विषय – सूची:
सामान्य अध्ययन-II
1. महाराष्ट्र द्वारा ‘केंद्रीय जांच ब्यूरो’ को दी गयी ‘आम सहमति’ वापस ली गयी
2. श्रीलंका के संविधान का 20वां संशोधन पारित
3. भ्रष्टाचार-निरोधी कार्यसमूह (ACWG)
सामान्य अध्ययन-III
1. ‘सरकारी प्रतिभूतियाँ’ (G-Sec)
2. मोनोक्लोनल एंटीबॉडी (mAbs)
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य
1. CPI-IW के लिए आधार वर्ष में संशोधन
2. दोषसिद्धि हेतु यौन-उत्पीड़ित की गवाही की पर्याप्त
3. टैंकरोधी निर्देशित प्रक्षेपास्त्र नाग
4. ट्यूबरियल लार ग्रंथियां
5. “लाइफ इन मिनिएचर” परियोजना
सामान्य अध्ययन- II
विषय: सांविधिक, विनियामक और विभिन्न अर्द्ध-न्यायिक निकाय।
महाराष्ट्र द्वारा ‘केंद्रीय जांच ब्यूरो’ को दी गयी ‘आम सहमति’ वापस ली गयी
संदर्भ:
हाल ही में, महाराष्ट्र सरकार द्वारा राज्य में मामलों की जांच के लिए केंद्रीय जांच ब्यूरो (Central Bureau of Investigation– CBI) को दी गई ‘आम सहमति’ (General Consent) वापस ले ली गयी है।
सहमति की आवश्यकता
केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI), दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम (Delhi Special Police Establishment Act) के अंतर्गत कार्य करती है। अधिनियम के अनुसार- किसी राज्य में केंद्रीय जांच ब्यूरो के लिए किसी मामले की जांच करने हेतु, उस राज्य की सहमति अनिवार्य है।
‘सहमति’ दो प्रकार की होती है:
- केस-विशिष्ट सहमति (Case-specific consent)
- आम सहमति (General consent)
चूंकि, सीबीआई का अधिकार क्षेत्र केवल केंद्र सरकार के विभागों और कर्मचारियों तक सीमित होता है, हालांकि, यह किसी राज्य में राज्य सरकार के कर्मचारियों अथवा किसी हिंसक अपराध से जुड़े मामले की जांच उस राज्य द्वारा सहमति दिए जाने के पश्चात कर सकती है।
आम तौर पर, सीबीआई को राज्य में केंद्र सरकार के कर्मचारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों की निर्बाध जांच करने में मदद करने हेतु संबधित राज्य द्वारा आम सहमति (General consent) प्रदान की जाती है।
सहमति वापस लेने का तात्पर्य
- इसका सीधा सा अर्थ है कि राज्य सरकार द्वारा अनुमति नहीं दिए जाने पर, सीबीआई अधिकारी, राज्य में प्रवेश करने पर पुलिस अधिकारी के रूप में प्राप्त शक्तियों का प्रयोग नहीं कर सकेंगे।
- महाराष्ट्र सरकार के इस निर्णय का अर्थ है, कि महाराष्ट्र में दर्ज होने वाले प्रत्येक मामले की जांच के लिए सीबीआई को अब राज्य सरकार से सहमति लेनी होगी।
किस प्रावधान के तहत आम सहमति वापस ली जा सकती है?
दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम, 1946 की धारा 6 द्वारा प्रदत्त शक्तियों के तहत, राज्य सरकारें सीबीआई को दी जाने वाली ‘आम सहमति’ वापस ले सकती हैं।
आम सहमति की वापसी से सीबीआई की जांच पर प्रभाव
- राज्य सरकार द्वारा ‘आम सहमति’ वापस लिए जाने से, पहले के मामलों में चल रही जांच पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।
- इसके अलावा, देश के अन्य राज्यों में मामला दर्ज होने पर, जिन राज्यों में ‘आम सहमति’ जारी है, तथा मामले से संबंधित व्यक्ति यदि उस राज्य में, जहाँ आम सहमति वापस ले ली गई है, ठहरे हुए है, तो सीबीआई इन राज्यों में भी अपनी जांच कर सकती है।
प्रीलिम्स लिंक:
- सीबीआई और इसकी स्थापना
- दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम के प्रमुख प्रावधान
- आम सहमति क्या होती है?
- राज्यों द्वारा आम सहमति वापस लेने के प्रभाव
मेंस लिंक:
क्या आम सहमति वापस लेने तात्पर्य यह हो सकता है कि सीबीआई अब किसी मामले की जांच नहीं कर सकती? चर्चा कीजिए।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
विषय: भारत एवं उसके पड़ोसी- संबंध।
श्रीलंका के संविधान का 20वां संशोधन पारित
संदर्भ:
हाल ही में, श्रीलंका की संसद ने दो तिहाई बहुमत के साथ संविधान के 20वें संशोधन को पारित कर दिया।
20वें संशोधन की प्रमुख विशेषताएं
- इस संशोधन के द्वारा कार्यकारी राष्ट्रपति की शक्तियों में विस्तार किया गया है तथा अधिक प्रतिरक्षा प्रदान की गयी है।
- 20वें संशोधन द्वारा, वर्ष 2015 में पारित किये गए 19वें संशोधन को निरस्त कर दिया गया है। 19वें संविधान संशोधन के द्वारा राष्ट्रपति को प्राप्त शक्तियों को कम करके संसद को ज्यादा शक्तिशाली बनाया गया था।
- इस नए संशोधन के पश्चात प्रधान मंत्री की भूमिका मात्र नाममात्र की रह गयी है।
19वे संशोधन को लागू करने के कारण
श्रीलंकाई संविधान में 18वें संशोधन द्वारा राष्ट्रपति को काफी शक्तिशाली बना दिया गया था, 19वे संशोधन को लागू करने का मुख्य उद्देश्य राष्ट्रपति पद की शक्तियों को कम करके संसद को अधिक शक्तियां प्रदान करना था।
18वें संशोधन के द्वारा निम्नलिखित मुख्य चार परिवर्तन किये गए थे:
- किसी व्यक्ति के राष्ट्रपति पद पर निर्वाचन हेतु निर्धारित सीमा समाप्त कर दी गयी;
- दस सदस्यीय संवैधानिक परिषद के स्थान पर पांच सदस्यीय संसदीय परिषद की स्थापना की गयी;
- स्वतंत्र आयोगों को राष्ट्रपति के अधीन लाया गया; तथा,
- इसके अंतर्गत राष्ट्रपति को तीन महीनों में एक बार संसद में उपस्थित होने के लिए आवश्यक किया गया तथा संसद में मतदान के अतिरिक्त, संसद-सदस्यों को प्राप्त सभी विशेषाधिकार, प्रतिरक्षा तथा शक्तियां प्रदान की गयी।
स्रोत: द हिंदू
विषय: महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थान, संस्थाएँ और मंच- उनकी संरचना, अधिदेश।
भ्रष्टाचार-निरोधी कार्यसमूह (ACWG)
(The Anti-Corruption Working Group)
संदर्भ:
सऊदी अरब की अध्यक्षता में पहली बार G-20 भ्रष्टाचार-निरोधी कार्यसमूह (Anti-Corruption Working Group – ACWG) की मंत्रिस्तरीय बैठक आयोजित की जा रही है।
भ्रष्टाचार-निरोधी कार्यसमूह के बारे में:
भ्रष्टाचार-निरोधी कार्यसमूह (ACWG) का गठन वर्ष 2010 में टोरंटो शिखर सम्मेलन के दौरान G20 के नेताओं द्वारा किया गया था।
- यह, G20 भ्रष्टाचार-निरोधी कार्य योजनाओं को अपडेट करने और कार्यान्वित करने के लिए जिम्मेदार है।
- यह G20 नेताओं के प्रति उत्तरदायी है।
- ACWG, आर्थिक सहयोग और विकास संगठन, संयुक्त राष्ट्र, विश्व बैंक, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और वित्तीय कार्रवाई कार्य बल सहित प्रासंगिक अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के कार्यो के साथ समन्वय एवं सहयोग करता है।
G20 समूह के बारे में:
- G20, विश्व की सबसे बड़ी और सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था वाले देशों का समूह है। इस समूह इस समूह का विश्व की 85 प्रतिशत जीडीपी पर नियंत्रण है, तथा यह विश्व की दो-तिहाई जनसख्या का प्रतिनिधित्व करता है।
- G20 शिखर सम्मेलन को औपचारिक रूप से ‘वित्तीय बाजार तथा वैश्विक अर्थव्यवस्था शिखर सम्मेलन’ के रूप में जाना जाता है।
G20 की उत्पत्ति:
- वर्ष 1997-98 के एशियाई वित्तीय संकट के बाद, यह स्वीकार किया गया था कि उभरती हुई प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के लिए अंतरराष्ट्रीय वित्तीय प्रणाली पर चर्चा के लिए भागीदारी को आवश्यकता है।
- वर्ष 1999 में, G7 के वित्त मंत्रियों द्वारा G20 वित्त मंत्रियों तथा केंद्रीय बैंक गवर्नरों की एक बैठक के लिए सहमत व्यक्त की गयी।
G20 के पूर्ण सदस्य:
अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, कनाडा, चीन, फ्रांस, जर्मनी, भारत, इंडोनेशिया, इटली, जापान, मैक्सिको, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, दक्षिण कोरिया, तुर्की, यूनाइटेड किंगडम, संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोपीय संघ।
‘G20 +’ क्या है?
G20 विकासशील राष्ट्र, जिन्हें G21 / G23 / G20 + भी कहा जाता है, 20 अगस्त, 2003 को स्थापित किया गया विकासशील देशों का एक समूह है। यह G20 प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं से भिन्न है।
- G20 + की उत्पत्ति, सितंबर 2003 में मैक्सिको के कैनकुन शहर में आयोजित विश्व व्यापार संगठन के पांचवे मंत्रिस्तरीय सम्मेलन में हुई थी।
- इसकी स्थापना का आधार 6 जून 2003 को भारत, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका के विदेश मंत्रियों द्वारा हस्ताक्षरित ब्रासीलिया घोषणा है।
- ‘G20 +’ विश्व की 60% आबादी, 26% कृषि निर्यात और 70% किसानों का प्रतिनिधित्व करता है।
प्रीलिम्स लिंक:
- G20 बनाम G20 + बनाम G7 बनाम G8
- G20 के उद्देश्य तथा इसके उप-समूह
- सदस्य देशों के भौगोलिक स्थिति का अवलोकन
- ब्रासीलिया घोषणा, 2003 का अवलोकन
- वर्ष 2020 में G20 शिखर सम्मलेन की मेजबानी कौन कर रहा है?
- भ्रष्टाचार निरोधी कार्यसमूह की स्थापना कब की गई थी?
मेंस लिंक:
क्या आपको लगता है कि हाल ही में जी 20 शिखर सम्मेलन मात्र वार्ता हेतु मंच बन कर रह गए हैं? आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिए।
स्रोत: पीआईबी
सामान्य अध्ययन- III
विषय: समावेशी विकास तथा इससे उत्पन्न विषय।
‘सरकारी प्रतिभूतियाँ’ (G-Sec)
(Govt Securities)
संदर्भ:
हाल ही में, भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा खुले बाजार परिचालन (Open Market Operations– OMO) के तहत 20,000 करोड़ रुपए की कुल राशि की सरकारी प्रतिभूतियों (Government securities) को खरीदने का फैसला लेने संबंधी घोषणा की गयी है।
‘सरकारी प्रतिभूतियाँ’ क्या होती हैं?
सरकारी प्रतिभूति (Government Security G-Sec), केंद्र सरकार अथवा राज्य सरकारों द्वारा जारी किये गए ‘व्यापार योग्य उपकरण’ (Tradeable Instrument) होती हैं।
प्रमुख विशेषताऐं:
- यह सरकार के ऋण दायित्वों को स्वीकार करती है।
- ऐसी प्रतिभूतियां, अल्पकालिक (ट्रेजरी बिल – एक वर्ष से कम अवधि की मूल परिपक्वता सहित) अथवा दीर्घकालिक (सरकारी बांड या दिनांकित प्रतिभूतियां – एक वर्ष या अधिक अवधि की मूल परिपक्वता सहित) दोनों प्रकार की हो सकती हैं।
- केंद्र सरकार, ट्रेजरी बिल और सरकारी बॉन्ड या दिनांकित प्रतिभूतियां, दोनों को जारी करती है।
- राज्य सरकारें केवल बांड अथवा दिनांकित प्रतिभूतियाँ जारी करती हैं, जिन्हें राज्य विकास ऋण कहा जाता है।
- चूंकि इन्हें सरकार द्वारा जारी किया जाता है, अतः इनके डिफ़ॉल्ट होने का कोई जोखिम नहीं होता है, और इसलिए, उन्हें जोखिम-मुक्त सुरक्षित उपकरण (Gilt-Edged Instruments) कहा जाता है।
- विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) को समय-समय पर निर्धारित सीमा के भीतर G-Secs बाजार में भागीदारी हेतु अनुमति दी गयी है।
सरकारी प्रतिभूतियां अस्थिर क्यों मानी जाती हैं?
द्वितीयक बाजार में सरकारी प्रतिभूतियों (G-Secs) की कीमतों में तेजी से उतार-चढ़ाव होता है। इनकी कीमतों को प्रभावित करने वाले कारक निम्नलिखित होते हैं:
- प्रतिभूतियों की मांग और आपूर्ति।
- अर्थव्यवस्था के भीतर ब्याज दरों में होने वाले परिवर्तन तथा अन्य वृहत-आर्थिक कारक, जैसे तरलता और मुद्रास्फीति।
- अन्य बाजारों, जैसे वित्त, विदेशी मुद्रा, ऋण और पूंजी बाजार में होने वाला विकास।
- अंतर्राष्ट्रीय बॉन्ड बाजारों, विशेष रूप से यूएस ट्रेजरीज़ में होने वाला विकास।
- RBI द्वारा किये जाने वाले नीतिगत परिवर्तन, जैसे रेपो दरों में बदलाव, नकदी-आरक्षित अनुपात और खुले बाजार के परिचालन।
प्रीलिम्स लिंक:
- सरकारी प्रतिभूतियां (G-Secs) क्या होती हैं?
- अल्पकालिक और दीर्घकालिक प्रतिभूतियां
- G-Secs जारी करने के लिए केंद्र और राज्यों की शक्तियां
- RBI की भूमिका।
- इन प्रतिभूतियों की कीमतों को प्रभावित करने वाले कारक
मेंस लिंक:
सरकारी प्रतिभूतियां (G-Secs) क्या होती हैं? इनके महत्व पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: द हिंदू
विषय: सूचना प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष, कंप्यूटर, रोबोटिक्स, नैनो-टैक्नोलॉजी, बायो-टैक्नोलॉजी और बौद्धिक संपदा अधिकारों से संबंधित विषयों के संबंध में जागरुकता।
मोनोक्लोनल एंटीबॉडी (mAbs)
(Monoclonal Antibodies)
चर्चा का कारण
हाल ही में, सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (Serum Institute of India– SII) और इंटरनेशनल एड्स वैक्सीन इनिशिएटिव (IAVI) द्वारा SARS-CoV-2 को अप्रभावी करने वाली मोनोक्लोनल एंटीबॉडी (Monoclonal Antibodies– mAbs) विकसित करने हेतु फार्मास्यूटिकल क्षेत्र की प्रमुख कंपनी मर्क (Merck) के एक समझौते की घोषणा की गयी है।
मोनोक्लोनल एंटीबॉडी (mAbs) क्या होती हैं?
- ये मानव-निर्मित प्रोटीन होती हैं जो प्रतिरक्षा प्रणाली में मानव एंटीबॉडी की भांति कार्य करती है।
- इन एंटीबॉडीज को IAVI तथा स्क्रिप्स रिसर्च (Scripps Research) द्वारा COVID-19 महामारी से निपटने के लिए ‘नवप्रवर्तक हस्तक्षेप’ (Innovative Interventions) के रूप में संयुक्त रूप से विकसित किया गया था।
प्रीलिम्स लिंक:
- एंटीबॉडी क्या होती हैं?
- एंटीजन क्या होते हैं?
- इम्यूनिटी सिस्टम हमारे शरीर में किस प्रकार कार्य करता है?
- मोनोक्लोनल एंटीबॉडी क्या हैं?
- पॉलीक्लोनल एंटीबॉडी क्या हैं?
स्रोत: द हिंदू
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य
CPI-IW के लिए आधार वर्ष में संशोधन
श्रम और रोजगार मंत्रालय द्वारा औद्योगिक श्रमिकों के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (Consumer Price Index for Industrial Workers: CPI-IW) के लिए आधार वर्ष को 2001 से संशोधित करके 2016 किया गया है।
- यह संशोधन, लक्षित आबादी के नवीनतम उपभोग स्वरूप का प्रतिनिधित्व करने वाली नई शृंखला के साथ CPI-IW का संशोधन आने वाले समय में श्रमिकों के हित अनुकूल साबित होगा।
- इस संशोधन में बदलते हुए उपभोग पैटर्न को प्रतिबिंबित करने के लिए भोजन और पेय पदार्थों के भारांक को कम करते हुए स्वास्थ्य, शिक्षा, मनोरंजन और अन्य विविध खर्चों पर अधिक भारांक दिया गया है।
CPI-IW का उपयोग: इसका उपयोग खुदरा कीमतों में मुद्रास्फीति को मापने के लिए किया जाता है। इसके अतिरिक्त, इसका उपयोग सरकारी कर्मचारियों और औद्योगिक श्रमिकों के महंगाई भत्ते (Dearness Allowance- DA) को विनियमित करने तथा अनुसूचित नौकरियों में न्यूनतम मजदूरी को संशोधित करने के लिए भी किया जाता है।
दोषसिद्धि हेतु यौन-उत्पीड़ित की गवाही की पर्याप्त
हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय दिया है कि:
- यौन-हमलावर को दोषी ठहराने के लिए, यौन-उत्पीड़न की शिकार महिला दिया गया एकमात्र और विश्वसनीय साक्ष्य पर्याप्त है।
- यौन उत्पीड़न की शिकार कोई महिला, अपराध में सहभागी नहीं होती है, बल्कि वह किसी अन्य व्यक्ति की वासना का शिकार होती है और इसलिए, उसके द्वारा पेश गए साक्ष्य को अन्य अपराधों में दिए गए सबूतों की भांति संदेहात्मक मानते हुए जाँच करने की आवश्यकता नहीं है।
पृष्ठभूमि
न्यायालय ने यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण संबंधी अधिनियम (Protection of Children from Sexual Offences – POCSO Act) के तहत तमिलनाडु में एक 13 वर्षीय बच्चे के यौन-उत्पीड़न करने के दोषी पाए गए एक व्यक्ति को दी गई सजा की पुष्टि करते हुए अपना निर्णय दिया था।
टैंकरोधी निर्देशित प्रक्षेपास्त्र नाग
(Anti-tank guided missile (ATGM), NAG)
हाल ही में, DRDO द्वारा तीसरी पीढ़ी के टैंकरोधी निर्देशित प्रक्षेपास्त्र (Anti-tank guided missile –ATGM) नाग का पोखरण परीक्षण अड्डे पर अंतिम परीक्षण किया गया।
- प्रक्षेपास्त्र, समग्र और प्रतिक्रियाशील कवच से लैस सभी एमबीटी को नष्ट करने के लिए एक पैसिव होमिंग गाइडेंस उपकरण के साथ-साथ ‘मारो और भूल जाओ’ तथा ‘उच्च हमले’ की क्षमताओं से लैस है।
- नाग प्रक्षेपास्त्र वाहक एनएएमआईसीए एक बीएमपी-IIआधारित प्रणाली है जिसमें जल एवं जमीन दोनों पर चलने की क्षमता है।
- रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) द्वारा स्वदेशी रूप से विकसित, नाग ATGM को भूमि के साथ-साथ वायु-आधारित प्लेटफार्मों से लॉन्च किया जा सकता है।
ट्यूबरियल लार ग्रंथियां
(Tubarial salivary glands)
ये इंसान के गले के ऊपरी हिस्से में पाई जाने वाली लार ग्रन्थियों का एक समूह है।
- इन लार ग्रन्थियों खोज, हाल ही में, नीदरलैंड के वैज्ञानिकों द्वारा की गयी है।
- वैज्ञानिकों का मानना है कि यह अंग नाक के लूब्रिकेशन में मदद करता हैं।
- यह खोज कैंसर के इलाज के लिए महत्वपूर्ण हो सकती है।
- अब तक, मानव शरीर में तीन बड़ी लार ग्रंथियां ज्ञात थीं: एक जीभ के नीचे, एक जबड़े के नीचे और एक गाल के पीछे।
“लाइफ इन मिनिएचर” परियोजना
(“Life in Miniature” project)
- यह संस्कृति मंत्रालय के नई दिल्ली स्थित राष्ट्रीय संग्रहालय और गूगल आर्ट्स एंड कल्चर की संयुक्त परियोजना है।
- नई दिल्ली स्थित राष्ट्रीय संग्रहालय से सैकड़ों लघु चित्रों को “लाइफ इन मिनिएचर” प्रोजेक्ट के माध्यम से दुनिया भर के लोग ऑनलाइन देख सकते हैं