विषय – सूची:
सामान्य अध्ययन-I
1. 11वीं सदी के लिंगराज मंदिर का सौंदर्यीकरण
सामान्य अध्ययन-II
1. उपचारात्मक याचिका
2. जन्म स्थान के आधार पर नौकरी में आरक्षण
3. राष्ट्रीय भर्ती एजेंसी
4. वैक्सीन राष्ट्रवाद
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य
1. केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा तीन हवाई अड्डों को पट्टे पर दिए जाने को मंजूरी
2. हमास (Hamas)
3. मिलेनियम एलायंस
सामान्य अध्ययन-I
विषय: भारतीय संस्कृति में प्राचीन काल से आधुनिक काल तक के कला के रूप, साहित्य और वास्तुकला के मुख्य पहलू शामिल होंगे।
11वीं सदी के लिंगराज मंदिर का सौंदर्यीकरण
संदर्भ:
हाल ही में ओडिशा सरकार द्वारा 11वीं शताब्दी के लिंगराज मंदिर का सौंदर्यीकरण कराये जाने की घोषणा की गयी है। इसके तहत मंदिर को 350 वर्ष पूर्व की संरचना-विन्यास में पुनर्सज्जित किया जायेगा।
इसका उद्देश्य लिंगराज मंदिर और उसके आसपास आध्यात्मिक और पारिस्थितिक माहौल का निर्माण करना है।
लिंगराज मंदिर के बारे में
- लिंगराज मंदिर, भगवान शिव को समर्पित है तथा ओडिशा के सबसे पुराने और सबसे बड़े मंदिरों में से एक है।
- इसका निर्माण सोम वंशी राजा ययाति केसरी द्वारा कराया गया था।
- यह लाल पत्थर से निर्मित है तथा वास्तुकला की कलिंग शैली का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।
- इस मंदिर के उत्तर में बिन्दुसागर झील स्थित है।
- ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर का प्रारम्भिक निर्माण सोमवंशी राजाओं के द्वारा किया गया था जिसे बाद में गंग वंश के शासकों द्वारा अंतिम रूप दिया गया।
- इस मंदिर में विष्णु की प्रतिमाएं भी हैं, जिनकी स्थापना संभवत: 12 वीं शताब्दी में पुरी में जगन्नाथ मंदिर का निर्माण करने वाले गंग शासकों द्वारा की गयी थी।
देउला शैली
ओडिशा के लिंगराज मंदिर का निर्माण ‘देउला शैली’ (Deula style) में किया गया है। इसमें चार प्रमुख घटक होते हैं:
- विमान (गर्भगृह संरचना),
- जगमोहन (सभा कक्ष),
- नाट्यमंदिर (उत्सव कक्ष) और
- भोग-मंडप (प्रसाद कक्ष)
इनमे से ‘विमान’ की उंचाई सर्वाधिक होती है, जिसके पश्चात अन्य संरचनाओं की ऊंचाई क्रमशः कम होती जाती है।
प्रीलिम्स लिंक:
- लिंगराज मंदिर का निर्माण किसने कराया था?
- वास्तुकला की कलिंग शैली क्या है?
- देउला शैली क्या है?
- नागरा और द्रविड़ शैलियों के बीच अंतर।
स्रोत: द हिंदू
सामान्य अध्ययन-II
विषय: भारतीय संविधान- ऐतिहासिक आधार, विकास, विशेषताएँ, संशोधन, महत्त्वपूर्ण प्रावधान और बुनियादी संरचना।
उपचारात्मक याचिका
(Curative Petition)
संदर्भ:
हाल ही में, उच्चत्तम न्यायालय द्वारा भारत के मुख्य न्यायाधीश एस. ए. बोबड़े तथा न्यायपालिका के विरुद्ध ट्वीट करने पर प्रसिद्ध अधिवक्ता प्रशांत भूषण को अदालत की आपराधिक अवमानना का दोषी ठहराया गया।
- इसके पश्चात, प्रशांत भूषण ने अदालत से समीक्षा याचिका दायर करने तथा उस पर निर्णय होने तक सजा को स्थगित करने के लिए कहा है।
- उन्होंने उपचारात्मक याचिका (Curative Petition) के उपाय पर भी विचार करने के लिए कहा है।
उपचारात्मक याचिका के बारे में
उच्चत्तम न्यायालय में रूपा अशोक हुर्रा बनाम अशोक हुर्रा और अन्य मामले (2002) की सुनवाई के दौरान एक प्रश्न उठा कि, ‘क्या उच्चत्तम न्यायालय के अंतिम निर्णय के पश्चात तथा पुनर्विचार याचिका के खारिज होने के बाद भी असंतुष्ट व्यक्ति को सज़ा में राहत के लिये कोई न्यायिक विकल्प बचता है?’
- उपचारात्मक याचिका की अवधारणा भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा उपरोक्त प्रश्न पर विचार करने के दौरान विकसित की गयी थी।
- सुप्रीम कोर्ट उपचारात्मक याचिका के तहत अपने ही निर्णयों पर पुनर्विचार कर सकता है।
- इस संदर्भ में अदालत ने लैटिन कहावत ‘एक्टस क्यूरीए नेमिनेम ग्रेवाबिट’ (actus curiae neminem gravabit) का उपयोग किया, जिसका अर्थ है कि न्यायालय का कोई भी कार्य किसी के भी प्रति पूर्वाग्रह से प्रेरित नहीं होता है।
- इसका दोहरा उद्देश्य होता है- न्यायालय गलती करने से बचे तथा प्रक्रिया के दुरुपयोग पर रोक लगाए।
उपचारात्मक याचिका से संबंधित संवैधानिक प्रावधान
- उपचारात्मक याचिका (क्यूरेटिव पिटीशन) की अवधारणा का आधार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 137 में निहित है।
- संविधान के अनुच्छेद 137 के अंतर्गत भारत के उच्चतम न्यायालय को न्यायायिक समीक्षा की शक्ति दी गई है। इस शक्ति के माध्यम से न्यायालय संसद द्वारा पारित किसी विधि का पुनर्विलोकन कर सकता है, परंतु उच्चतम न्यायालय को यह शक्ति संसद द्वारा बनाई गयी विधि के अधीन है।
- उपचारात्मक याचिका के अंतर्गत यह भी प्रावधान किया गया है कि, अनुच्छेद 145 के तहत बनाए गए कानूनों और नियमों के संबंध में, उच्चत्तम न्यायालय के पास अपने किसी भी निर्णय (अथवा आदेश) की समीक्षा करने की शक्ति है।
उपचारात्मक याचिका की प्रक्रिया
- उपचारात्मक याचिका / क्यूरेटिव पिटीशन, अंतिम रूप से सजा सुनाये जाने तथा इसके विरुद्ध समीक्षा याचिका खारिज हो जाने के पश्चात दायर की जा सकती है।
- उच्चत्तम न्यायालय में उपचारात्मक याचिका पर सुनवाई तभी होती है जब याचिकाकर्त्ता यह प्रमाणित कर सके कि उसके मामले में न्यायालय के फैसले से न्याय के नैसर्गिक सिद्धांतों का उल्लंघन हुआ है साथ ही अदालत द्वारा निर्णय/आदेश जारी करते समय उसे नहीं सुना गया है।
- यह नियमित उपाय नहीं है बल्कि इस पर असाधारण मामलों में सुनवाई की जाती है।
- उपचारात्मक याचिका का सर्वोच्च नायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता द्वारा प्रमाणित होना अनिवार्य होता है।
- इसके पश्चात क्यूरेटिव पिटीशन उच्चतम न्यायलय के तीन वरिष्टतम न्यायाधीशों को भेजी जाती है तथा इसके साथ ही यह याचिका से संबंधित मामले में फैसला देने वाले न्यायाधीशों को भी भेजी जाती है।
- उच्चतम न्यायालय की यह पीठ उपरोक्त मामले पर पुनः सुनवाई का निर्णय बहुमत से लेती है तो उपचारात्मक याचिका को सुनवाई के लिये पुनः उसी पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया जाता है जिसने संबधित मामले में पूर्व निर्णय दिया था।
- क्यूरेटिव पिटीशन पर सुनवाई के दौरान उच्चतम न्यायालय की पीठ किसी भी स्तर पर किसी वरिष्ठ अधिवक्ता को न्याय मित्र (Amicus Curiae) के रूप में मामले पर सलाह के लिये आमंत्रित कर सकती है।
- सामान्यतः उपचारात्मक याचिका की सुनवाई जजों के चेंबर में ही हो जाती है परंतु याचिकाकर्त्ता के आग्रह पर इसकी सुनवाई ओपन कोर्ट में भी की जा सकती है।
प्रीलिम्स लिंक:
- उपचारात्मक याचिका क्या है?
- उपचारात्मक याचिका कौन दाखिल कर सकता है?
- उपचारात्मक तथा समीक्षा याचिका में अंतर
- अनुच्छेद 137 और 145 का अवलोकन
स्रोत: द हिंदू
विषय: सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय।
जन्म स्थान के आधार पर नौकरी में आरक्षण
संदर्भ:
हाल ही में, मध्य प्रदेश सरकार द्वारा राज्य की सभी सरकारी नौकरियों को ‘राज्य के युवाओं’ के लिए आरक्षित करने संबंधी घोषणा की गयी है। मध्य प्रदेश सरकार का यह निर्णय ‘समानता के मूल अधिकारों’ पर प्रश्नचिंह लगाता है।
विवाद का कारण
मात्र जन्म स्थान के आधार पर आरक्षण देने से संवैधानिक प्रश्न उत्पन्न होंगे।
इस संदर्भ में संवैधानिक प्रावधान
- भारत के संविधान में अनुच्छेद-16 के अंतर्गत सरकारी नौकरियों में अवसर की समानता की गारंटी प्रदान की गयी है, तथा यह राज्य के लिए जन्म स्थान अथवा निवास स्थान के आधार पर विभेद करने से निषेध करता है।
- अनुच्छेद 16 (2) के अनुसार, राज्य के अधीन किसी नियोजन या पद के संबंध में केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, उद्भव, जन्मस्थान, निवास या इनमें से किसी के आधार पर न तो कोई नागरिक अपात्र होगा और न उससे विभेद किया जाएगा।
- इस प्रावधान को संविधान में समानता की गारंटी प्रदान करने वाले अन्य उपबंधो द्वरा संपूरित किया गया है।
निर्णय का समर्थन करने वाले प्रावधान
हालाँकि, संविधान का अनुच्छेद 16(3) इस संदर्भ में एक अपवाद का प्रावधान करता है, इसके अनुसार- कि ‘संसद किसी विशेष राज्य में नौकरियों के लिए ‘निवास की अनिवार्यता’ को निर्धारित कर सकती है।‘ किंतु यह शक्ति केवल संसद में निहित है तथा राज्य विधानसभायें इस संबंध में कोई निर्णय नहीं ले सकती हैं।
संविधान में जन्म-स्थान के आधार पर आरक्षण पर प्रतिबंध का कारण
- संविधान के लागू होने के साथ ही भारत, विभिन्न रियासतों की भौगोलिक इकाईयों से एक राष्ट्र में परिवर्तित हो गया तथा इसके साथ ही सार्वभौमिक भारतीय नागरिकता की अवधारणा की जड़े स्थापित हो गयीं।
- चूंकि भारत में एकल नागरिकता है, तथा यह नागरिकों को देश के किसी भी हिस्से में स्वतंत्र रूप से घूमने की स्वतंत्रता प्रदान करती है।
- किसी भी राज्य में सार्वजनिक रोजगार देने के लिए जन्म-स्थान अथवा निवास-स्थान की अनिवार्यता, अहर्ता के रूप आवश्यक नहीं की जा सकती है।
स्थानीय लोगों को नौकरियों में आरक्षण पर उच्चत्तम न्यायालय के निर्णय:
उच्चत्तम न्यायालय ने जन्म-स्थान या निवास स्थान के आधार पर आरक्षण के विरुद्ध निर्णय दिए हैं।
- डॉ. प्रदीप जैन बनाम भारत संघ, 1984 मामले की सुनवाई के दौरान, ‘मिट्टी के बेटे’ (Sons of the Soil)’ की वैधानिकता के विषय पर चर्चा की गयी थी। न्यायालय ने इस मामले पर अपनी राय व्यक्त की कि, इस तरह की नीतियां असंवैधानिक होंगी, किंतु मामला ‘समानता के अधिकार’ के भिन्न पहलू पर था, अतः इस विषय पर स्पष्ट निर्णय नहीं दिया गया।
- इसके बाद्द, सुनंदा रेड्डी बनाम आंध्र प्रदेश राज्य (1995) मामले के निर्णय में, सुप्रीम कोर्ट ने प्रदीप जैन मामले में दी गयी राय की अभिपुष्टि करते हुए राज्य सरकार की एक नीति को रद्द कर दिया, जिसमे तेलगू माध्यम में पढ़ाई करने वाले अभ्यर्थियों को 5% अतिरिक्त भारांक दिया गया था।
- वर्ष 2002 में, सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान में सरकारी शिक्षकों की नियुक्ति को अमान्य कर दिया, जिसमें राज्य चयन बोर्ड ने “संबंधित जिले या जिले के ग्रामीण क्षेत्रों के आवेदकों” को वरीयता दी गयी थी।
- वर्ष 2019 में, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश अधीनस्थ सेवा चयन आयोग द्वारा एक भर्ती अधिसूचना को रद्द कर दिया, जिसमें उत्तर प्रदेश की ‘मूल निवासी’ महिलाओं के लिए प्राथमिकता निर्धारित की गई थी।
कुछ राज्यों में स्थानीय लोगों के लिए नौकरियों में आरक्षण
अनुच्छेद 16(3) के तहत शक्तियों का प्रयोग करते हुए संसद द्वारा सार्वजनिक रोजगार (निवास की अनिवार्यता) अधिनियम लागू किया गया, जिसका उद्देश्य राज्यों में सभी मौजूदा निवास संबंधी अनिवार्यताओं को समाप्त करना था, तथा इसके अंतर्गत अपवाद स्वरूप आंध्र प्रदेश मणिपुर, त्रिपुरा और हिमाचल प्रदेश में निवास संबंधी अनिवार्यताओं को जारी रखा गया।
- संवैधानिक रूप से, कुछ राज्यों में अनुच्छेद 371 के तहत विशेष सुरक्षा प्रदान की गयी है।
- आंध्र प्रदेश में अनुच्छेद 371 (d) के तहत निर्दिष्ट क्षेत्रों में ‘स्थानीय उम्मीदवारों की सीधी भर्ती’ करने की शक्तियां प्रदान की गयी हैं।
- उत्तराखंड में, तृतीय श्रेणी और चतुर्थ श्रेणी की नौकरियां स्थानीय लोगों के लिए आरक्षण प्रदान किया गया है।
कुछ राज्यों में भाषा का उपयोग के माध्यम से अनुच्छेद 16 (2) के अधिदेश की अनदेखी करते स्थानीय लोगों के लिए आरक्षण प्रदान किया गया है।
अपनी क्षेत्रीय भाषाओं में आधिकारिक कार्यवाही करने वाले राज्यों में नौकरी के लिए क्षेत्रीय भाषा के ज्ञान को अनिवार्य किया गया है। इस प्रकार स्थानीय नागरिकों को नौकरियों के लिए प्राथमिकता दी जाती है। उदाहरण के लिए, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु राज्यों में भाषा-परीक्षण आवश्यकता किया गया है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
विषय: सांविधिक, विनियामक और विभिन्न अर्द्ध-न्यायिक निकाय।
राष्ट्रीय भर्ती एजेंसी (NRA)
(National Recruitment Agency)
संदर्भ:
हाल ही में, केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा केंद्र सरकार की नौकरियों के लिए भर्ती प्रक्रिया में परिवर्तनकारी सुधार लाने के लिए राष्ट्रीय भर्ती एजेंसी (National Recruitment Agency– NRA) के गठन को स्वीकृति प्रदान की गयी है।
राष्ट्रीय भर्ती एजेंसी (NRA) एक बहु-एजेंसी निकाय है, जिसके द्वारा प्रारम्भ में समूह ख और ग (गैर-तकनीकी) पदों के लिए उम्मीदवारों की स्क्रीनिंग/शॉर्टलिस्ट करने हेतु सामान्य पात्रता परीक्षा (Common Eligibility Test– CET) को शुरू किए जाने का प्रस्ताव किया गया है। इन परीक्षाओं वर्तमान में कर्मचारी चयन आयोग (Staff Selection Commission- SSC), रेलवे भर्ती बोर्ड (Railways Recruitment Board- RRB) और बैंकिंग कार्मिक चयन संस्थान (Institute of Banking Personnel Selection- IBPS) द्वारा भर्ती की जाती है। बाद में, NRA के द्वारा अन्य परीक्षाओं को भी कराया जा सकता है।
राष्ट्रीय भर्ती एजेंसी की स्थापना हेतु घोषणा
फरवरी माह में केंद्रीय बजट की प्रस्तुति के दौरान वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा एक सामान्य पात्रता परीक्षा (CET) आयोजित करने के लिए इस प्रकार की एक एजेंसी की स्थापना की घोषणा की गई थी।
राष्ट्रीय भर्ती एजेंसी के कार्य:
- यह केंद्र सरकार के अंतर्गत विभिन्न भर्तियों के लिए एक सामान्य प्रारंभिक परीक्षा आयोजित करेगा।
- सामान्य पात्रता परीक्षा (CET) स्कोर के आधार पर एक उम्मीदवार संबंधित एजेंसी में रिक्त पद के लिए आवेदन कर सकता है।
परीक्षा का आयोजन
- NRA द्वारा गैर-तकनीकी पदों के लिए स्नातक, उच्च माध्यमिक (12वीं पास) और मैट्रिक (10वीं पास) वाले उम्मीदवारों के लिए सामान्य पात्रता परीक्षा (CET) आयोजित की जायेगी।
- हालांकि, वर्तमान भर्ती एजेंसियां- IBPS, RRB और SCC – यथावत रहेंगी।
- CET के अंक स्तर पर की गई स्क्रीनिंग के आधार पर, भर्ती के लिए अंतिम चयन पृथक विशेषीकृत टियर (II, III इत्यादि) परीक्षा के माध्यम से किया जाएगा जिसे संबंधित भर्ती एजेंसी द्वारा आयोजित किया जाएगा।
अन्य महत्वपूर्ण बिंदु:
- उम्मीदवारों द्वारा CET में प्राप्त स्कोर परिणाम घोषित होने की तिथि से 3 वर्षों की अवधि के लिए वैध होंगे।
- उम्मीदवारों की सुगमता के लिए देश के प्रत्येक जिले में परीक्षा केंद्र स्थापित किए जाएंगे।
- सामान्य पात्रता परीक्षा में अवसरों की संख्या ऊपरी आयु सीमा के अधीन होगी तथा उम्मीदवारों द्वारा CET में भाग लेने के लिए अवसरों की संख्या पर कोई सीमा नहीं होगी।
- सामान्य पात्रता परीक्षा 12 भाषाओं में आयोजित की जाएंगी।
राष्ट्रीय भर्ती एजेंसी की आवश्यकता
- वर्तमान में, सरकारी नौकरी के इच्छुक उम्मीदवारों को विभिन्न पदों के लिए अलग-अलग भर्ती एजेंसियों द्वारा संचालित की जाने वाली भिन्न-भिन्न परीक्षाओं में सम्मिलित होना पड़ता है।
- केंद्र सरकार की भर्तियों में प्रतिवर्ष औसतन 5 करोड़ से 3 करोड़ उम्मीदवार लगभग 1.25 लाख रिक्तियों के लिए परीक्षा में उपस्थित होते हैं।
स्रोत: पीआईबी
विषय: स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय।
वैक्सीन राष्ट्रवाद क्या है?
(Vaccine Nationalism)
सन्दर्भ:
वैक्सीन के मानव-परीक्षण के अंतिम चरण तथा इसके नियामक अनुमोदन से पूर्व ही ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी और अमेरिका जैसे कई समृद्ध देशों द्वारा COVID-19 वैक्सीन निर्माताओं से खरीद-पूर्व समझौते कर लिए गए हैं। इस प्रक्रिया को ‘वैक्सीन राष्ट्रवाद’ (Vaccine Nationalism) के रूप में जाना जाता है।
इस व्यवस्था से ऐसी आशंकाएं उत्पन्न होती हैं कि इस प्रकार के अग्रिम समझौते 8 अरब लोगों की दुनिया में प्रारम्भिक टीकों को समृद्ध देशों के अलावा अन्य सभी के लिए अत्याधिक महंगे और पहुँच से बाहर बना देंगे।
यह किस प्रकार कार्य करता है?
- वैक्सीन राष्ट्रवाद में कोई देश किसी वैक्सीन की खुराक को अन्य देशों को उपलब्ध कराने से पहले अपने देश के नागरिकों या निवासियों के लिए सुरक्षित कर लेता है।
- इसमें सरकार तथा वैक्सीन निर्माता के मध्य खरीद-पूर्व समझौता किया जाता है।
अतीत में इसका उपयोग
वैक्सीन राष्ट्रवाद नयी अवधारणा नहीं है। वर्ष 2009 में फ़ैली H1N1फ्लू महामारी के आरंभिक चरणों में विश्व के धनी देशों द्वारा H1N1 वैक्सीन निर्माता कंपनियों से खरीद-पूर्व समझौते किये गए थे।
- उस समय, यह अनुमान लगाया गया था कि, अच्छी परिस्थितियों में, वैश्विक स्तर पर वैक्सीन की अधिकतम दो बिलियन खुराकों का उत्पादन किया जा सकता है।
- अमेरिका ने समझौता करके अकेले 600,000 खुराक खरीदने का अधिकार प्राप्त कर लिया। इस वैक्सीन के लिए खरीद-पूर्व समझौता करने वाले सभी देश विकसित अर्थव्यवस्थायें थे।
संबंधित चिंताएँ
- वैक्सीन राष्ट्रवाद, किसी बीमारी की वैक्सीन हेतु सभी देशों की समान पहुंच के लिए हानिकारक है।
- यह अल्प संसाधनों तथा मोल-भाव की शक्ति न रखने वाले देशों के लिए अधिक नुकसान पहुंचाता है।
- यह विश्व के दक्षिणी भागों में आबादी को समय पर महत्वपूर्ण सार्वजनिक स्वास्थ्य-वस्तुओं की पहुंच से वंचित करता है।
- वैक्सीन राष्ट्रवाद, चरमावस्था में, विकासशील देशों की उच्च-जोखिम आबादी के स्थान पर धनी देशों में सामान्य-जोखिम वाली आबादी को वैक्सीन उपलब्ध करता है।
आगे की राह
विश्व स्वास्थ्य संगठन सहित अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं द्वारा सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट के दौरान टीकों के समान वितरण हेतु फ्रेमवर्क तैयार किये जाने की आवश्यकता है। इसके लिए इन संस्थाओं को आने वाली किसी महामारी से पहले वैश्विक स्तर पर समझौता वार्ताओं का समन्वय करना चाहिए।
समानता के लिए, वैक्सीन की खरीदने की क्षमता तथा वैश्विक आबादी की वैक्सीन तक पहुच, दोनों अपरिहार्य होते है।
प्रीलिम्स लिंक:
- वैक्सीन राष्ट्रवाद क्या है?
- COVID 19 रोग के उपचार में किन दवाओं का उपयोग किया जा रहा है?
- SARS- COV 2 का पता लगाने के लिए विभिन्न परीक्षण।
- H1N1 क्या है?
मेंस लिंक:
वैक्सीन राष्ट्रवाद क्या है? इससे संबंधित चिंताओं पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य
केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा तीन हवाई अड्डों को पट्टे पर दिए जाने को मंजूरी
- हाल ही में, केन्द्रीय मंत्रिमंडल द्वारा भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण (AAI) के जयपुर, गुवाहाटी और तिरुवनंतपुरम हवाई अड्डों को सार्वजनिक निजी भागीदारी (PPP) योजना के तहत पट्टे पर दिए जाने को मंजूरी दे दी है।
- इन तीनों हवाई अड्डों को 50 वर्ष के लिए अदानी इंटरप्राइजेज लिमिटेड को दिया गया है।
हमास (Hamas)
- हमास एक फिलिस्तीनी इस्लामिक राजनीतिक संगठन और आतंकवादी समूह है।
- इस संगठन की स्थापना वर्ष 1987 में हुई थी और तब से यह आत्मघाती बम विस्फोट और रॉकेट हमलों के माध्यम से इजरायल के विरुद्ध युद्ध छेड़े हुए है।
- यह फिलिस्तीनी प्रशासन से पृथक स्वतंत्र रूप से गाजा पट्टी को नियंत्रित करता है।
मिलेनियम एलायंस
(Millennium Alliance)
संदर्भ:
हाल ही में विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा मिलेनियम एलायंस राउंड 6 और कोविड-19 नवाचार चुनौती-पुरस्कार समारोह आयोजित किया गये। इसमें भारत के 5 केन्द्रित क्षेत्रों में 49 नवाचारों को मान्यता प्रदान की गयी।
मिलेनियम एलायंस क्या है?
- मिलेनियम अलायंस एक नवाचार-संचालित और प्रभाव-केंद्रित पहल है, जो वैश्विक विकास समाधानों को संबोधित करने वाले परीक्षण और पैमाने पर भारतीय नवाचारों की पहचान करने के लिए सहयोगपूर्ण संसाधनों का लाभ उठाती है।
- यह विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार, यूनाइटेड स्टेट्स एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (USAID), भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग परिसंघ (FICCI), यूनाइटेड किंगडम सरकार के अंतर्राष्ट्रीय विकास विभाग (DFID), फेसबुक और मैरिको इनोवेशन फाउंडेशन सहित भागीदारों (सार्वजनिक-निजी भागीदारी) का एक संघ है।