INSIGHTS करेंट अफेयर्स+ पीआईबी नोट्स [ DAILY CURRENT AFFAIRS + PIB Summary in HINDI ] 27 June

विषय-सूची

सामान्य अध्ययन-II

1. महामारी द्वारा शिक्षा प्रणाली पर आरोपित चुनौतियों का खड़ा वक्र

2. संयुक्त राष्ट्र- 75 घोषणा में देरी

3. आसियान देशो को दक्षिणी चीन सागर में तनाव संबधी चेतावनी

 

सामान्य अध्ययन-III

1. मसौदा, पर्यावरण प्रभाव आकलन अधिसूचना (EIA)

2. ‘गन्स, जर्म्स और स्टील’ के संकट से मुक्ति

 

प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य

1. प्लेसबो (Placebos) क्या हैं?

 


 सामान्य अध्ययन-II


 

विषय: शिक्षा संबंधी विषय।

महामारी द्वारा शिक्षा प्रणाली पर आरोपित चुनौतियों का खड़ा वक्र

संदर्भ:

समस्त विश्व में COVID-19 महामारी ने शिक्षा को काफी प्रभावित किया है।

  • अधिकांशतः शिक्षण ऑनलाइन माध्यम परिवर्तित हो गया है।
  • जहाँ भी संभव है, उच्च शिक्षा, डिजिटल हो गयी है।

भारत सरकार के प्रयास:

मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा उच्च शिक्षा के लिए ‘नेशनल प्रोग्राम ऑन टेक्नोलॉजी इन्हैन्स्ड लर्निंग’ (NPTEL) तथा ‘स्टडी वेब्स ऑफ एक्टिव लर्निंग फॉर यंग एस्पायरिंग माइंड्स’ (SWAYAM) मंचों के माध्यम से ‘मैसिव ओपन ऑनलाइन कोर्सेज़’ (Massive Open Online Courses- MOOCs) का प्रयोग करने हेतु प्रोत्साहित किया जा रहा है।

परन्तु, भारत में, शिक्षाविदों तथा नीति निर्माताओं द्वारा ऑनलाइन शिक्षा पर सावधानी बरतने की सलाह दी जाती हैं। क्यों?

  1. भारत में मौजूद, ग्रामीण तथा शहरी बुनियादी ढांचे में विषमता, कर्मचारियों की परिवर्तनीय गुणवत्ता, और विविध प्रकार के पढाये जाने वाले विषय।
  2. जिन विषयों की पढाई के लिए, पारंपरिक प्रयोगशाला तथा प्रयोगात्मक अवयवों की आवश्यकता होती है, ऑनलाइन शिक्षण उनका विकल्प नहीं हो सकता है।
  3. शिक्षा में प्रौद्योगिकी के समावेशन तथा प्रयोग हेतु विशिष्ट संस्थानों तथा उनकी अवस्थिति पर निर्भरता: बैंडविड्थ और विश्वसनीय कनेक्टिविटी के मामले में देश में काफी बड़ा डिजिटल विभाजन, तथा साथ ही, वितीय स्रोतों तक पहुँच में विषमता।
  4. शिक्षा के ऑनलाइन करने से सभी विषयों में शैक्षणिक अनुसंधान पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है। इसके लिए अनुसंधान पर्यवेक्षण में व्यक्तिगत रूप से वार्ता तथा चर्चा की आवश्यकता है।
  5. सभी छात्रों की इंटरनेट तक समान पहुंच नहीं है, और किसी भी संस्थान की किसी भी कक्षा में आधे से अधिक छत्रों के पास अपने घरों से रियल टाइम में व्याख्यान में भाग लेने हेतु आवश्यक हार्डवेयर और इलेक्ट्रिकल कनेक्टिविटी नहीं होती है।
  6. अधिकाँश ऑनलाइन कक्षाएं, नियमित कक्षा के व्याख्यानों का ख़राब वीडियो संस्करण होती हैं। सभी शिक्षक इससे संतुष्ट नहीं हैं।

इसमें किस प्रकार सुधार किया जा सकता है?

भारत में यह उच्च शिक्षा की पुनर्कल्पना करने का अवसर है। काफी लंबे समय से भारत में उच्च शिक्षा अभिजात्य स्वरूप में तथा बहिष्कृत करने वाली रही है; शिक्षा, ज्ञान अर्जन के बारे में कम तथा डिग्री हासिल करने के बारे में अधिक हो चुकी है। यदि हम चाहें तो, महामारी के दौरान इसमें परिवर्तन किया जा सकता है।

शिक्षा में सुधार हेतु कुछ उपाय:

  1. उदाहरणार्थ, गांधीजी की अवधारणा, “नई तालीम” में स्व-अध्ययन तथा अनुभवात्मक ज्ञान को विशेष प्राथमिकता दी गयी है।
  2. प्रत्येक छात्र को उसके सीखने की जरूरतों के आधार पर व्यक्तिगत रूप से शिक्षण हेतु ‘कृत्रिम बुद्धिमत्ता’ (Artificial IntelligenceAI) जैसे डिजिटल उपकरणों का प्रयोग किया जा सकता है।
  3. शैक्षणिक सामग्री को अन्य राष्ट्रीय भाषाओं में उपलब्ध कराया जाना चाहिए; इससे शिक्षा तक पहुंच में विस्तार होगा, तथा दूरदराज के संस्थानों में कर्मचारियों की कमी को दूर करने में मदद मिलेगी।
  4. डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर को सुधारने तथा और प्रत्येक जरूरतमंद छात्र की लैपटॉप या स्मार्टफोन तक पहुंच सुनिश्चित करने के लिए राज्य को अधिकाँश जिम्मेदारी उठानी होगी।

 प्रीलिम्स लिंक:

  1. NPTEL के बारे में
  2. SWAYAM पोर्टल
  3. नई तालीम का क्या अर्थ है?

मेंस लिंक:

समस्त विश्व में COVID-19 महामारी ने शिक्षा को काफी प्रभावित किया है। अधिकांशतः शिक्षण ऑनलाइन माध्यम परिवर्तित हो गया है। ऑनलाइन लर्निंग से जुड़े मुद्दों पर चर्चा कीजिए।

स्रोत: द हिंदू

 

विषय: भारत के हितों पर विकसित तथा विकासशील देशों की नीतियों तथा राजनीति का प्रभाव; प्रवासी भारतीय।

संयुक्त राष्ट्र 75 घोषणा में देरी

चर्चा का कारण

संयुक्त राष्ट्र चार्टर पर हस्ताक्षर किये जाने की 75 वीं वर्षगांठ पर की जाने वाली स्मारक घोषणा के जारी किये जाने में देरी हो रही है।

क्यों?

सभी सदस्य देशों द्वारा, घोषणा में प्रयुक्त ‘शब्द-रचना’ (Phraseology) पर सहमति नहीं हो सकी है। कुछ सदस्य देशों ने एक वाक्यांश “सर्वनिष्ठ भविष्य हेतु साझा दृष्टि” (Shared Vision Of A Common Future) के उपयोग पर आपत्ति जताई है।

सदस्यों के अनुसार उपरोक्त वाक्यांश, चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (CPC) तथा विशेष रूप से चीनी राष्ट्रपति, ‘शी जिनपिंग’ के वैश्विक दृष्टिकोण ‘मानव जाति हेतु साझा भविष्य के लिये समर्पित समुदाय” (community with a shared future for mankind) से जुड़ा प्रतीत होता है।

आपत्तिकर्ता देश

भारत सहित, द फाइव आइज़ (The Five Eyes)- संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड तथा कनाडा ने उपरोक्त वाक्यांश प्रयोग पर आपत्ति दर्ज की है।

मौजूदा गतिरोध उस समय आया है जब भारत, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका सहित कई लोकतंत्रों के साथ चीन के रिश्ते तनावपूर्ण स्थिति में हैं।

मौन प्रक्रिया (Silence process):

सदस्य देशों द्वारा उठाई गयी आपत्ति के कारण, ‘मौन‘ प्रक्रिया (यह एक प्रक्रिया होती है, जिसके द्वारा निर्धारित समय के भीतर कोई आपत्ति नहीं उठाये जाने पर किसी प्रस्ताव को पारित किया जाता है) भंग हो गयी है।

यद्यपि, चीन द्वारा रूस, सीरिया तथा पाकिस्तान की ओर से मौन-भंग करने पर आपत्ति जताई गयी है।

आपत्तिकर्ता देशों की मांग  

आपत्तिकर्ता देशों की मांग है, कि प्रस्ताव को “हम वर्तमान और भावी पीढ़ियों की सर्वनिष्ठ भलाई के लिए पारस्परिक समन्वय और वैश्विक प्रशासन को मजबूत करने तथा संयुक्त राष्ट्र चार्टर की प्रस्तावना में परिकल्पित ‘बेहतर भविष्य के लिए साझा दृष्टि’ को हासिल करने हेतु सभी भागीदारों के साथ मिलकर कार्य करेंगे।” के रूप में सम्मिलित किया जाये।

संयुक्त राष्ट्र चार्टर पर हस्ताक्षर की 75 वीं वर्षगांठ:

संयुक्त राष्ट्र चार्टर पर, 26 जून, 1945 को सैन फ्रांसिस्को में हस्ताक्षर किए गए थे तथा यह 24 अक्टूबर, 1945 से प्रभावी हुआ।

इस चार्टर के माध्यम से ‘संयुक्त राष्ट्र’ की स्थापना की गयी थी।

उद्देश्य:

इसका उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय कानूनों को सुविधाजनक बनाने हेतु सहयोग प्रदान करना, अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा, आर्थिक एवं सामाजिक विकास तथा मानवाधिकारों की सुरक्षा के साथ-साथ विश्व शांति के लिये कार्य करना है।

चार्टर के रूप में, यह संवैधानिक संधि है, इसके अनुच्छेद सभी सदस्य देशों पर बाध्यकारी हैं।

फाइव आइज़ क्या है?

यह एक खुफिया गठबंधन है, जिसमें ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, न्यूजीलैंड, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका शामिल हैं। ये देश बहुपक्षीय यूके-यूएसए समझौते (UKUSA Agreement) के पक्षकार हैं। यूके-यूएसए समझौता, सिग्नल की खुफिया जानकारी हेतु सहयोग के लिए एक बहुपक्षीय समझौता है।

उत्पत्ति: इसकी शुरुआत वर्ष 1946 में हुई थी। इसके अंतर्गत, संयुक्त राज्य अमेरिका और यूनाइटेड किंगडम, अन्य विदेशी राष्ट्रों के संचार पर खुफिया जानकारी के आदान-प्रदान के लिए सहमत हुए थे। वर्ष 1948 में कनाडा तथा वर्ष 1956 में ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड, इस गठबंधन में सम्मिलित हुए।

प्रीलिम्स लिंक:

  1. संयुक्त राष्ट्र चार्टर की मुख्य विशेषताएं।
  2. यह कब लागू हुआ?
  3. संयुक्त राष्ट्र के विभिन्न अंग
  4. मौन प्रक्रिया का अर्थ
  5. फाइव आइज़

स्रोत: द हिंदू

 

विषय: भारत के हितों पर विकसित तथा विकासशील देशों की नीतियों तथा राजनीति का प्रभाव; प्रवासी भारतीय।

आसियान देशो को दक्षिणी चीन सागर में तनाव संबधी चेतावनी

(ASEAN states warn of S. China Sea tensions)

चर्चा का कारण

चीन, अन्य देशों के विशेष आर्थिक क्षेत्रों में अपनी उपस्थिति को मजबूत कर रहा है, जबकि संबंधित देश COVID-19 महामारी से निपटने में उलझे हुए है। चीन के इरादों को भांपते हुए, अमेरिका ने चीन से उसके “दादागिरी वाले व्यवहार” को रोकने के लिए कहा है।

  • अप्रैल में, बीजिंग ने एकतरफा रूप से विवादित द्वीपों पर नए प्रशासनिक जिलों के निर्माण की घोषणा की थी, इन द्वीपों पर वियतनाम तथा फिलीपींस भी अपने-अपने अधिकार का दावा करते है।
  • अप्रैल के आरंभ में, वियतनाम ने दावा किया, कि उसकी एक मछली पकड़ने वाली नाव एक चीनी समुद्री निगरानी पोत द्वारा नष्ट कर दी गयी थी।
  • जनवरी माह में, एक चीनी जहाज द्वारा, इंडोनेशिया के उत्तरी द्वीपों के तटवर्ती विशेष आर्थिक क्षेत्र का अतिक्रमण किया गया था।

इन घटनाओं के मद्देनजर, वियतनाम और फिलीपींस को दक्षिण पूर्व एशिया में बढ़ती असुरक्षा के संबंध में चेताया गया है।

इसके अलावा,  चीन द्वारा, अक्सर ‘नाइन-डैश लाइन’ (Nine-Dash line) का उपयोग अपने समुद्र क्षेत्रीय दावों के लिए किया जाता है, इसके माध्यम से चीन का इंडोनेशिया के साथ एक बार फिर विवाद हो रहा है। इंडोनेशिया का कहना है कि इस लाइन का कोई अंतरराष्ट्रीय कानूनी आधार नहीं है।

चिंता का प्रमुख कारण:

‘क्षेत्रीय विवादों को शांतिपूर्ण तरीकों से हल करना’, ‘दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के संगठन’ (Association of Southeast Asian Nations- ASEAN) के मूलभूत सिद्धांतों में से एक है। परन्तु, इन वर्षों में, दक्षिण चीन सागर विवादों पर आसियान की स्थिति ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छवि को कमजोर किया है। आसियान द्वारा इन विवादों को हल करने में विफल रहने से एक प्रभावी क्षेत्रीय संगठन के रूप में इसकी विश्वसनीयता पर सवाल खड़े हुए हैं।

विवादों के बारे में:

चीन के दक्षिणी चीन सागर तथा क्षेत्र में स्थित अन्य देशो से विवादो के केद्र में समुद्री क्षेत्रों में संप्रभुता स्थापित करने संबंधी विवाद है। इस क्षेत्र में ‘पारसेल द्वीप समूह’ (Paracels Islands) तथा ‘स्प्रैटली द्वीप समूह’ (Spratley Islands) दो श्रंखलाएं अवस्थित है, यह द्वीप समूह कई देशों की समुद्री सीमा में बिखरे हुए है, जोकि इस क्षेत्र में विवाद का एक प्रमुख कारण है।

पूर्ण विकसित द्वीपों के साथ-साथ स्कारबोरो शोल जैसी, दर्जनों चट्टाने, एटोल, सैंडबैंक तथा रीफ भी विवाद का कारण हैं।

विभिन्न देशों के विवादित क्षेत्र पर दावे

  1. चीन:

इस क्षेत्र में सबसे बड़े क्षेत्र पर अधिकार का दावा करता है, इसके दावे का आधार ‘नाइन-डैश लाइन’ है, जो चीन के हैनान प्रांत के सबसे दक्षिणी बिंदु से आरंभ होकर सैकड़ों मील दक्षिण और पूर्व में फली हुई है।

  1. वियतनाम:

वियतनाम का चीन के साथ पुराना ऐतिहासिक विवाद है। इसके अनुसार, चीन ने वर्ष 1940 के पूर्व कभी भी द्वीपों पर संप्रभुता का दावा नहीं किया था, तथा 17 वीं शताब्दी के बाद से ‘पारसेल द्वीप समूह’ तथा ‘स्प्रैटली द्वीप समूह’ पर वियतनाम का शासन रहा है – और इसे साबित करने के लिए उसके पास पर्याप्त दस्तावेज मौजूद हैं।

  1. फिलीपींस:

फिलीपींस और चीन दोनों स्कारबोरो शोल (इसे चीन में हुआंग्यान द्वीप के रूप में जाना जाता है) पर अपने अधिकार का दावा करते हैं। यह फिलीपींस से 100 मील और चीन से 500 मील की दूरी पर स्थित है।

  1. मलेशिया और ब्रुनेई:

ये देश दक्षिण चीन सागर में अपने अधिकार-क्षेत्र का दावा करते हैं, इनका कहना है कि, संबंधित क्षेत्र ‘यूनाइटेड नेशंस कन्वेंशन ऑफ द लॉ ऑफ द सी’ (United Nations Convention on the Law of the SeaUNCLOS), 1982 द्वारा निर्धारित उनके विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र में आता है।

हालांकि, ब्रुनेई किसी भी विवादित द्वीप पर अपने अधिकार-क्षेत्र का दावा नहीं करता है, परन्तु मलेशिया ‘स्प्रैटली द्वीप समूह’ में एक छोटे से हिस्से पर अपना दावा करता है।

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प्रीलिम्स लिंक:

  1. विवाद में शामिल देश
  2. नाइ-डैश लाइन क्या है?
  3. विवादित द्वीप और उनकी अवस्थिति
  4. UNCLOS क्या है?
  5. ताइवान स्ट्रेट और लूजॉन स्ट्रेट की अवस्थिति

मेंस लिंक:

दक्षिण चीन सागर विवाद पर एक टिप्पणी लिखिए।

स्रोत: द हिंदू

 


 सामान्य अध्ययन-III


 

विषय: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन।

मसौदा, पर्यावरण प्रभाव आकलन अधिसूचना (EIA)

(draft Environment Impact Assessment Notification)

चर्चा का कारण

समस्त भारत के कई विश्वविद्यालयों तथा कॉलेजों के छात्र संघों ने प्रस्तावित पर्यावरण प्रभाव आकलन अधिसूचना 2020 के मसौदे को स्थगित करने के लिए केंद्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर से मांग की है।

पृष्ठभूमि:

भारत में पर्यावरण प्रभाव आकलन (Environment Impact Assessment- EIA), को वैधानिक रूप से ‘पर्यावरण संरक्षण अधिनियम’, 1986 द्वारा स्थापित किया गया है। अधिनियम में EIA संबंधी पद्धतियों तथा प्रक्रियायों हेतु विभिन्न प्रावधान किये गए हैं।

पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम (Environment (Protection) Act,), 1986 के अंतर्गत केंद्र सरकार को, पर्यावरण की सुरक्षा तथा सुधार के लिए सभी उपाय करने हेतु मसौदा अधिसूचना जारी करने शक्ति प्रदान कई गयी है।

प्रस्तावित मसौदे में विवाद के प्रमुख बिंदु:

  • प्रस्तावित मसौदे में सार्वजनिक परामर्श सुनवाई की अवधि घटाकर अधिकतम 40 दिन कर दिया गया है।
  • मसौदे में पर्यावरण मंजूरी लेने के लिए किसी आवेदन पर सार्वजनिक सुनवाई के दौरान जनता को अपनी प्रतिक्रियाएं देने की अवधि 30 दिनों से घटाकर 20 दिन की गयी है।
  • इसके अंतर्गत, कुछ क्षेत्रों को बिना सार्वजनिक सुनवाई अथवा पर्यावरणीय मंजूरी के “आर्थिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों” के रूप में घोषित करने का प्रावधान किया गया है, तथा, साथ ही, “लाल” और “नारंगी” श्रेणी के वर्गीकृत विषैले उद्योगों को ‘संरक्षित क्षेत्र’ से 0-5 किमी की दूरी पर स्थापित किया जा सकता है।
  • खनन परियोजनाओं के लिए पर्यावरण की मंजूरी की बढ़ती वैधता, (वर्तमान में 50 वर्ष बनाम 30 वर्ष) और नदी घाटी परियोजनाएं (वर्तमान में 15 वर्ष बनाम 10 वर्ष), से परियोजनाओं के कारण होने वाले अपरिवर्तनीय पर्यावरणीय, सामाजिक और स्वास्थ्य संबधी खतरों में वृद्धि होने की संभावना है।

पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA) क्या है?

पर्यावरण प्रभाव आकलन (Environment Impact Assessment- EIA) किसी प्रस्तावित परियोजना के संभावित पर्यावरणीय प्रभाव के आंकलन हेतु एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया के तहत किसी भी विकास परियोजना या गतिविधि को अंतिम मंजूरी देने के लिए लोगों के विचारों पर ध्यान दिया जाता है। यह मूलतः, एक निर्णय लेने वाला तंत्र है, जो यह तय करता है कि किसी परियोजना को मंजूरी दी जानी चाहिए या नहीं।

EIA प्रक्रिया के विभिन्न चरण

स्क्रीनिंग: इस चरण यह तय किया जाता है, कि किन परियोजनाओं के लिए पूर्ण अथवा आंशिक आंकलन अध्ययन की आवश्यकता है।

विषय-क्षेत्र (Scoping): इस चरण यह तय किया जाता है, कि किन प्रभावों का आकलन किया जाना आवश्यक है। इसका निर्णय, कानूनी आवश्यकताओं, अंतर्राष्ट्रीय अभिसमयों, विशेषज्ञ-ज्ञान और सार्वजनिक सहभागिता के आधार पर किया जाता है। इसके अंतर्गत वैकल्पिक समाधानों पर भी विचार किया जाता है।

प्रभावों का आंकलन तथा मूल्यांकन एवं विकल्पों का विकास: यह चरण प्रस्तावित परियोजना के पर्यावरणीय प्रभावों की पहचान करता है तथा उनका अनुमान लगाता है तथा, साथ ही विकल्पों के विस्तार पर विचार करता है।

EIA रिपोर्ट: इस रिपोर्टिंग चरण में, आम जनता के लिए, एक पर्यावरण प्रबंधन योजना (EMP) तथा परियोजना के प्रभाव का एक गैर-तकनीकी सारांश तैयार किया गया है। इस रिपोर्ट को पर्यावरण प्रभाव व्यक्तव्य (Environmental Impact Statement- EIS) भी कहा जाता है।

निर्णय लेना: इस चरण में, परियोजना को किन शर्तों के तहत मंजूरी दी जानी है या नहीं और इस पर निर्णय लिया जाता है।

निगरानी, ​​अनुपालन, प्रवर्तन और पर्यावरण लेखा परीक्षा: इस चरण में, पर्यावरण प्रबंधन योजना (EMP) के अनुसार, अनुमानित प्रभावों तथा किये जा रहे शमन प्रयासों की निगरानी की जाती है।

प्रीलिम्स लिंक:

  1. EIA प्रक्रिया
  2. पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986- मुख्य प्रावधान
  3. मानव पर्यावरण पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय के बारे में
  4. संविधान का अनुच्छेद 253

मेंस लिंक:

भारतीय संदर्भ में पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA) प्रक्रिया के महत्व को समझाइए। इसके साथ जुड़ी चिंताओं पर प्रकाश डालिए।

स्रोत: द हिंदू

 

विषय: आंतरिक सुरक्षा संबंधी विषय।

गन्स, जर्म्स और स्टील’ के संकट से मुक्ति

(Getting out of the ‘guns, germs and steel’ crisis)

संदर्भ: यह कहा जाता है कि भारत वर्तमान में ‘गन्स, जर्म्स और स्टील’ के संकट से गुजर रहा है।

(यह नाम, विभिन्न समाजों तथा राष्ट्रों के उद्भव पर प्रसिद्ध विद्वान ‘जेरेड डायमंड’ की क्लासिक पुस्तक, “गन्स, जर्म्स एंड स्टील: द फेट्स ऑफ़ ह्यूमन सोसाइटीज़” के शीर्षक से लिया गया है।

यह भारत में किस स्थति को दर्शाता है?

  1. बंदूके (Guns): सीमा पर चीन के साथ मुठभेड़ की स्थति
  2. रोगाणु (Germs): कोरोनावायरस महामारी
  3. स्टील: उद्योगों की लगभग दिवालियापन की स्थति

भारत के लिए चिंता का विषय क्यों है?

वर्तमान में भारत, सैन्य, स्वास्थ्य और आर्थिक संकटों का एक साथ सामना कर रहा है, यह संकट भावी पीढी को प्रभावित कर सकते हैं।

इनमें से प्रत्येक अपने आप में एक विशिष्ट संकट है, जिसके लिए पृथक समाधान की आवश्यकता है।

  1. चीनी सैन्य खतरे से निपटने के लिए देश की रक्षा और विदेशी मामलों से संबंधित एजेंसियों द्वारा तत्काल रणनीतिक कार्यवाहियों के किये जाने की आवश्यकता है।
  2. COVID-19 स्वास्थ्य महामारी से निपटने हेतु स्वास्थ्य मंत्रालय और स्थानीय प्रशासन द्वारा निरंतर निगरानी की आवश्यकता है।
  3. आर्थिक मंदी एक बहुत बड़ी चुनौती है जिसको हल करने हेतु दूरदर्शी नीतियों को लागू करने की आवश्यकता है।

समय की मांग:

इन सभी समस्याओं के समाधान हेतु महत्वपूर्ण वित्तीय संसाधनों की आवश्यकता है।

  1. एक महाशक्ति पड़ोसी द्वारा एक सैन्य खतरे का सामना करने हेतु सरकार के लिए बड़े स्तर पर वित्तीय संसधानो की आवश्यकता होगी, (कारगिल युद्ध से यह साबित हो चूका है)।
  2. COVID-19 महामारी से निपटने हेतु केंद्र सरकार को GDP के कम से कम एक प्रतिशत हिस्से के बराबर के अतिरिक्त धन की आवश्यकता होगी।
  3. लॉकडाउन से हमारी अर्थव्यवस्था के सभी चार प्रमुख स्तम्भ- जनता द्वारा उपभोग पर व्यय, सरकारी खर्च, निवेश तथा बाहरी व्यापार– बुरी तरह प्रभावित हुए है।

समाधान के तरीके

सरकार द्वारा सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का अतिरिक्त 8% व्यय करने तथा राजस्व को GDP का 2% तक करने की आवश्यकता है।

राजस्व के संभावित नए स्रोत जैसे कि संपत्ति कर अथवा बड़े पूंजीगत लाभ करों पर मध्यम अवधि के लिए विचार किया जा सकता हैं, परन्तु तत्काल में यह उपाय कारगर साबित नहीं होंगे।

इससे उत्पन्न होने वाला नया संकट

समस्त समाधानों को पूरा करने के लिए सरकार को प्रचुर मात्रा में ऋण लेने की आवश्यकता होगी।

इससे ‘गन्स, जर्म्स और स्टील’ के संकट” में एक चौथा आयाम जुड़ेगा; “कबाड़ संकट” (Junk Crisis)।

बढ़ते कर्ज के स्तर के साथ, अंतर्राष्ट्रीय रेटिंग एजेंसियां ​​भारत की निवेश रेटिंग को “कबाड़” में बदल सकती है, जिससे विदेशी निवेशकों की आशंका में वृद्धि होगी।

निष्कर्ष:

भारत, इस प्रकार, देश की सीमाओं, नागरिकों और अर्थव्यवस्था को बचाने अथवा “जंक” रेटिंग को रोकने हेतु एक कठिन ‘दशरथ-दुविधा’ का सामना कर रहा है।

सरकार के पास दो विकल्प है, या तो निर्भीक होकर बचाव मिशन की शुरुआत करे, अथवा सारी स्थिति को यथा-रूप में छोड़ दे और सभी स्थितियों के स्वतः हल हो जाने की उम्मीद करे।

सभी पहलुओं पर विचार करने के पश्चात यह उचित लगता है, कि इस समय सबसे बेहतर कार्यवाही यह होगी कि, भारत ‘गन्स, जर्म्स और स्टील’ के संकट से निकलने हेतु स्थिर होकर पर्याप्त मात्रा में ऋण संसाधन जुटाए तथा बाद में ‘जंक’ के संभावित खतरे से राष्ट्रीय स्तर पर निपट ले।

स्रोत: द हिंदू

 


प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य


प्लेसबो (Placebos) क्या हैं?

प्लेबोस ऐसे पदार्थ होते हैं जो दवाओं से मिलते जुलते हैं लेकिन उनमें सक्रिय दवा नहीं होती है।

प्लेसबो वास्तव में एक वास्तविक दवा की तरह दिखते है, परन्तु यह स्टार्च या चीनी जैसे निष्क्रिय पदार्थ से निर्मित होते हैं।


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