विषय – सूची:
सामान्य अध्ययन-II
1. प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि योजना (PMBJP)
2. विशेष विवाह अधिनियम, 1954
3. UNSC 1267 समिति
4. नोविचोक और रासायनिक हथियार अभिसमय
5. ‘क्वाड समूह’ (Quad group)
सामान्य अध्ययन-III
1. दो कृष्ण विवरों का विलय
2. क्षुद्रग्रह 465824
3. पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA) अधिसूचना 2020
4. असम राइफल्स
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य
1. AIMA चाणक्य राष्ट्रीय प्रबंधन खेल
सामान्य अध्ययन-II
विषय: केन्द्र एवं राज्यों द्वारा जनसंख्या के अति संवेदनशील वर्गों के लिये कल्याणकारी योजनाएँ और इन योजनाओं का कार्य-निष्पादन; इन अति संवेदनशील वर्गों की रक्षा एवं बेहतरी के लिये गठित तंत्र, विधि, संस्थान एवं निकाय।
प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि योजना (PMBJP)
चर्चा का कारण
हाल ही में, प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि परियोजना (PMBJP) के तहत प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाले आठ प्रकार के पोषणयुक्त उत्पाद लॉन्च किए गए। इनकी बिक्री देशभर में जन औषधि केन्द्रों के माध्यम से की जाएगी।
PMBJP के बारे में:
यह रसायन और उर्वरक मंत्रालय के फार्मास्युटिकल्स विभाग द्वारा चलाया गया एक अभियान है, जो विशेष केंद्रों के माध्यम से आम लोगों को सस्ती कीमत पर गुणवत्ता वाली दवाएं उपलब्ध कराता है। आईएनएस विशेष केंद्रों को प्रधान मंत्री भारतीय जनऔषधि केंद्र के रूप में जाना जाता है।
इस कार्यक्रम की शुरुआत वर्ष 2008 में की गयी थी, तथा वर्ष 2015 में इस योजना को फिर से नए रूप में किया शुरू गया।
कार्यान्वयन:
- इस योजना का कार्यान्वयन ‘भारतीय फार्मा पीएसयू ब्यूरो’ (Bureau of Pharma PSUs of India– BPPI) के द्वारा किया जाता है।
- भारतीय फार्मा पीएसयू ब्यूरो’ (BPPI) की स्थापना फार्मास्युटिकल विभाग, भारत सरकार के अंतर्गत की गई है।
योजना की प्रमुख विशेषताएं:
- गुणवत्ता युक्त दवाओं तक पहुंच सुनिश्चित करना।
- दवाओं पर होने वाले व्यय को कम करने हेतु गुणवत्तापूर्ण जेनेरिक दवाओं का कवरेज बढ़ाना, जिससे प्रति व्यक्ति उपचार की लागत को फिर से परिभाषित किया जा सके।
- शिक्षा और प्रचार के माध्यम से जेनेरिक दवाओं के बारे में जागरूकता पैदा करना, ताकि गुणवत्ता को केवल उच्च कीमत से न आँका जाए।
- एक सार्वजनिक कार्यक्रम, जिसमें सरकारी, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम, निजी क्षेत्र, गैर सरकारी संगठन, सोसायटी, सहकारी निकाय और अन्य संस्थान शामिल हैं।
- सभी चिकित्सीय श्रेणियों में, जहां भी आवश्यक हो, कम उपचार लागत और आसान उपलब्धता के माध्यम से बेहतर स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच में सुधार करके जेनेरिक दवाओं की मांग पैदा करना।
प्रीलिम्स लिंक:
- इस योजना का आरंभ कब किया गया था?
- इसका नाम परिवर्तन कब किया गया?
- यह योजना किस मंत्रालय द्वारा शुरू की गई थी?
- BPPI के बारे में- स्थापना और कार्य
- जेनेरिक दवाएं क्या है?
मेंस लिंक:
प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि योजना (PMBJP) की आवश्यकता और महत्व पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: पीआईबी
विषय: सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय।
विशेष विवाह अधिनियम, 1954
(Special Marriage Act)
चर्चा का कारण
हाल ही में, विशेष विवाह अधिनियम (Special Marriage Act) के कुछ प्रावधानों को निरस्त करने हेतु दिशा-निर्देश जारी करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की गयी है।
अधिनियम के विवादास्पद प्रावधान
विशेष विवाह अधिनियम की धारा 5 के अंतर्गत, विवाह के लिए इच्छुक पक्षकारों द्वारा जिले के विवाह-अधिकारी एक सूचना दी जानी आवश्यक है। इसके अलावा, विवाह हेतु आवेदन करने वाले पक्षकार को जिले में, सूचना दिए जाने की तिथि से, तीस दिनों से अधिक समय से निवास करना आवश्यक होता है।
अधिनियम की धारा 6 में कहा गया है कि, विवाह अधिकारी धारा 5 के अधीन दी गई सब सूचनाओं को विवाह-सूचना रजिस्टर में दर्ज करेगा तथा प्रत्येक ऐसी सूचना की एक प्रतिलिपि अपने कार्यालय के किसी सहजदृश्य स्थान पर लगवायेगा।
अधिनियम की धारा 6(2) और 6(3): अधिनियम के प्रावधानों के तहत, विवाह के इच्छुक पक्षकारों को, सार्वजनिक जांच के लिए, अपना निजी विवरण विवाह की तिथि से तीस दिन पूर्व प्रकाशित करना आवश्यक है।
- यह प्रावधान, विवाह के इच्छुक पक्षकारों की निजता के अधिकार का उल्लंघन करता है। निजता के अधिकार को संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार का एक भाग माना जाता है।
- यह शर्त, संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत समानता के अधिकार का भी उल्लंघन करती है, क्योंकि कोई अन्य कानून इस प्रकार की शर्त लागू नहीं करता है।
विशेष विवाह अधिनियम, 1954 क्या है?
विशेष विवाह अधिनियम एक ऐसा कानून है, जो बिना किसी धार्मिक रीति-रिवाजों या परम्पराओं के विवाह करने की अनुमति देता है।
- विभिन्न जातियों या धर्मों अथवा राज्यों के लोग विशेष विवाह अधिनियम के तहत विवाह करते हैं, तथा इसमें पंजीकरण के माध्यम से विवाह किया जाता है।
- इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य अंतर-धार्मिक विवाह संपन्न करना तथा सभी धार्मिक औपचारिकताओं को अलग करते हुए विवाह को एक धर्मनिरपेक्ष संस्थान के रूप स्थापित करना है, जिसमे विवाह हेतु मात्र पंजीकरण की आवश्यकता होती है।
विशेष विवाह अधिनियम के तहत प्रक्रिया:
- विशेष विवाह अधिनियम (Special Marriage Act– SMA) के अंतर्गत विवाह पंजीकृत करने के लिए विस्तृत प्रक्रिया निर्धारित की गयी है।
- विवाह के लिए इच्छुक पक्षकारों में से एक व्यक्ति को जिले के विवाह-अधिकारी एक सूचना देनी होती है, और इसके लिए विवाह हेतु आवेदन करने वाले पक्षकार को, नोटिस दिए जाने की तिथि से, जिले में तीस दिनों से अधिक समय से निवास करना आवश्यक होता है।
- विवाह हेतु दी जाने वाली सूचना को, विवाह अधिकारी, विवाह-सूचना रजिस्टर में दर्ज करेगा तथा प्रत्येक ऐसी सूचना की एक प्रतिलिपि अपने कार्यालय के किसी सहजदृश्य स्थान पर लगवायेगा।
- विवाह अधिकारी द्वारा प्रकाशित, विवाह सूचना में पक्षकारों के नाम, जन्म तिथि, आयु, व्यवसाय, माता-पिता के नाम और विवरण, पता, पिन कोड, पहचान की जानकारी, फोन नंबर आदि सम्मिलित होते हैं।
- इसके पश्चात, अधिनियम के तहत प्रदान किए गए विभिन्न आधारों पर कोई भी विवाह पर आपत्ति उठा सकता है। यदि 30 दिनों की अवधि के भीतर कोई आपत्ति नहीं उठाई जाती है, तो विवाह संपन्न किया जा सकता है। यदि कोई व्यक्ति विवाह पर आपत्ति करता है, तो विवाह अधिकारी, इसकी जांच करेगा, तदुपरांत वह विवाह के संबंध में निर्णय लेगा।
प्रीलिम्स लिंक:
- विशेष विवाह अधिनियम के उद्देश्य
- विशेष विवाह अधिनियम की धारा 5 और 6
- विवाह के पंजीकरण हेतु अधिनियम के तहत प्रमुख आवश्यकताएं
- विवाह अधिकारी द्वारा प्रकाशित विवरण
- संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 का अवलोकन
मेंस लिंक:
विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के विवादास्पद प्रावधान कौन से हैं? इस कानून की समीक्षा की आवश्यकता क्यों है? चर्चा कीजिए।
स्रोत: द हिंदू
विषय: महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थान, संस्थाएँ और मंच- उनकी संरचना, अधिदेश।
UNSC 1267 समिति
(UNSC 1267 Committee)
चर्चा का कारण
हाल ही में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) ने पाकिस्तान द्वारा दो भारतीय नागरिकों को ‘UNSC के संकल्प 1267 (Resolution 1267) के तहत आतंकवादी घोषित किये जाने के प्रयास को रद्द कर दिया है। यह इस वर्ष पाकिस्तान द्वारा किया जाने वाला तीसरा ऐसा प्रयास था।
UNSC 1267 समिति क्या है?
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) की ‘समिति 1267’ को वर्ष 1999 में गठित किया गया था तथा 11 सितंबर 2001 के हमलों के बाद इसे अधिक शक्तिशाली बनाया गया।
- इस समिति को ‘दा‘एश’ (Da’esh) तथा ‘अल कायदा प्रतिबंध समिति’ (Al Qaida Sanctions Committee) के नाम से भी जाना जाता है।
- इसमें संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सभी स्थायी और गैर-स्थायी सदस्य सम्मिलित होते हैं।
- 1267 आतंकवादियों की सूची, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद से स्वीकृत एक वैश्विक सूची है। इसमें पाकिस्तानी नागरिक और इसके निवासी बड़ी संख्या में सूचीबद्ध है।
UNSC 1267 के तहत सूचीबद्ध किये जाने संबंधी प्रक्रिया:
कोई भी सदस्य देश, किसी व्यक्ति, समूह या संस्था को सूचीबद्ध करने के लिए प्रस्ताव पेश कर सकता है।
- ‘समिति 1267’ की बैठक के लिए चार कार्य दिवसों के पूर्व नोटिस की आवश्यकता होती है।
- किसी व्यक्ति, समूह या संस्था को सूचीबद्ध किये जाने अथवा नहीं किये जाने संबंधी निर्णय सर्वसम्मति से लिए जाते हैं।
- प्रस्ताव के लिए सभी सदस्यों को भेजा जाता है, और यदि पांच कार्यदिवसों के भीतर किसी सदस्य द्वारा आपत्ति नहीं की जाती है, तो उसे पारित कर दिया जाता है। किसी सदस्य द्वारा ‘आपत्ति’ किये जाने पर प्रस्ताव रद्द हो जाता है।
- समिति के किसी सदस्य द्वारा प्रस्ताव को ‘तकनीकी तौर पर विचारधीन’ रखा जा सकता है, तथा वह प्रस्तावकर्ता देश से अधिक जानकारी की मांग कर सकता है। इस दौरान, अन्य सदस्य भी अपने निर्णय को रोक के रख सकते हैं।
- मामले को विचाराधीन रखने वाले सदस्य देश द्वारा निर्णय नहीं किये जाने तक, प्रस्ताव को समिति की ‘लंबित’ सूची में रखा जाता है।
- लंबित मामलों को छह महीने की समयावधि में निपटाया जाना चाहिए, परन्तु विचाराधीन रखने वाले सदस्य देश द्वारा निर्णय करने के ल्लिये ‘अतिरिक्त तीन महीने’ के समय की मांग की जा सकती है। इसके पश्चात कोई आपत्ति नहीं आने पर प्रस्ताव को स्वीकृत मान लिया जाता है।
सूचीबद्ध करने हेतु निर्धारित मानदंड:
किसी व्यक्ति / समूह / इकाई को UNSC 1267 के तहत सूचीबद्ध करने के लिए पेश किये गए प्रस्ताव में इनके द्वारा ‘अल कायदा प्रतिबंध समिति’ या ‘आईएसआईएल दा’एश’ (ISIL Da’esh) अथवा इससे जुडी किसी इकाई, समूह, पृथक समूह आदि के लिए किसी कार्य या गतिविधियों के लिए वित्तपोषण, योजना, सुविधा प्रदान करने को सम्मिलित किया जाना आवश्यक है ।
प्रीलिम्स लिंक:
- UNSC 1267 समिति क्या है?
- इसे कब स्थापित किया गया था?
- संरचना।
- 1267 सूची क्या है?
- UNSC 1267 के तहत सूचीबद्ध किये जाने हेतु प्रक्रिया
- प्रस्ताव को सूचीबद्ध करने हेतु आवश्यक मानदंड
मेंस लिंक:
UNSC 1267 समिति की भूमिकाओं और कार्यों पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: द हिंदू
विषय: महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थान, संस्थाएँ और मंच- उनकी संरचना, अधिदेश।
नोविचोक और रासायनिक हथियार अभिसमय
(Novichok and the CWC)
चर्चा का कारण
जर्मनी का कहना है कि, कोमा की हालत में बर्लिन के एक अस्पताल में भर्ती, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के आलोचक अलेक्सई नवलनई (Alexei Navalny) को जहर देने के लिए ‘नोविचोक’ (Novichok) इस्तेमाल किया गया था।
नोविचोक क्या है?
1970-80 के दशक में ‘नोविचोक’ (Novichok) को सोवियत संघ में विकसित किया गया था।
- ‘नोविचोक’ का शाब्दिक अर्थ नवागंतुक’ (Newcomer) है। इसका उपयोग अत्यधिक विषाक्त नर्व एजेंट के रूप में किया जाता है।
- नोविचोक एजेंट को वीएक्स (VX) जैसी जहरीली गैसों की तुलना में पांच से 10 गुना अधिक घातक माना जाता है।
विवाद का विषय
वर्ष 1997 के ‘रासायनिक हथियार अभिसमय’ (Chemical Weapons Convention– CWC) के तहत सभी प्रकार के रासायनिक हथियार प्रतिबंधित है। रूस भी इस संधि में एक हस्ताक्षरकर्त्ता है।
- हालांकि, ऐसा समझा जाता है कि, हेग, नीदरलैंड स्थित ‘रासायनिक हथियार निषेध संगठन’ (Organisation for the Prohibition of Chemical Weapons- OPCW) द्वारा मॉस्को को कभी भी नोविचोक या उसके संघटक रखने के लिये प्रतिबंधित नहीं किया गया। OPCW, रासायनिक हथियारों के उपयोग को प्रतिबंधित करने वाली संधि की देखरेख करता है।
- नोविचोक को रासायनिक हथियार अभिसमय की नियंत्रित पदार्थों की सूची में पिछले वर्ष (2019) जोड़ा गया था। 1990 के दशक के पश्चात इस सूची को वर्ष 2019 में अद्यतन (अपडेट) किया गया था।
रासायनिक हथियार अभिसमय (CWC) क्या है?
यह एक बहुपक्षीय संधि है, जिसके तहत रासायनिक हथियारों पर प्रतिबंध लगाये गए हैं तथा इसके अंतर्गत एक निर्दिष्ट अवधि के भीतर रासायनिक हथियारों के विनाश को अनिवार्य किया गया है।
- CWC को ‘रासायनिक हथियार निषेध संगठन’ (OPCW) द्वारा लागू किया जाता है। OPCW का मुख्यालय हेग, नीदरलैंड में है तथा इसे वर्ष 2013 में नोबेल शांति पुरस्कार प्रदान किया गया था।
- CWC में सभी राष्ट्र सम्मिलित हो सकते हैं और वर्तमान में 193 देश इसके सदस्य है। इज़राइल ने इस अभिसमय पर हस्ताक्षर किए हैं किंतु अभी तक इसके द्वारा संधि की अभिपुष्टि नहीं की गयी है।
- मिस्र, उत्तर कोरिया और दक्षिण सूडान, इन तीन देशों द्वारा इस संधि में भाग नहीं लिया गया है।
‘रासायनिक हथियार अभिसमय’ द्वारा निम्नलिखित कृत्यों को निषिद्ध किया गया है:
- रासायनिक हथियारों का विकास, उत्पादन, अधिग्रहण, संग्रहण, या प्रतिधारित रखना।
- रासायनिक हथियारों का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष हस्तांतरण।
- रासायनिक हथियारों का उपयोग अथवा सैन्य उपयोग के लिए तैयारी।
- CWC -निषिद्ध गतिविधियों में शामिल होने के लिए अन्य राज्यों की सहायता करना, प्रोत्साहित करना या प्रेरित करना।
- ‘युद्ध की एक विधि के रूप में’ दंगा नियंत्रण एजेंटों का उपयोग।
प्रीलिम्स लिंक:
- हाल ही में चर्चित नोविचोक क्या है?
- रासायनिक हथियार अभिसमय के तहत प्रमुख प्रावधान।
- ‘रासायनिक हथियार निषेध संगठन’ के बारे में।
- किन राज्यों ने न तो हस्ताक्षर किए हैं और न ही सम्मेलन की पुष्टि की है।
- क्या भारत इस सम्मेलन का पक्षकार है?
मेंस लिंक:
रासायनिक हथियार निषेध संगठन’ (OPCW) के संगठनात्मक ढांचे, दृष्टिकोण और कार्यप्रणाली पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: द हिंदू
विषय: द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक समूह और भारत से संबंधित और/अथवा भारत के हितों को प्रभावित करने वाले करार।
‘क्वाड समूह’ (Quad group)
चर्चा का कारण
चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत द्वारा हिंद महासागर-प्रशांत क्षेत्र में नेविगेशन की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए ‘बेहतर प्रणाली’ के रूप में ‘क्वाड’ (Quad) का समर्थन किया है। जनरल बिपिन रावत के इस बयान से चीन के भड़कने की आशंका है।
‘क्वाड समूह’ क्या है?
यह एक चतुष्पक्षीय संगठन है जिसमे जापान, भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया सम्मिलित हैं।
- इस समूह के सभी सदस्य राष्ट्र लोकतांत्रिक राष्ट्र होने साथ-साथ गैर-बाधित समुद्री व्यापार तथा सुरक्षा संबंधी साझा हित रखते हैं।
- इस विचार को पहली बार वर्ष 2007 में जापानी प्रधान मंत्री शिंजो आबे द्वारा प्रस्तावित किया गया था। हालाँकि, ऑस्ट्रेलिया के समूह में सम्मिलित नहीं होने के कारण यह विचार आगे नहीं बढ़ सका है।
इस संगठन का महत्व:
- क्वाड (Quad) समान विचारधारा वाले देशों के लिए परस्पर सूचनाएं साझा करने तथा पारस्परिक हितों संबंधी परियोजनाओं पर सहयोग करने हेतु एक अवसर है।
- इसके सदस्य राष्ट्र एक खुले और मुक्त इंडो-पैसिफिक दृष्टिकोण को साझा करते हैं।
- यह भारत, ऑस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका के मध्य वार्ता के कई मंचों में से एक है तथा इसे किसी एक विशेष संदर्भ में नहीं देखा जाना चाहिए।
‘क्वाड समूह’ के प्रति चीन की आशंकाएं
- बीजिंग, काफी समय से भारत-प्रशांत क्षेत्र में इन लोकतांत्रिक देशों के गठबंधन का विरोध करता रहा है।
- चीन, इसे एशियाई-नाटो (Asian-NATO) चतुष्पक्षीय गठबंधन के रूप में देखता है, जिसका उद्देश्य चीन के उत्थान को रोकना है।
- विशेष रूप से, भारतीय संसद में जापानी पीएम शिंजो आबे द्वारा ‘दो सागरों का मिलन’ (Confluence of Two Seas) संबोधन ने क्वाड अवधारणा को एक नया बल दिया है। इसने भारत के आर्थिक उदय को मान्यता प्रदान की है।
प्रीलिम्स लिंक:
- क्वाड (Quad)- संरचना और सदस्य
- मालाबार युद्धाभ्यास – संरचना और प्रतिभागी
- एशिया प्रशांत क्षेत्र तथा भारत-प्रशांत क्षेत्र: भौगोलिक भूगोल
- दक्षिण चीन सागर में महत्वपूर्ण द्वीप
- हिंद महासागर क्षेत्र में द्वीप तथा विभिन्न चैनल
मेंस लिंक:
शांति और सुरक्षा बनाए रखने और संयुक्त राष्ट्र के समुद्रीय कानून के अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिए क्वाड की औपचारिक बहाली और पुन: प्रवर्तन की आवश्यकता है। परीक्षण कीजिए।
स्रोत: द हिंदू
सामान्य अध्ययन-III
विषय: सूचना प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष, कंप्यूटर, रोबोटिक्स, नैनो-टैक्नोलॉजी, बायो-टैक्नोलॉजी और बौद्धिक संपदा अधिकारों से संबंधित विषयों के संबंध में जागरुकता।
दो कृष्ण विवरों का विलय
(Merger of two black holes)
संदर्भ:
वर्ष 2019 में गुरुत्व तरंग वेधशाला LIGO, संयुक्त राज्य अमेरिका और इटली स्थित डिटेक्टर विर्गो (Virgo) द्वारा दो ब्लैक होल / कृष्ण विवरों के बीच टक्कर से उत्पन्न गुरुत्व तरंगों का पता लगाया गया था।
गणना के हिसाब से ये गुरुत्व तरंगे लगभग 17 बिलियन प्रकाश वर्ष दूर उत्पन्न हुई थी तथा इनकी उत्पत्ति के समय ब्रह्मांड की आयु इसकी वर्तमान आयु से आधी थी।
कृष्ण विवरों के इस विलय की विशिष्टता
विलय होने वाले दोनों मौलिक ब्लैक होल में से एक ब्लैक होल असामान्य रूप से ‘मध्यवर्ती द्रव्यमान’ वाला था, जो कि पारंपरिक वैज्ञानिक ज्ञान को चुनौती का विषय है। यह अभी तक देखा गया पहला ‘मध्यवर्ती द्रव्यमान’ ब्लैक होल है।
गुरुत्वाकर्षण तरंगें क्या होती हैं?
ये, किसी सुपरनोवा के एक तारे के विस्फोटित होने पर, अथवा दो विशाल तारों के एक दूसरे की परिक्रमा करने पर, और दो ब्लैक होल के विलय होने पर उत्पन्न अदृश्य लहरें/तरंगे होती है।
- गुरुत्वाकर्षण तरंगें प्रकाश की गति से यात्रा करती हैं, तथा अपने मार्ग में आने वाली किसी भी वस्तु को निचोड़ती हुई तथा फैलाती हुई गति करती हैं।
- गुरुत्वाकर्षण तरंगो को एक सदी पहले अल्बर्ट आइंस्टीन द्वारा अपने जनरल थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी में प्रस्तावित किया गया था।
- हालांकि, गुरुत्वाकर्षण लहरों को पहली बार वर्ष 2015 में LIGO के द्वारा पता लगाया गया था।
ब्लैक होल/ कृष्ण विवर क्या होते है?
ब्लैक होल अंतरिक्ष में पाए जाने ऐसे पिंड होते है, जिनका घनत्व तथा गुरुत्वाकर्षण बहुत अधिक होता है। अत्यधिक गुरुत्वाकर्षण के कारण, कोई भी पदार्थ अथवा प्रकाश इनके खिंचाव से बच नहीं सकता है। चूंकि,प्रकाश इनसे होकर नहीं गुजर पाता है, इसीलिये यह काले और अदृश्य होते है।
- ब्लैक होल के किनारे पर स्थित सीमा को ‘घटना दिक मण्डल’ (Event Horizon) कहा जाता है। इस सीमा के आगे जाने पर कोई भी प्रकाश या पदार्थ वापस नहीं लौट सकता, और उसे ब्लैक होल द्वारा खींच लिया जाता है। इससे गुजरने के लिए, पदार्थ की गति ‘प्रकाश की गति’ से तीव्र होनी चाहिए, जो कि असंभव होती है।
- ‘घटना दिक मण्डल’ को पार करने वाला कोई भी पदार्थ अतवा प्रकाश ब्लैक होल के केंद्र में समाहित होकर अनंत घनत्व वाले एक बिंदु में संकुचित हो जाता है, जिसे सिंगलुरिटी (singularity) कहा जाता है।
LIGO क्या है?
यह ब्रह्मांडीय गुरुत्वाकर्षण तरंगों का पता लगाने तथा प्रयोग को करने के लिए एक विशाल वेधशाला है। इसका पूरा नाम ‘लेज़र इंटरफेरोमेट्रिक ग्रेविटी वेब ऑब्जरवेटरी (Laser Interferometer Gravitational-Wave Observatory– LIGO) है।
- इसका उद्देश्य खगोलीय अध्ययन में गुरुत्वाकर्षण-तरंग प्रेक्षणों का उपयोग करना है।
- इस परियोजना में तीन गुरुत्वाकर्षण-तरंग (GW) डिटेक्टर का कार्यरत है। जिनमे से दो GW डिटेक्टर हैनफोर्ड, वाशिंगटन, उत्तर-पश्चिमी अमेरिका में तथा एक दक्षिण-पूर्वी अमेरिका के लिविंगस्टन, लुइसियाना में है।
- प्रस्तावित LIGO इंडिया परियोजना के अंतर्गत एक उन्नत LIGO डिटेक्टर को हैनफोर्ड से भारत में स्थानांतरित किया जायेगा।
प्रीलिम्स लिंक:
- सामान्य सापेक्षता सिद्धांत (general theory of relativity) के बारे में।
- पहली गुरुत्वाकर्षण तरंग का पता कब लगाया गया था?
- LIGO- मिशन के उद्देश्य, वेधशालाएँ और वित्त पोषण।
- ब्लैक होल के संदर्भ में ‘घटना दिक मण्डल’ क्या हैं?
- LIGO इंडिया- प्रस्तावित स्थल, साझेदार और उद्देश्य।
- विर्गो डिटेक्टर कहाँ स्थित है?
मेंस लिंक:
लेजर इंटरफेरोमीटर ग्रेविटेशनल-वेव ऑब्जर्वेटरी (LIGO) डिटेक्टर के निष्कर्षों के महत्व तथा इसके अनुप्रयोगों पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: द हिंदू
विषय: सूचना प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष, कंप्यूटर, रोबोटिक्स, नैनो-टैक्नोलॉजी, बायो-टैक्नोलॉजी और बौद्धिक संपदा अधिकारों से संबंधित विषयों के संबंध में जागरुकता।
क्षुद्रग्रह 465824
(Asteroid 465824)
चर्चा का कारण
नासा की गणना के अनुसार, क्षुद्रग्रह 465824 2010 FR, जिसका आकार गीज़ा के पिरामिड से दोगुना है, 6 सितंबर को पृथ्वी की कक्षा से गुजर सकता है।
इस क्षुद्रग्रह को ‘नीयर अर्थ ऑब्जेक्ट (Near Earth Object– NEO)’ ‘संभावित खतरनाक क्षुद्रग्रह’ (Potentially Hazardous Asteroid- PHA) के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
NEO क्या हैं?
- नासा के अनुसार, ‘नियर अर्थ ऑब्जेक्ट; (NEO) ऐसे क्षुद्रग्रह अथवा धूमकेतु होते हैं जो पृथ्वी पर खतरा उत्पन्न करते हुए उसकी कक्षा के करीब से गुजरते हैं।
- ये क्षुद्रग्रह अधिकांशतः बर्फ और धूल के कण से मिलकर बने होते हैं।
क्षुद्रग्रह क्या होते है?
क्षुद्रग्रह (Asteroids) सूर्य की परिक्रमा करने वाले चट्टानी पिंड होते हैं तथा इनका आकार ग्रहों की तुलना में बहुत छोटा होता हैं। इन्हें लघु ग्रह भी कहा जाता है। नासा के अनुसार, अब तक ज्ञात क्षुद्रग्रहों की संख्या 994,383 है, ये 4.6 अरब साल पहले निर्मित सौरमंडल के अवशेष हैं।
अधिकांश क्षुद्रग्रह केवल एक क्षेत्र में क्यों पाए जाते हैं?
इस तरह के अधिकांश पिंडों को मंगल और बृहस्पति के बीच क्षुद्रग्रह पेटी में पाया जा सकता है। इस पेटी में अनुमानतः 1.1-1.9 मिलियन क्षुद्रग्रह है। इस पेटी में क्षुद्रग्रहों के संकेद्रण के लिए बृहस्पति ग्रह काफी हद तक जिम्मेवार है। बृहस्पति के गुरुत्वाकर्षण के कारण इस क्षेत्र में किसी भी ग्रहीय-पिंड के निर्माण की संभावना समाप्त हो जाती है, जिसके परिणामस्वरूप छोटे पिंड एक दूसरे से टकराते रहते हैं और क्षुद्रग्रहों के रूप में विखंडित होते रहते हैं।
अन्य प्रकार के क्षुद्रग्रह:
- ट्रोजन (Trojans), वे क्षुद्रग्रह होते हैं जो एक बड़े ग्रह के साथ एक कक्षा साझा करते हैं।
- पृथ्वी के निकटवर्ती क्षुद्रग्रह (NEA), जिनकी परिक्रमा कक्षा पृथ्वी के नजदीक होती है।
वैज्ञानिक क्षुद्रग्रहों पर नज़र क्यों रखते हैं?
- ग्रहों और सूर्य के निर्माण तथा इनके इतिहास के बारे में जानने के लिए। क्षुद्रग्रहों का निर्माण, सौरमंडल में अन्य पिंडो के निर्माण के साथ ही हुआ है।
- ऐसे क्षुद्रग्रहों की तलाश करना जो संभावित रूप से खतरनाक हो सकते हैं।
‘संभावित खतरनाक क्षुद्रग्रह’ (PHA) क्या हैं?
मंगल और बृहस्पति के मध्य स्थित क्षुद्रग्रह पेटी में 1,400 से अधिक क्षुद्रग्रहों को संभावित खतरनाक क्षुद्रग्रहों (PHAs) के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
- नासा के अनुसार, ‘संभावित खतरनाक क्षुद्रग्रह ऐसे क्षुद्रग्रह होते हैं जिनके पृथ्वी के करीब से गुजरने से पृथ्वी पर खतरा उत्पन्न होने की संभावना बनी रहती है’।
- विशेष रूप से, इस श्रेणी में उन क्षुद्रग्रह को रखा जाता है जिनकी ‘मिनिमम ऑर्बिट इंटरसेक्शन डिस्टेंस’ (Minimum Orbit Intersection Distance- MOID) 0.05AU या इससे कम हो।
क्षुद्रग्रहों को किस प्रकार विक्षेपित किया जा सकता है?
क्षुद्रग्रहों को विक्षेपित करने के लिए, अब तक का सबसे कठोर उपाय क्षुद्रग्रह प्रभाव और विक्षेपण आकलन (Asteroid Impact and Deflection Assessment– AIDA) है, जिसमें नासा के दोहरे क्षुद्रग्रह पुनर्निर्देशन परीक्षण (Double Asteroid Redirection Test- DART) मिशन और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी ‘हेरा’ (Hera) सम्मिलित हैं।
- मिशन का लक्ष्य डिडायमोस (Didymos), एक बाइनरी नियर अर्थ क्षुद्रग्रह है। इसका आकार पृथ्वी के लिए एक महत्वपूर्ण संकट उत्पन्न कर सकता है।
- वर्ष 2018 में, नासा ने घोषणा की कि उसने DART का निर्माण शुरू कर दिया है, जो वर्ष 2021 में लगभग 6 किमी प्रति सेकंड की गति से डिडायमोस सिस्टम को छोटे क्षुद्रग्रहों में विखंडित करने में सक्षम होगा।
- ‘हेरा’ (Hera), जिसे वर्ष 2024 में लॉन्च किया जायेगा, DART टकराव से उत्पन्न प्रभाव गड्ढा को मापने तथा क्षुद्रग्रह के कक्षीय प्रक्षेपवक्र में परिवर्तन का अध्ययन करने के लिए वर्ष 2027 में डिडिमोस सिस्टम पर पहुंचेगी।
प्रीलिम्स लिंक:
- ‘नीयर अर्थ ऑब्जेक्ट (NEO)’ क्या हैं?
- क्षुद्रग्रहों का वर्गीकरण
- मंगल और बृहस्पति के बीच क्षुद्रग्रह पेटी में सबसे अधिक क्षुद्रग्रह क्यों पाए जाते हैं?
- संभावित खतरनाक क्षुद्रग्रह क्या हैं? उनका वर्गीकरण कैसे किया जाता है?
- नासा के DART मिशन का अवलोकन।
मेंस लिंक:
उल्कापिंड और क्षुद्रग्रह के बीच अंतर स्पष्ट कीजिए।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
विषय: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन।
मसौदा पर्यावरण प्रभाव आकलन अधिसूचना, 2020
(Draft Environment Impact Assessment (EIA) notification)
चर्चा का कारण
हाल ही में, संयुक्त राष्ट्र (UN) के विशेष प्रतिवेदकों (UN Special Rapporteurs) द्वारा पर्यावरण प्रभाव आकलन (Environment Impact Assessment– EIA) अधिसूचना, 2020 के मसौदे के बारे में कई चिंताओं को उठाया गया है, तथा इन्होने सरकार से पूछा है, कि मसौदे के प्रावधान, अंतर्राष्ट्रीय क़ानून के अंतर्गत भारत के दायित्वों से किस प्रकार अनुरूप है?
संयुक्त राष्ट्र के विशेष प्रतिवेदक /दूत कौन होते हैं?
संयुक्त राष्ट्र के विशेष प्रतिवेदक (UN Special Rapporteurs), संयुक्त राष्ट्र की ओर से काम करने वाले स्वतंत्र विशेषज्ञ होते हैं। वे संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद द्वारा निर्दिष्ट किसी देश अथवा किसी विषयगत अधिदेश पर कार्य करते हैं।
संयुक्त राष्ट्र के विशेष प्रतिवेदकों द्वारा उठाए गए तीन महत्वपूर्ण मुद्दे निम्नलिखित हैं:
- मसौदा अधिसूचना में अनुच्छेद 14(2) और 26 के अंतर्गत, कई बड़े उद्योगों और परियोजनाओं, जैसे रासायन निर्माण और पेट्रोलियम उत्पाद; भवन निर्माण और क्षेत्र विकास; अंतर्देशीय जलमार्ग और राष्ट्रीय राजमार्गों के विस्तार को पर्यावरण प्रभाव आकलन प्रक्रिया के भाग के रूप में सार्वजनिक परामर्श से की छूट प्रदान की गयी है।
इन क्षेत्रों में परियोजनाओं से उत्पन्न होने वाले पर्यावरण और मानव अधिकारों पर नकारात्मक प्रभावों को देखते हुए यह छूट अनुचित है।
- मसौदा अधिसूचना में केंद्र सरकार द्वारा ‘रणनीतिक कारणों में सम्मिलित’ घोषित की गई परियोजनाओं के लिए सार्वजनिक परामर्श करना तथा सूचना के प्रकाशन की आवश्यकता नहीं है।
मसौदा में, केंद्र सरकार द्वारा ‘रणनीतिक’ परियोजनाओं को वर्गीकृत करने के मानदंडों के बारे में स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है और इसलिए इसकी अतिशय व्यापक व्याख्याएं हो सकती है।
- मसौदे में ‘पोस्ट-फैक्टो क्लीयरेंस’ पर एक अनुच्छेद है। ये बगैर आवश्यक पर्यावरणीय मंजूरी या अनुमति प्राप्त किए शुरू की गयी परियोजनाओं से संबधित हैं।
यह विधि के पर्यावरणीय नियमों से संबंधित बुनियादी सिद्धांतों का उल्लंघन करता है।
पृष्ठभूमि:
- भारत में पर्यावरण प्रभाव आकलन (Environment Impact Assessment- EIA), को वैधानिक रूप से ‘पर्यावरण संरक्षण अधिनियम’, 1986 द्वारा स्थापित किया गया है। अधिनियम में EIA संबंधी पद्धतियों तथा प्रक्रियायों हेतु विभिन्न प्रावधान किये गए हैं।
- पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम (Environment (Protection) Act,), 1986 के अंतर्गत केंद्र सरकार को, पर्यावरण की सुरक्षा तथा सुधार के लिए सभी उपाय करने हेतु मसौदा अधिसूचना जारी करने शक्ति प्रदान कई गयी है। तथा, भारत सरकार द्वारा वर्ष 1994 में पहले EIA मानदंडों को अधिसूचित किया गया था।
- इसके अंतर्गत प्रत्येक विकास परियोजना को पर्यावरणीय स्वीकृति प्राप्त करने के लिए EIA प्रक्रिया से गुजरना आवश्यक है।
- EIA अधिसूचना, 1994 को वर्ष 2006 में संशोधित मसौदे के साथ प्रतिस्थापित कर दिया गया था।
- इस साल की शुरुआत में, सरकार ने वर्ष 2006 से लागू किये गए संशोधनों और संबंधित अदालती आदेशों को शामिल करने के लिए तथा और EIA प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी एवं तीव्र बनाने के लिए फिर से EIA मसौदा तैयार किया गया है।
प्रस्तावित मसौदे में विवाद के प्रमुख बिंदु:
- प्रस्तावित मसौदे में सार्वजनिक परामर्श सुनवाई की अवधि घटाकर अधिकतम 40 दिन कर दिया गया है।
- मसौदे में पर्यावरण मंजूरी लेने के लिए किसी आवेदन पर सार्वजनिक सुनवाई के दौरान जनता को अपनी प्रतिक्रियाएं देने की अवधि 30 दिनों से घटाकर 20 दिन की गयी है।
- इसके अंतर्गत, कुछ क्षेत्रों को बिना सार्वजनिक सुनवाई अथवा पर्यावरणीय मंजूरी के “आर्थिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों” के रूप में घोषित करने का प्रावधान किया गया है, तथा, साथ ही, “लाल” और “नारंगी” श्रेणी के वर्गीकृत विषैले उद्योगों को ‘संरक्षित क्षेत्र’ से 0-5 किमी की दूरी पर स्थापित किया जा सकता है।
- खनन परियोजनाओं के लिए पर्यावरण की मंजूरी की बढ़ती वैधता, (वर्तमान में 50 वर्ष बनाम 30 वर्ष) और नदी घाटी परियोजनाएं (वर्तमान में 15 वर्ष बनाम 10 वर्ष), से परियोजनाओं के कारण होने वाले अपरिवर्तनीय पर्यावरणीय, सामाजिक और स्वास्थ्य संबधी खतरों में वृद्धि होने की संभावना है।
प्रीलिम्स लिंक:
- EIA प्रक्रिया
- पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986- मुख्य प्रावधान
- मानव पर्यावरण पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय के बारे में
- संविधान का अनुच्छेद 253
मेंस लिंक:
भारतीय संदर्भ में पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA) प्रक्रिया के महत्व को समझाइए। इसके साथ जुड़ी चिंताओं पर प्रकाश डालिए।
स्रोत: द हिंदू
विषय: विभिन्न सुरक्षा बल और संस्थाएँ तथा उनके अधिदेश।
असम राइफल्स
चर्चा का कारण
मिजोरम के मुख्यमंत्री जोरामथांगा ने असम राइफल्स से अपना बेस राजधानी आइजोल के केंद्र से हटाकर लगभग 15 किलोमीटर दूर ज़ोखवासांग नामक जगह पर स्थापित करने के लिए कहा है।
विवाद का कारण
- मिजोरम सरकार और असम राइफल्स के बीच गतिरोध 18 अगस्त से शुरू हुआ है। असम राइफल्स 46वीं बटालियन के 15 सैनिकों ने कथित तौर पर COVID-19 सुरक्षा प्रोटोकॉल की अनदेखी करते हुए राज्य में जबरदस्ती अपना कार्य जारी रखा।
- इससे पहले, द मिज़ो नेशनल फ्रंट सरकार ने वर्ष 1988 में एक “मुठभेड़” में 12 नागरिकों की हत्या के बाद असम राइफल्स को अपना बेस आइज़ोल से स्थानांतरित करने के लिए कहा था।
असम राइफल्स के बारे में:
असम राइफल्स जिसे नार्थ ईस्ट का प्रहरी भी कहा जाता है तथा यह भारत का सबसे पुराना अर्धसैनिक बल है।
- असम राइफल्स का गठन 1835 में कछार लेवी नामक यूनिट के रूप में किया गया था। इसका उद्देश्य पूर्वोत्तर में शांति बनाए रखने में ब्रिटिश शासकों की सहायता करना था।
- समय-समय पर इसके नाम परिवर्तित होते रहे, प्राथमिक कानून प्रवर्तन एजेंसी – असम फ्रंटियर पुलिस, असम मिलिट्री पुलिस टू ईस्टर्न बंगाल, असम मिलिट्री पुलिस।
- इस यूनिट को वर्ष 1917 में असम राइफल्स का आधिकारिक नाम दिया गया।
- असम राइफल्स ने दोनों विश्व युद्धों में भाग लिया।
असम राइफल्स को कौन नियंत्रित करता है?
- वर्ष 1962 में चीनी आक्रमण के बाद असम राइफल्स बटालियन को सेना के संचालन नियंत्रण में रखा गया था।
- वर्तमान में, असम राइफल्स का प्रशासनिक नियंत्रण गृह मंत्रालय के पास है, जबकि परिचालन नियंत्रण रक्षा मंत्रालय के पास है।
प्रीलिम्स लिंक:
- असम राइफल्स- गठन
- प्रशासनिक नियंत्रण किसके अधीन है?
- परिचालन नियंत्रण किसके पास है?
- कार्य
मेंस लिंक:
असम राइफल्स के प्रमुख दायित्वों पर चर्चा कीजिए। बल पर दोहरे नियंत्रण से संबंधित कौन से मुद्दे और चिंताएं हैं?
स्रोत: द हिंदू
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य
AIMA चाणक्य राष्ट्रीय प्रबंधन खेल
यह ऑनलाइन व्यापार सिमुलेशन खेल हैं, जिनका प्रति वर्ष आयोजन किया जाता है।
इसका उद्देश्य विभिन्न उद्योगों के भागीदार कार्यपालकों को एक संगठन चलाने की जटिलताओं से परिचित कराना और इस आयोजन से उन्हें विशेषज्ञता तथा कौशल का लाभ सुनिश्चित कराना है।
राष्ट्रीय प्रबंधन खेल (NMG) प्रतिस्पर्धी मोड में प्रबंध व्यवसाय के रोमांच का सामना करने के लिए कोरपोरेट प्रबंधकों के लिए एक मंच है।
यह अखिल भारतीय प्रबंधन संघ (AIMA) द्वारा आयोजित किया जाता है। इससे प्रतिभागियों को संसाधन प्रबंधन, बाजार के रुख, लागत विश्लेषण, उत्पाद की स्थिति, उत्पादन की योजना और माल सूची नियंत्रण पर ध्यान केंद्रित करते हुए एक कंपनी को चलाने की जटिलताओं का अनुभव प्राप्त होता है।
चर्चा का कारण
टीम एनटीपीसी, हाल ही में समाप्त ऑल इंडिया मैनेजमेंट एसोसिएशन (AIMA) – चाणक्य (बिजनेस सिमुलेशन गेम) राष्ट्रीय प्रबंधन खेल 2020 के विजेता के रूप उभरा है।