HINDI INSIGHTS STATIC QUIZ 2020-2021
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Question 1 of 5
1. Question
जैसे ही पृथ्वी की जलवायु गर्म होती है, वैसे ही स्थाई तुषार-भूमि (पर्माफ्रॉस्ट) पिघलना शुरू हो जाती है। पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने से पृथ्वी पर निम्नलिखित में से कौनसे प्रभाव उत्पन्न हो सकते हैं:
- पिघलता पर्माफ्रॉस्ट, पर्माफ्रॉस्ट पर निर्मित घरों, सड़कों और अन्य बुनियादी ढांचे को नष्ट कर सकता है।
- सूक्ष्मजीव, मृदा में पादप पदार्थों को विघटित करना शुरू कर देते हैं जिसे जैविक कार्बन कहा जाता है।
- यह मनुष्यों और जानवरों को रोगग्रस्त कर सकता है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं?
Correct
उत्तर: d)
जैसे ही पृथ्वी की जलवायु गर्म होती है, वैसे ही स्थाई तुषार-भूमि (पर्माफ्रॉस्ट) पिघलना शुरू हो जाता है। इसका अर्थ है कि पर्माफ्रॉस्ट के अंदर की बर्फ पिघल जाती है और जल और मृदा पृथक हो जाते हैं।
पृथ्वी और उस पर रहने वाली जीवों पर पर्माफ्रॉस्ट के नाटकीय प्रभाव उत्पन्न हो सकते हैं। उदाहरण के लिए: उत्तरी गोलार्द्ध के कई गाँव पर्माफ्रॉस्ट पर निर्मित हैं। जब परमाफ्रॉस्ट जमा हुआ होता है, तो यह कंक्रीट की तुलना में अधिक कठोर होता है। हालांकि, पिघलता पर्माफ्रॉस्ट, पर्माफ्रॉस्ट पर निर्मित घरों, सड़कों और अन्य बुनियादी ढांचे को नष्ट कर सकता है।
जब पर्माफ्रॉस्ट जम जाता है, तो मृदा में मौजूद कार्बनिक पदार्थ – जिसे जैविक कार्बन (organic carbon) कहा जाता है, विघटित नहीं होते हैं। जैसे ही परमाफ्रॉस्ट पिघलता है तो सूक्ष्मजीव इस सामग्री को विघटित करना शुरू कर देते हैं। इस प्रक्रिया के दौरान कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन जैसी ग्रीनहाउस गैसें वायुमंडल में उत्सर्जित होती हैं।
जब पर्माफ्रॉस्ट पिघलता, तो बर्फ और मृदा मौजूद में प्राचीन बैक्टीरिया और वायरस जीवित हो जाते हैं। ये सूक्ष्मजीव मनुष्यों और जानवरों को रोगग्रस्त कर सकता है। वैज्ञानिकों ने पिघले हुए पर्माफ्रॉस्ट में 400,000 वर्ष से अधिक प्राचीन सूक्ष्मजीवों की खोज की है।
Incorrect
उत्तर: d)
जैसे ही पृथ्वी की जलवायु गर्म होती है, वैसे ही स्थाई तुषार-भूमि (पर्माफ्रॉस्ट) पिघलना शुरू हो जाता है। इसका अर्थ है कि पर्माफ्रॉस्ट के अंदर की बर्फ पिघल जाती है और जल और मृदा पृथक हो जाते हैं।
पृथ्वी और उस पर रहने वाली जीवों पर पर्माफ्रॉस्ट के नाटकीय प्रभाव उत्पन्न हो सकते हैं। उदाहरण के लिए: उत्तरी गोलार्द्ध के कई गाँव पर्माफ्रॉस्ट पर निर्मित हैं। जब परमाफ्रॉस्ट जमा हुआ होता है, तो यह कंक्रीट की तुलना में अधिक कठोर होता है। हालांकि, पिघलता पर्माफ्रॉस्ट, पर्माफ्रॉस्ट पर निर्मित घरों, सड़कों और अन्य बुनियादी ढांचे को नष्ट कर सकता है।
जब पर्माफ्रॉस्ट जम जाता है, तो मृदा में मौजूद कार्बनिक पदार्थ – जिसे जैविक कार्बन (organic carbon) कहा जाता है, विघटित नहीं होते हैं। जैसे ही परमाफ्रॉस्ट पिघलता है तो सूक्ष्मजीव इस सामग्री को विघटित करना शुरू कर देते हैं। इस प्रक्रिया के दौरान कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन जैसी ग्रीनहाउस गैसें वायुमंडल में उत्सर्जित होती हैं।
जब पर्माफ्रॉस्ट पिघलता, तो बर्फ और मृदा मौजूद में प्राचीन बैक्टीरिया और वायरस जीवित हो जाते हैं। ये सूक्ष्मजीव मनुष्यों और जानवरों को रोगग्रस्त कर सकता है। वैज्ञानिकों ने पिघले हुए पर्माफ्रॉस्ट में 400,000 वर्ष से अधिक प्राचीन सूक्ष्मजीवों की खोज की है।
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Question 2 of 5
2. Question
निम्नलिखित में से कौन-सा/से अनुकूलन मैंग्रोव पौधों को उनके गतिशील और कठोर पारिस्थितिकी तंत्र में बनाए रखने में सहायता करता/करते है/हैं?
- विविपरी (Vivipary)
- अवस्तम्भ मूल (stilt roots)
- न्यूमेटोफोर्स (Pneumatophores)
सही उत्तर कूट का चयन कीजिए:
Correct
उत्तर: d)
मैंग्रोव पर्यावरण अत्यधिक गतिशील और कठोर होता है तथा मैंग्रोव प्रजातियां विभिन्न रूप से इन पर्यावरणीय परिस्थितियों से निपटने के लिए अनुकूलित होती हैं।
श्वसनी मूल (Breathing roots): किसी भी पौधे के भूमिगत ऊतकों को श्वसन के लिए ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है और मैंग्रोव वातावरण में, मृदा में ऑक्सीजन बहुत सीमित या शून्य होती है। इसलिए वातावरण से ऑक्सीजन ग्रहण करने के लिए मैंग्रोव रूट सिस्टम की आवश्यकता है। इस उद्देश्य के लिए, मैंग्रोव प्रजातियों की धरातल के ऊपर स्थिति विशिष्ट प्रकार के मूल होती हैं, जिन्हें श्वसनी मूल या न्यूमेटोफोर्स (Pneumatophores) कहा जाता है। इन जड़ों में कई छिद्र होते हैं जिनके माध्यम से ऑक्सीजन भूमिगत ऊतकों तक प्रवेश करती है। कुछ पौधों में नितंब मूल श्वसनी मूल के रूप में कार्य करते हैं और पेड़ को सहारा भी प्रदान करती हैं।
अवस्तम्भ मूल (stilt roots): कुछ मैंग्रोव प्रजातियों में, जड़ें तनों और शाखाओं से अलग हो जाती हैं और मुख्य तने से कुछ दूर मृदा में धस जाती हैं, जैसे कि बरगद का पेड़। ये जड़े पेड़ सहारा प्रदान करती हैं, अत: उन्हें अवस्तम्भ मूल कहा जाता है। इन जड़ों में भी कई छिद्र मौजूद होते हैं जिनके माध्यम से वायुमंडलीय ऑक्सीजन जड़ों में प्रवेश करती है।
विविपरी (Vivipary): लवणीय जल, आक्सीजन रहित लवणीय मृदा में, बीज के अंकुरण और वृद्धि के लिए अनुकूल वातावरण मौजूद नहीं होता है। इसका समाधान करने के लिए, मैंग्रोव प्रजातियों में प्रजनन का एक विशेष तरीका होता है, जिसे आमतौर पर विविपरी के रूप में जाना जाता है। प्रजनन की इस पद्धति में, बीज अंकुरित होकर विकसित होते हैं, वहीँ बीज अभी भी मूल वृक्ष से जुड़े होते हैं। इस अंकुरण को आम तौर पर प्रवर्ध्य (propagules) कहा जाता है और ये मूल वृक्ष से जुड़े रहते हुए प्रकाश संश्लेषण की क्रिया करते रहते हैं। मूल वृक्ष, जल और आवश्यक पोषक तत्वों की आपूर्ति करता है। ये उपयुक्त मृदा पर स्वयं को रोपित करने से पहले कुछ समय तक जल में तैरते रहते हैं।
Incorrect
उत्तर: d)
मैंग्रोव पर्यावरण अत्यधिक गतिशील और कठोर होता है तथा मैंग्रोव प्रजातियां विभिन्न रूप से इन पर्यावरणीय परिस्थितियों से निपटने के लिए अनुकूलित होती हैं।
श्वसनी मूल (Breathing roots): किसी भी पौधे के भूमिगत ऊतकों को श्वसन के लिए ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है और मैंग्रोव वातावरण में, मृदा में ऑक्सीजन बहुत सीमित या शून्य होती है। इसलिए वातावरण से ऑक्सीजन ग्रहण करने के लिए मैंग्रोव रूट सिस्टम की आवश्यकता है। इस उद्देश्य के लिए, मैंग्रोव प्रजातियों की धरातल के ऊपर स्थिति विशिष्ट प्रकार के मूल होती हैं, जिन्हें श्वसनी मूल या न्यूमेटोफोर्स (Pneumatophores) कहा जाता है। इन जड़ों में कई छिद्र होते हैं जिनके माध्यम से ऑक्सीजन भूमिगत ऊतकों तक प्रवेश करती है। कुछ पौधों में नितंब मूल श्वसनी मूल के रूप में कार्य करते हैं और पेड़ को सहारा भी प्रदान करती हैं।
अवस्तम्भ मूल (stilt roots): कुछ मैंग्रोव प्रजातियों में, जड़ें तनों और शाखाओं से अलग हो जाती हैं और मुख्य तने से कुछ दूर मृदा में धस जाती हैं, जैसे कि बरगद का पेड़। ये जड़े पेड़ सहारा प्रदान करती हैं, अत: उन्हें अवस्तम्भ मूल कहा जाता है। इन जड़ों में भी कई छिद्र मौजूद होते हैं जिनके माध्यम से वायुमंडलीय ऑक्सीजन जड़ों में प्रवेश करती है।
विविपरी (Vivipary): लवणीय जल, आक्सीजन रहित लवणीय मृदा में, बीज के अंकुरण और वृद्धि के लिए अनुकूल वातावरण मौजूद नहीं होता है। इसका समाधान करने के लिए, मैंग्रोव प्रजातियों में प्रजनन का एक विशेष तरीका होता है, जिसे आमतौर पर विविपरी के रूप में जाना जाता है। प्रजनन की इस पद्धति में, बीज अंकुरित होकर विकसित होते हैं, वहीँ बीज अभी भी मूल वृक्ष से जुड़े होते हैं। इस अंकुरण को आम तौर पर प्रवर्ध्य (propagules) कहा जाता है और ये मूल वृक्ष से जुड़े रहते हुए प्रकाश संश्लेषण की क्रिया करते रहते हैं। मूल वृक्ष, जल और आवश्यक पोषक तत्वों की आपूर्ति करता है। ये उपयुक्त मृदा पर स्वयं को रोपित करने से पहले कुछ समय तक जल में तैरते रहते हैं।
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Question 3 of 5
3. Question
प्राकृतिक रूप से घटित होने वाली दावानल (wildfires) किस प्रकार से प्रकृति में एक अभिन्न भूमिका निभाते हैं?
- यह मृदा में पोषक तत्वों की मात्रा में वृद्धि करने में सहायता करती है।
- यह एक निस्संक्रामक (disinfectant) के रूप में कार्य करती है।
- यह सूर्य प्रकाश को वनों के धरातल तक पहुंचने में सक्षम बनती है, जिससे नई पीढ़ी को अंकुरित होने में सहायता मिलती है।
सही उत्तर कूट का चयन कीजिए:
Correct
उत्तर: c)
“हालांकि अक्सर मनुष्यों के लिए हानिकारक और विनाशकारी होती है, तथापि स्वाभाविक रूप से होने वाली दावानल (wildfires) प्रकृति में एक अभिन्न भूमिका निभाती हैं। यह मृत या क्षयकारी पदार्थ को जलाकर मृदा में पोषक तत्वों की मात्रा में वृद्धि करने में सहायता करती हैं। यह एक निस्संक्रामक (disinfectant) के रूप में कार्य करती है, वन पारिस्थितिकी तंत्र से रोग ग्रस्त पौधों और हानिकारक कीटों को समाप्त करती है। सघन कैनोपियों और धरातल पर उगने वाली झाड़ियों को समाप्त कर सूर्य प्रकाश को वनों के तल तक पहुंचने में सक्षम बनती है, जिससे नई पीढ़ी बीजों को अंकुरित होने में सहायता मिलती है।
Incorrect
उत्तर: c)
“हालांकि अक्सर मनुष्यों के लिए हानिकारक और विनाशकारी होती है, तथापि स्वाभाविक रूप से होने वाली दावानल (wildfires) प्रकृति में एक अभिन्न भूमिका निभाती हैं। यह मृत या क्षयकारी पदार्थ को जलाकर मृदा में पोषक तत्वों की मात्रा में वृद्धि करने में सहायता करती हैं। यह एक निस्संक्रामक (disinfectant) के रूप में कार्य करती है, वन पारिस्थितिकी तंत्र से रोग ग्रस्त पौधों और हानिकारक कीटों को समाप्त करती है। सघन कैनोपियों और धरातल पर उगने वाली झाड़ियों को समाप्त कर सूर्य प्रकाश को वनों के तल तक पहुंचने में सक्षम बनती है, जिससे नई पीढ़ी बीजों को अंकुरित होने में सहायता मिलती है।
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Question 4 of 5
4. Question
भूमध्यसागरीय वन अपनी मोटी छाल और मोमी पत्तियों की सहायता से शुष्क ग्रीष्मकाल के लिए स्वयं को अनुकूलित करते हैं। ये उन्हें निम्नलिखित में से किसमें सहायता करते हैं:
Correct
उतर: a)
रंध्र के माध्यम से पत्तियों से जल की हानि से वाष्पोत्सर्जन होता है।
इससे पौधों में जल की अधिक मात्रा का अवशोषण किया जाता है जिसके कारण जड़ों से अधिक जल का प्रवाह होता है।
यदि पत्तियों के बड़े छिद्रों के बड़े क्षेत्र के कारण वाष्पोत्सर्जन अधिक होता है, तो पौधे में जल की मांग अधिक होने की संभावना होती है, जो भूमध्यसागरीय जैसी जलवायु के अनुकूल नहीं होगा। इसलिए, मोमी पत्तियां और मोटी छाल वाष्पोत्सर्जन को कम करती हैं और इस प्रकार जल की आवश्यकता भी कम हो जाती है।
Incorrect
उतर: a)
रंध्र के माध्यम से पत्तियों से जल की हानि से वाष्पोत्सर्जन होता है।
इससे पौधों में जल की अधिक मात्रा का अवशोषण किया जाता है जिसके कारण जड़ों से अधिक जल का प्रवाह होता है।
यदि पत्तियों के बड़े छिद्रों के बड़े क्षेत्र के कारण वाष्पोत्सर्जन अधिक होता है, तो पौधे में जल की मांग अधिक होने की संभावना होती है, जो भूमध्यसागरीय जैसी जलवायु के अनुकूल नहीं होगा। इसलिए, मोमी पत्तियां और मोटी छाल वाष्पोत्सर्जन को कम करती हैं और इस प्रकार जल की आवश्यकता भी कम हो जाती है।
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Question 5 of 5
5. Question
निम्नलिखित में से कौन-से आर्सेनिक संदूषण के स्रोत हैं।
- लीचिंग और अपवाह के बाद चट्टानों और खनिजों का अपक्षय।
- भूजल का अत्यधिक दोहन
- आयरन सहअवक्षेपण
- कोयले का दहन
सही उत्तर कूट का चयन कीजिए:
Correct
उत्तर: b)
आर्सेनिक (arsenic), प्राकृतिक के साथ-साथ भूजल के अति दोहन, उर्वरकों के अनुप्रयोग, कोयले का दहन और कोयले की राख से धातुओं की लीचिंग जैसी मानवजनित गतिविधियों से भी आंशिक रूप से उत्पन्न हो सकता है।
आर्सेनिक, लीचिंग और अपवाह के बाद चट्टानों और खनिजों के अपक्षय के दौरान मृदा और भूजल में भी प्रवेश कर सकता है।
आर्सेनिक हटाने की विभिन्न तकनीकों में, लाइम सॉफ्टनिंग (lime softening) और आयरन सहअवक्षेपण (iron coprecipitation) को सबसे प्रभावी माना गया है।
Incorrect
उत्तर: b)
आर्सेनिक (arsenic), प्राकृतिक के साथ-साथ भूजल के अति दोहन, उर्वरकों के अनुप्रयोग, कोयले का दहन और कोयले की राख से धातुओं की लीचिंग जैसी मानवजनित गतिविधियों से भी आंशिक रूप से उत्पन्न हो सकता है।
आर्सेनिक, लीचिंग और अपवाह के बाद चट्टानों और खनिजों के अपक्षय के दौरान मृदा और भूजल में भी प्रवेश कर सकता है।
आर्सेनिक हटाने की विभिन्न तकनीकों में, लाइम सॉफ्टनिंग (lime softening) और आयरन सहअवक्षेपण (iron coprecipitation) को सबसे प्रभावी माना गया है।