HINDI INSIGHTS STATIC QUIZ 2020-2021
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Question 1 of 5
1. Question
निम्नलिखित से कौन-से अजंता गुफाओं में पाए जा सकते हैं?
- बोधिसत्व चित्र
- बुद्ध की महापरिनिर्वाण चित्र
- अवधानों की कहानियां (Tales from Avadanas)
सही उत्तर कूट का चयन कीजिए:
Correct
उत्तर: d)
- चित्रों के विषय बुद्ध के जीवन की घटनाओं, जातक और अवदान से सम्बंधित हैं। कुछ चित्र जैसे सिम्हाला अवदान, महाजनक जातक और विदुरपंडिता जातक गुफा की संपूर्ण दीवारों पर चित्रित हैं।
- अन्य महत्वपूर्ण पेंटिंग प्रसिद्ध पद्मपाणि और वज्रपान हैं। इन गुफाओं में आकृतियाँ काफी प्राकृतिकता के साथ चित्रित की गई हैं और इन्हें अत्यधिक शैलिकृत नहीं किया गया है।
Incorrect
उत्तर: d)
- चित्रों के विषय बुद्ध के जीवन की घटनाओं, जातक और अवदान से सम्बंधित हैं। कुछ चित्र जैसे सिम्हाला अवदान, महाजनक जातक और विदुरपंडिता जातक गुफा की संपूर्ण दीवारों पर चित्रित हैं।
- अन्य महत्वपूर्ण पेंटिंग प्रसिद्ध पद्मपाणि और वज्रपान हैं। इन गुफाओं में आकृतियाँ काफी प्राकृतिकता के साथ चित्रित की गई हैं और इन्हें अत्यधिक शैलिकृत नहीं किया गया है।
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Question 2 of 5
2. Question
ऐहोल, कर्नाटक में पाए गए शिलालेखों के बारे में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए।
- इन्हें विभिन्न भाषा और लिपि में रचित किया गया है।
- इनमें कवि कालीदास के बारे में उल्लेख मिलता है।
- इसमें केवल राजाओं की प्रशंसा की गई है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं?
Correct
उत्तर: a)
- ये शिलालेख संस्कृत और कन्नड़ लिपि में रचित हैं।
- ऐहोल में कई शिलालेख पाए जाते हैं, लेकिन मेगुटी मंदिर में जो शिलालेख मिलता है, वह ऐहोल शिलालेख के रूप में जाना जाता है, जिसका भारत के इतिहास में अत्यधिक महत्व है, जो चालुक्यों की कई ऐतिहासिक घटनाओं का साक्षी है।
- इसमें पुलकेशी द्वितीय द्वारा हर्षवर्धन की पराजय, पल्लवों पर चालुक्यों की विजय और पुलिकेशी द्वारा राजधानी को ऐहोल से बादामी में स्थानातरित करने के बारे में उल्लेख मिलता है। कविदास के बारे में भी उल्लेख मिलता है।
Incorrect
उत्तर: a)
- ये शिलालेख संस्कृत और कन्नड़ लिपि में रचित हैं।
- ऐहोल में कई शिलालेख पाए जाते हैं, लेकिन मेगुटी मंदिर में जो शिलालेख मिलता है, वह ऐहोल शिलालेख के रूप में जाना जाता है, जिसका भारत के इतिहास में अत्यधिक महत्व है, जो चालुक्यों की कई ऐतिहासिक घटनाओं का साक्षी है।
- इसमें पुलकेशी द्वितीय द्वारा हर्षवर्धन की पराजय, पल्लवों पर चालुक्यों की विजय और पुलिकेशी द्वारा राजधानी को ऐहोल से बादामी में स्थानातरित करने के बारे में उल्लेख मिलता है। कविदास के बारे में भी उल्लेख मिलता है।
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Question 3 of 5
3. Question
चोल कालीन चित्रों की प्रमुख विशेषताओं के बारे में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए?
- इन्हें प्राय: मंदिर की दीवारों पर चित्रित किया जाता था।
- इनमें भगवान शिव का वर्णन और आकृतियों को चित्रित किया गया है।
- इनमें मनुष्यों और पौधों का चित्रण नहीं किया गया है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं?
Correct
उत्तर: a)
- बृहदेश्वर मंदिर में सबसे महत्वपूर्ण चोल पेंटिंग पाई जाती है। चित्रों को मंदिर के आसपास के संकीर्ण मार्ग की दीवारों पर चित्रित किया गया है।
- चित्रकला की इस महान परंपरा में भगवान शिव से संबंधित वर्णन और आकृतियों जैसे कैलाश में शिव, त्रिपुरंतक के रूप में शिव, नटराज के रूप में शिव, संरक्षक राजाराजा और उनके प्रतिपालक कुरुवर, नृत्य के चित्र आदि को चित्रित किया गया है।
- बृहदेश्वर मंदिर के चित्र वर्षों से विकसित शैलीगत परिपक्वता की उत्कृष्ट का प्रतिक हैं।
- लहरदार रेखाओं, चित्रों का सूक्ष्म चित्रण, मानव चित्रों की फिजियोनोमिक (मुख देख कर चरित्र जान लेने की विद्या) विशेषताओं का चित्रण किया गया है – ये सभी पूर्णता का प्रतिनिधित्व करते हैं जिसे चोल कलाकार ने कई वर्षों और संक्रमण के चरण के दौरान प्राप्त किया था।
Incorrect
उत्तर: a)
- बृहदेश्वर मंदिर में सबसे महत्वपूर्ण चोल पेंटिंग पाई जाती है। चित्रों को मंदिर के आसपास के संकीर्ण मार्ग की दीवारों पर चित्रित किया गया है।
- चित्रकला की इस महान परंपरा में भगवान शिव से संबंधित वर्णन और आकृतियों जैसे कैलाश में शिव, त्रिपुरंतक के रूप में शिव, नटराज के रूप में शिव, संरक्षक राजाराजा और उनके प्रतिपालक कुरुवर, नृत्य के चित्र आदि को चित्रित किया गया है।
- बृहदेश्वर मंदिर के चित्र वर्षों से विकसित शैलीगत परिपक्वता की उत्कृष्ट का प्रतिक हैं।
- लहरदार रेखाओं, चित्रों का सूक्ष्म चित्रण, मानव चित्रों की फिजियोनोमिक (मुख देख कर चरित्र जान लेने की विद्या) विशेषताओं का चित्रण किया गया है – ये सभी पूर्णता का प्रतिनिधित्व करते हैं जिसे चोल कलाकार ने कई वर्षों और संक्रमण के चरण के दौरान प्राप्त किया था।
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Question 4 of 5
4. Question
गुरु नानक के बारे में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए
- गुरु नानक हिंदू धर्म और इस्लाम को नहीं मानते थे और इसलिए वे एक नया धर्म स्थापित करना चाहते थे, जिसे उन्होंने सिख धर्म नाम दिया।
- उन्होंने यज्ञ, अनुष्ठान स्नान, मूर्ति पूजा, तपस्या और शास्त्रों को अस्वीकार कर दिया था।
- उन्होंने पांच प्रतीकों यथा: केश, कंघा, कड़ा, कृपाण और कच्छा को निर्धारित किया जिसे उनके अनुयायियों द्वारा धारण करना अनिवार्य था।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
Correct
उत्तर: b)
- गुरु नानक एक नया धर्म स्थापित नहीं करना चाहते थे, लेकिन उनकी मृत्यु के बाद उनके अनुयायियों ने अपनी प्रथाओं को समेकित किया और स्वयं को हिंदू और मुस्लिम दोनों से अलग कर लिया।
- साथ ही उन्होंने सिख धर्म नाम भी नहीं रखा था। उन्होंने हिंदुओं और मुसलमानों दोनों के त्याग, अनुष्ठान स्नान, मूर्ति पूजा, तपस्या और शास्त्रों को अस्वीकार कर दिया।
- गुरु गोबिंद सिंह ने पांच प्रतीकों यथा: केश, कंघा, कड़ा, कृपाण और कच्छा को निर्धारित किया जिसे उनके अनुयायियों द्वारा धारण करना अनिवार्य था।
Incorrect
उत्तर: b)
- गुरु नानक एक नया धर्म स्थापित नहीं करना चाहते थे, लेकिन उनकी मृत्यु के बाद उनके अनुयायियों ने अपनी प्रथाओं को समेकित किया और स्वयं को हिंदू और मुस्लिम दोनों से अलग कर लिया।
- साथ ही उन्होंने सिख धर्म नाम भी नहीं रखा था। उन्होंने हिंदुओं और मुसलमानों दोनों के त्याग, अनुष्ठान स्नान, मूर्ति पूजा, तपस्या और शास्त्रों को अस्वीकार कर दिया।
- गुरु गोबिंद सिंह ने पांच प्रतीकों यथा: केश, कंघा, कड़ा, कृपाण और कच्छा को निर्धारित किया जिसे उनके अनुयायियों द्वारा धारण करना अनिवार्य था।
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Question 5 of 5
5. Question
रेखापीड़ा, पिढादुल और खाकरा निम्नलिखित किस मंदिर वास्तुकला के वर्गीकरण हैं
Correct
उत्तर: b)
- ओडिशा मंदिरों की मुख्य स्थापत्य विशेषताओं को तीन क्रमों में वर्गीकृत किया गया है, अर्थात्, रेखापीड़ा, पिढादुल और खाकरा (rekhapida, pidhadeul and khakra)।
- ओडिशा के मंदिर नागर शैली की एक पृथक उप-शैली है। सामान्य तौर पर, यहाँ शिखर जिसे ओडिशा में देउल कहा जाता है, शीर्ष तक लंबवत होता है और अंदर की ओर वक्रित होता है।
- देउल (पिढादुल शब्द का भाग) ओडिशा में जगमोहन नामक मण्डपों के पूर्ववर्ती है।
Incorrect
उत्तर: b)
- ओडिशा मंदिरों की मुख्य स्थापत्य विशेषताओं को तीन क्रमों में वर्गीकृत किया गया है, अर्थात्, रेखापीड़ा, पिढादुल और खाकरा (rekhapida, pidhadeul and khakra)।
- ओडिशा के मंदिर नागर शैली की एक पृथक उप-शैली है। सामान्य तौर पर, यहाँ शिखर जिसे ओडिशा में देउल कहा जाता है, शीर्ष तक लंबवत होता है और अंदर की ओर वक्रित होता है।
- देउल (पिढादुल शब्द का भाग) ओडिशा में जगमोहन नामक मण्डपों के पूर्ववर्ती है।