विषय – सूची:
सामान्य अध्ययन-I
1. तात्या टोपे
2. पद्मनाभस्वामी मंदिर मामला
सामान्य अध्ययन-II
1. ट्रांसजेंडर व्यक्तियों (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019
2. ‘प्रज्ञाता’ दिशा-निर्देश
3. द्विपक्षीय व्यापार और निवेश समझौता (BTIA)
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य:
1. नागोर्नो-काराबाख़ क्षेत्र
2. चर्चित स्थल- डल झील
3. चर्चित स्थल- काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान
4. विश्व युवा कौशल दिवस
सामान्य अध्ययन-I
विषय: स्वतंत्रता संग्राम- इसके विभिन्न चरण और देश के विभिन्न भागों से इसमें अपना योगदान देने वाले महत्त्वपूर्ण व्यक्ति/उनका योगदान।
तात्या टोपे
हाल ही में महाराष्ट्र सरकार ने बॉम्बे उच्च न्यायालय को सूचित किया है कि नासिक जिले के येओला (Yeola) में स्थित सेना-नायक तात्या टोपे के राष्ट्रीय स्मारक के निर्माण पर 2.5 करोड़ रु. से अधिक की राशि खर्च की जा चुकी है।
इस राष्ट्रीय स्मारक के निर्माण पर केंद्र सरकार ने अनुमानित लागत की 75% धनराशि के लिए मंजूरी दे दी है, तथा शेष लागत राशि को राज्य द्वारा वहन किया जाएगा।
पृष्ठभूमि:
कुछ समय पूर्व, बॉम्बे उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की गयी थी, जिसमे येओला तालुका में स्वीकृत तात्या टोपे के राष्ट्रीय स्मारक को नासिक जिले में ही अन्य स्थान, येवला तहसील के अंगणगाव गाँव में, स्थानांतरित करने हेतु संबंधित अधिकारियों को निर्देश देने की मांग की गयी थी।
हालांकि, स्मारक का निर्माण कार्य 50% पहले ही पूरा हो चुका है, इस आधार पर न्यायालय ने देर से याचिका दायर करने के कारण अंतरिम राहत देने से इनकार कर दिया है।
तात्या टोपे
इनका मूल नाम रामचंद्र पांडुरंग टोपे था। यह सन 1857 के विद्रोह में भाग लेने वाले महान स्वतंत्रता सेनानियों तथा सेनानायकों में से एक थे।
- इनका जन्म वर्ष 1814 में नासिक, महाराष्ट्र में हुआ था, तथा यह पांडुरंग राव टोपे एवं उनकी पत्नी रुक्माबाई के इकलौते पुत्र थे।
- तात्या टोपे, पेशवा के दत्तक पुत्र नाना साहिब के अंतरग मित्र तथा दाहिना हाथ थे।
- मई 1857 में, तात्या टोपे ने कानपुर में ईस्ट इंडिया कंपनी के भारतीय सैनिकों पर विजय प्राप्त की।
- उन्होंने जनरल विंडहम (General Windham) को ग्वालियर शहर से पीछे हटने पर विवश कर दिया।
- उन्होंने ग्वालियर पर कब्ज़ा करने के लिए झांसी की रानी लक्ष्मी बाई का साथ दिया।
6 दिसंबर, 1857 को सर कॉलिन कैंपबेल (Colin Campbell) ने तात्या टोपे को पराजित किया था। तथा 8 अप्रैल, 1859 को शिवपुरी में जनरल मीड (General Meade) के शिविर में फांसी दी गई थी।
प्रीलिम्स लिंक:
- 1857 के विद्रोह से जुड़ी प्रसिद्ध हस्तियां
- विद्रोह के कारण और प्रभाव
- नाना साहब के बारे में
- विलय नीति क्या थी?
- विद्रोह के बारे में किसने क्या कहा?
मेंस लिंक:
स्वतंत्रता संग्राम में तात्या टोपे के प्रमुख योगदानों पर एक टिप्पणी लिखिए।
स्रोत: द हिंदू
विषय: भारतीय संस्कृति में प्राचीन काल से आधुनिक काल तक के कला के रूप, साहित्य और वास्तुकला के मुख्य पहलू शामिल होंगे।
पद्मनाभस्वामी मंदिर मामला
(Padmanabhaswamy temple case)
हाल ही में, उचत्तम न्यायालय ने वर्ष 2011 में दिए गए केरल उच्च न्यायालय के फैसले को पलटते हुए, केरल के तिरुवनंतपुरम में श्री पद्मनाभ स्वामी मंदिर के प्रशासन में त्रावणकोर के पूर्ववर्ती शाही परिवार के अधिकारों को बरकरार रखा है।
वर्ष 2011 में इस मंदिर के भूमिगत प्रकोष्ठों में एक लाख करोड़ रु. की कीमत के खजाने का पाता लगा था।
चर्चा का विषय
त्रावणकोर के अंतिम शासक ‘चिथिरा थिरुनल बलराम वर्मा’ की वर्ष 1991 में मृत्यु हो गयी थी, इसके पश्चात मुख्य कानूनी प्रश्न यह था, कि क्या अंतिम शासक की मृत्यु के बाद उनके भाई, उत्रेदम थिरुनल मार्तण्ड वर्मा ‘त्रावणकोर का शासक’ होने का दावा कर सकते हैं?
अदालत ने श्री पद्मनाभ स्वामी मंदिर के स्वामित्व, नियंत्रण और प्रबंधन का दावा करने के लिए त्रावणकोर-कोचीन हिंदू धार्मिक संस्था अधिनियम, 1950 के अनुसार ‘त्रावणकोर के शासक’ शब्द के सीमित अर्थ के अंतर्गत इस दावे की जांच की।
निर्णय:
- उचत्तम न्यायालय ने वर्ष 2011 में केरल उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णय को पलट दिया जिसमे उच्च न्यायालय कहा था कि, त्रावणकोर के अंतिम शासक की मृत्यु के साथ परिवार के अधिकारों का अस्तित्व समाप्त हो गया है, तथा केरल सरकार को मंदिर के प्रबंधन और संपत्ति को नियंत्रित करने के लिए एक ट्रस्ट स्थापित करने का निर्देश दिया था।
- उचत्तम न्यायालय ने कहा कि, प्रथागत कानून के अनुसार, देवता के वित्तीय मामलों का प्रबंधन करने का अधिकार (Shebait Rights) अंतिम शासक की मृत्यु के बाद भी परिवार के सदस्यों के साथ जारी रहता है।
- उचत्तम न्यायालय ‘शीबैट’ (Shebait) को ‘प्रतिमा के संरक्षक, सांसारिक प्रवक्ता तथा अधिकृत प्रतिनिधि’ के रूप में परिभाषित किया है, जो इसके सांसारिक मामलों तथा इसकी परिसंपत्तियों का प्रबंधन करेगा।
निर्देश:
न्यायालय में ‘शाही परिवार’ ने मंदिर को ‘सार्वजनिक मंदिर’ के रूप में प्रस्तुत किया है, इसे स्वीकार करते हुए उचत्तम न्यायालय ने भविष्य में मंदिर के पारदर्शी प्रशासन हेतु कई दिशा-निर्देश जारी किए हैं।
- न्यायालय ने एक प्रशासनिक समिति के गठन का निर्देश दिया, जिसके अध्यक्ष तिरुवनंतपुरम जिला न्यायाधीश होंगे।
- समिति के अन्य सदस्यों में ‘ट्रस्टी’ (शाही परिवार) द्वारा नामित मंदिर के मुख्य तंत्री (Thanthri), राज्य द्वारा नामित एक सदस्य तथा केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय द्वारा नामित एक सदस्य होंगे। यह समिति मंदिर के दैनिक प्रशासन की देख-रेख करेगी।
- न्यायालय ने, नीतिगत मामलों पर प्रशासनिक समिति को सलाह देने के लिए एक दूसरी समिति गठित करने का भी आदेश दिया।
- इसकी अध्यक्षता केरल उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश द्वारा नामित सेवानिवृत्त उच्च न्यायालय के न्यायाधीश द्वारा की जाएगी।
1991 से पहले पद्मनाभस्वामी मंदिर का स्वामित्व, नियंत्रण और प्रबंधन किसके पास था?
(घटनाओं का संक्षिप्त अवलोकन):
वर्ष 1947 के पूर्व, सभी मंदिर जो त्रावणकोर तथा कोचीन की पूर्ववर्ती रियासतों के नियंत्रण और प्रबंधन के अधीन थे, स्वतंत्रता के पश्चात ‘त्रावणकोर एवं कोचीन देवासम बोर्डों (Travancore and Cochin Devaswom Boards) के नियंत्रण में आ गये।
- 1949 में त्रावणकोर और कोचीन की रियासत तथा भारत सरकार के बीच विलय संबंधी दस्तावेजों (Instrument of Accession) के अनुसार श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर का प्रशासन ‘त्रावणकोर के शासक’ के ‘विश्वास में निहित’ था।
- वर्ष 1956 में केरल राज्य का निर्माण किया गया था, लेकिन मंदिर का प्रशासन पूर्ववर्ती राजघरानों द्वारा किया जाता रहा।
- वर्ष 1971 में, संवैधानिक संशोधन के माध्यम से पूर्ववर्ती राजघरानों के प्रिवी पर्स (Privy Purses) को समाप्त कर दिया गया तथा उनके विशेषाधिकारों को समाप्त कर दिया गया।
- 1991 में अंतिम शासक की मृत्यु के बाद उनके भाई, उत्रेदम थिरुनल मार्तण्ड वर्मा द्वारा मंदिर प्रबंधन का कार्यभार संभाल लिया गया। इससे भक्तों में रोष छा गया तथा वे इसके विरुद्ध न्यायालय में चले गए। सरकार ने भी याचिकाकर्ताओं का पक्ष लिया तथा इस बात का समर्थन किया कि मार्तण्ड वर्मा को मंदिर के नियंत्रण या प्रबंधन का दावा करने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है।
अनुच्छेद 366 का महत्व
उच्च न्यायालय (HC) ने फैसला सुनाया था, कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 366 (22) में ’शासक’ की परिभाषा में संशोधन के पश्चात पूर्ववर्ती राजघरानों के उत्तराधिकारी श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर के नियंत्रण में होने का दावा नहीं कर सकते हैं।
’शासक’ की परिभाषा को छब्बीसवें संविधान संशोधन अधिनियम, 1971 द्वारा संशोधित किया गया था, तथा इसने पूर्ववर्ती राजघरानों के प्रिवी पर्स को समाप्त कर दिया।
अनुच्छेद 366 (22) के अनुसार, ‘शासक’ का तात्पर्य, राजा, राजकुमार, अथवा किसी अन्य व्यक्ति से है, जो छब्बीसवें (संवैधानिक) संशोधन अधिनियम, 1971 के लागू होने से पूर्व किसी भी समय, एक भारतीय शासक के रूप में अथवा उसके उत्तराधिकारी के रूप में जाना जाता था।
प्रीलिम्स लिंक:
- 26 वां संवैधानिक संशोधन क्या है?
- भारतीय संविधान का अनुच्छेद 366 (22)
- अनुच्छेद 363 ए
- Shebait – परिभाषा
मेंस लिंक:
पद्मनाभस्वामी मंदिर मामले में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: द हिंदू
सामान्य अध्ययन-II
विषय: केन्द्र एवं राज्यों द्वारा जनसंख्या के अति संवेदनशील वर्गों के लिये कल्याणकारी योजनाएँ और इन योजनाओं का कार्य-निष्पादन; इन अति संवेदनशील वर्गों की रक्षा एवं बेहतरी के लिये गठित तंत्र, विधि, संस्थान एवं निकाय।
ट्रांसजेंडर व्यक्तियों (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019
(Transgender Persons (Protection of Rights) Act, 2019)
ट्रांसजेंडर समुदाय द्वारा कड़ी आलोचना करने के बाद, केंद्र सरकार ने ‘ट्रांसजेंडर व्यक्तियों (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम’, 2019 के अंतर्गत तैयार किये गए नये मसौदा नियमों में पहचान प्रमाण पत्र के लिए आवेदन करने वाले ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए चिकित्सा परीक्षण की अनिवार्यता को समाप्त कर दिया है।
ट्रांसजेंडर व्यक्तियों (अधिकारों का संरक्षण) नियम ड्राफ्ट, 2020 का अवलोकन:
- सभी शैक्षणिक संस्थानों में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के किसी भी उत्पीड़न अथवा भेदभाव के मामले की सुनवाई करने के लिए एक समिति गठित की जायेगी।
- ‘उपयुक्त सरकार’, किसी भी सरकारी अथवा निजी संस्थान या किसी प्रतिष्ठान में होने वाले भेदभाव पर रोक लगाने के लिए समुचित कदम उठायेगी।
- राज्य, अधिनियम की धारा 18 के तहत आरोपित ‘व्यक्तियों के शीघ्र अभियोजन’ के लिए उत्तरदायी होंगे। अधिनियम की धारा 18 में ट्रांसजेंडर समुदाय के विरुद्ध अपराधों तथा दंड का प्रावधान किया गया है।
- ट्रांसजेंडर समुदाय के विरुद्ध अपराध में जुर्माने के साथ छह महीने से दो साल तक की कारावास हो सकती है।
- राज्य सरकारें, ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के खिलाफ अपराधों के मामलों की निगरानी करने तथा अधिनियम की धारा 18 को लागू करने के लिए जिला मजिस्ट्रेट और DGP के तहत एक ट्रांसजेंडर संरक्षण सेल का गठन करेंगी।
ट्रांसजेंडर व्यक्तियों (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019:
ट्रांसजेंडर व्यक्ति की परिभाषाः अधिनियम के अनुसार, ट्रांसजेंडर व्यक्ति वह व्यक्ति है जिसका लिंग जन्म के समय नियत लिंग से मेल नहीं खाता। इसमें ट्रांस-मेन (परा-पुरुष) और ट्रांस-विमेन (परा-स्त्री), इंटरसेक्स भिन्नताओं और जेंडर क्वीर आते हैं। इसमें सामाजिक-सांस्कृतिक पहचान वाले व्यक्ति, जैसे किन्नर, हिंजड़ा, भी शामिल हैं।
इंटरसेक्स भिन्नताओं वाले व्यक्तियों की परिभाषा में ऐसे लोग शामिल हैं जो जन्म के समय अपनी मुख्य यौन विशेषताओं, बाहरी जननांगों, क्रोमोसम्स या हारमोन्स में पुरुष या महिला शरीर के आदर्श मानकों से भिन्नता का प्रदर्शन करते हैं।
भेदभाव पर प्रतिबंध: अधिनियम, ट्रांसजेंडर व्यक्तियों से भेदभाव पर प्रतिबंध लगाता है, जिसके अंतर्गत शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य सेवा, सार्वजनिक स्तर पर उपलब्ध उत्पादों, सुविधाओं और अवसरों तक पहुंच और उसका उपभोग, कहीं आने-जाने का अधिकार, किसी प्रॉपर्टी में निवास करने, उसे किराये पर लेने, स्वामित्व हासिल करने सार्वजनिक या निजी पद को ग्रहण करने का अवसर के अधिकार से वंचित करने पर छह महीने से दो साल तक की कारावास हो सकती है।
निवास का अधिकार: प्रत्येक ट्रांसजेंडर व्यक्ति को अपने परिवार में रहने और उसमें शामिल होने का अधिकार है। अगर किसी ट्रांसजेंडर व्यक्ति का निकट परिवार उसकी देखभाल करने में अक्षम है तो उस व्यक्ति को न्यायालय के आदेश के बाद पुनर्वास केंद्र में भेजा जा सकता है।
पृष्ठभूमि:
यह कानून, केंद्र और राज्य सरकारों को सभी ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को कानूनी अधिमान्यता तथा उनके कल्याण के लिए शुरू किए गए सक्रिय उपायों को सुनिश्चित करने के लिए राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (NALSA) बनाम भारत सरकार मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए निर्देशों का परिणाम था।
राष्ट्रीय ट्रांसजेंडर परिषद (National Council for Transgender persons– NCT)
यह अधिनियम राष्ट्रीय ट्रांसजेंडर परिषद की स्थापना का प्रावधान करता है, जिसमे निम्नलिखित सदस्य होंगे:
- केंद्रीय सामाजिक न्याय मंत्री (अध्यक्ष),
- सामाजिक न्याय राज्य मंत्री (सह अध्यक्ष),
- सामाजिक न्याय मंत्रालय के सचिव, और
- स्वास्थ्य, गृह मामलों, आवास, मानव संसाधन विकास से संबंधित मंत्रालयों के प्रतिनिधि।
- अन्य सदस्यों में नीति आयोग, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के प्रतिनिधि शामिल होंगे। राज्य सरकारों को भी प्रतिनिधित्व दिया जाएगा। इसके अतिरिक्त परिषद में ट्रांसजेंडर समुदाय के पांच सदस्य और गैर सरकारी संगठनों के पांच विशेषज्ञ भी शामिल होंगे।
प्रीलिम्स लिंक:
- ट्रांसजेंडर- परिभाषा
- NCT – संरचना
- संसद में विधेयक को पारित करने हेतु प्रक्रिया
- NHRC – संरचना
- स्वतंत्रता के अधिकार तथा भेदभाव के विरुद्ध अधिकारों का अवलोकन
मेंस लिंक:
अधिनियम के महत्व तथा इसके अंतर्गत हल की जाने वाली चिंताओं पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: द हिंदू
विषय: स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय।
‘प्रज्ञाता’ दिशा-निर्देश
(PRAGYATA guidelines)
केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा डिजिटल शिक्षा पर ‘प्रज्ञाता’ (PRAGYATA) दिशा-निर्देश जारी किए गए।
- प्रज्ञाता दिशा-निर्देशों में ऑनलाइन / डिजिटल शिक्षा के आठ चरण- योजना- समीक्षा- व्यवस्था- मार्गदर्शन- याक (बात) – निर्धारण- ट्रैक- सराहना को सम्मिलित किया गया हैं।
- ये आठ चरण उदाहरणों के साथ चरणबद्ध तरीके से डिजिटल शिक्षा की योजना और कार्यान्वयन का मार्गदर्शन करते हैं।
दिशा-निर्देश स्कूल प्रशासकों, स्कूल प्रमुखों, शिक्षकों, अभिभावकों और छात्रों को निम्नलिखित क्षेत्रों में सुझाव प्रदान करते हैं:
- मूल्यांकन की आवश्यकता
- ऑनलाइन और डिजिटल शिक्षा की योजना बनाते समय कक्षा के अनुसार सत्र की अवधि,स्क्रीन समय, समावेशिता, संतुलित ऑनलाइन और ऑफ़लाइन गतिविधियां आदि
- हस्तक्षेप के तौर-तरीके जिनमें संसाधनों का, कक्षा के स्तर में अनुसार वितरण आदि सम्मिलित हैं।
- डिजिटल शिक्षा के दौरान शारीरिक, मानसिक स्वास्थ्य और तंदुरूस्ती
- साइबर सुरक्षा तथा नैतिकता को बनाए रखने के लिए सावधानियां तथा सुरक्षा उपाय
- विभिन्न पहलों के साथ समन्वय तथा सहयोग
ऑनलाइन शिक्षा पर दिशा-निर्देशों की आवश्यकता:
ऑनलाइन शिक्षा ने महामारी के दौरान बच्चों की पढ़ाई को लेकर उत्पन्न कमियों को काफी हद तक दूर किया है लेकिन छात्रों को शिक्षित करने के लिए डिजिटल तकनीकों का उपयोग करते समय अत्यधिक सावधानी की आवश्यकता होगी।
महामारी के प्रभाव को कम करने के लिए स्कूलों को न केवल अब तक पढ़ाने और सिखाने के तरीके को बदलकर फिर से शिक्षा प्रदान करने के नए मॉडल तैयार करने की आवश्यकता है। इसके साथ ही घर पर स्कूली शिक्षा तथा विद्यालय में शिक्षा के एक स्वस्थ मिश्रण के माध्यम से बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने की एक उपयुक्त विधि भी पेश करनी होगी।
स्रोत: द हिंदू
विषय: द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक समूह और भारत से संबंधित और/अथवा भारत के हितों को प्रभावित करने वाले करार।
द्विपक्षीय व्यापार और निवेश समझौता (BTIA)
(Bilateral Trade and Investment Agreement)
आगामी आभासी ‘यूरोपीय संघ – भारत शिखर सम्मलेन’ (EU- India Summit) में नेताओं द्वारा द्विपक्षीय व्यापार और निवेश समझौते (Bilateral Trade and Investment Agreement-BTIA) पर वार्ता में तेजी लाने की उम्मीद की जा रही है।
भारत तथा यूरोपीय संघ के मध्य एक मुक्त व्यापार क्षेत्र (Free Trade Area-FTA) के मुद्दे पर काफी समय से वार्ता चल रही है, परन्तु विभिन्न मुद्दों पर मतभेद के कारण वार्ता रुकी हुई है।
चुनौतियां:
द्विपक्षीय व्यापार और निवेश समझौते (BTIA) पर वार्ताकार अभी आगे नहीं बढ़ पाए है, क्योंकि यूरोप, भारत को ‘संरक्षणवादी’ मानता है।
इसके आलावा, COVID-19 संकट के दौरान ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम को तेज किया गया है, तथा हाल ही में भारत द्वारा ‘आत्म-निर्भर’ होने के लिए की गयी घोषणाओं ने यूरोपीय देशों में द्विपक्षीय व्यापार और निवेश समझौते (BTIA) पर आगे बढ़ने के लिए आशंका उत्पन्न की है।
भारत- EU व्यापार:
भारत तथा यूरोपीय संघ (EU) के मध्य व्यापार, EU के कुल वैश्विक व्यापार का मात्र 3% है, जो कि दोनों पक्षों के मध्य संबंधो को देखते हुए काफी कम है।
इसके विपरीत, EU भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार तथा निवेशक है। भारत के कुल वैश्विक व्यापार का 11% यूरोपीय संघ (EU) के साथ होता है।
BTIA के बारे में:
जून 2007 में, भारत और यूरोपीय संघ द्वारा ब्रुसेल्स, बेल्जियम में एक ‘वैविध्यपूर्ण द्विपक्षीय व्यापार और निवेश समझौते’ (Broad-Based Bilateral Trade and Investment Agreement- BTIA) पर वार्ता का आरम्भ किया गया।
ये वार्ता, 13 अक्टूबर, 2006 में हेलसिंकी में आयोजित सातवें भारत यूरोपीय संघ शिखर सम्मेलन में राजनेताओं द्वारा, भारत-यूरोपीय संघ उच्च स्तरीय तकनीकी समूह की रिपोर्ट के आधार पर एक ‘वैविध्यपूर्ण द्विपक्षीय व्यापार और निवेश समझौते’ पर विचार करने हेतु घोषित प्रतिबद्धताओं के अनुरूप थी।
महत्व:
भारत तथा यूरोपीय संघ, वस्तु तथा सेवाओं के व्यापार में आने वाली बाधाओं को दूर करके परस्पर द्विपक्षीय व्यापार, तथा अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों में निवेश को बढ़ावा देने की अपेक्षा रखते हैं।
दोनों पक्षों का मानना है कि, WTO के नियमों और सिद्धांतों के अनुरूप, एक व्यापक और महत्वाकांक्षी समझौता, भारतीय और यूरोपीय संघ के व्यवसायों के लिए नए बाजार खोलेगा तथा अवसरों का विस्तार करेगा।
वार्ता-क्षेत्र:
वस्तु व सेवा व्यापार, निवेश, स्वच्छता और हरित स्वच्छता संबंधी उपाय, व्यापार में तकनीकी बाधाएँ, व्यापार उपचार, स्रोत संबंधी नियम, सीमा शुल्क तथा व्यापार सुविधा, प्रतिस्पर्धा, व्यापार सुरक्षा, सरकारी खरीद, विवाद निपटान, बौद्धिक संपदा अधिकार और भौगोलिक संकेत, सतत विकास।
वर्तमान विचार-विषय
यूरोपीय संघ द्वारा कुछ मांगों, जैसे ऑटोमोबाइल क्षेत्र, वाइन तथा स्पिरट्स, के लिए अधिक बाजार पहुँच, और बैंकिंग, बीमा तथा ई-कॉमर्स जैसे वित्तीय सेवा क्षेत्र के विस्तार आदि के मुद्दों पर सहमति नहीं बन पाने के कारण आगे की वार्ताएं वर्ष 2013 से शिथिल पड़ी हुई हैं।
यूरोपीय संघ, श्रम, पर्यावरण और सरकारी खरीद को भी वार्ता-प्रक्रिया में सम्मिलित करना चाहता है।
भारत, आसान कार्य-वीजा तथा स्टडी वीज़ा मानकों के साथ-साथ सुरक्षित डेटा स्टेटस की मांग कर रहा है, जिससे जिससे यूरोपीय कंपनियां अपने व्यापार को आसानी पूर्वक भारत से आउटसोर्स कर सकेंगी। भारत की इन मांगों पर यूरोपीय संघ द्वारा उत्साहपूर्वक प्रतिक्रिया नहीं दी गयी।
प्रीलिम्स लिंक:
- BTIA – अवलोकन
- Brexit क्या है?
- यूरोपीय संघ बनाम यूरोज़ोन
संक्षिप्त विवरण:
- दक्षिण एशिया मुक्त व्यापार समझौता (SAFTA)
- भारत-आसियान व्यापक आर्थिक सहयोग समझौता (CECA)
- भारत-कोरिया व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौता (CEPA)
स्रोत: द हिंदू
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य
नागोर्नो-काराबाख़ क्षेत्र
(Nagorno-Karabakh region)
नागोर्नो-काराबाख़ क्षेत्र को आर्त्शाख़ (Artsakh) नाम से भी जाना जाता है। यह काराबाख़ पर्वत श्रेणी में स्थित दक्षिण काकेशस का स्थलरुद्ध क्षेत्र है।
यह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अज़रबैजान के हिस्से के रूप में मान्यता प्राप्त है।
चर्चा का कारण
यह स्थलरुद्ध नागोर्नो-काराबाख़ का यह पर्वतीय क्षेत्र, अज़रबैजान तथा इसकी आर्मीनियाई मूल की आबादी के बीच अनसुलझे विवाद का विषय बना हुआ है। अलगाववादियों को पड़ोसी देश आर्मेनिया का समर्थन मिला हुआ है।
चर्चित स्थल- डल झील:
- यह केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर में दूसरी सबसे बड़ी झील है।
- इसे ‘कश्मीर के मुकुट का नगीना’ तथा ‘श्रीनगर का गहना’ नाम दिया गया है।
- झील, तैरते हुए बगीचों सहित प्राकृतिक आर्द्रभूमि का हिस्सा है।
- झील शंकराचार्य पहाड़ियों की तलहटी में ज़बरवन (Zabarwan) पर्वत घाटी में स्थित है। यह तीन ओर से पहाड़ियों से घिरी हुई है।
चर्चित स्थल- काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान:
यह असम राज्य में स्थित है।
- यह ब्रह्मपुत्र घाटी के उपजाऊ जलोढ़ मैदान में विस्तृत है।
- इसे 1974 में राष्ट्रीय उद्यान के रूप में तथा वर्ष 2007 से टाइगर रिज़र्व घोषित किया गया है।
- इसे 1985 में यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया था।
- इसे बर्डलाइफ इंटरनेशनल द्वारा महत्वपूर्ण पक्षी क्षेत्र के रूप में मान्यता प्राप्त है।
- काजीरंगा में ‘बड़ी चार’ प्रजातियों- राइनो, हाथी, रॉयल बंगाल टाइगर और एशियाई जल भैंस के संरक्षण के प्रयासों हेतु कार्यक्रम चलाये जा रहे है।
- काज़ीरंगा भारतीय उपमहाद्वीप में पाए जाने वाले प्राइमेट्स की 14 प्रजातियों में से 9 का आवास भी है।
विश्व युवा कौशल दिवस:
(World Youth Skills Day)
- 15 जुलाई को विश्व युवा कौशल दिवस के रूप में चिह्नित किया गया है।
- इसे 2014 में संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) द्वारा नामित किया गया था।
- 2020 के लिए थीम: ‘उत्साही युवाओं के लिए कौशल’ (Skills for a Resilient Youth)।
- यह दिन स्किल इंडिया मिशन के शुभारंभ की 5वीं वर्षगांठ का प्रतीक है।