर्विचार के लिए वापस कर सकता है।
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Question 2 of 5
2. Question
निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए।
- किसी भी मूल अधिकार के साथ असंगत या उसके अल्पीकरण से संबंधित सभी विधियाँ शून्य हो जाती हैं।
- राष्ट्रपति या राज्य के राज्यपालों द्वारा जारी किए गए अध्यादेशों को किसी भी मूल अधिकार के उल्लंघन के आधार पर न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है।
- संवैधानिक संशोधन एक कानून नहीं है और इसलिए इसे उच्चतम न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
Correct
उत्तर: a)
अनुच्छेद 13 घोषित करता है कि किसी भी मूल अधिकारों से असंगत या उनका अल्पीकरण करने वाली विधियाँ शून्य हो जाएँगी।
अनुच्छेद 13 में ‘विधि‘ शब्द को एक व्यापक अर्थ दिया गया है ताकि निम्नलिखित को शामिल किया जा सके:
(a) संसद या राज्य विधानसभाओं द्वारा स्थायी विधियाँ;
(b) राष्ट्रपति या राज्य के राज्यपालों द्वारा जारी किए गए अध्यादेश जैसे अस्थायी विधियाँ;
(c) आदेश, उप-कानून, नियम, विनियमन या अधिसूचना जैसी प्रत्यायोजित विधियों (कार्यकारी कानून) जैसे वैधानिक उपकरण; तथा
(d) विधियों के गैर-विधायी स्रोत, अर्थात्, विधि का बल रखने वाला रूढ़ि या प्रथा।
इसके अलावा, अनुच्छेद 13 घोषित करता है कि संविधान संशोधन विधि नहीं है और इसलिए इसे चुनौती नहीं दी जा सकती है। हालांकि, केसवानंद भारती मामले (1973) में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संवैधानिक संशोधन को इस आधार पर चुनौती दी जा सकती है कि यह किसी मूल अधिकार का उल्लंघन करता है जो संविधान के ‘मूल ढांचे’ का एक भाग है और इसलिए, इसे शून्य घोषित किया जा सकता है।
Incorrect
उत्तर: a)
अनुच्छेद 13 घोषित करता है कि किसी भी मूल अधिकारों से असंगत या उनका अल्पीकरण करने वाली विधियाँ शून्य हो जाएँगी।
अनुच्छेद 13 में ‘विधि‘ शब्द को एक व्यापक अर्थ दिया गया है ताकि निम्नलिखित को शामिल किया जा सके:
(a) संसद या राज्य विधानसभाओं द्वारा स्थायी विधियाँ;
(b) राष्ट्रपति या राज्य के राज्यपालों द्वारा जारी किए गए अध्यादेश जैसे अस्थायी विधियाँ;
(c) आदेश, उप-कानून, नियम, विनियमन या अधिसूचना जैसी प्रत्यायोजित विधियों (कार्यकारी कानून) जैसे वैधानिक उपकरण; तथा
(d) विधियों के गैर-विधायी स्रोत, अर्थात्, विधि का बल रखने वाला रूढ़ि या प्रथा।
इसके अलावा, अनुच्छेद 13 घोषित करता है कि संविधान संशोधन विधि नहीं है और इसलिए इसे चुनौती नहीं दी जा सकती है। हालांकि, केसवानंद भारती मामले (1973) में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संवैधानिक संशोधन को इस आधार पर चुनौती दी जा सकती है कि यह किसी मूल अधिकार का उल्लंघन करता है जो संविधान के ‘मूल ढांचे’ का एक भाग है और इसलिए, इसे शून्य घोषित किया जा सकता है।
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Question 3 of 5
3. Question
भारत के संविधान के अनुसार, संघ की कार्यपालिका में शामिल हैं
- भारत का राष्ट्रपति
- भारत का उपराष्ट्रपति
- केंद्रीय मंत्रिपरिषद
- भारत का महान्यायवादी
सही उत्तर कूट का चयन कीजिए:
Correct
उत्तर: d)
संविधान के भाग V में अनुच्छेद 52 से 78 संघ की कार्यपालिका से संबंधित है। केंद्रीय कार्यपालिका में राष्ट्रपति, उप-राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मंत्रिपरिषद और भारत के महान्यायवादी शामिल होते हैं।
Incorrect
उत्तर: d)
संविधान के भाग V में अनुच्छेद 52 से 78 संघ की कार्यपालिका से संबंधित है। केंद्रीय कार्यपालिका में राष्ट्रपति, उप-राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मंत्रिपरिषद और भारत के महान्यायवादी शामिल होते हैं।
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Question 4 of 5
4. Question
मुख्यमंत्री की नियुक्ति के बारे में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए।
- संविधान में मुख्यमंत्री के चयन और नियुक्ति की विशिष्ट प्रक्रिया का वर्णन है।
- संविधान के अनुसार, मुख्यमंत्री को निम्न सदन से चुना जाना चाहिए।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही नहीं है/हैं?
Correct
उत्तर: c)
संविधान में मुख्यमंत्री के चयन और नियुक्ति के लिए कोई विशेष प्रक्रिया का वर्णन नहीं है। अनुच्छेद 164 केवल यह कहता है कि मुख्यमंत्री को राज्यपाल द्वारा नियुक्त किया जाएगा।
संविधान के अनुसार, मुख्यमंत्री राज्य विधानमंडल के दोनों सदनों में से किसी का सदस्य हो सकता है। आमतौर पर मुख्यमंत्रियों को निम्न सदन (विधान सभा) से चुना जाता है, लेकिन, कई अवसरों पर उच्च सदन (विधान परिषद) के एक सदस्य को मुख्यमंत्री के रूप में भी नियुक्त किया गया है।
Incorrect
उत्तर: c)
संविधान में मुख्यमंत्री के चयन और नियुक्ति के लिए कोई विशेष प्रक्रिया का वर्णन नहीं है। अनुच्छेद 164 केवल यह कहता है कि मुख्यमंत्री को राज्यपाल द्वारा नियुक्त किया जाएगा।
संविधान के अनुसार, मुख्यमंत्री राज्य विधानमंडल के दोनों सदनों में से किसी का सदस्य हो सकता है। आमतौर पर मुख्यमंत्रियों को निम्न सदन (विधान सभा) से चुना जाता है, लेकिन, कई अवसरों पर उच्च सदन (विधान परिषद) के एक सदस्य को मुख्यमंत्री के रूप में भी नियुक्त किया गया है।
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Question 5 of 5
5. Question
भारत की संसद के किसी भी सदन में विपक्ष के नेता के बारे में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए।
- विपक्ष के नेता के पद को ‘विपक्षी नेता, वेतन और भत्ता अधिनियम, 1977′ के माध्यम से वैधानिक मान्यता प्राप्त हुई है।
- जब लोकसभा में किसी भी दल को विपक्षी दल बनाने और विपक्ष के नेता को नामित करने के लिए आवश्यक सीटें प्राप्त नहीं होती हैं, तब इस मामले का निर्धारण भारत के राष्ट्रपति द्वारा किया जाता है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
Correct
उत्तर: a)
विपक्ष का नेता वह नेता होता है जो भारत की संसद के किसी भी सदन में आधिकारिक रूप से विपक्ष का नेतृत्व करता है। किसी भी सदन में “आधिकारिक विपक्ष” की स्थिति का दावा करने के लिए किसी दल को लोकसभा में 55 सीटें (10%) और इसी तरह राज्यसभा की 25 (10%) सीटें प्राप्त करना होता है।
इसे ‘विपक्षी नेता, वेतन और भत्ता अधिनियम, 1977’ के माध्यम से वैधानिक मान्यता प्राप्त हुई है, जो “विपक्ष के नेता” शब्द को लोकसभा या राज्य सभा के उस सदस्य के रूप में परिभाषित करता है।
‘विपक्षी नेता, वेतन और भत्ता अधिनियम, 1977’ के अनुसार, जिसके द्वारा पद को आधिकारिक और वैधानिक दर्जा प्राप्त है। बहुमत की आवश्यकता सदन के प्रमुखों (अध्यक्ष और सभापति) द्वारा निर्धारित की जाती है।
Incorrect
उत्तर: a)
विपक्ष का नेता वह नेता होता है जो भारत की संसद के किसी भी सदन में आधिकारिक रूप से विपक्ष का नेतृत्व करता है। किसी भी सदन में “आधिकारिक विपक्ष” की स्थिति का दावा करने के लिए किसी दल को लोकसभा में 55 सीटें (10%) और इसी तरह राज्यसभा की 25 (10%) सीटें प्राप्त करना होता है।
इसे ‘विपक्षी नेता, वेतन और भत्ता अधिनियम, 1977’ के माध्यम से वैधानिक मान्यता प्राप्त हुई है, जो “विपक्ष के नेता” शब्द को लोकसभा या राज्य सभा के उस सदस्य के रूप में परिभाषित करता है।
‘विपक्षी नेता, वेतन और भत्ता अधिनियम, 1977’ के अनुसार, जिसके द्वारा पद को आधिकारिक और वैधानिक दर्जा प्राप्त है। बहुमत की आवश्यकता सदन के प्रमुखों (अध्यक्ष और सभापति) द्वारा निर्धारित की जाती है।