विषय-सूची
सामान्य अध्ययन-II
1. NIRF रैंकिंग 2020
2. यूनिवर्सल बेसिक इनकम
सामान्य अध्ययन-III
1. सहकार मित्र योजना
2. प्रधानमंत्री कृषि सिचाई योजना
3. IFLOWS-मुंबई
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य
1. लोनार झील
2. विश्व बाल श्रम निषेध दिवस (World Day against Child Labour)
सामान्य अध्ययन-II
विषय: शिक्षा संबंधी विषय।
NIRF रैंकिंग 2020
NIRF क्या है?
राष्ट्रीय संस्थागत रैंकिंग फ्रेमवर्क (National Institutional Ranking Framework- NIRF) का आरम्भ वर्ष 2015 में किया गया था।
इस फ्रेमवर्क का उपयोग विभिन्न श्रेणियों तथा ज्ञान-क्षेत्रों में उच्च शैक्षणिक संस्थानों को रैंकिंग प्रदान करने में किया जाता है।
संस्थानों की रैंकिंग हेतु निम्नलिखित मापदंडों का उपयोग किया जाता है:
- शिक्षण, अध्ययन एवं संसाधन (Teaching, Learning and Resources)
- अनुसंधान एवं व्यावसायिक क्रियाएं (Research and Professional Practices)
- स्नातक परिणाम (Graduation Outcomes)
- पहुँच एवं समावेशिता (Outreach and Inclusivity)
- धारणा (Peer Perception)
NIRF का उपयोग
- राष्ट्रीय संस्थागत रैंकिंग फ्रेमवर्क, संस्थानों को परस्पर प्रतिस्पर्धा करने तथा एक साथ विकास की दिशा में कार्य करने हेतु प्रोत्साहित करता है।
- ये रैंकिंग भारत में उच्च शिक्षा के विकास के लिए ‘स्टडी इन इंडिया‘ कार्यक्रम के लिए एक ठोस आधार प्रदान करती है, तथा विदेशी छात्रों को भारत में पढने हेतु आकर्षित करती है।
- NIRF के अंतर्गत रैंकिंग, इंस्टीट्यूशन ऑफ एमिनेंस (Institutions of Eminence– IoE) योजना के तहत निजी संस्थानों के आकलन हेतु एक मापदंड भी होती है।
इस संस्करण में किये गए परिवर्तन
- यह भारत में उच्च शैक्षणिक संस्थानों की इंडिया रैंकिंग का लगातार पांचवा संस्करण है।
- वर्ष 2020 में “डेंटल” श्रेणी को पहली बार शामिल किया गया, जिससे इस वर्ष कुल श्रेणियों / विषय क्षेत्रों की संख्या दस हो गई है।
भारतीय संस्थान क्यूएस वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग जैसी अंतर्राष्ट्रीय रैंकिंग में अच्छा प्रदर्शन क्यों नहीं करते?
अंतर्राष्ट्रीय रैंकिंग में, भारतीय संस्थानों को वैश्विक रैंकिंग में प्रयुक्त मापदंडो के “अंतर्राष्ट्रीयकरण” से जूझना पड़ता है। इसका कारण है कि वैश्विक रैंकिंग में ‘धारणा’ को उच्च भारांक दिया जाता है, जो कि एक व्यक्तिपरक मापदंड होता है।
जबकि, NIRF में, 90% मापदंड पूरी तरह से वस्तुनिष्ठ और तथ्य आधारित होते हैं, तथा मात्र 10% मापदंड, शैक्षणिक सहकर्मियों तथा नियोक्ताओं की व्यक्तिपरक धारणा पर आधारित होते है।
विभिन्न संस्थानों का प्रदर्शन
(कृपया निम्न चित्र का अवलोकन करें)
प्रीलिम्स लिंक:
- NIRF क्या है?
- रैंकिंग के लिए उपयोग किए जाने वाले मापदंड
- विभिन्न श्रेणियों में शीर्ष संस्थान
- इस वर्ष तथा पिछले वर्ष की रैंकिंग में विभिन्न संस्थानों का प्रदर्शन।
- इंस्टीट्यूशन ऑफ एमिनेंस योजना क्या है?
- क्यूएस वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग की शीर्ष 200 सूची में संस्थान।
मेंस लिंक:
इंस्टीट्यूशन ऑफ एमिनेंस योजना के महत्व पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: द हिंदू
विषय: केन्द्र एवं राज्यों द्वारा जनसंख्या के अति संवेदनशील वर्गों के लिये कल्याणकारी योजनाएँ और इन योजनाओं का कार्य-निष्पादन; इन अति संवेदनशील वर्गों की रक्षा एवं बेहतरी के लिये गठित तंत्र, विधि, संस्थान एवं निकाय।
यूनिवर्सल बेसिक इनकम
संदर्भ: राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (National Human Rights Commission- NHRC) ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (United Nations Human Rights Council- UNHRC) को सूचित किया है, कि यूनिवर्सल बेसिक इनकम को लागू करने की सलाह केंद्र सरकार के “परीक्षाधीन तथा विचाराधीन” है।
वर्तमान में यूनिवर्सल बेसिक इनकम की आवश्यकता
कोविड-19 महामारी से निपटने के क्रम में विश्व भर में अनेक देशों की सरकारों ने लॉकडाउन (lockdown) तथा सामाजिक दूरी (social distancing) जैसे उपायों को लागू किया है।
हालांकि, इन उपायों से अर्थव्यवस्था के लगभग हर क्षेत्र को व्यापक क्षति पहुची है। यहाँ तक कि, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा वर्तमान आर्थिक संकट को वर्ष 1929 की आर्थिक मंदी के बाद से सबसे खराब स्थिति बताया गया है।
भारत में लगभग 90% श्रमबल, बगैर न्यूनतम मजदूरी अथवा सामजिक सुरक्षा के अनौपचारिक क्षेत्र में काम करता है, जिससे सूक्ष्म-स्तर पर भारत में परिस्थितियां कहीं और की तुलना में अधिक बदतर हुई हैं।
अतः, यूनिवर्सल बेसिक इनकम (Universal Basic Income– UBI) के माध्यम से नियमित भुगतान अनौपचारिक क्षेत्र में लगे श्रमिकों की आजीविका को, कम से कम अर्थव्यवस्था के सामान्य होने तक, सुनिश्चित कर सकता है।
यूनिवर्सल बेसिक इनकम क्या है?
‘यूनिवर्सल बेसिक इनकम’ किसी देश अथवा किसी भौगोलिक क्षेत्र / राज्य के सभी नागरिकों को बिना शर्त आवधिक रूप से धनराशि प्रदान करने का कार्यक्रम है। इसके अंतर्गत नागरिकों की आय, सामजिक स्थिति, अथवा रोजगार-स्थिति पर विचार नहीं किया जाता है।
UBI की अवधारणा का उद्देश्य गरीबी को कम करना अथवा रोकना तथा नागरिकों में समानता की वृद्धि करना है। यूनिवर्सल बेसिक इनकम अवधारणा का मूल सिद्धांत है, कि सभी नागरिक, चाहे वे किसी परिस्थिति में पैदा हुए हों, एक जीने योग्य आय के हकदार होते हैं।
UBI के महत्वपूर्ण घटक
- सार्वभौमिकता (सभी नागरिक)
- बिना शर्त (कोई पूर्व शर्त नहीं)
- आवधिक (नियमित अंतराल पर आवधिक भुगतान)
- नकद हस्तांतरण (फ़ूड वाउचर अथवा सर्विस कूपन नहीं)
यूनिवर्सल बेसिक इनकम (UBI) के लाभ
- नागरिकों को सुरक्षित आय प्रदान करता है।
- समाज में गरीबी तथा आय असमानता में कमी होती है।
- निर्धन व्यक्तियों की क्रय शक्ति में वृद्धि होती है, जिससे अंततः सकल मांग बढ़ती है।
- लागू करने में आसान होती है क्योंकि इसमें लाभार्थी की पहचान करना सम्मिलित नहीं होता है।
- सरकारी धन के अपव्यय में कमी होती है, इसका कार्यान्वयन बहुत सरल होता है।
UBI अवधारणा के समर्थक
भारतीय आर्थिक सर्वेक्षण 2016-17 में यूनिवर्सल बेसिक इनकम (UBI) की अवधारणा का समर्थन किया गया है, सर्वेक्षण में UBI को निर्धनता कम करने हेतु जारी विभिन्न सामाजिक कल्याण योजनाओं के विकल्प के रूप बताया गया।
UBI कार्यक्रम के अन्य समर्थकों में अर्थशास्त्र नोबेल पुरस्कार विजेता पीटर डायमंड और क्रिस्टोफर पिसाराइड्स, प्रौद्योगिकी क्षेत्र के मार्क जुकरबर्ग और एलन मस्क (Elon Musk) सम्मिलित हैं।
भारत में यूनिवर्सल बेसिक इनकम लागू करने में चुनौतियां
किसी देश में UBI लागू करने हेतु उच्च लागत की आवश्यकता होती है। विकसित देशों के लिए UBI व्यय का वहन करना, विकासशील देशों की तुलना में आसान होता है।
भारत में ‘यूनिवर्सल बेसिक इनकम’ को लागू करने में होने वाले भारी व्यय को देखते हुए राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी, इस कार्यक्रम के कार्यान्वयन हेतु प्रमुख चुनौती है।
यूनिवर्सल बेसिक इनकम के लागू होने से इस बात की प्रबल संभावना है कि लोगों को बिना शर्त दी गई एक निश्चित आय उन्हें आलसी बना सकती है तथा इससे वे काम ना करने के लिये प्रेरित हो सकते हैं।
प्रीलिम्स लिंक:
- यूनिवर्सल बेसिक इनकम के घटक
- UBI के समर्थक
मेंस लिंक:
भारत में यूनिवर्सल बेसिक इनकम के लागू करने के पक्ष तथा विरोध में दी जाने वाली दलीलों की जाँच कीजिए।
स्रोत: द हिंदू
सामान्य अध्ययन-III
विषय: प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष कृषि सहायता तथा न्यूनतम समर्थन मूल्य से संबंधित विषय; जन वितरण प्रणाली- उद्देश्य, कार्य, सीमाएँ, सुधार; बफर स्टॉक तथा खाद्य सुरक्षा संबंधी विषय।
सहकार मित्र: इंटर्नशिप कार्यक्रम पर योजना
योजना के बारे में प्रमुख तथ्य
- ‘सहकार मित्र’ योजना, राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम (National Cooperative Development Corporation- NCDC) द्वारा शुरू की गयी एक पहल है।
- यह योजना, अकादमिक संस्थानों के प्रोफेशनलों को किसान उत्पादक संगठनों (Farmers Producers Organizations- FPO) के रूप में सहकारी समितियों के माध्यम से नेतृत्व और उद्यमशीलता की भूमिकाओं को विकसित करने का भी अवसर प्रदान करेगी।
- इस कार्यक्रम के तहत प्रत्येक प्रशिक्षु को 4 माह की इंटर्नशिप अवधि के दौरान वित्तीय सहायता दी जायेगी।
पात्रता
- इस योजना के तहत कृषि एवं संबद्ध क्षेत्रों और आईटी जैसे विषयों के प्रोफेशनल स्नातक ‘इंटर्नशिप’ के लिए पात्र होंगे।
- कृषि-व्यवसाय, सहयोग, वित्त, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार, वानिकी, ग्रामीण विकास, परियोजना प्रबंधन, इत्यादि में एमबीए की डिग्री के लिए पढ़ाई कर रहे या अपनी पढ़ाई पूरी कर चुके प्रोफेशनल भी इसके लिए पात्र होंगे।
योजना का महत्व तथा अपेक्षित प्रभाव
सहकार मित्र योजना, सहकारी संस्थाओं को युवा प्रोफेशनलों के नए और अभिनव विचारों तक पहुंचने में मदद करेगी।
जबकि प्रशिक्षु को क्षेत्र यानी फील्ड में काम करने का अनुभव प्राप्त होगा जो उन्हें आत्मनिर्भर होने का विश्वास दिलाएगा।
इसके तहत सहकारी समितियों के साथ-साथ युवा पेशेवरों के लिए भी लाभप्रद साबित होने की उम्मीद है।
अतिरिक्त जानकारी
राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम (NCDC) की स्थापना 1963 में कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के अधीन संसद के एक अधिनियम द्वारा की गई थी। NCDC कई क्षेत्रीय केन्द्रों के माध्यम से सहकारी / समितियों / संघों को वित्तीय सहायता प्रदान करती हैं।
किसान उत्पादक संगठन (FPO), एक प्रकार के उत्पादक संगठन (Producer Organisation- PO) होते हैं जिसमें सदस्य किसान होते हैं। लघु किसान कृषि व्यापार संघ (Small Farmers’ Agribusiness Consortium- SFAC) किसान उत्पादक संगठनों को सहायता प्रदान करता है।
प्रीलिम्स लिंक:
- सहकार मित्र योजना के मुख्य उद्देश्य
- पात्रता
- योजना का कार्यान्वयन?
- राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम क्या है?
- सहकारी समिति क्या होती हैं? संबंधित संवैधानिक प्रावधान
- किसान उत्पादक संगठन (FPO) क्या होते है?
- लघु किसान कृषि व्यापार संघ (SFAC) क्या है?
मेंस लिंक:
सहकार मित्र योजना के महत्व पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: पीआईबी
विषय: प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष कृषि सहायता तथा न्यूनतम समर्थन मूल्य से संबंधित विषय; जन वितरण प्रणाली- उद्देश्य, कार्य, सीमाएँ, सुधार; बफर स्टॉक तथा खाद्य सुरक्षा संबंधी विषय।
प्रधानमंत्री कृषि सिचाई योजना
संदर्भ: वर्ष 2020-21 के लिए प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के घटक ‘प्रति बूंद अधिक फसल’ (‘Per Drop More Crop’ component of Pradhan Mantri Krishi Sinchayee Yojana- PMKSY- PDMC) के तहत राज्य सरकारों को 4000 करोड़ रुपये का वार्षिक आवंटन किया गया।
प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के घटक ‘प्रति बूंद अधिक फसल’ (PMKSY- PDMC) के बारे में:
PMKSY- PDMC का कार्यान्वयन कृषि, सहकारिता एवं किसान कल्याण विभाग द्वारा किया जा रहा है।
यह पूरे भारत में वर्ष 2015-16 से चालू है।
इसके अंतर्गत सूक्ष्म सिंचाई प्रौद्योगिकियों यथा ‘ड्रिप और स्प्रिंकलर’ सिंचाई प्रणालियों के माध्यम से खेत स्तर पर जल उपयोग की क्षमता बढ़ाने पर फोकस किया जाता है।
ड्रिप सूक्ष्म सिंचाई तकनीक से न केवल जल की बचत करने में, बल्कि उर्वरक के उपयोग, श्रम खर्च और अन्य कच्चे माल की लागत को कम करने में भी मदद मिलती है।
फंडिंग
इस योजना हेतु, नाबार्ड के साथ मिलकर 5000 करोड़ रुपये का सूक्ष्म सिंचाई कोष (Micro Irrigation fund) बनाया गया है।
इस कोष का उद्देश्य राज्यों को विशेष सिंचाई और अभिनव परियोजनाओं के माध्यम से सूक्ष्म सिंचाई की कवरेज के विस्तार के लिए आवश्यक संसाधन जुटाने में सुविधा प्रदान करना है।
इसका एक अन्य उद्देश्य किसानों को सूक्ष्म सिंचाई प्रणालियां स्थापित करने हेतु प्रोत्साहित करने के लिए PMKSY-PDMC के तहत उपलब्ध प्रावधानों से परे सूक्ष्म सिंचाई को प्रोत्साहित करना है।
सरकार द्वारा सहायता
सरकार, ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई प्रणाली को लगाने हेतु छोटे और सीमांत किसानों के लिए कुल लागत के 55% तथा और अन्य किसानों के लिए 45% की वित्तीय सहायता प्रदान करती है।
इसके अलावा, कुछ राज्य सूक्ष्म सिंचाई को अपनाने हेतु किसानों को बढ़ावा देने के लिए अतिरिक्त प्रोत्साहन / टॉप-अप सब्सिडी प्रदान करते हैं।
प्रीलिम्स लिंक:
- प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY) के घटक
- सूक्ष्म सिंचाई कोष के बारे में
- नाबार्ड क्या है?
- इस योजना के अंतर्गत केंद्र द्वारा प्रदत्त सहायता
मेंस लिंक:
योजना के महत्व पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: पीआईबी
विषय: आपदा और आपदा प्रबंधन।
एकीकृत बाढ़ चेतावनी प्रणाली, ‘IFLOWS- मुंबई’
‘IFLOWS- मुंबई’ क्या है?
यह एक एकीकृत बाढ़ चेतावनी प्रणाली है तथा पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (Ministry of Earth Sciences- MoES) एवं बृहन्मुंबई नगर निगम (Brihanmumbai Municipal Corporation- BMC) की एक संयुक्त पहल है।
मुंबई, इस प्रणाली को अपनाने वाला देश का दूसरा शहर है, सर्वप्रथम चेन्नई शहर में इस प्रणाली का प्रयोग किया गया था।
प्रमुख विशेषताएं
I-FLOWS एक मॉड्यूलर संरचना पर बनाया गया है और इसमें डेटा समावेशन (Data Assimilation), बाढ़, जलप्लावन (Inundation), भेद्यता (Vulnerability), जोखिम, प्रसार मॉड्यूल (Dissemination Module) तथा डिसीजन सपोर्ट सिस्टम जैसे सात मॉड्यूल हैं।
सिस्टम में ‘मध्यम श्रेणी के मौसम पूर्वानुमान के लिये राष्ट्रीय केंद्र’ (National Centre for medium Range Weather Forecasting- NCMRWF), भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) से मौसम मॉडल, भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान, ग्रेटर मुंबई नगर निगम तथा IMD द्वारा स्थापित वर्षा गेज नेटवर्क स्टेशनों से क्षेत्र डाटा, भूमि उपयोग पर थीमेटिक लेयर्, MCGM द्वारा बुनियादी ढाँचे से संबंधित जानकारी आदि प्रदान की गई है।
मौसम मॉडल के इनपुट के आधार पर, बरसात को बहते पानी में बदलने और नदी प्रणालियों में प्रवाह इनपुट प्रदान के लिए हाइड्रोलॉजिकल मॉडल का उपयोग किया जाता है।
क्रिया-विधि
यह चेतावनी प्रणाली, बाढ़-प्रवण क्षेत्रों में छह से 72 घंटे के मध्य आने वाली संभावित बाढ़ के बारे में पूर्व-चेतावनी देने में सक्षम होगी।
- इस प्रणाली में शहर के भीतर शहरी जल निकासी ज्ञात करने और बाढ़ वाले क्षेत्रों के पूर्वानुमान के प्रावधान हैं, जिनको फाइनल सिस्टम में शामिल किया जाएगा।
- चूंकि, मुंबई एक द्वीप शहर है, जिसकी कनेक्टिविटी समुद्र के साथ है, इसलिए शहर पर ज्वार और तूफान के प्रभाव की गणना करने के लिए हाइड्रोडायनामिक मॉडल और तूफान वृद्धि मॉडल का उपयोग किया जाता है।
मुंबई में इस प्रणाली की आवश्यकता
महाराष्ट्र राज्य की राजधानी, और भारत की वित्तीय राजधानी, मुंबई महानगर लम्बी अवधि वाली बढ़ों की त्रास्दी झेलता रहा है।
- 29 अगस्त 2017 को ताज़ा बाढ़ से जूझना पड़ा, जिसकी वजह से अपनी जल निकासी प्रणालियों के बावजूद शहर ठहर गया।
- पिछले वर्ष, अक्टूबर माह में हुई मानसून-पश्चात तथा बेमौसम बारिश, अरब सागर में उत्पन्न हुए दो उष्णकटिबंधीय चक्रवातों ने अधिकारियों को बेबस कर दिया था और तबाही के निशान शहर में छोड़ दिए।
- 26 जुलाई 2005 को 24 घंटे की अवधि के दौरान मुम्बई में पिछले सौ सालों में हुई वर्षा का रिकॉर्ड तोड़ दिया जिस कारण शहर को भयंकर बाढ़ का सामना करना पड़ा था।
इस प्रणाली का महत्व
मुम्बई में जून से सितंबर के मध्य शहरी बाढ़ (Urban flooding) सामान्य घटना है, जिसके परिणामस्वरूप रेलवे, एयरलाइनों तथा यातायात की व्यवस्था गड़बड़ा जाती है।
बाढ़ पूर्व तैयारियों के रूप में, यह प्रणाली नागरिकों को चेतावनी देने में मदद करेगी। इसके माध्यम से शहर-वासी बाढ़ की स्थिति का सामना करने हेतु अग्रिम रूप से तैयारी कर सकेंगे।
स्रोत: पीआईबी
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य
लोनार झील
महाराष्ट्र में स्थित लोनार झील का रंग गुलाबी हो गया है, हाल ही में वैज्ञानिकों की टीम इसके संभावित कारणों की जांच की है।
कुछ विशेषज्ञों ने इसका कारण झील की लवणता तथा शैवाल की उपस्थिति को जिम्मेदार ठहराया है।
प्रमुख तथ्य
- लोनार झील महाराष्ट्र के लोनार में स्थित एक क्रेटर झील (Crater-Lake) है।
- इसका निर्माण प्लीस्टोसिन काल (Pleistocene Epoch) में उल्कापिंड के गिरने से हुआ माना जाता है।
- यह बेसाल्टिक चट्टानों से निर्मित है।
- इसका व्यास 1.85 किमी. तथा गहराई 500 फीट है।
- वर्ष 1823 में लोनार क्रेटर झील की CJE अलेक्जेंडर नामक एक ब्रिटिश अधिकारी द्वारा एक अद्वितीय भौगोलिक स्थल के रूप में पहचान की गई थी।
- लोनार क्रेटर वर्ष 1979 में एक भू-विरासत स्थल का दर्जा प्रदान किया गया।
विश्व बाल श्रम निषेध दिवस (World Day against Child Labour)
- यह प्रतिवर्ष 12 जून को मनाया जाता है।
- विश्व बाल श्रम निषेध दिवस 2002 में अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन द्वारा शुरू किया गया था।
- इसका उद्देश्य विश्व भर में किसी भी रूप में बाल श्रम के विरुद्ध आंदोलन को बढ़ावा देना है।
- विश्व बाल श्रम निषेध दिवस 2020 की थीम: कोविड-19: बच्चों को बाल श्रम से बचाएं, पहले से कहीं ज्यादा, [COVID-19: “Protect children from child labour, now more than ever”].
- अंतर्राष्ट्रीय समुदाय द्वारा संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्यों के अंतर्गत वर्ष 2025 तक सभी रूपों में बाल श्रम को समाप्त करने का आह्वान किया गया है।