HINDI INSIGHTS STATIC QUIZ 2020-2021
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Question 1 of 5
1. Question
मध्य भारतीय और राजस्थानी चित्रकला शैली के प्रमुख सामान्य विषय क्या हैं?
Correct
उत्तर: a)
मुगल चित्रकला के विपरीत जो मुख्य रूप से धर्मनिरपेक्ष है, मध्य भारत, राजस्थानी और पहाड़ी क्षेत्र की चित्रकला भारतीय परंपराओं से गहराई से जुड़ी हुई है। इसने भारतीय महाकाव्यों, पुराणों जैसे धार्मिक ग्रंथों, संस्कृत में प्रेम कविताओं और अन्य भाषाओं, भारतीय लोक-विद्या और संगीत विषयों से प्रेरणा प्राप्त की है।
वैष्णववाद, शैववाद और शक्ति पंथ ने इन स्थानों की चित्रात्मक कला पर काफी प्रभाव डाला। इनमें कृष्ण पंथ सबसे लोकप्रिय था जिसने पाटीदारों और कलाकारों को प्रेरित किया।
Incorrect
उत्तर: a)
मुगल चित्रकला के विपरीत जो मुख्य रूप से धर्मनिरपेक्ष है, मध्य भारत, राजस्थानी और पहाड़ी क्षेत्र की चित्रकला भारतीय परंपराओं से गहराई से जुड़ी हुई है। इसने भारतीय महाकाव्यों, पुराणों जैसे धार्मिक ग्रंथों, संस्कृत में प्रेम कविताओं और अन्य भाषाओं, भारतीय लोक-विद्या और संगीत विषयों से प्रेरणा प्राप्त की है।
वैष्णववाद, शैववाद और शक्ति पंथ ने इन स्थानों की चित्रात्मक कला पर काफी प्रभाव डाला। इनमें कृष्ण पंथ सबसे लोकप्रिय था जिसने पाटीदारों और कलाकारों को प्रेरित किया।
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Question 2 of 5
2. Question
चित्रकला की अपभ्रंश शैली की विशेषताएं निम्नलिखित में से कौनसी हैं
- जैन धर्म इस चित्रकला का मुख्य विषय था।
- मानव चित्रण में तीखी नाक और दोहरी ठुड्डी (Double chin) का चित्रण किया गया है।
- पशु और पक्षियों की अनुपस्थिति थी
सही उत्तर कूट का चयन कीजिए:
Correct
उत्तर: b)
चित्रकला की अपभ्रंश शैली
यह शैली की उत्पत्ति गुजरात और राजस्थान के मेवाड़ क्षेत्र में हुई थी। यह 11वीं से 15वीं शताब्दी के दौरान पश्चिमी भारत में चित्रकला की एक प्रमुख शैली थी। इन चित्रों के सबसे सामान्य विषय जैन थे और बाद के समय में वैष्णव शैली में भी इसे अपनाया गया था।
चित्रों में चित्रित मानव आकृतियों की विशेषताओं में मछली के आकार की उभरी हुई आँखों; तीखी नाक और दोहरी ठुड्डी (Double chin) को चित्रित किया गया है।
चित्रों में पशु और पक्षियों के चित्रों को खिलौने के रूप में दर्शाया गया है। सबसे प्रसिद्ध उदाहरण 15वीं शताब्दी के कल्पसूत्र और कालकाचार्य कथा हैं।
Incorrect
उत्तर: b)
चित्रकला की अपभ्रंश शैली
यह शैली की उत्पत्ति गुजरात और राजस्थान के मेवाड़ क्षेत्र में हुई थी। यह 11वीं से 15वीं शताब्दी के दौरान पश्चिमी भारत में चित्रकला की एक प्रमुख शैली थी। इन चित्रों के सबसे सामान्य विषय जैन थे और बाद के समय में वैष्णव शैली में भी इसे अपनाया गया था।
चित्रों में चित्रित मानव आकृतियों की विशेषताओं में मछली के आकार की उभरी हुई आँखों; तीखी नाक और दोहरी ठुड्डी (Double chin) को चित्रित किया गया है।
चित्रों में पशु और पक्षियों के चित्रों को खिलौने के रूप में दर्शाया गया है। सबसे प्रसिद्ध उदाहरण 15वीं शताब्दी के कल्पसूत्र और कालकाचार्य कथा हैं।
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Question 3 of 5
3. Question
नाट्य शास्त्र के विषयों में शामिल है/हैं
- नाटकीय रचना
- संगीत रचना
- रस ‘सिद्धांत
सही उत्तर कूट का चयन कीजिए:
Correct
उत्तर: c)
नाट्य शास्त्र में प्रदर्शन कला का वर्णन करने वाले कुल 6000 काव्यात्मक छंदों के कुल 36 अध्याय हैं। ग्रंथ द्वारा कवर किए गए विषयों में नाटकीय रचना, एक नाटक की संरचना और इसे प्रदर्शित करने के लिए एक मंच का निर्माण, अभिनय की शैलियां, शरीर के संचालन, मेकअप और वेशभूषा, कला निर्देशक की भूमिका और लक्ष्य, संगीत, संगीत वाद्ययंत्र और कला प्रदर्शन के साथ संगीत का एकीकरण शामिल हैं।
नाट्य शास्त्र कला से संबंधित एक प्राचीन विश्वकोश ग्रंथ के रूप में प्रसिद्ध है, जिसने भारत में नृत्य, संगीत और साहित्यिक परंपराओं को प्रभावित किया है। यह अपने सौंदर्यवादी “रस” सिद्धांत के लिए भी प्रसिद्ध है, जो यह दावा करता है कि मनोरंजन प्रदर्शन कला का एक वांछित प्रभाव है, लेकिन प्राथमिक लक्ष्य नहीं है।
Incorrect
उत्तर: c)
नाट्य शास्त्र में प्रदर्शन कला का वर्णन करने वाले कुल 6000 काव्यात्मक छंदों के कुल 36 अध्याय हैं। ग्रंथ द्वारा कवर किए गए विषयों में नाटकीय रचना, एक नाटक की संरचना और इसे प्रदर्शित करने के लिए एक मंच का निर्माण, अभिनय की शैलियां, शरीर के संचालन, मेकअप और वेशभूषा, कला निर्देशक की भूमिका और लक्ष्य, संगीत, संगीत वाद्ययंत्र और कला प्रदर्शन के साथ संगीत का एकीकरण शामिल हैं।
नाट्य शास्त्र कला से संबंधित एक प्राचीन विश्वकोश ग्रंथ के रूप में प्रसिद्ध है, जिसने भारत में नृत्य, संगीत और साहित्यिक परंपराओं को प्रभावित किया है। यह अपने सौंदर्यवादी “रस” सिद्धांत के लिए भी प्रसिद्ध है, जो यह दावा करता है कि मनोरंजन प्रदर्शन कला का एक वांछित प्रभाव है, लेकिन प्राथमिक लक्ष्य नहीं है।
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Question 4 of 5
4. Question
कुचिपुड़ी के बारे में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए।
- नाट्य शास्त्र में इसका उल्लेख मिलता है।
- परंपरा के अनुसार, नृत्य को जीवंत स्वर के साथ प्रदर्शित करना चाहिए न कि संगीत के साथ।
- इसे एक भारतीय शास्त्रीय नृत्य के रूप में पहचाना जाता है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
Correct
उत्तर: c)
कुचिपुड़ी का वर्णन प्राचीन हिंदू संस्कृत ग्रंथ नाट्य शास्त्र में मिलता हैं। भारत के सभी प्रमुख शास्त्रीय नृत्यों की तरह, इसे भी एक धार्मिक कला के रूप में विकसित किया गया था जो यात्रा करने वाले कवियों, मंदिरों और आध्यात्मिक विश्वासों से संबद्ध था। 17वीं शताब्दी के प्रतिभाशाली वैष्णव कवि सिद्धेंद्र योगी द्वारा कुचिपुड़ी शैली को विकसित किया गया था।
इसकी शुरुआत भगवान गणेश के आह्वान से होती है, उसके बाद नृत्य (गैर-कथात्मक और अमूर्त नृत्य); शबदाम (कथा नृत्य) और नाट्य का प्रदर्शन किया जाता है। इस नृत्य को गायन (आम तौर पर कर्नाटक संगीत) के साथ किया जाता है। गायक द्वारा मृदंग, वायलिन, बांसुरी और तम्बुरा जैसे वाद्य यंत्रों का उपयोग किया जाता है।
यह दस प्रमुख भारतीय शास्त्रीय नृत्यों में से एक है।
Incorrect
उत्तर: c)
कुचिपुड़ी का वर्णन प्राचीन हिंदू संस्कृत ग्रंथ नाट्य शास्त्र में मिलता हैं। भारत के सभी प्रमुख शास्त्रीय नृत्यों की तरह, इसे भी एक धार्मिक कला के रूप में विकसित किया गया था जो यात्रा करने वाले कवियों, मंदिरों और आध्यात्मिक विश्वासों से संबद्ध था। 17वीं शताब्दी के प्रतिभाशाली वैष्णव कवि सिद्धेंद्र योगी द्वारा कुचिपुड़ी शैली को विकसित किया गया था।
इसकी शुरुआत भगवान गणेश के आह्वान से होती है, उसके बाद नृत्य (गैर-कथात्मक और अमूर्त नृत्य); शबदाम (कथा नृत्य) और नाट्य का प्रदर्शन किया जाता है। इस नृत्य को गायन (आम तौर पर कर्नाटक संगीत) के साथ किया जाता है। गायक द्वारा मृदंग, वायलिन, बांसुरी और तम्बुरा जैसे वाद्य यंत्रों का उपयोग किया जाता है।
यह दस प्रमुख भारतीय शास्त्रीय नृत्यों में से एक है।
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Question 5 of 5
5. Question
गढ़िका और नायकर काली (Gadhika and Naikkar Kali) निम्नलिखित किस राज्य के आदिवासी कला रूप हैं
Correct
उत्तर: d)
केरल के कुछ जनजातीय कला रूप हैं:
गढ़िका
इरुलर के नृत्य और गायन
कानिपट्टू
कन्नोकुपट्टू
उराली तिरबे का मालनकुथु
कुम्भापट्टू
नायकर काली
पलिया नृतम्
मलाप्पुलायट्टम
मन्नानकूथू
मुड़ियाटटम
Incorrect
उत्तर: d)
केरल के कुछ जनजातीय कला रूप हैं:
गढ़िका
इरुलर के नृत्य और गायन
कानिपट्टू
कन्नोकुपट्टू
उराली तिरबे का मालनकुथु
कुम्भापट्टू
नायकर काली
पलिया नृतम्
मलाप्पुलायट्टम
मन्नानकूथू
मुड़ियाटटम