विषय – सूची:
सामान्य अध्ययन-I
1. भारत छोड़ो आंदोलन
सामान्य अध्ययन-II
1. संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष की नियुक्ति
2. लोक अदालत का ऑनलाइन आयोजन
3. रक्षा उपकरणों से संबधित नकारात्मक आयात सूची
4. सिंधु जल समझौता (IWT)।
सामान्य अध्ययन-III
1. कृषि अवसंरचना निधि
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य
1. गंदगी मुक्त भारत
सामान्य अध्ययन-I
विषय: स्वतंत्रता संग्राम- इसके विभिन्न चरण और देश के विभिन्न भागों से इसमें अपना योगदान देने वाले महत्त्वपूर्ण व्यक्ति/उनका योगदान।
भारत छोड़ो आंदोलन
(Quit India Movement)
संदर्भ:
8 अगस्त, 2020 को भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत की वर्षगाँठ मनाई गई। भारत में 8 अगस्त को प्रतिवर्ष अगस्त क्रांति दिवस के रूप में मनाया जाता है।
भारत छोड़ो आंदोलन के बारे में:
- वर्ष 1939 में द्वितीय विश्व युद्ध की शुरुआत हुई थी, जिसमे जापान धुरी राष्ट्रों के पक्ष में तथा ब्रिटिश और मित्र राष्ट्रों के विरोध में भाग ले रहा था। ब्रिटेन के विरुद्ध युद्ध में जापान भारत की उत्तर-पूर्वी सीमाओं की ओर बढ़ रहा था।
- ब्रिटिश, दक्षिण-पूर्व एशिया में अपने औपनिवेशिक क्षेत्रों से पीछे हट गए थे और वहां की आबादी को उनके हाल पर छोड़ दिया था। अंग्रेजों के इस कदम ने भारतीय जनता के दिमाग में भय उत्पन्न कर दिया कि, धुरी राष्ट्रों द्वारा हमला किये जाने पर ब्रिटिश भारत की रक्षा नहीं कर पायेंगे।
- गांधी जी का यह मानना था कि यदि अंग्रेज भारत से चले जाते है, तो जापान के पास भारत पर आक्रमण करने के लिए कोई कारण नहीं होगा।
- युद्ध में अंग्रेजों के पीछे हटने की खबर के अलावा, युद्ध-काल की कठिनाइयों जैसे आवश्यक वस्तुओं की कीमतों में अत्यधिक वृद्धि आदि ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ नाराजगी को बढ़ावा दिया।
- भारत में क्रिप्स मिशन भी किसी तरह के संवैधानिक उपायों की गारंटी देने में विफल रहा। इन सब कारणों से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने व्यापक जन आन्दोलन का आह्वान किया।
- क्रिप्स मिशन की विफलता के बाद महात्मा गाँधी ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ़ अपना तीसरा बड़ा आंदोलन छेड़ने का फ़ैसला लिया। 8 अगस्त 1942 को बम्बई में अखिल भारतीय काँगेस कमेटी के बम्बई सत्र में ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो‘ का नाम दिया गया था।
- इसी दिन गांधीजी ने ग्वालिया टैंक मैदान में दिए गए अपने भाषण में “करो या मरो” का नारा दिया।
आंदोलन के भारत छोड़ो प्रस्ताव के प्रमुख प्रावधान
- भारत पर ब्रिटिश शासन का तत्काल अंत
- सभी प्रकार के साम्राज्यवाद और फासीवाद के खिलाफ भारत द्वारा अपनी रक्षा स्वयं करने की प्रतिबद्धता की घोषणा
- अंग्रेजों के जाने के बाद भारत की अनंतिम सरकार का गठन
- ब्रिटिश शासन के खिलाफ सविनय अवज्ञा आंदोलन की स्वीकृति
जनता के लिए गांधीजी के निर्देश:
- सरकारी कर्मचारी: अपनी नौकरी से इस्तीफा न दें लेकिन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रति निष्ठा की घोषणा करें।
- सैनिक: सेना में रहें, पर अपने हमवतनों पर गोलीबारी करने से माना कर दें।
- किसान: यदि जमींदार / जमींदार सरकार विरोधी हैं, तो तय लगान का भुगतान करें; यदि वे सरकार समर्थक हैं, तो लगान का भुगतान न करें।
- छात्र: पूरी तरह से निश्चित होने पर पढ़ाई छोड़ सकते हैं।
- राजागण: जनता का समर्थन करें तथा उनकी संप्रभुता स्वीकार करें।
- रियासतों की प्रजा: शासक के सरकार विरोधी होने पर उसका समर्थन करें तथा स्वयं को भारतीय राष्ट्र का हिस्सा घोषित करें।
आंदोलन का प्रभाव:
- महात्मा गांधी, अबुल कलाम आजाद, जवाहरलाल नेहरू और सरदार वल्लभभाई पटेल जैसे कई राष्ट्रीय नेताओं को गिरफ्तार किया गया।
- कांग्रेस को एक गैरकानूनी संगठन घोषित कर दिया गया, नेताओं को गिरफ्तार किया गया और पूरे देश में इसके कार्यालयों पर छापा मारा गया और कांग्रेस की संपत्ति को अवरुद्ध कर दिया गया।
- आंदोलन का पहला आधे भाग में शांतिपूर्ण प्रदर्शन तथा जुलूस निकाले गए। महात्मा गांधी की रिहाई तक शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन किया गया था।
- आंदोलन के दूसरे भाग में डाकघरों, सरकारी भवनों और रेलवे स्टेशनों पर तोड़फोड़ की गयी तथा आगजनी और हिंसक घटनाएं हुई। इसके प्रत्युत्तर में लॉर्ड लिनलिथगो ने दमन की नीति अपनाई।
- वायसराय की मुस्लिम काउंसिल, कम्युनिस्ट पार्टी और अमेरिका ने अंग्रेजों का समर्थन किया।
आन्दोलन की खामियां:
- स्वयंसेवकों और प्रतिभागियों द्वारा हिंसक तरीकों का उपयोग। इससे अंग्रेजों द्वारा आन्दोलन को कुचलने में अपेक्षाकृत कम समय कुचल दिया गया।
- प्रमुख नेताओं के गिरफ्तार हो जाने से नेतृत्व का अभाव हो गया, आन्दोलनकारियों को समन्वित दिशा-निर्देशन नहीं मिल पाने से आन्दोलन के लक्षित परिणाम नहीं मिल सके।
- कुछ भारतीय राजनीतिक दलों ने आंदोलन का समर्थन नहीं किया। मुस्लिम लीग, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी और हिंदू महासभा ने आन्दोलन का विरोध किया था।
- इस बीच, सुभाष चंद्र बोस ने देश के बाहर से भारतीय राष्ट्रीय सेना और आज़ाद हिंद सरकार का गठन किया।
- सी राजगोपालाचारी पूर्ण स्वतंत्रता के पक्ष में नहीं थे, उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया था।
निष्कर्ष:
भारत छोड़ो आंदोलन एक ऐतिहासिक आंदोलन था, जिसने भारत में भविष्य की राजनीति के लिए जमीन तैयार की। भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान ‘हम, भारत के लोग’ ने स्वतंत्रता संघर्ष का नेतृत्व किया।
इंस्टा फैक्ट्स:
- स्वतंत्रता आंदोलन की ‘ग्रैंड ओल्ड लेडी’ के रूप में विख्यात अरुणा आसफ अली को भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान मुंबई के गोवालिया टैंक मैदान में भारतीय ध्वज फहराने के लिए जाना जाता है।
- उषा मेहता जैसी महिला नेताओं ने एक भूमिगत रेडियो स्टेशन स्थापित करने में मदद की जिसने आन्दोलन काल में जन-जागरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
प्रीलिम्स लिंक:
- क्रिप्स मिशन के मुख्य प्रस्ताव।
- क्रिप्स मिशन प्रस्तावों पर कांग्रेस की प्रतिक्रिया।
- अरुणा आसफ अली और उषा मेहता को किस नाम से जाना जाता है?
- भारत छोड़ो आंदोलन में सी राजगोपालाचारी की प्रतिक्रिया।
- आजाद हिंद सरकार का गठन किसने किया था? इसका गठन कब और कहां हुआ था?
- किन दलों ने भारत छोड़ो आंदोलन का समर्थन नहीं किया थे।
- भारत छोड़ो आंदोलन के कारण और परिणाम।
मेंस लिंक:
‘अगस्त क्रांति’ भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर था क्योंकि यह कांग्रेस द्वारा किये गए नियोजित आंदोलनों की तुलना में एक स्वतःस्फूर्त विद्रोह था। विवेचना कीजिए।
स्रोत: पीआईबी
सामान्य अध्ययन-II
विषय: विभिन्न संवैधानिक पदों पर नियुक्ति और विभिन्न संवैधानिक निकायों की शक्तियाँ, कार्य और उत्तरदायित्व।
संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष की नियुक्ति
संदर्भ:
हाल ही में, शिक्षाविद् प्रोफेसर प्रदीप कुमार जोशी को संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) का अध्यक्ष नियुक्त किया गया है।
- श्री जोशी वर्तमान में आयोग में सदस्य हैं।
- वह आयोग में अरविंद सक्सेना का स्थान लेंगे।
आयोग के अध्यक्ष तथा अन्य सदस्यों की नियुक्ति कौन करता है?
अनुच्छेद- 316: सदस्यों की नियुक्ति और पदावधि
लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष और अन्य सदस्यों की नियुक्ति, यदि वह संघ आयोग या संयुक्त आयोग है तो, राष्ट्रपति द्वारा और, यदि वह राज्य आयोग है तो, राज्य के राज्यपाल द्वारा की जाएगी
पदावधि:
लोक सेवा आयोग का सदस्य, अपने पद ग्रहण की तारीख से छह वर्ष की अवधि तक या संघ आयोग की दशा में पैंसठ वर्ष की आयु तक और राज्य आयोग या संयुक्त आयोग की दशा में बासठ वर्ष की आयु प्राप्त करने तक इनमें से जो भी पहले हो, अपना पद धारण करेगा।
पुनर्नियुक्ति:
कोई व्यक्ति जो लोक सेवा आयोग के सदस्य के रूप में पद धारण करता है, अपनी पदावधि की समाप्ति पर उस पद पर पुनर्नियुक्ति का पात्र नहीं होगा।
हालांकि, संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष के अतिरिक्त अन्य सदस्य, संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष के रूप में अथवा राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष के रूप में नियुक्ति के लिए पात्र होंगे, किंतु उन्हें केंद्र सरकार अथवा राज्य सरकार के अधीन किसी अन्य पद पर नियुक्त नहीं किया जा सकता।
इसके साथ ही, राज्य लोक सेवा आयोग का अध्यक्ष, संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष अथवा सदस्य के रूप में नियुक्ति के लिए पात्र होगा।
अनुच्छेद-317: लोक सेवा आयोग के किसी सदस्य को हटाया जाना और निलंबित किया जाना
लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष या किसी अन्य सदस्य को राष्ट्रपति के आदेश से केवल कदाचार के आधार पर उसके पद से हटाया जाएगा। आयोग के अध्यक्ष या किसी अन्य सदस्य के विरुद्ध कदाचार की जांच उच्चतम न्यायालय द्वारा संविधान के अनुच्छेद 145 के अधीन इस निमित्त विहित प्रक्रिया के अनुसार की जायेगी। जांच में दोषी पाए जाने पर न्यायालय, राष्ट्रपति को अपने प्रतिवेदन में संबधित सदस्य अथवा आयोग को पद से हटाए जाने की सिफारिश करेगा।
इसके अतिरिक्त, राष्ट्रपति, लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष अथवा किसी अन्य सदस्य को निम्नलिखित स्थितियों में पद से हटा सकता है- यदि अध्यक्ष अथवा ने सदस्य:
- दिवालिया न्यायनिर्णीत किया जाता है,या
- अपनी पदावधि में अपने पद के कर्तव्यों के बाहर किसी सवेतन नियोजन में कार्य करता है,या
- राष्ट्रपति की राय में मानसिक या शारीरिक शैथिल्य के कारण अपने पद पर बने रहने के लिए अयोग्य है।
कदाचार का दोषी:
यदि लोक सेवा आयोग का अध्यक्ष या कोई अन्य सदस्य, निगमित कंपनी के सदस्य के रूप में और कंपनी के अन्य सदस्यों के साथ सम्मिलित रूप से अन्यथा, उस संविदा या करार से, जो भारत सरकार या राज्य सरकार के द्वारा या निमित्त की गई या किया गया है, किसी प्रकार से संपृक्त या हितबद्ध है या हो जाता है या उसके लाभ या उससे उद्भूत किसी फायदे या उपलब्धि में भाग लेता है तो वह कदाचार का दोषी समझा जाएगा।
प्रीलिम्स लिंक:
- लोक सेवा आयोगों से संबंधित संवैधानिक प्रावधान
- यूपीएससी के कार्य
- यूपीएससी के अध्यक्ष और सदस्य- पात्रता, नियुक्ति और पद-मुक्ति
- आयोग के सदस्यों और कर्मचारियों की सेवा शर्तों से संबधित नियम बनाने की शक्ति
- लोक सेवा आयोगों के कार्यों का विस्तार करने की शक्ति
- लोक सेवा आयोगों की रिपोर्ट
स्रोत: पीआईबी
विषय: केन्द्र एवं राज्यों द्वारा जनसंख्या के अति संवेदनशील वर्गों के लिये कल्याणकारी योजनाएँ और इन योजनाओं का कार्य-निष्पादन; इन अति संवेदनशील वर्गों की रक्षा एवं बेहतरी के लिये गठित तंत्र, विधि, संस्थान एवं निकाय।
लोक अदालत का ऑनलाइन आयोजन
(Lok Adalat held online)
संदर्भ:
राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण के तत्वावधान में दिल्ली राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (Delhi State Legal Services Authority – DSLSA) द्वारा 8 अगस्त 2020 को दिल्ली में पहली बार ऑनलाइन लोक अदालत का आयोजन किया गया।
ऑनलाइन लोक अदालत की संचालन प्रक्रिया
- ई-लोक अदालत में, संबंधित पक्षों को एक ऑनलाइन लिंक SAMA (यह एक ऑनलाइन विवाद समाधान मंच है, जिसे वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से विवादों को सुलझाने के लिए मान्यता प्राप्त है) द्वारा भेजा जाएगा तथा एक न्यायाधीश मध्यस्थता प्रक्रिया की अध्यक्षता करेंगे।
- इस व्यवस्था के पश्चात्, संबंधित पक्षों को एक OTP (वन टाइम पासवर्ड) भेजा जाएगा और इसकी पुष्टि होने पर, मामले का निपटारा किया जाएगा।
परिणाम:
अब तक 77 पीठों का गठन किया गया है जिनके द्वारा विभिन्न श्रेणियों से संबंधित कुल 5838 मामलों का निपटारा किया गया। इन मामलों में निपटान राशि लगभग 46.28 करोड़ रुपये थी।
लोक अदालत क्या है?
- लोक अदालत वैकल्पिक विवाद निवारण प्रणालियों में से एक है, यह एक ऐसा मंच है जहाँ न्यायालय में लंबित विवादों/मामलों अथवा मुकदमे के रूप में दाखिल किए जाने से पूर्व-चरण में ही मामलों का सौहार्द्रपूर्ण तरीके से निपटारा किया जाता है।
- लोक अदालतों को भारतीय संविधान की प्रस्तावना में दिए गए- भारत के प्रत्येक नागरिक को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय सुरक्षा प्रदान करने के- वचन को पूरा करने के लिए गठित किया जाता है।
संवैधानिक आधार:
- संविधान का अनुच्छेद 39A समाज के वंचित और कमजोर वर्गों को मुफ्त कानूनी सहायता प्रदान करने तथा समान अवसर के आधार पर न्याय को बढ़ावा देने हेतु प्रावधान करता है।
- संविधान के अनुच्छेद 14 और 22 (1) में राज्य के लिए विधि के समक्ष समानता की गारंटी प्रदान करना अनिवार्य किया गया है।
वैधानिक प्रावधान:
- विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 के तहत लोक अदालतों को वैधानिक दर्जा दिया गया है।
अंतिम निर्णय
- लोक अदालतों द्वारा दिए गए निर्णय को दीवानी न्यायालय का फैसला माना जाता है और सभी पक्षों पर अंतिम और बाध्यकारी होता है।
निर्णय के विरुद्ध अपील
- लोक अदालत द्वारा दिए गए फैसले के खिलाफ अपील का कोई प्रावधान नहीं है।
- परंतु, असंतुष्ट पक्ष अपने ‘मुकद्दमा दायर करने के अधिकार’ के तहत, आवश्यक प्रक्रियाओं की पूर्ती के पश्चात उपयुक्त न्यायालय में मुकदमा कार्यवाही शुरू करने के लिए स्वतंत्र होते हैं।
न्यायालय शुल्क:
लोक अदालत में मामला दायर करने पर कोई अदालत-शुल्क देय नहीं होता है। यदि न्यायालय में लंबित कोई मामला लोक अदालत में भेजा जाता है तथा इसे बाद में सुलझा लिया जाता है, तो न्यायालय में शिकायतों / याचिका पर मूल रूप से भुगतान किया गया शुल्क भी संबंधित पक्षों को वापस कर दिया जाता है।
लोक अदालत को संदर्भित किए जाने वाले मामलों की प्रकृति:
- लोक अदालत के क्षेत्र के न्यायालय का कोई भी मामला जो किसी भी न्यायालय के समक्ष लंबित है।
- ऐसे विवाद जो लोक अदालत के क्षेत्रीय न्यायालय में आते हो, लेकिन जिसे किसी भी न्यायालय में उसके वाद के लिए दायर न किया गया हो और न्यायालय के समक्ष दायर किये जाने की संभावना है।
- लोक अदालत में गंभीर प्रकृति के अपराध संबंधित किसी भी मामले को समझौते के लिए नहीं भेजा जाता है।
प्रीलिम्स लिंक:
- राष्ट्रीय लोक अदालत का आयोजन कौन करता है?
- स्थायी लोक अदालतें क्या हैं?
- लोक अदालतों की संरचना।
- लोक अदालत में भेजे जाने वाले मामलों की प्रकृति।
- संविधान का अनुच्छेद 39 ए
- लोक अदालतों द्वारा किए गए निर्णय- क्या वे बाध्यकारी हैं?
मेंस लिंक:
वर्तमान परिदृश्य में एक प्रभावी विवाद समाधान संस्था के रूप में लोक अदालतों के महत्व पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: द हिंदू
विषय: सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय।
रक्षा उपकरणों से संबधित नकारात्मक आयात सूची
(What is the negative imports list for defence announced recently?)
संदर्भ:
हाल ही में रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह द्वारा 101 वस्तुओं की एक सूची की घोषणा की गयी है जिनका निर्धारित समय सीमा के पश्चात आयात प्रतिबंध होगा।
- अर्थात, सभी सशत्र बल- थल सेना, वायु सेना, नौसेना- इन सभी 101 वस्तुओं की खरीद केवल घरेलू निर्माताओं से करेंगे।
- इन वस्तुओं का निर्माण, निजी क्षेत्र अथवा रक्षा सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (Defence Public Sector Undertakings– DPSUs) द्वारा किया जायेगा।
इस नीति की आवश्यकता तथा प्रभाव
स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट के अनुसार, इस अवधि के दौरान भारत $ 16.75 बिलियन मूल्य के अमेरिकी और 2014 से 2019 के बीच दूसरा सबसे बड़ा आयातक रहा है।
- सरकार रक्षा क्षेत्र में आयातित वस्तुओं पर निर्भरता को कम करना चाहती है और घरेलू रक्षा विनिर्माण उद्योग को बढ़ावा देना चाहती है।
- नकारात्मक आयात सूची में सम्मिलित वस्तुओं के आयात की संभावना को नकारते हुए, भारतीय सैन्य बलों की आवश्यकताओं की पूर्ती के लिए घरेलू रक्षा उद्योग को आगे बढ़ने तथा निर्माण करने का अवसर दिया गया है।
स्रोत: द हिंदू
विषय: भारत एवं इसके पड़ोसी- संबंध।
सिंधु जल समझौता (IWT)
(Indus Water Treaty)
संदर्भ:
हाल ही में, पाकिस्तान द्वारा भारत-पाकिस्तान सीमा के निकट अटारी चेकपोस्ट पर सिंधु जल समझौते (Indus Water Treaty- IWT) से संबंधित विषयों पर बैठक आयोजित करने का अनुरोध किया गया था, जिसे भारत ने मना कर दिया है।
पृष्ठभूमि
- भारत द्वारा उपरोक्त विषय पर वार्ता हेतु मार्च के महीने में एक वर्चुअल कांफ्रेंस सुझाव दिया गया था, किंतु पाकिस्तान ने आमने-सामने बैठकर वार्ता करने पर जोर दिया था।
- भारत का कहना है, कि COVID-19 महामारी के कारण गतिविधियों पर प्रतिबंध है, अतः वार्ता के लिए सीमा तक यात्रा करना उचित नहीं है।
सिंधु जल समझौता बैठक क्या है?
- सिंधु जल समझौता (IWT) बैठकों का आयोजन दोनों देशों के सिंधु जल आयुक्तों (Indus Water Commissioners) के नेतृत्व में किया जाता है, तथा इन बैठकों में सिंधु नदी प्रणाली से संबंधित बांधों और जल विद्युत परियोजनाओं के निर्माण संबंधी कई मुद्दों पर चर्चा की जाती है।
- दोनों देशों के बीच इस तरह की पिछली बैठक अक्टूबर महीने में इस्लामाबाद में हुई थी, और, सिंधु जल समझौते (IWT) के अनुसार, अगली बैठक 31 मार्च से पहले भारत में होनी तय थी।
नवीनतम विवाद क्या है?
- दोनों देशों के मध्य सिंधु जल समझौते को लेकर नया विवाद जम्मू और कश्मीर के किश्तवाड़ जिले में चिनाब नदी पर रातले [रन-ऑफ-द-रिवर (run-of-the-river– RoR)] परियोजना के निर्माण संबंधी तकनीकी पहलुओं पर मतभेद को लेकर उत्पन्न हुआ है।
- परियोजना के डिजाइन मानकों से संबंधित विवाद के निपटारे के लिए भारत ने एक ‘तटस्थ’ पक्ष की नियुक्ति का प्रस्ताव दिया है, जबकि पाकिस्तान मध्यस्थता न्यायालय (Court of Arbitration) के माध्यम से विवाद निपटाने का पक्षधर है।
सिंधु जल समझौते के बारे में:
यह एक जल-वितरण समझौता है, जिस पर वर्ष 1960 में, विश्व बैंक की मध्यस्था से भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू तथा पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान ने हस्ताक्षर किये थे।
- सिंधु जल समझौते के अंतर्गत, तीन पूर्वी नदियों- रावी, ब्यास और सतलज- के पानी पर भारत को पूरा नियंत्रण प्रदान किया गया।
- पाकिस्तान को पश्चिमी नदियों– सिंधु, चिनाब और झेलम पर नियंत्रण दिया गया।
- संधि के अनुसार, पाकिस्तान और भारत के जल आयुक्तों को वर्ष में दो बार मिलने तथा परियोजना स्थलों और नदी पर किये जा रहे महत्वपूर्ण कार्यों के तकनीकी पहलुओं के बारे में सूचित करना आवश्यक है।
- समझौते के तहत दोनों पक्ष, जल प्रवाह तथा उपयोग किए जा रहे पानी की मात्रा का विवरण साझा करते हैं।
- इस समझौते में दोनों देशों के मध्य नदियों के उपयोग के संबंध में सहयोग और सूचना के आदान-प्रदान के लिए एक प्रणाली स्थापित की गयी है।
प्रीलिम्स लिंक:
- सिंधु और उसकी सहायक नदियाँ।
- सिंधु जल समझौते पर हस्ताक्षर कब किए गए थे?
- समझौते को किसने भंग किया?
- समझौते की मुख्य विशेषताएं?
- स्थायी सिंधु आयोग के कार्य।
- इस संबंध में चर्चित पनबिजली परियोजनाएं।
मेंस लिंक:
सिंधु जल समझौते के महत्व पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: द हिंदू
सामान्य अध्ययन-III
विषय: प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष कृषि सहायता तथा न्यूनतम समर्थन मूल्य से संबंधित विषय; जन वितरण प्रणाली- उद्देश्य, कार्य, सीमाएँ, सुधार; बफर स्टॉक तथा खाद्य सुरक्षा संबंधी विषय; प्रौद्योगिकी मिशन; पशु पालन संबंधी अर्थशास्त्र।
कृषि अवसंरचना निधि
(Agriculture Infrastructure Fund)
संदर्भ:
हाल ही में, प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा एक लाख करोड़ रूपये की कृषि अवसंरचना निधि के तहत वित्त पोषण सुविधा की एक नई योजना आरंभ की गयी है।
इस योजना का आरंभ किसानों को आत्मनिर्भर बनाने हेतु सरकार द्वारा चलाये जा रहे ‘आत्मनिर्भर भारत’ के एक भाग रूप में किया गया है।
कृषि अवसंरचना निधि के बारे में
यह एक अखिल भारतीय केंद्रीय क्षेत्रक योजना (Central Sector Scheme) है।
- कृषि अवसंरचना निधि ब्याज माफी तथा ऋण गारंटी के जरिये फसल उपरांत प्रबंधन अवसंरचना एवं सामुदायिक कृषि परिसंपत्तियों के लिए व्यावहार्य परियोजनाओं में निवेश के लिए एक मध्यम-दीर्धकालिक कर्ज वित्त-पोषण सुविधा है।
- इस योजना की अवधि वित्त वर्ष 2020 से 2029 (10 वर्ष) होगी।
पात्रता
इस योजना के अंतर्गत, बैंकों और वित्तीय संस्थानों के द्वारा एक लाख करोड़ रुपये ऋण के रूप में प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (PAC), विपणन सहकारी समितियों, किसान उत्पादक संगठनों (FPOs), स्वयं सहायता समूहों (SHGs), किसानों, संयुक्त देयता समूहों (Joint Liability Groups- JLG), बहुउद्देशीय सहकारी समितियों, कृषि उद्यमियों, स्टार्टअपों, आदि को उपलब्ध कराये जायेंगे।
ब्याज में छूट:
इस वित्तपोषण सुविधा के अंतर्गत, सभी प्रकार के ऋणों में प्रति वर्ष 2 करोड़ रुपये की सीमा तक ब्याज में 3% की छूट प्रदान की जाएगी। यह छूट अधिकतम 7 वर्षों के लिए उपलब्ध होगी।
क्रेडिट गारंटी:
- 2 करोड़ रुपये तक के ऋण के लिए क्रेडिट गारंटी फंड ट्रस्ट फॉर माइक्रो एंड स्मॉल एंटरप्राइजेज (CGTMSE) योजना के अंतर्गत इस वित्तपोषण सुविधा के माध्यम से पात्र उधारकर्ताओं के लिए क्रेडिट गारंटी कवरेज भी उपलब्ध होगा।
- इस कवरेज के लिए सरकार द्वारा शुल्क का भुगतान किया जाएगा।
- FPOs के मामले में, कृषि, सहकारिता एवं किसान कल्याण विभाग (DACFW) के FPO संवर्धन योजना के अंतर्गत बनाई गई इस सुविधा से क्रेडिट गारंटी का लाभ प्राप्त किया जा सकता है।
कृषि अवसंरचना कोष का प्रबंधन:
- कृषि अवसंरचना कोष का प्रबंधन और निगरानी ऑनलाइन प्रबन्धन सूचना प्रणाली (MIS) प्लेटफॉर्म के माध्यम से की जाएगी।
- सही समय पर मॉनिटरिंग और प्रभावी फीडबैक की प्राप्ति को सुनिश्चित करने के लिए राष्ट्रीय, राज्य और जिला स्तर पर मॉनिटरिंग कमिटियों का गठन किया जाएगा।
प्रीलिम्स लिंक:
- FPOs क्या हैं?
- कोआपरेटिवस (Cooperatives) क्या हैं? संवैधानिक प्रावधान।
- CGTMSE के बारे में।
- केंद्रीय क्षेत्रक तथा केंद्र प्रायोजित योजनाएं।
स्रोत: पीआईबी
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य
गंदगी मुक्त भारत
हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा स्वतंत्रता दिवस तक एक सप्ताह चलने वाले ‘गंदगी मुक्त भारत’ अभियान का शुभारंभ किया गया है।
इस सप्ताह के दौरान, 15 अगस्त तक प्रत्येक दिन भारत के शहरों तथा गावों में ‘स्वछता’ के लिए ‘जन आन्दोलन’ को पुनः आरंभ करने के लिए विशेष ‘स्वछता’ पहलें चलायी जायेंगी।